प्राची - मार्च 2016 - बाल कहानी - विराट महाराज की होली / सुषमा श्रीवास्तव

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बाल कहानी विराट महाराज की होली सुषमा श्रीवास्तव स तरी नदी के किनारे दोनों ओर फलों के बगीचे थे. बहुत से पंछी वहां बसेरा करते थे. इसके बाद ...

बाल कहानी

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विराट महाराज की होली

सुषमा श्रीवास्तव

तरी नदी के किनारे दोनों ओर फलों के बगीचे थे. बहुत से पंछी वहां बसेरा करते थे. इसके बाद ही जंगल शुरू हो जाता था, जो आगे जा कर बहुत घना हो गया था. वहां वन्य जीव आराम से रहते थे. इस जंगल का नाम पलाशवन था. इस पलाशवन जंगल के राजा शेर को सर्कसवालों ने पकड़ लिया था. वह शेर बहुत ही क्रूर और उत्पाती थी. अब जीवों ने दूसरे राजा की खोज करनी शुरू की. मुश्किल यह हो रही थी कि हर जीव स्वयं ही राजा बनना चाहता था. लेकिन सवाल तो ऐसे पशु का था, जो शक्तिशाली हो और सारे जानवरों की सुरक्षा करे, बाहरी हमलों से बचाये.

ऐसे समय उधर नदी पार जंगलों की कटाई हो रही थी. सभी जानवर इधर उधर भाग रहे थे. एक शक्तिशाली फुर्तीला शेर पलाशवन में आ निकला. सब वन्य जीव डर गये. जब उन्होंने देखा वह पुराने शेर महाराज की मांद में आराम कर रहा है तो उनके होश उड़ गये. उसी शाम उस शेर ने अपने को पलाशवन का राजा घोषित कर दिया. उसका नाम था ‘‘विराट’’. उसने कई यात्रायें की थीं. बाहरी दुनिया की उसे पूरी जानकारी थी. उसने अपने पहले ही दरबार में जीवों से कहा...

‘‘मैं पलाशवन का राजा विराट शेर दूसरे शेरों से अलग हूं. मैं मारधाड़ में विश्वास नहीं करता. मेरी नीति है-खुद भी चैन से रहो और दूसरों को भी चैन से रहने दो. तुम्हारी सुरक्षा की जिम्मेदारी मेरी है. सब लोग आदमियों की तरह हिलमिल कर रहो. समय-समय पर मैं तुम सब को बाहरी दुनिया का हाल सुनाऊंगा.’’

सभी जीव बहुत प्रसन्न हुये. एक स्वर में बोले, ‘‘विराट महाराज की जय!’’

विराट महाराज ने मंत्रियों के अतिरिक्त एक गुप्तचर सेवादल बनाया था जिसके प्रमुख थे, एकम बानर और कोवा भाई काक और वाक उनका काम था कि वे पता लगायें कि शहरी बस्तियों में क्या हो रहा है. कैसे रह रहे हैं आदमी. विराट शेर को पता था कि आदमी मारधाड़ में विश्वास नहीं करता. वह इतना ज्ञानी होता है कि चिड़िया की तरह उड़ने के लिए उसने एरोप्लेन, चीते की फुर्ती से दौड़ने के लिए कार, जीप, रेलगाड़ी बना ली है और एक जरा से डिब्बे से वह देश-विदेश से बात भी कर लेता है. वह पढ़ता-लिखता है. गाना-बचाना, पूजा-पाठ करता है और मेले त्योहार मनाता है.

‘‘एकम वानर!’’ विराट ने दहाड़ लगाई.

‘‘जी महाराज,’’ सभी सहयोगी सिर झुकाकर खड़े हो गये.

‘‘बताओ, आज तुमने आदम बस्तियों में क्या देखा?’’

‘‘महाराज, वहां बड़ा हल्ला हो रहा है. सब रंगे हुये थे. पीला, काला, नीला हर रंग से एक दूसरे पर बौछार कर रहे थे.’’

विराट शेर दहाड़ा, ‘‘हो हो हो, याद आया, वह लोग रंगों से होली खेलते हैं. यह त्योहार पूरे देश में मनाया जाता है. पर यह तो बताओ कि आदमी ऐसा क्यों करता है?’’

काक वाक ने कहा, ‘‘महाराज, एक घर में एक बूढ़ा दादा अपनी बच्ची को एक कहानी सुना रहा था.’’

‘‘कहो, जल्दी कहो!’’ विराट अब तक उकताने लगे थे.

