यूनानी कवि कोंस्तांतिन पी. कवाफ़ी की कविताएँ अनुवाद : सरेश सलिल सम्पादक हरि भटनागर बृजनारायण शर्मा अनिल जनविजय सहायक सम्पादक अ...
यूनानी कवि
कोंस्तांतिन पी. कवाफ़ी की कविताएँ
अनुवाद : सरेश सलिल
सम्पादक
हरि भटनागर
बृजनारायण शर्मा
अनिल जनविजय
सहायक सम्पादक
अनिल शाही
सहयोग
रवि रतलामी
ए. असफल
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आवरण
कोंस्तांतिन पी. कवाफ़ी का चित्र
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रचना समय
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सम्पादक पूर्णतः अवैतनिक।
रचना समय
नवम्बर - 2015
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यह अंक
रचना समय का यह अंक यूनानी कविता के शीर्षस्थ रचनाकार कोंस्तांतिन पी. कवाफ़ी पर एकाग्र है।
कवाफ़ी आधुनिक कविता के प्रणेता माने जाते हैं। 1863 में सिकंदरिया, मिस्र में जन्मे कवाफ़ी की कविताओं से गुज़रें तो ज्ञात होता है कि उन्होंने यूनानी समाज-जीवन की विडम्बना को गहरे धँसकर अभिव्यक्ति दी। पतनशील समाज की गहरी छायाएँ जो इंसान को इंसान से दूर कर रही थीं- कवाफ़ी ने गहरे अवसाद में डूबकर उन्हें ज़बान दी। कवाफ़ी ने मात्र 154 कविताएँ लिखीं जो यूनानी समाज और उसके इतिहास का एक रचनात्मक इतिहास है जिसके जरिये हम तत्कालीन समय के सच से वाक़िफ हो सकते हैं। ऐतिहासिक संदर्भों को केन्द्र में रखकर कवाफ़ी ने जो कविताएँ लिखीं वह इतिहास के ब्यौरें नहीं वरन् जीवन की विद्रूपता के ब्यौरें हैं- उसमें हम आधुनिक जीवन के सच को कलात्मक सौंदर्य की आँच में देख-परख सकते हैं। कवाफ़ी अपनी कविता को संग्रह के मार्फ़त नहीं वरन् स्थानीय अख़बारों और पत्रिकाओं के मार्फ़त जन-जन तक पहुँचाने के हिमायती थे-यही वजह है कि उनकी कविताओं का संग्रह उनकी मृत्यु के बाद प्रकाशित हुआ। कवाफ़ी को अपने देश की सीमा से बाहर प्रसिद्धि उनकी अपनी पहली कविता ‘यथाका’ से मिलना शुरू हुई जो टी.एस. इलियट की पत्रिका ‘क्राईटेरियन’ में अँग्रेज़ी अनुवाद-रूप में प्रकाशित हुई थी।
‘रचना समय’ के प्रस्तुत अंक में हम कवाफ़ी की ऐतिहासिक संदर्भों से जुड़ी कविताओं को प्रस्तुत कर रहे हैं- इन कविताओं को पढ़ते हुए हिन्दी के प्रसिद्ध कवि श्रीकान्त वर्मा के ‘मगध’ और ‘जलसाघर’ की कविताओं की याद ताज़ा हो आती है। बहरहाल -
प्रस्तुत कविताओं का अनुवाद - सुरेश सलिल ने किया है। गणेश शंकर विद्यार्थी के विचारों पर विशेषज्ञता रखने वाले सुरेश सलिल के पाँच काव्य संग्रह प्रकाशित हैं। 20वीं सदी की दुनिया की कविता का एक वृहद संचयन ‘रोशनी की खिड़कियाँ’ और पाबलो नेरूदा, नाजी हिकमत और लोर्का की कविताओं के स्वतंत्र पुस्तकाकार अनुवाद सलिल ने किये हैं। ‘रचना समय’ के अरबी और फारसी की कहानियों और कविताओं का एक स्वतंत्र अंक भी सलिल ने अनूदित किया है। सलिल सादतपुर, दिल्ली में रहते हैं।
विश्वास है, पाठकों को प्रस्तुत रचनाएँ पसंद आएँगी।
-हरि भटनागर
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कवाफ़ी :
ग्रीक कविता का सार्वकालिक महान कवि
प्रभु जोशी
कोंस्तांतिन पी. कवाफ़ी, सन् 1863 में अलैक्झेण्ड्रिया, इजिप्ट में जन्में, ग्रीक माता-पिता की नौंवी संतान थे। उनका ग्रीक आर्थोडाक्स चर्च में बपतिस्मा हुआ। कवाफ़ी के पिता पीटर ने कोंस्तांतिनोपल को उम्र के युवाकाल में ही छोड़ दिया था, लगभग 1836 के आसपास ताकि वे अपने बड़े भाई जार्ज के साथ, लंदन मैनचेस्टर की एक फर्म में काम कर सकें। वह ग्रीक फर्म थी जो लंदन और लिवरपूल में कॉटन तथा इजिप्शियन टैक्सटाइल्स में सक्रिय थी। लेकिन, बहुत जल्दी कवाफ़ी के पिता पीटर तथा उनके बड़े भाई को लगा कि उन्हें अपनी स्वयम् की ही कोई कम्पनी स्थापित करना चाहिये और वे अपनी इस योजना में 1846 में कामयाब हो गए। कम्पनी का नाम ‘कवाफ़ी एण्ड कम्पनी प्राइवेट लिमिटेड’ था जो बहुत जल्दी फलने-फूलने लगी जिसके चलते उन्होंने ब्रिटिश नागरिकता भी प्राप्त कर ली। बाद इसके पीटर 1854 में कोंस्तांतिनोपल पुनः लौटे और उन्होंने, जार्ज फोटियाडिस, जोकि एक हीरे-व्यापारी थे, की चौदह वर्षीया बेटी, हरिक्लिया से विवाह कर लिया। कुछ दिनों में पीटर, एक पुत्र के पिता बन गये और हरिक्लिया को अपने पिता के यहां ‘पेरा’ में छोड़कर, वापस इग्लैण्ड चले गये। जहाँ, व्यवसाय को व्यवस्थित करने के बाद पत्नी और बच्चे को भी लिवरपूल ले आये। वे वहीं बस जाने की तैयारी में थे। उन्हें कहां मालूम था कि अचानक महामंदी का लम्बा दौर शुरू होने वाला है। कुछ वर्ष गुजारने के बाद पीटर कवाफ़ी का परिवार 1854 के आसपास अलैक्झेण्ड्रिया वापस आ गया और अलैक्झेण्ड्रिया ब्रांच उनकी कम्पनी के मुख्यालय के रूप में स्थापित हो गई । पीटर 1870 में कम्पनी तथा परिवार को घोर आर्थिक संकट में छोड़कर, संसार से विदा हो गए। बड़े बेटे ने फर्म तथा परिवार को ही संभालने का दायित्व अपने ऊपर लिया भी, लेकिन अनुभवहीनता ने उल्टे पूरे परिवार के भविष्य को नये-नये संकटों से घेर दिया। अपने नासमझी के निर्णयों से वे लगभग बर्बादी के अंतिम छोर तक पहुंच गये।
बहरहाल, कवाफ़ी ने, नौ वर्ष से लेकर अपनी उम्र के सत्रह वर्ष, जिन सामाजिक आर्थिक जीवन की विसंगतियों के साक्षी की तरह गुजारे, कदाचित उसी कालखण्ड ने उनकी सम्वेदना को तराशा और एक कवि-मानस की गढ़न्त भी तैयार कर दी। यहां यह बात बहुत महत्त्व की है, कि कवाफ़ी के जीवन के ये आरंभिक वर्ष ब्रिटेन में गुज़रे, नतीजन, न केवल उन्हें अंग्रेजी भाषा को लगभग एक ‘नेटिव-स्पीकर’ की तरह सीखा, बल्कि इंग्लिशमैनर्स तथा वहां के साहित्य का उनके जीवन और सोच पर गहरे तक प्रभाव पड़ा, जिसने उनके समूचे जीवन और रचनात्मकता पर अपना एक प्रत्यक्ष वर्चस्व बनाये रखा। कहा तो यह तक जाता कि जब वे अपनी भूल भाषा ग्रीक बोलते थे तो उनके ग्रीक उच्चारण में, अंग्रेजी भाषा का ध्वन्यात्मक प्रभाव स्पष्टतः दिखाई देता था। कहना न होगा कि उनकी पहली कविता अंग्रेजी में ही लिखी गई थी जिसके अंत में कवाफ़ी ने ‘कोंस्तांतिन’ कवाफ़ी की तरह ही हस्ताक्षर किये हैं। अंग्रेजी जीवन और साहित्य का वर्चस्व उनके समचे लेखन पर रहा, फिर चाहे वह गद्य-पद्य हो, याकि आलोचनात्मक लेखन।
कवाफ़ी जब लन्दन से लौटे तो उन्हें, ग्रीक समुदाय के उच्च सांस्कृतिक वर्ग के परिवारों के लिए ही नियत ख्यात शिक्षण संस्था, हर्मिस लायसेयम में दाखिला दिलाया गया, जहां उन्होंने कुछ समय तक अध्ययन किया। बस यही उनके जीवन की औपचारिक शिक्षा की घटना है। क्योंकि कवाफ़ी के आरंभिक जीवन के सम्बन्ध में बहुत ही कम जानकारी उपलब्ध हैं। कहते हैं कि उस शिक्षण काल में कवाफ़ी जबकि अपनी कच्ची उम्र में ही थे, उन्होंने एक ऐतिहासिक शब्दकोष तैयार किया, जिसमें अलैक्झेण्डर के इन्द्राज के कारण व्यवधान आ गया। इसके बाद 1882 में, ब्रिटेन द्वारा अलैक्झेण्ड्रिया पर बमबारी के बाद, कवाफ़ी की मां हरिक्लिया ने परिवार के सभी सदस्यों के साथ आत्मनिवार्सन का निर्णय लिया और वे अलैक्झण्ड्रिया छोड़कर बाहर चली गईं। तीन साल बाद वह अपने तीन छोटे बच्चों के साथ कोंस्तांतिनोपल लौटीं और अपने पिता के घर में, एक कमरे में रहने लगीं। यह घोर गरीबी और बदहाली का समय था। रिश्तों के द्वन्द्व, समाज की निर्दयता और उपेक्षा। निकट सम्बन्धियों का ममत्वरहित व्यवहार। जीवन में संतुलन छिन्न-भिन्न हो गया था। हालांकि मां परिवार की भावनात्मक धुरी थी-लेकिन, आर्थिक अपंगता ने उन्हें दर-दर भटकने को मजबूर कर दिया था। एक बड़ी फर्म के सम्पन्न परिवार के दुरावस्था के सबसे असहनीय दुर्दिन थे। इसी दौरान कवाफ़ी ने अपने जीवन की पहली कविता लिखी, जो अंग्रेजी, फ्रेंच और ग्रीक में थी। इस व्यथा के बलय में से बाहर निकलने के लिए, कवाफ़ी ने राजनीति और पत्रकारिता के क्षेत्र में अपनी सक्रियता बढ़ाने की काफी गंभीर कोशिशें कीं-लेकिन, हर जगह दिक़्क़त एक ही बात की थी कि कवाफ़ी के पास कोई ढंग-ढांग की विधिवत ग्रहण की गई शिक्षा नहीं थी। अंत में तमाम तरह की कोशिशों के पश्चात् उन्हें एक अलैक्झेण्ड्रियन न्यूजपेपर के लिए प्रेस कार्ड मिल गया। और वह सम्वाददाता का काम करने लगे। बाद इसके 1888 में, वे इजिप्शियन स्टॉक एक्सचेंज में अपने भाई एरिस्टिडिस के सहयोगी के रूप में काम करने लगे। लेकिन इस समूची आपाधापी के बीच भी उनके भीतर कविता लिखने की इच्छा निरन्तर बलवती बनती गई। वे लिखते-पढ़ते रहे, जिसमें रिपोर्ट, गद्य-पद्य-आलोचनात्मक लेखन शामिल था जो अब अंग्रेजी शीर्षक के तहत ‘गिव बैक द एलगिन मार्बल्स’ से उपलब्ध है। कोई उनतीस वर्ष की उम्र में उन्हें लोक कार्य विभाग में एक सामान्य से क्लर्क की नौकरी मिल गई, तो उन्हें बड़ी तसल्ली हुई, हालांकि कई दफा बिना पगारी भी हो जाती। लगभग तीन वर्षों तक वे एक अस्थाई क्लर्क के रूप में इस उम्मीद के साथ काम करते रहे कि शायद कभी यहाँ उन्हें पूरी और नियमित सेवा के लिए रख लिया जायेगा। कहना न होगा कि सौभाग्यवश, चौथे वर्ष उन्हें स्पष्टतः एक ख़ाली पद के विरुद्ध नियुक्ति मिली, जहां उन्होंने तीस वर्ष तक काम किया। उन्हें ‘स्थाई’ होने में उनकी ग्रीक नागरिकता ने काफी व्यवधान पैदा किए क्योंकि, तब इजिप्ट पर ब्रिटेन का वर्चस्व था, लेकिन अंततः उन्हें सात पाउण्ड प्रति महीना मिलने लगा, जो धीरे-धीरे सेवानिवृति के समय तक तीस पाउण्ड तक पहुंच गया। तब तक उनके पद को सहायक निदेशक का मान लिया गया था। कुछ तथ्यों से जानकारी मिलती है कि मरने के कुछ समय पूर्व उन्हें होली कम्युनियन के लिए आर्थोडॉक्स चर्च ने स्वीकृति प्रदान की थी। कवाफ़ी ने एक तरह से एकाकी जीवन के अभिशाप को झेला। वे बहुत कम लोगों ने मिलना पसन्द करते थे। वे अपनी मृत्युपर्यन्त बूढ़ी मां और एक कुंवारे भाई के साथ, लगभग उपेक्षित जीवन जीते रहे, जबकि वे उम्र के उत्तरार्द्ध के बाद एक सामान्य उच्चमध्यवर्गीय परिवार के जीवन जीने लायक सामग्री जुटा चुके। उनके सेक्स जीवन के बारे में प्रामाणिक जानकारी अनुपलब्ध ही है, लेकिन वह सुखद नहीं था। क्योंकि जो शृंगारिक कविताएं उन्होंने लिखी हैं, वे भी उनके सेक्सजीवन के बारे में ठीक-सा सुराग नही देतीं। हालांकि, उनके दो बहुत थोड़ी-सी अवधि के प्रेम-प्रसंग हैं भी, जिनका संदर्भ पेशंस एण्ड एंशियण्ट डेज़’ में मिलता है।
