व्यंग्य / होली और बारात / वीरेन्द्र 'सरल'

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होली के नजदीक आते ही मैं शाम के समय त्यौहार खर्च का हिसाब लगाते हुए बैठा था। उधर मुहल्ले के लड़के चौंक पर नगाड़ा बजा रहे थे और इधर मेरे कमरे ...

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होली के नजदीक आते ही मैं शाम के समय त्यौहार खर्च का हिसाब लगाते हुए बैठा था। उधर मुहल्ले के लड़के चौंक पर नगाड़ा बजा रहे थे और इधर मेरे कमरे के दरवाजे पर एक जोरदार धमाका हुआ। मैं डर के मारे उछलकर दरवाजा खोल बैठा। सामने मेरे खूंखार कवि मित्र होलिकाप्रसाद 'हुड़दंग' जी मुस्कुराते हुए खड़े थे। मैं वैसे ही काँप रहा था जैसे नरसिंह भगवान के प्रकट होने पर हिरण्यकश्यप काँपा होगा। हुड़दंग जी सीधे मेरे बैठक कक्ष में घुस आये और सोफे पर पसर गये। मेरी हालत अभी तक चिन्ताजनक थी। मेरी ओर देखकर हुड़दंग जी ने जोरदार ठहाका लगाते हुए कहा -''क्यों, डर गये ना? मैं तुम्हें सरप्राइज देना चाहता था। ये लो देखो मैं क्या करने जा रहा हूँ। उन्होंने एक लिफाफा मुझे थमा दिया। रंग-बिरंगे कार्ड को देखकर मुझे लगा कि महाशय होली की बधाई देने के लिए यहाँ तूफान की तरह पधारें हैं। पर कार्ड को पढ़कर मेरा दिमाग घूम गया। वह कार्ड तो वैवाहिक निमंत्रण पत्र था पर उसकी छपाई में इतने अधिक रंगो का प्रयोग किया गया था कि पढ़ना मुश्किल था। शादी किसकी हो रही है, यह पता नहीं चल रहा था। मैंने हुड़दंग जी की ओर देखते हुए कहा, इस उमर में दूसरी शादी करने जा रहे हो, तुम्हें शर्म नहीं आती? वह गुर्राया-''तुम्हारा दिमाग खराब है, कार्ड को ध्यान से पढ़ो। मैं अपनी नहीं, अपने कवि पुत्र की शादी कर रहा हूँ। होली के दिन ही पाणिग्रहण है। बारात जाने के लिए अवश्य आना, वरना--।

मुझे जोर का झटका धीरे से लगा। मैंने हकलाते हुए आश्चर्य से पूछा-क्या! क्या कहा तुमने। बेटे की शादी, होली के दिन? और कोई दूसरा मुर्हुत नहीं मिला तुम्हें। उसने जवाब दिया-तुम तो ऐसे कह रहे हो जैसे मेरे पास मुहुर्त बनाने की फैक्ट्री है। पंडित जी ने यही मुहुर्त निकाला है तो मैं क्या करूँ। हम आधुनिक विचारधारा के पुराने लोग हैं तो पंडित जी का कहा तो मानना ही पड़ेगा। उनका कहना है कि लड़का कवि हैं। होली के रंगो के बीच उसकी शादी होगी तो वह जीवन भर रंगीन मिजाज बना रहेगा और घर की सब जिम्मेदारियों से अपने आप को मुक्त रखकर रात दिन कविता लिखता रहेगा। संगति के कारण दुल्हन की भी कवियत्री बनने की संभावना बनी रहेगी। वे आपस में बातचीत भी कविता की भाषा में ही करेंगे। आपके आँगन में कविता की क्यारियां लहलहायेंगी। चूंकि होली के मौके पर दुकानों में सभी सामानो पर कुछ-न-कुछ छूट दी जाती है। इसलिए मैंने भी इस दिन अपनी फीस अर्थात दक्षिणा में पचास फीसदी छूट की घोषणा कर रखी है। जिसके कारण मेरे घर के सामने ग्राहको की लम्बी लाइन लग गई है। अब आपसे हमारा घरेलू संबंध है। इसलिए हम चाहते हैं कि पहले आप ही इस छूट योजना का लाभ उठाने का सौभाग्य प्राप्त कर लें। इससे आपके खर्च भी बचेंगे। हाँ एक बात का ध्यान रखना आवश्यक है। बारात में केवल कवि-लेखकों को ही ले जाना है और किसी को नहीं वरना अनर्थ हो जायेगा। जितना हो सके चुन-चुनकर अपने कवि मित्रों को निमंत्रण दो और जो बारात जाने से इंकार करे उनको कवि सम्मेलन मे बुलाना बंद करो। मैं निमंत्रण देते हुए पंडित जी की यही बात सभी कवि मित्रों को साफ-साफ बता रहा हूँ। डर के मारे सब बारात में शामिल होने के लिए तैयार हैं। अब तुम अपनी कहो।

