नार्वेजियन कहानी (1852-1910) आधुनिक नारवेजियन साहित्य के निर्माताओं और सबसे महान् लेखकों में इनकी गणना होती है. 1903 में इन्हें साहित्य का...
नार्वेजियन कहानी
(1852-1910) आधुनिक नारवेजियन साहित्य के निर्माताओं और सबसे महान् लेखकों में इनकी गणना होती है. 1903 में इन्हें साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला था. इन्होंने कविता, नाटक, उपन्यास, कहानी सभी कुछ लिखा है. इनका लिखा हुआ गीत नारवे का राष्ट्रगीत है.
स्ंपादक
दो भाई
बजार्न्सजेरनी बजार्न्सन
स्कूल मास्टर का नाम बार्ड था और उसके भाई का एंडर है. दोनों में बड़ा स्नेह था. दोनों एक साथ सेना में भर्ती हुए, एक साथ लड़ाई में गए. एक साथ ही एक कंपनी में लड़े और दोनों की एक साथ कारपोरल के पद पर तरक्की हुई. लड़ाई के बाद जब वे घर लौट आए तो लोग कहने लगे कि दोनों भाइयों की जोड़ी बड़ी सुंदर है.
एक दिन उनके पिता की मृत्यु हो गई. पिता अपने पीछे बहुत संपत्ति छोड़ गए. उसका बंटवारा करना कठिन था. दोनों भाइयों ने निश्चय किया कि हम संपत्ति की दीवार अपने बीच नहीं खड़ी करेंगे. हम इसे नीलाम कर देंगे, जिससे जिसका जो मन चाहे, खरीद ले. इसके बाद हम सारी आय आधी-आधी बांट लेंगे. ऐसा ही किया गया.
लेकिन पिता के पास बड़ी सोने की घड़ी थी. इस सोने की घड़ी की प्रसिद्घि दूर-दूर तक थी, क्योंकि उस प्रदेश के लोगों ने अपने जीवन में यह पहली सोने की घड़ी देखी थी. जब वह सोने की घड़ी नीलाम पर चढ़ाई गई तो उसे खरीदने के लिए बहुत-से अमीर आदमी इकट्ठा हुए. परंतु जब दोनों भाई बोली बोलने लगे तब और सब लोग चुप हो गए. बार्ड चाहता था कि यह सोने की घड़ी एंडर मुझे ले लेने दे और एंडर चाहता था कि बार्ड मुझे ले लेने दे. दोनों ने बोली-बोली में दोनों ने एक-दूसरे से बढ़ जाने की कोशिश की. जैसे-जैसे वे बोली बढ़ाते जाते थे, वैसे-वैसे एक-दूसरे की ओर अधिकाधिक कुपित नेत्रों से देखते जाते थे. जब घड़ी का दाम साठ रुपए पर जा पहुंचा तो बार्ड सोचने लगा, मेरे भाई ने मेरे साथ यह अच्छा नहीं किया और उसने उससे भी बढ़कर बोली बोली. घड़ी का दाम नब्बे रुपए तक पहुंच गया. एंडर ने फिर भी हार नहीं मानी. बार्ड सोचने लगा, एंडर को जरा भी ख्याल नहीं कि मैंने उसके साथ कितनी भलाई की है और मैं उसका बड़ा भाई हूं. घड़ी का दाम नब्बे रुपए से भी अधिक बढ़ गया. एंडर मैदान में डटा रहा. तब बार्ड ने एक साथ घड़ी का दाम एक सौ बीस रुपया लगा दिया और इस बार भाई की ओर देखा तक नहीं. नीलामी के कमरे में सन्नाटा छाया था. केवल नीलाम करने वाले अफसर की आवाज गूंज रही थी. एंडर ने सोचा, अगर बार्ड इस घड़ी पर एक सौ बीस रुपए लगा सकता है तो मैं भी इतने रुपए लगा सकता हूं. अगर बार्ड को चिंता है कि कहीं घड़ी मेरे हाथ में न पड़ जाए तो वह मुझसे अधिक बोली बोलकर ही घड़ी पाएगा. बार्ड को मालूम पड़ा कि जीवन में मेरा इतना भारी अपमान कभी नहीं हुआ. उसने धीरे स्वर में डेढ़ सौ रुपए की बोली बोली. नीलामी में बहुत-से लोग इकट्टा हुए थे. एंडर ने सोचा, इतने आदमियों के सामने मैं भाई के हाथों अपना अपमान नहीं होने दूंगा. उसने भाई से बढ़कर बोली लगाई. बार्ड खिलखिलाकर हंस पड़ा.