कवाफ़ी ने अपने जीवन के उत्तरार्ध्द में विश्व के कई चर्चित साहित्यिक लोगों से बहुत अनौपचारिक और प्रीतिकर सम्बन्ध बनाये। अंग्रेजी लेखक ई.एम. फास्टर भी उनमें से एक रहे। बीसवीं सदी की कविता में कवाफ़ी का बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान रेखांकित किया गया। एलेक्झेण्ड्रिया आनेवाला हर आदमी, कवाफ़ी से मिलना अपना सौभाग्य समझता था। उनसे मिलने वाला चमत्कृत हो उठता था कि ख़ासकर वे सुदूर अतीत के बखान में बहुत ही प्रवीण हैं तथा लगभग अविश्वसनीय से इतिहास को वे संप्रेष्य और स्वीकार्य बना देते हैं। बतरस भी उनका विलक्षण गुण था। कवाफ़ी ने अपने जीवन काल में शायद ही अपना कोई काव्य संकलन बिक्री के लिए उपलब्ध कराया हो। वे अमूमन अपने मित्रों और प्रसंशकों को या उन्हें जानने वालों को वो स्वयं के द्वारा छपवा ली गई पुस्तिकाएं दे देते थे। अमूमन वे खुले ब्राडशीट के रूप में कविता छपी होती जिन्हें वो बड़ी क्लिप से नत्थी करके फोल्डर में रखकर देते थे। जीवन के अंतिम वर्षों में ग्रीक के तानाशाह पेंगालोस द्वारा उन्हें ‘आर्डर ऑव फीनिक्स’ का सम्मान दिया गया। टी.एस. इलियट के ‘क्रायटेरियन’ में छपे, तथा टी.ई. लारेंस और आर्नाल्ड टॉयन्बी से कवाफ़ी के सम्पर्क ने उन्हें अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित किया। हालांकि एथेन्स के लिए वे अल्पज्ञात और अल्प स्वीकार्य ही रहे आये। उनकी इस साहित्यिक वृत्त में कुछ जल्द ही एक विशिष्ट पहचान इसलिए निर्मित हो गई कि उनकी कविता तत्कालीन ग्रीक मुख्यधारा की कविता के मुहावरे से सर्वथा भिन्न थी। ग्मदवचवचनसने नामक पत्रिका में उनकी कविताओं की विस्तृत व्याख्याएं हुईं। लेकिन, बावजूद इसके उनकी कविता ‘ग्रीक रचनात्मकता’ के लिए किसी तरह का प्रेरणापुंज की तरह अपनी प्रतिष्ठा नहीं बना पायी। कोई दो दशक बाद जब ग्रीक-तुर्की युद्ध में ग्रीस की पराजय हुई तब ग्रीक भाषा में एक निहिलिस्ट पीढ़ी का पदार्पण हुआ, जिसने अपनी चेतना का ‘साम्य’ कवाफ़ी में पाया और वृहद साहित्यिक दायरे में उनको नये ढंग से पहचाना गया। बिडम्बना यह कि जिन गुणों के कारण आज उन्हें वैश्विक स्वीकृति प्राप्त हुई, उन्हीं गुणों के कारण वे, जीवनभर अवमानना भोगने का आधार बने। 1935 में जब उनका काम संग्रह के रूप में सामने आया, तब उन्हें ग्रीक कविता का सार्वकालिक महान कवि माना गया। उनका बहुत बौद्धिक उत्तेजना पैदा करने वाला इतिहास बोध जिस तरह पूरी कविता को दीप्त करता है- वह स्वयं में एक अप्रतिम यथार्थ की शब्द सृष्टि करता है। कवाफ़ी ने कण्ठ के कर्करोग के क्रूर शिकंजे में पीड़ाग्रस्त रहते हुए अपनी अंतिम सांस ली लेकिन पश्चिम की दुनिया की परंपरा में वे एक अनिवार्य कड़ी की तरह हमेशा बने रहेंगे।
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आधुनिक कविता के प्रणेता : कोंस्तांतिन पी. कवाफ़ी
बीसवीं सदी के शीर्ष यूनानी कवि, कोंस्तांतिन पी. कवाफ़ी जो अमेरिकी कवि वाल्ट ह्विटमैन के बाद, दुनिया में आधुनिक कविता के जनक भी माने जाते हैं। 1863 में जन्मे कवाफ़ी के जीवन और व्यक्तित्त्व की सबसे बड़ी विडंबना यह थी कि जिस यूनानी इतिहास, संस्औति, समाज-जीवन और भाषा को उन्होंने अपनी कविता का आधार बनाया, उसे उन्हें किताबों के जरिये ही जानने को जीवन-भर अभिशप्त रहना पड़ा। यूनान की मिट्टी, पानी और हवा से तो वह वंचित रहे ही, जीते-जी यूनानी साहित्य और समाज में उन्हें पहचाना गया हो, इस बात के प्रमाण भी न-कुछ-से हैं। वे इस्कंदरिया [मिस्र] में पैदा हुए, पिता और माँ कोंस्तांतिनोपल के थे, किशोरावस्था और युवाकाल के कुछ वर्ष इंग्लैंड व कोंस्तांतिनोपल में बीते और फिर, सरकारी नौकरी करते हुए, पूरे जीवन वे इस्कंदरिया में ही रहे। कोई औपचारिक शिक्षा नहीं, कोई पारिवारिक जीवन नहीं। पहली कविता अंग्रेजी में लिखी, कुछ प्रारंभिक कविताएँ फ्रेंच में भी, उसके बाद संपूर्ण औतित्व यूनानी भाषा में। ग़ौरतलब यह भी है कि यूरोपी भाषा और साहित्य के लिए कवाफ़ी की खोज, उनके जीवन के अंतिम दौर में, प्रसिद्ध अंग्रेजी लेखक ई.एम. फॉर्स्टर ने की। उसके बाद ही टी.एस. इलियट की पत्रिका ‘क्राइटेरियन’ में कवाफ़ी की कविता ‘इथाका’ अंग्रेजी अनुवाद में छपी तथा आर्नाल्ड टॉयन्बी, टी.ई. लॉरेंस आदि को उनके काम में दिलचस्पी पैदा हुई। इन सारी हलचलों के बाद ही, कवाफ़ी के निधन, 1933 से कुल छह-सात साल पहले, यूनानी सत्तातंत्र को उनके महत्त्व का थोड़ा-बहुत अहसास हुआ। कवाफ़ी की कोई औति उनके जीवनकाल में प्रकाशित नहीं हुई। उनकी संकलित कविताओं का पहला पुस्तकाकार प्रकाशन उनके निधन के दो वर्ष बाद हुआ।
कवाफ़ी की कविताओं के प्रस्तुत हिन्दी अनुवाद एडमंड कीली व फिलिप शेरर्ड के अंग्रेजी अनुवादों की सहायता से संभव हुए हैं।
-सुरेश सलिल
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कोंस्तांतिन पी. कवाफ़ी
इथाका
जब तुम इथाका के लिए प्रस्थान कर रहे हो
मान कर चलो कि तुम्हारा रास्ता लम्बा है
जोख़िम भरा और खोजपूर्ण।
लीस्त्रायगनीज़, साइक्लोप्स,
क्रुद्ध पोसायदन - उनसे भयभीत होने की आवश्यकता नहीं।
जब तक तुम अपने विचारों को ऊँचे उठाये रखोगे,
जब तक एक दुर्लभ कि़स्म की उत्तेजना
तुम्हारे मन और शरीर को आलोड़ित करती रहेगी
रास्ते में वैसी आपदाओं से क़त्तई तुम्हारा सामना नहीं होने वाला।
लीस्त्रागनीज़, साइक्लोप्स, तूफ़ानी पोसायदन-
इनसे तुम्हें भिड़ना नहीं पड़ेगा
जब तक कि तुम उन्हें अपने मन में जगह नहीं देते
जब तक कि तुम्हारा मन उन्हें तुम्हारे सामने लाकर खड़ा नहीं कर देता है
मान कर चलो कि तुम्हारा रास्ता लम्बा है।
यात्रा के दौरान संभवतः ऐसी अनेक ग्रीष्मकालीन सुबहें आयेंगी
जब कितनी ख़ुशी-कितने आनंद के साथ
उन द्वीपों में तुम प्रवेश करोगे जिन्हें पहली बार देख रहे हो,
संभव है फ़ीनिशियाई व्यापारिक केन्द्रों पर तुम रुको
ख़रीदने के लिए बहुमूल्य वस्तुएँ :
मोती और मूँगा, अम्बर और आबनूस की लकड़ी,
तरह-तरह की उत्तेजक सुगंधियाँ-
जितनी तरह की तुम ख़रीद सको!
और संभव है तुम मिस्र के नगरों में जाओ
वहाँ के विद्वानों से ज्ञान प्राप्त करने, और आगे भी
प्राप्त करते रहने के लिए।
इथाका को हरदम दिमाग़ में रखो!
वहाँ पहुँचना ही तुम्हारा लक्ष्य है।
किन्तु यात्रा के जल्दी संपन्न होने की बात
क़त्तई मन में न लाना,
बेहतर हो कि वह वर्षों में संपन्न हो,
ताकि उस द्वीप पर पहुँचने तक तुम बूढ़े हो चुको।
मार्ग में जो-जो कुछ तुमने प्राप्त किया
उसी से अपने को समृद्ध मानो,
यह उम्मीद मत बाँधो कि इथाका तुम्हें समृद्धि देना।
इथाका ने तुम्हें एक अद्भुत यात्रा का अवसर दिया।
उसके बिना इस यात्रा पर तुम क्यों निकलते भला!
तुम्हें देने को अब कुछ नहीं बचा उसके पास।
और यदि तुम इथाका को विपन्न पाते हो
तो उसने तुम्हें मूर्ख नहीं बनाया।
इतने बुद्धिमान तुम हो चुके होगे,
इतने अनुभवसंपन्न
कि समझ सकोगे तब तक
क्या है इन इथाकाओं का अर्थ।
[1911]
इथाका : यूनानी पुराकथाओं में वर्णित एक समृद्ध द्वीप। वहाँ के शासक ओदीसियस [रोमन पौराणिकी के अनुसार यूलिशिस] ने त्रोय के युद्ध में ससैन्य भागीदारी की थी और यूनान को विजय दिलाई थी। युद्ध दस वर्ष चला। स्वदेश वापसी में ओदीसियस को दस वर्ष का समय मार्ग में लगा। वापसी यात्रा में उसे लीस्त्रायगनीज़, साइक्लोप्स आदि नरभक्षी दैत्यों से जूझना पड़ा और समुद्र के देवता पोसायदन का कोप झेलना पड़ा। इस सब में उसके सारे सैनिक, योद्धा मर-खप गये, पोत नष्ट हो गये और ओदीसियस का सारा ऐश्वर्य मिट्टी में मिल गया। बीस वर्ष बाद जब वह इथाका लौटा, तो उसका वेश भिक्षुओं जैसा था। दाढ़ी-मूँछ-बाल बेतहाशा बढ़े हुए, शरीर पर चीथड़े और उम्र से बुढ़ापा।
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नगर
तुमने कहा, ‘‘मैं किसी अन्य देश जाऊँगा,
किसी अन्य तट पर उतरूँगा
खोजूँगा कोई अन्य नगर इससे बढ़ कर।
जो कुछ करने का प्रयास मैं करता हूँ
नियति है उसकी यहाँ ग़लत साबित होना,
दबा पड़ा है किसी मुर्दा चीज़ की तरह मेरा दिल,
कब तक भला मैं यहाँ
अपने दिमाग़ को ग़ारत होता रहने दूँ?
जिधर सिर घुमाता हूँ, नज़र दौड़ाता हूँ जिधर
ज़िन्दगी के मनहूस खंडहर ही पाता हूँ
यहाँ, जहाँ इत्ते साल गुज़ारे हैंऋ
बाद-बरबाद किया है बिल्कुल अपने को।’’
कोई नया देश तुम नहीं खोजोगे, कोई नया तट
यह नगर हरदम लगा रहेगा तुम्हारे पीछे,
उन्हीं उन्हीं गली कूचों में चलखुर करते बूढ़े होगे
उन्हीं पड़ोसियों के बीच- उन्हीं घरों के दरमियान
बाल तुम्हारे सफ़ेद होंगे।
इसी नगर में तुम्हें हरदम रहना होगा
छोड़ दो कहीं और की उम्मीद,
कोई पोत नहीं है तुम्हारे लिए, कोई पथ
और अगर तुमने ग़ारत की ज़िन्दगी अपनी
यहाँ- इस बुद्दे कोने में
हर कहीं ग़ारत करते दुनिया में तुम अपनी ज़िन्दगी।
[1910]
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बर्बरों का इंतज़ार
चौक पर एकत्र हम किसका इंतज़ार कर रहे हैं आख़िरकार?
-बर्बरों को आज यहाँ आना है।
राज्य सभा में सब कुछ थमा-थमा सा क्यों है आख़िरकार?
सभासद कानून-वानून बनाना छोड़
हाथ पर हाथ धरे क्यों बैठे हैं आख़िरकार?
-क्योंकि आज बर्बर आ रहे हैं।
अब सभासदों को कानून बनाने की ज़रूरत कहाँ रही?
बर्बर एक बार यहाँ आ गये, तो वे ख़ुद बना लेंगे कानून- वानून।
और हमारे महाराज आज इतने तड़के कैसे उठ गये?
शाही पोशाक, सिर पर ताज-
शहर के फाटक पर क्यों तख़्तनशीन हैं महाराज आख़िरकार?
-क्योंकि आज बर्बर आ रहे हैं!
उनके नेता का स्वागत महाराज को ही तो करना है!
उसे देने को ख़िताबों और उपाधियों से लदाफदा
एक मानपत्र भी साथ लाये हैं महाराज।
और हमारे दो वाणिज्यदूत व दंडाधिकारी
जरी के कामदार लाल चोगों में कैसे नुमूदार हुए आज आख़िरकार?
जड़ाऊ, मणियों वाले, कंगन पहने हैं हाथों में
उँगलियों में क़ीमती पन्ने की अँगूठियाँ कसमसाती हुई
हाथों में सोने-चाँदी की मूँठों वाली नक़्क़ाशीदार छड़ियाँ?...
-क्योंकि आज बर्बर आ रहे हैं
और ऐसी चीज़ों से चकाचौंध होते हैं बर्बर।
और हमारे जाने माने वक्ता पहले की भाँति
व्याख्यान देने, अपनी बातें रखने क्यों नहीं आये आख़िरकार?
-क्योंकि आज बर्बर आ रहे हैं
और उन्हें तिल का ताड़ शैली की
भाषणबाज़ी से ऊब होती है।
और अचानक यह अफ़रा-तफ़री कैसी, यह दुचित्तापन?
[कैसे लटक गये लोगों के चेहरे!]
ये सड़कें, ये चौराहे इतनी जल्दी ख़ाली क्यों होने लगे आख़िरकार?
-क्योंकि रात घिर चुकी है और बर्बर आये नहीं
सरहद से अभी अभी लौटे हमारे लोग बताते हैं
कि वहाँ तो बर्बरों का कोई अता-पता नहीं।
बर्बर नहीं आये! अब हमारा क्या होगा?
