आपने कहा है पाठक मनोयोग से पढ़ते हैं पसंदीदा ‘प्राची’ की प्रकाशन के प्रति निरंतरता और प्रतिबद्धता स्तुत्य है. पूर्व में पहले पखवाड़े तक प्...
आपने कहा है
पाठक मनोयोग से पढ़ते हैं
पसंदीदा ‘प्राची’ की प्रकाशन के प्रति निरंतरता और प्रतिबद्धता स्तुत्य है. पूर्व में पहले पखवाड़े तक प्राप्त हो जाती थी. अब जरा भी विलम्ब होता है तो हम साहित्य प्रेमी सदस्यों को व्यग्रता होती है. बहरहाल मेहरबानी भारतीय डाक की कि बीस के बाद ही सही पत्रिका हम तक पहुंच रही है और साहित्य पिपासा को शांत एवं परिमार्जित कर रही है. नवम्बर एवं दिसंबर अंक मिले. पहले चर्चा नवम्बर 2015 अंक की. महंगाई पर आपकी सम्पादकीय चुटीला व्यंग्य कर रही है. सचमुच कहां है महंगाई. आज भी शहर दर शहर नए माल और मल्टीप्लेक्स खुल रहे हैं. बड़ी बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के स्टोर देश के छोटे छोटे शहरों तक पसरते जा रहे हैं और उनमें अच्छा खासा व्यवसाय भी हो रहा है. ‘‘उसने कहा था’’ सचमुच हिंदी कहानियों की क्लासिक है. जितनी बार पढ़िए, इसकी ताजगी बरकरार रहती है. पात्रों का इतना अच्छा चरित्र चित्रण और कथा की बुनावट अदभुत. नमन है गुलेरी जी का. शेष कहानियां और परवीन शाकिर की गजलें भी पसंद आयीं.
सिंधी कथा विशेषांक (दिसंबर 2015 अंक) में आपके साथ साथ आदरणीया देवी नागरानी जी का परिश्रम स्पष्ट झलकता है. विदेश में रहते हुए भी आदरणीया नागरानी जी साहित्य और संस्कृति से जिस सक्रियता से जुडी हैं वह अनुकरणीय है. आरंभिक लेखों से सिन्धी कहानी की परंपरा एवं उसके इतिहास के सम्बन्ध में उपयोगी और ज्ञानवर्धक सामग्री पढ़ने को मिली. जैसा कि सम्पादकीय में आपने भी कहा है, ‘‘कहानियां चाहे किसी भी भाषा या देश की हों उनमें व्यक्त मानवीय पीड़ा, दुःख, गरीबी और अभाव सभी देश और समाज में एक जैसा होता है.’’ यही विशेषता साहित्य को सीमाओं से परे और पाठक हृदय के करीब लाती है. आपकी आश्वस्ति कि भविष्य में अन्य भारतीय एवं विदेशी भाषाओं के विशेषांक उपलब्ध होते रहेंगे, हमारा उत्साह बढ़ाने वाली है. वैसे तो सभी कहानियों की अपनी विशेषता है लेकिन गुलाम मुगल की ‘‘काला तिल’’ रशीदा हिजाब की ‘‘सीमेंट की पुतली’’, अमर जलील की ‘‘सूर्योदय के पहले’’, राजन मंगरियो की ‘‘अलगाव की अग्नि’’ जगदीश की ‘‘गोश्त का टुकड़ा’’, और शर्जील की ‘‘जिन्दगी और टेबल टॉक’’ विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं. अंक पर देवी नागरानी की गजल का शेर सटीक बैठता है .
‘‘भाषा की टहनियों पर हर पांव प्रान्त के परिंदे,
उड़कर जहां भी पहुंचे पहुंची वहां की खुशबू’’
और इस खुशबू में हम सब सराबोर हैं, आभार!
अभिनव अरुण, वाराणसी (उ.प्र.)
