साहित्य समाचार मध्यप्रदेश लधुकथाकार परिषद् का 31वां वार्षिक सम्मेलन संपन्न जबलपुरः विगत दिवस रानी दुर्गावती संग्रहालय में मध्यप्रदे...
साहित्य समाचार
मध्यप्रदेश लधुकथाकार परिषद् का
31वां वार्षिक सम्मेलन संपन्न
जबलपुरः विगत दिवस रानी दुर्गावती संग्रहालय में मध्यप्रदेश
लधुकथाकार परिषद् का 31 वां वार्षिक सम्मेलन संपन्न हुआ. डॉ. कुंवर प्रेमिल द्वारा संपादित कहानी संकलन ‘शैल पर्ण की शैला’ एवं डॉ. मो. मुइनुद्दीन अतहर द्वारा संपादित ‘लघुकथा अभिव्यक्ति’ का विमोचन डॉ. राजकुमार ‘सुमित्र’, आचार्य भगवत दुबे, डॉ. इला घोष, एवं डॉ. बैजनाथ गौतम के कर कमलों द्वारा लघुकथा प्रेमियों से खचाखच भरे हाल में पूरी रसमुग्धता के साथ संपन्न हुआ. इस अवसर पर परिषद् के सचिव डॉ. प्रेमिल ने अपने प्रतिवेदन में
लधुकथा पाठक साथ ही साथ लघुकथा में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी, उनके लधुकथा संग्रह प्रकाशित होने की जानकारी तथा संस्कारधानी के शीघ्रातिशीघ्र लघुकथानगरी में परिवर्तित होने की संभावना पर आशा व्यक्त करते हुए कहा कि जबलपुर में लधुकथाकारों की संख्या लगभग चालीस तक पहुंच गई है एवं तेईस के करीब
लघुकथा संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं.
परिषद् द्वारा लधुकथाकारों को उनकी प्रतिभानुसार सम्मानित भी किया गया. सरस्वती सम्मान-आचार्य भगवत दुबे, स्व. बृजबिहारी लाल श्रीवास्तव सम्मान-श्रीमती आशा भाटी, स्व. रासबिहारी पांडेय स्मृति सम्मान-अनामिका तिवारी, स्व. डॉ. श्रीराम ठाकुर दास सम्मान-प्रतुल श्रीवास्तव, स्व. बाबूलाल उपाध्याय स्मृति सम्मान-निशा कौमुदी, लधुकथा गौरव सम्मान-लायन अभय गौड़, मंच सम्मान-रत्ना ओझा, तथा शब्द साधक सम्मान-सुरेश शिन्दे राही को प्रदान किए गए. इस सुअवसर पर डॉ. गीता गीत, डॉ. प्रदीप शशांक, राजीव गुप्ता, डॉ. दिनेश नंदन तिवारी, सुरेश तन्मय, अर्चना मलैया, द्वारिका गुप्ता, हर्ष तिवारी आदि ने अपनी उपस्थिति से कार्यक्रम को ऊंचाई प्रदान करने में अपनी आत्म भूमिकाएं निभाईं.
मंच सम्मेलन राजेश पाठक एवं आभार प्रदर्शन डॉ. मो. मुइनुद्दीन अख्तर द्वारा करते हुए कार्यक्रम समापन्न की घोषणा कर दी गई.
प्रस्तुतिः कुंवर प्रेमिल, जबलपुर
शैलपर्ण की शैला प्रकाशित
नई दिल्लीः राकेश भ्रमर, संपादक मासिक ‘प्राची’ की देख-रेख में एवं डॉ. कुंवर प्रेमिल के संपादन में प्रकाशित-‘शैलपर्ण की शैला’ कहानी संकलन एक प्रेमांक कथा स्वरूप में प्रकाशित हो चुकी है. यूं तो प्रेम के अपने-अपने मायने है. प्रेम को लेकर सबकी अपनी-अपनी सोच है. प्रेम अपनत्व का शाश्वत भाव है जो प्रकृत्ति के कण-कण में व्याप्त है. जो कल था, जो आज है, जो कल भी रहेगा. प्रेम नश्वर नहीं है. प्रेम ही अर्धनारीश्वर है.
प्रेम की ऊर्जा से प्रकृति निरंतर परमभक्ति है. युगों-युगों से प्रेम की अनुभूति अपने आप में विरक्ति, अद्वितीय, बेजोड़ है. रचनाकारों को उनकी प्रतियां शीघ्र ही प्रेषित की जाएंगी. कहानी प्रेमी अपनी प्रति के लिए 09301822782 पर संपर्क कर सकते हैं. उपलब्ध होने पर प्रेषित की जा सकेंगी.
प्रस्तुतिः मनोज आर्य, काशीपुर
कुहरा-कुहरा भोर है, आंसू-आंसू ओस
मीरजापुरः 17 जनवरी 2016 को सायं देवपुरवा स्थित हसन जौनपुरी के आवास पर रविवार को काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया. इसकी अध्यक्षता इंटर कालेज के पूर्व प्रधानाचार्य ब्रजदेव पांडेय ने और संचालन इलाहाबाद बैंक के पूर्व वरिष्ठ प्रबंधक केदारनाथ ‘सविता’ ने किया.
