ख़्वाबों का पुलिंदा मन की दराज में बंद ख़्वाबों का एक पुलिंदा न जाने कबसे ? फांक रहा है धूल बन रहा है दीमकों का भोज और में बेबस - विवश सी दे...
ख़्वाबों का पुलिंदा
मन की दराज में बंद
ख़्वाबों का एक पुलिंदा
न जाने कबसे ?
फांक रहा है धूल
बन रहा है दीमकों का भोज
और में बेबस - विवश सी
देखती हूँ इन्हें चट होते रोज
जब असहनीय होने लगती है दुर्गन्ध
तो बंद कर देती हूँ दराज घबराकर
मगर मेरी रूह कहने लगी है
अब रोज मुझसे आकर
देख हुआ बहुत ,
खुद पर यूँ जुल्म न कर
जो कर न सकी अब तू कर
फर्ज मर्ज़ के भुला कर कर्ज
कर वही जो तेरा दिल करे अर्ज
देख समय न अब शेष है
मौत आये जाने किस वेश है
अब भी किया न तो कब करेगी ?
घुट-घुट जीती आई है
तू घुट-घुट ही मरेगी
खोल दराज मन की अपने
निकाल ख़्वाबों का वजनी पुलिंदा
कर झाड पोंछ हुआ यह गन्दा
फिर इसको ले तू संभाल
हसरत का एक-एक पन्ना निकाल
कर पूरा जो रहा अधूरा
होगा तभी तेरा जीवन पूरा
-0-
सत्यवान और सावित्री
रहा नहीं कुछ बोध अब
कि हूँ मैं कौन?
हो रही जिव्हा मुखर
जो कल थी मौन
ले जाए तुमको दूर मुझसे
दिन वो कभी ना आने दूँगी
कर युद्ध निष्ठुर रात से
वापस तुम्हें मैं मांग लूंगी
झुक जाएगा यह नभ भी आगे प्रेम के
स्थिरता धरती की डावांडोल करुँगी
निष्प्राण काया को मैं तेरी प्राण दूँगी
मेरे सत्य यूँ ना तुमको जाने दूँगी
है कौन वो यमराज?जाने प्रेम क्या है?
जीवन क्या है? और जीवन संग क्या है ?
पवित्र अग्नि सम यह ,अद्भुत रिश्ता क्या है ?
इस देवभूमि भारत की परिणीता क्या है?
है कसम तेरी पूरा हर एक वचन करूंगी
दे सकी ना जो प्राण तुझको ,तो स्वंय मरूंगी
हो गयी निर्भय खडी वो यमराज के सामने
देख प्रण उस पतिव्रता का लगे यमराज भी कांपने
समर्पण उस समर्पिता का ,चमत्कार दिखला गया
पलटकर विधान विधि का यम
प्राण सत्य के लौटा गया
-0-
रूह की आवाज
जिस्म की बेडीयों से जकडी रूह
लहुलुहान सी बिलख रही शिकंजे में
कह रही तडप के मत सताओ और ज्यादा
बहुत हुआ अब मुझे दो आजादी
पहन चुकी हुं बरसों इस वस्त्र को
हो गया है मैला बहुत अब ये
लगी है आने असहनीय दुर्गन्ध
पड़ चुके अनगिनत दाग धब्बे इसमें
छुपा रहे है ये वस्त्र रंग असली मेरा
हो चुका तार-तार ये लिबास बदलने दो
पहचान नही ये बदन वास्तविक मेरी
है घर किराये का ,धमकाता मालिक मकान मुझे
आ चुकी हूँ तंग बहुत ,अब घर नया बदलने दो
बहुत ही बौना हो गया,आकार सिमट कर मेरा
बन गया खिलौना तुच्छ स्वार्थ और ईर्ष्या का
बेहतर थी इससे कहीं जयादा निराकार थी जब
नही चाहीये सांचा कोई,मिटटी मेरी गलने दो
तडपाओ मत सताओ और ज्यादा अब मुझे
कर लिया कैद बहुत अब मुझे आजादी दो.
