इज्जत की रोटी / कहानी / देवेन्द्र कुमार मिश्रा

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खेत पर ही घास-फूस का झोपड़ा बना लिया था मंगलू ने। इस काम में उसकी मदद की थी हेतराम ने। जवानी के दिनों का साथ था दोनों का। हेतराम गांव में शह...

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खेत पर ही घास-फूस का झोपड़ा बना लिया था मंगलू ने। इस काम में उसकी मदद की थी हेतराम ने। जवानी के दिनों का साथ था दोनों का। हेतराम गांव में शहद बेचने आया करता था। हेतराम घनघोर जंगल में बने आदिवासी गांव में रहता था। मंगलू को थोड़ा सा शहद देता था बदले में मंगलू उसे बीड़ी पिलाता था। एक दिन किसी बड़े प्रोजेक्ट के तहत पुलिस ने गांव से आदिवासियों को खदेड़ दिया। बाकी सब तो पता नहीं कहां चले गये? हेतराम ने जाने से मना कर दिया। थानेदार उसे पुलिस कोतवाली ले आया परिवार सहित। परिवार में एक 7 वर्ष का लड़का और उसकी पत्नी थी। थानेदार ने उसे पुलिसिया अंदाज में समझाया। '' बड़े लोग कारखाने लगा रहे है। सरकार उनकी मदद कर रही है विकास के लिए। कारखाना लगने के बाद तुम्हें नौकरी दी जायेगी। गांव तो खाली करना पड़ेगा। सब चले गये तो तुम अकेले क्या करोगे रहकर ? ''

'' चले नहीं गये साहब। मार-मारकर भगा दिया है आप लोगों ने। ये जमीन ये जंगल हमारे है 1 '' हेतराम ने कहा।

'' ये जंगल तुम्हारे नहीं, सरकार के हैं। भगवान की दी हुई बहुत बडी धरती है। कहीं भी रह लो। शांति से मान जाओ। नहीं तो जेल में डाल देंगे। ''

'' किस जुरम में साहब। ''

'' नक्सलवादी होने के जुर्म में। ''

हेतराम कांप गया। उसने देखा था कि पुलिस ने कितने आदिवासियों को नक्सलवादी होने के आरोप में उठा लिया था। बाद में उनकी लाश ही मिली थी और पुलिस को इनाम। हेतराम के चेहरे पर भय की लहर देखकर थानेदार ने उससे कहा - '' क्या तुम चाहते हो कि तुम्हारा बेटा पुलिस की मुठभेड़ में मारा जाये और औरतों के साथ क्या होता है, ये तुम्हें बताने की जरुरत नहीं। हट्‌टे-कट्‌टे आदमी हो। जंगल रो निकलो और शहर में बसो। जब कारखाना बन जायेगा तो नौकरी मिल जायेगी। गांव वालों को सरकार मुआवजा देगी तो वो भी मिल जायेगा। वैसे आजकल आदिवासियों को सरकार शहर में बसा रही है नौकरी के साथ। ''