गोष्ठी का आरंभ मुहिब मिर्जापुरी ने अपनी रचना-‘तेरी यादों के सिवा कुछ भी मेरे पास नहीं, कौन हूं खुद मुझे इस बात का एहसास नहीं’ पढ़ा. प्रमोद कुमार ‘सुमन’ ने सुनाया- ‘‘जिन खतों में मेरा जिक्र हो, उन खतों को जला दीजिए.’’ भोलानाथ कुशवाहा ने सुनाया -‘‘कुहरा-कुहरा भोर है, आंसू-आंसू ओस’’. बृजदेव पांडेय ने सुनाया- ‘‘हर बात पर असहमत होने से कम खतरनाक नहीं है, हर बात पर सहमत होना’’. गणेश गंभीर ने सुनाया- ‘‘बहाकर दीप पूजा का कहां ले जाएंगी लहरें, कभी तो मेरे बारे में व्यथायें सोचती होंगी’’.
गोष्ठी में केदारनाथ सविता, लालव्रत सिंह सुगम, भवेश चंद्र जायसवाल, शफक मिर्जापुरी, हसन जौनपुरी, खुर्शीद भारती, भानु कुमार ‘मुंतजिर’ इरफान कुरैशी, गफ्फार नियाजी, रहमानी मिर्जापुरी, अश्क रज्जाकी, प्रमोद चंद्र गुप्त और सलिल पांडेय आदि ने अपनी सुंदर रचनाओं का पाठ करके खूब वाह-वाही बटोरी. अंत में आयोजक हसन जौनपुरी ने आभार प्रदर्शन किया.
प्रस्तुतिः केदारनाथ ‘सविता’, मीरजापुर
देशभर के 11 विजेताओं को किया सम्मानित
आचार्य रत्नलाल विद्यानुग स्मृति अखिल भारतीय कहानी प्रतियोगिता
अजमेरः नगरपालिका सभाभवन में आचार्य रत्नलाल विद्यानुग स्मृति अखिल भारतीय कहानी प्रतियोगिता, शब्द निष्ठा, सम्मान समारोह एवं लोकार्पण का आयोजन किया गया. जिसमें देशभर के विजेता कथाकारों ने भाग लिया.
अध्यक्षता सलूम्बर से वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. विमला भंडारी, मुख्य अतिथि दिल्ली के सुधीर सिंह, विशिष्ट अतिथि श्री गंगानगर के श्री कृष्ण कुमार आशु, अजमेर के डॉ. संदीप अवस्थी, मुख्य वक्ता व प्रतियोगिता के निर्णायक जयपुर के डॉ. नरेन्द्र कुसुम व डॉ. सुरेश बत्रा ने उद्बोधन दिया. सम्मेलन में 84 कहानीकारों की कहानियां प्राप्त हुईं. जिनमें से 11 श्रेष्ठ प्रतिभागियों विजय कुमार सप्पति हैदराबाद, अशोक कुमार प्रजापति पटना, वंदना देव शुक्ल पिलानी, हरदास हर्ष जयपुर, कीर्ति शर्मा नोहर, राकेश माहेश्वरी नरसिंहपुर, डॉ. प्रेम कुमार नाहटा इंदौर, डॉ. अमिता दुबे लखनऊ, डॉ. राजेन्द्र श्रीवास्तव पुणे, निसार अहमद धार मध्यप्रदेश, रत्न कुमार सांभरिया जयपुर को 5-5 हजार रुपए नकद पुरस्कार व शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया गया. इस दौरान पालिकाध्यक्ष विजय कुमार लड्ढा ने ‘आधुनिक हिन्दी साहित्य की उत्कृष्ट कहानियां’ का लोकार्पण किया. पुस्तक के संपादक डॉ. अखिलेश पालरिया ने आभार जताया.
प्रस्तुतिः फरीद मोहम्मद शेख
डॉ. अशोक ‘‘गुलशन’’ की पुस्तक का लोकार्पण
बहराइचः कवि, साहित्यकार, शायर एवं राजकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय सीताद्धार श्रावस्ती के प्रभारी चिकित्साधिकारी डॉ. अशोक ‘‘गुलशन’’ की प्रकाशित पुस्तक ‘‘लफ्जों का सफर’’ काव्य संग्रह का लोकार्पण षष्टम अन्तर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन में थाइलैंण्ड की राजधानी बैंकाक के होटल सीजन सायम के सभागार में मुख्य अतिथि उ.प्र. के पूर्व केंद्रीय मंत्री नकुल दुबे तथा विशिष्ट अतिथि अन्तर्राष्ट्रीय बाक्सिंग कोच एस.एन. मिश्रा द्वारा किया गया. इस अवसर पर डॉ. अशोक ‘‘गुलशन’’ को अन्तर्राष्ट्रीय परिकल्पना गजल सम्मान-2015 से सम्मानित किया गया. डॉ. गुलशन को उनकी विशिष्ट साहित्यिक सेवाओं हेतु अब तक 327 सम्मान, पुरस्कार एवं उपाधियां प्राप्त हो चुकी हैं तथा देश-विदेश से प्रकाशित एक हजार सत्तावन प्रकार के समाचार पत्र, पत्रिकाओं एवं पुस्तकों में उनकी लगभग पांच हजार रचनायें तथा 16 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं.
