कि शोरियाँ भावनात्मक रूप से लड़कों की अपेक्षा ज्यादा मजबूत होती हैं ,किन्तु फिर भी वो आधुनिक तकनीकी एवं विज्ञान के विषयों की अपेक्षा परम्पर...
किशोरियाँ भावनात्मक रूप से लड़कों की अपेक्षा ज्यादा मजबूत होती हैं ,किन्तु फिर भी वो आधुनिक तकनीकी एवं विज्ञान के विषयों की अपेक्षा परम्परागत विषयों जैसे कला समूह ,संगीत व साहित्य की ओरे ज्यादा आकर्षित होती हैं। लड़के मानसिक रूप से एकांगी होते हैं जबकि किशोरियाँ बहुआयामी होती हैं। इसके बाद भी वह विज्ञान के क्षेत्र में अल्पसंख्यक हैं।
समस्या प्रारंभिक शिक्षा से शुरू होती है। समाज में ये रूढ़िवादी धारणा व्याप्त है की कुछ विषय सिर्फ पुरुष ही पढ़ सकते हैं। भारतीय समाज विशेष कर ग्रामीण क्षेत्रों में ये धारणा अभी भी बहुत प्रबल रूप से व्याप्त है की लड़कियां विज्ञान एवं गणित पढ़ने के लिए उपयुक्त विद्यार्थी नहीं हैं, बचपन से उनके अवचेतन मन में ये बात बिठा दी जाती है कि गणित व विज्ञान उनके लिए कठिन व अनुपयुक्त विषय हैं व उनके अध्ययन के लिए कला समूह ही उचित विषय है। इस कारण से उनका झुकाव गणित व विज्ञान विषयों से हट जाता है।
हम इस बात पर तो खूब बात करते हैं कि किशोरियां विज्ञान पड़ने के लिया क्यों उत्सुक नहीं हैं लेकिन हमें इस बात पर भी बात करना चाहिए कि हमारे पास ज्ञान व तकनीकी के कौन से साधन मौजूद हैं ?क्या वो साधन किशोरियों को दृष्टि में रखते हुए क्रियान्वित किये जा रहे हैं?
विज्ञान के क्षेत्रों (STEM )में किशोरियों की कम रूचि के कारण --------------
*** समाज,माता पिता व शिक्षकों की ओर से किशोरियों को विज्ञानं पढ़ने के लिया उपयुक्त व पर्याप्त प्रोत्साहन नहीं दिया जाता है ,परिणामस्वरूप किशोरियों के मन में ये हीन भावना घर कर जाती है कि भौतिकी और गणित जैसे विषय में वे लड़कों से अच्छा नहीं कर सकती हैं।
*** समाज,माता पिता व शिक्षकों की ओर से किशोरियों को विज्ञानं पढ़ने के लिया उपयुक्त व पर्याप्त प्रोत्साहन नहीं दिया जाता है ,परिणामस्वरूप किशोरियों के मन में ये हीन भावना घर कर जाती है कि भौतिकी और गणित जैसे विषय में वे लड़कों से अच्छा नहीं कर सकती हैं।
*** भारतीय परिवारों में विशेष कर ग्रामीण क्षेत्रों में किशोरियों की शिक्षा पर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता है एवं उन्हें विज्ञान की जगह घरे वातावरण से सम्बंधित विषयों की ओर धकेला जाता है।
*** किशोरियां सांस्कृतिक एवं सामाजिक रूढ़िवादिता से प्रभावित होकर परम्परागत विषयों की ओर उन्मुख होती हैं।
*** विद्यालय स्तर पर विषयों की चयन की स्वतंत्रता के कारण किशोरियां अपने आसपास के वातावरण एवं संस्कृति से प्रभावित होकर विज्ञान विषयों से इतर अन्य विषयों में अपनी अभिरुचि बना लेती हैं।
