आपने कहा है सम्मान लौटाने का नाटक ‘प्राची’ फरवरी, 2016 मुखपृष्ठ से लेकर अंतिम पृष्ठ तक सौंदर्य व साहित्य से लबरेज है. संपादकीय में साहित्य...
आपने कहा है
सम्मान लौटाने का नाटक
‘प्राची’ फरवरी, 2016 मुखपृष्ठ से लेकर अंतिम पृष्ठ तक सौंदर्य व साहित्य से लबरेज है. संपादकीय में साहित्यकारों द्वारा लौटाये जाने वाले पुरस्कारों की नाटकीय घोषणा की चर्चा है. किसी ने पुरस्कार/सम्मान लौटाया नहीं. केवल लौटाने का वक्तव्य दिया है. काशीनाथ सिंह का ‘‘काशी का अस्सी’’ ग्यारहवां संस्करण बिक रहा है. इसमें केवल पूर्वी, देशज व बनारसी गालियों की भरमार है. राजेन्द्र यादव ने ‘हंस’ में उसका एक अंश छाप कर और भी चर्चित कर दिया था. यदि हम आप ऐसी गालियों भरी रचना तैयार करते तो कोई छापने को भी तैयार न होता. ‘‘हृदय परिवर्तन’’ कहानी में एक मां का अपनी युवा पुत्री को बाहर आने-जाने की छूट प्रदान करने का सुंदर घटनाक्रम रचा गया है.
रोटी, फ्लैट नं. 44, मड़ई, एवं अशोक अंजुम की गजलें प्रशंसनीय हैं.
केदारनाथ ‘सविता’, मीरजापुर (उ.प्र.)
बसंत ऋतु से संबंधित चित्र होना चाहिए
‘प्राची’ फरवरी, 2016 प्राप्त हुआ. कवर बहुत ही बढ़िया है. आंख बंद किए हुए युवती का सौन्दर्य देखने योग्य है. वैसे बसंत ऋतु से संबंधित कवर (मुख पृष्ठ) होना चाहिए था. इस अंक में मेरे मीरजापुर के केदारनाथ सविता की लघुकथा बहुत ही चुटीली व व्यंगपरक है. वे कुछ भी लिखते हैं...कविता, लेख या कहानी, सबमें हास्य का पुट घुस ही जाता है. मैं अपनी भी कुछ रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज रही हूं. आशा है आप उसे प्राची में अवश्य छापेंगे.
पुनश्च...
प्राची का मार्च 2016 अंक मिला. आनन्द जी की कहानी ने मन को छू लिया. बेहद नए विषय को उठाया गया है...और मर्मस्पर्शी है. लघुकथा ‘आपकी मिसेज’ यह दर्शाती है कि
आधुनिक जीवन शैली में हम अपने सांस्कृतिक विचारों से किस तरह दूर होते जा रहे हैं. अशोक गुलशन की गजल ‘नफरत की दीवार हटाओ होली में’ अच्छी लगी. डॉ. मधुर नज्मी की गजल भी बहुत बेहतरीन लगी. उम्मीद है, इसी तरह अच्छी रचनायें पढ़ने को मिलती रहेंगी.
डॉ. अनुराधा चन्देल ‘ओस’, मीरजापुर (उ.प्र.)