कविता के क्षेत्र में डॉ. अशोक ‘गुलशन’ को उनकी उल्लेखनीय साहित्यिक सेवाओं हेतु उ.प्र. के मुख्य सचिव आलोक रंजन द्वारा इक्यावन हजार के अमृत लाल नागर पुरस्कार सहित भूटान एवं नेपाल में सम्मानित किया गया है. भारत सरकार द्वारा वर्ष 2011, वर्ष 2013, वर्ष 2014 तथा वर्ष 2015 में इन्हें पद्म श्री हेतु नामांकित किया जा चुका है.
प्रस्तुतिः उत्कर्ष पाण्डेय
साहित्यकार डॉ. मधुर नज्मी को डी. लिट् सम्मानोपाधि
मऊः हिन्दी, उर्दू, भोजपुरी के सुख्यात हस्ताक्षर, गीतकार, गजलकार, समीक्षक, विश्वयात्री डॉ. मधुर नज्मी को उनकी सुदीर्घ हिन्दी-सेवा, सारस्वत साधना, साहित्य-कला क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण उपलब्धियों, शैक्षिक प्रदेयों, महतीय शोध-कार्य तथा राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा का आकलन-मूल्यांकन करते हुए विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ, भागलपुर ने अपने 20वें दीक्षान्त समारोह सह सारस्वत-सम्मान समारोह 2010 का ‘विद्या सागर’ डी. लिट् सर्वोच्य सम्मान से विभूषित किया है. यह आयोजन भागलपुर में विगत 20-21 फरवरी को सम्पन्न हुआ. इस मौके पर देश के लगभग चार सौ साहित्यकार उपस्थित थे. डॉ. मधुर नज्मी ‘काव्यमुखी साहित्य-अकादमी’ के महानिदेशक हैं. लगभग आधा दर्जन कृतियों के सर्जक डॉ. मधुर नज्मी की गजलों और आलेखों को केन्द्र में रखकर अनेक शोधार्थियों ने अपनी डी. लिट् और पी.एच.डी. में शोध कार्य किया है.
डॉ. मधुर नज्मी को अभी तक अनेकशः उपाधियों से सम्मानित किया गया है. प्राची परिवार उनकी इस उपलब्धि पर
बधाई देती है.
प्रस्तुतिः उपदेश कुमार चतुर्वेदी, गोहना
अनुभव और अनुभूति की समन्विति से कविता निर्मित होती है
अनपाराः हिन्दी साहित्य के बहु आयामी सर्जक जयशंकर प्रसाद की 125वीं जयन्ती पर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन, शब्दार्थ अकादमी वाराणसी और हिन्दी विभाग अवधूत भगवान राम पी.जी. कॉलेज अनपारा, सोनभद्र (उ.प्र.) के सारस्वत सभागार में प्रो. वशिष्ठ अनूप (बी.एच.यू.) के मुख्य अतिथित्व और कॉलेज की प्राचार्या डॉ. पूनम सिंह की अध्यक्षता में विगत दिनों सम्पन्न हुआ. कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार मधुर नज्मी, डॉ. अरविन्द कुमार, प्रतापगढ़ और डॉ. सुरेश कुमार संभल थे. संगोष्ठी का विषय ‘बहु आयामी सर्जक जयशंकर प्रसाद’ का विषय प्रवर्चन आयोजन सचिव डॉ. चन्द्रभूषण त्रिपाठी ने किया. दो दिवसीय इस आयोजन के आरंभिक सत्र में विचार व्यक्त करते हुए डॉ. मधुर नज्मी ने प्रसाद जी के विराट कवि व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि एक सिद्धहस्त रचनाकार-कवि में अनेक
विधाओं में कार्य करने की संवदेनात्मक क्षमता होती है. प्रसाद जी का विराट कवि-व्यक्तित्व ही है जो विविध विधाओं में श्रेष्ठ रच सका. कवि के नाते ही प्रसाद जी नाटककार, उपन्यासकार और कहानीकार हैं.
डॉ. चन्द्रभूषण त्रिपाठी ने कहा, ‘‘जयशंकर प्रसाद दरवेशी-दृष्टि-सम्पन्न रचनाकार थे. विविध विधाओं में रचित उनका साहित्य उनकी अन्तरदृष्टि को रूपांकित करता है. उनकी साहित्य संचेतना में भारतीय संस्कृति और मनीषा की समन्विति है.’’ मुख्य अतिथि पद से बोलते हुए प्रो. वशिष्ठ अनूप ने कहा, ‘‘जयशंकर प्रसाद की रचनाओं पर उनके हृदय पक्ष का अधिक प्रभाव है. जयशंकर प्रसाद का अनुशीलन करना अपनी सांस्कृतिक विरासत और परम्परा से जुड़ना है. जब तक अनुभव, अनुभूति में नहीं बदलता कविता नहीं बनती.’’ दोनों ही संगोष्ठियों में अन्य विद्वानों ने भी अपने विचार व्यक्त किये. तद्नन्तर डॉ. मधुर नज्मी की अध्यक्षता में एक काव्य समारोह का आयोजन हुआ. इसी उत्सवी कड़ी में अजय चतुर्वेदी ‘कक्का’ की हास्य-व्यंग्य कृति ‘सब ठीक-ठाक है’ का लोकार्पण हुआ.