*** किशोर हमेशा किशोरियों की विशिष्टता को चुनौती देते हैं विशेष कर विज्ञान के क्षेत्र में किशोरियों की योग्यता को हमेशा संदेह की दृस्टि से देखा जाता है।
*** किशोरियों को कक्षा में शिक्षकों से सही उत्तर नहीं मिलते हैं उनके प्रश्नो के प्रतिउत्तर में कहा जाता है "किताब में देख लो " " बुद्धू हो" या "विज्ञान गंभीर विषय है तुम्हारे बस का नहीं है" आदि।
*** विज्ञान व रिसर्च के क्षेत्र में किशोरियों के लिए काम के क्षेत्र व रहवासी क्षेत्र ज्यादा सुरक्षित नहीं हैं।
*** विज्ञान के क्षेत्र में कैरियर एवं व्यवसाय में भी किशोरियों अथवा महिलाओं को लिंगभेद का सामना करना पड़ता है। उन्हें पुरुष साथी की अपेक्षा काम वेतन, भत्ता,रहवासी सुविधाएं ,आफिस में जगह एवं अवार्ड इत्यादि में कमतर स्थितियां प्राप्त होती हैं।
*** विज्ञान पड़ने वाली किशोरियों को किताबी कीड़ा माना जाता है एवं उनका यह गुण स्वाभाविक महिला चरित्र के विरुद्ध माना जाता है।
*** किशोरियों के अवचेतन मन में ये बात बिठा दी जाती है कि शादी के वाद परिवार संभालना प्रमुख कार्य है अतः विज्ञान की अपेक्षा समाज शास्त्र से जुड़े विषयों का अध्ययन उनके लिए श्रेयष्कर है।
*** किशोरियों में आत्मविश्वास कमी होती है कि वो विज्ञान के क्षेत्र में अपना कैरियर नहीं बना पाएंगीं।
*** भारत में किशोरियों के लिए रोल मॉडल की कमी है। जब किशोरियां अपने परिवार में मा ,चाची ,बुआ, दीदी किसी को भी विज्ञान पढ़ते नहीं देखती तो स्वाभाविक तौर पर उनकी रूचि विज्ञान में नहीं होती है।
भारत में विज्ञान के क्षेत्र में किशोरियों की वास्तविक स्थिति
*** मिडिल स्कूलों में 74 % किशोरियों का झुकाव विज्ञानं की तरफ रहता है जो हायर सेकण्डरी स्तर पर 45 %एवं उच्च शिक्षा में 23 % रह जाता है।
*** 60%किशोरियां विज्ञान के क्षेत्र में अपना केरियर नहीं बनाना चाहती हैं।
***10 % किशोरियों के माता पिता उनको विज्ञानं पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।
*** पूरे भारत में 35 %महिलाएं स्नातक हैं जिसमे 8.5 % ही विज्ञान में स्नातक हैं।
निराशाजनक आंकड़े
आंकड़े दर्शाते हैं कि भारत में किशोरियों का झुकाव विज्ञान की ओर बहुत कम है ,इस कारण से कार्यक्षेत्रों में लिंगानुपात प्रभावित हुआ है।
1. विश्वविद्यालयों में विभिन्न विषयों में बालक व बालिकाओं का अनुपात
विषय | बालक | बालिका |
कला समूह | 9.4 | 10.5 |
जीव विज्ञान | 6.5 | 7.4 |
इंजीनियरिंग | 15.2 | 2.6 |
सामाजिक विज्ञान | 6.1 | 11.7 |
टेक्नोलॉजी | 3.7 | 1.4 |
कम्प्यूटर विज्ञान | 4.3 | 1.2 |
2 -इंडियन नेशनल साइंस अकादमी के सर्वे के अनुसार महिलाओं की संख्या नेशनल लेबोरेटरीज एवं महत्वपूर्ण विश्व विद्यालयों मेंपुरुषों की तुलना में 15 % कम है।
R &D एजेंसियों में महिला वैज्ञानिकों की स्थिति