सर्वश्रेष्ठ पत्र
जियो और जीने दो
‘जियो और जीने दो’ की बातें करना आज के समय में बेवकूफी के अलावा कुछ नहीं. दो दिन पहले मैं साइकिल से जा रहा था. आगे पांच लड़के एक दूसरे का हाथ पकड़े चल रहे थे. बीच-बीच में सीटी बजा रहे थे. कुछ देर मैं पीछे-पीछे चलता रहा, फिर बोला-‘‘अरे भाई! सड़क पर इस तरह मत चलो कि दूसरे लोग चल ही न सकें.’’ एक ने कहा, ‘‘लेक्चर मत दीजिए. सड़क चलने के लिए ही है और हम लोग भी चल ही रहे हैं.’’ मैंने कहा-‘‘यही तो मैं भी कह रहा हूं कि सड़क पर चलने का अधिकार सभी का है. आप लोग हाथ थाम कर चलेंगे तो पीछे के लोग कैसे आगे जा पायेंगे?’’ बहरहाल मैं बचाकर आगे निकल गया. ऐसा आए दिन होता है. आज की जीवन-शैली में किसी को किसी चिंता नहीं रह गई है. बारातें भी निकलती हैं तो सड़क जाम कर देती हैं. लोग घंटों नाचते-गाते, शोर मचाते सड़क पर अवरोध पैदा कर देते हैं. डी.जे. के गाने तो शोर से कान खराब करने वाले होते ही हैं. साथ में मन खराब करने वाले भी होते हैं. भोजपुरी द्विअर्थी गाने अश्लीलता फैलाते हैं. उनको सुनकर घर-परिवार में शर्म महसूस होती है. कीर्तन-भजन करने वाले भी लाउडस्पीकर इतने जोर से बजाते हैं कि आस-पास के लोगों का जीना दूभर हो जाता है. बीमार और बूढ़ों को परेशानी होती है. परीक्षा के दिनों में बच्चे पढ़ नहीं पाते. सड़क पर चलने वाले वाहनों के हार्न इतने तेज बजते हैं कि कभी-कभी आदमी घबड़ा जाता है. जो कुछ हमारे हाथ में है, उसे भी हम सुधार नहीं सकते. क्यों नहीं सोचते कि ऐसा काम न किया जाय जिससे दूसरों को असुविधा हो? आखिर आदमी होने का मतलब तो यही है न! प्रशासन के सख्त हुए बिना लगता है कुछ भी ठीक नहीं होगा
अरविन्द अवस्थी, श्रीधर पाण्डेय सदन, बेलखरिया का पुरा, मीरजापुर (उ.प्र.)
(पत्र-लेखक को श्री अंशलाल पंद्रे की पुस्तक ‘सबरंग-हरसंग’ भेजी जाएगी. संपादक)
नारी की विवशता का सटीक चित्रण
प्राची का जनवरी 2016 अंक प्राप्त हुआ. माधव सप्रे की कहानी ‘एक टोकरी भर मिट्टी’ बेहद शिक्षाप्रद लगी. निर्मला तिवारी की कहानी ‘समर्पण’ ने चुप्पियों को तोड़ा. इसमें नारी की विवशता का सटीक चित्रण किया गया है. लघुकथा ‘निर्माता’ (केदारनाथ सविता) की कहानी ने प्रभावित किया. गीत-मुक्तक ‘जब किसान आंसू बोता है’, मन को छू गयी.