हेतराम जानता था कि कितने गांव उजाड़े गये। कितने कारखाने बनाये गये। लेकिन आज तक किसी को न नौकरी मिली न मुआवजा। विरोध करने पर जेल मिली या पुलिस की लाठियाँ। वह शहद बेचने धर्मपुरा जाता था। मंगलू रो बातचीत होती थी। उसने अपनी पत्नी और बच्चों को लिया और मंगलू के पास मदद को पहुंच गया। मंगलू पहले तो सोच में पड़ गया। फिर साथ में उसके पत्नी और बच्चा भी था। उसकी बात सुनकर उसे दया आ गई। उसने कहा - '' मेरे खेत में झोपड़ी बना लो। खेती की देखभाल करो। मैं गुजर-बसर के लिए कुछ दे दिया करूंगा। आगे देखते हैं और क्या हो सकता है?'' शुरुआती इंतजाम तो हो गया हेतराम का। धीरे-धीरे अपनी सेवाभाव से वह सबकी जरूरत बन गया। मंदिर में झाडू-पौंछा का काम उसकी पत्नी करने लगी। किसानों के खेत में दोनों पति-पत्नी मजदूरी करने लगे। हेतराम के बेटे का नाम स्कूल में लिख गया। समय गुजरता रहा। मंगलू का बेटा और हेतराम का बेटा पढ़ने में ठीक-ठाक थे। सरकारी मदद से वे शहर के कॉलेज में गये। दोनों को सरकारी नौकरी लग गई। दोनों की शादी हो गई। दोनों के बेटे शहर में बस गये। मंगलू और हेतराम की पत्नी थोड़े अन्तराल रो स्वर्ग सिधार गई। इस बीच गांव में राजनीति ने पूरी तरह पैर पसार लिए। गांव में बिजली आ गई। सड़क बन गई। मंगलू सरपंच बन गया। उसकी जाति के लोग सबसे ज्यादा थे गांव में। जाति के लोगों के साथ उसके सम्बन्ध भी अच्छे थे। खुद की खेती-बाडी थी। किसी का मोहताज नहीं था। विकास के नाम पर प्रकृति का इतना अधिक दोहन किया गया कि प्रकृति नाराज हो गई। अब वर्षा में बारिश नहीं होती। ठंड की फसल के समय ओलावृष्टि होने लगी। खेती करना जोखिम का काम हो गया। गांव से लोग शहरों की ओर पलायन करने लगे। खेत बेच -बेचकर लोग ने शहरों में मकान ले लिए। अपना रोजगार जमाया। जिनके बेटे सरकारी नौकरी में थे। उन्होंने बेटों की पढाई-नौकरी के लिए शहर में बसना उचित समझा। कभी रखा, कभी बाढ़, कभी ओलावृष्टि ने किसान को पूरी तरह तबाह कर दिया। बड़ी मुश्किल रो रिश्वत देकर कर्ज मिला तो चुका नहीं पाये। कोई रास्ता न देख कुछ लोगों ने आत्महत्या का रास्ता अपनाया। मंगलू को घर बेचना पड़ा बेटे को शहर में मकान दिलाने के लिए। हेतराम ने गांव में खुद का घर बनाया था। जिसे बेचकर आर्थिक मदद के लिए उसका बेटा अक्सर दबाव बनाता रहता था।

अब स्थिति ये थी कि गांव में तीन प्राणी स्थाई थे। मंगलू हेतराम और गांव का पुजारी। पुजारी के पास मंदिर में आने वाली चढोत्री और गांव में पूजा-पाठ से प्राप्त दक्षिणा ही आय का जरिया थी। जो लगभग समापन की ओर थी। मंगलू ने खेत में झोपड़ी तान ली थी। खेत तो उजाड़-खंजर हो चुका था। पानी के अभाव में खेती कैसे हो? अकाल पीड़ित गांव में पानी के लिए त्राहिमाम बचा हुआ था। मंगलू और हेतराम के बेटे अपने शहरी जीवन में मस्त थे। उन्हें अपने पिता को देना कुछ नहीं था। बस लेना ही लेना था मंगलू और हेतराम रोज मंदिर जाते थे। पुजारी से उन्हें हमदर्दी थी। पुजारी की पत्नी शादी के कुछ समय बाद ही चल तत् थी। कोई लाद नहीं थी। पुजारी ने दूसरा विवाह नहीं किया। उनकी शारीरिक. आर्थिक हालत उन्हें इसकी इजाजत नहीं देती थी।

मंगलू और हेतराम मंदिर पहुंचे। मंगलू ने पुजारी से कहा - '' पुजारी जी गांव तो सुनसान पड़ा है। आपके भोजन-पानी की क्या व्यवस्था है। ''

'' हफ़्ते भर से भूखा हूँ। '' पुजारी ने कराहते हुए कहा।

'' हम कुछ लाये हैं आपके लिए '' हेतराम ने कहा।

'' तुम्हारे पास कहा से आया? लड़कों ने भेजा होगा। '' पुजारी ने पूछा।

' पढ-लिखकर लड़के ऊँची नौकरियों में चले गये। उन्हें बाप को बाप कहने में शर्म आती है। वे क्या भेजेंगे उल्टा हमीं से मांगते रहते हैं। हमारा भी स्वाभिमान है। मर जायेंगे। लेकिन औलाद के सामने हाथ नहीं फैलायेंगे 1 '' मंगलू ने गुस्से में कहा। '' तो फिर तुम्हारे पारा कहां से आया? खेत में तो कुछ होता नहीं। ' पुजारी ने फिर से पूछा।

'' आरा-पारा के गांवों से लोग दे जाते हैं कई बार। कहो तो आपको दे दूँ। '' हेतराम ने कहा।