पानी की कीमत समझें
अभी-अभी जाड़ा बीता है. गर्मी की शुरुआत भी नहीं हो पाई है कि पहाड़ी गांवों में पानी की किल्लत होने लगी है. लोग पानी की एक बूंद के लिए तरसने लगे हैं. हैंडपंप चलाते-चलाते थक जाते हैं, किंतु पानी की एक धार नहीं गिरती. नहाने और कपड़े साफ करने की बात तो दूर, पीने के लिए भी पानी को तरसते लोगों की यह परेशानी भविष्य के लिए और भी बड़ी परेशानी न बन जाय. वास्तविकता तो यह है कि पहाड़ी गांवों में नहीं, अपितु मैदानी क्षेत्रों में भी पानी की समस्या बढ़ रही है. उत्तर प्रदेश के कई जिलों में पंपसेट, ट्यूबवेल की बोरिंग करने की मनाही है. भू वैज्ञानिकों का मानना है कि भूगर्भ जलस्तर दिन-प्रतिदिन नीचे चला जा रहा है. इसका कारण है- वर्षा का कम होना और जल का बहुत अधिक मात्रा में उत्सर्जन. भूजल का दोहन इतना अधिक है कि निकट भविष्य में गांव-नगर सर्वत्र पानी का अभाव हो जाएगा. लोग मशीनों से अंधाधुंध पानी निकाल रहे हैं. यह भूल बैठे हैं कि नीचे का जलस्रोत भी समाप्त हो सकता है और यदि ऐसा हुआ तो क्या होगा! पृथ्वी पर स्थित सभी प्राणियों के लिए जलसंकट पैदा हो जाएगा. बिना जल के किसी का अस्तित्व बचेगा क्या?
पहले लोग पढ़े-लिखे कम थे लेकिन प्रकृति का अनावश्यक दोहन करने में सकुचाते थे. यहीं नहीं वायु और जल को भी देवता समझते थे. जल की बर्बादी नहीं करते थे. बुजुर्ग कहते थे कि पानी व्यर्थ नहीं बहाना चाहिए. पानी तो नाबदान से बह जाएगा, लेकिन तुम्हारा क्या होगा? रहीमदास भी ‘बिन पानी सब सून’ कहते हुए यहीं संदेश देना चाहते रहे होंगे. आज उद्योगों में खूब पानी खर्च हो रहा है. सिंचाई हो रही है. लोग एक बाल्टी पानी की जगह नहाने में चार बाल्टी पानी खर्च कर रहे हैं. सड़कें, गलियां धुली जा रही हैं. बाइक, मोटरगाड़ियां धुली जा रही हैं. अब शायद लोग इसे भी अपने जीवन स्तर से जोड़कर देखने लगे हैं कि उनके यहां कितना अधिक पानी लगता है. अगर किसी को समझाने की कोशिश करिए तो लड़ने पर उतारू हो जाता है. मैं इस पत्र के माध्यम से प्राची के रचनाकारों और पाठकों से अपील करना चाहता हूं कि आप लोग पानी की कीमत समझें. पानी बर्बाद न करें और दूसरों को भी पानी की बर्बादी न करने की सलाह दें. ऐसा न हो कि हम बच्चों को धन-दौलत तो देकर जाएं किंतु पानी एक-एक बूंद के लिए उन्हें तरसना पड़े.
अरविन्द अवस्थी, मीरजापुर
सर्वश्रेष्ठ पत्र
कानून की उपेक्षा का चित्रण
माह मार्च 2016 के प्राची के अंक में प्रकाशित सम्पादकीय ‘देश के गद्दार’ बहुत ही प्रभावशाली लगा. इसमें जो ऐतिहासिक तथ्य दिए गए हैं, वे इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि हमारे देश में कभी भी एकता और अखंडता नहीं रही और इसी कारण हमें हजारों वर्ष तक गुलामी भुगतनी पड़ी. आज भी ऐसे तत्व मौजूद हैं, जो देश के साथ गद्दारी कर रहे हैं. ऐसे में देश की एकता कैसे सुरक्षित रह सकती है.
‘तीसरी कसम’ फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ द्वारा लिखी गयी कहानी काव्यमयी कहानी है. इसे जितनी बार पढ़ा जाए, वह हमेशा नई लगती है. कहानी में ग्रामीण परिवेश का अच्छा चित्रण किया गया है. ‘आग और समुद्र’ कहानी में सुल्तान जमील नसीम ने हिन्दू मुस्लिम एकता को कायम करने के लिए शादां की शहादत के माध्यम से जो हृदयस्पर्शी प्रभाव पैदा किया है, वह स्तुत्य है. कहानी संवेगों और मर्मस्पर्शी भावनाओं से ओतप्रोत है. ऐसी शिक्षाप्रद कहानी समाज में मिठास घोलने के लिए अत्यन्त आवश्यक है.