एजेंसी | पुरुष वैज्ञानिक | महिला वैज्ञानिक | प्रतिशत |
DBT | 456 | 121 | 26.5 |
CSIR | 5526 | 595 | 10.76 |
ICMR | 615 | 168 | 11.8 |
ICAR | 11057 | 1056 | 9.5 |
DST | 147 | 18 | 12.24 |
3 .भारत के वैज्ञानिक संस्थानों एवं विश्व विद्यालयों में पुरुष आधिपत्य है। महिलाएं कनिष्ठ पदों पर हैं वरिष्ठ पदों पर पुरुष संख्या ज्यादा है।
पद | पुरुष | महिला |
असिस्टेंट प्रोफेसर | 45% | 57% |
एसोसिएट प्रोफेसर | 40% | 38% |
प्रोफेसर | 15% | 05% |
उपर्युक्त आंकड़े दर्शाते हैं की किशोरियों का भविष्य विज्ञान के क्षेत्र में बहुत ज्यादा उज्जवल नहीं है। यह स्थितियां प्रतिक्रियात्मक हैं। यह किशोरियों के विज्ञान न पढ़ने का यह नतीजा है, या किशोरियों के विज्ञान में रूचि न होने से ये स्थिति निर्मित हो रही हैं।आकड़ों में समय के साथ सुधार जरूर हुआ होगा लेकिन स्थिति उतनी संतोष जनक अभी भी नहीं है।
किशोरियों को विज्ञान क्यों पढ़ना चाहिए ? कुछ तथ्य
*** जो किशोरियां विज्ञान पढ़ती हैं वे अपनी सहेलियों से जो दूसरा विषय लेकर पढ़ती हैं से 26 % ज्यादा कमाई करती हैं।
*** विज्ञान पढ़ने वाली किशोरियां अन्य विषय पढ़ने वाली किशोरियों की अपेक्षा ज्यादा प्रतिस्पर्धी एवं हार न मानने वाली होती हैं।
*** जो किशोरियां विज्ञान विषय लेती हैं उनकी तार्किक क्षमता एवं कठिन परिस्थितियों से निपटने की क्षमता अन्य किशोरियों की अपेक्षा ज्यादा अच्छी होती है।
*** वैज्ञानिक ढंग से सोचने के कारण अपने व्यक्तित्व एवं वातावरण को अधिक प्रभावशाली बनाती हैं।
*** अपने परिवार, समाज एवं देश के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान देने की क्षमता विज्ञानं पढ़ने वाली किशोरियों में होती है।
किशोरियों को कैसे विज्ञान के प्रति प्रोत्साहित करें ?निराकरण
*** माता पिता एवं समाज को परम्परागत व रूढ़िवादी सोच को बदलना होगा। किशोरियों में बचपन से ही विज्ञानं व गणित के प्रति उत्साह पूर्ण वातावरण तैयार कर उनके अवचेतन मन में यह बात डालनी होगी कि विज्ञानं जीवन के लिए बहुत महत्वपूर्ण विषय है।
*** विद्यालय एवं सामाजिक परिवेश में विज्ञान से सम्बंधित कार्यक्रमों का आयोजन कर विज्ञान ,इंजीनियरिंग ,तकनीकी ,कम्प्यूटर , फार्मेसी या अन्य विज्ञान के विषयों में अग्रणी स्थानीय महिलाओं को आंमत्रित कर सम्बोधन करवाना चाहिए। इस से किशोरियों के सामने उनके रोल मॉडल्स होंगे एवं उनसे प्रभावित होकर विज्ञान के विषयों में उनकी रूचि बढ़ेगी।
*** विद्यालयीन पाठ्यक्रमों को इस प्रकार से प्रारूपित करना चाहिए जिससे किशोरियों को विज्ञानं विषय में सहभागिता के अवसर अधिक मिलें।
*** शिक्षक छात्र एवं शिक्षा के बीच की बहुत महत्वपूर्ण कड़ी है ,विज्ञानं के क्षेत्र में नवाचार से परिचित कराने के लिए शिक्षक प्रशिक्षण अत्यंत महत्वपूर्ण है। प्रशिक्षण के दौरान शिक्षकों को किशोरियों की विज्ञान के प्रति अभिरुचि बढ़ाने की तकनीकों से परिचित करवाया जाना चाहिए।
