शोभा जैन की दो लंबी कविताएँ

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दो कवितायेँ -- -समय के साथ.………… लेखिका ---शोभा जैन समय बदलता हैं पर नहीं बदलती कुछ चीजें समय के साथ ।   जैसे कुछ रिश्ते उनमे जन्मी ...

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दो कवितायेँ --

-समय के साथ.…………

लेखिका ---शोभा जैन

समय बदलता हैं

पर नहीं बदलती

कुछ चीजें

समय के साथ ।

 

जैसे

कुछ रिश्ते

उनमे जन्मी

भावनाएं

और

उनकी प्रष्ठभूमि।

 

ख़त्म होता हैं

समय का पिटारा

लेकिन

कुछ बातें

कभी ख़त्म नहीं होती

पर समय,

ख़त्म हो जाता हैं

हम उलझे ही रहते हैं

तोलते -मोलते हुए शब्दों में ।

 

भ्रम,संशय,संदिग्धतों में

सच को तलाशते

वर्तमान को हर रोज

दफन करते

नहीं जी पाते

हम अपनी असल जिन्दगी

जिसके लिये हम बने थे

इसकी, उसकी, कहानी

में अपनी रूचि दिखाते,

और अपने जीवन से

नीरसता बरसाते।

 

ख़त्म करते

गुजरते हर एक पल को

नहीं पहचान पाते

जीवन के असल

कारण को

क्यों हुई हमारी रचना

क्यों बने हैं हम

अपने ही सवालों से भागते

जूझते,भटकते,

संसार के माया जाल में,

दूसरों को

सजा देते,

सजा पाते

बिना किसी न्याय

निर्णय और समाधान

के हर रोज काटते

अपनी -अपनी जिंदगी

समय का चक्र

अपनी गति से

हर रोज बड़ता

पर हम

नहीं चल पाते उसके साथ

हम जीते हैं,

अपने ‘अहम’ में

अपने- अपने ‘वहम’ में

जीते हैं,

एक ही परिवार में रहकर

कभी -कभी एक ही घर में रहकर

अक्सर एक ही कमरे के भीतर

जीते दो अलग जिंदगी।

 

जो छुपी रहती

घर से ,

परिवार से

समाज से,

लेकिन

नहीं छुप पाती

अपने आप से

न ही उस इंसान से

जिसके साथ जी रहे

दो अलग -अलग जीवन

कुछ ऐसे जीवन जीना

अब

हमारी परिपाटी

बनती जा रही हैं

ये नया दौर हैं

जताया

और

दिखाया

जा रहा हैं

पर समय का चक्र वही हैं

नहीं बदले उसके रास्ते

और गति

या तो हम पिछड़ रहे हैं

या ज्यादा आगे निकल गए

पर समय के साथ

नहीं ...

नहीं बैठा पाए

तालमेल समय के साथ

न सिर्फ समय की गति से

बल्कि

रिश्तों की मति से।

 

समय आया

इस परिवर्तन के

नामकरण का

नाम मिला ‘नया दौर’

जसके साथ ‘हम’ नहीं चलते

जिसे चलना पड़ता हैं

हमारे साथ ।

 

अपने ही घरों में

अपने ही लोगों के बीच

जैसे होड़ लगी हैं

कौन सबसे पहले

इसे अपनाता हैं।

इस ‘नए दौर’ को

किसमें साहस हैं

सभ्यता को आड़े रख

संस्कृति को धूमिल कर

नए का जामा पहनने का

अपनी नयी स्रष्टि का

नया एक नाम

रचने का।

शुरू हुआ

‘नया दौर’

परंपरा और पीढ़ी

के विरोधी मन का

जो विरोध पर शुरू

विद्रोह पर ख़त्म...

अपने साथ ख़त्म करता

वो उस समय को ,

जो वर्षो से सहेजा था

कई पीढ़ियों ने

परम्पराओं का

निर्वहन करते हुए

अब तो होड़ लगी हैं

किसमें साहस हैं ...

सबसे पहले

आगे जाने की

चाह में

सबको

पीछे धकेलने का।

 

कौन सबसे पहले

अपनी

चैन की

बंसी बजायेगा।

 

शेष सभी

बेचैन रहेंगे।

उसकी चिंता में

की वो किधर हैं

कैसा हैं

जीवित हैं

या फिर

निर्जीव

सिर्फ़

हमारे लिए.....

या फिर

ये गुमनामी भी

सिर्फ

हमारे लिए......