प्रस्तुतिः डॉ. चन्द्रभूषण त्रिपाठी, सोनभ्रद (उ.प्र.)
सुरेन्द्र साहू सम्मनित
लखनपुर, सरगुजाः विश्व हिन्दी सेवा संस्थान द्वारा 13वां साहित्य मेला का आयोजन 14 फरवरी को हिन्दुस्तानी अकादमी सिविल लाइन इलाहाबाद में सम्पन्न हुआ. इसमें राष्ट्र स्तरीय पत्र, पत्रिका एवं पुस्तक प्रदर्शनी का उद्घाटन किया गया. इस अवसर पर छत्तीसगढ़ शबरी सेवा संस्था के प्रदेश सचिव सुरेन्द्र साहू को पवहारी शरण द्विवेदी स्मृति समाज सेवी सम्मान इलाहाबाद के पुलिस अधीक्षक जुगल किशोर तिवारी द्वारा प्रदान किया गया. कार्यक्रम की अध्यक्षता न्यायमूर्ति सुधीर नारायण कावेरी विवाद
प्राध्किरण के सदस्य एवं मनोरमा के सह संपादक एवं प्रसिद्ध गजल गायक बुद्ध सेन शर्मा के मुख्य आतिथ्य में प्रदान किया गया. पूरे कार्यक्रम में भारतवर्ष के अनेक साहित्यकार लेखक समाज सेवी उपस्थित थे.
इसके अतिरिक्त युवा समूह प्रकाशन द्वारा सुरेन्द्र साहू को स्वामी विवेकानन्द राष्ट्रीय पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया. सुरेन्द्र साहू द्वारा यह पुरस्कार अविभाजित सरगुजा जिला के ग्रामीण क्षेत्रों में अंधविश्वास के खिलाफ जन-जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करने, महिला जागरूकता अभियान तथा विभिन्न सामाजिक कार्यों के लिए दिया गया. इसके पूर्व सुरेन्द्र साहू को नेहरू युवा केन्द्र संगठन द्वारा जिला युवा पुरस्कार, राज्य युवा पुरस्कार, राज्य स्तरीय पर्यावरण जागरूकता पुरस्कार एवं आदिवासी सेवा सम्मान से पुरस्कृत किया जा चुका है.
प्रस्तुतिः सुरेन्द्र साहू, सरगुजा
भारत एक रिश्वत प्रधान देश है
मीरजापुरः विगत दिनों चित्रप्रस्थ साहित्यिक एवं सांस्कृतिक विचार मंच की ओर से जे.पी. पुरम् कॉलोनी के एजूकेशनल एकेडमी में एक काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया. सभाध्यक्ष बृजदेव पाण्डेय ने वैलेंटाइन डे पर प्रेम को लेकर पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ की कविता का जिक्र किया. उन्होंने सुनाया, ‘‘आदमी की क्रूरता देखकर चिंतित है शैतान अपने वजूद को लेकर.’’
संस्था के सरंक्षक प्रमोद कुमार ‘सुमन’ ने सुनाया- ‘‘तेरी तस्वीर मिल जाती तो बस ये काम कर जाता, उसे एक बार सीने से लगाता और मर जाता.’’ गणेश गम्भीर ने सुनाया- ‘‘जाने क्या-क्या लोग लिख रहे, कुछ समाधि कुछ भोग लिख रहे.’’ भोलानाथ कुशवाहा ने सुनाया- ‘‘धीरे-धीरे रात ने कब्जा कर लिया पूरी धरती पर.’’ केदारनाथ सविता ने सुनाया- ‘‘भारत एक कृषि प्रधान देश, कुर्सी प्रधान देश और रिश्वत प्रधान देश है.’’
भवेश चन्द्र जायसवाल ने सुनाया- ‘‘खिल उठे मधुमास से हर एक क्यारी, सामने बैठो करूं कविता तुम्हारी.’’ नन्दिनी वर्मा ने कहा, ‘‘तिमिर राह में दीप दान का लेकर चलते जाना रे.’’ शुरू में केदारनाथ सविता ने प्रमोद कुमार ‘सुमन’ के काव्य-संग्रह ‘सेमल के श्वेत परिंदे’ पर अरविंद अवस्थी की समीक्षा पढ़कर सुनाया.
अन्य कवियों ने भी अपनी कविताओं का पाठ किया. संचालन गणेश गम्भीर ने किया और संयोजक भोलानाथ कुशवाहा ने आभार प्रदर्शन किया.
प्रस्तुतिः केदारनाथ सविता, मीरजापुर
बीकानेर में रचा विश्व सोशल मीडिया मैत्री सम्मेलन ने एक रिकार्ड
बीकानेरः विगत दिनों जब देश के कोने-कोने और विभिन्न देशों की सोशल मीडिया से जुड़ी विभिन्न विधाओं की सौ के करीब प्रतिभायें एक मंच पर इकट्ठा हुईं तो एक रिकार्ड ही बन गया. हम सब साथ साथ, नई दिल्ली के तत्वावधान में और स्थानीय संस्थाओं के सहयोग से राजस्थान के बीकानेर में 5 और 6 मार्च को चौथा सोशल मीडिया मैत्री सम्मेलन व सम्मान समारोह स्थानीय रेलवे प्रेक्षागृह में आयोजित हुआ. दो दिन के इस सम्मेलन के विभिन्न सत्रों में मैत्री-भाईचारे के प्रचार-प्रसार में सोशल मीडिया की भूमिका, कन्या भ्रूण हत्या, लिव इन रिलेशनशिप पर परिचर्चा के अलावा दो सत्रों में कवि सम्मेलन, मनोहारी सांस्कृतिक कार्यक्रम, पुस्तकों का विमोचन और चित्र, फोटो तथा कार्टून प्रदर्शनी का भी आयोजन किया गया.
