कहानी : बाड़े का हीरो / गोविन्द सेन

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इन दिनों पीपलवाला बाड़ा यानि जम्बू गली की एक जीवन्त कोशा एक विशेष उत्तेजना से ग्रस्त है। कोई सीटी बजा रहा है तो कोई गुनगुना रहा है। हर कोई ज...

इन दिनों पीपलवाला बाड़ा यानि जम्बू गली की एक जीवन्त कोशा एक विशेष उत्तेजना से ग्रस्त है। कोई सीटी बजा रहा है तो कोई गुनगुना रहा है। हर कोई जता रहा है अपने होने को। बैंक का कुँवारा क्लर्क एकदम नई फैशन के कपड़े पहनने लगा है। टेलीफोन आपरेटर शर्मा की रुचि सहसा गाने की ओर झुक गई है। गुप्ता साहब के दोनों लड़के बुशर्ट को पेंट के भीतर रखने लगे हैं। अभी-अभी एडहाक पर लगे जोशी ने दाड़ी ट्रीम करवा ली है। कोल्हापुरी चप्पलों पर संकरी मोरी का पैंट और संकरी मोरी के पैंट पर लम्बा कुरता पहनने लगा है। इधर महिला मंडल और बाड़े के नैतिक दायित्व को अपने कंधों पर महसूस करने वाले बुजुर्ग अलग तरह से सक्रिय हैं।

बाड़े के मध्य में पक्का आँगन है। उत्तर की ओर मेनगेट है जो बाड़े को जम्बू गली में खोलता है। मेनगेट के बगल में एक चौकोर बँधा हुआ कुआँ है, जो पूरे बाड़े के लिए पानी की पूर्ति करता है। कुएँ की उत्तर एवं पश्चिम वाली जगत पर क्रमशः एक-एक घिरनी पानी लाटने के लिए मौजूद है। रोज सुबह शाम यहाँ विशेष रौनक रहती है। दक्षिण की ओर आँगन की छाती फाड़कर दीर्घकाय पीपल खड़ा है। पीपल का शायद ही कोई ऐसा पत्ता, शाखा या प्रशाखा हो जो कबूतर, कौवे जैसे पक्षियो की बीटों से सनी न हो। बाड़े के सभी खिड़कियाँ एवं दरवाजे आँगन की ओर खुलते हैं। आँगन से आधा फुट ऊँचा दालान है, जिस पर तीनों तरफ तीन मंजिल तक उठा हुआ मकान है। जिसमें भाड़ा देने की गरज से बने सामान्य सुविधा संपन्न कमरे हैं। इस प्रकार मकान एक बाड़े का व्यक्तित्व ग्रहण कर लेता है।

आँगन के पूर्व में दूसरी मंजिल पर बीच वाले दो कमरे में कॉलेज में पढ़ने वाले दो लड़के रहते हैं। शंकर और लक्ष्मण। दोनों चार साल से यहीं बने हुए हैं। बाड़े का मोह कुछ इस कदर है कि पट्ठे गर्मी की छुट्टियाँ भी यहीं आराम से बीता लेते हैं। दोनों में शंकर अधिक क्रियाशील है। लड़ाई-झगड़ों से लेकर धार्मिक आयोजनों तक में वह अपनी कुछ न कुछ भूमिका अवश्य अदा करता। है भी बहुत स्मार्ट लौंडा। बदन कठियावाड़ी घोड़े जैसा हृष्ट-पुष्ट, गोरा-चिट्टा एवं चुस्त। लक्ष्मण शंकर की अपेक्षा कम क्रियाशील है। बावजूद इसके वह भी इस प्रतियोगिता में हिस्सा ले रहा था। हैरानी की बात है कि शंकर अपने स्वभाव के विपरीत प्रतियोगिता में कोई रुचि प्रदर्शित नहीं कर रहा है। न सीटी बजाता है। न सामान्य से अधिक बात करता है। न कुएँ की ओर ताकता है और न नीचे की ओर झाँकता है। उसके अनुसार लोगों ने एक सामान्य लड़की के भाव बढा़ दिए हैं।

