जन वाचन आंदोलन बाल पुस्तकमाला "किताबों में चिड़ियाँ चहचहाती हैं किताबों में खेतियाँ लहलहाती हैं किताबों में झरने गुनगुनाते हैं परियो...
जन वाचन आंदोलन
बाल पुस्तकमाला
"किताबों में चिड़ियाँ चहचहाती हैं
किताबों में खेतियाँ लहलहाती हैं
किताबों में झरने गुनगुनाते हैं
परियों के किस्से सुनाते हैं
किताबों में रॉकेट का राज है
किताबों में साइंस की आवाछा है
किताबों में ज्ञान की भरमार है
क्या तुम इस संसार में नहीं जाना चाहोगे?
किताबें कुछ कहना चाहती हैं
तुम्हारे पास रहना चाहती हैं"
- सफदर हाश्मी
यह एक दिलचस्प कहानी है।
शैतान चूहे, कंजूस आटा चक्की के मालिक
को चकमा देने में सफल होते हैं।
चूहे अपनी सूझ-बूझ से
एक चितकबरी बिल्ली की जान बचाते हैं।
बाद में बिल्ली, चूहों की दुश्मन की बजाए,
उनकी आजीवन दोस्त बन जाती है।
शैतान
चूहे
जॉन योमैन
भारत ज्ञान विज्ञान समिति
शैतान चूहेः जॉन योमैन
अनुवादः अरविन्द गुप्ता
बहुत पहले की बात है। पहाड़ी के ऊपर एक पुरानी
पवनचक्की थी, जो आटा पीसने का काम करती थी।
कभी चक्की बहुत अच्छी हालत में थी और बढ़िया काम
करती थी। परंतु फिर इस चक्की को एक नए मालिक ने
खरीद लिया। चक्की का नया मालिक बड़ा ही गुस्सैल
और कंजूस था। वो चक्की की बिल्कुल देखभाल नहीं
करता था और उसकी मरम्मत पर कुछ भी खर्च नहीं
करता था। एक बात चक्की के मालिक को बहुत परेशान
करती थी। आटे की चक्की में हजारों चूहे थे जो
रात-दिन उसकी नाक में दम किए रहते थे।
इन सैकड़ो-हजारों चूहों को उस पुरानी चक्की में बड़ा
मछाा आता था। चक्की की चरमराती मशीनों के घोर
से चूहों को कोई फर्क नहीं पड़ता था। वे चक्की के
बड़े गोल पत्थर पर बैठकर गोल-गोल घूमने वाले झूले
यानि मेरी-गो-राउंड आनंद लेते थे।
चूहे घूमती हुई मोटी बल्लियों
पर नाचते और संतुलन के खेल
खेलते थे।
चक्की का पिसा आटा एक ढलवां नाली से लुढ़क कर
नीचे बोरों में गिरता था। चूहे इस नाली में, ऊपर से
नीचे फिसलते थे और स्लाइड का मजा लेते थे।
चूहे इस पुरानी आटा चक्की से बहुत खुश थे। अक्सर रात
के समय जब पूरा चांद आसमान में खिल उठता था, जब
पवनचक्की घूमना बंद कर देती थी और सारी मशीनें
चरमराना बंद कर देती थीं, उस समय सारे चूहे अपने लीडर
के चारों ओर जमा होते थे। उनका लीडर एक सफेद रंग का
चूहा था। वो पालतू जानवर बेचने वाली एक दुकान से
भागकर आया था। सारे चूहे इकट्ठे होकर गाने-गाते, पहेलियां
बूझते, एक-दूसरे को चुटकुले सुनाते और खूब हंसी-मछााक
करते।
चूहे बड़े होशियार थे। चक्की के मालिक को देखते ही
वे झट से इधर-उधर छिप जाते थे। पर चक्की के
मालिक को चूहों के पंजों के निशान आटे में साफ
नछार आते थे। आटे के सभी बोरे चूहों के तेछा दांतों से
कुतरे हुए होते थे। चक्की के मालिक को अंधेरे में
चारों ओर से चूहों के गाने की आवाछों सुनाई देती थीं।
चूहों से निबटने और उनके
आतंक से छुटकारा पाने के लिए
चक्की के मालिक ने एक मोटी,
चितकबरी बिल्ली खरीदी।
परंतु चक्की का मालिक था तो एकदम गुस्सैल और कंजूस।
वो बिल्ली को कुछ भी खाने को नहीं देता था और
