मनुष्य क्यों ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना है, इसका अनुभव हाल ही में कुछ ऑस्कर पुरस्कार प्राप्त करने वाली फिल्म ‘‘द रेवीनेंट’’ को देखकर...
मनुष्य क्यों ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना है, इसका अनुभव हाल ही में कुछ ऑस्कर पुरस्कार प्राप्त करने वाली फिल्म ‘‘द रेवीनेंट’’ को देखकर सहज ही हो जाता है। यह फिल्म आपको एक ऐसे लोक में ले जाती है, जो आज की दुनिया से जुदा सा होते हुए भी पहचाना सा है। दरअसल यह कथा उस काल की है जब मनुष्य शनै:-शनै: सभ्य हो रहा था। हालाकि इस बात पर बहस की जा सकती है, कि आज की सभ्यता को मनुष्य का सभ्य होना कहा जाये या वहशीपन।
अलेजेन्द्रो द्वारा निर्देशित और लियोनार्दो द कैप्रियो द्वारा अभिनीत इस फिल्म का कथानक सन 1823 के आसपास का है तथा उत्तरी अमेरिका महाद्वीप स्थित मिसीसिपी नदी के घने-पर्वतीय जंगलों में अमेरिकी शिकारी समूहों और उस इलाके की मूल जनजातियों के बीच हुए खूनी संघर्षों पर केन्द्रित है। परंतु इस फिल्म का संदेश यहीं तक सीमित नहीं है। जिस तरह से इसे फिल्म को रचा गया है, वह इसे बहुआयामी बना देता है। इसका फिल्मांकन आपको भीतर तक झकझोरता भी है, डराता भी है और संवेदनाओं में डुबो भी देता है। इसमें डूबते-उतराते हुए आप ऐसे अनेक पहलुओं से दो-चार होते हैं जो आपको पूरी तरह बांधे रखते हैं और आप अपलक स्वयं को इस फिल्म का हिस्सा पाते हैं।
यह कहानी है मनुष्य की श्रेष्ठता की, उसकी जिजीविषा की, पिता-पुत्र के परस्पर नैसर्गिक प्रेम की, मनुष्य के स्वार्थ और लालच की, उसके मन में पल रही बदले की आग की। यह कहानी है प्रकृति के सौंदर्य और उसकी संहारक क्षमता की, मनुष्य और प्रकृति के सह-अस्तित्व की, जनजातियों और तथाकथित विकसित समाजों के मध्य मूल्यों के अंतर और उनके संघर्ष की। जहां एक ओर यह कहानी है स्त्री के प्रति पुरुष के वहशियाने रवैये की, वहीं दूसरी ओर स्त्री के प्रेम और कोमल स्पर्श के लिए तड़पते पुरुष की। यह कहानी है बाजार की निर्ममता और प्राकृतिक संसाधनों के दोहन की।................ यहां तक कि ईसाई धर्म की एक प्रमुख मान्यता ‘Revenge is in the Creator's hands’ यानि ‘बदला लेना ईश्वर के हाथ में है’ को भी इस फिल्म में विशेष रूप से चित्रित किया गया है।
यह फिल्म मूलत: एक अमेरिकी निवासी शिकारी हग ग्लास (1783-1833) के जीवन और उसके अनुभवों पर अमेरिकी उपन्यासकार माइकल पंक के उपन्यास ‘द रेवनेंट’ पर आधारित है। इस तरह यह फिल्म काल्पनिक नहीं है। फिल्म में दिखाया गया है कि कैप्टन ऐंड्रयू हेनरी के नेतृत्व में शिकारियों का समूह, जिनके पास हथियार के नाम पर भरमार बंदूक, गन पाउडर और खंजर ही हैं, उत्तरी अमेरिका की मिसीसिपी नदी के उदगम क्षेत्र के आसपास के घने जंगलों में जानवरों की खालों और फर को हासिल करने के लिए गया हुआ है। इस फिल्म में मिसीसिपी और उसके इलाके के बेजोड़ दृश्यों का फिल्मांकन प्राकृतिक रोशनी में ही किया गया है। फिल्म का नायक हग ग्लास और उसका किशोरवय पुत्र ‘हॉक’, जो कि उसकी मृत जनजातीय पत्नी की एकमात्र निशानी है, भी इस समूह का हिस्सा हैं। पर्वतीय जंगलों में पाये जाने वाले जानवरों की खालों और फर को हासिल करना ही उनके जीवन का परम लक्ष्य है। इस शिकारी समूह पर स्थानीय अरिकारा जनजाति के आदिवासी भीषण हमला करते हैं। आदिवासी इसलिए भी विशेष रूप से नाराज़ हैं क्योंकि उनके मुखिया की लड़की को ऐसा ही कोई शिकारी समूह दैहिक शोषण के लिए अगवा कर