ये सब बातें ऊपरी थीं। भीतर उसके मन का हर कोना लड़की की प्रशंसा के पुल बाँध रहा था। साँवले चेहरे पर सीप से दो बड़े-बड़े मादक चंचल नयन। शरीर का आरोह-अवरोह ऐसा कि देखते ही लोभ पैदा हो, तभी तो बाड़े के युवा हृदय उसके तलवे चाटने को आतुर हैं। शंकर ने मन ही मन लड़की को ब्लैक ब्यूटी नाम भी दे दिया था। उसने अरसे बाद ऐसा ’पीस’ देखा था। इन दिनों एक अजाने लोभ के तहत वह संजिदा होकर रोज सेविंग कर रहा है व कत्थई रंग की पैंट के साथ दूधिया रंग की शर्ट, जो उसके बदन पर खूब फबती है, पहन रहा है। रोज गैलरी में अपनी विशेष मुद्रा में खड़ा होकर उसे अनदेखा कर रहा है या स्पष्ट कहें तो लड़की की मौजूदगी को नकारने का अभिनय कर रहा है। अपने को अन्य दिनों की अपेक्षा अधिक स्मार्ट महसूस कर रहा है। और हाँ, शंकर इसी क्रम में अपनी फेवोराइट हीरोइन श्रीदेवी की कैलेण्डर साइज की फोटो लाकर अपने आगे वाले कमरे में चिपका दी है। डिस्को सम्राट मिथुन एवं क्रिकेट समा्राट गावस्कर पहले ही दीवार पर विराजमान थे। उसके अनुसार श्रीदेवी के फोटो से आगे वाले कमरे की, जिसे उसने ड्राइंग रूम की संज्ञा दे रखी थी, एक कमी पूरी हो गई। ड्राइंग रूम में दो खिड़कियाँ हैं। यहाँ से सामने वाली मंजिल पर रहने वाली गुप्ता साहब की फैमेली के क्रियाकलापों का निरीक्षण किया जा सकता है। यहीं से वह रोज गुप्ता साहब की लड़की सरोज के दर्शन करता है। उनकी गैलरी पर कुण्डे में तुलसी का पौधा है, जिसमें सरोज रोज कलशभर पानी श्रध्दा से डालती है। आँगन में होने वाली चहल-पहल को देखने हेतु शंकर को गैलरी में आना पड़ता है। यहाँ से वह कुएँ पर पानी भरने आने वालियों को ताक सकता है। कभी-कभार हँसी-मजाक का आदान-प्रदान भी कर सकता है। यहीं से वह महिला-मण्डल में होने वाली चर्चाओं का श्रवण करता है, जो घरेलू बातों से शुरू होकर बाड़े की बासी ताजी घटनाओं से घुमती हुई फिल्मी चर्चाओं में डूब जाती है। महिला-मण्डल में अति विशिष्ट बातें दबी जबान से की जाती है। ऐसे समय शंकर एक सार्थक गुस्से से भर जाता है। वह गैलरी से भीतर आ जाता है। पीछे वाले कमरे में खाट पर अधलेटा हो मनोहर कहानी या सत्यकथा से कोई प्रेम-अपराध कथा पढ़ने लगता है। पीछे का कमरा तीन-चार भागों में विभक्त है। इसका एक कोना बाथरूम, दूसरा कोना किचन, तीसरा एवं चौथा कोना मिलकर बेडरूम बन जाता है। पिछले कमरे का दरवाजा सीढ़ियों द्वारा आँगन से जुड़ा है। ड्राइंग रूम में दो कुर्सियाँ एवं दो टेबलें हैं। कमरे की उत्तर एवं दक्षिणी दीवार में एक-एक अलमारी है। एक अलमारी में सौन्दर्य प्रसाधन जैसे पावडर, क्रीम, राउंड कंघा, खुश्बूदार तेल, दो-तीन किस्म की इत्र की शीशियाँ आदि हैं। दूसरी अलमारी के ऊपरी खाने में राजनीति शास्त्र की ताजा खरीदी हुई वन-डे सीरिज, दो-चार सत्यकथा के अंक, मनोहर कहानियाँ, फटी-पुरानी दो चार आजाद लोक, बाल पेन, लांग कापियाँ जैसी चीजें रखी हैं। इसमें कुछ शैक्षणिक प्रमाण पत्रों के साथ शीला के लव लेटरों का पुलिंदा पड़ा है। शीला सेू उसका संबंध लगभग साल भर से चल रहा है। एक आलिए में बजरंग बली का शीशे में मड़ा एक चित्र है जिसके आगे अगरबत्ती दान में अगरबत्ती की कुछ जलकर बची हुई सीलियाँ तथा दो-चार बासी मुरझाए फूल होंगे। एक आले में जीर्ण-शीर्ण टेपरिकार्डर फटी लूँगी से ढँका पड़ा है। इसका इस्तेमाल शंकर डांस के अभ्यास के लिए करता है। आले के ठीक ऊपर शीशे में मड़ा प्रमाण-पत्र है जो कॉलेज के डिस्को काम्पीटिशन में शंकर की फर्स्ट पोजिशन सूचित करता है। मिलने-जुलने वालों से वह अपनी डिस्को संबंधी सफलता का बखान अवश्य करता। कभी-कभी तो बातचीत के दौरान डिस्को की एक-दो बानगी भी प्रस्तुत कर देता है। कॉलेज में वह ’शंकर डिस्को’ के नाम से ख्यात हो चुका था। जब कोई उससे ’हल्लो डिस्को’ कहते हुए मिलता था तो उसके बटन टूटने लगते थे। खुद को वह उस शहरनुमा कस्बे का सुपरस्टार समझने लगता और बाम्बे जाकर हीरो बनने की उसकी इच्छा बलवती हो उठती।