उन्हीं से थोड़ी उम्मीद थी आख़िरकार।
[1904]
सन् 1898 में रची गई इस कविता का दृश्यबंध कल्पना के आधार पर खड़ा किया गया है और पतनशील रोम के प्राचीन काल से संदर्भित है।
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अश्व एकीलीस के
देखा उन्होंने जब कि पेत्रोक्लस खेत रहा
खेत रहा शक्ति और यौवन से आप्लावित वह अपूर्व योद्धा
शोक के सागर में डूब गये अश्व एकीलीस के,
देखा उन्होंने जब / यह क्रूर औत्य मृत्यु का
क्रोधाविष्ट हो उठे वे / दिव्य भाव से भरे।
पीछे की ओर अपने सिरों को मोड़ कर
झटकार कर अयाल/सुमों से अपने / वे धरती खूँदने लगे
देखा उन्होंने जब जीवनहीन-क्षत-विक्षत शव पेत्रोक्लस का
मात्र हाड़ माँस का ढेर बना/अरक्षित और निष्प्राण/भूमि पर पड़ा हुआ
देखा उन्होंने जब/कि वह वीरश्रेष्ठ
जीवन पथ छोड़ महाशून्य में विलीन हुआ, तो
शोक के महासिंधु में/डूब गये अश्व एकालीस के।
उन दिव्य अश्वों के नेत्रों में अश्रु देख
क्षोभ से भर उठे देवराज जीअस :
‘उचित नहीं था करना वैसा अविवेकी औत्य
मुझे, पीलिअस के विवाह के अवसर पर,’
एकीलीस : महान यूनानी योद्धा। पिता : पीलिअस, माँ : थेटिस। पीलिअस के विवाह के अवसर पर देवराज जीअस ने उसे अपने दो दिव्य अश्व उपहार स्वरूप भेंट किये थे। एकीलीस का शरीर अभेद्य था- एकमात्र पैरों की एड़ी ही वह मर्मस्थल थी जहाँ शस्त्र का प्रभाव हो सकता था [महाभारत में दुर्योधन से तुलनीय]। त्रोय के युद्ध में यद्यपि एकीलीस ने शस्त्र न उठाने की शपथ ली थी, किन्तु अपने मित्र और परम
अश्वों को लक्ष्य कर बोले देवेन्द्र ज़ीअसः
‘उचित नहीं था। तुम्हें उपहार स्वरूप दिया जाना।
ओ अप्रिय अश्व-युगल, यह सब क्या किया तुमने
जाकर वहाँ / दयनीय नियति के पुतले मानवों के मध्य?
तुम हो अमर्त्य / तुम हो वार्धक्य से परे
तब भी कर सकीं तुम्हें क्षणभंगुर महाआपदाएँ शोक संतप्त!
नश्वर मानवों ने लपेट लिया तुम्हें भी- अपने दुःख क्लेश में!!’
किन्तु यह मृत्यु का निरंतरित संकट था
कि वे परम प्रतापी अश्व/अश्रुओं से नहा गये।
[1897]
योद्धा पेत्रोक्लस के वीरगति पाने के समाचार से वह इतना विचलित हुआ कि उसे अपनी शपथ तोड़नी पड़ी। वीरवेश धारण कर वह युद्ध-क्षेत्र में उतरा और हेक्टर का वध करके अपने मित्र को श्रद्धांजलि दी। बाद में, अपोलो द्वारा अभिमंत्रित बाण से त्रोय के राजकुमार पारिस [प्रायेम का पुत्र और हेक्टर का अनुज, जिसके जन्म के समय भविष्यदृष्टा इसेकस ने कहा कि यही बालक त्रोय के विनाश का कारण बनेगा] के हाथों वह खुद मारा गया। एकीलीस त्रोय का पतन अपनी आँखों नहीं देख पाया, किन्तु अंतिम क्षण तक उसे विश्वास था कि इस युद्ध में विजय यूनान की होगी।
पेत्रोक्लसः आयु में एकीलीस से ज्येष्ठ, किन्तु उसका अभिन्न मित्र। हेक्टर के हाथों जब यूनान की सेना परास्त हो रही थी, तो पेत्रोक्लस से देखा नहीं गया। अपने मित्र से अनुमति लेकर वह युद्धक्षेत्र की दिशा में सन्नद्ध हुआ। एकीलीस ने अपना सारा सैन्य बल ही नहीं, अपना अभेय कवच भी उसे प्रदान किया।
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विश्वासघात
‘‘अतः यद्यपि हम होमर की कविता में आई अनेक बातें मानते हैं, इसे हम नहीं मानेंगे... न ही अस्खिलस को, जहाँ वह थेटिस के विवाहोत्सव में, उसके होने वाले पुत्र-एकीलीस- के बारे में अपोलो का यह प्रसंग लाता है :
‘कि रुग्णता कभी उसके पास नहीं फटकेगी। चिरजीवी होना, और प्रत्येक वरदान- आशीर्वचन उसके हित में होगा...’
‘और इतनी प्रशंसा की, कि मेरा हृदय प्रफुल्लित हो उठा, और मुझे आशा बँधी कि दिव्यवाणी की कला में निपुण अपोलो की दिव्यवाणी मिथ्या नहीं होगी।- किन्तु जिसने ये घोषणाएँ की थीं... वही है यह!... जिसने मेरे पुत्र का वध किया...’
-प्लेटो, रिपब्लिक प्प् 383
थेटिस और पीलिअस जब विवाह सूत्र में बँधे
भव्य विवाह भोज में अपोलो खड़ा हुआ
आशीर्वाद दिया नवदम्पति को
पुत्र के बारे में
जो जन्म लेगा दोनों के मिलन से।
‘रुग्णता कभी उसके पास नहीं फटकेगी’ कहा उसने
‘और वह चिरजीवी होगा।’
सुनकर यह थेटिस अतीव प्रसन्न हुई :
शब्द ये अपोलो के, भविष्यवाणियाँ करने में पारंगत है जो,
उसके बेटे की सुरक्षा की आश्वस्ति लगे।
और जब एकीलीस बड़ा हुआ
समूचे थेसली में स्वर गूँज उठा, कितना सुदर्शन है!
थेटिस को याद आये देवता के शब्द।
किन्तु एक दिन कुछ ज्येष्ठजन आये समाचार लेकर
कि एकीलीस त्रोय के युद्ध में खेत रहा।
फाड़ डाले थेटिस ने अपने नील-लोहित वस्त्र
उतार डाले कंगन, अँगूठियाँ
और उन्हें पटक दिया ज़मीन पर।
शोक में विह्वल वह याद करने लगी
विवाह के अवसर को।
कहा उसने, वह बुद्धिमान-प्रज्ञावान अपोलो!
कहाँ था तब वह कवि,
भोज के अवसर पर प्रवाहित की थी जिसने
भावप्रवण भावधारा?
कहाँ था वह देवदूत
वध किया उन्होंने जब
पुत्र का मेरेऋ भरी जवानी में?
ज्येष्ठों ने उत्तर दिया :
अपोलो स्वयं अवतरित हुआ था त्रोय में
त्रोय के लोगों के साथ मिल कर
वध किया उसी ने तुम्हारे बेटे का।...
[1904]
होमर : यूनान का आदिकवि जो अंधा था। ‘इलियद’ और ‘ओदिसी’ काव्यों का रचनाकार। अनुमानित समय 1000 ई.पू. से 1100 ई.पू. के मध्य।
अस्खिलस : यूनानी नाटककार। समय ई.पू. 500 से ई.पू. 600 के मध्य।
प्लोटो : यूनानी दर्शनिक। समय 365 ई.पू. से 432 ई.पू. के मध्य।
अपोलो : यूनानी पौराणिकी का एक देवता जो औषधियों, गायन, वीणावादन तथा देववाणी [व्तंबसम] के लिये विशेषरूप से जाना जाता है।
नोट : मूल कविता की पृष्ठभूमि के लिए ‘अकीलीस के अश्व’ शीर्षक कविता और उसकी पाद टिप्पणी देखें।
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सर्पेदोन की अंत्येष्टि
ज़ीअस घोर शोक में डूबा हुआ :
वध कर दिया पेत्रोक्लॅस ने सर्पेदोन का
और अब वह व अकियन झपटते हुए
उसकी मृतदेह हथियाने को, अपमानित करने को
किन्तु यह ज़ीअस को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं,
यद्यपि उसी ने वध हो जाने दिया अपने प्रिय बालक का-
विधि का विधान था-
किन्तु मरणोपरांत किंचित् सम्मान तो करना ही होगा उसे उसका!
भेजा भूलोक पर अतः अपोलो को
निर्देश देकर, कि कैसे मृतदेह की परिचर्या हो।
अपोलो ने आदरपूर्वक उठाई मृतदेह उस वीर की
शोकाभिभूत, उसे ले चला नदी की ओर।
रुधिर और धूलि को धो-पोछ कर साफ़ किया
गहरे घावों को इस तरह भरा कि उनके चिऍ तक मिट गये,
छिड़कीं सुगंधियाँ और सुधामृत उस पर
पहनाये झलमल ओलिम्पियाई वस्त्र
त्वचा विरंजित की, मोतिया कंघी से सँवारे स्याह काले केश
फैला कर व्यवस्थित किये सुदर्शन अंग।
अब यह दीख रहा युवा राजपुरुष, तेजस्वी रथी-सा
पच्चीस-छब्बीस की वयस -
किसी प्रसिद्ध दौड़ की प्रतिस्पर्धा जीत कर विश्राम करता हुआ
स्वर्णमंडित रथ उसका-
वायुवेग से दौड़ते घोड़े रथ के।
इस प्रकार सब कुछ संपन्न कर
बुलाया अपोलो ने निद्रा और मृत्यु की जुगल जोड़ी को
दिया आदेश उन्हें
उसे उसकी राजधानी लीकिया ले जाने का।
निद्रा और मृत्यु की जुगल जोड़ी
चल पड़ी पैदल पाँव लीकिया की ओरऋ
और जब पहुँचे वे राजभवन - द्वार पर
सौंप कर सम्मानित शव
लौट लिये अपने अन्य दायित्व वहन करने।
जैसे ही शव ले जाया गया राजभवन में
प्रारंभ हो गया अंत्येष्टि का दुखद कर्मकांड
जुलूसों, जयकारों और विलापों के साथ
पवित्र कलशों से अनेकविध तर्पण हुए
समयानुरूप भरपूर भव्यता के साथ।
तदुपरांत आये अनुभवी कारीगर
और विख्यात शिल्पी
नगर से
समाधि और समाधि-शिला निर्मित करने हेतु।
[1898]
सर्पेदोन : लीकिया का शासक। त्रोय युद्ध में वह यूननियों के विरुद्ध लड़ा और पेत्रोक्लॅस के हाथों मारा गया।
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त्रोय के लोग
हमारे प्रयास उन लोगों के- से हैं जो अनर्थ पर आमादा हैं
हमारे प्रयास त्रोस के लोगों के- से हैं।
हमने बस शुरू ही किया है कि कहीं पहुँच पाएँ
कि थोड़ी-सी शक्ति अर्जित कर पायें
थोड़ा निडर और आशावान हो पायें,
जबकि कुछ न कुछ हरदम हमें रोकने पर तुला हुआ हैऋ
एकीलीस खाई में से उछाल भर कर
सामने आ खड़ा होता है, और
अपनी प्रचंड चीखों से
हमें भय से भर देता है।
हमारे प्रयास त्रोय के लोगों के- से हैं
हम सोचते हैं अपना भाग्य हम बदल देंगे
दृढ़ता और साहस सेऋ
लिहाजा बढ़ते हैं बाहर की ओरऋ लड़ने को तत्पर
किन्तु जब कोई बड़ा संकट आ खड़ा होता है सामने
हमारी निडरता और दृढ़ता उड़नछू हो जाती है,
हकलाने लगती है हमारी ज़िंदादिली
लकवाग्रस्त हो जाती है
और हम दीवारों के चारों ओर बेतहाशा दौड़ने लग जाते हैं
पीठ दिखा कर अपने को बचाने की कोशिश करते हुए
तब भी निश्चित है हमारी असफलता
वहाँ, दीवारों के ऊपरी सिरे पर, शुरू हो चुका है विलापऋ
वे हमारी याद का मातम मना रहे हैं,
हमारे समय की ख़ूबियों का।
प्रिअम और हेकुबा1 फूट-फूट कर रो रहे हैं
हमारे लिए।
[1905]
1. प्रिअम-त्रोय का सम्राट, हेकुबा-प्रिअम की पत्नी। त्रोय का महान योद्धा हेक्टर इन्हीं का पुत्र था।
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एक बूढ़ा आदमी
कहवाघर के शोर में डूबे सिरे पर
मेज पर सिर डाले बैठा है अकेला / एक बूढ़ा आदमी।
सामने पड़ा है उसके एक अख़बार।
और बुढ़ापे के तकलीफ़देह-उपेक्षित दौर में
डूबा है वह इस सोच में
कि कितनी कम क़द्र की उसने अपनी जवानी की।
पता है उसे कि अब वह बहुत बूढ़ा हो चुका है।
देखता है। महसूस करता है। तब भी उसे लगता है
अभी कल तक तो मैं जवान था। कितनी जल्दी
खिसक गया वक़्त, कितनी जल्दी।
और सोचता है वह, कि कैसा मैं छला गया
अपनी ही समझ के हाथों, कैसा जड़मति मैं,
यक़ीन करता रहा उस ठगिनी के कहे पर
कि ‘कल तुम्हारे पास वक़्त ही वक़्त होगा।’
याद करता है वह उन आवेगों कोऋ
जिन पर लगाम कसी-उन ख़ुशियों को
जिनकी कु़र्बानी दी। जो-जो मौक़े गवाँये उसने
हँसी उड़ाते हैं वे अब / उसकी समझ से परे की समझ का।
किन्तु बहुत ज़्यादा सोचना, यादों पर बहुत ज़्यादा ज़ोर डालना
उस बूढ़े आदमी को थका गया बेतरह,
अब वह कहवाघर की मेज पर सिर डाले
सोया पड़ा है।
[1897]
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पहली पायदान
युवाकवि एवमिनस1 ने एक दिन
थियोक्रटस2 से जाकर अपना दुखड़ा रोयाः
‘क़लम घिसते दो साल हो गये मुझे
और अब तक मात्र एक काव्य-वृत्तांत मैं रच पाया।
यही अकेला काव्य मेरा सम्पूर्ण औतित्व है।
उदास नज़रों मैं देख रहा हूँ कि
कविता की सीढ़ी ऊँची बहुत है, बहुत ही ऊँची,
और उसकी पहली पायदान से, जहाँ अभी मैं खड़ा हूँ,
ऊपर कभी मैं चढ़ नहीं पाऊँगा।’
गुस्से से भभक उठा थियोक्रटस :
‘ऐसी बात बोलना उचित नहीं! निंदनीय है यह!!
पहली पायदान पर होना भी
तुम्हारे लिए प्रसन्नता और गर्व का कारण बनना चाहिए।
इस पड़ाव तक पहुँचना भी छोटी उपलब्धि नहीं,
तुम्हारा अब तक का औतित्व एक चमत्कार है।
यह पहली पायदान भी
दुनियादारी से परे
एक लम्बी यात्रा की पहचान है।
इस पायदान पर खड़े होकर तुम साधिकार
भावनालोक के वासी होने का दावा कर सकते हो।
और इस लोक के नागरिकों की सूची में
कोई नया नाम दर्ज़ होना
दुष्कर और दुर्लभ की श्रेणी में आता है।
भरे पड़े हैं विधायक इसकी परिषदों में
कोई धूर्त उन्हें मूर्ख नहीं बना सकता।
इस पड़ाव तक आ पहुँचना मामूली उपलब्धि नहीं।
तुम्हारा अब तक का औतित्व एक चमत्कार है।’
[1899]
एवमिनस- इस नाम का कोई उल्लेख यूनानी कविता के इतिहास में अथवा अन्यत्र नहीं मिलता। यह चरित्र और वृत्तांत कवि-कल्पना प्रतीत होते हैं।
थियोक्रटस- 310 से 260 ई.पू. के मध्य यूनान का एक प्रसिद्ध प्राचीन कवि, जो वृत्तांतपरक कविता के लिए जाना गया। इसका जन्म सिसली में हुआ और जीवन का कुछ भाग इस्कंदरिया में बीता।
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यह है !...
