दुर्गा दुर्गति नाशिनी अंक: 1 :- भगवती योगेश्वरी दृश्य: - 1 (मधु कैटभ से डरकर विधाता योगेश्वरी की स्तुति कर रहे हैं ) जय हो जय हो माता य...
दुर्गा दुर्गति नाशिनी
अंक: 1 :- भगवती योगेश्वरी
दृश्य: - 1
(मधु कैटभ से डरकर विधाता योगेश्वरी की स्तुति कर रहे हैं )
जय हो जय हो माता योगेश्वरी जय हो
तुम्हीं स्वाहा तुम्हीं स्वधा वषट्कार हो
तुम्हीं स्वरा तुम्हीं सुधा तुम्हीं ओंकार हो
तुम्हीं संध्या सावित्री जननी सकार हो
तुम्हीं सृष्टिरूपा थिति रूपा संहार हो
महाविद्या महामेधा महामायाकार हो
महास्मृति महादेवी मोहरूपाकार हो
तुम्हीं कालरात्रि महारात्रि मोहरात्रि हो
तुम्हीं श्री ईश्वरी ह्री बोधरूपा बुद्धि हो
तुम्हीं लज्जा पुष्टि तुष्टि शांति क्षमा हो
तुम्हीं खड्गशूलधारिणी परमेश्वरी हो
जय हो जय हो माता योगेश्वरी जय हो
विधाता:- मुझे, शंकर और विष्णु को शरीर धारण कराया है, तुम्हारी स्तुति करने की शक्ति किसमें है, देवी! तुम अपने उदार स्वभाव से प्रशंसित हो।
मधु कैटभ दैत्यों को मोह में डाल दो, जगदीश को जल्दी जगा दो।
( योगेश्वरी निद्रादेवी विधाता के समक्ष खड़ी हो जाती है, जगदीश जाग जाते हैं, देखते हैं दोनों राक्षस विधाता को खाना चाह रहे हैं, जगदीश उनसे लड़ते हैं )
योगमाया से मोहित वे कहते हैं: -
हम तुम्हारी वीरता से प्रसन्न हैं, तुम हमसे कोई वर माँगो।
जगदीश: - तुम मुझ पर प्रसन्न हो, तुम दोनों अब मेरे हाथों मारे जाओ।
( वे सम्पूर्ण जगत में जल ही जल देखा )
मधु कैटभ: - जहाँ सूखा स्थान हो, वहाँ हमारा वध करो।
जगदीश: - तथास्तु
( उन दोनों का मस्तक अपनी जाँघ पर रखकर चक्र से काट डाले।)
(परदा गिरता है ।)
दृश्य:- 2
( महिषासुर से हारकर इंद्र आदि देवता गण विमधाता को आगे कर जगदीश और महादेव के पास गये )
विधाता: - भगवन! महिषासुर सब देवताओं से उनका अधिकार छीन लिया है, उन्हे स्वर्ग से निकाल दिया है।
अब वे पृथ्वी पर रहते हैं। अब वे आपकी शरण में आये हैं।
( उनके वचन सुनकर जगदीश और महेश क्रोधित हुए, जगदीश के मुख से महान तेज प्रकट हुआ, सभी देवताओं के शरीर से तेज निकला , सब तेज मिलकर नारी बन गया, सबने उसे अपना अपना हथियार दिया, )
शेरोंवाली मां से कहे: -
देवी! तुम्हारी जय हो।
जय हो जय हो तुम्हारी सदा विजय हो
(देवी के भयंकर नाद से सारा संसार काँपने लगा)
महिषासुर:- ये क्या हो रहा है? जाकर देखो।
( चिक्षुर, चामर, उदग्र, महाहनु, असिलोमा, परिवारित, बिडाल जाकर हजार बाँहे वाली माँ से लड़ने लगे,माँ सेनाओं का वध कर दिया, देवतागण संतुष्ट होकर फूल बरसाने लगे।)
(अम्बिका देवी ने सेनानायकों को मार दिया, महिषासुर भैंसे का रूप धारण कर लड़ने लगा, फिर तलवारधारी पुरूष बन गया, गजराज, पुन: भैंस बनकर लड़ने लगा, देवी मधु का पान करने लगी)
अम्बिका: - ओ मूर्ख! जब तक मधु पीती हूँ, तब तक तू खूब गरज ले, यहीं मेरे हाथ से तेरी मौत हो जाने पर देवता गर्जना करेंगे।
( ऐसा कहकर देवी उछलकर महिषासुर के ऊपर चढ़ गयी,फिर अपने पैर से उसे दबाकर शूल से उसके कण्ठ में आघात किया,मस्तक आधा निकल पाया था, उसे तलवार से काट दिया, देवतागण फूल बरसाने लगे )