लड़की और परीक्षा दोनों का एक साथ आना शंकर को खासा असुविधाजनक लग रहा था। एक तो यूँ ही सालभर चुनाव प्रचार, लौंडीबाजी और धींगा-मस्ती में निकल जाता है। फिर ऐन परीक्षा के वक्त वही योग बने तो असुविधा तो होती ही है। अपने-आपको वह ग्यारण्टीड सक्सेस से चिपकाए रखने का भरपूर प्रयास कर रहा है ताकि फेल होने पर कोई ग्लानि महसूस न हो। ’स्टेडी’ तो की थी का’ मानसिक संतोष बना रहे। इस बीच दो-चार बार गैलरी में चहल-कदमी करने के लोभ का वह संवरण नहीं कर पाता। भोजन के बाद गुटखा खाने की शाही आदत पाल रखी थी। इस आदत के तहत दो-चार बार बाड़े से निकल कर कल्पना पान भंडार तक जाना पड़ता है जो गली के नुक्कड़ पर है। इस अवसर पर वह पूर्णरूपेण बना-ठना होता। ऐसे संतुलित एवं शान से डग भरता मानो उसका चलना फिल्माया जा रहा हो।

कपड़े पहनने के बाद शंकर ने कोई हल्का सा गाना-गुनाते हुए चेहरे पर हल्का-हल्का पावडर मला। इत्र का एक फाया कान में खोंसा। दर्पण में अपने-आप को गौर से देखा जैसा कि वह रोज कमरे से बाहर निकल पर करता है। अंत में बनियान में बालपेन का क्लीप फँसाया। प्लास्टिक की पटरी ली। बजरंगबली के चित्र के आगे माथा टेका। जूते पहने। लक्ष्मण से ’बेस्ट ऑफ लक’ लिया। आश्वस्त हो बाड़े से बाहर हुआ। अभी वह गली गली के नुक्कड़ तक पहुँच भी नहीं पाया था कि ’ब्लैक ब्यूटी’ से, जो कुछ दिनों से युवा हृदयों का केन्द्र बिन्दु बनी हुई थी, से सामना हो गया। उसके हाथ में डलिया थी। शायद आलू, टमाटर, गोभी डलिया में रहे होंगे। निश्चय ही वह सब्जी बाजार से आ रही थी। अपने अबोध अंगरक्षक पप्पू के साथ। वह हँसी थी। ’हँसी की फँसी’ वाली बात पर शंकर को अटल विश्वास था। उसने पीछे मुड़कर कन्फर्म टेस्ट लगायी। लड़की अब भी हँस रही थी। परीक्षा का रहा-सहा तनाव भी खत्म हो गया। परीक्षा में झपाटे से बिना गिने कई पृष्ठ घसीट डाले। तीन घ्ंाटे ऐसे गुजर गए जैसे वह अपने प्रिय अभिनेता डिस्को सम्राट मिथुन की फिल्म देख रहा हो।

