साहित्य व संस्कृति की पत्रिका ‘रेवान्त’ की ओर से 2015 का मुक्तिबोध साहित्य सम्मान जाने माने कवि व गद्यकार उमेश चौहान को दिया गया। सम्मान सम...
साहित्य व संस्कृति की पत्रिका ‘रेवान्त’ की ओर से 2015 का मुक्तिबोध साहित्य सम्मान जाने माने कवि व गद्यकार उमेश चौहान को दिया गया। सम्मान समारोह साहित्य अकादमी के रवीन्द्र भवन, दिल्ली में 27 फरवरी को आयोजित हुआ जिसमें प्रसिद्ध आलोचक नामवर सिंह ने उमेश चौहान को सम्मान के रूप में अंग वस्त्र, स्मृति चिन्ह तथा ग्यारह हजार का चेक प्रदान किया। प्रशस्ति पत्र का वाचन रत्ना श्रीवास्तव ने किया। ‘रेवान्त’ की संपादक अनीता श्रीवास्तव ने अतिथियों का स्वागत किया। इस मौके पर उमेश चौहान की कविताओं की किताब ‘चुनी हुई कविताएं’ तथा उनकी आलोचना पुस्तक ‘हिन्दी साहित्य कुछ ताक-झांक’ का विमोचन भी हुआ।
नामवर सिंह ने कहा कि मान्यता है कि जो गद्य में असफल हो जाते हैं, वे कविता के क्षेत्र में आ जाते हैं, उसी तरह जो कविता में सफल नहीं हो पाते हैं, वे गद्य की ओर मुड़ते हैं। लेकिन उमेश चौहान गद्य व पद्य दोनों में समान रूप में समभ्यस्त है। निराला, प्रसाद, पंतजी आदि ने गद्य व पद्य दोनों में लिखा। इसलिए इस तरह का बटवारा ठीक नहीं है। प्रेमचंद ने गद्य में ही लिखा और उसे बड़ी ऊंचाई पर पहुंचाया। नामवर सिंह ने कहा कि उमेश चौहान के संदर्भ में अच्छी बात है कि ये खड़ी बोली के साथ अवधी में भी कविताएं लिखते हैं। इनकी अवधी बैसवारे की अवधी है। अवधी के भी कई रूप हैं। हमलोग शहरों में आकर अपनी बोलियों को भूलते जा रहे हैं। नामवर जी ने उमेश चौहान की कविता ‘चेहरा हमार मुरझावा’ का पाठ करते हुए कहा कि उमेश चौहान अपनी खड़ी बोली की कविताओं में जो बोलियों की छौंक देते हैं, वह इनकी कविता की शक्ति है। नामवर सिंह अपनी टिप्पणियों के लिए मशहूर रहे हैं। उन्हें लेकर विवाद भी होता रहा है। यहां भी आखिर में अपने वक्तव्य का समापन करते हुए कहा कि सहृदय समाज उपस्थित है, मंच भरा-पूरा है। इसी तरह मेरा दिल भी भरा है और दिमाग खाली है। यह अनुमान लगाना कठिन था कि नामवर सिंह का यह कथन अपने ऊपर था या मौजूदा समय पर।
मुक्तिबोध सम्मान से सम्मानित कवि उमेश चौहान ने ‘रेवान्त’ तथा सभी का आभार व्यक्त किया तथा प्रशासनिक सेवा में रहते हुए अपनी साहित्य यात्रा के लिए कैसे राह बनाई, इसकी चर्चा की। इस अवसर पर उन्होंने बच्चों के कुपोषण को लेकर लिखी कविता सुनाई। आल्हा में लिखी रचना का सस्वर पाठ किया। अपने वक्तव्य का समापन हालिया लिखी कविता ‘विचारोत्थान’ से किया जिसमें वे कहते हैं: ‘मुझे भी बताना चाहिए/मुझे भी विचारोत्थान चाहिए/मुझे भी धर्मोत्थान चाहिए/लेकिन धरती का तापमान बढ़ाकर नहीं/सेनाओं की परेड से किसी को डराकर नहीं/मेरे चारो तरफ विचारों की हवा को मुक्त बहने दो/मेरे शरीर को एक ठंडी हवा जरूर छुएगी।’
कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना ने की। उनका कहना था कि ‘रेवान्त’ छोटी पत्रिका है, यह व्यापारिक नहीं है। पर इसके हौसले बड़े हैं। यह दौर है जब बड़े पुरस्कार अविश्वसनीय हो गये हैं, ऐसे में छोटे पुरस्कारों का महत्व है। इन्हें बचाए रखना है। आज सबसे जयादा झूठ खड़ी बोली में बोला जा रहा है लेकिन बोलियों में झूठ कम है। इसलिए बोली की आवाज सच्ची लगती है। उमेश चौहान बोलियों के कवि हैं। कहरवा ताल में लिखते हैं। ये अपने छंद के आखिरी अक्षर पर जोर देते हैं। ‘चमाचम’ जैसे शब्दों का जो इस्तेमाल करते हैं, वह बोलियों में ही मिलेगा। आज बोलियां छीन ली