बाल कहानी बोल बम (शिवरात्रि) सुषमा श्रीवास्तव प हाड़ी दलानों पर घने जंगल थे. पश्चिम की ओर पहाड़ियां एक दूसरे से मिली हुई ऊंचाइयों की ओर ...
बाल कहानी
बोल बम (शिवरात्रि)
सुषमा श्रीवास्तव
पहाड़ी दलानों पर घने जंगल थे. पश्चिम की ओर पहाड़ियां एक दूसरे से मिली हुई ऊंचाइयों की ओर बढ़ रही थीं. इनकी तलहटी व घुमावों में बस्तियां थीं. यहां के लोग लकड़ी, पत्ते, महुआ आदि बीनने जंगल जाया करते थे. अधिकतर निडर शिकारी थे. इनकी औरतें और बच्चे भी जहर बुझे तीर रखते थे और जंगली पशुओं से अपने को बचाते थे. इन जंगलों के बीच से ही गोल-गोल पहाड़ी के बीच से चढ़ती हुई दूसरे ओर उतरती थी. इस पर शहर आना-जाना रहता था. तेज रफ्तार से ट्रकें व मोटरें भागती रहती थीं. हां अंधेरा होने पर कोई भी इधर आने का साहस नहीं जुटा पाता था. जंगली जानवरों को इन आदमियों से खतरा था. दोनों में ही एक दुश्मनी सी चल रही थी. रामगढ़ के इन जंगलों में अन्य पशुओं के अलावा शेर और चीते भी थे. सर्कस वाले, सिक्यूरिटी वाले भी इनके पीछे लगे रहते थे. दोनों ही एक दूसरे से परेशान रहते थे.
इस कारण जंगल के राजा ‘रुस्तम’ शेर ने एक सभा बुलाई और ‘‘सोरो’’ से कहा-‘‘भाई हम ऐसी जिंदगी से परेशान हो गये हैं. इतने शक्तिशाली जीव होते हुए भी हमें हमेशा आदमी से खतरा बना रहता है. भगवान ने हमें ऐसा क्यों बनाया कि लोग हमसे डरें और हम लोगों से डरें. हम सोचते हैं कि हम और घने जंगलों में चले जायें. आदमी शरीर से कमजोर भले ही हो पर दिमाग से बड़ा बलवान है. इसी से हमें उससे डर बना रहता है.
मंत्री सोरो अपने महाराज रुस्तम की ऐसी बातें सुन कर बहुत परेशान हुआ, उसने कहा-‘‘महाराज आप अपने को दुःख न दें. आजकल हमारे ही यहां नहीं हर जगह आतंक है. ताकतवर लोग तो बच जाते है परन्तु कमजोर पिसते हैं. क्या हम भी ऐसा नहीं कर रहे?’’
‘‘हां, कर रहे हैं. पर अब मैं इससे ऊब चुका हूं. भगवान ने आदमी की तरह बोली और दिमाग हमें क्यों नहीं दिया.’’
‘‘महाराज लगता है आपकी तबियत ठीक नहीं. आप क्या करेंगे उनकी बोली-हमारी जो अपनी बोली है क्या मनुष्य बोल पायेंगे. चीते की तरह दौड़ पायेंगे. परन्तु उन्होंने हमारी तरह तेज मोटर बना ली है.
‘‘महाराज रुस्तम जी, आप आराम करें. राजकाज हम लोग सम्हालेंगे. आपको इस तरह निराश उदास देखकर सब जीव अपने को असुरक्षित समझने लगेंगे. आपसे हमारी प्रार्थना है कि आप आराम करें.’’ ‘‘हम क्या करें. भगवान शायद हमें प्यार नहीं करते’’ और वह निराशा में लंबी-लंबी सांसें लेने लगा. ऐसी अजीब सी बात उस दिन से पहले न किसी ने सुनी न देखी कि शेर ऐसा शक्तिशाली जानवर इस तरह की बात करे. सोरो मंत्री और राजवैद्य ‘‘सरेसा’’ ने समझ लिया था कि रुस्तम शेर राजा बूढ़ा और निर्बल हो चुका है. अब वह कोई बड़ा शिकार नहीं कर सकता. इसी से इसमें यह अहिंसा की बात कर रहा है. अरे हम शेर हैं अगर जीव मारेंगे नहीं तो क्या यह दौड़कर हमारे मुंह में आ जायेंगे. पता नहीं क्या हो गया है उन्हें. शरीर, धर्म, प्रकृति धर्म तो मानना ही पड़ेगा. पर रुस्तम महाराज, उनकी समझ में आये तब न. इस अजीब सी बात से हमारे वन्य प्राणियों पर संकट सा आ पड़ा.’’ सब उदास हो गये. कामकाज ठप हो गया. ऐसा इससे पहले कभी नहीं हुआ था. अचानक पूरा जंगल तेज हवाओं से घिर गये बड़े-बड़े पेड़ हिलने लगे लेकिन एक सुगंध चारों ओर भर गई थी. सभी जानवरों को लगा कि कोई बवंडर आने वाला है. वह भागने लगे. पत्तियों के हिलने की आवाजें अब शब्द बनकर गूंजने लगीं. ‘‘जंगल के प्राणियों रुको...मैं वन देवता...इतने दिनों से तुम लोग इस जंगल में रहते हो. तुम्हारी परेशानी मेरी परेशानी हैं.रुस्तम शेर! पूरे जंगल में उदासी छाई है, क्या कारण है बताओ.’’
