ईबुक - सरहदों की कहानियाँ -9 / मज़बूत टाँका हुआ बटन - पोपटी हीरानंदाणी / अनुवाद व संकलन - देवी नागरानी

SHARE:

  मज़बूत टाँका हुआ बटन पोपटी हीरानंदाणी मेरी भाग्यवान देखी है? हक़ीक़त में जैसे मिलिटरी का एक किरदार। उस दिन कहा था, "मुझे तुम्हारी य...

  image

मज़बूत टाँका हुआ बटन

पोपटी हीरानंदाणी

मेरी भाग्यवान देखी है? हक़ीक़त में जैसे मिलिटरी का एक किरदार। उस दिन कहा था, "मुझे तुम्हारी यह बात बिलकुल अच्छी नहीं लगती।"

मैंने कहा था- "मेरी कोई भी बात तुम्हें अच्छी लगी है क्या?"

तब कहती है- "तुम हो ही उल्टे तो फिर मैं क्या करूँ?"

अब मैं हो गया उल्टा और वह हुई सुल्टी। खट-पट भी तो इतनी है

कि बस बात ही मत पूछो। ज़बान जैसे तेज़ धार वाली तलवार। मुझ जैसे छः फुट वाले को उसकी तीन इंची ज़बान लिटा देती है। दोस्त कहता है,

"जिस घर में मधुर वार्तालाप करने वाली औरत न हो उसे जंगल में बस जाना चाहिए।" सच, भला जंगल इस मेरे घर से किसी भी हाल में बदतर न होगा?

बराबर आग वन में भी लगती है। पर जब लगती है तो सब कुछ भस्म कर देती है न? यहाँ तो हरदम आग लगती रहती है। किसी न किसी कोने में आग के शोले उठते ही रहते हैं। इससे तो अगर घर छोड़कर निकल.... पर मैं निकलूँ तो क्यों निकलूँ? घर मेरा और मैं ही निकलूँ? क्यों न उसको ही निकाल दूँ? निकाल दूँ....? अपने बच्चों की माँ को निकाल दूँ? बच्चों का क्या होगा? घर का क्या होगा? लोग क्या कहेंगे? लोग!

लोगों को मारो गोली। ये ही तो थे जो कहते फिरते थे- "शादी क्यों नहीं करते?"

"मूमल का मुखड़ा कब दिखाओगे?"

"भगवती के शादी ब्याह के गीत कब गूँजेंगे?"

ये लो, मूमल ले आया, अब इस भाग्यवान सुराही के मुँह से जो यह ज़़हर उगलता रहता है, वह मेरे सिवा दूसरा कौन निगलता है?

 

मैं भी अजीब आदमी हूँ। इस तोती ने अपनी चोंच से कोंचते-कोंचते मेरे पंखों को इतना सपाट और चिकना बना दिया है कि मेरे पास सालों के

साल उसके साथ पिंजरे में रहने के सिवा और कोई रास्ता ही नहीं बचा है। पर सोचता हूँ कि मैं उससे इतना क्यों डरता हूँ? औरत से डर रहा हूँ। ऑफ़िस में तो मैं कड़कती आवाज़ में बात करता हूँ। वह ज़रीन कपाड़िया मुझसे कितना कतराती है? ड्राफ्ट लिखते वक़्त उसके हाथ काँपते हैं। सब चपरासी मुझसे डरते रहते हैं। मैं भी कहता हूँ भले ही डरते रहें.... इस ऑफ़िस में मेरा प्रभुत्व बना रहे.... वैसे घर में तो वह मुझे धमकाती रहती है। सच तो यह है कि उँगली से उठाती है और उँगली से बिठाती है। मेरे आत्मविश्वास को कुचलकर रख दिया है। बच्चे कुछ पूछते हैं तो कहता हूँ- "जाकर माँ से पूछो।" उस दिन फत्तू ने जब कोर्स के बारे में पूछा, तब भी माँ से पूछने के लिये कहा तो कितना चकित हुआ? कह दिया- "डैडी! ममी को कॉलेज अध्ययन के बारे में क्या पता?"