‘‘महाराज, पुराने समय में एक राक्षस राजा था. उसका नाम था हिरण्याकश्यप. वह बहुत क्रूर और घमण्डी था. इतना कि वह अपने को ही भगवान मानता था, अपनी प्रजा से वह अपनी ही पूजा करने को कहता था. नहीं करने पर वह मरवा देता था. उसका पुत्र था प्रहलाद. वह ईश्वर का बड़ा भक्त था. उसने अपने पिता की आज्ञा नहीं मानी. पिता ने उसे मरवाने की कोशिश कई बार की, परंतु ईश्वर की कृपा से वह बच

जाता था. राक्षस राजा की एक बहिन थी. उसका नाम था होलिका. उसके पास वरदान में मिली एक चादर थी जिसे पहन लेने पर आग उसे जला नहीं सकती थी. बस हिरण्याकश्यप ने आग जलवाई और होलिका वह चादर ओढ़कर गोद में प्रहलाद को लेकर बैठ गई. सब लोग हाहाकार करने लगे, लेकिन आग जल्दी ही बुझ गई और होलिका भस्म हो गई. बालक प्रहलाद उसी तरह राम नाम जपते हुए जीवित मिले. फिर तो प्रजा को बहुत खुशी हुई. उन्होंने राख उठाकर एक दूसरे को लगाना शुरू कर दिया. बस उसी दिन से फाल्गुनी पूर्णिमा को होली जलाई जाती है और फिर रंग खेला जाता है. आपसी भेदभाव भूल कर लोग प्यार से एक दूसरे को गले लगाते हैं और मीठी गुझिया खाते हैं.’’

‘‘क्या! क्या कहा तुमने, लोग पुराने झगड़े भूल कर गले मिलते हैं.’’

‘‘जी हुजूर, ऐसा ही सुना है.’’

अब विराट शेर खुश होकर ऐसा दहाड़ा कि जंगल थरथरा गया फिर उन्होंने जोरदार ठहाका लगाया- हा! हां! हाफ!

‘‘एकम! पलाशवन में खबर करो कि हम लोग भी होली मनायेंगे.’

एक वानर ने डुगडुगी उठा ली थी.

‘‘डुग डुग डुग...सुनो! सुनो! सुनो! कल जंगल के सभी जानवर रंगीन फूल व जड़ी-बूटियां लेकर छोटे तालाब के किनारे इकट्ठा हो जायें. महाराज की आज्ञा से वहां होली का त्योहार मनाया जायेगा. डरने की कोई बात नहीं है. महाराज विराट इस जंगल में शांति चाहते हैं.’’

दूसरे दिन, पलाश के फूल, दूसरी जड़ी-बूटियां डालने से तालाब का पानी रंगीन हो गया. विराट महाराज ने रंगीन पानी और पेड़ के नीचे फलों का ढेर देखकर जोर से दहाड़ मारी- होली हैऽऽऽ होली हैऽऽ.’’

दूसरे जीव भी अपने-अपने सुरों में बोले- ‘‘होली हैऽऽ’’

कौवा भाई काक वाक ने विराट महाराज के माथे पर टीका लगाया. एकम वानर तालाब में कूद गया. अपनी पूंछ से उछाल-उछाल कर दूसरे जीवों पर रंग डाला.

अब तो सभी जानवर तालाब में कूद पड़े और छपक-छपक कर रंगीन पानी खेलने लगे.

विराट महाराज दहाड़े...बोले, ‘‘रुक जाओ नहीं तो सर्दी लग जायेगी.’’ सब लोग एक दूसरे से गले मिले और मीठे फल खाये.

विराट शेर महाराज ने एक ऊंची मचान पर चढ़ कर सभी जंगलवासियों से कहा, ‘‘पलाशवन के जीवों, आज हमने होली का त्योहार मनाया. भेदभाव भूलकर आपस में दोस्ती की. हमारे जंगल में बहुत सी चीजें ऐसी हैं जिसे खाकर हम जीवित और मजबूत रह सकते हैं, फिर हम एक दूसरे का शिकार क्यों करें? मैं आपका महाराज इस बात का ख्याल रखूंगा कि हमारे पलाशवन में कोई भूखा न सोये. सब लोग निर्भय होकर शांति से रहें.’’

एकम वानर खुशी से चिल्लाये, ‘‘होली

हैऽऽऽ.’’ सभी ने दोहराया, ‘‘होली हैऽऽऽ.’’

शेर महाराज विराट अपनी राजसी चाल से अपनी मांद की ओर बढ़ रहे थे और मूंछों में मुस्करा रहे थे.

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सम्पर्कः आस्था, 19/1152, इन्दिरा नगर, लखनऊ (उ.प्र.)

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रचनाकार: प्राची - मार्च 2016 - बाल कहानी - विराट महाराज की होली / सुषमा श्रीवास्तव
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