सुशील शर्मा की रचनाएँ

SHARE:

गण से दूर होता तंत्र स्वतंत्रता के 68 साल बाद गण से तंत्र की दूरी दर्शाती है की कहीं चूक हो रही है । गण के लिए तंत्र या तंत्र से त्रस्त ग...

image

गण से दूर होता तंत्र

स्वतंत्रता के 68 साल बाद गण से तंत्र की दूरी दर्शाती है की कहीं चूक हो रही है। गण के लिए तंत्र या तंत्र से त्रस्त गण  स्वतंत्रता का मतलब सब के लिए अलग अलग है। लेकिन भारत के 70 % गण के लिए स्वतंत्रता का मतलब है दो जून की रोटी सर पर छत तन के लिए लंगोटी। वैश्वीकरण के इस दौर में मोबाइल सस्ता होता जा रहा है और रोटी लगातार उछाल मार  रही है। आंकड़ों के खेल में तंत्र भले ही साबित कर दे की भारत विकास के रस्ते पर सरपट दौड़ रहा है लेकिन गण आज भी विकास के दूसरे छोरे पर ही खड़ा है।  वह छोर जंहा से जीवन की मूलभूत सुविधाओं की शुरूआत होती है। देश की एक तिहाई आबादी रोटी और मकान  के लिए झूझ  रही है।ग्रामीण अंचल के अधिकांश बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। स्वास्थ शिक्षा जिसे सबसे सस्ता होना चाहिए आज सबसे महंगे हैं। गण की हैसियत से बहुत दूर गण कुपित हैं तंत्र के आगे असहाय। सविधान ने गण को अभिव्यक्ति की आजादी दी हैं।लेकिन वो किस बात की अभिव्यक्ति  करे किस से करे अपने गुस्से का इजहार तंत्र के खिलाफ सिर्फ चुनाव के समय बोल सकता हैं। वोट देने के बाद बोलना गुनाह हैं।

                     एक सन्नाटा से पसरा था उसकी सियासत में

                    वह लोग जो सच बोलते थे खड़े थे हिरासत में।

एक तंत्र ने लगातार ६० वर्षो तक गण को बहलाया फुसलाया हंकाया छकाया।दूसरा भी कोशिश में है की वह भी गण को तंत्र में शामिल करे ।  सभी तंत्र देश के विकास का दावा कर रहे हैं फिर भी गण घिसट रहा है। गण ताक  रहा तंत्र की ओर। तंत्र के 2 G  कोयलाजी व्यापमजी सभी मुंह चिड़ा रहे हैं गण को जब आतंकियों पर होती हे सियासत। जब निर्भयाओं को निर्भय होकर लूटा जाता है। जब गण का पैसा तंत्रिओं की तिजोरी में समां जाता है। जब बुद्धि जाती आधार पर नापी जाती है। जब सत्ता आरक्षण की पतवार का सहारा लेती है। जहाँ कूटनीतियां सत्ता के गलियारों से शुरू हो कर गरीब की रोटी पर ख़त्म होती हों। जहाँ योग्यता भ्रष्टाचार के क़दमों में दम तोड़ती हो  उस देश का गण तंत्र में कैसे समाहित होगा।

                                     68 वर्षों में ताँता गण को छोड़ कर विकाश के सपने देख रहा है। 1945 में जापान व जर्मनी नेस्तनाबूत हो गए थे। आज विकसित राष्ट्र हैं। 1947 के स्वतंत्र हम आज भी उनसे बहुत दूर विकास की बाह जोट रहे हैं। हमारा तंत्र चल रहा है यंत्रवत परंपरागत सत्ताओं,कूटनीतियो,विदेशनीतियों की पतवार के सहारे। गण की किनारे कर विकास के पथ पर हमारा देश आगे बढ़  रह है।

              इस देश के गण से भी कई सवाल हैं।100 रूपये में अपना मत बेचने वाले गण क्या तंत्र से सवाल पूछ सकते हैं।  पडोसी के घर चोरी होती देख छुप कर सोनेवाल गण क्या स्वतंत्रता पाने का अधिकारी है।  भ्रूण में बेटी की हत्या करनेवाल गण किस मुंह से तंत्र से सवाल पूछेगा। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हिमायती गण आतंकियों की फांसी पर सवाल खड़े करेगा तो उसे ये भी भुगतना होगा।प्रश्न बहुत है उत्तर देने वाला कोई नहीं।  सुलगते सवालों के बीच यह स्वतंत्र गणतंत्र ,गण से अलग खड़ा तंत्र। और तंत्र से त्रासित गण एक दूसरे के पूरक होकर भी अपूर्ण हैं | एक प्रार्थना जो कविवर रविंद्रनाथ टैगोर नाथ की थी हम सभी को करनी चाहिए।

