अपना मार्ग चुनें लक्ष्य पर ध्यान दें - डॉ. दीपक आचार्य 9413306077 dr.deepakaacharya@gmail.com हर इंसान पूरी जिन्दगी किसी एक लक्ष्य...
अपना मार्ग चुनें
लक्ष्य पर ध्यान दें
- डॉ. दीपक आचार्य
9413306077
dr.deepakaacharya@gmail.com
हर इंसान पूरी जिन्दगी किसी एक लक्ष्य को केन्द्र में रखकर अपने व्यक्तित्व को गढ़ता है और उसी के अनुरूप वह अपने चरित्र, स्वभाव और व्यवहार का निर्धारण करते हुए आगे बढ़ता है।
लक्ष्य के मामले में साफ-साफ कहा गया है कि यह अपने व्यक्तित्व का सर्वांग विकास कर आत्म प्रतिष्ठा को बढ़ावा देने वाला होना चाहिए।
यह प्रतिष्ठा ऎसी होनी चाहिए कि कोई इसे अस्वीकार करने का साहस नहीं कर पाए। यह प्रतिष्ठा दिलों में होनी चाहिए न कि लोकप्रियता के पैमाने तय करने के लिए भीड़ और भीड़ से बुलवायी जाने वाली जय-जयकार जैसी या पराये माध्यमों से अपने आपको स्वयंभू या अधीश्वर मनवाने जैसी।
जब किसी को दिल से स्वीकारा जाता है तभी वह प्रतिष्ठित कहा जा सकता है अन्यथा लोभ-लालच, तरह-तरह के प्रलोभन या कि भय और दबावों के जरिये कोई किसी से कुछ भी करा सकता है चाहे वह आदमियों का छोटा समूह हो अथवा बड़ी से बड़ी भीड़ का रेला।
आजकल आदमी सिद्धान्तों, नीति और धर्म के अनुरूप व्यवहार करने की बजाय दूसरे रास्तों पर ज्यादा यकीन करता है। कारण यह है कि ये रास्ते आसान हैं और ज्यादा कुछ मेहनत भी नहीं करनी पड़ती, न सच्चाई का पुट होता है न स्वाभिमान का, इसलिए इसे स्वीकारते हुए सब कुछ कर लेना न केवल निरापद है बल्कि समय साध्य भी नहीं है।
आम तौर पर इंसान अपने जीवन के लक्ष्य के प्रति सतर्क होता है और मानस बनाकर उस दिशा में आगे बढ़ भी जाता है लेकिन बाहरी चकाचौंध, क्षणिक सुख और भौतिक विलासिता एवं उन्मुक्त भोगों में रमे हुए लोगों को देखता है,तब मान लेता है कि यही संसार बड़ा लक्ष्य है।
ऎसे में वह पटरी से उतर कर भटक जाता है। इस अवस्था में वह न अपने लक्ष्य का रह पाता है, न बाहर की चकाचौंध का। लगभग इसी स्थिति में आकर बहुत सारे लोग फिसलने लगते हैं।
और एक बार जो कोई भी, किसी भी कारण से फिसल जाता है, उसकी जिन्दगी में फिसलन एक हिस्सा हो जाती है। केवल लक्ष्य के प्रति नैष्ठिक समर्पण रखने वाले और दृढ़ प्रतिज्ञ व्यक्ति ही संकल्प के धनी हो सकते हैं जो न झँझावातों में फंसते हैं, न किसी विलासी चकाचौंध की ओर निगाह डालते हैं।
और वास्तव में ये ही लोग जीवन लक्ष्य की परिपूर्णता का महा आनंद और अमरत्व पाने में इस तरह आशातीत सफल हो जाते हैं कि सदियों तक इन्हें आदर-सम्मान और श्रद्धा से याद रखा जाता है।
मार्ग कोई सा चुनें वह चाहे लम्बा हो, पर होना चाहिए शुचिता भरा, लोक कल्याण से परिपूर्ण और समाज के लिए हितकारी।
बहुत सारे लोग अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने की कोशिश तो करते हैं, परिश्रम भी खूब करते हैं, समय भी देते हैं लेकिन बीच में कहीं किसी चकाचौंध भरे व्यक्तित्व को देख लेते हैं तब भ्रमित हो जाते हैं।
कच्चे संकल्पों वाले लोगों की यही सबसे बड़ी समस्या है। मवेशी जिस तरह चारा-घास देख कर उस तरफ रूख कर लेते हैं, उसी तरह ये लोग भी सुनहरे ख्वाबों और चकाचौंध भरे जंगलों में भटक जाते हैं।
कई बार जब ये लोग भ्रष्ट, रिश्वतखोरों और दलालों के वैभव को देखते हैं, उनकी जमीन-जायदाद और भव्य प्रासाद, फॉर्म हाउस, लक्ज़री वाहनों और तमाम प्रकार के भोग-विलासों को देखते हैं तब इनका मन विचलित हो जाता है।