'' क्या है? '' पुजारी ने जिज्ञासा से पूछा।

'' चना है, आलू है। '' मंगलू ने कहा।

'' तुम लोगों के हाथ का खाऊंगा तो जात से बाहर हो जाऊंगा। '' पुजारी ने विवशता से कहा।

'' भूखे मर रहे हो लेकिन जात को सिर पर रखकर घूम रहे हो। कहा है जात वाले। पूछा किसी ने। सब चले गये शहर। '' मंगलू ने गुस्से रो कहा।

'' मेरी तसल्ली के लिए। मेरा मन रखने के लिए तुम लोग अपनी जात बदल लो। '' पुजारी ने कहा।

'' जात क्यों बदल लो। इसी जात रो तो सरकार ने बहुत कुछ किया है। तुम बदल लो अपनी जात। ' मंगलू ने चिढ़कर कहा।

'' ऊपर से नीचे आते नहीं बनता मंगलू। इरा जात ने तकलीफ के अलावा कुछ नहीं दिया है। मेरे लिए बदल लो सिर्फ मेरे सामने। सरकार की नजर में वही रहना, जो हो। मैं तुम्हें ऊँची जात में शामिल करता हूँ। ''

' कौन जात में? '' हेतराम ने कहा।

'' आज से मेरे लिए तुम दोनों कायस्थ हुए। '' पुजारी ने कहा।

'' कायस्थ क्यों. पंडित. ठाकुर क्यों नहीं? '' मंगलू ने प्रश्न किया 1

'' ठाकुर बनोगे तो ठाकुर लोग नाराज हो जायेंगे। फिर ठाकुरों को तो तुम जानते ही हो ठाकुर लोगों के घर भी हैं गांव में। अभी नहीं हैं तो क्या हुआ? '' पुजारी ने अपनी बात रखी।

'' और बामन क्यों नहीं '' हेतराम ने छा।

'' सब तो तुम्हारे पास है। पूजा-पाठ तो हमारे लिए छोड़ दो। ''

'' पुजारी के कहने पर दोनों ने एजरात जताया। मंगलू ने कहा - '' एक तो तुम्हारे कहने से अपनी जात बदले वो भी तुम्हारी दी हुई जात। जरूरत तुम्हें हैं। हमें नहीं। ''

'' मेरी बात रख लो ताकि तुम्हारे साथ उठ-बैठ सकूं। खा-पी सकूं। नहीं तो भूखे तो मरना ही है । ' पुजारी ने कहा।

हेतराम ने मंगलू से कहा - '' भैया, हमारे कहने से आप शहर नहीं चले। आपने हमारी कोई बात नहीं मानी। मेरी बात मान लो। जिन्दगी बची ही कितनी है। 65 साल के ऊपर हमारी उमर है। चलो ऊँची जात में शामिल होकर देख लेते हैं। कोई नुकसान तो है नहीं। लाभ तो सब मिल चुका है। ''

मंगलू ने इंकार किया। हेतराम ने कहा - '' ये पुजारी भूख से मर गया तो मंदिर का क्या होगा? इराकी मौत का दोष अलग लगेगा। मान लेते हैं इसकी बात। ''

' ठाकुर मानेगा तभी जात बदलूंगा। '' मंगलू ने दो टूक बात कही

'' ठीक है में पुजारी से बात करता हूँ। '' हेतराम ने कहा।

हेतराम ने पुजारी से कहा - '' पुजारी जी आप भूख से तड़फ रहे हैं हमारे पारा थोड़ा बहुत है। कुछ दिन मिलकर खा-पी लेते हैं। आप ठाकुर बना लो हमें। किसी से थोड़े कहना है। हमारे-आपके बीच की बात है। आपकी सुविधा के लिए कह रहे हैं।..