(पर्दा गिरता है)
दृश्य:- 3
देवतागण स्तुति कर रहे हैं
नमस्कार नमस्कार बार बार नमस्कार
दुर्गा देवी तुमको बार बार नमस्कार
देवताओं के शक्तियों का हो तुम योग
तुमको जपने से यहाँ किसी को होगा न रोग।
तेरे बल का वर्णन करने में किसी में नहीं समर्थ
शेष, महेष समझ न पाये कोई अर्थ
पुण्यात्मा के घर लक्ष्मी रूप में रहती
पापियों के घर कुलक्ष्मी रूप में रहती
बुद्धि, श्रद्धा, लज्जा रूप से करती है निवास।
भगवती देवी को करते हैं नमस्कार
नमस्कार नमस्कार बार बार नमस्कार
दुर्गा देवी तुमको बार बार नमस्कार
स्वाहा, स्वधा, अचिन्त्य स्वरूपा हो
भक्ति परा विद्या शब्द स्वरूपा हो
तुम वेदों के आधार भगवती हो
तुम विश्व के पालनहार पार्वती हो
तुम वार्ता पीड़ानाशिनी हो
लक्ष्मी गौरी भयहारिणी हो
आप रक्षा करें शूल और तलवार
घण्टा की ध्वनि और धनुष की टंकार
नमस्कार नमस्कार बार बार नमस्कार
तुमको दुर्गादेवी बार बार नमस्कार
पूर्व पश्चिम उत्तर दक्षिण से करें रक्षा
भूलोक हथियारों से करें हमारी रक्षा
देवी: - देवताओं तुम सब लोग मुझसे जिस वस्तु की अभिलाषा रखते हो, उसे माँगों।
देवतागण: - भगवती आपने हमारी सब इच्छा पूर्ण कर दी, अब कुछ भी बाकी नहीं है, क्योंकि हमारा शत्रु महिषासुर मारा गया, इतने पर भी यदि आप और वर देना चाहती हैं, तो हम जब जब आपका स्मरण करें, तब तब आप हमें दर्शन दें।
देवी: - तथास्तु
( ऐसा कहकर देवी अंतर्ध्यान हो गई )
( पर्दा गिरता है )
अंक: 2 :- परमेश्वरी अम्बिका
दृश्य :-1
( शुम्भ और निशुम्भ से पराजित होकर अपराजिता देवी का स्मरण कर हिमालय जाकर स्तुति करने लगे,)
नमस्कार नमस्कार बार बार नमस्कार
दुर्गा देवी तुमको बार बार है नमस्कार
महादेवी शिवा को है सदा नमस्कार
प्रकृति और भद्रा को है नमस्कार
ज्योत्स्नामयी सुखरूपा को नमस्कार
वृद्धि और सिद्धि देवी को है नमस्कार
नैर्रिती, श्री औ शर्वाणी को है नमस्कार
दुर्गा, दुर्गपारा औ सारा को है नमस्कार
सर्वकारिणी, ख्याति, कृष्णा को नमस्कार
धूम्रा, सौम्या औ रौद्रा को है नमस्कार
कृतिदेवी, विष्णुमाया को है नमस्कार
प्राणियों में जो देवी चेतना कहलाय
नमस्कार नमस्कार बार बार नमस्कार
प्राणियों में जो देवी बुद्धि रूप में रहे
नमस्कार नमस्कार बार बार नमस्कार
प्राणियों में जो देवी निद्रा रूप में रहे
नमस्कार नमस्कार बार बार नमस्कार
प्राणियों में जो देवी क्षुधा रूप में रहे
नमस्कार नमस्कार बार बार नमस्कार
प्राणियों में जो देवी छाया रूप में रहे
नमस्कार नमस्कार बार बार नमस्कार
प्राणियों में जो देवी शक्ति रूप में रहे
नमस्कार नमस्कार बार बार नमस्कार
प्राणियों में जो देवी तृष्णा रूप में रहे
नमस्कार नमस्कार बार बार नमस्कार
प्राणियों में जो देवी क्षमा रूप में रहे
नमस्कार नमस्कार बार बार नमस्कार
प्राणियों में जो देवी जाति रूप में रहे
नमस्कार नमस्कार बार बार नमस्कार
प्राणियों में जो देवी लज्जा रूप में रहे
नमस्कार नमस्कार बार बार नमस्कार
