(पिछले अंक से जारी…) कहानी 11 मेघ-मल्हार उसका नाम मेघा न होकर अगर मल्हार होता तो शायद मेरे जीवन में बादलों की गड़गड़ाहट के बजाय मे...
कहानी 11
मेघ-मल्हार
उसका नाम मेघा न होकर अगर मल्हार होता तो शायद मेरे जीवन में बादलों की गड़गड़ाहट के बजाय मेघ मल्हार की मधुर तरंगें मन में हिलोरें ले रही होतीं. परन्तु ऐसा नहीं हुआ था. वह काले घने मेघों की तरह मेरे जीवन में आई थी और कुछ ही पलों में अपनी गड़गड़ाहट से मुझे डराती हुई और मेरे मन के उजालों की निगलती हुई अचानक चली गइर्मेरे जीवन से अगर वह चली जाती तो शायद मैं बर्दाश्त भी कर लेता, परन्तु मेरे साथ रहते हुए, मेरी निगाहों के सामने वह किसी और को प्यार करने लगे तो आप समझ सकते हैं कि एक पुरुष के दिलोदिमाग पर किस तरह पटाखों का शोर गूंज सकता है. किस तरह उसके सपने धराशायी हो सकते हैं. ऐसे में आदमी पागल न हो जाए तो क्या करे? परन्तु क्या सचमुच उसने मेरे साथ विश्वासघात किया था ? मैं तो यही समझता हूं और उसके बारे में सोचते हुए यही खयाल बार-बार मेरे मन में आता है कि औरत सच में एक धोखा होती है...एक छलावा. यह बहुत पहले ही किसी विद्वान ने कहा था, परन्तु विद्वानों की बात कौन याद रखता है. आदमी आंख का अंधा हो तो प्यार करे, वह भी किसी खूबसूरत लड़की से, और तब अगर उसे प्यार में धोखा मिलता है तो प्यार के साथ-साथ छलावे का भी एहसास हो जाता है. आप इसे मेरा अहम कह सकते हैं. मेरी पत्नी इसे कुछ और समझती है.
मेघा मेरे जीवन में तब आई थी, जब मैं अधेड़ावस्था की ओर अग्रसर हो रहा था. मेरी और उसकी उम्र में कोई बहुत ज्यादा अन्तर नहीं था. मैं तीस के पार था और वह बीस-बाइर्स के बीच की निहायत खूबसूरत लड़की. वह कुंवारी थी और मैं एक शादीशुदा व्यक्ति था...उससे लगभग दस साल बड़ा, परन्तु उसने मेरी उम्र नहीं, मुझसे प्यार किया था और मुझे इस बात का गर्व था कि एक कमसिन लड़की मेरे प्यार में गिरफ्तार है और वह दिलों-जां से मुझसे प्यार करती है और मैं भी उसे उसी शिद्दत से प्यार करता हूंमेरे साथ रहते हुए उसने मुझसे कभी कुछ नहीं मांगा. यह उसकी सबसे अच्छी बात थी कि वह बहुत सारी वस्तुओं की मांग नहीं करती थी. ज्यादातर मैं ही अपनी तरफ से उसे कभी कपड़े, कभी कास्मेटिक्स या ऐसी ही रोजमर्रा की जरूरत की चीजें खरीदकर दे दिया करता था. स्वयं उसने शायद ही कभी कोई चीज की मांग की होहां, रेस्तरां में जाकर पिज्जा, बर्गर खाने का उसे बहुत शौक था. मैं अक्सर उसे मैक्डानल या डोमिनोज में ले जाया करता था. उसे मेरे साथ बाहर आने-जाने में कोई संकोच नहीं होता था. उसके व्यवहार में एक खिलन्दड़ायन होता था. बाहर भी वह मुझे अपना हमउम्र समझती थी और उसी तरह का व्यवहार करती थी. भीड़ के बीच में कभी-कभी मुझे लज्जा का अनुभव होता, परन्तु उसे कभी नहीं. ग्लानि या लज्जा नाम के शब्द उसके जीवन से गायब थे वह असम की रहने वाली थी और अपने मां-बाप से दूर मेरे शहर में पढ़ाई के लिए आई थी. हास्टल में न रहकर वह किराए