पुजारी की हालत- खराब थी भूख के मारे। वह राजी हो गया। कुछ मंत्र पढ़े। तांबे के लोटे रो पानी का छिड़काव किया। फिर कहा - '' मंगलू आज से तुम मेरे लिए मंगल ठाकुर हो और हेतराम तुम रामसिंह हो। ''

सिंह और ठाकुर के सम्बोधन में दोनों ने खुद को गर्व से भरा महसूस किया। अब पुजारी, मंगलठाकुर और रामसिंह तीनों मिलकर जो भी इन्तजाम होता। बनाकर खाते और दिन गुजारते। खाना कभी मंगलू के खेत में बने झोपड़े में बनता। कभी मंदिर के अहाते में बनता। कभी आलू उबालकर काम चलता। कभी चना-चबैना का इन्तजाम होता। कभी तीनों टहलते हुए दूर-दराज के गांव पहुंचकर आटा मांग लाते. मंदिर के नाम पर। उस दिन रोटियां बनती। पानी पीने के लिए दूर जाना पड़ता। बहुत तलाश करने पर कभी किसी गहरे कुएं में कभी सूखते हुए नाले से पानी का इन्तजाम हो जाता।

'' एक वे दिन थे। जब माल पुए खाने को मिलते थे और अब ये दिन हैं कि.................. पुजारी ने उदास स्वर में कहा।

'' सब दिन एक से नहीं होते पुजारी जी '' मंगलू ठाकुर ने समझाया। '' हमारे पास भी सब कुछ था। लेकिन आज कुछ नहीं। बेटे के पास जा सकते थे। उससे मांग सकते थे। लेकिन नहीं क्यों मांगे। हमारी भी इज्जत है। बूढे हैं तो क्या? भूखे मर जायेगे लेकिन अपना गांव अपनी जमीन नहीं छोड़ेगे। ''

मंगलू, सरपंच था गांव का 1 भले ही गांव न रहा हो। चुनाव के समय शराब आती थी गांव में बंटने। बहुत सी शराब की बोतलें अब भी उसके पास थी। जो मिलता खाते। फिर शराब पीते। पुजारी ने पहले तो पीने से मना किया। लेकिन जब हेतराम ने समझाया कि यहाँ कौन बैठा है देखने। जीवन के अंतिम दिन है। इसका स्वाद भी चख लो। पुजारी को बात ठीक लगी। जीवन भर की पूजा-पाठ और जात से क्या मिल गया जो पकडकर बैठे रहे जात। पुजारी ने भी पी। पहले कड़वी लगी। फिर अच्छी लगने लगी। '' आज कुछ नहीं है बनाने खाने को। '' मंगलू ने कहा।

'' रात-दिन तो पीकर पड़े रहते है। मांगने भी नहीं गये अब क्या होगा न् '' पुजारी ने कहा।

'' घास की रोटी खाई है कभी '' हेतराम ने कहा। उसकी बात से पुजारी और मंगलू आश्चर्य में पड़ गये। आश्चर्य से सोच में आये तो पुजारी ने कहा - '' तुम ठहरे आदिवासी आदमी। कुछ भी खा सकते हो। लेकिन हम कैसे खा पायेंगे। हजम भी नहीं होगी। ''

'' सुना था कि महाराणा प्रताप ने खाई थी घास की रोटी। वे तो राजा थे। क्षत्रिय थे। तो हम क्यों नहीं खा सकते। '' मंगलू ने कहा - '' फिर पुजारी जी ने हमें भी ठाकुर घोषित कर दिया है। ''

'' लेकिन घास की खायेंगे कैसे? कैसी लगेगी स्वाद में '' पुजारी ने कहा।

'' नमक-मिर्च के साथ सब कुछ स्वादिष्ट ही लगता है। '' हेतराम ने हंसते हुए कहा।

'' और किसी ने देख लिया तो शर्म से मरने की बात होगी। '' मंगलू ने कहा।

' कौन देखेगा? किसको पड़ी है। आया कोई आज तक हमें पूछने। '' पुजारी ने कहा - '' लेकिन क्या घास की रोटी खाकर हम भी सुबह गोबर करेंगे। '' पुजारी की बात से भुखमरी में एक जोरदार ठहाका लगा।

हेतराम घास की रोटी बनाना जानता था। वह नाले के किनारे की हरी-हरी घास लेकर आया। पुजारी ने आग जलाई। मंगलू ने शराब की बोतल निकालते हुए कहा - '' घास की रोटी के बाद शराब पी जायेगी। सबकुछ पच जायेगा। ''

वे घास की रोटी जैसे-तैसे खा रहे थे कि उनपर कैमरे के फ्लेश चमकने लगे। दो, तीन लोग उनके फोटो ले रहे थे।

'' मिट्‌टी में मिल गई सारी इज्जत। ' कहते हुए मंगलू घास की रोटी लेकर झोपड़ी की तरफ भागा।