  जहाँ  मष्तिस्क भय से मुक्त हो।

  जहाँ हम गर्व से माथा ऊँचा कर चल सकें।

  जहाँ  ज्ञान बंधनो से मुक्त हो।

  जहाँ  हर वाकया हृदय की गहराइयों से निकलता हो।

  जहाँ  विचारों की सरिता तुच्छ आचारों की मरुभूमि में न खोती  हो.।

  जहाँ  पुरूषार्थ टुकडों में न बटा  हो

  जहाँ सभी कर्म भावनाएं अवं अनुभूतियाँ हमारे  वश में हों।

  हे परम पिता !उस स्वातंत्र्य स्वर्ग में इस सोते हुए भारत को जाग्रत करो । 

सुशील शर्मा (वरिष्ठ अध्यापक) 

2016-01-16 22:30 GMT+05:30 Sushil Sharma <archanasharma891@gmail.com>:

----

 

रोटी कमाने के लिया भटकता बचपन

सुशील कुमार शर्मा

                ( वरिष्ठ अध्यापक)

           गाडरवारा

भारत में जनगणनाओं के आधार पर विभिन्न  बाल श्रमिकों के आंकड़े निम्नानुसार हैं।

1971 -1. 07 करोड़

1981 -1. 36 करोड़

1991 -1. 12 करोड़

2001-1. 26 करोड़

2011 -1. 01 करोड़

यह आंकड़े सरकारी सर्वे के आंकड़े है अन्य सर्वेक्षणों के  आंकड़े और भी भयावह हो सकते हैं।  कुल बालमजदूरों का 45 % भाग मुख्य श्रमिक हैं अर्थात ये वर्ष में 183 दिनों से ज्यादा मजदूरी करते हैं जबकि 55 % बालश्रमिक आंशिक श्रमिक हैं जो 183 दिनों से कम दिनों में मजदूरीकरते हैं। 2011 की जनगणना से पता चला है कि बालश्रम के आलवा एक ऐसा समूह भी है जो श्रम को तलाश रहा है। 5 से 9 वर्ष के बच्चों का ऐसा समूह जिसे काम की तलाश है 2001 में ऐसे 8. 85 लाख बच्चे थे जो 2011 में बढ़ कर 15. 72 लाख हो गए हैं।

बालश्रम की अगर व्याख्या की जावे तो पांच से चौदह वर्ष की उम्र  बच्चे जब  आजीविका कमाने के  नियोजित  हैं तो वह  बालश्रम कहलाता है।अधिकारों का खुला हनन है। कम उम्र में पैसे कमाने के लिए श्रम करने से बच्चों के मन ,शरीर और आत्मा पर बुरे प्रभाव पड़ते हैं।

1. बच्चे अपने शिक्षा के अधिकार से  वंचित हो जाते हैं।

2. बच्चे अपने बचपन ,खेल एवं स्वास्थ्य के अधिकार से वंचित हो जाते हैं।

3. बच्चे अपने स्वतंत्र मानसिक,शारीरक ,मनोवैज्ञानिक एवं आध्यात्मिक अधिकार से वंचित हो जाते हैं।  

4.  गरीबी  अशिक्षा को बढ़ावा देता है।

5. बालश्रम से बच्चे आगे जाकर अकुशल मजदूर बने रहते हैं एवं अपनी सारी जिंदगी गरीबी में गुजारते हैं।

अतः हम कह सकते हैं की बालश्रम मनुष्यके लिए अभिशाप है। इससे बच्चों की जिंदगी नारकीय बन जाती है एवं उनके सुनहरे भविष्य की सारी  संभावनाओं पर पूर्ण विराम लग जाता है। ऐसे बच्चों की सारी जिंदगी सड़क पर गरीबी में गुजर जाती है उन्हें अपने श्रम का कम पैसा ,कार्य करने की ख़राब स्थितियां एवं अपमानजनक जीवन जीने को मजबूर होना पड़ता है। उनका सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक विकास रुक जाता है और सारी उम्र कम मजदूरी में बितानी पड़ती है।

बाल श्रम के कारण :-बाल श्रम के कई कारण  हैं जिनमे प्रमुख कारण निम्न हैं।

1. बाल श्रमिक बड़े मजदूरों की अपेक्षा कम मजदूरी में मिलते हैं एवं श्रम के मामले में बराबर का कार्य करते हैं।

2. इनको नियंत्रित करना आसान होता है।

3. बालश्रमिक बनने का मुख्य कारन अशिक्षा भी है।

4. घर में माँ  बाप का बेरोजगार या बीमार रहना भी बालमजदूरी का प्रमुख कारण है।

5. माता पिता या पालक का शराबी या मादक द्रव्यों का सेवन बच्चों को बाल मजदूरी की ओर ले जाता है।