मैं भी क्या करूँ? कभी कुछ कहता ही नहीं हूँ कि मिलिट्री का क़ायदा लागू हो जाता है। फ़ारसी के जानकार सच कहते हैं कि शादी की पहली रात ही बिल्ली मारनी चाहिए नहीं तो फिर बीवी सर पर नाच करने लगती है।

तौबा.... तौबा... ज़बान की कैंची इतनी तेज़ चलाती है कि मेरा वजूद ही टुकड़ों टुकड़ों में कटकर दर्जी के चिथड़ों की तरह हो जाता है। इससे तो शादी न करता!

पर भाई, शादी करने का तो मेरा भी दिल था। मैं समझा, औरत क्या होगी खांड की डली होगी। उसके नरगिसी चेहरे पर महकती शबनम होगी जिससे हर वक़्त आस-पास सुगंध आती रहेगी। वह बात करेगी तो गीत झड़ने लगेंगे और मैं सुध-बुध भुलाकर उस मधुरता में मदहोश हो जाऊँगा। मुझे क्या पता कि यह बला मेरे पल्ले पड़ जाएगी।

भला शादी की तो हर वक़्त उसे कहते रहते- "मेरी चाशिनी.... मेरी रोशनी.... मेरी बुलबुल..... मेरी सोहनी....." बिलकुल मुरीद बनकर उसके पीछे क्यों फिरता रहा?

सच.... उस वक़्त मुझे कितनी अच्छी लगती थी। पलकें झुकाकर तिरछी नज़र से मेरी ओर देखती थी तो मेरे सारे शरीर में विद्युत प्रवाहित होती थी। उसका दुपट्टा कंधों से खिसककर नीचे सरक आता था तो मेरी तमन्नाएँ ऊपर उभर आतीं.... उसका हाथ पकड़ता था तो वह शरमाकर कहती थी.... ‘छोड़ो ना, क्या कर रहे हो?’ बस.... मेरे दिल की उमंगों की तरंगें एक दूसरे के ऊपर लहराती बलखाती रहतीं.... एक अनोखी ख़ुशी की झाग मेरे दिल के किनारे चले आया करती। गर्म और तेज़ अरमानों की चमक मेरे मन पर फैल जाती थी।

पर अमा यार, जब मैं जवान था जवानी के रंगों के सामने इन्द्रधनुष के रंग भी पछाड़ खा जाते। जोबन की उस अवस्था में कड़वी मिठास और मीठी कड़वाहट, मिलना और तड़पाती ख़ुशी और बिछड़ने में सोज़ भरा सुख, न जाने क्या क्या महसूस किया है!

तो क्या अब मैं बूढ़ा हो गया हूँ? अभी तो सिर्फ़ चालीस पार किये हैं। परदेस में चालीस के बाद ही जवानी की ऋतु शुरू होती है। पर दोष भी तो मेरा ही है, तब इतनी खुशामद न करता तो आज इतना सिर घूमा हुआ न होता।

पर अब भी वक़्त है, अगर डंडा उठेगा तो भला होगा... च....च...

क्या कह रहे हो? क्या करोगे आख़िर? क्या मारोगे उसे? बस इसी शराफ़त ने तो मार डाला है। अगर मुझ-सा कोई मर्द सामने होता तो उसके दाँत तोड़ देता, पर इस औरत जात के सामने....

पता नहीं ये औरतें ऐसी क्यों बनी हैं आख़िर? क्यों एक औरत में दो औरतें समाई हैं.... एक कोमल, दूसरी कठोर। एक फूल जैसी, दूसरी लोहे जैसी.... एक शीतल अग्नि और दूसरी जलता पानी.... ओह! दो विपरीत चीज़ें मिलेंगी तो ऐसा ही होगा।

हे मेरे भगवान! बड़ी समालोचना वाली नज़र होती है उनकी। उस दिन कह रही थी कि "चलो बांद्रा, मेरी मासी के पास।"

"अरे, मैं तुम्हारी मासी के पास चलकर क्या करूँगा?"