पहले दिन कला प्रदर्शनी का उद्घाटन प्रसिद्ध चित्रकार मुरली मनोहर माथुर और कनाडा से पधारे हिन्दी विद्वान सरन घई द्वारा किया गया. तत्पश्चात् उद्घाटन सत्र की शुरुआत दिल्ली से पधारीं सुषमा भण्डारी ने अपने मधुर कंठ से कर्णप्रिय राजस्थानी सरस्वती वंदना गाकर की. वन्दना के बाद सम्मेलन के राष्ट्रीय संयोजक श्री किशोर श्रीवास्तव (दिल्ली) व उनकी टीम (शाह आलम, किरन बाला, शशि श्रीवास्तव, मीता राय एवं सरिता भाटिया) ने ‘इंसान का इंसान से हो भाईचारा, यही पैगाम हमारा’ गीत सुनाकर आपस में मिलजुल कर रहने का संदेश देकर सभी आगंतुकों को भाव विभोर कर दिया. प्रथम सत्र के मुख्य और विशिष्ट अतिथि थे भाजपा नेता नंदकिशोर सोलंकी, राजस्थानी अकादमी के पूर्व अध्यक्ष सत्य प्रकाश आचार्य व उद्योगपति के.बी. गुप्ता. उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता कनाडा से पधारे सरन घई ने की, जबकि स्वागताध्यक्ष बीकानेर के मुख्य आयोजनकर्ता गोवर्धन चौमाल थे.
सायंकालीन सत्र में भव्य सांस्कृतिक संध्या का आयोजन किया गया, जिसका कुशल मंच संचालन सुशील कौशिक (बीकानेर) एवं अनुपमा श्रीवास्तव (भोपाल) ने संयुक्त रूप से किया. इस सत्र की मुख्य अतिथि अल्का डाली पाठक थीं. नृत्य के क्षेत्र में सिक्किम के गंगतोक से पधारी प्रतिभाशाली बाल प्रतिभागी कु. अस्मिता शर्मा एवं दिल्ली की कु. वन्या कंचन सिंह और रांची से पधारी युवा कलाकार संदीपिका राय ने अपने खूबसूरत कला प्रदर्शन से उपस्थितजनों को मंत्र मुग्ध कर दिया. इसी प्रकार से गायन में हल्द्वानी से गौरी मिश्रा, श्रीगंगानगर से दीपक अरोड़ा, गाजियाबाद से मीता राय, भीलवाड़ा से निरंजन नीर, दिल्ली से पारुल रस्तोगी सहित बीकानेर से डॉ. मोहम्मद इकबाल, ओमप्रकाश सोनी, हसन अली, पवन सोनी और सुमधुर गायिका लता तिवारी ने अपने गीतों से उपस्थितजनों का खूब मनोरंजन किया. सांस्कृतिक कार्यक्रम के दौरान ही किशोर श्रीवास्तव की गीतों और हास्य भरी मिमिक्री ने न केवल श्रोताओं को झूमने पर मजबूर किया, अपितु हंसा-हंसा कर लोटपोट भी किया. तबले पर लाजवाब संगत की चुरू से
पधारे प्रतिभागी राजेन्द्र शर्मा ने.
रात्रिकालीन सत्र में कवि सम्मेलन (पार्ट एक) का आयोजन किया गया, जिसका मंच संचालन बीकानेर के संजय आचार्य तथा आबू रोड पिण्डवाड़ा से पधारीं आशा पाण्डेय ओझा ने संयुक्त रूप से अत्यन्त सलीके से किया. कवि सम्मेलन में मुख्य अतिथि मो. हनीफ ‘शमीम’ बीकानेरी, विशिष्ट अतिथि इंजी. आशा शर्मा (बीकानेर) और हरकीरत हीर (गुवाहटी) थीं. इस सत्र की अध्यक्षता कोटा से पधारे वरिष्ठ कवि रघुनाथ प्रसाद मिश्र ‘सहज’ ने की. विभिन्न कवियों के अलावा मंचस्थ अतिथियों ने भी काव्य पाठ किया.