प्राणियों में जो देवी शान्ति रूप में रहे
नमस्कार नमस्कार बार बार नमस्कार
प्राणियों में जो देवी श्रद्धा रूप में रहे
नमस्कार नमस्कार बार बार नमस्कार
प्राणियों में जो देवी कांति रूप में रहे
नमस्कार नमस्कार बार बार नमस्कार
प्राणियों में जो देवी लक्ष्मी रूप में रहे
नमस्कार नमस्कार बार बार नमस्कार
प्राणियों में जो देवी वृत्ति रूप में रहे
नमस्कार नमस्कार बार बार नमस्कार
प्राणियों में जो देवी स्मृति रूप में रहे
नमस्कार नमस्कार बार बार नमस्कार
प्राणियों में जो देवी दया रूप में रहे
नमस्कार नमस्कार बार बार नमस्कार
प्राणियों में जो देवी तुष्टि रूप में रहे
नमस्कार नमस्कार बार बार नमस्कार
प्राणियों में जो देवी माता रूप में रहे
नमस्कार नमस्कार बार बार नमस्कार
प्राणियों में जो देवी भ्रान्ति रूप में रहे
नमस्कार नमस्कार बार बार नमस्कार
प्राणियों में जो देवी व्याप्ति रूप में रहे
नमस्कार नमस्कार बार बार नमस्कार
प्राणियों में जो देवी चैतन्य रूप में रहे
नमस्कार नमस्कार बार बार नमस्कार
साधनभूता ईश्वरी कल्याण मंगल करे
नमस्कार नमस्कार बार बार नमस्कार
हम देवता दानव से हैं सताये हुये
नमस्कार नमस्कार बार बार नमस्कार
मां जल्दी विपत्तियों का नाश करे
नमस्कार नमस्कार बार बार नमस्कार
( उस समय पार्वती देवी गंगाजी में स्नान के लिये आईं)
भगवती:- आप लोग यहाँ किसकी स्तुति कर रहे हैं?
( उन्हीं के शरीरकोश से प्रकट होकर शिवादेवी बोलीं )
अम्बिका: - शुम्भ और निशुम्भ से पराजित ये मेरी ही स्तुति कर रहे हैं।
(पार्वतीजी के शरीरकोश से अम्बिका का प्रादुर्भाव हुआ था, इसलिये वे कौशिकी कही जाती है, कौशिकी के प्रकट होने पर उनका शरीर काले रंग का हो गया, अत: वे कालिका देवी के नाम से विख्यात हुईं, चण्ड मुण्ड ने अम्बिका देवी को देखा तो वे शुम्भ के पास जाकर बोले)
चण्ड : -महाराज! हिमालय में एक अत्यन्त सुन्दर स्त्री है, जो अपनी दिव्य कांति से हिमालय को प्रकाशित कर रही है।
मुण्ड: - वैसी रूपवती किसी ने नहीं देखा होगा, असुरेश्वर ! पता लगाइये, वह देवी कौन है और उसे ले आइये।
चण्ड: - नारियों में वह रत्न है, उसके अंग अंग सुन्दर है, वह अपनी अंगों की प्रभा से सम्पूर्ण दिशाओं में प्रकाश फैला रही है, दैत्यराज अभी वह हिमालय पर ही मौजूद है, उसे आप देख सकते हैं,
मुण्ड:- तीनों लोक के मणि, हाथी, घोड़े आपकी घर की शोभा पाते हैं, प्रभो ऐरावत, पारिजात और उच्चै:स्रवा घोड़ा ये सब आपने इन्द्र से ले लिया है।
चण्ड:-
हंस में जुता हुआ विधाता का अद्भुत विमान अब आपके आँगन की शोभा बढ़ा रहा है।
मुण्ड: - महापद्म निधि आपने कुबेर से छीन लिया है।
चण्ड: - किञ्जल्किनी माला आपको सागर ने उपहार दिया है।
मुण्ड:- वरूण का छत्र आपके घर में शोभा पाता है।
चण्ड:- दैत्येश्वर! मृत्यु की उत्क्रान्तिदा शक्ति भी आपने छीन ली है।
मुण्ड: - अग्नि ने दो वस्त्र आपकी सेवा में अर्पित किये हैं।
चण्ड:- दैत्यराज! सभी रत्न आपने एकत्र कर लिए हैं, फिर ये नारी रत्नरूप है, इसे आप क्यों नहीं अपने अधिकार में कर लेते?