भला दो औरतें मिलती हैं तों बातें करती हैं फ़क़त अचार और पापड़ के बारे में, तक़रीरें करती हैं, भाजियों की मंहगाई पर और बहस करती हैं अनजाने लोगों की मंगनी और शादी की बातों पर।

मैंने कहा- "मैं बैठकर मैगज़िन पढ़ता हूँ।" तो मुँह फुलाकर बैठ गई

है। हैफ़ है हमारी मर्दानगी पर और शर्मिंदगी होती है हमारे मर्द होने पर। बस, अगर औरत ने दो आँसू टपका दिये तो हमने अपनी दाढ़ी दे दी उनके

हाथ में....!

कल बेचारा विश्नू आया था। छुटपन का दोस्त है, सहचर सखा। खाना खाकर निकल पड़े और जाकर अंधेरी में होतू के पास पहुँचे। पर अगर निकल गए तो क्या हुआ?

पर घर पहुँचे तो रात को दिन बनाकर रख दिया। बात का बतंगड़ हो गया। शादी की तो नल-दमयंती की तरह एक ही चादर में लिपटे से रहते। बस कहती है- "उस मुर्दार विश्नू से क्यों नहीं शादी कर ली?"

वह सुन्दर मेरी मासी का बेटा है। है पूरा घुमक्कड़, सचमुच पक्का बंडलबाज, पर कुछ भी कहो वह मन बहला जाता है। अगर थोड़ी व्हिस्की पीता है तो क्या हुआ? बोतल अगर पीता हूँ तो उसके मैक़े से तो नहीं ले आता?

पर सुंदर का कहना तो उसे अच्छा ही नहीं लगता। अरे, अगर मेरी पत्नी है तो क्या हुआ? तुम्हारा पति हूँ तो क्या किसी का बिरादर, यार-दोस्त नहीं हुआ क्या? माँ और बहन को तो सहती ही नहीं, चाहे वे कितनी भी इससे अच्छी लय ताल में व्यवहार करें। यह बस उनकी कमियों और कमज़ोरियों की ओर ही नज़र धरेगी। उसका पति होने के नाते क्या सिर्फ़ उसकी ही जागीर बन गया? ख़ुद भले ही हज़ारों खर्च करके साड़ियाँ ले ले, पर मजाल है कि बहन के लिये कभी भूले से भी सौ डेढ़ की कोई चीज़ ख़रीदे। मेरी माँ को भी अगर कुछ देती है तो लेखा जोखा सुनाकर, दाम को दस गुना बढ़ाकर, फिर भी जैसे उस पर बहुत मेहरबानी करते हुए। पैसे मेरे और मेहरबानी उसकी। छाुल्म है! बैल की तरह पसीना बहाकर पैसे हम कमाएँ और वे उस कमाई के पैसे की मुफ़्त में मालकिन बनती हैं। अजीब माजरा है। सिर्फ़ मालकिन बनें तो ग़नीमत, पर मेरे समस्त हस्ती के हक़ वास्ते जैसे उसे सौंपे हुए हैं। मेरे समय पर और मेरे पैसे पर, मेरे आने पर और मेरे जाने पर, मेरे उठने बैठने और बातचीत पर भी उसका हक़ है। वह लीला है न? मोती की पत्नी, उसका तौर-तरीक़ा, चाल-ढाल कितना मधुर व मनमोहक है। बातचीत भी मेरी गोपी की तरह नहीं है। बात करती है, तो लगता है जैसे सुबह की हवा सैर को निकली हो। दो घड़ी जाकर उसके घर बैठो तो लगता है घुटन भरे कमरे से निकल कर किसी नीम के पेड़ की छाँव तले बैठा हूँ। कभी तो उसकी काट खाने वाली बातों से भागकर उनके पास जा बैठता था तो ऐसे लगता था जैसे अष्टमी की रात चाँद और तारों के नीचे किसी की मधुर बाँसुरी सुन रहा हूँ। पर उसे मेरी ख़ुशी क्यों रास आती? सच में परेशान कर दिया है। अभी चप्पल पहन कर दरवाज़े की तरफ़ जाऊँ तो सवालों से हमला शुरू कर देती है- "कहाँ जा रहे हो? मोती के घर में क्या मिलता है? इससे बेहतर है घर में बैठकर आराम करो।"

दिल कहता था कि कह दूँ- "मेरी हर बात में हस्तक्षेप क्यों करती हो? आराम जाने और मैं जानूँ, तुम क्यों बीच में परेशान होती हो?"