डॉ. अनुराधा चंदेल ‘ओस’, मीरजापुर
युवाओं की उम्र
यह जानकर बेहद प्रसन्नता हुई कि प्राची का युवा लेखन कहानी विशेषांक प्रकाशित होने जा रहा है. आपकी सोच बढ़िया है. इससे नए लेखकों को उचित मार्गदर्शन व मंच-स्थान मिलेगा. युवाओं को लिखने की प्रेरणा मिलेगी, किंतु इसमें उम्र मात्र 35 वर्ष रही है, जो बहुत कम है. कम से कम 45 वर्ष होनी चाहिए, क्योंकि साहित्य के क्षेत्र में 35 वर्ष शिष्यावस्था मानी जाती है और 35 वर्ष की आयु में युवक साहित्य की ए.बी.सी.डी. सीख रहे होते हैं. इसी पंचमढ़ी में युवाओं के लिए एक मंचकार्यशाला 24, 25, 26 जनवरी को है, जिसमें युवाओं की उम्र 45 वर्ष तक रखी गयी है. विशेषांक की सफलता के लिए अग्रिम बधाई.
राजीव नामदेव, टीकमगढ़ (म.प्र.)
(राजीव नामदेव जी, क्या आप बता सकते हैं कि किस शास्त्र और विधान में 45 साल का व्यक्ति युवा कहलाता है. हमारे शास्त्रों ने एक युवा की उम्र 25 से 30 साल की रखी है. इसके बाद व्यक्ति प्रौढ़ावस्था की श्रेणी में आता है. आज एक व्यक्ति की औसत उम्र 60 साल मानी जाती है. तद्नुसार भी 45 साल का व्यक्ति वृद्ध की श्रेणी में आता है. रही बात लेखन की, तो यह जन्मजात गुण होता है, जो मनुष्य के अंदर उसकी किशोरावस्था में ही जन्म लेने लगता है. आजतक मैंने ऐसा कोई लेखक नहीं देखा जो 35 साल की उम्र में लेखन कार्य सीख रहा हो. 35 साल की उम्र तक व्यक्ति अपना आधा जीवन व्यतीत कर लेता है, अतः बहुत सोच-समझकर युवा लेखक के लिए अधिकतम उम्र 35 वर्ष रखी गई है. उम्र के हिसाब से यह भी बहुत अधिक है. सम्पादक)
कहानियों का स्तर उच्च है
प्राची का जनवरी अंक मिला रुचिकर एवं पठनीय, पहले की तरह प्रेरक एवं बेहतरीन सम्पादकीय, डॉ. कुंवर प्रोफिल का पत्र ‘पुत्र वधुओं के नाम’, माधव सप्रे की ‘स्त्रियां और राष्ट्र’ तथा ‘एक टोकरी या मिट्टी’ (घरों के रूप में) पढ़ने को मिली बहुत अच्छी रचनाएं लगी. प्राची में प्रकाशित कहानियों का स्तर तो सदैव ही उल्लेखनीय रहता है. चुनी हुई काव्य रचनाएं और लघु कथाएं भी अच्छी लगी.
शिवरशरण दुबे, कटनी
संपादकीय बुद्धजीवियों की पोल खोलता है
फरवरी 16 प्राची की लेखकीय प्रति प्राप्त हुई. धन्यवाद. आपका सम्पादकीय ‘डफली का राग’ उन राजनीतिज्ञों एवं तथाकथित बुद्धिजीवियों की बुद्धि की पोल खोलता है, जो असहिष्णुता के नाम पर देश को बदनाम करने में लगे हैं. ये वो लोग है, जो चाहते हैं कि केवल उन्हें और उनकी विचारधारा वाले कवियों को ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हो और जो वे करें और कहें, उसको कोई न करे और जो करेगा वही असहिष्णु है.
1980 में के. पी. सक्सेना द्वारा लिखा गया नागर जी का साक्षात्कार न केवल अत्यंत रोचक है, वरन् कई नई जानकारी देता है, जैसे उन्होंने अपनी पहली कहानी तसनीम लखनवी के नाम से लिखी गयी थी और उनकी दीवार घड़ी के अंक भी हिंदी में थे. इस वर्ष उनकी जन्म शताब्दी है, इसलिए भी उनका यह साक्षात्कार और प्रकाशित कहानी का प्रकाशन समयानुकूल है. अन्य रचनाएं भी पत्रिका की प्रतिष्ठा के अनुकूल हैं.
