अभी कुछ दिनों पहले मेरा मित्र गिरगिट दौड़ा-दौड़ा आया और हाँफते हुए बोला कि आज एक नागा पदमसिड़ी देखा है.वह अपनी फ़िल्म के लिए ...
अभी कुछ दिनों पहले मेरा मित्र गिरगिट दौड़ा-दौड़ा आया और हाँफते हुए बोला कि आज एक नागा पदमसिड़ी देखा है.वह अपनी फ़िल्म के लिए न्यूड हुआ था.उसने उसके नंगे होने के साथ कई हीरोइनों के पोस्टरों को भी देखा .वे भी इसी पुनीत कर्म के लिए जगजाहिर हुई थीं.यह तो गर्व से सीना ताने अंगप्रदर्शन कर रहा था.पता नहीं किस ज़माने का बाज़ा लिए खड़ा था.मेरे साथ ही मेरा दोस्त भी ठेके से पीके निकला तो सामने एक पोस्टर को देखके नशे में बोला,"इस पोस्टर को फाड़के रख देने का मन होता है."मैंने तो ऐसे पोस्टरों में कई-कई बार ऐसी महिलाएँ भी देखी थीं लेकिन वे शर्मसार थीं.
अगर जनता के जूतों का डर न होता तो ये हीरो कबका बाजा-बूजा फेंकफांक के भांगड़ा करने लग जाता.मन तो यह भी हुआ कि तान के ऐसी लात दूँ कि बाज़ा ही बज जाए साला । घूमते-घूमते हम काफी दूर निकाल गए थे। थोड़ी देर बाद गिरगिट का मन बदला और वह हमारी ओर मुखातिब होके बोला," हो न हो पागल हो गया हो."हमने हामी भरके बात को घुमाना चाहा। लेकिन उसी समय एक मूर्ति सामने उभरी। वो कोई और नहीं हमारे इलाके के एक झलरिया बाबा थे.वे पागल हो गए तो उन्हें भी कपड़ों का होश नहीं रहता था.साधु मण्डली में वे परम हंस थे और जनता में अवतार.लोग उनसे मार खाने जाने लगे.लोग बाबा के सामने जाते और तरह-तरह की हरकतें करते.बाबा जब तक गुस्सा न हो जाते तबतक लोग यही करते रहते.उन्हें गुस्सा आता तो इतने जोर का आता कि जो कुछ भी सामने दिखता वही उठा के मार देते .एक बार एक तहसीलदार को उन्होंने दौड़ा के थप्पड़ क्या मारा हलके से वापस जाते ही उन्हें एस डी एम का प्रोमोशन मिल गया.इसके बाद से तो उनके यहाँ मार खाने वालों का मेला ही लगा रहता था, जिसके लग जाए वह भाग्यशाली जिसके न लगे अभागा.
यही हाल इस नंगे अभिनेता का है.एक बड़ा उद्योगपति जो किसी मजबूरी के नगे -भूखे को चवन्नी न दे , इसे करोड़ों थमाए बैठा है.अब यह नंगा बाँटेगा तो क्या होगा ?संस्कृति की दुहाई देने वाले इतनी ज़ल्दी नंगे होते नहीं देखे.इसने इज्ज़त की धुल दी.सोचा होगा ,नंगा नाचे फाटे क्या?हमारी सरकार भी इस पर कम फ़िदा नहीं रही है.बुलाके सम्मानित कर डाला. माना इस नंगे को हया-शर्म नहीं है सरकार को तो होनी ही चाहिए थी .उसको चाहिए था कि जब इसको सम्मान दे ही दिया था तो एक जोड़ी कपड़े भी दे देती.
निराशाराम के भक्तों का देश भी यही है यह .मेरे शब्दों को लेकर उनमें से बहुतों की भावनाएँ आहत हो सकती हैं.इसके बावज़ूद मुझे इसको बहुत सारी और विशेष शब्दावली भेंट मे देने का मन कर रहा है.इस नंगई से इसकी कलई खुल गई है.कितने ज़ोरों से बहे थे स्त्री जाति के लिए इसके घड़ियाली आँसू.एक-एक एपीसोड से करोड़ों कमाने वाले इस नंगे ने किस तरह से करुणा बेची.इसका अनुमान अब तो कतई कठिन नहीं है.समाज के नंगे सच को सामने लाने का दावा.नंगों को नंगा करने का दावा करते-करते खुद ही नंगा हो गया.अब तो ऐसा लगता है जैसे इसके सारे दावे गुब्बारे से एक साथ फिस्स से हवा निकल जाने के बाद शांत हो गए हों.आखिर कितना कमा लेगा इस नंगई-लुच्चई से?इसको पता नहीं कि इसने कितना खोया है.उन बच्चों का विश्वास जो इसे अपने लिए मुसीबत से निकालने वाला फ़रिश्ता मानने लगे थे.वे स्त्रियाँ जो अपनों से छली गई थीं और जिन्हें इसमें कृष्ण का स्वरूप दिखने लगा था.क्या अब वे इस कंस में आगे भी कृष्ण को ढूँढ़ पाएँगी शायद कदापि नहीं.
