न हाथ , न पैर , न मष्तिस्क , केवल दिल धड़क रहा है अर्थात जीवित है वह , एक नितांत गरीब की झोपड़ी में। वहां से गुजरते वक्त अनायास नजर पड़ गई उस ...
न हाथ , न पैर , न मष्तिस्क , केवल दिल धड़क रहा है अर्थात जीवित है वह , एक नितांत गरीब की झोपड़ी में। वहां से गुजरते वक्त अनायास नजर पड़ गई उस विचित्र जीव पर। जिज्ञासावश कदम बढ़ गए उस ओर .....। झोपड़ी के अंदर दाखिल होते ही , बिना मुंह के प्राणी को बोलते देख हैरान , निहारने लगा। सोंचने लगा , कौन है यह और किसने की है इसकी ऐसी हालत ? तभी , हा....हा.......हा..... हंसते रहा। आप तो ऐसे सोंच रहे हैं , जैसे आप कुछ जानते नहीं। मैं चौक गया। आज के पहले तो मैंने आपको देखा तक नहीं। मैं आपके बारे में कैसे जान सकता हूं ? तपाक से बोला – आप भी तो हैं मेरी इस हालात के जिम्मेदार। अजीब है यह , न जान न पहचान , ऊपर से मुझ पर आरोप भी। अब कुछ पूछना , कुछ जानना मुनासिब नहीं लगा मुझे। उठने लगा। अरे ! यह तो अंधा भी है , परंतु फिर भी कैसे पहचान रहा है ? अरे ! इसके तो नाक और कान भी नहीं दिख रहे हैं , फिर भी सांस ले रहा है , सुन भी रहा है – वाकई विचित्र है यह। अब जिज्ञासा बढ़ गई। उठते से वापस बैठ गया। वह फिर हंसा .......। बैठो भाई , मुझे इस हालत में छोड़कर तुम भी जाना चाहते हो। जाओ। अनेक आए गए , पर किसी को तरस नहीं आई। बल्कि जो आता है केवल नुकसान ही पहुंचाता है। मैंने काफी नुकसान सह लिया है। इसलिए इस गरीब की कुटिया में घुसा , चैन की सांस ले रहा हूं। आपने मुझे देखकर , सीधे मेरा कोई नुकसान तो नहीं किया , किंतु मेरी इस हालात के लिए आपकी जिम्मेदारी से इंकार भी नहीं किया जा सकता।
मैंने पूछा – पर आप हैं कौन ? और क्यों बिना जान पहिचान के मुझसे बात करना चाहते हैं , और बिना किसी कारण मुझ पर आरोप भी मढ़े जा रहे हैं ? मैं कौन हूं ? यह तो आपको पता चल ही जाएगा , पर मेरी करूण गाथा सुनना पड़ेगा। मेरी सहमति और रूचि देखकर उसने अपनी राम कहानी बताना शुरू किया। आज से छैंसठ वर्ष पूर्व जन्म लिया था मैं। जन्म के बाद से प्रताड़ित रहा हूं मैं। जिस स्थान को अपना निवास स्थान बनाना चाहता हूं मैं , वहीं के लोगों ने मेरी दुर्गति की। पहले व्यवस्थापिका के बीच स्थापित होने का प्रयास किया , पर उन्होने मुझे खूब मारा पीटा तथा मेरे पैर काट दिए ताकि मैं रेंग न सकूं , कितने बार नाक काट मुझे अपमानित किया। तब मैंने कार्यपालिका की ओर रूख किया , उसने जैसे ही मुझे देखा , मेरा हाथ तोड़ दिया ताकि मै कुछ काम न कर सकूं। मन निराश हो चला था। फिर भी आशा की किरण लिए , बिना हाथ - पैर और कटी नाक के साथ न्यायपालिका की तरफ चला , पनाह लेने के लिए। किंतु उसने मेरा दिमाग छीन लिया ताकि मैं कुछ सोच न सकूं। वह तो जेल में डालने को बेताब था , किसी तरह पिंड छुड़ाकर भागा चौथे स्तम्भ की ओर। वह तो और भी खतरनाक निकला , सीधे आंख और कान की तरफ हमला कर दिया। और वह भी अपने मकसद में कामयाब हो गया , और तब से मैं बिना आंख और कान का हो गया और इतना सब हो जाने के बाद भी मैं जिंदा हूं मित्र।