कन्हैयालाल अग्रवाल ‘आदाब’, आगरा
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साहित्य समाचार
गजल कुम्भ 2016 आयोजित
नई दिल्लीः अंजुमन फरोग-ए-उर्दू के तत्वावधान में वरिष्ठ गजलकार श्री दीक्षित दनकौरी की अगुआई में 09 जनवरी 2016 को अखिल भारतीय गजल गोष्ठी ‘गजल-कुम्भ’ का सफल एवं यादगार आयोजन, ईस्ट एण्ड क्लब, शाहदरा, दिल्ली में किया गया.
राष्ट्रीय स्तर आयोजित ‘गजल-कुम्भ’ 9 जनवरी 2016 को दोपहर 2 बजे से आरम्भ होकर, 10 जनवरी 2016 को सुबह 7 बजे तक चला. इसमें गजलों की अनवरत
धारा बहती रही और उपस्थित गजलगो इसमें सराबोर होते रहे. गजल कुम्भ में देश के विभिन्न हिस्सों से आये करीब दो सौ शायरों और शायरात ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई.
प्रति वर्ष आयोजित होने वाले चर्चित गजल कुम्भ में इस वर्ष दो सत्र हुए. गजल-कुम्भ के प्रथम सत्र की अध्यक्षता, वरिष्ठ एवं प्रसिद्ध शायर, श्री सीमाब सुलतानपुरी ने की. बदायूं से पधारे बुजुर्ग शायर श्री फहमी बदायूंनी इस सत्र के मुख्य अतिथि थे. चर्चित समकालीन शायर श्री कृष्ण कुमार नाज के संचालन में गजल-कुम्भ का प्रथम सत्र, दोपहर 2 बजे से आरम्भ होकर शाम 7 बजे तक चला. रात साढ़े आठ बजे गजल-कुम्भ का दूसरा सत्र आरम्भ हुआ. वरिष्ठ कवि पदमभूषण श्री गोपालदास नीरज के सान्निध्य, और अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त वरिष्ठ शायर पद्मश्री जनाब बेकल उत्साही की अध्यक्षता में सम्पन्न हुए इस द्वितीय-सत्र का अत्यन्त कुशल संचालन प्रख्यात गजलकार श्री दीक्षित दनकौरी ने किया. इस अवसर पर नेपाल के प्रसिद्ध कवि श्री बसन्त कुमार चौधरी के काव्य-संग्रह ‘आंसुओं की सियाही से’ का लोकार्पण भी हुआ. नेपाली कवि श्री बसंत चौधरी का यह पहला हिंदी काव्य संग्रह है. इसके उपरान्त गजल-कुम्भ के द्वितीय-सत्र का रात 9 बजे से आरम्भ हुआ. गजल पाठ का क्रम सुबह 7 बजे तक चलता रहा. गजल कुम्भ में उपस्थित शायरों व शायरात में लक्ष्मी शंकर बाजपेयी, अशोक अंजुम, नीना शहर, मधु गुप्ता, नीलम मेंदिरत्ता, गीतिका वेदिका, सन्दीप शजर, सन्तोष सिंह, ब्रजेश तरुवर, राशिद गुनावी, जितेन्द्र राजपुरोहित, अभिनव अरुण, गोविन्द गुलशन,
मधुप मोहता, पुष्पेन्द्र पुष्प, वैद्यनाथ सारथी, अनुराग गैर, राजेन्द्र कलकल, चांदनी पाण्डेय, चांद मुहम्मद आखिर, तालिब तूफानी और मुनीश तनहा के नाम उल्लेखनीय हैं.
प्रस्तुतिः अभिनव अरुण, बनारस (उ.प्र.)