‘बंजो’ कहानी हमें यह प्रेरणा देती है कि हम सहनशील बनें. सहनशीलता ही समाज में शांति स्थापित कर सकती है. ‘मैंने उस लड़की का खून किया’ कहानी में बस्सी जैसी परम्परा अनावश्यक है. इसका अंत किया जाना चाहिए. ‘स्वदेशी रेल’ हमारे देश में व्याप्त अनियमितता और कानून की उपेक्षा का एक जीता जागता चित्रण है. यदि हमारे देश में समय की पाबन्दी और कानून के पालन करने पर ध्यान नहीं दिया गया तो हम कभी भी उन्नति नहीं कर पायेंगे. ‘विराट महाराज की होली’ कल्पना की उड़ान का बहुत ही सजीव चित्रण है. कल्पना के आधार पर होलिका की कहानी बच्चों को बहुत ही सहज से हृदयंगम हो सकती है.
पत्रिका की लघुकथाएं बहुत ही सारगर्भित हैं तथा कविताएं बहुत ही बोधगम्य हैं. मैं प्राची की प्रगति की हार्दिक शुभकामना करता हूं.
शरदचन्द्र राय श्रीवास्तव, 5/132, विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.)
(पत्र-लेखक को श्री अंशलाल पंद्रे की पुस्तक ‘सबरंग-हरसंग’ भेजी जाएगी. संपादक)
सम्मान लौटाने का नाटक
‘प्राची’ फरवरी, 2016 मुखपृष्ठ से लेकर अंतिम पृष्ठ तक सौंदर्य व साहित्य से लबरेज है. संपादकीय में साहित्यकारों द्वारा लौटाये जाने वाले पुरस्कारों की नाटकीय घोषणा की चर्चा है. किसी ने पुरस्कार/सम्मान लौटाया नहीं. केवल लौटाने का वक्तव्य दिया है. काशीनाथ सिंह का ‘‘काशी का अस्सी’’ ग्यारहवां संस्करण बिक रहा है. इसमें केवल पूर्वी, देशज व बनारसी गालियों की भरमार है. राजेन्द्र यादव ने ‘हंस’ में उसका एक अंश छाप कर और भी चर्चित कर दिया था. यदि हम आप ऐसी गालियों भरी रचना तैयार करते तो कोई छापने को भी तैयार न होता. ‘‘हृदय परिवर्तन’’ कहानी में एक मां का अपनी युवा पुत्री को बाहर आने-जाने की छूट प्रदान करने का सुंदर घटनाक्रम रचा गया है.
रोटी, फ्लैट नं. 44, मड़ई, एवं अशोक अंजुम की गजलें प्रशंसनीय हैं.
केदारनाथ ‘सविता’, मीरजापुर (उ.प्र.)
बसंत ऋतु से संबंधित चित्र होना चाहिए
‘प्राची’ फरवरी, 2016 प्राप्त हुआ. कवर बहुत ही बढ़िया है. आंख बंद किए हुए युवती का सौन्दर्य देखने योग्य है. वैसे बसंत ऋतु से संबंधित कवर (मुख पृष्ठ) होना चाहिए था. इस अंक में मेरे मीरजापुर के केदारनाथ सविता की लघुकथा बहुत ही चुटीली व व्यंगपरक है. वे कुछ भी लिखते हैं...कविता, लेख या कहानी, सबमें हास्य का पुट घुस ही जाता है. मैं अपनी भी कुछ रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज रही हूं. आशा है आप उसे प्राची में अवश्य छापेंगे.
पुनश्च...
