व्यंग्य लेक्चर की तैयारी अभी स्कूल से लौटी हूं । चाय पीकर अखबार सरसरी निगाह से देख रही थी, पर पढ़ने में मन लग ही नहीं रहा था क्योंकि...
व्यंग्य
लेक्चर की तैयारी
अभी स्कूल से लौटी हूं । चाय पीकर अखबार सरसरी निगाह से देख रही थी, पर पढ़ने में मन लग ही नहीं रहा था क्योंकि कुछ तो थकावट से पलकें बोझिल हो रही थीं कुछ कल के लेक्चर्स तैयार करने की फिकर थी । बालक हायर सेकेण्डरी शाला में लेक्चरर हूँ । बड़ी जिम्मेदारी निभानी पड़ती है यहां । पता नहीं कल किस अधिकारी या नेता का लड़का बड़ा होकर लेक्चरर के लिये ' क्वालीफाइड ' हो जाये और अपने राम को छुट्टी मिल जाये ।
अभी स्कूल से ले देकर छूटे और फिर उसी की फिकर । क्या गोरखधंधा है- जब तक विद्यार्थी थे तो परीक्षा के लिये पढ़ना पड़ता था, अब अध्यापक हुये तो विद्यार्थियों के लिये पढ़ो । पढ़ो, पड़ी और बस पढ़ते ही रहो । विद्यार्थी थे तो घोंट कर काम चल जाता था पर अध्यापक क्या हो गये मुसीबत आ गई- अब तो सिर्फ पढ़ना ही नहीं, पढ़कर समझना भी है, वह भी अपने लिये ही नहीं, कमबख़्त विद्यार्थियों के लिये ।
यह तो एक गुलामी ही हुई । डाल्टन से लेकर आइंसटीन तक क्या पैदा हुये, मुसीबत खड़ी कर गये । बाप मर गये, औलाद छोड़ गये- ऐसे-ऐसे फार्मूले बना गये कि पल्ले ही नहीं पड़ते । पढाये क्या खाक?
बुजुर्गों का जमाना भी क्या भला था । न ज्यादा आविष्कार ही हुये थे, न ज्यादा कोर्स था और न ही ज्यादा विषय । अब तो इन खोजों का ऐसा सिलसिला चल रहा है कि जिसका कोई अंत ही समझ में नहीं आता । मुसीबत तो यह है कि प्रारंभिक कक्षाओं में जो पढ़ाया गया था, आगे चल कर, जब ले देकर समझ में आया तब तक पड़ी तथा कथित शोध कर्ताओं ने गला फाड़कर- घोषणा कर दी कि वह सब गलत था । और नये फार्मूले, नया सिलेबस लागू कर दिया । इन शोधकर्ताओं ने जो कल्पना भी की, तो शिक्षा विभाग की मुसीबत ।
मस्तिष्क में इन सभी बातों का मंथन चल ही रहा था कि एकाएक नीचे से बुलाने की आवाज आई । देखा संस्था के ही एक अध्यापक गणित की किताब लेने आये थे । कुछ पेट पूजा के बाद अध्यापक जी ने प्रस्थान किया । फिर दूसरे दिन के लिये लेक्चर तैयारी करने बैठी । सोचने लगी पहले क्या पढ़ा जाये ग्याहरवीं के लिये दसवीं के लिये या बाहरवीं के लिये । बाहरवीं के लिये तो तैयारी करनी पड़ेगी, इसलिये ' डिक्टेट ' कर देंगे स्वयं के पल्ले नहीं पड़ता वहां क्या पढ़ायेंगे । कह देंगे लिख लीजिये- इम्पार्टेंट है । दसवीं कक्षा के विद्यार्थियों को पढ़ाना सबमें आसान है । यदि अध्यापक पढ़ाते-पढ़ाते कहें कि- आप इतना तो समझते ही हैं, तो वह भी पोज देकर सिर को ऐसा हिलायेगा- कि समस्या हल हो जायेगी । क्लास बड़ी खुश नजर आयेगी, क्योंकि जो बात समझाई जायेगी वह तो वह खुद भी समझते हैं । तो ' डिक्टेट ' वाला पोर्शन तो कल जाते-जाते नोट कर लेंगे किसी किताब से । अब तैयारी करना है कक्षा ग्याहरवीं के लिये उन्हें जीव विज्ञान कुछ ज्यादा ही समझ में आती है । पिछली बार कह रहे थे- मैडम बोर्ड पर चित्र बनाने में जितना टाईम वेस्ट होता है उतनी देर में हम कुछ आगे का भी पड़ सकते हैं मैंने सोचा ' है, तो बालक बुद्धिमान । '
पिछले साल का अनुभव याद आता है, तो लगता है कि हड्डियों के अंदर केंचुआ रेंग रहा है । हर साल ग्याहरवीं का पेपर सेट करने को मिलता था, इसलिये पिछले साल शुरू में ही पेपर सेट कर लिया था । और आराम से वही पढ़ाती थी जो सेट किया था ।
पर किसी ने मेरे साथ ' पालिटिक्स ' खेल दी पेपर किसी और को चला गया । यदि हर साल मुझी को पेपर सेट करने को मिलता था तो लोगों को जलन क्यों होती है? प्राचार्य मुझ पर ही खुश हैं, तो इसका कोई कारण होगा, लोग यह क्यों नहीं समझते । शिक्षा विभाग में ' पालिटिक्स ' का प्रवेश कितनी खराब बात है । कितनी मुसीबत हुई थी तब मुझे । गनीमत यह हुई कि विद्यार्थियों को शासन की तरफ से जनरल प्रमोशन मिल गया और समस्या सुलझ गई । तभी भोजन की पुकार हुई, चलें पहले ' पेट पूजा फिर काम दूजा ' उक्ति को चरितार्थ करें ।