दूसरे और अंतिम दिन 6 मार्च को सम्मेलन की शुरुआत दो ज्वलंत विषयों पर परिचर्चा के साथ हुई, विषय थे- कन्या भ्रूण हत्या व लिव इन रिलेशनशिप. चर्चा के लिए खुला मंच था, जिसमें अनेक प्रतिभागियों ने इन विषयों पर विस्तृत चर्चा की. शशि श्रीवास्तव, नेहा नाहटा व किरण बाला ने इस सत्र का मंच संचालन संयुक्त रूप से किया. इस सत्र के मुख्य अतिथि धर्मचंद जैन, विशिष्ट अतिथि, पूर्व कर्नल प्रेम दास निगम, श्याम स्नेही व अतुल प्रभाकर थे तथा अध्यक्षता मुरली मनोहर के माथुर ने की. इसके बाद कवि सम्मेलन का दूसरा सत्र आरम्भ हुआ, जिसकी अध्यक्षता यूके से पधारी शील निगम ने की. मुख्य अतिथि थे भवानी शंकर व्यास व विशिष्ट अतिथि उषा किरण सोनी थीं. मंच संचालन नमिता राकेश व अरविंद पथिक ने संयुक्त रूप से किया. कवि सम्मेलन के इस सत्र में भी अनेक प्रतिभागियों ने अपने बेहतरीन काव्य पाठ से लोगों को बार बार तालियां बजाने पर मजबूर किया.
सम्मेलन का सबसे भावुक क्षण समापन सत्र का रहा, जब चौथे सोशल मीडिया मैत्री सम्मेलन के चयनित प्रतिभागियों को सम्मानित किये जाने के साथ ही उनकी बिदाई का समय आया. पुरस्कार वितरण समारोह का संचालन करते हुए प्रतिभागियों के महत्व और उनकी खूबियों को दर्शाने वाली काव्य पंक्तियों से सत्र के संयोजक, संचालक किशोर श्रीवास्तव ने माहौल को और भी अधिक रोचक और भाव विभोर कर दिया. समापन सत्र की अध्यक्षता लक्ष्मीनारायण रंगा ने की, जबकि मुख्य अतिथि व विशिष्ट अतिथि क्रमशः भवानीशंकर शर्मा, नेमचंद गहलोत व अल्का डाली पाठक रहीं. प्रतिभागियों का अंग वस्त्र पहनाकर स्वागत करते हुए उन्हें स्मृति चिन्ह, प्रमाण पत्र व पुरस्कार स्वरूप बहुमूल्य किताबों का सेट भेंट किया गया. अंत में सम्मेलन की ओर से स्थानीय संयोजक गोवर्धन लाल और राजाराम स्वर्णकार ने सभी प्रतिभागियों और सहयोगियों के प्रति आभार व्यक्त किया. कुल मिलाकर एक शानदार कार्यक्रम का अत्यन्त खुशनुमा माहौल में न केवल आगाज हुआ अपितु समापन भी उसी अंदाज में हुआ.
प्रस्तुतिः शशि श्रीवास्तव, नई दिल्ली
कुण्डलिया संग्रह ‘शिष्टाचारी देश में’ का लोकार्पण
इगलासः संस्कार भारती, साहित्य मंच और नगर पंचायत, इगलास के संयुक्त तत्वावधान में बसंत पंचमी को आयोजित साहित्यिक कार्यक्रम में कवि तोताराम ‘सरस’ के कुण्डलिया संग्रह ‘शिष्टाचारी देश में’ का लोकार्पण सुपरिचित कुण्डलियाकार एवं साहित्यकार त्रिलोक सिंह ठकुरेला द्वारा किया गया.
पं. शिव दत्त शर्मा की अध्यक्षता में कार्यक्रम का शुभारम्भ दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ. आगरा से पधारीं कवयित्री मीना शर्मा ने सरस्वती वंदना की. त्रिलोक सिंह ठकुरेला ने अपने विचार रखते हुए कहा कि साहित्य मनुष्य जीवन की आवश्यकताओं में से एक है. साहित्य ही सही अर्थों में किसी व्यक्ति को मनुष्य बनाता है तथा समृद्ध साहित्य ही सशक्त समाज का निर्माण करता है.
गाफिल स्वामी द्वारा तोताराम ‘सरस’ के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला गया. इस अवसर पर ब्रज भाषा के चर्चित कवि राधागोविंद पाठक और साहित्यकार त्रिलोक सिंह ठकुरेला को साहित्य मंच, इगलास की ओर से सम्मानित भी किया गया. डॉ. सियाराम वर्मा और पं. शिव दत्त शर्मा द्वारा दोनों साहित्यकारों का माल्यार्पण, शॉल एवं स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया गया.
बंसत पंचमी के उललक्ष में आयोजित कवि सम्मेलन में
राधागोविंद पाठक, सुनहरी लाल वर्मा ‘तुरंत’, मनोज फगवाड़वी, प्रदीप पंडित, प्रभुदयाल दीक्षित, मणिमधुकर ‘मूसल’, मीना शर्मा, मनु दीक्षित त्रिलोक सिंह ठकुरेला, बनवारी लाल ‘पुष्प’, श्रीप्रकाश ‘सृजन’, प्यारे लाल ‘शांत’, श्याम बाबू ‘चिन्तन’, गाफिल स्वामी, ब्रजेश पंडित, तोताराम ‘सरस’, विजय प्रकाश भारद्वाज, दीपेश ‘बिल्टू’, प्रमोद गोला, कुमार अनुपम, पुनीत प्रकाश भारद्वाज, आकाश धनकर और डॉ. सियाराम वर्मा ने अपनी रचनाएं सुनाकर श्रोताओं का मंत्रमुग्ध कर दिया.
अंत में कार्यक्रम के अध्यक्ष पं. शिव दत्त शर्मा ने सभी का धन्यवाद ज्ञापन किया.