‘‘तीन सौ रुपए! और आज से भाईचारा समाप्त!’’ उसने कहा और शीघ्रता से कमरे से बाहर चला गया.
वह नीलामी में खरीदे हुए घोड़े पर जीन कस रहा था कि एक आदमी ने आकर उससे कहा, ‘‘घड़ी आपकी हो गई. एंडर ने हार मान ली.’’
यह समाचार सुनते ही पश्चात्ताप ने उसे आ घेरा. उसे घड़ी का नहीं बल्कि अपने भाई का ध्यान आ रहा था. जीन कसी जा चुकी थी, परंतु वह घोड़े पर एक हाथ रक्खे हुए खड़ा था. वह कुछ निश्चय नहीं कर पा रहा था. इसी समय बहुत-से लोग नीलामी के कमरे से बाहर निकल आए.
उनमें एंडर भी था. उसने बार्ड को घोड़ा कसे, जाने के लिए तैयार देखा. वह तनिक भी नहीं समझ सका कि बार्ड के मन के भीतर कैसा भयानक संघर्ष चल रहा है.
‘‘घड़ी के लिए बधाई बार्ड!’’ उसने चिल्लाकर कहा, ‘‘अब तुम्हारा यह भाई तुम्हारा मुंह कभी नहीं देखेगा.’’
‘‘और मैं भी कभी तुम्हारे दरवाजे झांकने नहीं आऊंगा!’’ बार्ड ने घोड़े पर चढ़ते हुए कहा. उसका मुंह फीका पड़ गया.
उस दिन से दोनों भाइयों ने उस घर में पैर तक नहीं रखा, जहां अब तक वे अपने पिता के साथ रह चुके थे.
कुछ दिन बाद एंडर ने एक किसान परिवार में अपनी शादी कर ली. शादी में उसने बार्ड को निमंत्रण तक नहीं दिया. बार्ड भी नहीं गया. शादी हुए एक साल भी नहीं हुआ था कि एंडर की गाय मर गई. घर के उत्तर की तरफ के मैदान में एक किनारे गाय बंधी रहा करती थी. एक दिन सुबह वह मरी पाई गई. कोई भी नहीं बता सका कि गाय की मौत किस प्रकार हुई. एंडर पर एक के बाद एक विपत्तियां पड़ती रहीं और उसकी हालत दिनोंदिन खराब होती गई. सबसे बड़ी विपत्ति एंडर पर तब पड़ी जब जाड़े की एक रात में उसके खलिहान में आग लग गई. कोई भी नहीं बता सका कि आग किस प्रकार लगी.
जिस रोज आग लगी, उसके दूसरे दिन बार्ड अपने भाई के घर आया. एंडर चारपाई पर पड़ा था, पर भाई के आते ही वह उछलकर खड़ा हो गया.
‘‘तुम यहां क्या करने आए हो?’’ उसने पूछा. इसके बाद सहसा रुककर एकटक दृष्टि अपने भाई को घूरने लगा.
बार्ड को उत्तर देने में कुछ समय लगा.
‘‘एंडर, मैं तुम्हारी मदद करना चाहता हूं. तुम बड़ी विपत्ति में हो!’’