मैंने सिर खुजाते हुए चिन्तितमुद्रा में कहा-''मगर होली के दिन बारात--? मैं आगे कुछ और कह पाता उससे पहले ही उन्होंने मेरी बात काटते हुए कहा-पंडित जी ने स्पष्ट कहा है कि जो बारात जाने से इंकार करे उसको कवि सम्मेलन में बुलाना बंद करो और उसे कवि बिरादरी से बाहर करो। आगे तुम्हारी मर्जी। अगर-मगर को छोड़ो और हाँ या नहीं में जवाब दो। हुड़दंग जी के इस ब्रम्हास्त्र से मैं ढेर हो गया और अपनी सहमति दे दी। वे चले गये मगर मेरी चिन्ता होली के रंग की तरह गाढ़ी हो गई।

होली के एक दिन पहले हुड़दंग जी ने बारातियों की एक अर्जेन्ट मींिटंग बुलवाई और सभी कवियों को समझाते हुए कहा-'' बारात में रंग-गुलाल, पिचकारी और कविताओं से भरी हुई दो-चार डायरियों के छोड़ और कुछ भी ले जाना वर्जित है। वधु पक्ष से यदि कोई हमसे कुछ भी पूछे तो हमें कुछ भी नहीं बताना है। बल्कि उनको तब तक केवल अपनी कविता ही सुनानी है जब तक वे हमसे सवाल पूछना बंद ना कर दे। मैं घोषणा करता हूँ कि जो कवि अपनी कविता से जितने अधिक लोगों का मानसिक संतुलन बिगाड़ने में सफल होगा उसे बारात से लौटने के बाद यहाँ वीरतापदक देकर काव्य शिरोमणि सम्मान से सम्मनित किया जायेगा, समझ गये?

एक कवि मित्र ने जिज्ञासावश पूछा-''अरे हम बारात जायेंगे कि अंखड काव्यपाठ के कवि सम्मेलन में हिस्सा लेने। ये बाराती होगी या कवियों की फौज?जोश में आकर यदि दुल्हा भी काव्यपाठ करने लगा तो उसे कौन समझायेगा। वधुपक्ष के संबंधी भी इस महायज्ञ में आहूति देने लग गये तो बीच बचाव कौन करेगा? अचानक उनको पंडित जी की कही हुई बातों का ध्यान आया तो उसका मुँह भी बंद हो गया। हम सब दम साधे सुनते रहे और मीटिंग समाप्ति के बाद घर लौट आये।

होली के दिन प्रातःकाल मैंने अच्छा तो हम चलते हैं के अंदाज में श्रीमती जी से विदा ली और बारात जाने के लिए हुड़दंग महोदय के घर पहुँच गया। दूलहा कार से प्रस्थान कर चुका था। हम बेकार थे, हमारे लिए एक बहुत ही अनुभवी गाड़ी की व्यवस्था की गई थी। उसकी हालत देखकर लग रहा था मानो हम पुरातत्व विभाग के संग्रहालय में खड़े हों। तभी ड्राइवर किसी मंजे हुए उदघोषक के अंदाज में बोला-''नमस्कार! यहाँ आपका हार्दिक अभिनन्दन है। मेरी गाड़ी को इतने आश्चर्य से निहारने की आवश्यकता नही है। यह बहुत अनुभवी है। बहुत कम डीजल पीती है और ज्यादा माइलेज देती है। आपको अपनी गोद में बच्चों की तरह बिठाकर सफर करायेगी। आप बिल्कुल भी चिन्ता न करें। आप केवल यह बतायें कि बारात शार्टकट से जाना है या लम्बी दूरी तय करके। मेरी समझ में हमें शार्टकट अपनाना चाहिए। आज जमाना शार्टकट का ही है। शार्टकट सड़क वैसे तो गड्ढेदार है पर गाड़ी में बैठने के बाद आपको गद्देदार सफर का आनंद मिलेगा। ड्राइवर की बातों से लग रहा था कि उस पर होली और बाराती दोनो का रंग एक साथ चढ़ गया है। उसके हाथ-पैर दिमाग से असहयोग आन्दोलन छेड़ चके थे। वह लड़खड़ाते कदमों से गाड़ी पर चढ़कर अपनी सीट पर बैठ गया और स्टेयरिंग पर अंगद की तरह अपना हाथ जमा दिया।