ले गया है। इस भीषण हिंसक हमले में 30 से ज्यादा शिकारी मारे जाते हैं तथा हग ग्लास, उसका पुत्र, कैप्टेन हेनरी तथा कुछ अन्य शिकारी जैसे – तैसे बच निकलने में कामयाब होते हैं। अनुभवी हग ग्लास उन बचे खुचे 09 शिकारियों से कहता है कि नाव के रास्ते भागने के बजाय पैदल चलकर बेस कैंप फोर्ट कायोबा सकैंप े के लिए छोउोउ़शुरू कद तक पहुंचना अधिक सुरक्षित है। वे दुर्गम पहाड़ी रास्ते पर खालों के बोझ को उठाये हुए अपनी यात्रा आरंभ करते हैं। दुर्भाग्य से हग ग्लास पर एक जंगली क्रोधित मादा भालू भीषण हमला कर देती है तथा उसे चीरफाड़ कर मरणासन्न कर देती है परंतु हग ग्लास उसे भी मारने में कामयाब हो जाता है। इस दृश्य का फिल्मांकन इतना सजीव है कि कमजोर हृदय के लोग दहल जायेंगे। शेष सदस्य हग ग्लास को स्ट्रेचर पर लेकर फिर चढ़ाई शुरू कर देते हैं, हालाकि मरणासन्न ग्लास को ढोना एक अन्य शिकारी फिट्जिराल्ड को बिल्कुल नहीं भाता। वह अन्य कैप्टन और सदस्यों से उसे मरने के लिए छोड़ देने के लिए कहता है ताकि शेष लोग सकुशल बेसकैंप पहुंच सकें। लेकिन धार्मिक विचारों वाला कैप्टन उसे घायल अवस्था में जंगल में छोड़ने को तैयार नहीं है। वह अन्य शिकारियों को अतिरिक्त धन देने का प्रस्ताव देता है तो ग्लास का पुत्र हॉक, इसका मित्र जिम ब्रिडजर और लालची फिट्जिराल्ड तैयार हो जाते हैं। कैप्टन यह कहकर आगे निकल जाता है कि वे ग्लास की मौत होने पर बाकायदा उसका अंतिम संस्कार करके ही लौटें।
जिस समय ब्रिडजर पानी लेने के लिए गया होता है, फिट्जिराल्ड मरणासन्न और लाचार ग्लास को मारने का प्रयत्न करता है परंतु हॉक देख लेता है। वह अपने पिता को बचाता है परंतु फिट्जिराल्ड उसे ही मार देता है। लाचार ग्लास अपने प्रिय पुत्र को मरते हुए देखता है और इस दृश्य में लियोनार्डो द कैप्रियो ने बेजोड़ अभिनय किया है। ब्रिडजर के लौटने पर वह मनगढंत कहानी सुना कर यह कहता है कि हॉक गायब है तथा आदिवासी जल्द ही उन लोगों को खत्म कर देंगे। वह एक कब्र खोदकर ग्लास को जिंदा ही दफना देना चाहता है परंतु दयालु ब्रिडजर उसे अपने हाल पर ही छोड़ देने का अनुरोध करता है। वे दोनों वहां से चले जाते हैं।
मरणासन्न और जख्मी ग्लास किसी तरह घिसट कर पास ही मृत पड़े अपने पुत्र हॉक के पास पहुंचता है तथा उसके सीने पर सिर रखकर उससे कहता है कि ‘मैं अब भी तुम्हारे पास हूं’। परंतु वह जीवित नहीं बचता। अब ग्लास के जीने का एक ही उद्देश्य है फिट्जिराल्ड को दंड देना। बदले की यह आग उसे नयी ऊर्जा देती है तथा वह कई दिनों तक घिसटता रहता है। अपने जीवन के उद्देश्य को हासिल करने के लिए वह स्वस्थ भी होने लगता है। इस दौरान खौफनाक जंगल में अपने अस्तित्व को बचाये रखने के लिए वह मृत पशुओं को मांस खाता है। इस जगह पर फिल्म हमें बताती है कि संकट और भूख के समक्ष आपकी सारी मान्यतायें धरी की धरी रह जाती हैं। जंगल में फंसा इंसान जानवरों की तरह आचरण करके ही जीवित रह सकता है।
अपने मार्ग में उसकी मुलाकात एक अकेले आदिवासी ‘हिकक’ से होती है जो उसे भैंसे का मांस खाने को देता है। भैंसे के मांस को खाने के दृश्य का चित्रण भी बड़ा वीभत्स है। हिकक उसे बताता है कि उसी की तरह के एक शिकारी ने उसके परिवार और कबीले की हत्या कर दी थी तथा वह अब अकेला है। वह ग्लास से कहता है कि वह बदला लेना नहीं चाहता क्योंकि ‘बदला लेना ईश्वर के हाथ में है’। वह उसका उपचार करता है तथा अपने घोड़े पर आगे की यात्रा कराता है। एक तूफान में वे फिर फंस जाते