गई हैं। उमेश उसे कविता में वापस दे रहे हैं। इन्हें देखकर मुझे लगता है कि मैंने बुन्देली में कविता क्यों नहीं लिखी। मैं जरूर लिखूंगा, भले अच्छी न हो फिर भी मैं कोशिश करुंगा। नरेश सक्सेना ने साहित्य पर लिखी पुस्तक के बारे में कहा कि इससे पता चलता है कि उमेश चौहान अच्छे गद्यकार हैं। उन्होंने साहित्य पर ही नहीं बच्चों के स्वास्थ्य और कुपोषण जैसी समस्या पर लिखा जिस पर ‘सबका साथ, सबका विकास’ की बात करने वाली हमारी सरकार के बजट में कटौती हो रही है।
‘रेवान्त’ के प्रधान संपादक व कवि कौशल किशोर ने कहा कि मुक्तिबोध की काव्य पंक्ति ‘अभिव्यक्ति के सारे खतरे उठाने ही होंगे’ उमेश चौहान का आदर्श वाक्य है। साधारण लोगों में जो असाधारणता है, उमेश चौहान उसे उदघाटित करते हैं। उमेश चौहान के काव्य की विशेषता है कि वे उम्मीद नहीं छोड़ते। आलोचना की किताब ‘हिन्दी साहित्य: कुद ताक-झांक’ पर बात करते हुए कौशल किशोर ने कहा कि उमेश चौहान आलोचना को भी रचना कर्म की तरह सृजनात्मक मानते है। वे नई रचनाशीलता की पड़ताल करते हैं। वहीं अखिलेश के उपन्यास ‘निर्वासन’ और शिवमूर्ति के लघु उपन्यास ‘कुच्ची का कानून’ की सांस्कृतिक विशिष्टता को सामने लाते हैं। वे कवि मानबहादुर सिंह की कविताओं पर विचार करते हैं। वे आलोचना पर विचार करते हुए उसकी विश्वसनीयता के संकट को सामने लाते है। इनकी मान्यता है कि आलोचना का काम सीप के अन्दर से बंद अदृश्य मोतियों को सामने लाना है।
कवि बद्रीनारायण ने कहा कि उमेश चौहान की कविताओं में लोकतांत्रिकता है। ये राजनीतिक व सामाजिक हैं। लेकिन यहां नारेबाजी नहीं है। ये सवाल करती हैं कि इस नये दौर के महाभारत में क्या जनतंत्र का अभिमन्यु बचेगा या नहीं ? इनकी कविताओं में हमारे गांव का सामाजिक परिवेश है, वहीं वर्तमान जीवन से जुड़ा शहरी परिवेश भी मौजूद है। इनकी कविता में एक तरफ लोक जीवन से गहरा जुड़ाव, उसकी मिठास है, वहीं गलोबल दुनिया का क्रूर यथार्थ है। इनकी कविताओं में तमाम संघर्षशील पात्रों को देखा जा सकता है। न्यूयार्क से लेकर त्रिपुरा तक इनका फैलाव है।
कथाकार व ‘तदभव’ के संपादक अखिलेश ने उमेश चौहान की कविता ‘मुक्तिबोध का लिफाफा’ का संदर्भ देते हुए कहा कि उमेश चौहान की कविताओं का विस्तार अवधी से लेकर मलयालम तक है। सत्ता के शक्ति केन्द्रों में रहते हुए व्यवस्था के प्रति आलोचनात्मक रुख के रूप में जिस साहसिकता का परिचय दिया, वह विशिष्ट है। जहां भी इन्हें गलत लगा है, इन्होंने आलोचना की है। अमानवीयता के विरुद्ध मनुष्य संगत से उमेश चौहान का लगाव रहा है। इस मायने में ये प्रतिरोध के रचनाकार हैं।
कार्यक्रम का संचालन कवि आलोचक जितेन्द्र श्रीवास्तव ने किया। उन्होंने कहा कि उमेश चौहान नरेश सक्सेना की तरह गीतों से कविता की ओर आये। मित कथन और बहसधर्मिता इनके काव्य की विशेषता है। ‘रेवान्त’ की ओर से आयोजित इस कार्यक्रम में दिल्ली के अलावा लखनऊ से कई साहित्यकार आये। इंदु सिंह ने सभी का धन्यवाद ज्ञापन किया। इस अवसर पर मदन कश्यप, विमल कुमार, प्रेम भारद्वाज, लीना मल्होत्रा, प्रांजल धर, अर्चना सिंह, विमल किशोर, अटल तिवारी, अनुज कुमार, आभा खरे, प्रवीन सिंह आदि मौजूद थे।
विमला किशोर
उप संपादक ‘रेवान्त’,एफ-3144, राजाजीपुरम, लखनऊ -- 226017
मो - 7499081369
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KAUSHAL KISHOR
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JAN SANSKRITI MANCH
LUCKNOW
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