का मकान तलाश कर रही थी और इसी सिलसिले में वह मेरे मकान पर आई थी. मेरे घर में मैं अपनी पत्नी और एक छोटे बच्चे के साथ रहता था. उसे किराए पर एक कमरे की आवश्यकता थी हमारा अपना मकान था, परन्तु हमने कभी किराएदार रखने के बारे में नहीं सोचा था. हमें किराएदार की आवश्यकता भी नहीं थी, परन्तु मेघा इतनी प्यारी और मीठी-मीठी बातें करने वाली लड़की थी कि कुछ ही पलों में उसने मेरी पत्नी को मोहित कर लिया और न न करते हुए भी हमने उसे एक कमरा किराए पर देने के लिए हां कर दीवह मेरे घर में रहने लगी, एक पेईंगेस्ट की हैसियत से...! घर में रहते हुए हमारी बातें होतीं, कभी एकान्त में, कभी सबके सामने और पता नहीं वह कौन सा क्षण था, जब उसकी भोली सूरत मेरे दिल में समा गई और उसकी मीठी बातों में मुझे रस आने लगा. मैं उसके इर्द-गिर्द एक मवाली लड़के की तरह मंड़राने लगापत्नी को तो आभास नहीं हुआ, परन्तु वह मेरे मनोभावों को ताड़ गई कि मैं उसे किस नजर से देख रहा था.
यह सच भी है कि लड़कियों पुरुषों के मनोभावों को बहुत जल्दी पहचान जाती हैं. उसने एक दिन बेबाकी से कहा, ‘‘आप मुझे पसन्द करते हैं?''
‘‘हां, क्यों नहीं, तुम एक बहुत प्यारी लड़की हो.'' मैंने बिना किसी हिचक के कहा.
‘‘तुम एक पुरुष की दृष्टि से मुझे पसन्द करते हो न!'' उसने जोर देकर पूछा. मैं अकबका गया. उसकी आंखों में तेज था. मैं न नहीं कह सका. मेरे मुंह से निकला, ‘‘हां, मैं तुम्हें प्यार करता हूं.'' सच को कहां तक मैं छिपा सकता था.
‘‘आपका घर बिखर जाएगा?'' उसने मुझे सचेत किया. मैं चुप रह गया. वह सच कह रही थी, परन्तु प्यार अंधा होता है. मैं उसके प्रति अपनी लगन को रोक नहीं सका. वह भी अपने को रोकना नहीं चाहती थी. उसके अन्दर आग थी और वह उसे बुझाना चाहती थी. वह मुझसे प्यार न करती तो किसी और से कर लेती. लड़कियां जब घर से बाहर कदम रखती हैं, तो उनके लिए लड़कों की कोई कमी नहीं होती. हम दोनों जल्द ही एक अनैतिक संबंध में गुत्थमगुत्था हो गये. हमें इस बात की भी कोई परवाह नहीं थी कि हम एक ही घर में रह रहे थे, जहां मेरी पत्नी और एक छोटा बच्चा था, परन्तु हम सावधानी बरतते थे और अक्सर एकान्त में मिलने के अवसर ढूंढ़ निकालते थे. प्यार में आदमी बहुत चतुर और चालाक हो जाता है, परन्तु एक दिन उसकी होशियारी ही उसे ले डूबती है. अनैतिक और अमर्यादित प्यार में आदमी की पोल बहुत जल्दी खुल जाती है. अगर वह होशियारी न बरते और जल्दी ही प्यार के मार्ग से विलग नहीं हो जाता है तो फिर उसके दुष्परिणामों से अपने घर परिवार का सत्यानाश कर लेता है. मेरा परिवार भी टूटते-टूटते बचा था. मेघा केवल एक सुन्दर लड़की भर नहीं थी, चंचलता के साथ-साथ उसमें बुद्धिमत्ता भी थी. अपनी उम्र से ज्यादा समझदार थी. शुरू से ही वह मेरी पत्नी को दीदी कहकर बुलाती थी, इस नाते उसे मुझसे हंसी-मजाक करने का पूरा अधिकार था. पत्नी भी एक कम उम्र लड़की की दीदी बनकर खुश थी. आण्टी बनना औरतों को वैसे भी अच्छा नहीं लगता है.