प्रस्तुतिः गाफिल स्वामी, इगलास
‘कण में कायनात’ : लोकार्पण एवं संगोष्ठी
नई दिल्लीः पिछले दिनों जनकपुरी, नई दिल्ली में डॉ. ओम प्रकाश शर्मा ‘प्रकाश’ की सद्यः प्रकाशित हाइकु-काव्यकृति ‘कण में कायनात’ का लोकार्पण हुआ.
विवेचन का श्रीगणेश करते हुए डॉ. नरेन्द्र मोहन ने कहा कि सात-आठ वर्ष पूर्व ‘संचेतना’ में जापानी साहित्य पर एक लेख निकला था जिसमें कहा गया था कि बहुत पहले स्वयं जापान में डाइकु अप्रसांगिक हो चुका है. ऐसी स्थिति में हिंदी हाइकु-रचना की क्या प्रासंगिकता रह जाएगी. यह भी सोचना है कि क्या हिंदी का फॉर्म हाइकु रचना के अनुकूल है? डॉ. कथूरिया ने कहा कि जो वाद पश्चिम में अप्रासंगिक या समाप्त हो जाते हैं वे सारे हिंदी में आ जाते हैं.
उनके अनुसार हाइकु क्षणवादी कविता है. यह गहनतम क्षणों की अभिव्यक्ति है. अनुभूति की सघनतम, सांकेतिकता, संक्षिप्ति, बिम्बात्मकता आदि जो हाइकु के गुण हैं वे डॉ. ‘प्रकाश’ की कविता में उपलब्ध हैं. उनके आधे से अधिक हाइकु प्रकृति सम्बंधी हैं जो उन्हें जापान के मूल हाइकुओं के निकट ले जाते हैं. कई स्थानों पर एक ही हाइकु में कई अलंकार हैं.
फॉर्म और कॉण्टेंट की बहस को आगे बढ़ाते हुए श्री प्रताप सहगल ने कहा कि फॉर्म भी हो सकता है. बुनियादी शर्त यह है कि पहले वह कविता हो, उसमें काव्यात्मकता हो. फॉर्म तो अपने आप तय हो जाता है. ‘प्रकाश’ के हाइकुओं में सघन कविता की उपस्थिति देखी जा सकती है. रही बात वादों/विधाओं के चुक जाने की, तो वाद या विधा फिर लौट कर किसी न किसी रूप में आते हैं. पुराना दोहा लौट कर आ गया है. अब कितने दोहे लिखे जा रहे हैं. गजल फारसी की विधा थी. अब हिंदी की है. ऐसे ही गीत, नवगीत लौटा है. कोई भी कविता पुरानी नहीं पड़ती. मित्र के रूप में मैं शर्मा जी को बहुत वर्षों से जानता हूं पर मुझे इनके कवि का रूप का अंदाजा नहीं था. पता नहीं इतने वर्षों तक ये कहां छिपे रहे. मैं चाहता हूं जल्दी ही इनका दूसरा संग्रह आए.
श्रोताओं की शंकाओं/टिप्पणियों के लिए खुले मंच का प्रावधान था जिसके डॉ. शशि सहगल ने ‘राम की शक्ति पूजा’ का प्रारंभिक अंश उद्धृत करते हुए कहा कि जैसी विराट कल्पना वहां है, लगभग, वैसे ही विशाल बिम्ब और बड़ी कल्पना ‘कण में कायनात’ के हाइकुओं में है. इनमें मानव जीवन के विभिन्न पक्षों पर प्रभावी टिप्पणियां हैं. संत साहित्य के कोशकार डॉ. रमेश मिश्र ने कहा कि जहां से हाइकु आया है वह जापान पूर्व में है. हमारे यहां गायत्री अनुष्टुप बरवै आदि त्रिपदी, द्विपदी छंद थे. सूक्ति भी हाइकु के निकट पड़ती है. पूर्व वरिष्ठ प्राध्यात्मक वीरेन्द्र अग्रवाल ने हाइकु को दूसरे छंदों से जोड़ने वाली एक कविता सुनाई.
अपने अध्यक्षीय भाषण में प्रो. रामदरश मिश्र ने कहा कि हाइकु कोई छंद नहीं. हाइकु के विषय में मेरी राय हल्की थी किंतु ओम् प्रकाश शर्मा के हाइकु पढ़ने के बाद मेरी धारणा बदली है. उनके हाइकु हृदय-स्पर्शी हैं. कुछ में गूढ़ आशय है. ‘लहरें कई/सुन, समझ, देख/समुद्र एक’ तथा ‘बुझाता नहीं/रतन गर्भी सागर/प्यास किसी की’ ये दो हाइकु सुनाते हुए कहा कि इनमें बहुत गहरी बात सरल शैली में व्यक्त कर दी गई है. कई हाइकुओं में बहुत से नए उपमान हैं. मैं इन्हें नई पुस्तक के आने की
बधाई देता हूं. संगोष्ठी के उत्तरकाल का संयोजन-संचालन डॉ. जितेन्द्र कालरा (एसो. प्रो. श्री वेंकटेश्वर कॉलेज, दि.वि.वि.) ने किया.