‘‘जो तुम्हारी इच्छा थी, उससे अधिक तो नहीं हुआ है! तुम चले जाओ, नहीं तो मैं, शायद अपने को काबू में नहीं रख सकूंगा.’’
‘‘एंडर, तुम भ्रम में हो. मुझे दुःख है.’’
‘‘बार्ड, जाओ. नहीं तो फिर परमात्मा ही हम लोगों का मालिक है!’’
बार्ड ने एक कदम पीछे हटाया.
‘‘अगर तुम्हें घड़ी की इच्छा हो,’’ उसने कांपते स्वर में कहा, ‘‘तो तुम ले लो.’’
‘‘जाओ, बार्ड.’’ उसके भाई ने चीखकर कहा और बार्ड की फिर रुकने की इच्छा नहीं हुई है. वह चला गया.
इस बीच में बार्ड के दिल पर क्या-क्या बीती थी, इसकी लंबी कहानी है.
जैसे ही बार्ड ने सुना कि उसका भाई विपत्ति में है, उसका हृदय-परिवर्तन हो गया, लेकिन अभिमान उसके पैर पकड़े रहा. गिरजाघर जाकर उसने कितनी ही बार कितने ही सद्संकल्प किए, परंतु उन संकल्पों के अनुसार कार्य करने की शक्ति उसमें नहीं थी. वह अनेक बार भाई के घर के निकट तक जा चुका था, परंतु उसी समय या तो दरवाजे से कोई निकलता होता था, अथवा घर में अजनबी लोग होते थे या एंडर बाहर लकड़ी काटता होता था, और वह ठिठक जाता था.
जाड़े के दिनों में एक इतवार को वह गिरजाघर गया हुआ था. एंडर भी उस इतवार को वहीं आया हुआ था. बार्ड ने उसे देखा. वह पहले से दुबला हो गया था और पीला पड़ गया था. वह पिता के समय के अपने वही पुराने कपड़े पहने हुए था, परंतु अब वे कपड़े फट गए थे और उनमें पैबंद लगे थे. एंडर प्रार्थना के समय एकटक पादरी की ओर देखता रहा. बार्ड ने सोचा, वह बड़ा सुशील और सज्जन है. उसे अपने बचपन की याद आई. एंडर कितना अच्छा लड़का था. उस दिन बार्ड ने ईश्वर के सामने शपथ खाई कि अब चाहे जो हो, मैं अपने भाई से सुलह कर लूंगा. वह उसी समय अपने भाई के बगल में जा बैठा, परंतु वहां और बहुत-से लोग थे. एंडर की बीबी उसके बगल में बैठी हुई थी. वह उसे नहीं जानता था. उसने सोचा कि एंडर के घर जाकर उससे एकांत में बातें करना ही अधिक उपयुक्त होगा.
शाम को वह एंडर के घर की ओर चल पड़ा. वह सीधे दरवाजे तक चला गया. इसके बाद वह ठिठक गया. भीतर से बोलने की आवाज आ रही थी, उसका नाम भी लिया जा रहा था. एंडर की बीबी बोल रही थी.
‘‘आज वे गिरजाघर गए थे,’’ वह कह रही थी, ‘‘मेरा मन कहता है कि तुम्हारे ही बारे में सोच रहे थे.’’
‘‘नहीं, वह मेरे बारे में नहीं सोच सकता,’’ एंडर ने उत्तर दिया, ‘‘मैं उसे अच्छी तरह जानता हूं, उसे सिर्फ अपना ही ख्याल रहता है.’’
इसके बाद कुछ देर तक किसी ने कुछ नहीं कहा. जाड़े की ठंडी रात थी, फिर भी बार्ड पसीने से तर था. एंडर की बीवी भीतर रसोईघर में बरतन धो रही थी, चूल्हे में आग चट-चट की आवाज करती हुई जल रही थी. बीच-बीच में बच्चे के रोने की आवाज सुनाई पड़ जाती थी, एंडर उसे पालने में झुला रहा था. अंत में स्त्री ने फिर कहा, ‘‘मुझे विश्वाास है कि तुम दोनों ही एक-दूसरे के बारे में सोचा करते हो, परंतु मुंह से कभी नहीं कहते हो.’’