(शुम्भ महादैत्य सुग्रीव को दूत बनाकर देवी के पास भेजा और कहा)
शुम्भ:- तुम मेरी आग्या से ये ये बातें कहना, सम्पूर्ण त्रिलोक मेरे अधिकार में है, देवता भी मेरी आग्या के अधीन चलते हैं, सम्पूर्ण यग्यों के भागों को मैं ही पृथक पृथक भोगता हूँ, देवी हम तुम्हें संसार की स्त्रियों में रत्न मानते हैं, अत: तुम हमारे पास आ जाओ, क्योंकि रत्नों का उपभोग करने वाले हम ही हैं और ऐसे उपाय करना, जिससे प्रसन्न होकर यहाँ शीघ्र ही यहाँ आ जाय।
सुग्रीव देवी के पास जाकर बोला: - देवी! दैत्यराज शुम्भ इस समय तीनों लोक का स्वामी है, मैं उनका भेजा हुआ दूत हूँ, उनकी आग्या देवता मानते हैं, कोई उसका उल्लंघन नहीं कर सकता, उसने जो संदेश कहा है, उसे सुनो चंचल कटाक्ष वाली सुन्दरी! तुम मेरे या मेरे भाई निशुम्भ की सेवा में आ जाओ, क्योंकि तुम रत्न स्वरूपा हो, मेरा वरण करने से तुम्हें तुलनारहित महान ऐश्वर्य की प्राप्ति होगी, अपनी बुद्धि से यह विचारकर तुम मेरी पत्नी बन जाओ।
देवी:- (मुस्कुराकर) दूत! तुमने सत्य कहा है, इसमें तनिक भी मिथ्या नहीं है, किन्तु इस विषय में मैंने जो प्रतिग्या कर ली है, उसे मिथ्या कैसे करूँ? जो मुझे संग्राम में जीत लेगा, वही मेरा स्वामी होगा। इसलिये वे यहाँ आयें और मुझे जीतकर मुझसे विवाह कर लें।
सुग्रीव दूत:- देवी! तुम घमंड से भरी हुई हो, मेरे सामने ऐसी बातें ऩ करो, तीनों लोक में कौन ऐसा पुरूष है, जो शुम्भ निशुम्भ के सामने खड़ा हो सके।
देवी:- तुम्हारा कहना ठीक है, दोनों महाबलवान और पराक्रमी हैं,किन्तु क्या करूँ? बिना सोचे समझे मैंने प्रतिग्या कर ली है।
सुग्रीव दूत:- तुम मेरे कहने से उनके पास चलो, जिससे तुम्हारे गौरव की रक्षा होगी अन्यथा जब वे घसीटेंगे, तब तुम्हें अपनी प्रतिष्ठा खोकर जाना पड़ेगा।
देवी:- अब तुम जाओ, मैंने तुमसे जो कुछ कहा है, वो सब दैत्यराज से कहना, फिर वे जो उचित जान पड़े, करें।
(पर्दा गिरता है)
दृश्य: 2
शुंभ: - धूम्रलोचन तुम शीघ्र अपनी सेना साथ लेकर जाओ और उस दुष्टा के केश पकड़कर घसीटते हुये उसे बलपूर्वक यहाँ ले आओ, उसकी रक्षा के लिये कोई दूसरा खड़ा हो तो उसे अवश्य मार डालना।
धूम्रलोचन: - जो आग्या महाराज।
( धूम्रलोचन देवी के पास पहुँचकर कहता है )
धूम्रलोचन: - अरी! तू हमारे महाराज के पास चल, यदि इस समय प्रसन्नतापूर्वक मेरे स्वामी के पास नहीं चलेगी तो मैं बलपूर्वक झोंटा पकड़कर घसीटते हुये तुझे ले जाऊँगा।
देवी:- तुम्हें दैत्यों के राजा ने भेजा है, तुम स्वयं भी बलवान हो और तुम्हारे साथ विशाल सेना भी है, ऐसी दशा में यदि मुझे बलपूर्वक ले चलोगे, तो मैं तुम्हारा क्या कर सकती हूँ।
(धूम्रलोचन उसकी ओर दौड़ा, तब अम्बिका ने हुं शब्द के उच्चारण से उसे भस्म कर दिया। )
( पर्दा गिरता है )