एक दिन वह बोली, ‘‘अभय,'' अकेले में वह मुझे मेरे नाम से ही बुलाती थी, ‘‘हमारे संबन्ध ज्यादा दिनों तक किसी की नजरों से छिपे नहीं रह सकते हैं.''
‘‘तब..?'' मैंने इस तरह पूछा, जैसे इस समस्या का उसके पास समाधान था.
‘‘मुझे आपका घर छोड़ना पड़ेगा.'' उसने बिना हिचक के कहा.
‘‘तुम मुझे छोड़कर चली जाओगी?'' मैं आश्चर्यचकित रह गया.
‘‘नहीं, मैं केवल आपका घर छोडूंगी, आपको नहीं. मुझे दूसरा घर किराये पर दिलवा दीजिए. हम लोग वहीं मिला करेंगे. हफ्ते में एक या दो बार... आपस में सलाह करके.''
‘‘मैं शायद इतनी दूरी बर्दाश्त न कर सकूं.'' मरे दिल के ऊपर जैसे किसी ने एक भारी पत्थर रख दिया था. हवा जैसे थम सी गई थी. सांस रुकने लगी थी प्यार में ऐसा क्यों होता है कि जब हम मिलते हैं तो हर चीज आसान लगती है और जब बिछड़ते हैं तो हर चीज बेगानी हो जाती है. समय भारी लगने लगता हैउसका स्वर सधा हुआ था, ‘‘अगर आप चाहते हैं कि हमारे सम्बन्ध इसी तरह बरकरार रहें तो इतनी दूरी हमें बर्दाश्त करनी ही पड़ेगी. धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा.'' वह अपने इरादे पर दश्ढ़ थी और मैं उसके सामने पिटा हुआ मोहरा... पत्नी को उसने उल्टी-सीधी बातों से मना लिया और वह इस प्रकार अपने कालेज के पास एक नए घर में रहने के लिए चली गई. मैंने अपना परिचय वहां उसके स्थानीय गार्जियन के तौर पर दिया था. इस प्रकार मुझे उसके घर आने-जाने में कोई दिक्कत पेश नहीं आती थी. किसी को शक भी नहीं होता था परन्तु अलग घर में रहने के कारण मैं मेघा से रोज नहीं मिल पाता था आफिस की व्यस्ततायें अलग थीं, फिर घर की जिम्मेदारियां थीं. मैं दोनों से विमुख नहीं होना चाहता था, परन्तु मेघा का आकर्षण अलग था. मैं घर में उसके हाल-चाल जानने के बहाने छुट्टी में उससे मिलने चला जाता था. परन्तु हर रविवार जाने से पत्नी को शक भी हो सकता था. कई बार तो वह भी साथ चलने के लिए तैयार हो जाती थी. एकाध बार उसे लेकर जाना पड़ा था. तब मैं मन मसोहकर रह जाता था हमारे सम्बन्धों के बीच अनजाने ही अनचाही दूरियां व्याप्त होती जा रही थी मैं उससे विरक्त नहीं होना चाहता था, परन्तु शायद इन दूरियों और न मिल पाने की मजबूरियों की वजह से मेघा मुझसे विरक्त होती जा रही थी अब वह मेरे फोन काल्स अटेण्ड नहीं करती थी. अक्सर काट देती थी. कभी अटेण्ड करती तो उसकी आवाज में बेरुखी तो नहीं, परन्तु मधुरता भी नहीं होतीपूछने पर बताती- ‘‘फाइनल एक्जाम सिर पर हैं, पढ़ाई में व्यस्त रहती हूं, टेन्शन रहता है.'' उसका यह तर्क मेरी समझ से परे था. परीक्षायें पहले भी आई थीं, परन्तु न तो कभी वह व्यस्त रहती थी, न टेंशन में. मैं जानता था, वह झूठ बोल रही थी इसका कारण ये था कि बहुत बार जब मैं फोन करता तो उसका फोन व्यस्त आता. स्पष्ट था कि वह पढ़ाई में नहीं किसी से बातों में व्यस्त रहती थी, परन्तु किससे..? यह पता करना मेरे लिए आसान न था. वह कालेज में पढ़ती थी. किसी भी लड़के से उसे प्यार हो सकता था. यह नामुमकिन नहीं था मैं स्वयं तनावग्रस्त हो गया. मेरी रातों की नींद और दिन का चैन उड़ गया.
