‘‘ बाबा मुझे माफ कर दो ......... ! मैं इसे छोड़ कर चला जाऊंगा........! फिर कभी इसकी डगर नहीं जाऊँगा ! बाबा मुझ पर रहम करो......! गुरू सा...
‘‘ बाबा मुझे माफ कर दो ......... ! मैं इसे छोड़ कर चला जाऊंगा........! फिर कभी इसकी डगर नहीं जाऊँगा ! बाबा मुझ पर रहम करो......! गुरू साहेब बाबा की समाधि का चक्कर लगाती वह अस्त - व्यस्त हालत में बदहवास सी युवती की करूण वेदना को सुनने वाला एक पल के लिए स्तब्ध सा रह जाता है कि आखिर यहाँ पर हो क्या रहा है......! वह कौन है जो इस महिला के माध्यम से बाबा सें प्रार्थना कर रहा है..... रामकली नामक वह युवती मुलताई के पास के गांव की रहने वाली थी. उसके पीछे उसका परिवार भी बाबा की समाधि का चककर काट रहा था क्योंकि वह युवती को जब भी वह अदृश्य आत्मा परेशान करती थी तो उसे होश तक नहीं रहता था. कई बार वह अपने शरीर के वस्त्रों को तार - तार कर चुकी थी. इस बार भी ऐसा कुछ न हो जाए इसलिए उसे संभालने के लिए उसके परिजन उसके साथ - साथ थे. उस दिन और रात भर मलाजपुर स्थित बंधारा नदी में कड़ाके की ठंड में नहा कर आने के बाद रामकली जैसी कई महिलाए, पुरूष , युवक , युवतियाँ , बच्चे और बूढ़े व्यक्ति गुरू साहेब बाबा की समाधि के चारों ओर एक दूसरे के पीछे रेल गाड़ी के डिब्बों की तरह चक्कर काटते बाबा से रहम की भीख मांगते चले जा रहे थे. किसी फिल्मी के दृश्य की तरह दिखने वाले उस सीन को देखने के बाद आँखें स्थिर हो जाती थी. पूरी दुनिया में इस तरह का विचित्र भूतों का मेला कही भी नहीं लगता है.
मलाजपुर के इस बाबा के समाधि स्थल के आसपास के पेड़ो की झुकी पड़ी डालियों पर उल्टे लटके भूत - प्रेत विक्रम और बेताल की याद ताजा करते महसूस हो रहे थे. ऐसी आम धारणा है कि जिस भी प्रेत बाधा से पीड़ित व्यक्ति को छोडऩे के बाद उसके शरीर में समाहित प्रेत बाबा की समाधि के एक दो चक्कर लगाने के बाद अपने आप उसके शरीर से निकल कर पास के किसी भी पेड़ पर उल्टा लटक जाता है. प्रतिवर्ष मकर संक्रांति के बाद आने वाली पूर्णिमा को लगने वाले इस अजीबो - गरीब भूतों के मेले में आने वाले सैलानियों में देश - विदेश के लोगों की संख्या काफी मात्रा में होती है. मेले के दिन और रात में ‘‘भूत राजा बहार आ जा ...........! ’’ वाली स्टाईल में भूत अपने आप भागने लगते हैं . इसे देखने वाले के लिए यह किसी हिन्दी रामसे ब्रदर्स की डरावनी भूतों पर आधारित फिल्म या फिर जी हारर शो के धारावाहिक के दृश्य से कम वीभत्स नहीं रहता. खुली नंगी आँखों के सामने दुनियाँ भर से आये लोगों की मौजूदगी में हर साल होने वाले इस शो में लोग डरे - सहमे वहाँ पर होने वाले हर पल का आनंद उठाते हैं. गुरू साहेब बाबा की समाधि पर लगने वाले विश्व एक मात्र भूतों के मेले में पूर्णिमा की रात का महत्व काफी होता है. हालांकि मेला एक माह तक चलता है. ग्राम पंचायत मलाजपुर इस मेले का आयोजन करती है . अपने देश या विदेश में तो लोग भूतों को लेकर अविश्वास व्यक्त करते हैं ऐसे लोगों और उनसे जुड़े संगठनों को एक बार मध्यप्रदेश के बैतूल जिले में स्थित ग्राम मलाजपुर के इस विचित्र मेले में आकर सब कुछ देखना चाहिये कि क्या वास्तव में इस वैज्ञानिक युग में भूतों का भी कोई अस्तित्व है भी या नहीं? वैसे आजादी के पहले कई अंग्रेज यहाँ पर आकर बाबा के चमत्कार को जान चुके है तथा उन्होंने भी अपनी पुस्तकों एवं उपन्यासों तथा स्मरणों में इस भूतों के मेले का जिक्र किया है. इन विदेशी लेखकों की किस्से कहानियों के चलते ही हर वर्ष कोई ना कोई विदेशी बैतूल जिले में स्थित मलाजपुर के गुरू साहेब बाबा के मेले में आता रहता है.