-0-
जन्मदिन
मत दो जन्मदिन की बधाइयाँ मुझे
जिन्दगी की मुझे कोई जरूरत नहीं
रोशनियाँ चुभती हैं आँखों को मेरी
चिरागों की मुझे कोई ख्वाइश नहीं
बजाते हो दो तालियाँ मेरे जीने पर
गिराओगे दो आंसू मेरे मरने पर
दो पल का ही तो खेल करोगे
करोगे याद दो दिन फिर भूलोगे
दिन दो दिन के इन रिश्तों की
अब मुझको कोई गुजारिश नहीं
ये केक ये उत्सव ये मोमबत्तियां
गिराने लगी उदासी की बिजलियाँ
करो बंद यह गाने और तमाशे
ढोंग है सब इनसे घुटती मेरी साँसे
मैं भंवर में धंसती ही खुश हूँ
मुझे किसी मांझीं की चाहत नहीं
मत दो मुझे जन्मदिन की बधाईयाँ
जिन्दगी तेरी कोई अहमियत नहीं
-0-
गौ माता
कहती नहीं जुबां से कुछ भी ,ह्रदय मेरा धिक्कारता है
भोली - भाली इन अंखियों से ,लहू रिसता जाता है
कहते तो हो माँ मुझको पर ,क्या पुत्र का धर्म निभाया है
तुच्छ स्वार्थ की खातिर मानव ,तू कितना गिरता आया है
जन्म दिया जननी ने लेकिन ,पालन करती मैं आई हूँ
दूध दही से मैं ही अपने ,तेरे जिस्म पर मांस चढ़ाई हूँ
मेरे ही बैलों से मानव तुम , अन्न वस्त्र सब पाते हो
उपकार पर मेरे जीते हो ,और मुझपे छुरियां चलाते हो
कहने को यह कलयुग है ,पर कल्कि का अवतार नहीं
कैसे जन्में उस धरा प्रभु ,जहाँ माँ से किसी को प्यार नहीं
मल - मूत्र भी जिसका पावन है, उसे संटी से पीटा जाता है
बांधकर बेदर्दी से गौ माँ को ,तन से मांस उधेडा जाता है
जुल्म अगर जो तुम पर हो यह ,सोचो तुमपर क्या बीतेगी
तुम तो मदद को चिल्ला लोगे, माँ मूक भला कैसे जीतेगी
अरे पातको अरे ओ नीचो ,मुझपे जुल्म यह बंद करो
है शर्म अगर थोड़ी भी बाकि ,चुल्लू में जाके डूब मरो
जिसको माता कहते हो ,उसकी रक्षा धर्म तुम्हारा है
बंशी की धुन और गाय पर ,रीझा संसार यह सारा है
बंशीधर के जा मन्दिर ,आज कसम तुम यह खा लो
गौ माता पर चला छुरा तो ,काट देंगे दुनिया वालो
-0-
सच्चे ईश्वर का निवास
ढूंढें क्या मन्दिर मस्जिद रे बंदे
नहीं वहां किसी देवता का निवास है
पूजा आडम्बर सब भूल जा अब
लगा गले दुखियों को अपने
पाप क्या पुण्य ये अवधारणा बकबास है
मानव है तो कर ले प्रेम मानव से
प्रेम में ही सच्चे ईश्वर का निवास है
कर सके तो कर दीन की तू सेवा
हवस की शिकार युवतियां और लाचार बेवा
दे सहारा कांपते हाथ , अर्धविकसित अंगों को
सेवा ,प्रार्थना ,अजान और अरदास
बस एक दिखावा यह बेहूदा लोकाचार है
मानव है तो कर ले प्रेम मानव से
प्रेम में ही सच्चे ईश्वर का निवास है
परसेवा सुकून बहुत ,धर्म यही सबसे बड़ा
फिर काहे को तलाशे तू चैन और शान्ति ,
यहाँ वहां भटकता क्यूँ है फिरा
नहीं भक्ति में ,सेवा ही ईश्वर का आभास है
करो मदद गैरों की ,गर हो सक्षम तुम
उनके कल्याण में ही तुम्हारा कल्याण है
मानव है तो कर ले प्रेम मानव से
प्रेम में ही सच्चे ईश्वर का निवास है
-0-
रूह की आवाज
जिस्म की बेडीयों से जकडी रूह
लहुलुहान सी बिलख रही शिकंजे में
कह रही तडप के मत सताओ और ज्यादा
बहुत हुआ अब मुझे दो आजादी
पहन चुकी हुं बरसों इस वस्त्र को
हो गया है मैला बहुत अब ये
लगी है आने असहनीय दुर्गन्ध
पड़ चुके अनगिनत दाग धब्बे इसमें
छुपा रहे है ये वस्त्र रंग असली मेरा
हो चुका तार-तार ये लिबास बदलने दो
पहचान नही ये बदन वास्तविक मेरी
है घर किराये का ,धमकाता मालिक मकान मुझे
आ चुकी हूँ तंग बहुत ,अब घर नया बदलने दो
बहुत ही बौना हो गया,आकार सिमट कर मेरा
बन गया खिलौना तुच्छ स्वार्थ और ईर्ष्या का
बेहतर थी इससे कहीं जयादा निराकार थी जब
नही चाहीये सांचा कोई,मिटटी मेरी गलने दो
तडपाओ मत सताओ और ज्यादा अब मुझे
कर लिया कैद बहुत अब मुझे आजादी दो.