'' ये चिमरगिद्ध कहां से आ गये? '' कहते हुए हेतराम भी झोपड़ी की तरफ भागा।

बुढापे में ये क्या दिन देखने पड़ रहे है? '' पुजारी सबसे तेज भागा और सबसे पहले झोंपड़ी में घुसा। मीडिया वालों का सीधा प्रसारण शुरू हो चुका था। '' ये है बुन्देलखंड का वह सूखा ग्रस्त गांव। जहां आज भी लोग घास की रोटी खाने पर मजबूर हैं। तीन बुजुर्ग व्यक्ति, जी हाँ तीन व्यक्ति एक साथ घास की रोटी खा रहे हैं। देखिये इन उजाड़ बंजर खेतों को। इस सूखे की मार से पीड़ित गांव को। इनकी गरीबी को जो इन्हें घास की रोटी खाने को मजबूर कर रही है। कौन है इसका जिम्मेदार। निकम्मा प्रशासन। सरकार की अनदेखी............ .''

'' कहां गये बुलाओ उन्हें......'' संवाददाता ने अपने सहयोगी से कहा।

सहयोगी ने कहा - '' सर वे झोंपडी के अन्दर छिप गये हैं। ''

' क्यों? उन्हें बताओ हम दिल्ली से आये हैं। '' संवाददाता ने कहा

'' सर, वो बाहर निकलने को तैयार नहीं '' सहायक ने कहा।

'' कैमरा चालू रखना '' संवाद दाता ने कहा। फिर वे झोंपड़ी के पास पहुंचे। संवाददाता ने कहा - '' बाहर आइये। हम दिल्ली से आये हैं। सरकार तक आपकी बात पहुंचायेंगे। ''

'' क्यों आये हैं हमारी गरीबी का मजाक उड़ाने। क्यों हमारी इज्जत उतारने पर लगे हुए हैं। जाइये यहां से। '' पुजारी ने अन्दर से चीखकर कहा।

'' घास की रोटी खाते हो और इज्जत की बात करते हो। '' सहायक ने गुस्से में कहा।

'' हम अपने घर में जैसा भी खाते है। चोरी तो नहीं करते । डाका तो नहीं करते। क्या गरीब होने से इज्जत नहीं रहती आदमी की। आप लोग जाइये। हमारा तमाशा मत दिखाइये। '' मंगलू ने चीखकर कहा। '' हम आपकी समस्या से सरकार को अवगत करायेंगे। समाचार चैनल में आप लोगों की खबर आते ही पूरा प्रशासन आपके लिए छप्पन भोग लेकर दौड़ेगा। आप घास की रोटी खा रहे हैं। सरकार के लिए डूब मरने की बात है '' संवाददाता ने समझाते हुए कहा।

' देखिये हम लोग बुजुर्ग है। हम पर तरस खाइये। हमारे गांव का नाम बदनाम होगा। लोग क्या सोचेंगे हमारे बारे में। आप लोग जाइये. कृपा करके। '' हेतराम ने निवेदन भरे स्वर में कहा।

पुजारी को चिन्ता थी कि कही उसे लोग मंगलू और हेतराम के साथ खाते-पीते देख जाति से बाहर न कर दे। मंदिर की पुरोहिताई न छीन ले उससे। पानी गिरते ही सब वापिस आयेंगे। फिर से पूजा, पाठ, दक्षिणा, चढावा शुरु होगा। आज लोगों ने देख लिया इस हाल में तो बडी बदनामी होगी। मंगलू सरपंच था। इस हालत के लिए पार्टी के लोग उसे ही दोष देंगे। पार्टी से निकाल दिया तो सरपंची गई और कहीं शराब की बोतलें देख ली तो पार्टी के आलाकमान यही सोचेंगे कि चुनाव में शराब नहीं बांटी। पार्टी का माल खुद हजम कर गये। जिस पार्टी का सरपंच घास की रोटियाँ खा रहा हो। उस पार्टी की तो किरकिरी हो जायेगी पूरे देश में। हेतराम को चिन्ता इस बात की थी कि कहीं शहर में अफसर बेटे. बहू ने उसे घास की रोटी के साथ टीवीपर देख लिया तो उसको क्या इज्जत रह जायेगी? बेटे की भी बदनामी होगी। गांव की इज्जत उसके कारण धूल में मिल जायेगी। इसी गांव ने शरण दी थी बुरे दिनों में। गलती हमारी और बदनाम हो गांव। शराब नहीं पीते तो कहीं से मांगकर ले आते कुछ। ये दारू बहुत खराब चीज है।