‘‘और कोई बातचीत करो.’’ एंडर ने उत्तर दिया.
थोड़ी देर बार वह उठा खड़ा हुआ और बाहर निकला. बार्ड ओसारे में छिप रहा, जहां लकड़ियां रखी हुई थीं. एंडर लकड़ियां लेने के लिए ओसारे में गया. बार्ड एक कोने में छिपा खड़ा था, जहां से वह उसे भली भांति देख सकता था. एंडर ने गिरजाघर वाले कपड़े उतार डाले थे और इस समय वह पुरानी फौजी वर्दी पहने हुए था, जो बार्ड के समान थी. दोनों ने प्रण किया था कि हम इस वर्दी को कभी पहनेंगे नहीं, बल्कि अपने बच्चों को दे देंगे. एंडर की वर्दी अब एकदम पुरानी पड़ गई थी और उस पर जगह-जगह पैबंद लगे थे. दूर से एंडर गुदड़ी ओढ़े हुए मालूम पड़ता था. बार्ड को अपनी जेब में रखी हुई घड़ी की टिकटिक साफ सुनाई पड़ रही थी. एंडर लकड़ियों के ढेर के निकट पहुंचा. परंतु वहां पहुंचकर वह फौरन ही लकड़ियां उठाने के लिए झुका नहीं, बल्कि लकड़ियों के ढेर के सहारे खड़ा होकर बाहर तारों से लदे हुए आसमान की ओर निहारने लगा. इसके बाद उसने एक गहरी सांस ली और अपने आप बुदबुदाया, ‘‘हे ईश्वर!’’
बार्ड से अपने भाई की अवस्था देखी नहीं गई, उसने चाहा कि इसी समय अपनी जगह से सामने निकल आऊं, परंतु तभी उसका भाई खांसने लगा और उसे बड़ा कठिन मालूम पड़ा. एंडर लकड़ियां हाथ में लेकर बाहर चला. वह बार्ड के इतने निकट होकर निकला कि लकड़ी की कुछ चिप्पियों ने उसके मुंह में खरोंचा मार दिया.
पूरे दिस मिनट तक वह अपनी जगह पर पत्थर की तरह अचल खड़ा रहा. वह न मालूम कितनी देर तक इस प्रकार खड़ा रहता, अगर हवा का एक ठंडा झोंका आकर उसका शरीर कंपा न देता. वह ओसारे से निकल आया. उसने स्वयं अपने को
धिक्कारा कि मैं कायर हूं, अब भाई के घर जाने का मुझमें साहस नहीं. उसने एक दूसरी युक्ति सोची. ओसारे में एक अंगीठी रखी हुई थी. उसने उसमें से कुछ कोयले बीन लिए, कुछ चिप्पियां भी उठा लीं. इसके बाद वह खलिहान में गया और भीतर से दरवाजा बंद कर आग जलाई. आग जलाकर उसने वह खूंटी ढूंढ़ी जिस पर एंडर, सुबह अनाज पीटने के लिए खलिहान में आने पर अपनी लालटेन टांगता होगा. इसके बाद बार्ड ने अपनी सोने की घड़ी जेब से निकालकर उस खूंटी से लटका दी और आग बुझा दी और कोठरी से निकल आया. इस कार्य से उसके मन का बोझ जैसे उतर गया और उसने एक संतोष की सांस ली. जब वह घर लौटा तो उसके पैर हवा में उड़े जा रहे थे.
दूसरे दिन उसने सुना, रात को एंडर के खलिहान में आग लग गई. शायद खूंटी ढूंढ़ने के लिए उसने जो लकड़ी जलाई थी, उसी से चिनगारियां उड़ी थीं.