बात-बात पर उसे दुत्कारता और ठोकर मारता था। इसका
नतीछाा यह हुआ कि बेचारी बिल्ली एकदम कमछाोर हो गई
और बहुत दुखी रहने लगी। इस कमछाोरी की हालत में
बिल्ली उन तेछा-तर्रार चूहों में
से एक को भी नहीं
पकड़ पाई।
चूहों को उस उदास, कमछाोर, दुखी बिल्ली को देखकर
बड़ी दया आई। एक दिन सफेद चूहे ने एक बैठक
बुलाई। "बिल्ली को कसरत की सख़्त छारूरत है," उसने
कहा। "चूहों को अब थोड़ा धीमे भागना चाहिए, जिससे
कि बिल्ली को उनका पीछा करने में कुछ आसानी हो।"
"इससे क्या फायदा होगा?" एक मोटे, गंजे चूहे ने पूछा।
"इससे बिल्ली चुस्त बनेगी और खुश रहेगी- और फिर
हम लोग बिल्ली के साथ दिनभर मछोदार खेल खेलेंगे,"
सफेद चूहे ने किलकारी भरते हुए कहा।
यह सुनकर सभी चूहे खिलखिलाकर हंस पड़े।
उसके बाद सारे चूहों ने मिलकर बिल्ली की नीरस
छिांदगी में एक नया उत्साह भरा। कभी-कभी चूहे
पवनचक्की के घूमते हुए पंखों पर बैठ जाते। जैसे ही वे
बिल्ली की प्रिय खिड़की के सामने से गुछारते वे उसे
आंख मारते और बिल्ली की ओर गंदे-गंदे मुंह बनाते।
कभी चूहे ऊपर की छत से बिल्ली पर आटा फेंकते।
कभी-कभी चूहों के छोटे बच्चे बिल्ली के सामने आ जाते
और उसे चिढ़ाते जैसे, वो कह रहे हों, "छारा हमें पकड़कर
तो देखो।" जैसे ही बिल्ली उनकी ओर लपकती, वे डर से
कांपने लगते और थरथराने की ऍक्टिंग करते। इससे बिल्ली
को बड़े गर्व का अहसास होता और उसका मनोबल बढ़ता।
धीरे-धीरे चूहों की कोशिशें रंग लाने लगी। बिल्ली पर
इनका असर साफ नछार आने लगा। अब बिल्ली खुद
अपनी अधिक इछजत करने लगी थी। एक दिन सफेद
चूहे ने बिल्ली को एक टूटे हुए आइने में अपना चेहरा
निहारते हुए और कुछ अभ्यास करते हुए देखा।
बिल्ली चूहे पकड़ने का अभ्यास कर रही थी। बिल्ली पहले
एक पेंचकस की ओर लपकी- जैसे वो कोई चूहा हो।
फिर उसने पेंचकस को कसकर दबोचा।
फिर बिल्ली इस अदा में बैठी जैसे कि चक्की का
मालिक उसे शाबाशी दे रहा हो।
यह सब देखकर सफेद चूहे को बड़ा मजा आया और वो
अपनी बुलंद आवाज में चिल्लाया, "बाप रे! यह बिल्ली
तो बेहद डरावनी है! उसे देखकर ही मेरे होश उड़ गए!"
यह कहकर सफेद चूहा वहां से भाग लिया।
जैसे-जैसे चितकबरी बिल्ली की हालत सुधरी, वैसे-वैसे चूहे
और भी खुश हुए। दिनभर चूहों को नियंत्रित रखने के बाद
अब रात को बिल्ली को गहरी नींद आती। जब बिल्ली गहरी
नींद सोती तब सारे चूहे इकट्ठे होकर जश्न मनाते। छोटे-छोटे
चूहे सीढ़ी पर ऊपर-नीचे कूदते, धमा-चौकड़ी करते और
खूब घोर मचाते। बड़े चूहे चक्की के मछादूरों के लटके
कपड़े की बड़ी-बड़ी जेबों में बैठकर गप्पे लगाते। वे कहते,
"देखो अब छामाना कितना बदल गया है। हमारे बचपन की
तुलना में अब के हालात कितने बेहतर हैं।"
एक दिन सफेद चूहा अपने दो दोस्तों के
साथ मक्का के बोरों के ऊपर बैठकर,
अखबार को छोटे-छोटे टुकड़ों में कुतर रहा
था। तभी अचानक उसे नीचे से बड़े जोर
की आवाज सुनाई दी। उसने देखा कि
चक्की का मालिक चितकबरी बिल्ली की
गर्दन पकड़े उसे हवा में उठाए हुए हैं और
उस पर जोर से चीख-चिल्ला रहा है।
पवनचक्की की घर्र-घर्र की आवाज में भी