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रेन वसेरा
छोड उलझना माया -मोह मे
धन और सुख-सुविधा के लोभ मे
काम क्रोध मे रह न लिप्त तू
बना पहचान अपनी कुछ दुनिया मे
न कुछ तेरा ना कुछ मेरा
समझ न इसे तू स्थायी डेरा
है दुनिया एक रैन बसेरा
होगा न हमेशा तेरा यहां सबेरा
भर ले आँखों में दूजों के आंसू
दुख-सुख बाटं सभी अपनो के
आज यहाँ जाने कल कहाँ है ?
साथ न कुछ भी लाया है तू
कुछ साथ न लेकर जाना है
दो दिन की है जीवन यात्रा
तू यात्री ये जीवन धर्मशाला
करता काहे फिर अपना मेरा
है दुनिया एक रैन बसेरा
समझ न इसे तू स्थायी डेरा
न परिवार न कोई घर है तेरा
रात इसलोक तो परलोक सबेरा
घूमे निरंतर सृष्टि का पहिया
जनम-मरण का लगे है फेरा
है दुनिया एक रैन बसेरा
समझ न इसे तू स्थायी डेरा.
-0-
सच्चे ईश्वर का निवास
ढूंढें क्या मन्दिर मस्जिद रे बंदे
नहीं वहां किसी देवता का निवास है
पूजा आडम्बर सब भूल जा अब
लगा गले दुखियों को अपने
पाप क्या पुण्य ये अवधारणा बकबास है
मानव है तो कर ले प्रेम मानव से
प्रेम में ही सच्चे ईश्वर का निवास है
कर सके तो कर दीन की तू सेवा
हवस की शिकार युवतियां और लाचार बेवा
दे सहारा कांपते हाथ , अर्धविकसित अंगों को
सेवा ,प्रार्थना ,अजान और अरदास
बस एक दिखावा यह बेहूदा लोकाचार है
मानव है तो कर ले प्रेम मानव से
प्रेम में ही सच्चे ईश्वर का निवास है
परसेवा सुकून बहुत ,धर्म यही सबसे बड़ा
फिर काहे को तलाशे तू चैन और शान्ति ,
यहाँ वहां भटकता क्यूँ है फिरा
नहीं भक्ति में ,सेवा ही ईश्वर का आभास है
करो मदद गैरों की ,गर हो सक्षम तुम
उनके कल्याण में ही तुम्हारा कल्याण है
मानव है तो कर ले प्रेम मानव से
प्रेम में ही सच्चे ईश्वर का निवास है
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जीवन अंगड़ाईयाँ लेता है
गहरी निद्रा से जाग यकायक
एक नया सवेरा दिखता है
छा जाती धवल रोशनी मन पे
जब सूरज आँखें मलते हुए उठता है
बदल जाते रंग-ढंग जीने के
जब जीवन अंगडाईयाँ लेता है
तूफ़ान में ओझल कश्ती भी
साहिल तक वो ला देता है
ज्वार कोई ह्रदय सागर के
खड़ा ववंडर करता है
हो जाता मन शांत अगर ये
अनमोल रत्न ,मूंगा मोती से
भेंट तोहफे में कर देता है
कभी अच्छा तो कभी बुरा
अंदाज जीने का बदल देता है
जब जीवन अंगडाइयां लेता है
नया सफ़र शुरू होता वहां पर
जहां रस्ता पुराना ख़त्म होता है
पुराने छालों पे डाल धूल
राही पैर झाड चल पड़ता है
नयी राहें नया सफ़र कारवाँ नया
सव कुछ नया नया सा लगता है
सीखें भी बहुमूल्य ये देता है
टूटे ह्रदय और लचर हौसलों में भी
आ जाती जीवन कला और हिम्मत
जब जीवन अंगडाईंया लेता है
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नाम – सपना मांगलिक
जन्मतिथि -17/02/1981
जन्मस्थान –भरतपुर
वर्तमान निवास-आगरा(यू.पी)
शिक्षा-एम्.ए ,बी .एड (डिप्लोमा एक्सपोर्ट मेनेजमेंट )