अनजान, अंतिओक1 में अजनबी, इदिसा2 से आया यह मानुस
लिखता रहता, लिखता ही नज़र आता हरदम!
और अंततः समापन हुआ अंतिम सर्ग का।
कुल कविताएँ तिरासी!
किन्तु इतनी ज़्यादा लिखाई, इतनी कविताई
यूनानी भाषा में पद-रचना का भयानक तनाव
थकान से चूर-चूर कर डाला इस सब कुछ ने बेचारे कवि को।
हाथ किन्तु आये ढाक के तीन पात!
तभी अनायास एक उदात्त विचार ने
उबारा कवि को हताशा से : ‘यह है!...’
लूसिअन3 ने जिसे कभी सुना था नींद में
[1909]
अंतिओक-सीरिया की प्राचीन राजधानी
इदिसा [म्कपें]- ओस्रोइनी [व्ेतवपदप] की राजधानी
लूसिअन- एक प्राचीन सोफि़स्ट [हेत्वाभासी] लेखक-चिंतक
इस कविता का रूपक कवि-कल्पित है। लूसिअन की औति ‘दि ड्रीम-प्प्’ में एक प्रसंग है, कि स्वप्न में कल्तुर [ब्नसजनतम] ने कहा- ‘‘तुम कहीं भी जाओ, भले विदेश, अनदेखे नहीं रहोगे। मैंने तुम पर पहचान का एक चिऍ अंकित कर दिया है। जो कोई तुम्हें देखेगा, तुम्हारी ओर संकेत करके अपने साथी से कहेगा : ‘यह है!...’ [that’s the man!]
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आवाज़ें
आवाज़ें, प्रीति-पगी और मिसाल बन चुकीं
उनकी, जो मर गये, या-
जो मरे हुओं की ही तरह
हमारे लिए गुम हो गये,
उनकी।
कभी-कभार वे ख़्वाबों में हमसे बतियाते हैं
कभी-कभार सोच में गहरे डूबा दिमाग़ उनको सुनता है।
और उनकी आवाज़ के साथ
पलभर के लिए
लौट आती हैं
हमारी ज़िन्दगी की पहली कविता की आवाज़ें-
जैसे कि रात के वक़्त मद्धिम पड़ता जाता दूरस्थ संगीत
[1904]
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पदचापें
मूँगे के उकाब आबनूसी शैया की शोभा बढ़ाते हुए
सोया पड़ा है जहाँ नीरो1 गहन निद्रा में-
कठोर, आत्मतुष्ट, शांतचित्त
शारीरिक बल से भरपूर
ओज और तेज से प्रभाषित
किन्तु वहाँ सेलखड़ी हाल में,
जहाँ है प्राचीन ईनोबारबी देवस्थली2
कौटुम्बिक देवता कितने अशांत!
काँपते हुए थर-थर वे छुटभैये देवता
प्रयासरत छिपाने को अपनी तुच्छ काया।
सुनी है उन्होंने एक डरावनी आवाज़
सिड्ढियों से होकर ऊपर आती हुई
फौलादी पदचापें ज़ीने को कँपाती हुई :
और भय-विजड़ित अभागे लारेगण3
अफरातफरी में, देवस्थली के पीछे
धकियाते-लड़खड़ाते हुए परस्पर-
एक दूसरे पर ढेर होता हुआ,
उन्हें पता है, क्योंकि, उस आवाज़ का रहस्य-
पहचान रहे हैं चण्डीदेवियों4 की पदचापें।
[1909]
नीरो [37-68 ई.] : दोमितिअस ईनोबारबुस और अग्रीपिना जूनियर का बेटा। अग्रीपिना ने बाद में सम्राट क्लाउदिअस से विवाह किया। फिर उसे विष देकर नीरो को राजसिंहासन पर बैठाया।
ईनोबारबी, लारेगण : रोम में प्रत्येक संभ्रांत परिवार में पूर्वजों के नाम पर एक छोटी देवस्थली होती थी- रसोईघर में भट्ठी या चूल्हे के पास। उनमें कौटुम्बिक कल्याण के लिए छोटे-छोटे देवता होते थे, जिन्हें ‘लारे’ और उनके आवास को ‘लारेरिअम’ कहा जाता था।
चण्डी देवियाँ : रोमन पौराणिकी में ‘फ़्यूरी’ नाम से प्रतिशोध की चण्डीरूपा देवियों का उल्लेख है। उनके सिर पर, केशों के बजाय, साँप साँपिनियाँ लटों की भाँति लटकते थे। वे चण्डीदेवियाँ, मातृघात के जघन्य अपराध का दण्ड देने के लिए नीरो को खोज रही थीं।
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अप्रत्यक्ष चीज़ें
जो मैंने किया जो मैंने कहा
कोई तलाश करने की कोशिश न करे
उस सब मेंऋ मैं कौन था क्या था।
एक बाधा थी जो मेरी ज़िन्दगी के
तौर तरीकों और कार्रवाइयों को
ग़लत अंदाज़ में पेश करती,
एक बाधा थी, जो अक्सर
जब भी मैं बोलना शुरू करता
रोकने उठ खड़ी होती।
मेरे जिन कामों को सबसे ज़्यादा अनदेखा रखा गया
मेरे जिस लिखे को सबसे पीछे खिसका
छिपा दिया गया
उन्हीं, सिर्फ़ उन्हीं से समझा जायेगा मुझे।
किन्तु मुमकिन है यह बहुत अहम बात न हो
इतनी मेहनत, खोजने की, कि सचमुच मैं क्या हूँ।
आगे कभी, एक बेहतर समाज में
मेरे ही जैसा कोई
प्रकट होगा निश्चय ही-
लेगा वह निर्णय बिना भेदभाव के।
[1908]
कवाफ़ी की इस कविता में महाकवि भवभूति का बहुश्रुत श्लोक
बजता सुना जा सकता है [निश्चय ही संयोग से] :
उत्पत्स्येस्ति मम कोऽपि समानधर्मा
कालोह्ययं निरवधिर्विपुला च पृथ्वीू [सु.स.]
[यह कविता कवि के जीवनकाल में अप्रकाशित रही]
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राजा दिमित्रिओस
‘‘किसी राजा की भाँति नहीं, बल्कि एक अभिनेता की भाँति, राजसी
पोशाक की बजाय, उसने एक भूरा चोगा पहना और चुपके से चला गया।’’
-प्लूतार्क : ‘लाइफ़ आफ दिमित्रिओस’
मकदूनियाइयों ने जब उसका साथ छोड़ दिया
जतलाया, उन्हें पीरोज़ ज़्यादा पसंद है
राजा दिमित्रिओस ने,
लोगों का मानना है,
किसी राजा जैसा बर्ताव नहीं किया।
उतारी अपनी सुनहरी पोशाक
फेंक दीं बैंजनी गुर्गाबियाँ, यानी जूतियाँ
पहने तुर्तफुर्त बिल्कुल मामूली कपड़े
और सिखक लिया ठीक उस अभिनेता की भाँति
जो स्वाँग ख़त्म होते ही
पोशाक बदल कर चला जाता है।
[1906]
दिमित्रिओस [337-283 ई.पू.] मकदूनिया का शासक था। 288 ई.पू. में उसकी फौजों ने उसका साथ छोड़ दिया और उसके विरोधी, इपिरस के बादशाह, पीरोज़ के खेमे में चली गई। यह दिमित्रिओस की अति उदारता का प्रतिफल था।
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स्पार्ता में
वह नहीं जानता था
वह, नरेश क्लिओमेनिस1, साहस नहीं जुटा पा रहा था
उसे क़त्तई इल्म नहीं था कि इस तरह की बात माँ2 से कैसे कहेऋ
समझौते की गारंटी के बतौर तोलेमी की शर्त
कि वह भी मिस्र जाये, बंधक बन कर रहे।...
एक बेहद अपमानजनक और अभद्र बात।
वह कहने कहने को होता, मगर हिचक जाता हरदम
कहना शुरू करता, मगर ज़बान चिपक जाती तालू से यक्दम।
मगर वह शानदार औरत बेटे की मुश्किल को भाँप गई
[पहले भी सुन चुकी थी कुछ अफ़वाहें इस बाबत]
और उसने हिम्मत बँधाई उसे, कि बेहिचक कहे।
और वह हँसी, कहा, बेशक वह जायेगी ख़ुशी-ख़ुशी
कि अपने बुढ़ापे में भी स्पार्ता के काम आयेगी।
जहाँ तक अपमान की बात है
क़त्तई असर नहीं हुआ उसका उस पर।
निश्चय ही लागिद के जैसा एक कल का नवाब
समझ नहीं पाया स्पार्ताई ज़िंदादिली,
लिहाजा उसकी शर्त अपमानित नहीं कर पाई
उसके जैसी बामर्तबा औरत को-
स्पार्ता के बादशाह की माँ को।
[1928]
1.2. स्पार्ता के शासक क्लिओमेनिस तृतीय [235-219 ई.पू.] ने मकदूनिया और अकिअन लीग के विरुद्ध युद्ध में तोलेमी तृतीय से सहायता माँगी। तोलेमी ने शर्त रखी कि क्लिओमेनिस अपने बच्चों और अपनी माँ क्रातिसिकिलिया को बतौर बंधक सिकंदरिया भेजे। यह इसलिए अपमानजनक था कि स्पार्ता का शजवंश बहुत प्राचीन- बहुत प्रतिष्ठित था, जबकि तोलेमी राजवंश कुल तीन सौ साल का था। आगे चलकर तोलेमी के यहाँ बंधक क्रातिसिकिलिया को तोलेमी तृतीय के उत्तराधिकारी ने मार डाला।
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सुनो ओ लैकेदाइमोनियनों के बादशाह
क्रातिसिकिलिया ने कोई मौक़ा नहीं दिया लोगों को
अपने दर्दो-नाले को भाँप पाने का :
आनबान भरी ख़ामोशी के साथ आगे बढ़ी
ख़ामोश चेहरे पर कोई नक्श नहीं
ग़म का, दर्द का।
तब भी, पल भर को रोक नहीं पाई वह ख़ुद को :
सिंकदरिया के लिए तैयार खड़े
खटारा जहाज़ पर सवार होने से पहले
बेटे को ले गई पोसिदोन1 के मंदिर
और वहाँ जब वे दोनों तन्हा थे
[वह ‘‘बहुत व्यथित’’ था, प्लूतार्क ने लिखा है,
‘‘बहुत ही विचलित’’]
उसे प्यार से सीने से लगाया, माथा चूमा उसका...
मगर तभी उसकी ज़िंदादिली ने पलटी खाई
फिर अपनी ठवन हासिल की
और उस शानदार औरत ने क्लिओमेनिस से कहा,
‘‘सुनो, ओ लैकेदाइमोनियनों के बादशाह,
हम जब बाहर निकलें, कोई भी हमें आँसू बहाते
या स्पार्ता की शान के ख़िलाफ़
किसी भी तरह पेश आते न देखने पाये।
कम से कम इतना तो हमारे बस में है ही
आगे ऊपरवाले की मर्ज़ी।’’
और सवार हो गई वह जहाज़ पर
‘ऊपर वाले की मर्ज़ी’ जहाँ कहीं ले जाए!
[1929]
यह कविता पिछली कविता के ही क्रम में है।
1 यूनानी पौराणिकी में समुद्र, भूकम्प और घोड़ों का देवता,
जो रोमन पौराणिकी में ‘नेपच्यून’ नाम से जाना जाता है।
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सिकंदरिया के बादशाह
सिकंदरिया के लोगों को क्लिओपात्रा के बेटों के साथ
जाने से रोक दिया गया-
कैसेरिअन और उसके अनुज अलेक्सांदर और तोलेमी
पहली बार जिन्हें जिमनाजियम ले जाया जा रहा था
बादशाह घोषित करने के लिए
सैनिकों के भव्य प्रदर्शन के साथ।
अलेक्सांदर : घोषित किया उसे अर्मीनिया, मीदिया और पर्थियनों का बादशाह,
तोलेमी : उसे घोषित किया गया साइलीनिया, सीरिया और
फोनीसिया का बादशाह,
कैसेरिअन खड़ा हुआ अन्यों के सम्मुख
गुलाबी रेशम से सजा धजा
सीने पर सुंबुल पुष्पों का गुच्छ
कमरबंद : जम्बुमणियों, नीलमणियों की दोहरी पट्टी
जूते गुलाबी मोतियों की बुँदकियों वाले सफे़द फीतों से कसे।
घोषित किया उन्होंने उसे उसके भाइयों से बढ़कर
बादशाहों का बादशाह।
सिकंदरिया के लोगों को पता था बख़ूबी, कि यह सब
कुछ सिफर् शब्दजाल है, निरा नाटक
किन्तु दिन वह भावभीना था और काव्यमय
आसमान कुछ-कुछ पीताभ नीला
सिकंदरिया की जिमनाजियम - एक सम्पूर्ण कलात्मक विजयोत्सव
दरबारी अनूठी अदाओं में भव्य
कैसेरिअन पूर्णतया अनुग्रह और सौंदर्य की प्रतिमूर्ति :
क्लिओपात्रा का पुत्र वह
जिसकी धमनियों में शिराओं में लागिदों का रक्त प्रवहमान :
सिकंदरियावासी उत्सव में उन्मत्त
उफनते हुए उत्साह से,
जय-जय का मंत्रोच्चार यूनानी में, मिस्री में,
थोड़ा-सा हिब्रू में,
यद्यपि उन्हें पता था बख़ूबी कि इस सबका मूल्य क्या-कितना है
कितने खोखले हैं शब्द ये यथार्थतः
ये राज्याधिकार!
[1912]
क्लिओपात्रा के बेटों का यह राजसमारोह 34 ई.पू. में अंतोनी ने आयोजित किया था। अलेक्सांदर तथा तोलेमी [ तोलेमायोस] अंतोनी के बेटे थे और कैसेरिअन जूलिअस सीज़र का बेटा था।
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कैसेरिअन
कुछ तो एक ख़ास दौर के तथ्यों की पुष्टि के लिए
और कुछ एक-दो घंटे का वक़्त ज़ाया करने के लिए
पिछली रात तोलेमी राजवंश से संबंधित अभिलेखों का
एक ग्रंथ उठाया और पढ़ने लगा-
विपुल प्रशंसा और चाटुकारिता, ज़्यादातर वही-वही हरेक के लिए
सभी प्रतिभावान, ऐश्वर्यवान, शक्तिवान, उदात्तऋ
जो भी दायित्व अपने कंधों पर लेते हैं सर्वथा विवेकपूर्ण।
जहाँ उल्लेख है उनकी वंश-परम्परा की स्त्रियों का-
बेरेनिसों का, क्लिओपात्राओं का,
वे भी सभी की सभी अद्भुत!
मनचाहे सारे तथ्य खोज लिये जब मैंने
खिसका देना था परे वह ग्रंथ मुझे,
किन्तु ‘बादशाहों के बादशाह’ कैसेरिअन के
एक संक्षिप्त अनुल्लेख्य उल्लेख ने
मेरी आँखों को सहसा अटका लिया...