सतपुड़ा की सुरम्य वादियों में मध्यप्रदेश के दक्षिण में बसे गोंडवाना क्षेत्र के अति महत्वपूर्ण जिलों में से एक बैतूल विभिन्न संस्कृतियों एवं भिन्न-भिन्न परंपराओं, को मानने वाली जातियों - जनजातियों सहित अनेकों धर्मों व संस्कृतियों के मानने वाले लोगों से भर पूरा है. इस क्षेत्र में पीढ़ी दर पीढ़ियों से निवास करते चले आ रहे इन्हीं लोगों की आस्था एंव अटूट विश्वास का केन्द्र कहा जाने वाला गुरू साहेब बाबा का यह समाधि स्थल पर आने - वाले लोगों की बताए किस्से कहानियाँ लोगों को बरबस इस स्थान पर खींच लाती है. क्षेत्र की जनजातियों एवं अन्य जाति, धर्म व समुदायों के बीच आपसी सदभाव के बीच इन लोगों के बीच चले आ रहे भूत-प्रेत, जादू-टोना, टोटका एवं झाड़-फूंक का विश्वास यहाँ के लोगों के बीच सदियों से प्रचलित मान्यताओं के कारण अमिट है. देवी - देवता - बाबा के प्रति यहाँ के लोगों की अटूट आस्था आज भी देखने को मिलती है . विशेषकर आदिवासी अंचल की गोंड, भील एवं कोरकू जनजातियों में जिसमें पीढ़ी - पीढ़ी से मौजूद टोटका, झाड़ फूंक एवं भूतप्रेत-चुड़ैल सहित अनेक ऐसे रीति -रिवाज निवारण प्रक्रिया आज भी पाई जाती है . आज के इस वैज्ञानिक युग में जब आदमी के कदम चन्द्रमा तक पहुँच रहे है तब का विज्ञान भले ही चाहे लोगों को कितना ही विश्वास दिलाने का प्रयास करें पर लोग इन सब बातों के प्रति अपनी अटूट श्रद्धा को दर किनार करने को हरगिज तैयार नहीं होगें .
