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पौराणिक कथाओं में सुना जाता है कि यज्ञ-यागादि, श्रेष्ठ कर्मों, सामाजिक नवरचना, राष्ट्र निर्माण और इंसान के वैयक्तिक से लेकर सामुदायिक-सार्वजनीन अच्छे कर्मों के दौरान असुर बीच में धमक कर कार्यसिद्धि में बाधा पहुँचाते थे, यज्ञों का विध्वंस करते थे और हमेशा इनका लक्ष्य यही होता था कि दुनिया में कोई अच्छा व श्रेयस्कर कार्य न होने पाए।
इसीलिए विभिन्न युगों में ऋषि-मुनियों और राजाओं ने असुरों पर नियंत्रण के लिए खूब सारे उपाय किए और तत्युगीन सत्ता एवं प्रजा को बचाया तथा आगे बढ़ाया।
उस समय राष्ट्र रक्षा और राष्ट्र हित सर्वोपरि थे इसलिए इन प्रयासों को प्रजाजनों का सहयोग भी मिला और सफलता पाने के लिए भागीदारी भी। आज की तरह वैयक्तिक स्वार्थ नहीं थे जिनके लिए हम देश और देशवासियों को भुला दें।
सत् और असत् का संघर्ष हर युग में चलता आ रहा है। दैवत्व से जुड़े हुए लोग न्यूनाधिक रूप में दिव्यत्व के साथ पैदा होते हैं और सृष्टि के लिए अपने सम सामयिक फर्ज को पूरा कर लौट जाते हैं। इनमें कुछ ही होते हैं जो सदियों तक के लिए कुछ नया विचार और नई संकल्पना दे जाते हैं और इतिहास में स्थान पा जाते हैं।
कुछ लोग विध्वंस के मास्टर माइण्ड या नकारात्मक प्रवृत्तियों के जनक के रूप में आते हैं और इतिहास को कलंकित करके लौट जाते हैं। जबकि अधिकांश लोग संसार में आते तो हैं पर केवल टाईमपास करके चले जाते हैं।
इंसान का हर क्षण कीमती है लेकिन यह बात केवल वही समझ सकता है तो समय के महत्व को पहचान कर उपयोग करना जानता है। श्रेष्ठ इंसान वही है जो अपने हर क्षण का उपयोग रचनात्मक प्रवृत्तियों के लिए करे और हमेशा ऎसा कुछ न कुछ करता रहे जिससे कि वह समाज और देश को कुछ दे सके, उपलब्धियां हासिल कर सके और अपने आपको श्रेष्ठतम व्यक्तित्व के रूप में स्थापित कर आदर्श पहचान कायम कर सके।
धरती पर आज भी बहुत से लोग हैं जो दिन-रात रचनात्मक कर्मयोग और राष्ट्र चिन्तन में लगे हुए रहते हैं। इन्हें न किसी से मदद की जरूरत है, न किसी से प्रोत्साहन पाने को ये मोहताज होते हैं। इन्हें न सम्मान पाने की परवाह है न अपमान की। अपने हाल में मस्त रहकर काम करते हैं और पूरी मस्ती के साथ जीने का आनंद पाते हैं।
दिली आत्मतोष के सिवा दुनिया का कोई आनंद सुकून नहीं दे सकता, इस बात को ये अच्छी तरह समझते हैं। इसलिए किसी भी प्रकार के छल-प्रपंच, मोह, स्वार्थ और प्रतिष्ठा के झमेले में नहीं पड़कर एकान्तिक आत्मतोष और भीतरी आनंद के साथ काम करते चले आ रहे हैं।
बहुत से अच्छे लोग एक साथ मिलकर समूहों के रूप में भी समाज के लिए अच्छा काम कर रहे हैं और इन्हें समाज भी आदर-सम्मान के साथ स्वीकार करते हैं उनकी बातों को मानता भी है और अनुकरण भी करता है।
बहुत से लोग जानते सब कुछ हैं, प्रतिभा और मेधा में किसी से कम नहीं हैं मगर उदासीन बने हुए हैं या उदासीन बना दिए गए हैं।
इनसे इतर तीसरी प्रजाति और है जो कर्मयोग की विभिन्न विधाओं में सक्षम है और सब प्रकार के अच्छे कर्म कर सकती है लेकिन इस प्रजाति के लोग काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मात्सर्य, अपने-पराये आदि के फेर में इस कदर उलझे हुए हैं कि इन्हें अपने काम से अधिक दूसरे काम-धंधे सुहाते हैं, ड्यूटी में जी नहीं लगता लेकिन दूसरे सारे काम पसंद हैं जो इन्हें क्षणिक सुख दे सकते हैं। यह सुख दैहिक भी हो सकता है, मानसिक भी।
फिर आजकल संचार के इतने अधिक उपकरण हमारे सामने आ गए हैं जिन्होंने आदमी की कार्यक्षमता में अप्रत्याशित विकास और विस्तार तो किया है लेकिन मूल कर्म और दैनंदिन जीवन व्यवहार से भटका कर ऎसा त्रिशंकु बना डाला है जिसमें वह आसमान की खबर रखना चाहता है, जमीनी हलचलों पर हर क्षण निगाह रखने को उतावला है। बस अपने बारे में जानने की उसे न जिज्ञासा रही है, न वह इच्छा ही रखता है।