यहाँ तुम अवस्थित हो अपने अपरिभाष्य आकर्षण के साथ
क्योंकि इतना कम ज्ञात है तुम्हारे बारे में, इतिहास से
कि मैंने कुछ अधिक ही उन्मुक्तता से गढ़ा तुम्हें अपने मानस में।
मैंने तुम्हें सुदर्शन और संवेदनशील रूप दिया
मेरी कला ने सँवारा तुम्हारा चेहरा सपनीला, सुंदर मनोहर।
और इतनी समग्रता में मैंने कल्पना की तुम्हारी पिछली रात-
अंतिम प्रहर में
कि जैसे ही चिराग़ बढ़ा
बढ़ जाने दिया उसे प्रयोजन पर पहुँच कर-
कल्पना की कि तुम मेरे कमरे में आये
खड़े हो मेरे सम्मुख हू-ब-हू ऐसे,
जैसे विजित सिकंदरिया में हो
निस्तेज, थके हुए, भरे विषाद से,
अब तक उम्मीद पाले, कि वे तुम पर रहम खा सकते हैं,
कि तभी फुसफुसाया वह कमीना : ‘‘बहुत अधिक सीज़र!’’
[1918]
कैसेरिअन जूलिअस सीज़र से क्लिओपात्रा का बेटा, जिसका उल्लेख ‘लिटिल सीज़र’ अथवा तोलेमी ग्टप् के रूप में भी हुआ है। अंतोनी ने उसे ‘किंग आफ किंग्स’ की उपाधि दी। अंतोनी की पराजय के बाद, ऑगुस्तुस [गाइउस जूलिअस सीज़र ओक्ताविआनुस] ने अपने सलाहकारों के परामर्श पर उसका वध किया। सलाहकारों ने होमर के ‘इलियद’ से एक उ]रण दिया थाः ‘‘बहुत अधिक सीज़रों का होना अच्छी बात नहीं।’’ यहाँ कवाफ़ी ने उसी की ओर संकेत किया है। [‘सीज़र’ शब्द का अर्थ निरंकुश अथवा तानाशाह होता है।]
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दीवारें
बिना लिहाज के, बिना तरस खाये
बेशर्मी के साथ खड़ी कर दी हैं उन्होंने
मेरे चारों ओर दीवारेंऋ मोटी और ऊँची
और मैं बैठा हूँ यहाँ निराशा से घिरा।
सोच ही नहीं सकता कुछ और :
यह नियति कुतरे जा रही मेरा दिमाग़-
क्योंकि बाहर मुझे बहुत कुछ करना था।
वे जब दीवारें उठा रहे थे मैं जान क्यों नहीं पाया!
मगर मैंने क़त्तई नहीं सुनी
दीवारें उठाने वालों की सरगर्मियाँ,
कोई आहट तक नहीं।
बिना किसी तुक के अलगा दिया
उन्होंने मुझे दीन दुनिया से।
[1896]
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प्रार्थना
सागर के अँधेरे में डूबा पड़ा केवट।
नहीं जानता कि महतारी उसकी
जाती है और एक बड़ी-सी मोमबत्ती
माता मरियम की मूरत के सम्मुख जलाती है,
अरदास करती है कि जल्दी ही लौट आये वह-
मेरा पूत
कि मौसम अच्छा हो जाये-
कान उसके हरदम हवा की ओनानी [टोह] लेते रहते हैं।
वह जब अरदास करती है माथा नवा कर
मूरत सुनती रहती है उदास भाव से शांत
जानती हुई
कि बेटा
जिसका वह इंतज़ार कर रही है
कभी नहीं लौटेगा।
[1898]
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बूढ़ों की आत्माएँ
फटी पुरानी चिथड़ा देहों में उनकी
बैठी हैं बूढ़ों की आत्माएँ।
कितनी अभागी हैं वे नाकारा चीज़ें
और ऊबी हुई दयनीय ज़िन्दगी से।
कैसी तो काँप-काँप उठती हैं
उस ज़िन्दगी के खो जाने के ख़ौफ़ सेऋ
कितना चाहती हैं उसे-
वे दुविधा में डूबी धूपछाँही आत्माएँ!
बैठी हुई- थोड़ी हास्यास्पद और थोड़ी दयनीय-
अपनी जर्जर, तार-तार खालों में।
[1901]
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झरोखे
इन अँधेरे कमरों में : जहाँ मैं छूँछे दिन काटता हूँ
चक्कर पर चक्कर लगाता भटभटाता हूँ
झरोखे तलाशने की कोशिश करता हुआ।
बड़ी राहत मिले अगर कोई झरोखा खुले-
लेकिन झरोखे हैं ही कहाँ कि हाथ आएँ!
या फिरऋ मेरी पहुँच से परे होंगे।
मुमकिन है उन्हें न तलाश पाना ही बेहतर हो
रोशनी कोई और जुल्म ढाये-
कौन जाने क्या नई चीज़ें दिखाये!
[1903]
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उकताहट
एक उकताहट भरे दिन के बाद दूसरा
वैसा ही उकताहट भरा।
वही वही बातें घटेंगी हम पर बार बार
वही वही लम्हे
आयेंगे जाएँगे।
एक महीना बीता नहीं कि दूसरा सामने!
आसानी से अंदाज़ा लगा लो क्या है आगे :
बीते हुए कल की यही सारी ऊब।
आने वाला कल आने वाले कल की तरह
क़त्तई नहीं बीतता।
[1908]
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जितनी कर सकते हो कोशिश
भले तुम मनमाफि़क़ अपनी ज़िन्दगी
सँवार नहीं सकते
मगर, जितनी कर सकते हो कोशिश करो
कि बहुत ज़्यादा दुनियादारी
बहुत ज़्यादा बकबक से अपनी
उसका दर्ज़ा तो न गिराओ!
मत गिराओ उसे
साथ साथ अपने घसीटते हुए
सब कहीं नचाते हुए
समाजी रिश्तों और दावतों के
रोज़मर्रा टुच्चेपन में
आये दिन उसका तमाशा बनाते हुए
कि एक दिन उबाऊ पिछवाह नज़र आने लगे।
[1913]
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समापन*
घिरे हुए भय और संशय से
सिर भन्नाया हुआ, आँखों में आशंका
जान पर खेल कर बाहर के रास्ते तलाशते हुए,
तरकीब सोचते हुए टालने की
सामने खड़े ख़तरे को
बुरी तरह से हड़का रहा।
तब भी ग़लत धारणा आड़े आई
कि कोई ख़तरा नहीं आगे :
सही नहीं थी ख़बर
[हमने सुना नहीं, अथवा उसे ठीक-ठीक लिया नहीं]।
अब एक और विपदा!
क़त्तई अकल्पनीय
यक् ब यक्, प्रचंड रूप में
आ पड़ी सिर पर
पाकर दुचित्ता,
और अब समय नहीं,
हमें बहा ले गई।
[1911]
* अंग्रेजी में शीर्षक things ended
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सुबह का सागर
यहाँ मुझे रुकने दो। करने दो मुझे भी नज़ारा
कुछ पल कु़दरत का।
चमकीला नीला सुबह के सागर का
बिन बादल आकाश का,
तट पीलाऋ
सब सुंदर
सब कुछ रोशनी में नहाया हुआ।
खड़े होने दो यहाँ मुझे
दावा जताने दो
कि देख रहा मैं यह सब कुछ
[दरअसल मैंने इसे पलभर निहारा था
पहली बार जब रुका था यहाँ]
और मेरे हरदम के- से दिवास्वप्न भी
नहीं यहाँ
मेरी स्मृतियाँ
वे ऐंद्रिय चित्र।
[1915]
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नौ बजे से
साढ़े बारह! नौ बजे से, जब मैंने चिमनी जलाई
और यहाँ आ बैठा, तेज़ी से गुज़र गया वक़्त।
बिना कुछ पढ़े, बिना किसी से बोले-बतियाये
यूँ ही बैठा रहा-
निपट अकेले घर में किससे बातें करता?
नौ बजे से, जब मैंने चिमनी जलाई
मेरे जवान जिस्म की परछाईं
मुझे तंग करती रही
याद दिलाती रही बंद महमहाते कमरों की
गुज़रे वक़्तों की सरशारियों की-
कितनी दिलेराना थीं वो!
और उसने मुझे उन गलियों में वापस ले जा खड़ा किया
जिन्हें पहचान पाना अब नामुमकिन है
उन हंगामाख़ेज़ नाइटक्लबों में
जो कभी के बंद हो गये
उन कहवाघरों, थियेटरों में
जो अब नहीं हैं।
मेरे जवान जिस्म की परछाईं ने
उन बातों की भी फिर से याद दिला दी
जो उदास करने वाली हैं-
घरेलू सदमे, अलगाव
ख़ास अपनों के जज़्बात
उन गुज़र चुकों के
जिन्हें बहुत कम पहचाना गया।
[1918]
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दोपहर ढले का सूरज
कितनी अच्छी तरह जानता हूँ इस कमरे को
अब वे इसे
और बाजू वाले को
किराये पर चढ़ा रहे हैं बतौर दफ़्तर।
समूचा घर एक कारोबारी इमारत हो गया
एजेंटों, व्यापारियों और कंपनियों के लिए
कितना जाना पहिचाना है यह कमरा!
यहाँ दरवाज़े के पास कोच था
उसके सामने एक तुर्की क़ालीन
क़रीब ही, दो पीले घटों के साथ एक शेल्फ़
दायीं ओर- नहीं, सामने-एक शीशेदार आल्मारी
बीच में एक टेबल, जहाँ वह लिखता था
और बेंत की तीन ऊँची कुर्सियाँ
रोशनदान के बग़ल में बिस्तर
जिस पर हम कई बार हमबिस्तर हुए
आसपास ही कहीं होंगी अब भी वे
वे गुज़िश्ता चीज़ें
रोशनदान के बग़ल में बिस्तर,
दोपहर ढले का सूरज
उसके आधे हिस्से को सहलाता रहता
...एक दिन दोपहर ढले चार बजे हम जुदा हुए
सिर्फ़ हफ़्ते भर को... और उसके बाद-
वह हफ़्ता हरदम में ढल गया।
[1919]
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अंतोनी का अंत
किन्तु जब सुना उसने औरतों का विलाप
दयनीय दशा पर उसकी, शोक से अभिभूत-
महोदया अपने पूरबी हावभाव में
और दासियाँ असभ्य यूनानी लहजे में,
उमड़ उठा उसके भीतर का स्वाभिमान
इतालवी ख़ून उसका नफ़रत से भर उठा,
और वह सब जिसमें उसकी तब तक अनुरक्ति थी-
उद्दंड - वहशी सिकंदरियाई ज़िन्दगी-
उबाऊ और बेहूदा अब लगने लगी।
और उनसे कहा उसने : बंद करें रोना विलपना
उसके लिए,
ग़लत हैं बिल्कुल इस तरह कही बातें।
उन्हें तो उसका गुणगान करना चाहिए
कि वह एक महान शासक था
धीर गम्भीर, योद्धा और वीर।
और अब यदि वह भूमि पर पड़ा है
तो दीन-भाव से नहीं,
बल्कि एक रोमन द्वारा पराजित एक रोमन की भाँति।
[1907]
अंतोनी [मार्कस अंतोनिअस] एक रोमन जनरल था [83-31 ई. पू.]।
उसे एक्टिअम के युद्ध में ओक्तावियन ने पराजित किया था। शेक्सपियर का विख्यात नाट्क ‘एंटोनी-क्लिओपैट्रा’ इसी पर केन्द्रित है। [यह कविता कवि के जीवनकाल में अप्रकाशित रही।]
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मार्च महीने का पन्द्रहवाँ दिन
मेरी आत्मा, वैभव और आडम्बर से मेरी रक्षा करे!
और यदि अपनी महत्त्वाकांक्षाओं को
वश में नहीं रख सकते
कम से कमऋ आगा-पीछा देख कर
सतर्कतापूर्वक उनहें पालो-पोसो!
जितना ऊँचे उठते जाओगे
उतनी ही सतर्कता और सावधानी
बरतनी होगी।
और जब शिखर पर पहुँचो : सीज़र की ऊँचाई तक
किसी शोहरतमंद हस्ती की हैसियत में खुद को पाओ-
तब ख़ासतौर पर सावधानी बरतो बाहर निकलने पर
सत्तासंपन्न रूप में सुपरिचितऋ अपने परिजनों से
और यदि
भीड़ में से आये तुम्हारे निकट
कोई एक आर्तेमिदोरोस, पत्र हाथ में लिये,
कहे हड़बड़ी के साथ : ‘पढ़ो इसे इसी वक़्त
तुमसे संबंधित ज़रूरी बातें हैं इसमें।’
रुकना सुनिश्चित करो
सुनिश्चित करो राजकाज की बाक़ी सारी बातों को
परे झटक देना,
सुनिश्चित करो उस वक़्त सम्मान व्यक्त करने हेतु झुकते
अभिवादन करते लोगों को अदेखा कर देना
[उन्हें बाद में भी समझ जा सकता हैद्धः
राज्य परिषद को भी प्रतीक्षा करने दो-
और तत्काल जानो
क्या आवश्यक संदेश लाया है आर्तेमिदोरोस तुम्हारे लिए!
[1911]
यह कविता जूलिअस सीज़र से संदर्भित है। ई.पू. 44 की 15 मार्च को आर्तेमिदोरोस नाम से एक सोफि़स्ट भविष्यवक्ता ने सीज़र को एक लिखित संदेश देने का असफल प्रयास किया था। उस लिखित संदेश में ब्रूटस और कैसिअस द्वारा सीज़र की हत्या के षड्यंत्र की पूर्व सूचना थी। सीज़र ने उसकी अनदेखी की और उसी दिन उसकी हत्या हो गई।
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नीरो की समय-सीमा
नीरो क़त्तई चिंतित नहीं हुआ जब उसने
देल्फी की देववाणी1 सुनी :
‘तिहत्तर वर्ष की आयु से सावधान!’
बहुत वक़्त मौजमस्ती के लिए
अभी तो तीस का ही है!
समय-सीमा देवता ने जो दी है बहुत दूर है
भविष्य के संकटों से निबटने के लिए
अभी थोड़ा थका है, वापस जायेगा रोम-
किन्तु इस यात्रा में अद्भुत रूप में थका हुआ
डूब गया नीरो पूरी तरह रागरंग में :
नाट्यशालाओं में, उद्यान-आमोदों में,
मल्लशालाओं में...
संध्यायें यूनानी नगरों में...
और सबसे बढ़कर आनंद निर्वस्त्र देहों का...
कितना कुछ भोगने को नीरो को!