दृश्य: 3
शुंभ: - हे चण्ड! हे मुण्ड! तुम लोग बड़ी सेना लेकर जाओ, उसे बाँधकर शीघ्र यहाँ लाओ,इस प्रकार लाने में संदेह हो,तो उसकी हत्या कर दो, उसके सिंह को भी मार दो।
( चंड मुंड को देखकर अंबिका ने क्रोध किया, क्रोध से उसका मुख काला पड़ गया, भौंहे टेढ़ी हो गई, वहाँ से काली प्रकट हुई, जो तलवार और पाश लिये हुये थीं, देवी ने हं के उच्चारण के साथ चंड के केश पकड़कर उसका मस्तक काट डाला, मुंड का सिर भी धड़ से अलग कर दिया,दोनों का सिर लेकर अंबिका के पास आई और बोली)
काली:- (प्रचंड अट्टहास करते हुये) देवी मैंने चंड मुंड दोनों महापशुओं को तुम्हें भेंट किया है, अब युद्धयग्य में तुम शुंभ निशुंभ का स्वयं वध करना।
अंबिका:- देवी! तुमने चंड मुंड का वध किया है, इसलिये चामुण्डा नाम से तुम्हारी ख्याति होगी।
( पर्दा गिरता है )
दृश्य: 4
( रक्तबीज महादैत्य अंबिका और काली से लड़ने के लिये आया,भूमि पर उसके रक्त गिरने पर और भी रक्तबीज बन जाते हैं)
अंबिका:- चामुण्डा तुम अपना मुख फैलाओ। मेरे शस्त्रपात से गिरनेवाले रक्तों को पी जाओ, महादैत्यों को खा जाओ।
( काली से यों कहकर अम्बिका देवी ने शूल से रक्तबीज को मारा, काली ने अपने मुख से उसका रक्त ले लिया , कुछ समय पश्चात् रक्तहीन होकर रक्तबीज पृथ्वी पर गिर पड़ा)
( पर्दा गिरता है )
दृश्य: 5
( निशुंभ मारने के लिये देवी की ओर दौड़ा, देवी के साथ निशुंभ के साथ घोर संग्राम छिड़ गया, दैत्यराज निशुंभ को फरसा हाथ में लेकर आते देख देवी ने बाणसमूहों से घायल कर धरती पर सुला दिया, निशुंभ के धाराशायी हो जाने पर शुंभ को बड़ा क्रोध हुआ, वह अंबिका का वध करने के लिये वह आगे बढ़ा)
देवी:- ओ दुरात्मन! खड़ा रह, खड़ा रह
(अंबिका ने शूल से मारा, उसके आघात से मूर्छित हो वह धरती पर गिर गया, निशुंभ को चेतना हुई, वह बाणों द्वारा देवी, काली तथा सिंह को घायल कर दिया, निशुंभ की छाती शूल से छेद डाली, खड्ग से उसका मस्तक काट डाला। )
( पर्दा गिरता है )
दृश्य: 6
शुंभ: - दुष्टा! तू बल के घमंड मत कर,तू बड़ी मानिनी बनी हुई है, किन्तु दूसरी स्त्रियों के बल के सहारा लड़ती है।
देवी: - ओ दुष्ट! मैं अकेली ही हूँ, इस संसार में मेरे सिवा दूसरी कौन है, देख ये मेरी ही विभूतियाँ हैं, अत: मुझमें ही प्रवेश कर रही हैं। अब अकेली ही युद्ध में खड़ी हूँ।
( शुंभ को अपनी ओर आते देख देवी ने त्रिशूल से उसकी छाती छेद दिया, उसके प्राण पखेरू उड़ गये)
(पर्दा गिरता है )
अंक:3 :- श्रीदेवी दुर्गा
दृश्य:1
श्रीदेवी: - इन्द्र त्रिलोक पर राज्य करेगा, तुम रसातल पर चले जाओ। यदि तुम जीना चाहते हो, तो इन्द्र के शरण में जाओ।
दुर्ग: - सैनिकों इसे पकड़ लो, यह त्रैलोक्य सुन्दरी मेरे सौभाग्य से प्राप्त हुआ है।