बार्ड को इतना अधिक दुःख हुआ कि वह दिन-भर चारपाई पर पड़ा रहा, जैसे बीमार हो. वह अपनी प्रार्थना की पुस्तक निकालकर भजन गाता रहा. घर के आदमियों तक को खटका हुआ कि उसकी तबीयत खराब है. लेकिन शाम को वह घर से बाहर निकल गया. उस दिन चांदनी रात थी. उसने भाई के खेत पर जाकर जले हुए खलिहान में हाथ डालकर चारों ओर ढूंढ़ा, अंत में उसे गले हुए सोने का एक टुकड़ा मिला. यह घड़ी का अवशेष था.
वह एंडर के घर यही सोने का टुकड़ा लेकर अपनी सफाई देने और सुलह की प्रार्थना करने गया था. परंतु उसके साथ जैसा व्यवहार हुआ वह पहले ही कहा जा चुका है.
एक छोटी लड़की ने बार्ड को खलिहान की राख टटोलते हुए देखा था. कुछ लड़कों ने इतवार के दिन उसे भाई के घर की ओर जाते हुए देखा. उसके पड़ोसियों ने खुद अपनी आंखों से देखा था कि सोमवार के दिन उसकी चाल-ढाल बड़ी विचित्र थी. सब लोग यह जानते ही थे कि दोनों भाई एक-दूसरे के जानी दुश्मन हैं. सारी बातों की सूचना पुलिस को दे दी गई. पुलिस ने जांच की. बार्ड के विरुद्घ कुछ भी साबित नहीं किया जा सका, फिर भी सबका संदेह उसी पर था. उसे अपने भाई के पास जाने का अब और भी साहस नहीं होता था.
जब खलिहान में आग लगी थी, एंडर को भी अपने भाई का ध्यान आया था, परंतु उसने मुंह से एक शब्द भी नहीं कहा था. आग लगने के दूसरे दिन उसने जब अपने भाई को देखा था, उसके मन में तत्काल सोचा था, वह पश्चात्ताप की आग में जल रहा है. परंतु भाई का यह भयानक अपराध क्षमा नहीं किया जा सकता था. इसके बाद उसने लोगों को भी यह कहते हुए सुना था कि जिस रात को खलिहान में आग लगी, उसी शाम को उसका भाई उसके मकान की ओर जाते हुए देखा गया था. पुलिस की जांच से कोई बात साबित नहीं हो सकी थी, फिर भी उसे पक्का विश्वास था कि मेरा भाई ही अपराधी है.
थाने में दोनों भाई मिले, बार्ड बढ़िया कपड़े पहने था, एंडर फटे चिथड़े. बार्ड ने कमरे के भीतर पैर रखते ही भाई की ओर देखा. एंडर के मन ने अच्छी तरह अनुभव कर लिया कि भाई की आंखें प्रार्थी हैं. उसने समझ लिया कि भाई की इच्छा नहीं है कि मैं उसके विरुद्घ कुछ कहूं. और जब दारोगा ने उससे पूछा, क्या तुम अपने भाई पर आग लगाने का संदेह करते हो तो उसने दृढ़तापूर्वक सिर हिलाकर कह दिया, ‘‘नहीं.’’
उस दिन के बाद एंडर बहुत अधिक शराब पीने लगा. उसकी तबियत खराब रहने लगी. बार्ड शराब नहीं पीता था. फिर भी उसकी हालत एंडर से भी बुरी थी. उसमें इतना अधिक परिवर्तन हो गया था कि लोग उसे कठिनाई से पहचान पाते थे.