आफिस के काम में मन न लगता. पत्नी द्वारा बताये गये कार्य भूल जाता.
ऐसी तनावग्रस्त जिन्दगी जीने का कोई मकसद नहीं था. मुझे कोई न कोई फैसला लेना ही था. बहुत दिनों से मेघा से मेरी मुलाकात नहीं हुई थी. हम आपस में तय करके ही मिला करते थे, परन्तु इस बार मैंने अचानक उसके घर जाने का निर्णय लिया.
एक शाम आफिस से मैं सीधा मेघा के कमरे पर पहुंचा, वह मुनिरका गांव में रहती थी. साधारण दो मंजिल का मकान था. उसी की ऊपरी मंजिल के एक कमरे में वह रहती थी. जब मैं उसके मकान में पहुंचा तो वह कमरे में नहीं थी मैं उसके कमरे के दरवाजे पर पड़े ताले को कुछ देर तक घूरकर देखता रहा, जैसे वह मेरे और मेघा के बीच में दीवार बनकर खड़ा हो. दीवार तो हमारे बीच खिंच गयी थी. वह दीवार इतनी ऊंची और मजबूत थी, कि हम न तो उसे पार करके एक दूसरे की तरफ जा सकते थे, न तोड़कर. बुझे मन से मैं सीढ़ियां उतरकर गेट की तरफ बढ़ रहा था कि मकान मालिक मनदीप सिंह अचानक अपने ड्राइंग रूम से बाहर निकले और तपाक से बोले,
‘‘अभय जी, आइए, कहां लौटे जा रहे हैं? बड़े दिन बाद आए? सब ठीक तो है?'' जबरदस्ती की मुस्कान अपने चेहरे पर लाकर मैंने कहा, ‘‘हां सिंह साहब, सब ठीक है. आप कैसे हैं?''
‘‘मैं तो चंगा हूं जी, आप अपनी सुनाइए. मेघा से मिलने आए थे ?'' उन्होंने
खुशदिली से कहा, परन्तु मेरे मन में खुशियों के दीप नहीं खिल सके.
‘‘हां!'' मैंने मरी आवाज में कहा, ‘‘कमरे में है नहीं!'' मैंने इस तरह कहा, जैसे मैं जानना चाहता था कि वह कहां गई है.
‘‘आइए, अन्दर बैठते हैं.'' वह मेरा हाथ पकड़कर अन्दर ले गये. मुझे सोफे पर बिठाकर खुद दीवान पर बैठ गये और जोर से आवाज देकर बोले, ‘‘सुनती हो जी भागवान! जरा कुछ ठण्डा-गरम लाओ. अपने अभय जी आए हुए हैं.''
‘‘लाती हूं,'' अन्दर से उनकी श्रीमती जी की आवाज आई. मैं चुप बैठा रहामनदीप ने ही बात शुरू की- ‘‘मैं तो आपको फोन करने ही वाला था,'' वह जैसे कोई रहस्य की बात बताने जा रहे थे, ‘‘अच्छा हुआ आप खुद ही आ गए. आप बुरा मत मानना. आप मेघा के लोकल गार्जियन हैं. जरा उस पर नजर रखिए. उसके लक्षण अच्छे नहीं दिख रहे.''
‘‘क्यों? क्या हुआ?'' मेरे मुख से अचानक निकल गया.