*** प्राथमिक स्तर पर साइंस कॉम्पिटिशन ,साइंस फेयर ,विज्ञानं प्रश्नोत्तरी पाठ्यक्रम में अनिवार्य घोषित की जानी चाहिए ताकि बच्चियों की अभिरुचि विज्ञानं के प्रति बढ़ सके एवं प्रोत्साहन के लिए उनको ट्राफियां ,प्रमाण पत्र एवं अवार्ड देने चाहिए।
*** वर्कशॉप का आयोजन कर किशोरियों को विज्ञानं के अनेक रहस्यों को सरल ढंग से समझाना चाहिए। सरल मशीनो की क्रियाविधि एवं सञ्चालन की जानकारी से उनके मन में विज्ञानं के प्रति उत्सुकता जाग्रत होगी।
*** रसायन के अनेक चमत्कारों का विश्लेषण उनके सामने करना चाहिए |रासायनिक अभिक्रियाओं के जादू देख कर उनके मन में विज्ञान के प्रति अभी रूचि जाग्रत होगी।
*** सरल प्रोजेक्ट जैसे *मिश्रण को अलग करना *बिजली के मेंढक का फुदकना *रोबोट का सञ्चालन *केन्डी वाटर फॉल *दूध का प्लास्टिक बनना *LED नृत्य ग्लोब आदि का प्रदर्शन निश्चित ही उनके मन में विज्ञानं के प्रति अभिरुचि पैदा करेगा।
*** विज्ञानं से सम्बंधित आसपास के कल कारखाने ,बांध ,बिजली बनाने वाली इकाइयां ,पवन चक्कियां ,एवं फैक्ट्रियों का भ्रमण करना चाहिए ताकि वे विज्ञानं के रहस्य एवं उसकी उपयोगिता को समझ सकें। इन जगहों पर काम करने वाली महिलाओं से भी उनकी मुलाक़ात करवाना चाहिए जिससे उनके मन में विश्वास बन सके की वे भी इन क्षेत्रों में अपनी सहभागिता देकर केरियर बना सकती हैं।
वैश्वीकरण के इस दौर में समाज, परिवार और तंत्र की मानसिकता में बदलाव आये हैं बा पहले की अपेक्षा अधिक संख्या में किशोरियां STEM के क्षेत्र में भागीदार बनी हैं लेकिन ग्रामीण क्षेत्र में अभी भी बहुत असंतुलन है। शिक्षा तक पहुँच ही इसका हल नहीं है इसके लिए बहुआयामी योजनाओं के बनाने की एवं धरातल पर उनके क्रियान्वयन की आवश्कता है। माता पिता को अपनी मानसिकता में परिवर्तन लाना होगा उन्हें परिवार में किशोरियों के प्रति पक्षपातपूर्ण व्यवहार बंद करने के लिए शिक्षकों ,समाज व तंत्र को सहयोग करना होगा ताकि अधिक से अधिक किशोरियों को इस क्षेत्र में आने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके।
2016-01-16 22:30 GMT+05:30 Sushil Sharma <archanasharma891@gmail.com>:
रोटी कमाने के लिया भटकता बचपन
सुशील कुमार शर्मा
( वरिष्ठ अध्यापक)
गाडरवारा
भारत में जनगणनाओं के आधार पर विभिन्न बाल श्रमिकों के आंकड़े निम्नानुसार हैं।
1971 -1. 07 करोड़
1981 -1. 36 करोड़
1991 -1. 12 करोड़
2001-1. 26 करोड़
2011 -1. 01 करोड़