एक लेक्चरर के लिये ज्यादा खाना भी एक मुसीबत है । निद्रा देवी चली आ रही हैं- नान स्टॉप! रास्ते में कितने ही घर हैं रुकते हुये आ सकती थी पर नहीं । पर अब तो नहीं बैठा जा रहा आँखें बंद हुईं जा रही हैं ।
अरे बापरे अभी- अभी सोये थे और लो सुबह हो गई । अब तो पूरा लैक्चर तैयार होना मुश्किल है । विद्यार्थियों पर जमा अब तक का सारा रुतबा धुल जायेगा । मैंने विद्यार्थियों को कहते सुना है, कि मैं बहुत अच्छी शिक्षिका हुँ । पर अब क्या किया जाये? अरे हों । ऐसा भी तो किया जा सकता है- क्लास में कल जो पढ़ाया था उस पर प्रश्न पूछ लूं । विद्यार्थी यदि ठीक उत्तर दें भी तो कह सकती हूँ कि ठीक नहीं हैं और फिर से कल का पूरा लेकर दोहरा दूं । यह आइडिया ठीक है । मगर दूसरा लेक्चर तो अधूरा ही है उसका क्या किया जाये । चलो सोचें कुछ गण या डांट वाला मसाला जो बीच लेक्चर में डाला जा सके । तभी मेरी माँ छोटे भाई को किसी बात पर डांटने लगी और मैं उनकी डांट में विद्यार्थियों को डांटने का मसाला ढूंढने लगी । इस तरह कल से आज तक का सारा-सारा समय सोचने में चला गया । न तो लैक्चर की तैयारी हुई और न अन्य कोई काम ।
जल्दी से नहा- धोकर, खाना खाकर स्कूल पहुंची । देखा वहाँ सबके चेहरे गंभीर हैं । कुछ अजीब सा लगा ।
सुबह न्यूज पेपर तो देखा था, उसमें तो कोई ऐसी खबर नहीं थी जो सबको दुखी कर दे । जरूर प्राचार्य ने किसी बात पर सबको डाँट पिलाई है तभी सभी के मुँह लटके हुए हैं । क्योंकि मैं जब स्टॉफ रूम तक पहुंचने को थी वह स्टॉफ रूम से गंभीर मुद्रा में बाहर निकल रही थीं । प्राचार्य के जो दाएं-बाएं (चमचे) थे उनके चेहरे पर तो मातम छाया हुआ था, शायद कुछ आँसू भी टपक चुके होंगे । समझ नहीं पा रही थी आखिर माजरा क्या है? अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए मैंने रसायन शास्त्र की लैक्चरर से धीरे से पूछा, ' क्या बात है? माहौल इतना गमगीन क्यों बना हुआ है? स्टॉफ में सभी के यहाँ कुशल-मंगल है न '
धीरे से वह बोली ' प्राचार्य महोदय के कुत्ते का स्वर्गवास हो गया है । ' मन ही मन प्रसन्नता हुई लेकिन चेहरे से व्यक्त नहीं कर सकी । क्योंकि जानती थी ऐसा करना ठीक नहीं । शायद सभी का यही हाल होगा । मेरी प्रसन्नता के दो कारण थे । पहला तो यह वह कभी भी प्राचार्य के साथ स्कूल आ जाता था और न चाहते हुए भी प्राचार्य को खुश करने के लिऐ उसके सर पर हाथ फेरते हुए उसकी तारीफ करनी पड़ती थी । और मुझे कुत्तों को हाथ लगाना बिलकुल पसंद नहीं था, पता नहीं वह कब अपने असली रूप में आकर झपट पड़े ।
दूसरी प्रसन्नता का कारण यह था कि अब आज छुट्टी हो जायेगी । जब मौसम खराब होने पर छुट्टी मिल सकती है तो प्राचार्य के कुत्ते का स्वर्गवास होने पर छुट्टी क्यों न मिलेगी । चलो आज ' लैक्चर ' देने से तो छुट्टी मिली । कल देखा जायेगा । तभी सामने से चपरासी रजिस्टर लेकर आता हुआ दिखाई दिया । मैं समझ गई उसमें यही सूचना होगी- ' प्राचार्य महोदय के कुत्ते के स्वर्गवास के कारण आज स्कूल की सभी कक्षाएं स्थगित की जाती हैं पर कार्यालय खुला रहेगा । ' हमने धीरे से अपना पर्स उठाया और घर चलने की तैयारी में जुट गये ।
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लेखक परिचय
जन्म 15 मार्च 196०
शिक्षा एम. ए., पी-एच .डी. ( हिन्दी)
सम्प्रति - प्राध्यापक, हिन्दी विभाग, म.ल.बा.
शास. कन्या स्नातकोत्तर ( स्वाशासी) महाविद्यालय
भोपाल ( म. प्र.)
सम्पर्क सूत्र : एफ- 113/23, शिवाजी नगर, भोपाल ।
प्रकाशन लगभग 3० शोध - पत्र एवं आलेख प्रकाशित विभिन्न
पत्रिकाओं में कविताएं एवं पुस्तक समीक्षाएं प्रकाशित ।
आकाशवाणी भोपाल से कविताओं का प्रसारण, वर्तमान
में स्त्री विमर्श ' विषय पर ' लघुशोध ' ।
सम्मान : अम्बेडकर फैलोशिप सम्मान दलित साहित्य अकादमी,
नई दिल्ली ।
अम्बेडकर आदित्य सम्मान उज्जैन
मानद उपााधि- हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग
सारस्वत सम्मान हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग,
इलाहाबाद
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