परंतु एक बात है , आप जिन पर आरोप लगा रहे हैं , इसमें कितनी सच्चाई है इसे जानना उतना जरूरी नहीं है , जितना जरूरी यह कि ये लोग आपके अंग प्रत्यंग को करेंगे क्या ? कोई आपकी बात पर क्यों विश्वास करेगा। यही तो बात है बाबू .....। जिन लोगों ने मेरे पैर काटे हैं , वे देश को यही बताते हैं कि वे मेरे पैरों पर , मेरे रास्ते पर चल रहे हैं। मेरी नाक काटने वाले लोगों ने अपने नाक के ऊपर मेरी नाक लगाकर अपनी नाक ऊंची कर ली है। जिनने मेरे हाथों को अपना हथियार बनाया है , वे लोग जनता को मेरा हाथ दिखाकर भरमाते हैं कि सारा काम मैं कर रहा हूं। जिनने मेरा दिमाग छीना , वे जनता को छलते हैं कि मेरी सोंच के अनुसार सारा काम हो रहा है। और जिनने मेरी आंखें और कान को मुझसे जुदा किया वे बरगलाते रहते हैं कि हम तो वही देखते हैं जो मै दिखाता हूं और वही सुनते हैं जो मैं सुनना हूं। मतलब मेरे नाम से अपनी दुकान चलाने मेरे अंगों को मोहरा बनाया हुआ है इन सभी स्तम्भों ने।
मैंने सवाल किया , पर आप क्या इस गरीब की कुटिया में सुरक्षित रह सकते हैं ? क्या ये आपको और नुकसान नहीं पहुंचायेंगे यहां पहुंचकर ? मुझे मालूम है। यहां सुरक्षा का कोई इंतजाम नहीं है , पर आपको ज्ञात होना चाहिए , आज तक गरीबों के घर तक इस देश के इन नायकों को झांकने की फुरसत नहीं मिली। मैं यहां इसलिए सुरक्षित हूं , क्योंकि वे यहां नहीं आते। रही बात मेरे जिंदा रहने की ....... तो मैं वहीं जिंदा रह सकता हूं , जहां गरीब भूखा मुझे खाना खिलाए। उघरा नंगरा किसान मेरा तन ढ़के। बेबस लाचार फुटपाथी मजदूर रहने के लिए जगह दे। अब मैं हंसा..... जो लोग अपना जुगाड़ नहीं कर पा रहे , वे क्या करेंगे आपके लिए ? वो कैसे जिंदा रखेंगे आपको ? सच है मित्र , जो अपने लिए नहीं कर सकते , उन्ही लोगों ने जिंदा रखा है मुझे। वास्तव मे , मैं इन्ही के बीच , इन्ही के कारण , इन्ही लोगों के लिए ही जिंदा हूं मित्र। इनके पास सत्य , न्याय , सौहार्द , भाईचारा , अहिंसा और ईमान की हवा चल रही है। और यही हवा मुझे जीवित रखने के लिए पर्याप्त उर्जा प्रदान करती है। और जब तक इन हत्यारों के कारवां की पैठ इन तक नहीं है , मुझे यहां कोई तकलीफ नहीं है। इन्हे मेरे जीवित होने का प्रमाण दिखाने मौका भी मिलता है हर पांचवे वर्ष में। काश ! ये सिर्फ एक बार , दिखा देते कि , मैं जिंदा हूं , तो उसी समय , मेरे गायब हुए सभी अंग , तत्काल मेरी देह में आकर फिर से चिपक जाते , तब , मुझे आहत करने वालों को अपनी ताकत दिखा देता और देश को गर्त में जाने से बचा भी लेता। पर आप हैं कौन ? यह तो वही बात हो गई मित्र कि , रात भर रामायण पढ़ लिया सुबह पूछने लगे – राम सीता कौन हैं ? मैं सोंचता था इतना सब सुनने के बाद आप समझ गए होंगे मित्र , कि मैं कौन हूं ? मित्र मैं ही इस देश का लोकतंत्र हूं जो छैंसठ वर्ष पूर्व अमीरजादों के आशियाने में पैदा हुआ था , फिर घूरे में फेंक दिया गया था , जिसे पालने का जतन तथा किसी तरह जिंदा और सुरक्षित रखने का भागीरथ प्रयास गरीब , मजदूर , बेबस , उघरा नंगरा , मजदूर किसानों ने किया है। अन्यथा मुझे खड़ा रख सकने वाले स्तंभों ने तो मेरी हत्या का पूरा इंतजाम कर रखा है। वास्तव में ये सभी मुझे पूरी तरह मार भी देना चाहते हैं , परंतु मेरे मर जाने की घोषणा नहीं चाहते , ताकि इन लोगों का साम्राज्य इसी तरह मेरे नाम से निष्कंटक चलता रहे। अब तो वह घूरा भी आबाद हो चला है मित्र। उसका दिन भी बहुर चुका है। मेरा दिन कब बहुरेगा ......... सिसकने की आवाज बढ़ती ही जा रही थी। किसी अन्य मनुष्य की आहट सुन वहां से खिसकना उचित लगा। वहां से निकल कर , अभी तक सोंच रहा हूं मैं – क्या हम भी उसे इस हालात तक पहुंचाने में भागीदारी नहीं रखते ............।
छुरा , जि. गरियाबंद ( छ. ग.)
COMMENTS