वो चक्की मालिक के इन शब्दों को सुन
पाया। "कैसी बरबाद बिल्ली है! जब से ये
नासपीटी यहां आई है, चूहों की तादाद और
शैतानी और बढ़ी है। चलो ठीक है। आज
रात को मैं इस बिल्ली को बोरे में बंद
करके नदी में फेंक दूंगा।"
यह सुनकर सारे चूहे बड़े परेशान हुए और उन्होंने इसका
कोई हल निकालने के लिए सफेद चूहे से प्रार्थना की।
हालात कुछ ठीक होते ही, सफेद चूहा, बाकी चूहों को
लेकर बाहर के उस कमरे में पहुंचा जहां चक्की का मालिक
बिल्ली को लेकर गया था। बेचारी चितकबरी बिल्ली को
उसने एक बोरे में ठूंसकर, बोरे को कसकर बांध दिया था।
सफेद चूहा बोरे के ऊपर चढ़ा और बिल्ली के कान के पास
जाकर कुछ फुसफुसाया।
"सारे चूहे," उसने बिल्ली से कहा, "तुमसे ये पूछना चाहते
हैं-वैसे तो तुम हमारी जानी दुश्मन हो, परंतु हम नहीं चाहते
कि तुम नदी में डूबकर बेमौत मरो। हम तुम्हारी यहां से भाग
निकलने में मदद कर सकते हैं। परंतु उसके बाद तुम्हें हमारा
दोस्त बनाने का वादा करना पड़ेगा।"
बोरे के अंदर से चितकबरी बिल्ली ने डर से कांपते हुए हामी
भरी।
"ठीक है," सफेद चूहे ने कहा और उसने बाकी चूहों को
आदेश दिए।
सफेद चूहे के साथ, चूहों का एक दस्ता हॉल में
गया। वहां पर हुक से चक्की की मालकिन का ऊनी
फर का बना मुलायम मफलर लटका हुआ था। चूहों
ने हुक पर से मफलर को उतारा।
फिर वो मफलर को अपने सिरों पर लादकर बाहर के
कमरे में आए।
उनको वापिस पहुंचने तक चूहों के एक दूसरे समूह
ने, उस रस्सी को कुतर डाला था जिससे बंधा हुआ
था। बिल्ली बोरे के बाहर निकल आई थी और सुरक्षा
की खुशी में हांफ रही थी।
थोरी सी देर में चूहों ने मफलर में ढेर सारा पुआल भर
दिया। कुछ दिलेर चूहे बोरे को भारी बनाने के लिए
कहीं से एक घोड़े की नाल उठा लाए।
इस सब सामान को उन्होंने बोरे में भर दिया और फिर
रस्सी से कसकर बांध दिया। "बेवकूफ चक्की का
मालिक बोरे के फर्क को नहीं पकड़ पाएगा," सफेद
चूहे ने हंसते हुए कहा।
रात को चक्की के मालिक ने बोरे को उठाया और उसे
लेकर नदी की ओर चला। सैकड़ों उत्सुक चूहे भी
उसके पीछे-पीछे चले। परंतु इसका कोई आभास
चक्की के मालिक को नहीं हुआ।
सारे चूहे पुल की दीवार पर बैठकर टकटकी
लगाए देखते रहे। चक्की मालिक ने बोरे को पूरे
छाोर के साथ नदी में फेंका। "चलो, इस नासपीटी
बिल्ली का मुंह मुझे अब दुबारा कभी नहीं
देखना पड़ेगा," चक्की मालिक ने झिड़कते हुए
कहा। उसके बाद वो घर की ओर चला। चूहे
भी उसके पीछे-पीछे हो लिए।
चक्की के मालिक ने निर्णय लिया कि
अब वो कभी भी बिल्ली नहीं पालेगा।
और उसने सच में कभी कोई दूसरी
बिल्ली नहीं खरीदी। उसे इस बात का
बिल्कुल पता नहीं था कि वो चितकबरी
बिल्ली न केवल छिांदा थी परंतु पहले से
कहीं अधिक खुश भी थी। वो बिल्ली
अब पवनचक्की की सबसे ऊपरी मंछिाल
पर चूहों के साथ रहती थी। चूहे उसके
खाने के लिए इधर-उधर से अनेकों
स्वादिष्ट पकवान ले आते थे।
बिल्ली अब दिन भर चूहों के साथ
बिल्ली-चूहों के खेल खेला करती
थी।
(अनुमति से साभार प्रकाशित)
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