डॉ. मधुर नज्मी को गजल वारिधि अलंकरण सम्मान
काशीपुरः हिंदी उर्दू, भोजपुरी के मानक कवि शायर, समीक्षक, विश्वयात्री, डॉ. मधुर नज्मी को साहित्य-संगम और सृजन संवाद मंच, काशीपुर, उत्तराखंड के आयोजनों में विगत 21-22 नवम्बर को क्रमशः गजल वारिधि और साहित्य सारस्वतम् सम्मान से प्रो. ओम राज, डॉ. मनोज आर्य, श्रीमती उषा चौधरी (मेयर काशीपुर) ने डॉ. मधुर नज्मी को अलंकरण, प्रतीक चिह्न, अंग वस्त्रम्, सम्मान पत्र और नकद राशि देकर सम्मानि-विभूषित किया. डॉ. मधुर नज्मी के साहित्य से सम्बद्ध छः महत्वपूर्ण मौलिक गीत-गजल कृतियां और आठ सम्पादित कृतियां साहित्य के हल्के में चर्चित हैं. सातवीं गजल कृति ‘रास्ते तैरते हैं पानी पर’ शीघ्र प्रकाश्य है. देश-विदेश से अनेकशः सम्मानों से अलंकृत, सम्मानित डॉ.
मधुर नज्मी, जनपद-मऊ, ब्लॉक-रानीपुर के अंतर्गत ग्राम-कोंडा के निवासी हैं. सम्प्रति- ‘काव्यगुखी साहित्य अकादमी’ गोहना मोहम्म्दाबाद, की साहित्यिक संस्था के महानिदेशक डॉ. मधुर नज्मी की रचनाएं अपने वैचारिक, अग्निमा की बदौलत देश-विदेश के काव्य मंचों तक चर्चित हैं.
प्रस्तुतिः मनोज आर्य, काशीपुर
रुलाती रहेगी जिंदगी मुझे और कितनी बार
मीरजापुरः 10 जनवरी 2016 मिशन कंपाउंड स्थित जनता साप्ताहिक समाचार पत्र के कार्यालय में भोजपुरी साहित्य के कहानीकार कन्हैया सिंह ‘सदय’ का सम्मान किया गया. उनकी उपस्थिति में एक सरस काव्य सरिता प्रवाहित हुई, जिसकी
अध्यक्षता गणेश गंभीर और संचालन केदारनाथ सविता ने किया.
कन्हैया सिंह ‘सदय’ ने कहा कि रचना का उद्देश्य केवल यथार्थ की प्रस्तुति नहीं, बल्कि ऐसा होना चाहिए जिससे समाज को कुछ मिले. उन्होंने सुनाया ‘निकलेगा चांद मधुर-मधुर प्यार के, करे नमन कोटि नयन जीवन आधार के’.
गणेश गंभीर ने सुनाया, ‘कान बंद कर लेने से कोलाहल बंद नहीं होगा, शब्द अराजक हुए तो संभव कोई छंद नहीं होगा.’ केदारनाथ सविता ने सुनाया, ‘मैं हूं, रात है, तनहाई है और दर्द हैं हजार, रुलाती रहेगी जिंदगी मुझे और कितनी बार.’
प्रमोद कुमार सुमन ने सुनाया, ‘नहीं कोई और भंवरा, अब किसी की बात सुनता है, तेरे सजदे में है सारे के सारे तुम चले आओ.’ प्रभु नारायण श्रीवास्तव ने सुनाया, ‘हां बहुत दिनों तक गूंजता रहा मेरा आंगन, मेरी अनुपस्थिति से’ ताबिश इकरामी ने सुनाया, ‘हमारे दौर का टपकेगा खून भी यारों, जमाना जब तारीख को निचोड़ेगा.’
आनंद सधिदूत ने सुनाया ‘फरले आंख बिलार, निहारे न्यायतुला पर वानर के’.