आज के चांद तक पहुँचने वाले वैज्ञानिक युग में भूत प्रेत व आत्मायें भले न होती होगी पर गांव में आज भी भूत राजा का राज है . भूत प्रेत आदि मानव शरीर की अतृप्त आत्मायें होती है जो अपने पूर्व कर्मों का कर्ज नहीं चुका पाती तब तक भूलोक व पितृलोक के बीच भटकती रहती है . इन विक्षिप्त अतृप्त भटकती अनगिनत आत्माओं की मानव शरीर प्राप्त करने की अभिलाषा ही अनेक प्रकार की घटनाओं को जन्म देती है. अकसर देखने को मिलता है कि कमजोर दिल वाले व्यक्तियों के शरीर के अंदर प्रवेशित होकर व्यक्ति को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष तरीकों से मानसिक स्थिति असंतुलित करके कष्ट पहुंचाती है . इन्हीं परेशानियों व भूतप्रेत बाधाओं से मुक्ति दिलाने वाले स्थानों में मध्यप्रदेश के बैतूल जिले के ग्राम मलाजपुर में स्थित गुरूसाहब बाबा का समाधि स्थल अब पूरी दुनिया में जाना- पहचाना जाने लगा है . अभी तक यहाँ पर केवल भारत के विभिन्न गांवों में बसने वाले भारतीयों का जमावड़ा होता था लेकिन अब तो विदेशों से भी विदेशी सैलानी वीडियो कैमरों के साथ -साथ अन्य फिल्मी छायांकन के लिए अपनी टीम के साथ पहुँचने लगे है . मलाजपुर के गुरूसाहेब बाबा के पौराणिक इतिहास के बारे में अनेक कथाएं प्रचलित है. जनश्रुति है कि बैतूल जिला मुख्यालय से 34 किलोमीटर दूर विकासखंड चिचोली जो कि क्षेत्र में पायी जाने वाली वन उपजों के व्यापारिक केन्द्र के रूप में प्रख्यात हैं . इसी चिचोली विकासखंड से 8 किलोमीटर दूर से ग्राम मलाजपुर जहां स्थित हैं श्रद्धा और आस्थाओं का सर्वजातिमान्य श्री गुरू साहेब बाबा का समाधि स्थल .
उपलब्ध जानकारी के अनुसार इस स्थल का पौराणिक इतिहास यह है कि विक्रम संवत 1700 के पश्चात आज से लगभग 348 वर्ष पूर्व ईसवी सन 1644 के समकालीन समय में गुरू साहब बाबा के पूर्वज मलाजपुर के पास स्थित ग्राम कटकुही में आकर बसे थे . बाबा के वंशज महाराणा प्रताप के शासनकाल में राजस्थान के आदमपुर नगर के निवासी थे . अकबर और महाराणा प्रताप के मध्य छिड़े घमसान युद्ध के परिणामस्वरूप भटकते हुये बाबा के वंशज बैतूल जिले के इसरूरस्थ क्षेत्र में आकर बस गए . बाबा के परिवार के मुखिया का नाम रायसिंह तथा पत्नी का नाम चंद्रकुंवर बाई था जो बंजारा जाति के कुशवाहा वंश के थे . इनके चार पुत्र क्रमश: मोतीसिंह, दमनसिंह, देवजी (गुरूसाहब) और हरिदास थे . श्री देवजी संत (गुरू साहब बाबा) का जन्म विक्रम संवत 1727 फाल्गुन सुदी पूर्णिमा को कटकुही ग्राम में हुआ था . बाबा का बाल्यकाल से ही रहन सहन खाने पीने का ढंग अजीबो - गरीब था . बाल्यकाल से ही भगवान भक्ति में लीन श्री गुरू साहेब बाबा ने मध्यप्रदेश के हरदा जिले के अंतर्गत ग्राम खिड़किया के संत जयंता बाबा से गुरूमंत्र की दीक्षा ग्रहण कर वे तीर्थाटन करते हुये अमृतसर में अपने ईष्टदेव की पूजा आराधना में कुछ दिनों तक रहें इस स्थान पर गुरू साहेब बाबा को ‘देवला बाबा’ के नाम से लोग जानते पहचानते हैँ तथा आज भी वहाँ पर उनकी याद में प्रतिवर्ष विशाल मेला लगता है . इस मेले में लाखों भूत - पे्रत बाधा से ग्रसित व्यक्तियों को भूत - प्रेत बाधा से मुक्ति मिलती है. गुरू साहेब बाबा उक्त स्थानों से चंद दिनों के लिये भगवान विश्वनाथ की पुण्य नगरी काशी प्रवास पर गये, जहां गायघाट के समीप निर्मित दरभंगा नरेश की कोठी के पास बाबा के मंदिर स्थित है .