कृतिकार डॉ. ओम प्रकाश शर्मा ने अध्यक्ष प्रो. रामदरश मिश्र तथा विशिष्ट वक्ताओं एवं सभी श्रोताओं के प्रति आभार प्रकट किया. विशेष बात यह थी कि पुस्तक के प्रकाशक श्री हरिराम द्विवेदी ने इस आयोजन में पूरी शिरकत की तथा औपचारिक धन्यवाद भी उन्होंने ही दिया. संगोष्ठी में कई प्रोफेसर, वरिष्ठ प्राध्यापक, पत्रकार, साहित्य प्रेमी, पूर्व महापौर समेत कई गण्यमान्य नागरिक उपस्थित थे.
प्रस्तुतिः डॉ. सतीश कुमार
पुस्तकें
1. कृति : परिन्दे संवेदना के (गीत संग्रह)
गीतकार : जय प्रकाश श्रीवास्तव
प्रकाशक : पहले पहल प्रकाशन, 26 ए, प्रेस काम्पलेक्स, भोपाल (म.प्र.)
मूल्य : ृ150
2. कृति : आंगन से राजपथ (लघुकथा संग्रह)
लघुकथा : पवित्रा अग्रवाल
प्रकाशक : अयन प्रकाशन, 1/20, महरौली, नई दिल्ली
मूल्य : ृ220
3. कृति : शैलपर्ण की शैला (प्रेम कथांक)
संपादक : डॉ. कुंवर प्रेमिल
प्रकाशक : प्रज्ञा प्रकाशन, 24, जगदीशपुरम्, लखन मार्ग, रायबरेली (उ.प्र.)
मूल्य : ृ300 (सजिल्द), 200 (पेपरबैक)
4. कृति : मुस्कानों के रंग (कविता संग्रह)
गीतकार : कार्तिकेय त्रिपाठी
प्रकाशक : कार्तिकेय त्रिपाठी, 117, सी - स्पेशल, गांधी नगर, इन्दौर (म.प्र.)
मूल्य : ृ180
5. कृति : गैया मैया (काव्य संग्रह)
कवयित्री : रजनी सिंह
प्रकाशक : रजनी प्रकाशन, रजनी विला, डिबाई-203393
मूल्य : ृ50
6. कृति : यत्र सीता तत्र नारी (सीता पुराण)
लेखिका : रजनी सिंह
प्रकाशक : रजनी प्रकाशन, रजनी विला, डिबाई-203393
मूल्य : ृ100
4. कृति : भूमिजा-भूमिका (महाकाव्य)
कवयित्री : रजनी सिंह
प्रकाशक : रजनी प्रकाशन, रजनी विला, डिबाई-203393
मूल्य : ृ200
पत्रिकाएं
1. मोमदीप : (वर्ष-6 अंक-24) (त्रैमासिक)
संपादक : डॉ. गार्गीशरण मिश्र ‘मराल’
पता : 1436-बी, सरस्वती कॉलोनी, चेरीताल, जबलपुर
मूल्य : ृ15
2. यशधरा : (वार्षिक) (अंक-9)
संपादक : डॉ. दीपेंद्र शर्मा
पता : ओज शोध संस्थान, विक्रम ज्ञान मंदिर, लालबाग परिसर, धार (म.प्र.)
मूल्य : ृ100
3. पर्यावरण डाइजेस्ट : (वर्ष-30, अंक-1) मासिक
संपादक : डॉ. खुशाल सिंह पुरोहित
पता : समन्वय प्रकाशन, समन्वय, 19, पत्रकार कॉलोनी, रतलाम (म.प्र.)
मूल्य : ृ15
4. दाल-रोटी : (वर्ष-5, अंक-1) (त्रैमासिक)
संपादक : अक्षय जैन
पता : 13, रश्मन अपार्टमेंट, उपासनी हॉस्पिटल के ऊपर, एस.एल. रोड, मुलुंड (प.), मुंबई
मूल्य : ृ15
5. दीवान मेरा : (वर्ष-11, अंक-53) (द्विमासिक)
संपादक : नरेन्द्र सिंह परिहार
पता : आस्था प्रकाशन, 5, माता कन्यका ले-आउट, मनीष नगर, सोमलवाड़ा, नागपुर
मूल्य : ृ20
6. प्रगति वार्ता : (वर्ष-11, अंक-113-14) (मासिक)
संपादक : डॉ. रामजन्म मिश्र
पता : प्रगति प्रिंटिंग प्रेस, प्रगति न्यास, साहिबगंज, झारखण्ड
मूल्य : ृ25
7. परिन्दे : (द्वैमाासिक, संयुक्तांक जनवरी, 2016)
संपादक : कुसुम लता सिंह
पता : सी-54, रिट्रीट अपार्टमेंट, 20 आई.पी. एक्सटेंशन, पटपड़गंज, दिल्ली-110092
मूल्यः ृ30
8. पुष्पक : (वर्ष-19, अंक-3)
संपादक : नरेन्द्र सिंह परिहार
पता : कादम्बिनी क्लब, हैदराबाद
9. अभिनव प्रयास (अक्तूबर-दिसम्बर : 2015)
सम्पादक : अशोक ‘अंजुम’
पता : स्ट्रीट-2, चन्द्रविहार कॉलोनी (नगला डालचन्द), क्वारसी बाईपास, अलीगढ़-202001 (उ.प्र.)
मूल्य : ृ30
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