प्राची का मार्च 2016 अंक मिला. आनन्द जी की कहानी ने मन को छू लिया. बेहद नए विषय को उठाया गया है...और मर्मस्पर्शी है. लघुकथा ‘आपकी मिसेज’ यह दर्शाती है कि
आधुनिक जीवन शैली में हम अपने सांस्कृतिक विचारों से किस तरह दूर होते जा रहे हैं. अशोक गुलशन की गजल ‘नफरत की दीवार हटाओ होली में’ अच्छी लगी. डॉ. मधुर नज्मी की गजल भी बहुत बेहतरीन लगी. उम्मीद है, इसी तरह अच्छी रचनायें पढ़ने को मिलती रहेंगी.
डॉ. अनुराधा चन्देल ‘ओस’, मीरजापुर (उ.प्र.)
पानी की कीमत समझें
अभी-अभी जाड़ा बीता है. गर्मी की शुरुआत भी नहीं हो पाई है कि पहाड़ी गांवों में पानी की किल्लत होने लगी है. लोग पानी की एक बूंद के लिए तरसने लगे हैं. हैंडपंप चलाते-चलाते थक जाते हैं, किंतु पानी की एक धार नहीं गिरती. नहाने और कपड़े साफ करने की बात तो दूर, पीने के लिए भी पानी को तरसते लोगों की यह परेशानी भविष्य के लिए और भी बड़ी परेशानी न बन जाय. वास्तविकता तो यह है कि पहाड़ी गांवों में नहीं, अपितु मैदानी क्षेत्रों में भी पानी की समस्या बढ़ रही है. उत्तर प्रदेश के कई जिलों में पंपसेट, ट्यूबवेल की बोरिंग करने की मनाही है. भू वैज्ञानिकों का मानना है कि भूगर्भ जलस्तर दिन-प्रतिदिन नीचे चला जा रहा है. इसका कारण है- वर्षा का कम होना और जल का बहुत अधिक मात्रा में उत्सर्जन. भूजल का दोहन इतना अधिक है कि निकट भविष्य में गांव-नगर सर्वत्र पानी का अभाव हो जाएगा. लोग मशीनों से अंधाधुंध पानी निकाल रहे हैं. यह भूल बैठे हैं कि नीचे का जलस्रोत भी समाप्त हो सकता है और यदि ऐसा हुआ तो क्या होगा! पृथ्वी पर स्थित सभी प्राणियों के लिए जलसंकट पैदा हो जाएगा. बिना जल के किसी का अस्तित्व बचेगा क्या?
पहले लोग पढ़े-लिखे कम थे लेकिन प्रकृति का अनावश्यक दोहन करने में सकुचाते थे. यहीं नहीं वायु और जल को भी देवता समझते थे. जल की बर्बादी नहीं करते थे. बुजुर्ग कहते थे कि पानी व्यर्थ नहीं बहाना चाहिए. पानी तो नाबदान से बह जाएगा, लेकिन तुम्हारा क्या होगा? रहीमदास भी ‘बिन पानी सब सून’ कहते हुए यहीं संदेश देना चाहते रहे होंगे. आज उद्योगों में खूब पानी खर्च हो रहा है. सिंचाई हो रही है. लोग एक बाल्टी पानी की जगह नहाने में चार बाल्टी पानी खर्च कर रहे हैं. सड़कें, गलियां धुली जा रही हैं. बाइक, मोटरगाड़ियां धुली जा रही हैं. अब शायद लोग इसे भी अपने जीवन स्तर से जोड़कर देखने लगे हैं कि उनके यहां कितना अधिक पानी लगता है. अगर किसी को समझाने की कोशिश करिए तो लड़ने पर उतारू हो जाता है. मैं इस पत्र के माध्यम से प्राची के रचनाकारों और पाठकों से अपील करना चाहता हूं कि आप लोग पानी की कीमत समझें. पानी बर्बाद न करें और दूसरों को भी पानी की बर्बादी न करने की सलाह दें. ऐसा न हो कि हम बच्चों को धन-दौलत तो देकर जाएं किंतु पानी एक-एक बूंद के लिए उन्हें तरसना पड़े.
अरविन्द अवस्थी, मीरजापुर
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