बाबा के चमत्कारों व आशीर्वाद से लाभान्वित श्रद्घालु भक्तों व भूतप्रेतों बाधा निवारण प्रक्रिया के प्रति आस्था रखने वाले महाराष्ट्र भक्तों द्वारा शिवाजी पार्क पूना में बाबा का एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाया गया .श्री गुरू साहब बाबा की समाधि स्थल पर देखरेख हेतु पारिवारिक परंपरा के अनुरूप बाबा के उतराधिकारी के रूप में उनके ज्येष्ठ भ्राता महंत गप्पादास गुरू गादी के महंत हुये . तत्पश्चात यह भार उनके सुपुत्र परमसुख ने संभाला उनके पश्चात क्रमश: सूरतसिंह, नीलकंठ महंत हुये इनकी समाधि भी यही पर निर्मित है . वर्तमान में महंत चंद्रसिंह गुरू गादी पर महंत के रूप में सन 1967 से विराजित हुये . यहां पर विशेष उल्लेखनीय यह है कि वर्तमान महंत को छोडक़र शेष पूर्व में सभी बाबा के उत्तराधिकारियों ने बाबा का अनुसरण करते हुये जीवित समाधियां ली . भूत - प्रेत बाधा निवारण के लिये गुरूसाहब बाबा के मंदिर भारत भर में विशेष रूप से प्रसिद्ध है . इस घोर कलयुग में जब विज्ञान लोगों की धार्मिक आस्था पर हावी है उस समय में यह सत्य है कि भूत प्रेत बाधा और अनुभूति को झुठलाया नहीं जा सकता है . भूत - प्रेतों के बारे में पढ़ा लिखा तथाकथित शिक्षित तबका भले ही कुछ विशिष्ट परिस्थितियों से प्रभावित होकर इन सब पर अविश्वास व्यक्त करे लेकिन बाबा की समाधि के चक्कर लगाते ही इस भूत- प्रेत बाधा से पीड़ित व्यक्ति स्वयं ही बकने लगता है कि वह क्या है ? तथा क्या चाहता है ?
बाबा की समाधि के पूरे चक्कर लगाने के पहले ही बाबा के हाथ - पैर जोड़ कर मिन्नत मांगने वाला व्यक्ति का सर पटकर कर माफी मांगने के लिए पेट के बल पर लोटने का सिलसिला तब तक चलता है जब तब की उसके शरीर से वह तथाकथित ‘भूत’ याने कि अदृश्य आत्मा निकल नहीं जाती . एक प्रकार से देखा जाए तो यह कहा जा सकता है कि ‘भूत’ - ‘प्रेत’ से आशय छोटे बच्चों या विकलांग बच्चों की आत्मा होती है. ‘पिशाच’ अधिकांशत: पागल, दुराचारी या हिंसक प्रवृत्ति वाले व्यक्ति या अत्यधिक क्रोधी व्यक्ति का भूत होता है. स्त्री की अतृप्त आत्माओं में चुड़ैल, दुखी, विधवा, निसंतान स्त्री अथवा उस महिला भूत होता है जिसके जीवन की अधिकांश इच्छायें या कामनायें पूर्ण नहीं हो पायी हो . ऐसे व्यक्ति को सबसे पहले गुरूसाहब बाबा की समाधि के समीप से बहती बंधारा नदी पर स्नान करवाने के बाद पीड़ित व्यक्ति को गुरूसाहब बाबा की समाधि पर लाया जाता है . जहां अंकित गुरू साहब बाबा के श्री चरणों पर नमन करते ही पीड़ित व्यक्ति झूमने लगता है . उसकी सांसो में अचानक तेजी आ जाती है आंखें एक निश्चित दिशा की ओर स्थिर हो जाती है और उसके हाथ पैर ऐंठने लगते हैं. उस व्यक्ति में इतनी अधिक शक्ति आ जाती है कि आस-पास या साथ में लेकर आये व्यक्तियों को उसे संभालना पड़ता है . बाबा की पूजा अर्चना की प्रक्रिया शुरू होते ही प्रेत बाधा पीड़ित व्यक्ति के मुंह से अपने आप में परिचय देती है . पीड़ित व्यक्ति को छोड़ देने की प्रतिज्ञा करती है . इस अवस्था में पीड़ित आत्मा विभूषित हो जाती है और बाबा के श्री चरणों में दंडवत प्रणाम कर क्षमा याचना मांगता है . एक बात तो यहाँ पर दावे के साथ कही जा सकती है कि प्रेत बाधा से पीड़ित व्यक्ति यहां आता है तो वह निश्चित ही यहां से प्रेत बाधा से मुक्त होकर ही जाता है . धार्मिक आस्था के केन्द्र मलाजपुर में श्रद्घालुओं की उमड़ती भीड़ में बाबा की महिमा और चमत्कार के चलते ही पौष पूर्णिमा से एक माह तक यहाँ पर लगने वाला मेला बाबा के प्रति लोगों के विश्वास को प्रदर्शित करता है .