शंकर को शाम बड़ी रोमांटिक लग रही थी। एक गुटखा मुँह में और दूसरा बँधवाकर जेब में रख लिया। सोचा की रात को मूड हुआ तो खा लेगा। गुमटी से लौटने तक शाम का ताजा अंधेरा बाड़े पर एक महीन चादर बिछा चुका था। बाड़े में घुसा तो लगा, कोई साया पीछा कर रहा हैै उसका। मुड़ कर देखा तो चौंक पड़ा-ब्लैक ब्यूटी। शंकर का मस्तिष्क इस अप्रत्याशित स्थिति में किसी वाजिब हरकत की तलाश में सक्रिय हो उठा। फलतः उसका हाथ यंत्रवत् जेब में गया और जेब से निकल कर लड़की की ओर बढ़ा। क्या है-लड़की ने दबी जबान से पूछा। मसाले का गुटखा-शंकर का जवाब था। दूसरे ही पल गुटखा लड़की के हाथ में था। इसके पहले कि वे कोई अगली हरकत तय कर पाते, लगा कि बाड़े की कुछ आँखें उन पर बिछ गई हैं। शंकर ने खतरा मोल लेना उचित न समझा

कमरे में आकर शंकर ने खूब चुटकियाँ बजायी। दो मिनट में प्यार के आठ गाने गाए। एक का मुखड़ा गाया, दूसरे का शुरू, दूसरे का मुखड़ा छोड़ा, तीसरे का शुरू। डिस्को की तर्ज पर हाथ-पाँव झटके। दो मुक्के टेबल पर दे मारे। लक्ष्मण हतप्रभ हो बार-बार पूछ रहा था-क्या बात है प्यारे इतना खुश क्यों है। ’नहीं बताऊँगा’-शंकर शरारत के साथ बार-बार चुटकियाँ बजाता रहा। लक्ष्मण ने बहती गंगा में हाथ धोना उचित समझा। उसने कहा-’चाय पिलाएगा’। शंकर झट तैयार हो गया। उसने न केवल लक्ष्मण को चाय पिलायी वरन् कल्पना पान भंडार से बढ़िया सा पान भी खिलाया।

रात बड़ी बेचैनी से कटी। सुबह साढ़े आठ बजे उठ पाया। उठते ही गैलरी से उसने देखा कि एक बुजुर्ग व्यक्ति के साथ उसकी ब्लैक ब्यूटी हाथ में अटैची लिए बाड़े से बिदा हो रही है। ऐन वक्त पर यह बुढ्ढा कहाँ से मर गया स्साला! शंकर खीझ उठा। वह माथा पकड़ कर बैठ गया। लगा जैसे सारा बना बनाया खेल बिगड़ गया। स्साला वह गाना ठीक ही है-परदेशियों से न अंखियाँ मिलाना। शंकर बेबस था।

शाम को लक्ष्मण सन्नी देओल की फिल्म ’बेताब’ देखने निकल गया। शंकर अकेला कमरे में पत्र लिखने में व्यस्त था। दो पृष्ठों का पत्र अपनी स्थानीय प्रेमिका शीला को लिखा जिससे उसके संबंध अनैतिक स्तर पर करीब एक साल से चल रहे थे। पत्र के बीच-बीच में इम्प्रेशन झाड़ने के लिहाज से कुछ फड़कीले शेर भी घुसेड़ दिए जो उसने अपने दोस्तों की डायरियों से संग्रहित किए थे।

दूसरा पत्र गाँव में अपने पिता को लिखा। उसके पिता गाँव के धनी किसानों में से थे। शुरूआत की चार पंक्तियों में अपनी कल्पित आवश्यकताओं का उल्लेख एवं अन्त में उनकी पूर्ति के लिए एक बड़ी राशि की माँग।

पत्र लिखने के बाद वह शीला के साथ बिताए रोमांटिक क्षणों को याद करने लगा। बीच-बीच में ब्लैक ब्यूटी का चेहरा हवा के झोकों की तरह आ-जा रहा था।

-गोविन्द सेन, राधारमण कॉलोनी, मनावर, जिला-धार, म.प्र. 454446 मो. 9893010439

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  1. कहानी बाड़े के इर्द गिर्द के वातावरण का विस्तार और सूक्ष्मता से वर्णन करती है. लेकिन पाठक कहानी पढ़ने के पहले जहां था, कहानी पढ़े जाने के बाद अपनी स्थिति या संवेदनाओं के स्तर पर कोई परिवर्तन नहीं महसूस कर पाता. भाषा और स्तरीयता उत्तम कोटी की है...

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रचनाकार: कहानी : बाड़े का हीरो / गोविन्द सेन
कहानी : बाड़े का हीरो / गोविन्द सेन
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रचनाकार
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