यह आंकड़े सरकारी सर्वे के आंकड़े है अन्य सर्वेक्षणों के आंकड़े और भी भयावह हो सकते हैं। कुल बालमजदूरों का 45 % भाग मुख्य श्रमिक हैं अर्थात ये वर्ष में 183 दिनों से ज्यादा मजदूरी करते हैं जबकि 55 % बालश्रमिक आंशिक श्रमिक हैं जो 183 दिनों से कम दिनों में मजदूरीकरते हैं। 2011 की जनगणना से पता चला है कि बालश्रम के आलवा एक ऐसा समूह भी है जो श्रम को तलाश रहा है। 5 से 9 वर्ष के बच्चों का ऐसा समूह जिसे काम की तलाश है 2001 में ऐसे 8. 85 लाख बच्चे थे जो 2011 में बढ़ कर 15. 72 लाख हो गए हैं।
बालश्रम की अगर व्याख्या की जावे तो पांच से चौदह वर्ष की उम्र बच्चे जब आजीविका कमाने के नियोजित हैं तो वह बालश्रम कहलाता है।अधिकारों का खुला हनन है। कम उम्र में पैसे कमाने के लिए श्रम करने से बच्चों के मन ,शरीर और आत्मा पर बुरे प्रभाव पड़ते हैं।
1. बच्चे अपने शिक्षा के अधिकार से वंचित हो जाते हैं।
2. बच्चे अपने बचपन ,खेल एवं स्वास्थ्य के अधिकार से वंचित हो जाते हैं।
3. बच्चे अपने स्वतंत्र मानसिक,शारीरक ,मनोवैज्ञानिक एवं आध्यात्मिक अधिकार से वंचित हो जाते हैं।
4. गरीबी अशिक्षा को बढ़ावा देता है।
5. बालश्रम से बच्चे आगे जाकर अकुशल मजदूर बने रहते हैं एवं अपनी सारी जिंदगी गरीबी में गुजारते हैं।
अतः हम कह सकते हैं की बालश्रम मनुष्यके लिए अभिशाप है। इससे बच्चों की जिंदगी नारकीय बन जाती है एवं उनके सुनहरे भविष्य की सारी संभावनाओं पर पूर्ण विराम लग जाता है। ऐसे बच्चों की सारी जिंदगी सड़क पर गरीबी में गुजर जाती है उन्हें अपने श्रम का कम पैसा ,कार्य करने की ख़राब स्थितियां एवं अपमानजनक जीवन जीने को मजबूर होना पड़ता है। उनका सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक विकास रुक जाता है और सारी उम्र कम मजदूरी में बितानी पड़ती है।
बाल श्रम के कारण :-बाल श्रम के कई कारण हैं जिनमे प्रमुख कारण निम्न हैं।
1. बाल श्रमिक बड़े मजदूरों की अपेक्षा कम मजदूरी में मिलते हैं एवं श्रम के मामले में बराबर का कार्य करते हैं।
2. इनको नियंत्रित करना आसान होता है।
3. बालश्रमिक बनने का मुख्य कारन अशिक्षा भी है।
4. घर में माँ बाप का बेरोजगार या बीमार रहना भी बालमजदूरी का प्रमुख कारण है।
5. माता पिता या पालक का शराबी या मादक द्रव्यों का सेवन बच्चों को बाल मजदूरी की ओर ले जाता है।
6. परिवार का बेघर होना या परिवार का घुमन्तु होना बाल मजदूरी को बढ़ावा देता है।
7. घर के सदस्यों या माता पिता के बीच झगड़े बच्चों को बालमजदूरी के लिए प्रेरित करते हैं।
बालश्रमिकों की सुरक्षा के लिए संवैधानिक ढांचा :-भारत के संविधान में ऐसे कई प्रावधान है जो बच्चों के हित के लिए बनाये गयें हैं। भारत के संविधान में सभी नागरिकों के सामान बच्चों को भी न्याय ,सामाजिक,आर्थिक,एवं राजनैतिक स्वतंत्रता ,विचारों की स्वतंत्रता ,विश्वास एवं पूजा का अधिकार है। राइट टू एजुकेशन अधिनियम के अनुसार 6 से 14 वर्ष के बच्चों के लिए अनिवार्य शिक्षा की बात कही गई है। बंधुआ मजदूरी ,14 वर्ष से कम उम्र बच्चों को खतरनाक नौकरियों में रोक का प्रावधान है। संविधान में राज्यों को निर्देशित किया गया है कि बच्चों को सामान अवसर ,स्वतंत्रता एवं सम्मान का जीवन जीने के अवसर प्रदान किया जाये। संविधान में निम्न अधिनियमों में बाल श्रम के विरुद्ध प्रावधान हैं।