हैं। ठंड से कांपते बेसुध ग्लास के लिए वह आदिवासी आग जलाता है तथा झोपड़ी बनाता है। दूसरे दिन होश आने पर ग्लास यह पाता है कि एक अन्य शिकारी समूह ने हिकक की हत्या कर दी है और उन्हीं के पास अरिकारा जनजाति के आदिवासी कबीले के मुखिया की लड़की पबाका है। वह पबाका को बलात्कार होने से बचाता है। इतने में आदिवासी फिर हमला कर देते हैं तथा वह किसी तरह हिकक का घोड़ा लेकर भागता है। वह घोड़ा समेत एक खाई में गिर जाता है। फिर बर्फबारी शुरू हो जाती है। ठंड से बचने के लिए वह मृत घोड़े के पेट से मांस निकालकर उसके मृत शरीर में रात गुजारता है। वह इसी तरह प्रकृति से संघर्ष करते हुए अपना अस्तित्व बचाये रखता है। उधर फिट्जिराल्ड और ब्रिडजर अपने बेस कैंप तक पहुंच जाते हैं। फिट्जिराल्ड कैप्टन हेनरी को बताता है कि ग्लास मर गया था और हॉक लापता हो गया था। वह ग्लास को दफनाकर ही आया है। हेनरी उन्हें पुरस्कार देता है।
इस बीच एक अन्य घायल शिकारी उस बेसकैंप पहुंचता है जिसके पास ब्रिडजर की वही बोतल होती है जो वह ग्लास के पास छोड़कर आया था। वे उससे पूछते हैं कि यह बोतल उन्हें कहां मिली थी। उस शिकारी की निशानदेही पर वे सभी ग्लास को ढूंढने के लिए फिर से जंगल में प्रवेश कर जाते हैं। उन्हें ग्लास मिल जाता है। वे उसे बेसकैंप वापस लाते हैं। तब तक फिट्जिराल्ड भाग जाता है। ग्लास हेनरी को बताता है कि उसके जीवित बचे रहने का एक ही उद्देश्य है - फिट्जिराल्ड को सजा देना। वे दोनों फिट्जिराल्ड की तलाश में बर्फीले जंगल की ओर प्रस्थान करते हैं। धूर्त फिट्जिराल्ड, हेनरी को मार देता है पर ग्लास चतुराई से फिट्जिराल्ड पर काबू पा लेता है। वह उसे मारने वाला ही होता है कि नदी के उस ओर वह आदिवासी कबीले के मुखिया, पबाका और अन्य आदिवासियों को देखता है। तभी उसे अपने मित्र हिकक की बात याद आती है कि ‘बदला लेना ईश्वर के हाथ में है’। वह उसे नदी में बहा देता है। नदी के दूसरी ओर खड़े आदिवासी उसे मार डालते हैं परंतु ग्लास को जीवनदान दे देते हैं क्योंकि पबाका अपने रक्षक को पहचान लेती है। इस तरह फिल्म अपने अंत तक आ पहुंचती है। अंतिम दृश्य में ग्लास को अपनी मृत पत्नी को देखता है। ओझल होने के पूर्व पहली बार वह उसे मुस्कराते हुए देखता है।
इस फिल्म में बेजोड़ अभिनय के लिए लियोनार्डो द कैप्रियो को सर्वश्रेष्ठ अभिनय के लिए ऑस्कर पुरस्कार प्रदान किया गया है। यह एक ऐसी फिल्म है जो प्रत्येक संजीदा व्यक्ति को पसंद आयेगी, यद्यपि फिल्म में प्रदर्शित हिंसक दृश्य कुछ लोगों को अरुचिकर लग सकते हैं। इस फिल्म के लिए ऑस्कर जीते लियोनार्डो ने भी ‘हग ग्लास’ के समान ही कई चुनौतियों का सामना किया। इस फिल्म की शूटिंग की दास्तान भी कम रोमांचकारी नहीं है। इसकी ज्यादातर शूटिंग अल्ब्राटा, कनाडा के बर्फीले इलाके में हुई है जहां तापमान माइनस 300सेंटीग्रेड तक जाता है। लियोनार्डो ने न केवल इतने बर्फीले तापमान में शूटिंग की वरन भैंसे के लीवर के कच्चे मांस को खाने का दृश्य भी स्वयं किया है। उल्लेखनीय है कि लियोनार्डो ने 1992 के बाद से मांसाहार त्याग दिया था। परंतु इस फिल्म में भैंसे के लीवर को कच्चा चबाने का दृश्य उन्होंने बेझिझक किया।
इस तरह ‘द रेवीनेंट’ हमें बताती है कि मनुष्य की कोई सीमा नहीं है। फिल्म अपनी शुरुआत में ही यह संदेश देती है कि हमें अपनी आखिरी सांस तक प्रयत्न करते रहना चाहिए।
- डॉ. परितोष मालवीय
-05 मार्च 2016
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