इधर तीनों अन्दर दुबके पड़े हैं झोपड़ी में। बाहर संवाददाता अपने सहयोगी और कैमरामेन के साथ उन्हें समझाता रहा है बाहर आने के लिए। तीनों जाने के लिए निवेदन कर रहे हैं और संवाददाता कह रहा है - '' बहुत दूर से आये हैं। इतनी बढ़िया ब्रेकिंग न्यूज छोड़कर नहीं जायेंगे। जय तक आप लोग बाहर नहीं आ जाते। हम बैठे रहेंगे।..

' अब क्या किया जाये। ये नहीं टलने वाले। टी.आर.पी. के चक्कर में ये कुछ भी कर सकते हैं। हम बाहर नहीं गये तो झोपडी भी गिरा सकते हैं। '' पुजारी ने डरते हुए कहा।

'' इज्जत प्यारी है तो जान पर खेलना होगा। '' मंगलू ने कहा।

'' इज्जत ही तो बची है हमारे पास। बाकी तो कुछ नहीं है। इस उम्र में घास की रोटी के साथ हमारी खबर चली तो मरने के बाद भी हमें याद किया जायेगा। '' हेतराम ने फुसफुसाते हुए कहा। मंगलू ने माचिस जलाई और झोपडे की सूखी घास में लगाते हुए कहा - '' मुँह पर कपड़ा बांधे। जैसे ही आग तेज होगी। मैं लकडी से घास की दीवार पर चोट करुंगा। जगह बनते ही भाग निकलना। थोड़ा बहुत जलने की चिन्ता मत करना। '' आग तेजी से फैलने लगी। मंगलू ने मोटे डंडे से दूसरी तरफ चोट की। घास की दीवार गिरी। तीनों मुँह पर कपड़ा बांधकर सरपट भागे।

'' ये क्या हो गया '' सहायक ने कहा।

'' लगता है तीनों ने आत्महत्या की कोशिश की है। '' कैमरामेन ने कहा।

'' नहीं देखो, वे भाग रहे हैं। '' संवाददाता ने कहा।

'' पीछा करें '' सहायक ने कहा

'' कोई फायदा नहीं। '' संवाद दाता ने अफसोस भरे स्वर में कहा।

'' सर. हमारी ब्रेकिंग न्यूज का क्या होगा? '' कैमरामेन ने कहा।

'' ब्रेकिंग न्यूज तो बनेगी। कैमरा ऑन करो। '' संवाद दाता ने कैमरे के सामने बोलना शुरु किया। आप देख रहे है सीधा प्रसारण। बुन्देलखंड के एक छोटे से गांव में घास की रोटी खाते तीन लोग। भूख, गरीबी शर्म रो खुद को आग के हवाले करते तीन लोग। जी हाँ 21 वीं सदी में घास की रोटी खाने को मजबूर किसान

और वे तीनों उखड़ी सांसों - कांपते पैरों के साथ अब भी भागे जा रहे थे।

 

लेखक का पता -

देवेन्द्र कुमार मिश्रा

पाटनी कालोनी, भरत नगर, चब्दलगाँव छिन्दवाड़ा मप्र. ९४८०१००१

1 नाम देवेन्द्र कुमार मिश्रा

2 जन्मतिथि 21 -०३-१ 973

3. शिक्षा एम ए समाजशास्त्र,

०इ प्रमाणपत्रीय कोर्स

4. भाषा हिन्दी

5 कार्य स्वतंत्र लेखन्

6 लेखन 1991 से सतत् पत्र-पत्रिकाओं में कथा 7000 से अधिक कवितायें। 3०० कहानियाँ प्रकाशित। 8 कथा संग्रह प्रकाशित। 27 काव्य संग्रह प्रकाशित। . सम्मान : देश भर की साहित्यिक संस्थाओं से 225 . पत्राचार का देवेन्द्र कुमार मिश्रा,

वर्तमान पता पाटनी कालोनी. भरत नगर. चन्दनगाँव-छिन्दवाडा मप्र.) छिन्दवाडा मो 9425405022

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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: इज्जत की रोटी / कहानी / देवेन्द्र कुमार मिश्रा
इज्जत की रोटी / कहानी / देवेन्द्र कुमार मिश्रा
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