1. फैक्टरी एक्ट 1948 की धारा 67 के अनुसार बच्चों को फैक्टरियों में तभी नियोजित किया जा सकता जब वे किसी प्रमाणित चिकित्सक का प्रमाण पत्र प्रस्तुत करेंगे की उस फैक्टरी में काम करने से बच्चे के स्वास्थ्य पर कोई प्रतिकूल असर नहीं पड़ेगा।
2. बालश्रम निषेध अधिनियम 1986 के कानून के अनुसार 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को 13 पेशे एवं 57 प्रक्रियाओं जो कि बच्चों के जीवन एवं स्वास्थ्य के लिए हितकर नहीं हैं में नियोजन के लिए निषिद्ध माने गए हैं। बच्चों की कार्य अवधि 4. 30 घंटे तय की गई है एवं रात को उनके काम पर प्रतिबन्ध रहेगा।
3. माइंस अधिनियम 1952 की धारा 40 में स्पष्ट उल्लेख है कि कोई भी बच्चा जिसकी उम्र 18 वर्ष से कम है खदानों में नियोजित नहीं किया जा सकता है।
4. मर्चेंट शिपिंग अधिनियम 1958 की धारा 109 के अनुसार 15 वर्ष से काम उम्र बच्चों को बंदरगाहों पर या समुद्री यात्राओं के किसी भी काम पर नियोजित नहीं किया जा सकता है।
5. मोटर ट्रांसपोर्ट एक्ट 1961 की धारा 21 के अनुसार कोई भी आवश्यक मोटर ट्रांसपोर्ट सम्बन्धी कार्य के लिए बच्चों को नियोजित नहीं किया जा सकता है।
वर्ष 1979 में बालमजदूरी से निजात दिलाने के लिए गुरुपाद स्वामी समिति का गठन किया गया था। समिति ने समस्या का विस्तार से अध्ययन किया एवं अपनी सिफारिशें प्रस्तुत किन। समिति ने सुझाव दिया कि खतरनाक क्षेत्रों में बाल मजदूरी पर प्रतिबन्ध लगाया जाए एवं अन्य क्षेत्रों में कार्य के स्तर एवं कार्य क्षेत्रों में सुविधाओं का विस्तार किया जावे। गुरुपाद स्वामी समिति की सिफारिशों के आधार पर बालमजदूरी (प्रतिबन्ध एवं नियमन)अधिनियम 1986 लागु किया गया। इस अधिनियम के अनुसार विशिष्टिकृत खतरनाक व्यवसायों एवं प्रक्रियाओं में बच्चों के रोजगार पर रोक लगाई गई है। इस कानून के अंतर्गत बालश्रम तकनीकी सलाहकार समितिके आधार पर जोखिम भरे व्यवसायों एवं प्रक्रियाओं की सूचि का विस्तारीकरण किया गया है जो निम्नानुसार है।
बालश्रमिकों के नियोजन के लिए निषिद्ध पेशे
1. रेल्वे में सिंडर उठाना एवं भवन निर्माण करना।
2. रेल्वे ट्रेनों में केटरिंग एवं वेंडर का कार्य।
3. रेल्वे ट्रेक्स के बीच कार्य करना।
4. बंदरगाहों में नियोजन।
5. पटाखों का खरीदना या बेचना।
6. कत्लगाहों में नियोजन।
7. ऑटोमोबाइल वर्कशॉप एवं गेराज।
8. भट्टियों में काम करना।