ये कुकुरमुत्ते नायक और स्खलित नैतिकता के झंडाबरदार कहीं हमीं को डुबोने तो नहीं ले जा रहे हैं.यही तो नीरो हैं जो आग लगे रोम को उसके भाग्य भरोसे छोड़ बांसुरी बजाते जा रहे रहे हैं और हम इनके पीछे-पीछे चूहों -से फुदकते हुए पता नहीं शान से समुद्र मे डूबने चले जा रहे हैं.बदायूँ,लखनऊ और कर्नाटक कहीं की घटना से इसका दिल नहीं पसीजा .कितनी नकली है इसकी करुणा.अगर तथागत देख रहे होंगे तो किसी न किसी रूप या अवतार में इसे नसीहत ज़रूर देंगे कि करुणा का यह व्यापार कदापि उचित नहीं.जब लखनऊ की बलात्कृता युवती की निर्वस्त्र लाश को कपड़ों की ज़रूरत थी तब यह खुद नंगा खड़ा पता नहीं किसका प्रतिनिधित्त्व कर रहा था और क्यों ?
समाज की समझदारी इसी में है कि वह ऐसी स्खलित नैतिकता के झंडाबरदारों को नसीहत दे.इसकी नंगई -लुच्चई का बहिष्कार करे.यह कुछ ज़्यादा हो गया .पुरुष तो ज़रूर जाएँगे.उन्हें भी तो कहीं न कहीं सीना तान के यही मर्दानगी दिखानी है.वे न करें न सही कम से कम स्त्रियों को तो इसके इस चरित्र का बहिष्कार करना ही चाहिए.सुना है कुछ महिलाएँ आगे आई हैं.उन्होंने पोस्टर हटवाए हैं.औरों को भी आगे आना चाहिए.
गिरगिट बता रहा था,"उस नंगू का पोस्टर भी किसी विदेशी पोस्टर की नक़ल है.जिस पोस्टर की नक़ल है वहाँ जननांग किसी वाद्ययंत्र से ढका गया गया है तो यहाँ पुराने ज़माने के लोहालाटी भारी-भरकम रेडुआ से .ठौर-कुठौर लग जाता तो सेप्टिक हो जाती।अरे सितार लगा लेता।वीणा यमृदंग लगा लेता। हाल में थू-थू होते देख हीरो का बयान आया है कि वह बाद में इसका रहस्य प्रकट करेगा.जब नंगा हो गया तो रहस्य बचा ही क्या ?इस दुहरे चरित्र के नायक से समाज क्या सीखे ?इसने पहले नसीहतें दीं फिर नंगा हुआ .बलात्कारी पहले नंगे होते हैं फिर नसीहतों से भरा प्रवचन दे सकते हैं.निराशाराम यही तो करता था.वह और यह दोनों आखिर एक ही राशि के तो हैं.इनके नंगेपन में भी बहुत सूक्ष्म अंतर के अलावा कोई विशेष विभेद नहीं है.
इसे नंगा होने में मज़ा आता है उसे नंगा करने में आता था.वासना के लिए दोनों नंगे हुए.एक को पैसे की वासना है तो दूसरे को काम की.पहले कितनी सत्य,अहिंसा और करुणा की बातें की । जब दुकान चल निकली तो अब तो 'नंगमेव फलते 'पर उतर आया। कहने वाले कहते हैं उस करुणा भरे वातावरण में आंसुओं के गिराने के लिए भी हर एपीसोड के ढाई करोड़ लेता था.पता नहीं किस सत्य की बात कर रहा था ये .हमाम में हर कोई नंगा होता है लेकिन रेलवे ट्रैक या सड़क पर नहीं.सड़क पर तो बालक या पागल ही नंगा विचर सकता है.बच्चा तो ये है नहीं .पागल ही हो सकता है। पैसे के पीछे पागल.
एक इंसान को आखिर कितना पैसा चाहिए!किसके लिए और कब तक ?क्या पागल हो जाने लिए या पागल हो जाने तक!
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