मोबाइल, कम्प्यूटर और बहुत सारे दूसरे संसाधनों का उपयोग ताश व गेम्स खेलने, फालतू की चैटिंग करने, लाईक, फॉरवर्ड और शेयर करने, सर झुकाकर दिन-रात नेट, एसएमएस और इससे संबंधित धंधों में करने लगा है।
बहुत सारे लोग एक समय बेहद अच्छे इंसान थे लेकिन इश्क की हवा ने बिगाड़ कर इतना अधिक कबाड़ा कर दिया है कि न घर के रहे न घाट के। इनके सोने का समय छोड़ दिया जाए तो दिन-रात लव-लव और डेटिंग के भूत को पाले हुए हैं।
दुनिया में बहुत सारे फालतू , कामचोर, निकम्मे और नुगरे लोग हैं जिनके पास अपना कोई काम नहीं है, जो काम उन्हें दिया होता है वह करना नहीं चाहते। कानों में हैड़ फोन घुसाये घण्टों बैठे रहकर प्रेमालाप, वैधव्यालाप, विधुरालाप, या करुणालाप करते रहेंगे या बकवास करते हुए एक-दूसरे को बरगलाते हुए आनंदित करते रहेेंगे।
बहुत से लोग शेरो-शायरियों और फोटो में रमे रहते हैं। लगता है कि जैसे पूरी दुनिया के सारे फालतुओं को अब इस प्रकार के कई मंच मिल गए हैं जहाँ उनका टाईमपास हो रहा है।
इन सभी प्रकार की स्थितियों का खामियाजा उन लोगों को भुगतना पड़ रहा है जो कर्मयोगी हैं और अपनी ड्यूटी के प्रति वफादार हैं। चाहे वे निजी क्षेत्रों में हों, अद्र्ध सरकारी या सरकारी क्षेत्र में अथवा समाज एवं देश सेवा के किसी न किसी उपक्रम-अनुष्ठान से जुड़े हुए हों।
इन लोगों की मूर्खता कहें, अंधा प्यार कह लें या जड़ता से परिपूर्ण मोह, ये अपनी काबिलियत का उपयोग तक करना भूल कर प्यार-व्यार और किसी न किसी सैटिंग-चैटिंग के चक्कर में इस कदर फंस गए हैं अब बाहर निकलना मुश्किल है। ढेरों लोग हर जगह ऎसे हैं जो खुद कुछ करना चाहते नहीं, दूसरों को भी नहीं करने देना चाहते। हर नाकारा और नाालयक इंसान यही चाहता है कि दूसरे लोग भी उसी की तरह बने रहें।
दुनिया में फालतू और टाईमपास लोगों की भरमार है और ये लोग हमेशा यह चाहते हैं कि हर वक्त किसी न किसी बतियाते रहें, औरों का समय चुराकर अपना मनोरंजन करते रहें। कभी किसी लोभ-लालच या स्वार्थ के फेर में लोगों को बांधे रखें, कभी प्रेम और मोह के पाशों में जकड़ते हुए उनसे तार जोड़े रहें और अपने आपको आनंदित महसूस करते हुए अपना समय गुजारते रहें।
असल में ये ही लोग असुर हैं जो हर युग में अलग-अलग वेशभूषा और रंग-ढंग के साथ पैदा होते हैं और समाज व देश के कर्मयोग को खण्डित करते रहते हैं, कर्मयोगियों को लक्ष्य प्राप्ति से रोकने के लिए हरचन्द कोशिश करते रहते हैं।
आज के जमाने में असुरों के पास नए-नए हथियार आ गए हैं, किसी को भी प्रेम, मोह, स्वार्थ और काम के पाशों में बंदी बना सकने का पूरा और पक्का सामथ्र्य रखते हैं, नेटवर्किंग के तमाम अस्त्र-शस्त्रों के संचालन में पारंगत हैं।
ये ही लोग हैं जो हमारे कर्मयोग, लक्ष्य और श्रेय को हमसे दूर रखने के लिए हमें किसी न किसी तरह अपने इर्द-गिर्द फंसाये रखते हैं और हमारा ऎसा उपयोग करते रहते हैं कि हम किसी काम के नहीं रहें।
समझदार लोग तो इन असुरों से निश्चित पैमाने की दूरी बनाए रखते हैं लेकिन संकट उन लोगों का है जो सब कुछ जानते-बूझते हुए इन असुरों के चक्कर में आ जाते हैं और अपने काम तो बिगाड़ते ही हैं, अपने संस्थानों, समाज और देश के लिए भी नाकारा या घातक सिद्ध होते हैं।
आज असुरों और असुराें के जाल में फंसे लोगों के कारण समाज और देश की तरक्की नहीं हो पा रही है। सावधान रहें, हमारे संपर्कितों में भी ऎसे खूब सारे असुर हो सकते हैं। इनसे दूरी बनाए रखें वरना अपनी जिन्दगी भी आसुरी होकर टाईमपास हो सकती है।
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