वह घूरती इस तरह थी जैसे ज़हर भरा तीर फेंक रही हो। आख़िर तो मैं भी आदमी हूँ कोई कीड़ा-मकोड़ा नहीं? अरे उस ईश्वर ने भी एक कहानी लिखी थी- ‘मरा हुआ मकोड़ा’। पर मैं वह मकोड़ा बनूँ? बेग़ैरत मर्द बनूँ?

यह तो होना ही नहीं है। गर्दन मरोड़ दूँगा.... मरोड़ कर फेंक दूँगा। पर भैये, ये है सच, बचपन में रिकार्ड प्लेयर पर सुना थाः

घोट चढ्हयो घोड़ीअ ते नास पितो बोड़े

सवा घड़ीअ वास्ते सजी उम्र थो लोड़े।

(मतलब : दूल्हा चढ़ा घोड़ी पे, सब कुछ दाँव पर लगाकर, सवा घड़ी के वास्ते उम्र भर भोगता है।)

बस खांड पर जमा कीड़े मकोड़े जैसी हालत है हम मर्दों की। अरे शायद धोबी बन गया हूँ। सोच रहा हूँ.... कुर्ता निकाल कर पहन लेता हूँ.

... मुश्किल से जाकर इतवार मिलता है.... आज लेट जाता हूँ....!

अरे पर इसका बटन तो टूट गया है.... कहता हूँ कि टाँक दे.... नहीं नहीं रहने दो बिचारी को.... भले आज़ादी का आनंद लेने दो.... नहीं तो ऐसा मजबूत टाँकेगी कि क्या कहूँ.... छेद से सुई पार करके चारों ओर धागा लपेटकर.

...सुई आर-पार.... धागा चारों ओर....

"अरे लेट क्यों गए हो? भाभी के पास चलना है। जल्द ही तैयार होकर आओ, नहीं तो कहोगे धूप में लेकर चली थी इसलिये सर में दर्द हो गया है...."

"आज छोड़ दो, तुम भाभी के पास होकर आओ। मैं बैठ जा...."

"नहीं....नहीं.... ऐसे कैसे होगा? सब के साथ थोड़े ही रिश्ता तोड़ दोगे.... उठो... कमीज़ पहनो...."

--

ईबुक - सरहदों की कहानियाँ / / अनुवाद व संकलन - देवी नागरानी

 

Devi Nangrani

dnangrani@gmail.com

http://charagedil.wordpress.com/
http://sindhacademy.wordpress.com/

------

(क्रमशः अगले अंकों में जारी…)

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: ईबुक - सरहदों की कहानियाँ -9 / मज़बूत टाँका हुआ बटन - पोपटी हीरानंदाणी / अनुवाद व संकलन - देवी नागरानी
ईबुक - सरहदों की कहानियाँ -9 / मज़बूत टाँका हुआ बटन - पोपटी हीरानंदाणी / अनुवाद व संकलन - देवी नागरानी
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjbuBg4vD0EYzjrxcfl7R84-uaFZ93bDgT-5NwSd0DA681aIgsbHfT-iweiu6dqNqo3HaVrHwZWjcKlkRgrPtPkrzWewEYdNqUBT7K3EY68WN_KZsG4w4somw8y7Zan6KoQj9LW/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjbuBg4vD0EYzjrxcfl7R84-uaFZ93bDgT-5NwSd0DA681aIgsbHfT-iweiu6dqNqo3HaVrHwZWjcKlkRgrPtPkrzWewEYdNqUBT7K3EY68WN_KZsG4w4somw8y7Zan6KoQj9LW/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2016/02/blog-post_564.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2016/02/blog-post_564.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content