9. विषैले रसायनों ,अतिज्वलनशील पदार्थों एवं विस्फोटकों के धंधों में नियोजन।
10 हैंडलूम एवं पावरलूम उद्योग।
11. माइंस (अंडरग्राउंड एवं अंडरवाटर )कालरीज में नियोजन।
12 . प्लास्टिक एवं फाइबर गिलास उद्योग।
13. घरेलू नौकर के रूप में नियोजन।
14 . ढावा ,होटल,रेस्ट्रारेन्ट ,रिज़ॉर्ट एवं मनोरंजन स्थलों पर नियोजन।
15. पानी में छलांग लगाने वाली जगहों पर नियोजन।
16. सर्कस में नियोजन।
17. हाथियों एवं ख़तरनाक जंगली जानवरों के देख रेख के लिए नियोजन।
18. सभी सरकारी विभागों में नियोजन।
इसके अलावा 64 प्रक्रियायें हैं जिनमें बालश्रम का नियोजन निषिद्ध है। सिलिका उद्योग ,वेयर हाउस ,रासायनिक उद्योग ,शराब उद्योग,खाद्य प्रसंस्करण ,मशीन से मछली पकड़ना ,डायमंड ग्राइंडिंग ,रंगरेज,कोयला खेल सामान बनाना ,तेल रिफायनरी ,कागज उद्योग ,विषैले उत्पादों का उद्योग ,कृषि उपकरण उद्योग ,वर्तन निर्माण,रत्न उद्योग ,चमड़ा उद्योग,ताले बनाना ,सीमेंट से निर्माण के सभी उद्योग ,अगरबत्ती बनाना ,माचिस,पटाखा ,माइका ,साबुन निर्माण ,ऊन उद्योग ,भवन निर्माण,स्लेट पेन्सिल एवं बीड़ी उद्योग प्रमुख हैं।
विभिन्न उद्योगों में काम करने वाले बालश्रमिक किसी न किसी बीमारी से ग्रसित हैं। निरंतर बुरी परिस्थितियों में काम करने ,कुपोषण ,पत्थर धुल कांच आदि के कणों के फेफड़ों में जम जाने,अधिक तापमान में घंटों काम करने एवं खतरनाक रसायनों के संपर्क में रहने के तीन चार वर्षों में ही विभिन्न बीमारियां इन्हें अपनी गिरफ्त में ले लेती हैं। तपेदिक,अस्थमा,त्वचारोग ,नेत्र रोग स्नायुरोग एवं विकलांगता के चलते 20 वर्ष के होते होते ये पुनः बेरोजगार हो जाते हैं।
बच्चे किसी भी देश ,समाज एवं परिवार के लिए महत्वपूर्ण संपत्ति होते हैं जिनकी समुचित सुरक्षा ,पालन पोषण,शिक्षाएवं विकास का दायित्व राष्ट्र एवं समुदाय का होता है। योजनाओं ,कल्याणकारी कार्यक्रमों ,क़ानून एवं प्रशासनिक गतिविधियों के चलते भी विगत 6 दशकों में भारतीय बच्चे संकट एवं कष्ट के दौर से गुजर रहे हैं। उनके अभिभावक उन्हें उपेक्षित करते हैं उनके संरक्षक उनका शोषण करते हैं एवं उन्हें रोजगार देनेवाले उनका लैंगिक शोषण करते हैं। बालश्रम बच्चों के शिक्षा एवं विकास के विकल्पों को ही नहीं छीनता है बल्कि इससे परिवार के विकल्प भी समाप्त होने लगते हैं। इस स्थिति में परिवार बालश्रम पर आश्रित हो जाता है। एक बच्चा देखता है की उसका बाप या पालक शराब पीकर माँ को मरता है और बीमार माँ असहाय होकर उसकी और देखती है तो उसका बचपना श्रम की भेंट चढ़ जाता है। वह घर का ख़र्च एवं बीमार माँ की दवाई हेतु अपना बचपन बेच देता है। बच्चों को अपने व्यक्तित्व के विकास के लिए हमारी परतंत्रता से मुक्त होना चाहिए। उस परतंत्रता से जहाँ हम यह तय करते हैं कि उन्हें क्या करना चाहिए और क्या नहीं।
COMMENTS