इसके अतिरिक्त शहर के अन्य गणमान्य कवियों ने भी अपनी रचनाएं सुनाई. अंत में आयोजक आनन्द संधिदूत ने सबका आभार व्यक्त किया. भवदेव पांडे स्मृति संस्थान की ओर से मुख्य अतिथि को पुस्तकें भेंट की गई.
प्रस्तुतिः केदारनाथ सविता, मीरजापुर
रवीन्द्र कालिया नहीं रहे
प्रसिद्ध कथाकार, उपन्यासकार और सम्पादक रवीन्द्र कालिया का 9 जनवरी को नई दिल्ली में निधन हो गया.
11 नवंबर, 1938 को जालंधर शहर में एक शिक्षक परिवार में जन्में रवीन्द्र कालिया का हिन्दी साहित्य के प्रति रुझान लड़कपन से था. यही रुझान उन्हें साहित्यिक पत्रकारिता की ओर ले गया और वे भाषा, धर्मयुग, गंगा-यमुना में सम्पादन के बाद कोलकाता में भारतीय भाषा परिषद् की मासिक पत्रिका ‘वागर्थ’ के सम्पादक हुए और तदनन्तर भारतीय ज्ञानपीठ के निदेशक रहे. उन्होंने ‘नया ज्ञानोदय’ का सम्पादन भी किया.
हिंदी कथा साहित्य में प्रयोग, परिवर्तन और पुनर्परिभाषा के जोखिम उठानेवाले विरल रचनाकारों में रवीन्द्र कालिया का नाम प्रमुखता से लिया जाता है. अपनी पहली कहानी ‘नौ साल छोटी पत्नी’ से ही हिन्दी जगत में छा जानेवाले रवीन्द्र कालिया ने उपन्यास-लेखन में भी समान सार्थकता से अपना स्थान बनाया.
साभारः प्रकाशन समाचार
शोक-समाचार
नई दिल्लीः मशहूर शायर और फिल्मी गीतकार निदा फाजली का आठ फरवरी, 2016 को दुःखद निधन हो गया. वह 77 साल के थे. उनके परिवार में एक बेटा और एक बेटी है. उन्हें पद्मश्री और साहित्य अकादमी अवार्ड से नवाजा गया था. उन्होंने ‘मैं रोया परदेस में भीगा मां का प्यार, दुख ने दुख से बात की, बिन चिट्ठी बिन तार.’, ‘तुम ये कैसे जुदा हो गए, हर तरफ हर जगह हो गए’ और ‘कभी किसी को मुकम्ममल जहां नहीं मिलता’ जैसी दिल को छू लेने वाली रचनाएं साहित्य जगत को दीं.
प्राची परिवार उनके दुःखद निधन पर श्रृद्धा-सुमन अर्पित करते हुए यहां वरिष्ठ साहित्यकार अंशलाल पंद्रे की निदा फाजली के ऊपर लिखी गई यह रचना प्रस्तुत कर रहा है-
झनकें साज खनके आवाज अलफाज निदा फाजली.
सुर लय ताल सरोवर बीच कंवल निदा फाजली.
लहर तरंग उमंग संग पंछी हर चहचहाये.
सुमन पंखुरी पत्ती डाली, झूम झूम मुसकुराये.
नजर पड़ी जब भी जिधर गुनगुनाये निदा फाजली.
खिले शब्द बहती सुर सरिता कल-कल कर नाद निनाद.
मयूर कोकिल पपीहरा शोर मचा करें संवाद.
उमड़ घुमड़ कर बरसे बादल हरषे निदा फाजली.
चहुं दिशाओं लब्धित ज्ञान गौरव जगत करे गुनगान.
अदा करें शुक्रिया भर के अधरों पे पुस्कान.
‘अंश’ हुए मुखातिब देख सुन आन बान निदा फाजली.
(यह गीत अंशलाल पन्द्रे की पुस्तक ‘सबरंग-हरसंग में संग्रहीत है.)
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