यहीं से इनकी जिन्दगी के लक्ष्यों का या तो विखण्डन हो जाता है अथवा मार्गान्तरण। यह संक्रमण काल अधिकांश लोगों की जिन्दगी में आता है। जो संभल जाते हैं वे तर जाते हैं और जो मोह ग्रस्त हो जाते हैं वे वहीं अटक कर रह जाते हैं,इनकी जिन्दगी त्रिशंकु होकर रह जाती है जहाँ वे न घर के रह पाते हैं, न घाट के।
इस संक्रामक स्थिति से बचने के लिए यह जरूरी है कि अपने लक्ष्य के पति समर्पित रहें, दाँये-बाँये न देखें, किसी भी तरह की चकाचौंध और विलासिता या विलासी-वैभवशाली लोगों की ओर आसक्त न हों, क्योंकि यह सब कुछ जिस बुनियाद पर टिका होता है उसमें अधिकतर मामलों में भ्रष्टाचार ही प्रधान कारक होता है जिसका कुछ समय तक तो आनंद पाया जा सकता है लेकिन भविष्य कभी ठीक नहीं होता।
देर-सबेर चोरी, बेईमानी, कमीशनखोरी और दलाली पर टिका महल गिरता ही गिरता है। इसका संबंध हमारे संचित पुण्य से है। जब तक पुण्य रहेंगे तब तक सब ठीक-ठाक चलता रहेगा, इसके बाद उल्टी गिनती शुरू होनी ही है।
अपने लक्ष्यों के सिवा कहीं भी दूसरी तरफ झाँकने का परिणाम हमेशा खराब ही रहता है। बार-बार लक्ष्य बदलना भी ठीक नहीं होता। जीवन का अपनी पसंद और कल्पनाओं का अपना मार्ग चुनें और उसी दिशा में आगे बढ़ते रहें, लक्ष्य एक हो, नेक हो।
अपनी मौलिकताओं को आकार देने के लिए अपनाया जाने वाला मार्ग हमेशा आशातीत सफलता देता है और कालजयी कीर्ति प्रदान करता है। जो औरों में दिखाई दे रहा है वह वास्तविक न होकर छद्म नींवों पर टिका है।
किसी ओर की लोकप्रियता और वैभव को अपना ध्येय न मानें, अपने मार्ग पर निरन्तर बढ़ते रहें। अपना रास्ता खुद तैयार करें, अपनी मंजिल अपने आप प्राप्त हो जाएगी। समय लग सकता है।
-000-
लक्ष्य पर ध्यान दें
- डॉ. दीपक आचार्य
9413306077
dr.deepakaacharya@gmail.com
हर इंसान पूरी जिन्दगी किसी एक लक्ष्य को केन्द्र में रखकर अपने व्यक्तित्व को गढ़ता है और उसी के अनुरूप वह अपने चरित्र, स्वभाव और व्यवहार का निर्धारण करते हुए आगे बढ़ता है।
लक्ष्य के मामले में साफ-साफ कहा गया है कि यह अपने व्यक्तित्व का सर्वांग विकास कर आत्म प्रतिष्ठा को बढ़ावा देने वाला होना चाहिए।
यह प्रतिष्ठा ऎसी होनी चाहिए कि कोई इसे अस्वीकार करने का साहस नहीं कर पाए। यह प्रतिष्ठा दिलों में होनी चाहिए न कि लोकप्रियता के पैमाने तय करने के लिए भीड़ और भीड़ से बुलवायी जाने वाली जय-जयकार जैसी या पराये माध्यमों से अपने आपको स्वयंभू या अधीश्वर मनवाने जैसी।
जब किसी को दिल से स्वीकारा जाता है तभी वह प्रतिष्ठित कहा जा सकता है अन्यथा लोभ-लालच, तरह-तरह के प्रलोभन या कि भय और दबावों के जरिये कोई किसी से कुछ भी करा सकता है चाहे वह आदमियों का छोटा समूह हो अथवा बड़ी से बड़ी भीड़ का रेला।
आजकल आदमी सिद्धान्तों, नीति और धर्म के अनुरूप व्यवहार करने की बजाय दूसरे रास्तों पर ज्यादा यकीन करता है। कारण यह है कि ये रास्ते आसान हैं और ज्यादा कुछ मेहनत भी नहीं करनी पड़ती, न सच्चाई का पुट होता है न स्वाभिमान का, इसलिए इसे स्वीकारते हुए सब कुछ कर लेना न केवल निरापद है बल्कि समय साध्य भी नहीं है।
आम तौर पर इंसान अपने जीवन के लक्ष्य के प्रति सतर्क होता है और मानस बनाकर उस दिशा में आगे बढ़ भी जाता है लेकिन बाहरी चकाचौंध, क्षणिक सुख और भौतिक विलासिता एवं उन्मुक्त भोगों में रमे हुए लोगों को देखता है,तब मान लेता है कि यही संसार बड़ा लक्ष्य है।