हमसे उबी हुई

जिन्दगी के लिये

जिसमे जिए

उसे जन्म देने वाले ने

अपने जीवन की

हर विलोम परिस्थिति

के असामान्य क्षण ।

 

क्या उसका जन्म सिर्फ

इन्सान होने के

लिये हुआ था ?

या वो हमारी मानवता थी

जो उसे पाला-पोसा

मानवता के लिये.....

वो अभावों से भरा जीवन

क्या सिर्फ

मानवता का एक उदाहरण था

जिसमे जन्मा था तू

तेरी परवरिश

इन्सान होने का

प्रत्यक्ष प्रमाण थी

अनापेक्षित तुझे

देते चले गए

वो सुख

जो कभी

हमने नहीं भोगे

सिर्फ

समय के इन्तजार में

पर समय

ख़त्म हो रहा हैं

और उम्र भी

तपते हुए

निभती चली गयी

जिम्मेदारी, मानवता

बन गयी थी

या फिर ये जो

अब

हो रहा हैं

मानवता के लिये हैं ?

जीवन जीने के लिये

किसी को जीवन दिया

सत्य तो यही हैं

पर

जीवन ख़त्म हो रहा हैं

लेकिन

भावनायेँ

नहीं ख़त्म हो रही

समय के साथ.…………।

 

…………………………………………………………………………………..

 

2- - बिना अक्षर की किताब।


लेखिका ---शोभा जैन

बिना अक्षरों की
किताब हैं जीवन
सिर्फ़ एहसास
भरे पड़े हैं...
अक्षरों से पिरोकर
सिर्फ बनायीं जा सकती हैं
शब्दों की माला।
एहसास के लिए जरुरी हैं,
मौन संवाद
पर समय का अभाव हैं
अपने -अपने जीवन की
भाग दौड़ में
समय नहीं हैं
बिना अक्षरों की
किताब
के लिये,
समझने के लिये
इंसान को इंसान।


मैली बोरियां ओढ़कर
ठण्ड में ठिठुरते बचपन
को देखकर उसके पास से
होकर गुजर जाना;
क्या नहीं कचोटता
मैले कपड़ों में झाड़ू लगाती
अस्पताल के बाहर की सड़क पर
बूढ़ी माँ।
भयानक रोग से
हर रोज मरती ग़रीबी।


एक समय के भोजन के बदले
खुदको बेच रहे हैं लोग ।


नहीं समझते ये अक्षर की दुनियाँ
न ही शब्द का संसार
इनके लिये सबकुछ हैं सिर्फ
मौन संवाद।


ऐसा प्रतीत होता हैं
मानों, इंसानियत पर
कोड़े बरस रहे हो;
या मानवता की त्रासदी
का समय हैं.।


मैं स्वयं को खो रही हूँ
इन अनुभूतियों के जंगल में
क्योकि मैं जीती हूँ
अक्षर की दुनियाँ में।
हर रोज पढ़ती हूँ किताबें
किताबों में पढ़ती हूँ
वो सब, जिसे जीते हैं
इंसान यथार्थ में
वो जीते हैं। मैं पढ़ती हूँ उनको।


सोचती हूँ और कितना पढू
बारबार, कितनी बार ,

अख़बार पत्रिकायें।


और ये किताबें
समय के टुकड़ों में
फटते उसके पन्नें
पर अब नहीं,
ये अक्षर नहीं देते
अनुभूति
किताबों में
महसूस नहीं होती
ठण्ड में कापति रूह,
धूप में जलता
नग्गा बदन
और बारिश में
डुबते झोपड़े
न ही अक्षर
महसूस करते हैं
भूख की तलब..
चूल्हे की ठंडी राख
पटरियों के किनारे का सच
किताबें
नहीं महसूस करती
पांच रूपए के लिए
गाड़ियों के
सिंगनल के बीच
जोखिम में
खुद को पालता
कटोरा लेकर ,
घूमता बचपन

अक्षर नहीं समझते

जीवन की अनुभूति
किताबें देती हैं शिक्षा
ज्ञान तो सिर्फ जीवन ही देता हैं
जीवन 'अनुभूति' देता हैं
मैं आज दुः खी हूँ,
अब
किताबें नहीं,
इंसान के जीवन को पढूंगी
पढूंगी,
बिना अक्षर की 'किताब' ।

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मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड 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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: शोभा जैन की दो लंबी कविताएँ
शोभा जैन की दो लंबी कविताएँ
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