और उधर स्पेन में गालबा2
पोशीदा तौर पर फौजें इकट्ठी करता
कवायद कराता हुआ- गालबा।
तिहत्तरवाँ साल है यह उसका।
[918]
1. यूनान के देल्फी नगर में अपोलो का मंदिर था, जहाँ अपने पुरोहित के मुख से वह भविष्यवाणी करता था। उसे देववाणी [व्तंबसम] कहते थे।
2. गालबा स्पेन में रोमन गवर्नर के रूप में नियुक्त था। ईस्वी सन् 68 के वसंत में [तब उसकी उम्र तिहत्तर साल थी] फौजों ने उसे आमंत्रित किया कि वह नीरो को हटाकर उसकी जगह ले। उसके कुछ ही अर्से बाद नीरो ने आत्महत्या कर ली।
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सेलेफकिदिस की अप्रसन्नता
दिमित्रिओस सेलेफकिदिस यह जान कर अप्रसन्न हुआ
कि तोलेमी राजवंश का एक सदस्य
इतनी गिरी हालत में इटली आया है :
ख़राब कपड़ों में और पैदलपाँव
साथ में तीन या चार गुलाम सिर्फ़।
इस तरह तो उनका राजवंश मज़ाक़ बन जायेगा,
रोम का मनोरंजन।
निस्संदेह सेलेफकिदिस को पता है
कि बुनियादी तौर पर अब भी वे
रोमनों के लिए काफ़ी- कुछ टहलुए जैसे ही हैं ऋ
उसे यह भी मालूम है कि रोमन
बिना किसी कानून कायदे के, मनमर्ज़ी मुताबिक़
शाही तख्त देते और वापस ले लेते हैं,
तब भी उन्हें एक तरह की मान-मर्यादा तो
बनाये ही रखनी चाहिए, कम से कम अपने दिखाने कीऋ
भूलना नहीं चाहिए उन्हें कि वे अभी भी बादशाह हैं
और अभी भी [हाय!] बादशाह कहलाते हैं।
इसी वजह से दिमित्रिओस सेलेफकिदिस अप्रसन्न हुआ था
और तुरत उसने पेश किये नील-लोहित वस्त्र,
भव्य किरीट, बहुमूल्य रत्नजटित आभूषण,
अनेकानेक सेवक और परिचर, बहुत मूल्यवान घोड़े तोलेमी को
ताकि वह स्वयं को रोम में उस तरह पेश करे
जिस तरह करना चाहिए
सिकंदरिया के एक यूनानी अधिपति के बतौर
किन्तु तोलेमी ने, जो याचक बन कर आया था
जानता था अपनी हैसियत, वह सब कुछ अस्वीकार कर दिया,
रत्ती भर दरकार नहीं थी उसे इस शानशौकत की।
फटेहाल, दीनभाव से वह रोम में दाख़िल हुआ
एक मामूली दस्तकार के घर पड़ाव किया
और इस तरह उसने स्वयं को
एक विपन्न, दुर्भाग्यग्रस्त प्राणी के रूप में
प्रस्तुत किया सीनेट के सम्मुख
ताकि अपनी याचना को
और अधिक मार्मिक बना सके।
[1915]
इस कविता का घटना-समय 164 ई.पू. है। उस दौरान दिमित्रिओस सेलेफकिदिस [जो सीरिया के शाही तख्त पर ‘सोतिर’, मानी उद्धारकऋ के उपनाम से आसीन हुआ था] बंधक के बतौर रोम में रह रहा था। तोलेमी टप् को उसके अपने भाई और सहशासक तोलेमी टप्प्प् एवरगेटिस ने देश से निकाल दिया था। वह रोम, सीनेट के पास इस याचना से आया था कि उसे उसका छीना गया पद वापस दिलाया जाये।
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दिमित्रिओस सोतिर
[162-150 ई.पू.]
हरेक बात जिसकी उसने उम्मीद की ग़लत साबित हुई
लक्ष्य किया था उसने स्वयं को करते महान कार्य
अंत करते अपमान का, जिसने उसके देश को नीचे गिरा रखा था
मैग्नीसिया युद्ध के बाद से लगातार-
लक्ष्य किया था उसने स्वयं को सीरिया को एक बार फिर खड़ा करतेः
उसकी सेनाओं से, उसके समुद्री बेड़ों से
उसके सुदृढ़ दुर्गों से, उसकी दौलत से
कष्ट पाया उसने रोम में, तार-तार हुआ
भांपा जब उसने मित्रों की - खानदानी युवाओं की बातों में
बावजूद उनकी सारी कोमलता, विनम्रता के
उसके प्रति, बादशाह सेलेफकोस फिलोपातोर के बेटे के प्रति-
भाँपा जब उसने, कि इस सबसे बावजूद
सदैव पोशीदा कि़स्म का एक तिरस्कार भाव रहा
हेलेनी राजवंशों के प्रति उनमें :
कि उनके गौरवशाली दिन ख़त्म हुए
कि अब कोई गम्भीर लक्ष्य उनके वश का नहीं
कि वे सर्वथा अक्षम हो चुके शासक के रूप में।
काट लिया उसने स्वयं को पूरी तरह-क्रुद्ध हो शपथ लेते हुए
कि उनके सोचे हुए से सर्वथा भिन्न होगा।
क्यों? क्या वह स्वयं पूरी तरह संकल्पशील नहीं?
कर्मशील होगा वह, जूझेगा, फिर दुरुस्त करेगा इस सबको :
यदि वह सिर्फ़ पूर्वाभिमुख कोई पथ गह पाये
सिर्फ़ इटली से निकलने का कोई जुगाड़ बैठा पाये
अपनी सारी आंतरिक शक्ति यह
यह सारी ऊर्जा अपने लोगों को दे देगा।
सिफर् सीरिया में होने से?
बहुत युवा था वह, जब अपना देश छोड़ा
याद कर पाया मुश्किल से
कैसा नज़र आता था तब सीरिया
किन्तु अपने मन में मस्तिष्क में
हरदम माना उसने इसे, जैसे कोई पवित्र वस्तु
जिसके निकट आप श्रद्धाभाव से जाते हैं,
अनावरित किया किसी स्मणीय स्थल के रूप में,
यूनानी नगरों और पत्तनों को एक झलक
और अब?
अब विषाद और अवसाद सिर्फ़!
सही थे वे, रोम के वे युवा।
मकदूनियाई विजय से उभरे राजवंशों से
कोई उम्मीद नहीं बाँधी जा सकती अब।
कोई बात नहीं!... उसने प्रयत्न किये
लड़ा सामर्थ्य भर,
और उसके रुखड़ ठंडे मोहभंग में
सिर्फ़ एक बात है जो अब भी उसे गर्व से भर देती है :
अपनी असफलता में भी
पहले जैसे ही अदम्य साहस की
मिसाल पेश की उसने दुनिया के सम्मुख!
बाक़ी सब : सपने सिर्फ़, व्यर्थ गई ऊर्जा।
यह सीरिया-मानो यह उसका देश नहीं-
यह सीरिया वलास और हेराक्लिदिस का देश है।
[1919]
इस कविता को ‘सेलेफकिदिस की अप्रसन्नता’ के क्रम में पढ़ा जाना चाहिए। वह महान अंतिओकोस तृतीय का पौत्र था। अंतिओकोस तृतीय 190 ई.पू. में मैग्नीसिया के युद्ध में रोमनों से पराजित हुआ था। अनंतर सीरिया का शाहीतख्त उसके चाचा अंतिओकोस चतुर्थ और उसके बाद चचाजाद भाई अंतिओकोस पंचम ने हड़प लिया। 162 ई.पू. में दिमित्रिओस सोतिर इटली से पलायन कर सीरिया लौटा, शाहीतख्त पर पुनः आसीन हुआ और सीरिया की एकता के लिए सतत संघर्षशील रहा। उसके बढ़ते प्रभाव पर पड़ोसी राजाओं और रोमनों का ग्रहण तब भी लगा रहा। जिन्हें उसने संरक्षण दिया था वे भी दुश्मन हो गये। हताशावश वह मदिरापान करने लगा। 150 ई.पू. में बेबिलोन के पूर्व क्षत्रप हेराक्लिदिस, परगामोस के अत्रालोस प्प् और तोलेमी टप् फिलामितोर की मदद से अलेक्सांदर वलास ने उसे पराजित किया और मौत के घाट उतार दिया।
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ओरोफर्निस
इस चार द्राख्या के सिक्के पर उभरी आऔति
अपने चेहरे पर मुस्कान बिखेरती सी,
उसका सुंदर कोमल चेहरा-
यह आऔति अरियाराथिस के बेटे ओरोफर्निस की।
यह बालक-
निकाल बाहर किया उन्होंने उसे काप्पादोकिया से
उसके विशाल पैतृक प्रासाद से,
भेज दिया गया आयोनिया बड़ा होने को
विदेशियों के मध्य भुला दिया जाने को।
ओह वे संवेदनशील आयोनी रातें
जब बेधड़क, और भरपूर यूनानी अंदाज़ में
जाना उसने ऐन्द्रीय आनंद पूरी तरह।
दिल में अपने हर पल एशियाई, किन्तु
चालढाल बोली-बानी में यूनानी,
अपने फ़ीरोज़ा ज़ेवरात से, यूनानी पोशाक से
चंबेली के तेल से महमहाती देह से
बेहद ख़ूबसूरत था वह
आयोनिया का सरोपा सुदर्शन नौजवान।
बाद में, जब सीरियाई काप्पादोकिया में दाखिल हुए
और बना दिया उसे बादशाह
पूरी तरह वह अपनी बादशाहत में मगन मन
जैसे भी आनंदित हो सके हर रोज़ किसी नये अंदाज में,
हवस से भरऋ सोने चाँदी के अंबार लगाता
ख़ुशी से भरऋ सामने झलमलाते प्रभुता के ढेरों को घूरता रहताऋ
रही देश की चिंता-फिक्र, और उसे चलाना-
कोई ज्ञान-अनुमान नहीं क्या कुछ हो रहा।
काप्पादोकियाइयों ने जल्दी ही छुटकारा उससे पा लिया,
चाहे-अनचाहे सीरिया को रुख़ करना पड़ा-
दिमित्रिओस के महल में गुज़रने लगे दिन
मन बहलातेऋ वक़्त बदबाद करते।
किन्तु एक दिन अजीबोगरीब- से ख़्याल
पूरी तरह जाम उसके जेहन में दाखिल हुएऋ
याद आया, किस तरह माँ अंतिओकिस और
नानी स्त्रातोनिकी के रास्ते
जुड़ा है वह भी सीरियाई सम्राटतंत्र से,
यानीऋ वह भी लगभग एक सेलेफ़किद!
कुछ अर्से के लिए लम्पटई और पिअक्कड़ी तर्क कर दी
और अनाड़ियों की तरहऋ कुछ-कुछ भौंचक
कोशिश की एक साज़िश रचने की-
करेा कुछ! योजना बनाओ और उठ खड़े हो!!....
किन्तु वह दयनीय रूप में असफल रहा और-बस्स हो गया!
अंत उसका दर्ज़ हुआ होगा कहीं महज़ गुम जाने को
या मुमकिन है इतिहास आगे बढ़ गया हो गाँजते हुए
और वाज़िब ही ऐसी न कुछ-सी किसी चीज़ को
ग़ौर करने की नहीं जहमत उठाई।...
इस चार द्राख्या के सिक्के पर उभरी आऔति!
कुछ-कुछ उसका युवा आकर्षण
अब भी ग़ौर किया जा सकता है,
उसके काव्यात्मक सौंदर्य की एक किरन-
उत्तेजक छवि एक आयोनी लड़के की,
ओरोफर्निस की, अरियाराथिस के बेटे की!
[1915]
ओरोफर्निस, माना जाता है कि काप्पादोकिया के अरियाराथिस चतुर्थ का बेटा था। उसकी माँ महान अंतिओकोस की पुत्री थी और नानी सीरिया के अंतिओकोस द्वितीय की बेटी। यह सीरिया के दिमित्रिओस [द्रष्टव्य : ‘सेलेफकिदिस की अप्रसन्नता’ और दिमित्रिओस सोतिन] के संरक्षण में था। उसने 157 ई.पू. में इसे काप्पादोकिया के शाही तख्त तक पहुँचाया था, किन्तु आगे चल कर अपने सरपरस्त का ही तख्ता पलटने की इसने कोशिश की!
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सिकंदरिया का ऍमिलियानोस मोनाई
628-655 ई.
लबो- लहजे से, चेहरे- मोहरे से, चालढाल से
मैं एक शानदार बख्तरबंद धज बनाऊँगाऋ
और इस तरह सामना करूँगा विद्वेषियों का
डर अथवा कमज़ोरी के नामोनिशान बिना
वे मुझे ज़ख़्मी करने की कोशिश करेंगे
किन्तु मेरे क़रीब आने वालों में कोई भी नहीं जान पाएगा
कि मेरे जिस्म में कहाँ ज़ख़्म हैं
कौन सी जगहें नाजुक हैं मेरे छद्म आवरण के नीचे
इस तरह डींगें हाकीं ऍमिलियानोस मोनाई ने
उत्सुकता होती है कि क्या कभी
उसने ऐसा छद्म बख्तरबंद बनाया?
जो भी हो, उसने उसे ज़्यादा अर्से तक पहना तो नहीं ही
सिसली में जब उसकी मौत हुई सत्ताइस का था महज!
[1918]
ऍमिलियानोस मोनाई नाम कल्पित प्रतीत होता है, किन्तु उसका जो जीवनकाल दिया गया है उसी दौरान अरबों ने सिकंदरिया पर फतह हासिल की थी और यूनानियों को यहाँ-वहाँ पलायन करना पड़ा था।
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अन्ना दलास्सिनी
शाही फरमान में
अलेक्सिओस कोम्निनोस ने जिसे जारी किया
ख़ासतौर पर अपनी माँ
महिमामयी अन्ना दलस्सिनी को सम्मानित करने लिए
अपने कामों और अपने लबो-लहज़ा, दोनों में असाधारण
उस अत्यंत बुद्धिमती महिला को सम्मानित करने के लिए
उसकी प्रशस्ति में बहुत कहा गया है।
यहाँ मैं सिर्फ़ एक जुमला पेश करता हूँ
एक जुमला बस्स् : ख़ूबसूरत और शानदार :
‘‘कभी नहीं आये उसके होठों पर ‘मेरा’ या ‘तेरा’
जैसे ठंडे शब्द।
[1927]
बिजांतीनी सम्राट अलेक्सिस 1 कोम्निनोस से सन् 1081 में युद्ध के लिए प्रस्थान किया, तो सभी राजकीय दायित्व आधिकारिक रूप से अपनी माँ को सौंपे। ‘गोल्डन बुल’ नामक शाही फरमान के जरिये उसने अपनी माँ को ‘रीजेंट आफ दि इम्पायर’ नियुक्त किया।
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अन्ना कोम्निना
‘अलेक्सियाद’ के आमुख में
अन्ना कोम्निना अपने वैधव्य का विलाप करती है।
उसकी आत्मा घुमड़न, सिर्फ़ घुमड़न।
‘‘और अपनी आँखें नहलाती हूँ,’’ कहती है,
‘‘आँसुओं की नदियों में... हाय, उन तरंगों के लिए’’
जो उसकी ज़िन्दगी की थीं,
‘‘हाय, उन घुमड़नों के लिए!’’
दुख दाहता है उसकी आत्मा की ‘‘दरार और अस्थियों और मज्जा को।’’
किन्तु सत्य यह प्रतीत होता है कि सत्तालोलुप वह महिला
सिफर् एक दुख से पीड़ित थी, जो सचमुच महत्त्वपूर्ण थाऋ
यद्यपि वह इसे स्वीकार नहीं करती,
उस घमंडी यूनानी महिला को एक ही बात तंग करती रहती थी
कि अपनी सारी निपुणता के साथ वह
सिंहासन हथिया नहीं पाई
ढीठ जॉन लगभग झटक ले गया उसके हाथों से!