‘‘वही बताने जा रहा हूं. आजकल उसका मन पढ़ाई-वढ़ाई में नहीं लग रहा. शायद प्यार-व्यार के चक्कर में पड़ गई है.''
‘‘आयं!'' मुझे विश्वास नहीं हुआ. मेघा का मेरे प्रति जिस प्रकार का समर्पण था, उससे नहीं लगता था कि वह देह-सुख की इतनी भूखी थी कि मुझे छोड़कर किसी और से नाता जोड़ ले; परन्तु लड़कियों के स्वभाव का कोई ठिकाना नहीं होताक्या पता कब उन्हें कौन अच्छा लगने लगे.
‘‘हां जी!'' मनदीप ने आगे बताया, ‘‘एक लड़का रोज आता है. उसी के साथ जाती है और देर रात को उसी के साथ वापस आती है. छुट्टी के दिन तो लड़का उसके कमरे में ही सारा दिन पड़ा रहता है. मैंने एक दो बार टोंका तो कहने लगी, उसका क्लासमेट है और पढ़ाई में उसकी मदद करने के लिए आता है. परन्तु भाई साहब मैंने भी दुनिया देखी है. उड़ती चिड़िया देखकर बता सकता हूं कि कब अण्डा देगी. सूने एकान्त कमरे में घण्टों बैठकर एक जवान लड़का और लड़की केवल पढ़ाई नहीं कर सकते.'' मेरे दिमाग में एक धमाका हुआ. लगा कि दिमाग की छत उड़ गई है. मैं सनाका खा गया. कई पल तक सांसें असंयमित रहीं और मैं गहरी-गहरी सांसें लेता रहा. तो ये कारण था, मेघा का मुझसे विमुख होने का. अगर उसकी जिन्दगी में कोई अन्य पुरुष या युवक आ गया था, तो यह कोई अनहोनी बात नहीं थी. वह जवान और सुन्दर थी, चंचल और हंसमुख थी. उसे प्यार करने वाले तो हजारों मिल जाते, परन्तु मुझे उसकी तरह प्यार देने वाली दूसरी मेघा तो नहीं मिल सकती थी काश, मेघों की तरह मेरे जीवन में न आती, वरन मल्हार बनकर आती तो मैं उसकी मधुर धुन को अपने हृदय में समो लेता. फिर मुझे उससे बिछड़ जाने का गम न होता. मनदीप के घर पर मैं काफी देर तक बैठा रहा. ठण्डा पीने के बाद इसी मुद्दे पर काफी देर तक बातें होती रहीं. उनकी पत्नी बोली, ‘‘भाई साहब! आप मेघा को समझाइए. वह मां-बाप से दूर रहकर पढ़ाई कर रही है. प्यार-मोहब्बत के चक्कर में उसका जीवन बर्वाद हो जाएगा.''
‘‘लेकिन भाभी जी, यह उसका कसूर नहीं है. जमाना ही कुछ ऐसा आ गया है कि हर दूसरा लड़का-लड़की किसी न किसी के साथ प्यार किये बैठे हैं. यह आधुनिक युग का चलन है. किसी पर अंकुश लगाना संभव नहीं है.''
‘‘आप बात तो ठीक कहते हैं, परन्तु उसे समझाने में क्या हर्ज है? एक बार पढ़ाई पूरी कर ले, फिर चाहे जो करे. मां-बाप की मनोकामना को क्षति तो न पहुंचाए, उनका दिल तो न तोड़े.''
