अपने हक से वंचित पांडवों का अज्ञातवास कलयुग में भी पीछा नहीं छोड़ रहा है। यह अनवरत चल रहा है। अज्ञातवास के इस कलयुगी दौर में द्वापर युग की ...
अपने हक से वंचित पांडवों का अज्ञातवास कलयुग में भी पीछा नहीं छोड़ रहा है। यह अनवरत चल रहा है। अज्ञातवास के इस कलयुगी दौर में द्वापर युग की तरह यक्ष से अनायास सामना फूल के बहाने हो जाती है। परंतु यह कलयुगी यक्ष भी फूल लेने के पूर्व पात्रता की जांच की बात करता है पांडवों से। नकुल , सहदेव , अर्जुन एवं भीम सभी यक्ष की परीक्षा में अनुत्तीर्ण होकर मूर्छित पड़े हैं। धर्मराज का आगमन होता है तभी – जिसके कंधे पर न केवल फूल चुनने के जिम्मेदारी है , बल्कि अपने भाइयों को सकुशल ले जाना भी है , परंतु इसके पूर्व यक्ष प्रश्न का भी सामना करना है और यक्ष को संतुष्ट भी। धर्मराज सोच रहा है , फिर वही प्रश्न दोहराया जायेगा जो पूर्व जन्म में हो चुका है , तथा उत्तर भी वही होगा। लगभग वही सारी बातें होंगी जो द्वापर में हुई थी।
यक्ष ने धर्मराज को सावधान करते हुए अपना पहला प्रश्न पूछा – भूखा नंगा कौन है आज ? प्रश्न बहुत सरल था। निश्चित ही जिसके पास खाने को अन्न नहीं , जो दाने दाने के लिए मोहताज है वही भूखा है , और जिसके पास पहनने को कपड़े नहीं , वही नंगा है। किंतु धर्मराज चतुर थे , वे समझ गए यह उत्तर तो उनके भाइयों ने भी दिया होगा और यक्ष ने नकार दिया होगा। निश्चित ही प्रश्न का उत्तर आज के अंदाज में तथा वर्तमान परिस्थितियों को ध्यान में रखकर देना होगा , अन्यथा मैं भी अपने भाइयों की तरह यक्ष का कैदी हो जाऊंगा। सदा के लिए पांडवों का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। बहुत सोच विचार कर कहने लगे – भूखा वह नहीं , जो अन्न के एक एक दाने के लिए तड़प रहा है , या जिसका पेट रोटी के टुकड़े की आस में पिचक गया है। बल्कि भूखा वह है जो न केवल अपना हिस्सा खा रहा है बल्कि , दूसरों का हक मारकर भी , अवैध रूप से खाने के लिए जमा कर रहा है। इन सबके बावजूद भी क्षुधा शांत नहीं हुई बल्कि बढ़ते ही जा रही है। और “ नंगे “ वे लोग हैं जो अपने आप को झकाझक सफेद कपड़ों में छुपाकर देश के पवित्र संस्थाओं में नंगई कर रहे हैं। जिधर देखो उधर इन्हीं का नंगा नाच। कपड़े नहीं पहन सकने वाले सिर्फ बदन के नंगे हैं , परंतु ये सफेद पोश मन और चरित्र से नंगे हैं। यक्ष प्रतिप्रश्न पर उतर आया – तुम कैसे कह सकते हो कि ये सफेदपोश ही नंगे हैं , बिना कपड़ों के रहने वाले नंगे नहीं हैं ? धर्मराज तैयार थे इसके लिए। कपड़ों का संबंध इज्जत ढंकने से होता है , गरीब के पास न दिखाने का होता है , न ढंकने का। अतः वह किसी को छिपाने का कोई काम नहीं करता , किंतु सफेदपोशों के इज्जत में लगे पैबंद और छेद बार बार ढंकने को मजबूर करता है इन्हें। अर्थात ढांकने का प्रयास वही करता है जो नंगा है। इसलिए मेरी समझ में ये ही नंगे हैं। यक्ष संतुष्ट हो गया।
मेरा दूसरा सवाल – ईमानदार कौन है ? ईमानदार वही हैं जिसको बेईमानी का तनिक भी मौका नहीं मिला। अर्थात जिसे भी मौका मिला , फिसल गई ईमानदारी। यक्ष संतुष्ट हो , तीसरे प्रश्न की ओर बढ़ चला। गरीब कौन ? जिसके पास विलासिता की या प्रारंभिक जरूरत की वस्तुओं का अभाव है वे गरीब नहीं हैं , गरीब वे हैं जो अरबों की सम्पत्ति अवैध रूप से संचित कर दिन रात इसी को बढ़ाने के लिए सोचता रहता है , तथा सिर्फ और सिर्फ पैसे को ही अपनी आवश्यकता की सम्पूर्ण चीज समझता है और केवल इसी की पूजा में लिप्त रहता है।