[1920]
बिजांतीनी सम्राट अलेक्सिओस प् कोम्निनास की प्रथम संतान [1089-1146] उसने अपने पति निकिफोरोस व्रिदेन्निओस की ओर से, अपने छोटे भाई जॉन प्प् से राजसिंहासन हड़पने की कोशिश की थी। किन्तु पति के असामयिक निधन से उसकी सारी सांसारिक आशाएँ धूल में मिल गईं। अंत में विरक्त होकर वह मठवासिनी हो गई और वहीं ‘अलेक्सियाद’ नाम से अपने पिता की जीवनी लिखी। प्रस्तुत कविता और ‘अन्ना दलास्सिनी’ में, उद्धरण-चिऍों के अंतर्गत जो अंश हैं, वे उसी जीवनी से लिये गये हैं।
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रंगीन काँच के
मैं बहुत अभिभूत हूँ जॉन कांताकुज़िनोस और,
आंद्रोनिकोस असान की बेटी, इरिनी की
व्लाखरनाई में हुई ताजपोशी के ब्योरे से।
चूँकि उनके पास गिने-चुने जवाहरात ही थे
[हमारा दुखी साम्राज्य बेहद ग़रीब था?
उन्होंने नक़ली जवाहरात पहने :
सुर्ख़ सब्ज़ या नीले काँच के अनगिनत टुकड़े।
मुझे तो कुछ भी अपमानजनक-अशोभनीय नहीं लगा
रंगीन काँच के उन नन्हें टुकड़ों में,
इसके उलट, मुझे वे उदास प्रतिवाद प्रतीत हुए
ताजपोशी के वक़्त उस जोड़े के अन्यायी दुर्भाग्य का,
जिन चीजों के वे हक़दार थे उनके संकेत
कि पक्के तौर पर औचित्य था
किसी जॉन कांताकुज़िनोस, किसी श्रीमंतिनी इरिनी
आंद्रोनिकोस असान की बेटी-
की ताजपोशी पर इनकी सुलभता की गारंटी का।
[1925]
समय 14 वीं सदी ईस्वी का मध्यकाल। बिजांतीनी सम्राट आंद्रोनिकोस प्प्प् पलायोलोगोस के निधन [1341 ई.] के बाद शाही परिवार में कई सालों तक अदालती विवाद चला जिसमें शाही खजाना एकदम ख़ाली हो गया था। कांताकुज़िनोस और इरिनी की ताजपोशी 1347 ई. में हुई।
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जॉन कांताकुज़िनोस की जीत
वो खेत-मैदान का जायज़ा लेता है जो अब भी उसके हैं
गेहूँ, मवेशी, फलों से लदे दरख़्त
और उस सबके पार उसका पुश्तैनी घर
कपड़ों, महँगे फर्नीचर, चाँदी के बर्तनों से भरापूरा।
यह सब कुछ वे उससे ले लेंगे
या खुदा, अब सारी चीज़ें वे उससे ले लेंगे।
अगर वह बादशाह कांताकुज़िनोस के क़दमों पर जा गिरे
तो क्या वह उस पर रहम खायेगा?
लोग कहते हैं वह दयावान है, बहुत दयावान,
मगर जो लोग उसके आसपास हैं?... और फौज?
या वह झुक जाये, बेगम इरिनी के आगे जा गिड़गिड़ाये?
बेवकूफ था कि अन्ना के गिरोह में शामिल हो जाने को था
अगर जन्नतनशीन बादशाह ने शादी न की होती उससे!
कोई अच्छा काम कभी किया उसने?... कोई इंसानी सूबूत दिया?
‘फ्रैंक’ तक उसकी इज़्ज़त नहीं करते।
उसकी योजनाएँ बेतुकी और हास्यास्पद थीं।
वे जबकि कुस्तुंतुनिया से हर किसी को धमका रहे थे
कांताकुज़िनोस ने उन्हें बरबाद कर दिया
लार्ड जॉन ने उन्हें बरबाद कर दिया
और अगर उसने लार्ड जॉन के गिरोह में
शामिल होने का वादा किया होता
उस पर अमल किया होता
इस वक़्त ख़ुश होता,
इस वक़्त भी रसूख़ वाला बड़ा आदमी होता
उसकी हैसियत बरकरार होती अगर आख़िरी लम्हे
बिशप ने उसे रोका न होता अपनी पुरोहिती हनक [दबादबा] से,
बिल्कुल बोगस उसकी जानकारियाँ
उसके वादे और सारी बकवास।
[1924]
इस कविता का केन्द्रीय पात्र कवि-कल्पित है और घटनाकाल, पिछली कविता ‘रंगीन काँच के’ वाला ही। बिजांतीनी सम्राट आंद्रोनिकोस तृतीय के निधन के बाद जॉन कांताबुज़िनोस को रीजेंट नियुक्त किया गया। इस घटना से उसके और दिवंगत सम्राट की विधवा अन्ना आफ सेवाय, के बीच सीधा टकराव शुरू हो गया। कुस्तुंतुनिया का विशप अन्ना का समर्थन कर रहा था। अंत में कांताकुज़िनोस की जीत हुई।
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पोसीदोनियाई
पोसीदोनियाई भूल गये यूनानी भाषा
कई सदियों टायरीनों, लैटिनों तथा
अन्य विदेशियों में रले-मिले रहने के बाद।
एक ही चीज़ बची रही पूर्वजों से मिली हुई-
एक यूनानी त्योहार, सुंदर अनुष्ठानों वाला
वीणावादन, बाँसुरीवादन, प्रतिस्पर्धाओं, फूलमालाओं वाला।
त्योहार के समापन की ओर बढ़ते हुए
उनकी आदत थी एक दूसरे को
अपने प्राचीन रीति-रिवाओं के बारे में बताना
और एक बार फिर यूनानी नामों का उच्चारण करना
जिन्हें अब उनमें से कोई मुश्किल से ही पहचान पाता।
इस तरह हरदम उनका त्योहार उदासी के साथ समाप्त होता
क्योंकि उन्हें याद आता वे भी यूनानी थे
वे भी कभी महान यूनान के नागरिक थे।
किन्तु अब कितने गिरे हुए
कितने बदले हुए
बर्बरों की भाँति रहते और बोलते हुए
कितने अनर्थकारी रूप में
यूनानी रस्मोरिवाज से कटे हुए।
[1906]
एक यूनानी कालोनी के रूप में सीरिया में पोसीदोनिया की नींव 600 ई.पू. के आसपास पड़ी। कविता में जिस रस्म का उल्लेख हुआ है उसका समय चौथी सदी ई.पू. का अंतिम दौर होना चाहिए। 390 ई.पू. के आसपास उस पर इतर राजवंश का नियंत्रण हो गया, जो 273 ई.पू. तक रहा। उसके बाद उसका रोमन नाम ‘पाइस्तुम’ हो गया, जो आधुनिक सलेर्नो नगर के निकट है और ‘अलमीना’ के रूप में जाना जाता है। यह कविता कवि के जीवन में अप्रकाशित रही।
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जहमत उठाना
मैं लगभग टूटा हुआ, बेदरोदीवार हूँ।
ये ख़तरनाक शहर अंतिओक
निगल गया मेरा सारा पैसा :
बेहद बेतुकी ज़िन्दगीवाला ये ख़तरनाक शहर।
मगर मैं जवान हूँ और ख़ूब तंदुरुस्त,
ग्रीक का विलक्षण विशेषज्ञ :
अरस्तू और अफ़लातून को मैंने घोट कर पी डाला हैऋ
कवि, वक्ता, या जिस किसी का तुम नाम लो!
फौजी मामलों का भी कुछ अंदाज़ा है मुझे
भाड़े पर सिपहगीरी करने वाले कई उम्रदराज मेरे दोस्त हैं।
सरकारी हल्कों में भी आमदरफ़्त है मेरी,
बीते साल छह महीने मैंने सिकंदरिया में गुज़ारे :
वहाँ क्या कुछ हो रहा है थोड़ी बहुत जानकारी है
[और वह फ़ायदेमंद है]
काकेरगेटिस1 की साज़िशें, उसके घटिया तौर-तरीकेऋ
और भी बातें।
लिहाज़ा मैं खुद को मुकम्मलतौर पर
इस मुल्क, अपने प्यारे वतन, सीरिया की
खिदमत के काबिल पाता हूँ।
जो कोई भी काम वे मुझे सौंपें
मैं खुद को मुल्क के लिए फायदेमंद साबित करने की
पूरी कोशिश करूँगाऋ यही मेरा कहना है।
लेकिन अगर वे अपनी तिकड़मों से मुझे नाउम्मीद करते हैं-
हम जानते हैं उन्हें- वे चलते पुरजे,
ज़्यादा कुछ कहने की ज़रूरत नहीं-
अगर वे मुझे नाउम्मीद करते हैं, तो फिर मुझ पर दोष न मढ़ा जाय!
मैं पहले जाबिनास2 से मिलूँगा
और अगर उस ज़ाहिल ने मुझे तवज्जो न दी
तो मैं उसके मुख़ालिफ़ ग्रिपोस3 के पास जाऊँगा
और अगर उस मूरख ने भी मुझे मुलाजमत न दी
तो मैं सीधे हीराकनोस4 के पास पहुँचूँगा
इनमें से कोई एक तो मुझे रखेगा ही
और इस बाबत मेरा सोच यक्दम सादा है
कि मैं किसे चुनता हूँ-
तीनों के तीनों सीरिया के लिए एक जैसे बुरे हैं।
मगर मैं एक बरबाद आदमी
मुझे ग़लत न समझा जाय!
मैं एक ग़रीब गुनहगार,
महज़ दो छोरों को मिलाने की कोशिश कर रहा हूँ
परवरदिगार खुदाओं को एक चौथा
एक वाजिब शख़्स बनाने की
जहमत उठानी चाहिए थी-
मैं ख़ुशी-ख़ुशी उसके साथ चला जाता।
[1930]
इस कविता का घटना समय 128-123 ई.पू. और स्थल सीरिया की प्राचीन राजधानी अंतिओक है। केन्द्रीय चरित्र कवि-कल्पित है, किन्तु संदर्भ सभी ऐतिहासिक।
1. तोलेमी टप्प्प् एवरगेटिस [170-116 ई.पू.] का लोगों में प्रचलित उपहासास्पद नाम, जिसका अर्थ है ‘कुकर्मी।’
2. इस शब्द का अर्थ है ‘गुलाम’ -यह अलेक्सांदर का उपहासास्पद नाम था। यह अलेक्सांदर वालास का बेटा था, जिसने तोलेमी टप्प्प् की मदद से सीरिया की शाही गद्दी हथिया ली थी। [128-123 ई.पू.]
3. इस शब्द का अर्थ है ‘तोते की चोंच जैसी नाक।’ यह अंतिओकोस टप्प्प् के लिए है। इसने वालास की हत्या की थी।
4. पूरा नाम जॉन हीराकनोस, 134-104 ई.पू. के दरमियान जूडिया का शासक। सीरिया के शाही तख़्त के लिए आये दिन समस्याएं खड़ी करने वाले कबीलाई सरदारों से यह फ़ायदा उठाता था।
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आयोनी
कि हमने उनकी मूर्तियाँ तोड़ दीं
कि हमने उन्हें मंदिरों से खदेड़ दिया
क़त्तई अर्थ नहीं इस सबका
कि वे देवता मर गये।
ओ आयोनिया* की धरा,
वे अब भी तुमसे प्रेमानुरक्त हैं।
उनकी आत्मा में अब भी तुम्हारी स्मृति है।
जब अगस्त की कोई भोर तुम पर प्रकट होती है
तुम्हारा वायुमंडल उनके जीवन से प्रभावित होता है
और कभी कभी
एक युवा सुकुमार आऔति अस्पष्ट
द्रुतगामी उड़ान में
तुम्हारी पहाड़ियों के आरपार पंख पसारती है।
[1911]
* एशिया माइनर का एक क्षेत्र। इसी से जुड़कर दोनों महाद्वीपों में फैले उस देश का नाम यूनान [अंग्रेजी में ‘ग्रीस’] पड़ा। यूनानी संस्औति अपने जिस रूप में विख्यात है, उसका जन्म यूरोपी भूमि पर नहीं, एशियाई भूभाग आयोनिया में हुआ। महान कवि होमर, इतिहास का जनक हेरोदोतस आदि अनेक प्राचीन यूनानी व्यक्तित्व इसी आयोनिया क्षेत्र में हुए।
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प्राचीन काल में यूनानी
अंतिओक1 गर्वोन्नत है अपने वैभवशाली भवनों से
अच्छे बाजारों से, चारों ओर की ख़ुशनुमा देहातों से
अपनी भरीपूरी आबादी सेऋ
गर्वोन्नत है अपने ऐश्वर्यशाली राजाओं,
कलाकारों विद्वानों से भी
अपने संपन्न, साथ ही समझदार व्यापारियों से
किन्तु इस सबसे भी बढ़कर
अंतिओक गर्वोन्नत है एक ऐसे नगर के रूप में
जिसे प्राचीन काल के यूनानियों ने,
बजरिये आयोन, अर्गोस2 से जोड़ा
और अर्गोस के लोगों ने
इनाकोस की कन्या3 की स्मृति में जिसे बसाया।
[1927]
1. प्राचीन काल में सीरिया [असूरिया] की राजधानी। एक समय यह फ्रीगिया में था। अब पश्चिमी तुर्की में उसके भग्नावशेष हैं।
2. यूनान का एक शहर। प्राचीन काल में स्वतंत्र यूनानी नगर-राज्य।
3. यूनानी पौराणिकी के अनुसार, अर्गोस के राजा इनाकोस की बेटी इओ को देवराज ज़ीअस चाहता था। जब वह वन में इओ से गुप्त वार्ता कर रहा था, तो उसकी पत्नी हेरा [जूनो] को संदेह हो गया। अतः ज़ीअस ने इओ को एक गाय में रूपांतरित कर दिया। हेरा ने पीछा करते हुए उसे दौड़ाया। वह बेचारी अपना बचाव करते न जाने कहाँ-कहाँ भटकती फिरी। अंत में आयोन सागर तैर कर वह पार गई [उसी के नाम पर आयोन सागर का नामकरण हुआ] और थकान से चूर होकर एक जगह गिर गई और उसकी मृत्यु हो गई।उसकी स्मृति में, अर्गोस निवासी उसके भाई बंधुओं ने, वहाँ एक नगर बसाया। उसे अंतिओक के रूप में जाना गया। 300 ई.पू. में सेलफकोस निकातोर ने अंतिओक में सीरिया की राजधानी स्थापित की।
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शिल्पी तियाना का
जैसा तुमने सुना होगा, मैं नौसिखुआ नहीं
अपने वक़्तों में मैंने ढेरों पत्थर तराशे हैं,
और अपने देश तियाना में मैं बहुत प्रसिद्ध हूँ।
यहाँ के कई सीनेटरों ने भी मुझसे काम करावा है।
आइए, अपने कुछेक काम आपको दिखाऊँ!
यह देखिए रिया1 : श्रद्धास्पद, धैर्यमूर्ति, आदिकालीन
देखिए पोम्पे2 और यह मारिअस3 और
पाउलुस अमीलिअस4 और सीपिओ अफ्रिकानुस5।
सामर्थ्यानुसार जितना सजीव मैं तराश सका।
और पात्रोक्लोस6 [थोड़ा सा काम अभी इस पर मुझे करना है।]
संगमरमर के उन पीताभ खंडों के निकट वहाँ
खड़ा है कैसेरिअन7!