‘‘मैं उसे समझाने का प्रयास करूंगा.'' मैंने उनसे कह तो दिया, परन्तु मैं अच्छी तरह जानता था कि मेघा से अब मेरी कभी मुलाकात नहीं होगी. मेरे मन के आसमान में अब किसी मेघ के लिए जगह नहीं थी उस दिन मन बड़ा उदास रहा. बीवी ने पूछा तो काम का बहाना बना दिया. रात लगभग ग्यारह बजे मेघा का फोन आया. मैंने नहीं उठाया, शायद मैं गुस्से में था या उससे नफरत करने लगा था. उसने अचानक फोन क्यों किया था, यह मैं अच्छी तरह समझ रहा था. मनदीप ने उसे मेरे उसके यहां आने की बात बताई होगी. उसे भय होगा कि मैं उसके बारे में सब कुछ जान गया हूंगा. परन्तु उसे डरने की कोई आवश्यकता नहीं थी. आज के बाद मुझे उसके किसी भी काम से कुछ लेना-देना नहीं था. मैं उसके जीवन में दखल देने वाला नहीं था मैंने मोबाइल को साइलेन्ट मोड पर रख दिया; ताकि घण्टी की आवाज से मुझे परेशानी न हो और पत्नी के अनावश्यक सवालों से भी मैं बचा रहूंरात में नींद ठीक से तो नहीं आई, परन्तु इस बात का सुकून अवश्य था कि एक बोझ मेरे मन से उतर गया था सुबह देखा तो मेघा के 19 मिस काल थे. संभवतः बहुत बेचैन थी मुझसे बात करने के लिए. मेरे मन में जैसे खुशी का एक दरिया उमड़ आया हो. जो हमें दुःख देता है, उसे दुःखी देखकर हम सुख की अनुभूति करते हैं. यह स्वाभाविक मानवीय प्रवश्त्ति हैमेघा ने एक मैसेज भी भेजा था, ‘‘मैं आपसे मिलना चाहती हूं.'' मैंने इसका कोई जवाब नहीं दिया. मैं उसे उपेक्षित करना चाहता था. प्यार के मामलों में ऐसा ही होता है. एक बार मन उचट जाय तो मुश्किल से ही लगता हैमैंने मेघा की उपेक्षा की और उसका कोई फोन अटेण्ड नहीं किया, न उसे कोई मैसेज भेजा, तो उसने मेरी पत्नी अनिता को फोन किया. उन दोनों के बीच क्या बातें हुईं, इसका तो पता नहीं, परन्तु अनिता ने मुझसे पूछा, ‘‘मेघा से आपकी कोई बात हुई है क्या?''
‘‘क्या?'' मैं उसका आशय नहीं समझा‘‘बोल रही थी कि आप उससे नाराज हैं.'' ‘‘अच्छा, मैं उससे क्यों नाराज हूंगा. उसे खुद ही वक्त नहीं मिलता मुझसे बात करने का. वह मेरा फोन भी अटेण्ड नहीं करती. उसके पंख निकल आए हैं.'' मैंने तैश में आकर कहा. अनिता हैरानी से मेरा मुख निहारने लगी. मेरा चेहरा तमतमा रहा था और उसमें कटुता के भाव आ गये थे.
‘‘ऐसा क्या हो गया है? इतनी प्यारी लड़की...'' अनिता पता नहीं क्या कहने जा रही थी, परन्तु मैंने उसकी बात बीच में ही काट दी, ‘‘हां, बहुत प्यारी हैउसके लक्षण तुम नहीं जानती. पता नहीं किस-किस के साथ गुलछर्रे उड़ाती फिर रही है.''
‘‘अच्छा!'' अनिता के चेहरे पर मासूम मुस्कराहट बिखर गई, ‘‘आपको उससे इस बात की शिकायत है कि वह दूसरों के साथ गुलछर्रे उड़ा रही है. आपके साथ उड़ाती तो ठीक था, तब आप गुस्सा नहीं करते.''
क्या अनिता को मेरे और मेघा के सम्बन्धों के बारे में पता चल गया है? मैंने गौर से उसका चेहरा देखा. ऐसा तो नहीं लग रहा था. अनिता सामान्य थी और उसके चेहरे पर भोली मुस्कान के सिवा कुछ न था. अगर उसे पता होता तो वह इतने सामान्य ढंग से मेरे साथ पेश नहीं आती. मेरे दिल को ठण्डी राहत मिली.
‘‘छोड़ो उसकी बातें! वह अच्छी लड़की नहीं है.'' मैंने बात को टालने के इरादे से कहा.