हम बाराती एक बार आसमान की ओर देखकर भगवान का नाम जपते हुए गाड़ी में सवार हुए। गाड़ी स्टार्ट हुई, हमें लगा हवाई जहाज उड़ान भर रहा हो। गाड़ी से इतना धुआं निकला कि धुएं के कारण हम एक दूसरे को तो छोड़ो, अपने आप को भी पहचानने के काबिल नहीं रहे। गाड़ी तेज झटके साथ आगे बढ़ी और सभी बाराती अपनी-अपनी सीट के साथ चित्त शयन मुद्रा में आ गये। जब गाड़ी रफ्तार में आई तो हम एक साथ एक फीट ऊपर उछल गये साथ ही गाड़ी की छत भी। उछलने के बाद छत पुनः अपने स्थान पर फिक्स हो गई। हम सिर सहलाते हुए छत को घूर रहे थे। इस तरह हमारी यात्रा शुरू हुई।

गाड़ी केवल पाँच किलोमीटर ही चली होगी और अचानक बीच सड़क पर सीना तान के खड़ी हो गई। ड्राइवर उसे मनाने का असफल प्रयास करता रहा पर वह एक इंच भी आगे बढ़ने से इंकार कर रही थी। ड्राइवर के निवेदन पर हमें गाड़ी को धक्का देने के लिए नीचे उतरना पड़ा। हम गाड़ी को धकलते हुए लगभग बीस किलोमीटर तक ले आये थे मगर गाड़ी अपनी जिद छोड़ने के लिए तैयार नहीं थी। अभी तक हम केवल पच्चीस किलोमीटर की ही यात्रा कर पाये थे। पांँच किलोमीटर गाड़ी पर सवार होकर और बीस किलोमीटर उसे धकेलते हुए। इस चक्कर में हम खुद ही धक्का प्लेट हो गये थे। बड़ी मुश्किल से गाड़ी रिस्टार्ट हुई और हम भगवान की दया से उस पर सवार हुए।

हमने यात्रा प्रातःकाल ही शुरू की थी मगर अब शाम होनी लगी थी। अंधेरा घिरने लगा था। हम कुछ ही दूरी तय कर पाये थे कि पता चला गाड़ी की आँखों को रंतौधी की बीमारी है, रात में उसे दिखाई नहीं देती। गाड़ी फिर रूक गई और हमें एक जंगली नाले के किनारे मच्छरों के सानिध्य में रात बिताने के लिए मजबूर होना पड़ा। वह रात्रि नहीं बल्कि कालरात्रि थी। बड़ी मुश्किल से रात बीती। सुबह हुई और हम आगे बढ़े। हम बारात वाले गाँव के नजदीक पहुँचे ही थे कि गाड़ी को पक्षाघात हो गया। अब हमारे पास पैदल चलने के सिवाय कुछ दूसरा विकल्प न रहा। भूख और थकान के कारण ही हम उस गाँव के दर्शन करना चाह रहे थे जहाँ हमें बाराती बनकर जाना था। हमें पता था कि दूल्हा तो कल शाम तक पाणिग्रहण करके दुल्हन के साथ लौट चुका होगा ।

एवरेस्ट की कठिन चढ़ाई जैसे इस महायात्रा को सम्पन्न करके हम उस गाँव में पहुँचे और मंगल भवन में ठहरे। हमें क्या पता था कि कुछ ही समय में अमंगल होने वाला है। हमारे शुभ आगमन की जानकारी मिलते ही वधुपक्ष के संबंधी लाठी लेकर पहुँचे और हमें घेर कर खड़े हो गये। हम डर के मारे काँपने लगे। उनमें से एक ने कहा-''इस विषम परिस्थिति में भी आप लोग नाच रहे है। मैंने कहा-हम कहाँ नाच रहें हैं माई बाप, हम तो डर के मारे काँप रहे है। फिर कहीं से आवाज आई-अरे कल इनके साथी खूब हुड़दंग मचाकर गये है। आज हमें मौका मिला है। इनकी जमकर धुनाई करके इन्हें सबक सिखाओ और हम पर आक्रमण हो गया। हमको जिधर से भी रास्ता मिला उधर से भागकर छिपते-छिपाते हुए घर पहुँचने में सफल हुए। अधिकांश बाराती घायल हुए पर गनीमत थी कि कोई भी शहीद नहीं हुआ। किसी को वीरता सम्मान तो नहीं मिला। अलबत्ता हमारा सामूहिक मरहम-पट्टी संस्कार जरूर करवाया गया। शायद होली के दिन बाराती की यही हालत होती है।

 

वीरेन्द्र सरल

saralvirendra@rediffmail.com

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रचनाकार: व्यंग्य / होली और बारात / वीरेन्द्र 'सरल'
व्यंग्य / होली और बारात / वीरेन्द्र 'सरल'
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