एक अरसे से मैं पोसीदोन8 के एक शिल्प पर लगा हुआ हूँ
ख़ासतौर से उसके अश्वों को लेकर सोचविचार चल रहा है
किस तरह सजीव करूँ उन्हें।
उन्हें इतना हल्का-इतना फुरतीला होना है,
साफ़ नज़र आये कि उनकी देहें, उनकी टाँगें
धरती का स्पर्श किये बिना
पानी पर सरपट दौड़ रही हैं।
किन्तु मेरा सबसे पसंदीदा काम यह है
बहुत ही भावना और मनोयोग से तराशा गया।
यह वाला!... वह बहुत गर्म दिन था
और मेरी चेतना सर्वांग जाग्रत-
किसी दिव्यदर्शन की भाँति मेरे निकट आया
यह युवा हर्मीस9!
[1911]
1. यूनानी पौराणिकी के आदिकालीन देवता [टाइटन] क्रोनस [रोमन ‘सैटर्न’] की पत्नी तथा ज़ीअस और हेरा की माँ।
2. जूलिअस सीज़र का समकालीन एक महान रोमन सेनानायक।
3.4.5. 86 ई.पू. से 183 ई.पू. के मध्य के रोमन काउंसुल एवं जनरल।
6. एक पौराणिक यूनानी योद्धा, जो त्रोय के युद्ध में मारा गया। अकिलीस का अभिन्न मित्र।
7. जूलिअस सीज़र और क्लिओपात्रा का बेटा। तोलेमी राजवंश का सोलहवां शासक।
8. समुद्र और अरबों का यूनानी देवता, रोम में नेप्च्यून नाम से लोकप्रिय।
9. वाणिज्य, मल्ल विद्या का यूनानी देवता, रोम में मर्करी नाम से लोकप्रिय। इस कविता का घटनास्थल रोम है और केन्द्रीय चरित्र कवि-कल्पित। तियाना कापादोकिया में एक नगर था।
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लीबिया का राजकुमार
अरिस्तोमेनिस वल्द मेनेलओस-
पश्चिमी लीबिया के इस राजकुमार को
सामान्यतया पसंद किया गया सिकंदरिया में,
दस दिनों के दौरान, जो उसने वहाँ गुज़ारे।
नाम के अनुरूप पोशाक भी वाजिबतौर पर यूनानी थी।
प्रसन्नतापूर्वक उसने ग्रहण किये पुरस्कार सम्मान
किन्तु उनके लिए औतज्ञता नहीं ज्ञापित की,
अहंकार नहीं था उसमें।
उसने पुस्तकें ख़रीदीं, ख़ासतौर से इतिहास और दर्शन की
सबसे बढ़कर, वह मितभाषी था
इसका अर्थ लोगों ने यह लगाया, कि वह गंभीर विचारक होगा
ऐसे लोग, स्वाभाविक तौर पर, बहुत ज़्यादा बोलते-चालते नहीं
वह कोई गम्भीर विचारक या वैसा कुछ क़त्तई नहीं था-
महज़ एक घालमेल, हास्यास्पद आदमी।
एक यूनानी नाम रख लिया, यूनानियों जैसी पोशाक पहन की
कमोवेश किसी यूनानी की तरह पेश आना सीख लिया
किन्तु हरक्षण दहशत से भरा रहता
कि बोलते हुए बरबरीअत भरी भद्दी भूलों से
वह अपनी वाजिबतौर पर ठीकठाक छवि बरबाद कर डालेगा
और सिकंदरिया के लोग, अपने सामान्य बर्ताव में
मज़ाक़ बनाने लगेंगे उसकाऋ इतने घटिया हैं वे!
इस वजह से उसने खुद को चंदेक शब्दों तक ही सीमित रखा
उच्चारण और वाक्स विन्यास में बुरी तरह चौकन्ना :
और इस बात ने दिमाग़ी तौर पर
लगभग पागल बना दिया उसेऋ
कितना कुछ कहने को था उसके मन में!
[1928]
इस कविता का केन्द्रीय चरित्र कवि-कल्पित और समय अस्पष्ट है। ग्रीक में सामान्यतया अफ्रीका को लीबिया और वहाँ के लोगों को लीबियाई कहा जाता था।
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निर्वासित
यह अब भी सिकंदरिया के रूप में अपना अस्तित्व बचाये हैं।
ज़रा चलिए हिप्पोड्रोम पर समाप्त होने वाले सीधे रास्ते पर,
राजप्रासाद और स्मारक देख कर हैरत में पड़ जायेंगे।
युद्धों से जो भी क्षति इसने झेली
जितना भी सिमट कर छोटा हुआ
तब भी एक अद्भुत शहर!
और फिर, सैर-सपाटा, किताबें
तरह-तरह की लिखाई-पढ़ाई, समय चलता चला जा रहा।
शामों में हम जुटते हैं सागर किनारे की बस्ती में
हम पाँच [सभी, स्वाभाविक ही फर्जी नामों से]
और, अब भी यहाँ बचे रह गये थोड़े से ग्रीकों में से कुछेक।
कभी कभार चर्चों से जुड़ी चर्चा करते हैं
[यहाँ लोगों का रोम की तरफ झुकाव नज़र आता है]
और कभी साहित्य की।
किसी दिन नोनोस की कुछेक काव्यपंक्तियाँ पढ़ते हैं :
क्या तो बिम्ब-विधान, क्या लय, क्या पद विन्यास,
क्या सुरीलापन!
उमंग से भरपूर कितना हमारा प्रिय पानोपोलितान!
इस तरह दिन व्यतीत हो रहे,
और हमारा यहाँ रुकना उबाऊ नहीं,
हरदम तो ऐसे ही नहीं चलते रहना।
अच्छी ख़बरें आ रही हैं,
जैसा स्मिरना में हो रहा, वैसा कुछ यहाँ नहीं होता
तो अप्रैल में निश्चय ही हमारे साथी एपिरोस से चल पड़ेंगे।
अतः किसी न किसी रूप मेंऋ हमारी योजनाएँ
पक्के तौर पर कारगर साबित हो रही हैं
और हम चुटकी बजाते बासिल का तख़्ता पलट देंगे
और जब यह हो लेगाऋ हमारा मौक़ा ही आना है।
[1914]
इस कविता का संदर्भ सिकंदरिया पर अरबों की जीत [641 ई.पू.] और उसके कुछ ही समय बाद बिजांतीनी सम्राट माइकेल तृतीय की हत्या से जुड़ता है। माइकेल तृतीय के सहयोगी सम्राट बासिल प्रथम [867-886]ने उसकी हत्या की थी। वह मकदूनी राजवंश का संस्थापक था। उसी दौरान कुस्तुंतुनिया के पौट्रियार्क फोतिओस को सम्राट ने अधिकार -च्युत किया और उसके समर्थकों को निर्वासित कर दिया। कवि नोनुस [5वीं सदी] मिस्री-यूनानी परम्परा का बहुत लोकप्रिय कवि था। उसे ‘पानोपोलितान’ भी कहा जाता था। इस तरह इस कविता के ‘‘निर्वासित’’, अरबों के विरुद्ध, बिजांतीनी, रोमन कैथोलिक और यूनानी भावनाओं के प्रतीक माने जा सकते हैं। [यह कविता कवि के जीवन में प्रकाशित नहीं हुई।
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सच ही मर गया?
‘‘कहाँ चला गया औलिया, कहाँ ग़ायब हो गया?
अपने कई चमत्कारों के बाद,
विख्यात अपनी शिक्षाओं के लिए
जो अनेकानेक देशों तक फैली,
अचानक अंतर्धान हो गया,
ठीक ठीक पता नहीं किसी को क्या हुआ उसका
[न ही किसी ने कभी देखी उसकी समाधि।]
किसी ने फैलाया इफेसिस में उसकी मृत्यु हुई
किन्तु दामिस अपने यादनामे में ऐसा नहीं कहता
अपोलोनिओस की मृत्यु की बाबत वह
कुछ नहीं कहता।
अगलों ने ख़बर दी लिंदोस में वो ग़ायब हुआ
या शायद क्रीट में,
दिक्तिन्ना के प्राचीन मंदिर से जुड़ी उसकी दास्तान सच हो!
तब फिर तियाना में एक युवा विद्यार्थी के सम्मुख
उसका चमत्कारी अलौकिक आविर्भाव!
संभव है उसकी पुनः वापसी और दुनिया के सम्मुख
खुद को प्रकट करने का सही समय अभी न हुआ हो
या, शायद, रूप बदलकर वो हमारे बीच हो
और हम पहचान नहीं पा रहे-
किन्तु वो फिर आयेगा अवश्य, उसी रूप में, सत्य मार्गों के उपदेश देता
और तब निश्चय ही हमारे देवताओं की अर्चना
और हमारे शिष्ट-सुसंस्औत हेलेनी अनुष्ठान लायेगा वापस वो।’’
इस तरह सोचता बचे- खुचों में से एक पैगन
इने-गिने बचे रह गयों में से एक
जैसे ही फिलोस्त्रेतोस औत ‘ऑन अपोलोनिओस आफ़ तियाना’ का
पाठ करने के ठीक बाद अपनी बदरंग कोठरी में बैठता।
किन्तु वह भी, एक मामूली डरपोक आदमी,
प्रकटतः ईसाइयों के-से ढोंग करता और चर्च जाता
यह वह समय था जब जस्टिन दि एल्डर
पूरे भक्तिभाव से शासन कर रहा था और
सिकंदरिया, एक धर्मपरायण शहर को
दयनीय मूर्तिपूजकों से घृणा थी।
[1920]
इस कविता का पहला मसौदा कवाफी ने 1897 में तैयार किया था, जिसमें सिफर् उद्धरण-चिऍों के अंदर वाला पाठ था। 1910 से 20 के दौरान उन्होंने इसे दोबारा लिखा, तब यह पूरा पाठ बना। इसमें जिस औलिया चमत्कारीपुरुष का उल्लेख हुआ है वह अपोलोनिओस है, ग्रीक दर्शन का अध्येता और एक नियमनिष्ठ पैथागोरीय तापस। उसका जन्म तियाना में ईसा से चार वर्ष पूर्व हुआ था। उसने भारत सहित कई पूर्वी देशों की यात्रा की थी। उसके जीवन के अंतिम वर्ष इफेसोस में व्यतीत हुए, यद्यपि उसके अवसान को लेकर कई अनुश्रुतियां प्रचलन में रहीं। अपोलोनिओस के एक शिष्य दामिस के संस्मरणों में पहली बार उसका विस्तृत उल्लेख हुआ। फिर ईस्वी सन् 200 में फिलोस्त्रेतोस ने ‘लाइफ आफ अपोलोनिओस आफ तियाना’ नाम से उसकी जीवनी लिखी, जिसमें कई घटनाओं की स्पष्ट समानता ईसा मसीह के चमत्कारों से है। कई मसीही विद्वानों ने उसे ‘‘एण्टी-गॉस्पल’’ किस्म का माना है।... इस कविता में वर्णित पैगन कवि-कल्पित है, किन्तु उसका समय सिकंदरिया के बिजांतीनी सम्राट जस्टिन प्रथम [518-527 ई.] है।
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अंतिओक के परिसर में
अंतिओक में हम विस्मय से भर उठे
जब सुनी जूलियन की कारस्तानियाँ।
दाफ्नी में अपोलो ने साफ़-साफ़ कह दिया था उससे :
वह कोई देववाणी नहीं देना चाहता
कोई इरादा नहीं भविष्यवक्ता के रूप में कुछ कहने का
जब तक दाफ्नी का उसका मंदिर शुद्ध नहीं किया जाता।
निकट ही शव, घोषणा की अपोलो ने, तेज हरण करते हैं।
निस्संदेह दाफ्नी में कई समाधियाँ हैं
उन्हीं में से एक में दफ़्न था
विजेता और पवित्र बलिदानी बाविलास
हमारे चर्च का गौरव और कौतुक।
उसी से भयभीत था, उसी की ओर संकेत था उस छद्म देव का।
जब तक उसकी उपस्थिति रही उसके निकट
साहस नहीं कर पाया वह
अपनी देववाणी उच्चारित करने का : खुसफुस तक नहीं!
[हमारे बलिदानियों से आतंकित हैं। नकली देवता]
सक्रिय हुआ विधर्मी जूलियन
आपे से बाहर से चीखा : ‘‘निकालो इसे, उठाओ!
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तुरंत हटाओ यहाँ से इसे - इस वाविलास को!...
सुन रहे हो न तुम लोग?
इसी की वजह से अपोलो का तेज नष्ट होता है।
बढ़ो! निकालो उसे खोद कर तत्काल,
ले जाओ कहीं भी, जहाँ मर्जी हो।
ले जाओ! फेंक आओ कहीं भी। यूँ ही नहीं चीख रहा,
अपोलो का कहना है कि मंदिर का शुद्धीकरण हो।’’
हमने उठाये पवित्र अवशेष, और अन्यत्र ले गये
हमने उठाये पवित्र अवशेष और प्रेम व आदरपूर्वक ले गये।
और उसके बाद उस मंदिर का सारा वैभव धूल में मिल गया
अविलम्ब वहाँ एक प्रचंड ज्वाला दहक उठी
महाभयानक आग,
और मंदिर व अपोलो, दोनों जल कर ख़ाक हो गये।
ख़ाक धूल मूर्ति : कचरे के साथ फेंकी जाने के लिए
बमक उठा जूलियन और आसपास चारों ओर
अफ़वाह उड़ा दी - कर भी और क्या सकता था?
कि हमने, याने ईसाइयों ने लगाई आग।
कहने दो, जो भी वह कहे। साबित तो हुआ नहीं।
कहने दो जो भी वह कहे!
मुख्य बात है : तूल उसी ने दी मामले को!
[1932-33]
यह कवाफी की अंतिम कविता है। नवम्बर 1932 और अप्रैल 1933 के मध्य लिखी गई। इसका प्रथम प्रकाशन कवि के निधनोपरांत हुआ।
इस कविता का समय चौथी सदी ईस्वी है। रोमन कैथोलिक चर्च के बढ़ते प्रभाव और उसके विरुद्ध पैगनवाद के असफल विद्रोह के स्वर इसमें सुने जा सकते हैं। विगत दो सहस्राब्दियों के दौरान सतत् तीव्र होते धार्मिक और साम्प्रदायिक वैमनस्य के अध्ययन की दृष्टि से भी इसका अपना महत्त्व है।
जूलियन सीरिया का रोमन सम्राट [361-63 ई.] जन्मना ईसाई होते हुए भी पैगनवाद [बहुदेववाद मूर्तिपूजक] की पुनर्प्रतिष्ठा के लिए प्रयत्नशील था। अंतिओक के विशप बाविलास [237-250 ई.] को उसके बलिदान के उपरांत, दाफ़्नी के वनांचल में स्थित अपोलो के मंदिर-परिसर में दफनाया गया और वहाँ एक चर्च खड़ी कर दी गयी। जुलाई 362 में जूलियन ने चर्च को ढहाने और बाविलास के अवशेष अन्यत्र से जाने का हुक्म सुनाया। मात्र चार महीने बाद अपोलो के नव-निर्मित मंदिर में रहस्यपूर्ण ढंग से आग लगी और मंदिर जल कर राख हो गया।
रचना समय नवम्बर 2015
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