‘‘अरे वाह! जब तक हमारे घर में थी, हम सबसे हंसती-बोलती थी, वह एक अच्छी लड़की थी. जब वह दूर चली गई और आपसे उसका मिलना जुलना कम हो गया, तो वह खराब लड़की हो गई.'' अनिता के शब्दों में कटाक्ष का हल्का प्रहार था मुझे फिर से शक हुआ. संभवतः अनिता को सब कुछ पता है, या केवल शक है. अगर पता है तो मेघा ने ही आजकल में पिछली सारी बातें अनिता को बताई होंगी. मेरे दिल में खलबली मची हुई थी, परन्तु मैं अनिता से कुछ पूछने का साहस नहीं कर सकता था. अभी तक हमारे दाम्पत्य-जीवन में कोई कटुता नहीं आई थी और मैं नहीं चाहता था कि जिस सम्बन्ध को मैं विच्छेद करना चाहता था, उसकी वजह से मेरे सुखी घर-परिवार में आग लग जाए.
‘‘मैं उसके बारे में बात नहीं करना चाहता!'' और मैं उठकर दूसरे कमरे में चला आया. अनिता मेरे पीछे-पीछे आ गई और चिढ़ाने के भाव से बोली- ‘‘भागे कहां जा रहे हैं? सच्चाई से कहां तक मुंह मोड़ेंगे? आप मर्दों को घर भी चाहिए और बाहर की रंगीनियां भी. यह तो हम औरतें हैं, जो घर की सुख-शान्ति के लिए अपना स्वाभिमान और व्यक्तिगत सुख भूल जाती हैं.'' मैं पलटा, ‘‘क्या मतलब है तुम्हारा?''
‘‘मतलब बहुत साफ है. मेघा ने बहुत पहले ही मुझे आपके साथ अपने संबन्धों का खुलासा कर दिया था. वह जवानी के आंगन में खड़ी एक भावुक किस्म की लड़की है. दुनिया के चक्करदार रास्तों में वह भटक रही थी कि आप उसे मिल गये. हर लड़की एक पुरुष में पिता और प्रेमी दोनों की छवि देखना चाहती है. आप में उसने एक संरक्षक की छवि देखी और इसी नाते प्यार कर बैठी. बाद में उसे पछतावा हुआ तो घर छोड़ कर चली गई. आप से दूर होने के लिए आवश्यक था कि वह किसी लड़के से दोस्ती कर ले; ताकि वह पिछली बातें भूल सके. बस इतनी सी बात है.'' अनिता के शब्दों में गंभीरता और धीरता का भाव था मैं अवाक् रह गया. अनिता को सब पता था और उसने आज तक इस बारे में बात करनी तो दूर मुझ पर जाहिर तक नहीं किया. और मैं काठ के उल्लू की तरह दो औरतों के बीच बेवकूफ बना फिरता रहामेरी नजर में अनिता की छवि एक आदर्श पत्नी की थी, तो मेघा की छवि उस बादल की तरह, जो वर्ड्ढा करके दूसरों की प्यास तो बुझाते हैं, परन्तु खुद प्यासे रह जाते हैं.
अनिता के सामने मैं नतमस्तक हो गया.
मेघ किसी एक जगह नहीं ठहरते. यह निरन्तर चलते रहते हैं और बरस कर तपती हुई धरा को तश्प्त करते हैं, मानव जीवन को सुखमय बनाते हैं. उसी प्रकार मेघा भी चंचल और चलायमान थी. वह बहुत अस्थिर थी और ढेर सारा प्यार न केवल बांटना चाहती थी ; बल्कि सबसे पाना भी चाहती थी वह मेरे जीवन में आई और अपने प्यार की वर्ड्ढा से मुझे तश्प्त किया. उतना ही प्यार मेरे भाग्य में लिखा था. अब वह किसी और को अपना प्यार बांट रही थी आप बताइए, क्या उसने मेरे साथ विश्वासघात किया था ? काश वह मेघ-मल्हार होती और मैं उसे आजीवन सुना करता.
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