एक दिन शाम को एक गरीब औरत ने बार्ड के कमरे में प्रवेश किया और अपने साथ चलने के लिए कहा. बार्ड ने पहचान लिया कि वह उसके भाई की स्त्री है. उसके मन ने तत्काल समझ लिया कि क्या काम हो सकता है. उसका चेहरा एकदम पीला पड़ गया. उसने जल्दी से कपड़े पहने और बिना एक शब्द कहे अपने भाई की स्त्री के साथ हो लिया. एंडर की खिड़की में धीमी रोशनी हो रही थी, जो कभी तेज हो जाती थी और कभी बुझने लगती थी. वे लोग उसी रोशनी के सहारे चले, क्योंकि चारों ओर बर्फ जम जाने के कारण कोई मार्ग नहीं रह गया था. जब बार्ड ने घर के दरवाजे की चौखट पर पैर रखा, उसकी नाक में एक विचित्र
गंध भर गई, जिससे उसका जी खराब हो गया. दोनों भीतर गए. एक छोटा बालक, चूल्हे के पास बैठा हुआ कोयला खा रहा था, उसका चेहरा कोयले से काला हो गया था. उन लोगों को देखकर हंसने लगा, जिससे उसके दांत चमक उठे.
चारपाई पर घर-भर के कपड़े ओढ़े हुए एंडर पड़ा था. उसका चेहरा एकदम पीला था. वह अपनी गड्डे में धंसी हुई आंखों से भाई को देखने लगा. बार्ड के घुटने कांपने लगे. वह बिस्तर के पास घुटने टेककर बैठ गया और फूट-फूटकर रोने लगा. एंडर ने अपने मुंह से एक शब्द नहीं कहा. अंत में उसने अपनी स्त्री से चले जाने के लिए कहा, परंतु बार्ड ने उसे संकेत से रुकने के लिए कहा. इसके बाद दोनों भाई बातचीत करने लगे. सोने की घड़ी नीलाम होने के दिन से आज तक की राई-रत्ती बातें उन्होंने एक-दूसरे को बताईं. उनके हृदय फिर से जुड़ गए. बार्ड ने अंत में अपने जेब से सोने का टुकड़ा निकालकर दिखाया. उसे वह सदा अपनी जेब से रखे रहता था. बातचीत में दोनों भाइयों को मालूम हुआ कि आपस में लड़ाई होने के बाद से दोनों में कोई एक दिन भी सुखी नहीं रहा.
एंडर ने अपनी बात अधिक नहीं कही, क्योंकि उसके शरीर में शक्ति नहीं थी. एंडर जितने दिन बीमार रहा, बार्ड उसके पास बैठा रहा.
‘‘अब मैं अच्छा हूं’’ एंडर ने एक दिन सुबह जागने पर कहा, ‘‘भाई, अब हम-तुम साथ-साथ रहेंगे, जैसे पहले रहा करते थे. अब हम कभी एक-दूसरे को नहीं छोड़ेंगे.’’
लेकिन उसी दिन उसकी मृत्यु हो गई.
बार्ड अपने भाई की विधवा और उसके बच्चे को अपने घर लिवा ले गया. उसने उनके भरण-पोषण का भार अपने ऊपर ले लिया. दोनों भाईयों में मृत्यु-शय्या के निकट जो बातचीत हुई थी उसका निर्वाह बार्ड ने जीवन-भर किया. अब यह बात सारे गांव में फैल गई थी. गांव के लोग बार्ड का ऐसा सम्मान करते थे, जैसे उसने एक बड़ा दुःख उठाने के बाद शांति पाई है अथवा लंबी अनुपस्थिति के बाद घर लौटा है. बार्ड देवता बन गया था. अपने को लाभदायक बनाने की इच्छा से वह फौजी अफसर से स्कूल मास्टर हो गया. वह बालकों के कोमल मस्तिष्क पर यह बात अंकित कर देने का यत्न किया करता था कि प्रेम ही सब कुछ है. वह स्वयं सबसे प्रेममय व्यवहार करता था और बच्चे भी उससे मित्र और पिता की भांति प्रेम करते थे.
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