धर्मराज से संतुष्ट और प्रसन्न यक्ष ने , बिना कोई प्रतिप्रश्न किए , अगले प्रश्न के लिए धर्मराज को सावधान करते हुए कहा – चोर कौन ? चोरी करने वाला हरेक शख्स चोर है , पर यक्ष किसे चोर समझ रहा है। थोड़े पशोपेश में थे धर्मराज। थोड़ी देर रूककर बोले – वह श्ख्स जरूर चोर है जिसने अवैध रूप से शासनकेपैसों को हड़पकर , देश को चूना लगाकर देश विदेश में सम्पत्ति बना ली। इल्जाम लग जाने के बावजूद भी साबित हो जाने का भय जिसे नहीं , वही वास्तव में चोर है। जो देश को खोखला कर रहा है काला धन जमा कर , जो साबित करने वाले को भी खरीद लेता है , इसी काले धन की बदौलत – वही तो चोर है ............कहते – कहते चुप हो गया धर्मराज। यक्ष उत्तर समझ गया तथा धर्मराज को शांत देखकर थोड़ी देर के लिए वह भी शांत होकर सोचने लगा – काश ! हरेक व्यक्ति तुम्हारी तरह सोचता , तब इस देश का वर्तमान और भविष्य कितना सुंदर हो जाता।
धर्मराज को संयमित देख प्रश्नों की श्रृंखला के आखिरी पड़ाव में पहुंच गया यक्ष। वह जानता था – उसकी उत्कंठा शांत करने का इससे अच्छा मौका पता नहीं कब आएगा , इसलिये जान ही लिया जाय , आज का धर्मराज क्या सोचता है वर्तमान के बारे में। उसने पूछा – असहाय - लाचार कौन है ? बहुत नपे तुले शब्दों में कहा – देश की जनता। यक्ष को समझ में आ गया , फिर भी वह जानना चाहता था कैसे ? तब धर्मराज ने व्यथित होते हुए बताया – देश की जनता ने हमेशा धोखेबाज , चालबाज , चोर-उचक्के , बेईमान , भ्रष्टाचारियों पर विश्वास कर अपना अगुवा बनाया है। इसके अलावा कोई विकल्प भी नहीं है उनके पास। अपने ही द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों के लूट , बलात्कार का शिकार है वह तथा हर बार ऐसे ही लोग चुने जा रहे हैं उनके द्वारा हरेक बार। आप ही बताइए , इनसे अधिक लाचार और असहाय कोई हो सकता है ?
यक्ष खूब प्रसन्न था। आखिर हो भी क्यों न। उनके सारे अनुत्तरित प्रश्नों के सही जवाब मिल गए थे उन्हें। वह कहने लगा – मांग लो तुम्हें जो चाहिए , मेरे वश में होगा तो जरूर मिलेगा। यक्ष की ताकत पहचानता था धर्मराज। मांग बैठा – “ मुझे मेरे सभी भाई सकुशल वापस लौटा दीजिए और देश का राज - पाठ भी दिला दीजिए। यक्ष न केवल गंभीर हुआ बल्कि स्वयं बाहर भी निकल आया – तुम्हें तुम्हारे सभी भाई वापस कर रहा हूं , परंतु तुम्हारा राज पाठ दिलवा सकना मेरे वश में नहीं है। मैं क्षमा चाहता हूं , क्योंकि अभी अभी तुम्ही ने बताया कि यह काम जनता का है। वैसे राज्य पाने के उद्यम में मेरा हरेक कदम तुम्हारे साथ होगा। मैं बाहुबल दे सकता हूं , धनबल के लिए तुम्हें , मेरे रहते सोचना ही नहीं है किंतु राज प्राप्त करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण “ छल बल “ कहां से लाऊंगा मैं। इसलिये राज्य दिला दूंगा कहना केवल कोरे आश्वासन के सिवा कुछ भी नहीं। वैसे भी इस देश की नियति हो चुकी है यह कि तुम जैसे सत्यवादी , न्यायप्रिय , ईमानदार कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति इस देश में शासन नहीं कर सकता। राज्य चलाने दो दुर्योधनों को। तुम नहीं चला सकते। तुम शासन चलाने के अयोग्य हो , क्योंकि झूठ नहीं बोल सकते , बईमानी नहीं कर सकते , किसी का हक नहीं मार सकते , किसी की मां बेटी बहन की आबरू पर हाथ नहीं डाल सकते , किसी का गला नही घोंट सकते , किसी बूते कर्म को होते देख नहीं सकते , सुन भी नहीं सकते , किसी के लिए बुरा न बोल सकते , न सोच सकते , न कर सकते। तुम राज्य चलाना तो दूर , उस सभा की देहरी पर भी पहुंचने लायक नहीं हो। तुमसे मेरी विनम्र प्रार्थना है कि राज्य की लालसा त्याग दो धर्मराज तथा चले जाओ पुन: अज्ञातवास में और तब तक छुपकर इंतजार करो , जब तक तुम्हारे जीवन में किसी कन्हैया का आगमन न हो।
यक्ष को प्रणाम कर चला गया धर्मराज युधिष्ठिर , चुपचाप अपने भाईयों सहित अज्ञातवास में छुपा फिर रहा है आज भी , और इंतजार कर रहा है , किसी कन्हैया का , जो इस देश में धर्म का शासन स्थापित करने , ला सके युधिष्ठिर को अज्ञातवास से।
--
हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन
मो. ९७५२८७७९२५
छुरा , जि. गरियाबंद ( छ.ग.)
-------
रचनाकार आपको पसंद है? फ़ेसबुक पर रचनाकार को पसंद करने के लिए यहाँ क्लिक करें!
COMMENTS