सम्प्रति –उपसम्पदिका-आगमन साहित्य पत्रिका ,स्वतंत्र लेखन, मंचीय कविता,ब्लॉगर ,फेसबुक पर काव्य-सपना नाम से प्रसिद्द ग्रुप जिसके देश विदेश के लगभग साढ़े चार हज़ार सदस्य है .व्हाट्स अप्प पर जीवन सारांश नामक साहित्य समूह
संस्थापक –जीवन सारांश समाज सेवा समिति ,शब्द -सारांश ( साहित्य एवं पत्रकारिता को समर्पित संस्था )
सदस्य- ऑथर गिल्ड ऑफ़ इंडिया ,अखिल भारतीय गंगा समिति जलगांव,महानगर लेखिका समिति आगरा ,साहित्य साधिका समिति आगरा,सामानांतर साहित्य समिति आगरा ,आगमन साहित्य परिषद् हापुड़ ,इंटेलिजेंस मिडिया एसोशिसन दिल्ली ,गूगनराम सोसाइटी भिवानी ,ज्ञानोदय साहित्य परिषद् बेंगलोर,डेल्ही पोएट्री सर्किल ,irro ,संस्कार भारती आगरा ,सुर आनंद
प्रकाशित कृति-(तेरह)पापा कब आओगे,नौकी बहू (कहानी संग्रह)सफलता रास्तों से मंजिल तक ,ढाई आखर प्रेम का (प्रेरक गद्ध संग्रह)कमसिन बाला ,कल क्या होगा ,बगावत (काव्य संग्रह )जज्बा-ए-दिल भाग –प्रथम,द्वितीय ,तृतीय (ग़ज़ल संग्रह)टिमटिम तारे ,गुनगुनाते अक्षर,होटल जंगल ट्रीट (बाल साहित्य)
संपादन –तुम को ना भूल पायेंगे (संस्मरण संग्रह ) स्वर्ण जयंती स्मारिका (समानांतर साहित्य संस्थान),बातें अनकही (कहानी संग्रह )
सम्मिलित संकलन – दामिनी ,सावधान बेटियां ,चुनाव चकल्लस ,क्यूंकि हम जिन्दा हैं ,मन बसंती ,शब्द मोहनी इत्यादि बीस से अधिक सम्मिलित संकलनों में हिस्सेदारी
प्रकाशनाधीन –इस पल को जी ले (प्रेरक संग्रह)एक ख्वाब तो तबियत से देखो यारो (प्रेरक संग्रह )बोन्साई (हाइकु संग्रह )पन्नो पर जिन्दगी (कहानी संग्रह )
विशेष –आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर निरंतर रचनाओं का प्रकाशन
सम्मान-आगमन साहित्य परिषद् द्वारा दुष्यंत सम्मान ,प्राइड ऑफ़ नेशन द्वारा सीमापुरी टाइम्स ,भारतेंदु समिति कोटा ,एत्मादपुर नगर निगम द्वारा काव्य मंजूषा सम्मान ज्ञानोदय साहित्य संस्था कर्नाटक द्वारा ज्ञानोदय साहित्य भूषण २०१४ सम्मान , ,अखिल भारतीय गंगा समिति जलगांव द्वारा गंगा गौमुखी एवं गंगा ज्ञानेश्वरी साहित्य गौरव सम्मान , गुगनराम एजुकेशनल ट्रस्ट (भिवानी,हरियाना )द्वारा पुस्तक टिमटिम तारे एवं कल क्या होगा पुरुस्कृत एवं विर्मो देवी सम्मान से सम्मानित , रुमिनेशन एंड कल्चरल सोशायटी मेरठ द्वारा प्रेरक पुस्तक सफलता रास्तों से मंजिल तक सम्मानित ,राष्ट्र भाषा स्वाभिमान न्यास (गाज़ियवाद)द्वारा कृति सफलता रास्तों से मंजिल तक पुरुस्कृत ,हिंदी साहित्य सभा आगरा द्वारा शिल्पी शर्मा स्मृति सम्मान ,आगरा महानगर लेखिका मंच द्वारा महदेवी वर्मा सम्मान ,सामानांतर संस्था द्वारा सर्जना सम्मान ,हेल्थ केयर क्लब आगरा , विभिन्न राजकीय एवं प्रादेशिक मंचों से सम्मानित
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साहित्यकार सपना मांगलिक
एफ-६५९ कमला नगर आगरा २८२००५
ईमेल –sapna8manglik@gmail.com
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