ऎसे में वह पटरी से उतर कर भटक जाता है। इस अवस्था में वह न अपने लक्ष्य का रह पाता है, न बाहर की चकाचौंध का। लगभग इसी स्थिति में आकर बहुत सारे लोग फिसलने लगते हैं।
और एक बार जो कोई भी, किसी भी कारण से फिसल जाता है, उसकी जिन्दगी में फिसलन एक हिस्सा हो जाती है। केवल लक्ष्य के प्रति नैष्ठिक समर्पण रखने वाले और दृढ़ प्रतिज्ञ व्यक्ति ही संकल्प के धनी हो सकते हैं जो न झँझावातों में फंसते हैं, न किसी विलासी चकाचौंध की ओर निगाह डालते हैं।
और वास्तव में ये ही लोग जीवन लक्ष्य की परिपूर्णता का महा आनंद और अमरत्व पाने में इस तरह आशातीत सफल हो जाते हैं कि सदियों तक इन्हें आदर-सम्मान और श्रद्धा से याद रखा जाता है।
मार्ग कोई सा चुनें वह चाहे लम्बा हो, पर होना चाहिए शुचिता भरा, लोक कल्याण से परिपूर्ण और समाज के लिए हितकारी।
बहुत सारे लोग अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने की कोशिश तो करते हैं, परिश्रम भी खूब करते हैं, समय भी देते हैं लेकिन बीच में कहीं किसी चकाचौंध भरे व्यक्तित्व को देख लेते हैं तब भ्रमित हो जाते हैं।
कच्चे संकल्पों वाले लोगों की यही सबसे बड़ी समस्या है। मवेशी जिस तरह चारा-घास देख कर उस तरफ रूख कर लेते हैं, उसी तरह ये लोग भी सुनहरे ख्वाबों और चकाचौंध भरे जंगलों में भटक जाते हैं।
कई बार जब ये लोग भ्रष्ट, रिश्वतखोरों और दलालों के वैभव को देखते हैं, उनकी जमीन-जायदाद और भव्य प्रासाद, फॉर्म हाउस, लक्ज़री वाहनों और तमाम प्रकार के भोग-विलासों को देखते हैं तब इनका मन विचलित हो जाता है।
यहीं से इनकी जिन्दगी के लक्ष्यों का या तो विखण्डन हो जाता है अथवा मार्गान्तरण। यह संक्रमण काल अधिकांश लोगों की जिन्दगी में आता है। जो संभल जाते हैं वे तर जाते हैं और जो मोह ग्रस्त हो जाते हैं वे वहीं अटक कर रह जाते हैं,इनकी जिन्दगी त्रिशंकु होकर रह जाती है जहाँ वे न घर के रह पाते हैं, न घाट के।
इस संक्रामक स्थिति से बचने के लिए यह जरूरी है कि अपने लक्ष्य के पति समर्पित रहें, दाँये-बाँये न देखें, किसी भी तरह की चकाचौंध और विलासिता या विलासी-वैभवशाली लोगों की ओर आसक्त न हों, क्योंकि यह सब कुछ जिस बुनियाद पर टिका होता है उसमें अधिकतर मामलों में भ्रष्टाचार ही प्रधान कारक होता है जिसका कुछ समय तक तो आनंद पाया जा सकता है लेकिन भविष्य कभी ठीक नहीं होता।
देर-सबेर चोरी, बेईमानी, कमीशनखोरी और दलाली पर टिका महल गिरता ही गिरता है। इसका संबंध हमारे संचित पुण्य से है। जब तक पुण्य रहेंगे तब तक सब ठीक-ठाक चलता रहेगा, इसके बाद उल्टी गिनती शुरू होनी ही है।
अपने लक्ष्यों के सिवा कहीं भी दूसरी तरफ झाँकने का परिणाम हमेशा खराब ही रहता है। बार-बार लक्ष्य बदलना भी ठीक नहीं होता। जीवन का अपनी पसंद और कल्पनाओं का अपना मार्ग चुनें और उसी दिशा में आगे बढ़ते रहें, लक्ष्य एक हो, नेक हो।
अपनी मौलिकताओं को आकार देने के लिए अपनाया जाने वाला मार्ग हमेशा आशातीत सफलता देता है और कालजयी कीर्ति प्रदान करता है। जो औरों में दिखाई दे रहा है वह वास्तविक न होकर छद्म नींवों पर टिका है।
किसी ओर की लोकप्रियता और वैभव को अपना ध्येय न मानें, अपने मार्ग पर निरन्तर बढ़ते रहें। अपना रास्ता खुद तैयार करें, अपनी मंजिल अपने आप प्राप्त हो जाएगी। समय लग सकता है।
COMMENTS