‘‘हे वन देवता, हमारे मन में अचानक कुछ सवाल गूंज रहे हैं-भगवान ने हमें ऐसा क्यों बनाया कि हम बिना जीव हिंसा के जी न सके. लोग हमसे नफरत करें. देखते ही गोली मार दें. सर्कस वाले हमें पकड़ ले जायें, हमारा तमाशा दिखायें.’’
‘‘रुस्तम महराज, भगवान ऐसा करके सबके बीच संतुलन बनाते हैं. सबको अलग गुण दिये हैं कि हम उसे अपनी समझ से इस्तेमाल करें. आपको शायद मालूम नहीं, भगवान एक शक्ति हैं, वह सबको प्यार करते हैं. देवी-देवताओं को तो आप ही जीव-जंतु पसंद हैं. बताऊं कैसे-’’
‘‘बताइये वनदेवता.’’ सब एक साथ बोले. ‘‘रुस्तम राजा!’’ देवी जी केवल शेर की सवारी करती हैं. हाथी के चेहरे वाले एक देवता हैं गणपति. उनकी सब पूजा करते हैं. उनकी सवारी? पूछा सबने.
उनकी सवारी है ‘‘चूहा’’
चूहा! हंस पड़े सब.
‘‘एक देवी है लक्ष्मी, जो धन की, सौभाग्य की देवी मानी जाती हैं. वह ‘‘उलूक’’ की सवारी करती हैं. विद्या की देवी सरस्वती हंस की सवारी करती हैं. एक देवता हैं विष्णु जी उनकी सवारी है गरुण और शेषनाग पर विराज करते हैं.’’
‘‘और वन देवता बताइये.’’
‘‘आप देखते ही हो कि पत्थर की बटिया व शिवलिंग पर लोग पानी फूल चढ़ाते हैं जैसे वह सड़क किनारे मंदिर. वह बटिया भी शंकर भगवान का रूप है. माना जाता है वह सबका कल्याण करते हैं. पालनहार और संहारकर्ता माने जाते हैं. उनका वाहन है-‘बैल’’’. नीचे खड़ा बैल यह सुनकर खुशी से डकारा. ‘‘और तो और शंकर जी को सर्प प्यारे हैं. जिनसे सब डरते हैं. उन्हें वह माला की तरह धारण करते हैं. भूत वगैरह उनके संगी हैं. गंगा नदी उनकी जटाओं में बसती हैं. अब तो आपको समझ में आ गया होगा कि भगवान को मनुष्यों से ज्यादा आप सबसे प्यारे हैं. मनुष्य अब इन सभी को पूजा करते हैं. समझे रुस्तम जी!’’
रुस्तम जी खुशी से दहाड़े. उनके राजा की उदासी दूर हो गई. वह सब भी खुशी से चिल्लाने लगे.
वनदेवता ने कहा ‘‘जंगलवासियों वह जो दूर सड़क पर लाल-पीले डंडे लिये लोग कुछ बोलते जा रहे हैं न, वह कांवरिया हैं.’’
‘‘हां, हम जानते हैं कि यह लोग नदी से जल ले जा रहे हैं. वहां शिव जी को चढ़ायेंगे.’’ एक बूढ़ा बंदर बोला-‘‘पर वन देवता ऐसा क्यों होता है?’’
‘‘जंगल के जीवों! यह शिवरात्रि का त्योहार है. जो अक्सर फरवरी के महीने में होली के पहले पड़ता है. इस दिन वही बैल की सवारी करने वाले, त्रिशुल और डमरू रखने वाले, बाघंबर पहनने वाले, सपरें की माला पहनने वाले भगवान शंकर की लिंग रूप में पूजा होती है. यह पूजा सब लोग बिना कुछ खाये-पिये करते हैं. बेलपत्र, दूध, फल, फूल, भांग, धतूरा आदि से उनकी पूजा होती है. भगवान शंकर पूजा से बहुत जल्दी प्रसन्न होते हैं. ऐसा कैसे? अरे मैंने एक भजन में सुना था कि एक मंदिर में शिवलिंग के ऊपर सोने का घंटा टंगा था. एक चोर पूजा करने आया. उसने लोटे का पानी चढ़ाया पर जब सोने के घंटे को देखा तो मन बदल गया. सोचा इसे चुरा लेते हैं. पूजा तो हो गई. घंटा उतारने के लिये वह स्वयं शिवलिंग पर चढ़ गया-बस, शिव जी प्रसन्न हो गये. उस चोर से बोले पर मांग, क्या मांगना है. सबने तो भांग धतूरा चढ़ाया पर तूने तो स्वयं को चढ़ा दिया-चोर पैरों पर गिर पड़ा-अब तो आप ही मिल गये हो भगवान, और क्या मांगू.’’
रुस्तम जी की खुशी का ठिकाना नहीं था, बोले-‘‘वनदेवता, शिवजी की पसंद की सब चीजें हमारे पास हैं. हम सब भी उनकी पूजा करेंगे.’’
पांच हाथी दौड़े, सूंड़ में पानी भर लाये और बटिया को स्नान कराने लगे. गाय आई, उसने अपने थन से दूध चढ़ा दिया. बेल के पेड़ ने पत्तियों की वर्षा की, फूल उन पर अपने आप गिरने लगे. फल वाले पेड़ों ने अपने फल चढ़ा कर प्रणाम किया.
वन देवता बहुत प्रसन्न हुए. बोल पड़े- ‘‘बोल बम’’, सभी जन्तुओं ने दोहराया. जंगल बोल बम से गूंज गया.
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सम्पर्कः आस्था, 19/1152, इन्दिरा नगर, लखनऊ (उ.प्र.)
बहुत सुंदर बाल कथा है
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