यहां पर सबसे बड़ा जीवित चमत्कार यह है कि यहाँ पर अपनी अभिलाषा पूरी होने पर भक्तो द्वारा स्वयं के वजन भर गुड़ की चढ़ौती तुलादान कर बाबा के चरणों में अर्पित कर गरीबों में प्रसाद बांट दिया जाता है . बाबा के श्री चरणो में चढ़ौती किया गया गुड़ को एक गोदाम में रखा गया है . सबसेे आश्चर्य जनक बात यह है कि यहाँं पर हजारों टन गुड होने के बाद भी मख्खी के दर्शन तक नहीं है. यहाँ पर गुड पर मख्खी होने की कहावत भी झूठी साबित होती है . बाबा के इस मेले में सभी जाति व धर्म के लोग आते हैं जो बाबा के श्री चरणों में शीश नवाते हैं . दुनियाँ भर से अनेक लोग मध्यप्रदेश के आदीवासी बैतूल जिले के मलजापुर स्थित ग्राम में बरसो पहले पंजाब प्रांत के गुरूदास पुर जिले से आयें बाबा गुरू साहेब समाधि पर लगने वाले दुनिया के एकलौते भूतों के मेले में आते हैं. नेशनल हाइवे 69 पर स्थित बैतूल जिले के इसाई मिशनरी द्वारा विश्व प्रसिद्ध पाढऱ चिकित्सालय मार्ग से दस किलोमीटर दूर पर स्थित आठंवा मिल से मलाजपुर के लिए एक सड़क जाती है. मलाजपुर जाने के लिए बैतूल हरदा मार्ग पर स्थित ग्राम पंचायत चिचोली से भी एक सड़क जाती है. इस वर्ष भी पौष माह की आने वाली पूर्णिमा की रात को भारत के विभिन्न प्रांतों से प्रेतबाधा से पीड़ित लोग बाबा गुरू साहेब की समाधि पर आना शुरू हो गये हैं. पिछले वर्ष जर्मनी की मीडिया टीम इस विश्व प्रसिद्ध गुरू साहेब बाबा के भूत मेले की रात भर के उस डरा देने वाले मंजर का छायांकन एवं चित्रांकन करके जा चुकी है . महाराणा प्रताप के वंशज रहे बाबा के परिजन मुगलों के आक्रमण के शिकार हुये बाबा अपने छोटे भाई हरदास तथा बहन कसिया बाई के साथ आये थे. चिचोली में बाबा हरदास की तथा मलाजपुर में गुरू साहेब बाबा तथा उनकी बहन कसिया बाई की समाधि है . बाबा के भक्तों में अधिकांश यादव समाज के लोग है जो कि आसपास के गांवों में सदियों से रहते चले आ रहे है. सबसे बड़ी विचित्रता यह है कि बाबा के भक्तों का अग्नि संस्कार नहीं होता है.
बाबा के एक अनुयायी के अनुसार आज भी बाबा के समाधि वाले इस गांव मलाजपुर में रहने वाले किसी भी व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात उसके शव को जलाया नहीं जाता है चाहे वह किसी भी जाती या धर्म का क्यों ना हो. इस गांव के सभी मरने वालों को उन्हीं के खेत या अन्य स्थान पर समाधि दी जाती है. बैतूल जिले के चिचोली जनपद की मलाजपुर ग्राम पंचायत में सदियों से हजारों की संख्या में बाबा के अनुयायी अनेक प्रकार की मन्नत मांगने साल भर आते हैं .
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और कथाकार हैं. संपर्क - ramkishorepawar@gmail.com )
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