श्रीदेवी:- दैत्यराज! क्षुद्र लोग भी दूतों को पीड़ा नहीं पहुँचाते, आपके तो कहना ही क्या, आप महान हैं, आप बलवान हैं।
दुर्ग:- रक्षकों! इसे मेरे अन्त:पुर में विशेष स्थान पर शोभित करो।
श्रीदेवी:- महाराज! मुझ दूती में ये आपका क्या अनुराग है, हम तो अपनी स्वामिनी के आने पर स्वयं ही आ जायेगी। दैत्यसम्राट! मेरी उस स्वामिनी को युद्ध में जीतकर ले आओ।
दुर्ग:- प्रहरियों, इसे तुरंत अन्त:पुर में ले चलो।
( उसने हुंकार भरी, हुंकार से सैनिक भस्म हो गये, दुर्ग और देवी में अनेक प्रकार से युद्ध हुआ)
दुर्ग:- आप सभी लोगों में से जो भी व्यक्ति उसे पकड़कर लायेगा,उसे मैं इन्द्र बना दूँगा। मेरा मन काम के बाणों से पीड़ित हो चुका है।
दैत्य:- जो आपने कहा है, वह कार्य बहुत ही सरल है क्योंकि वह अकेली और अनाथ है।
दुर्ग:- उसे पाने के लिये मेरा दिल बेचैन हो रहा है, उसे तुरंत ही पकड़कर लाओ।
दैत्य:- आप कहे तो रनिवास सहित उठाकर आपके कदमों में डाल दें।
दैत्य2:- बैकुण्ठनाथ भी आपके आदेश पालन करने के लिये तैयार है।
दैत्य3:- कल्पवृक्ष, कामधेनु आपके कारण हमारे घर में निवास करती है।
दैत्य1:- पवन भी आपकी सेवा कर रहा है।
दैत्य2:- वरूण भी आपके यहाँ पानी भरता है।
दैत्य3:- अग्नि आपका वस्त्र धोता है।
दैत्य1:- चंद्रमा आपके सिर पर छत्र रखता है।
दैत्य2:- सूर्य आपके कमल को प्रतिदिन खिलाता है।
दैत्य3:- आपकी कृपा से सबका जीवन है।
दैत्य1:- महाराज! किस सरलता से उसे लेकर आते हैं।
(दैत्यों और देवियों में युद्ध शुरू हो जाता है)
( दुर्ग दैत्य हाथी, भैंसा, हजार भुजा वाला दानव बनकर युद्ध करने लगा, श्रीदेवी ने उसके दिल पर तीर छोड़ दिया, वह धरती पर गिरकर मर गया, देवतागण हर्षित होकर फूल बरसाने लगे, भगवती श्रीदेवी के स्तुति गाने लगे।
( पर्दा गिरता है )
दृश्य:2
( देवतागण स्तुति कर रहे हैं )
नारायणी नारायणी तुम्हें नमस्कार
हर नारियों में है तेरा ही अवतार
संपूर्ण संसार में तुम ही समाई हो
स्वर्ग और मोक्ष देने तुम आई हे
समर्थ करने विश्व का उपसंहार
तुम्हीं को सभी गुणों का आधार
नमस्कार नमस्कार देवी नमस्कार
लक्ष्मी लज्जा श्रद्धा ध्रुवा तुम्हीं हो
पुष्टि तुष्टि भूति सरस्वती तुम्हीं हो
तामसी वरा नियता ईशा तुम्हीं हो
भय से करे हमारी रक्षा माता
असुरों का संहार करो माता
हमारे जीवन से मिटा अँधकार
नमस्कार नमस्कार देवी नमस्कार
देवी:- देवताओं! मैं वर देने को तैयाऱ हूँ, तुम्हारे मन में जिसकी इच्छा हो, वह वर माँग लो, संसार के लिये उपकारक वर अवश्य दूँगी।
देवतागण:- परमेश्वरी! तुम इसी प्रकार तीनों लोकों की समस्त बाधाओं को शाँत करो और हमारे शत्रुओं का नाश करो।
( पर्दा गिरता है )
बहुत सुंदर प्रस्तुति ... जय मां भवानी
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