6. परिवार का बेघर होना या परिवार का घुमन्तु होना बाल मजदूरी को बढ़ावा देता है।

7. घर के सदस्यों या माता पिता के बीच झगड़े बच्चों को बालमजदूरी के लिए प्रेरित करते हैं।

बालश्रमिकों की सुरक्षा के लिए संवैधानिक ढांचा :-भारत के संविधान में ऐसे कई प्रावधान है जो बच्चों के हित के लिए बनाये गयें हैं।  भारत के संविधान में सभी नागरिकों के सामान बच्चों को भी न्याय ,सामाजिक,आर्थिक,एवं राजनैतिक स्वतंत्रता ,विचारों की स्वतंत्रता ,विश्वास एवं पूजा का अधिकार है। राइट टू एजुकेशन अधिनियम के अनुसार 6 से 14 वर्ष के बच्चों के लिए अनिवार्य शिक्षा की बात कही गई है। बंधुआ मजदूरी ,14 वर्ष से कम उम्र बच्चों को खतरनाक नौकरियों में रोक का प्रावधान है। संविधान में राज्यों को निर्देशित किया गया है कि बच्चों को सामान अवसर ,स्वतंत्रता एवं सम्मान का जीवन जीने के अवसर प्रदान किया जाये। संविधान में निम्न अधिनियमों में बाल श्रम के विरुद्ध प्रावधान हैं।

1. फैक्टरी एक्ट 1948 की धारा 67 के अनुसार बच्चों को फैक्टरियों में तभी नियोजित किया जा सकता जब वे किसी प्रमाणित चिकित्सक का प्रमाण पत्र प्रस्तुत करेंगे की उस फैक्टरी में काम करने से बच्चे के स्वास्थ्य पर कोई प्रतिकूल असर नहीं पड़ेगा।

2. बालश्रम निषेध अधिनियम 1986 के कानून के अनुसार 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को 13 पेशे एवं 57 प्रक्रियाओं जो कि बच्चों के जीवन एवं स्वास्थ्य  के लिए हितकर नहीं हैं में नियोजन के लिए निषिद्ध माने गए हैं। बच्चों की कार्य अवधि 4. 30 घंटे तय की गई है एवं रात को उनके काम पर प्रतिबन्ध रहेगा।

3. माइंस अधिनियम 1952 की धारा 40 में स्पष्ट उल्लेख है कि कोई भी बच्चा जिसकी उम्र 18 वर्ष से कम है खदानों में नियोजित नहीं किया जा सकता है।

4. मर्चेंट शिपिंग अधिनियम 1958 की धारा 109 के अनुसार 15 वर्ष से काम उम्र बच्चों को बंदरगाहों पर या समुद्री यात्राओं के किसी भी काम पर नियोजित नहीं किया जा सकता है।

5. मोटर ट्रांसपोर्ट एक्ट 1961 की धारा 21 के अनुसार कोई भी आवश्यक मोटर ट्रांसपोर्ट सम्बन्धी कार्य के लिए बच्चों को नियोजित नहीं किया जा सकता है।

वर्ष 1979 में बालमजदूरी से निजात दिलाने के लिए गुरुपाद स्वामी समिति का गठन किया गया था। समिति ने समस्या का विस्तार से अध्ययन किया एवं अपनी सिफारिशें प्रस्तुत किन। समिति ने सुझाव दिया कि खतरनाक क्षेत्रों में बाल मजदूरी पर प्रतिबन्ध लगाया जाए एवं अन्य क्षेत्रों में कार्य के स्तर एवं कार्य क्षेत्रों में सुविधाओं का विस्तार किया जावे। गुरुपाद स्वामी समिति की सिफारिशों के आधार पर बालमजदूरी (प्रतिबन्ध एवं नियमन)अधिनियम 1986 लागु किया गया। इस अधिनियम के अनुसार विशिष्टिकृत खतरनाक व्यवसायों एवं प्रक्रियाओं में बच्चों के रोजगार पर रोक लगाई गई है। इस कानून के अंतर्गत बालश्रम तकनीकी सलाहकार समितिके आधार पर जोखिम भरे व्यवसायों एवं प्रक्रियाओं की सूचि का विस्तारीकरण किया गया है जो निम्नानुसार है।

बालश्रमिकों के नियोजन के लिए निषिद्ध पेशे

1. रेल्वे में सिंडर उठाना एवं भवन निर्माण करना।

2. रेल्वे ट्रेनों में केटरिंग एवं वेंडर का कार्य।

3. रेल्वे ट्रेक्स के बीच कार्य करना।

4. बंदरगाहों में नियोजन।

5. पटाखों का खरीदना या बेचना।

6. कत्लगाहों में नियोजन।

7. ऑटोमोबाइल वर्कशॉप एवं गेराज।

8. भट्टियों में काम करना।

9. विषैले रसायनों ,अतिज्वलनशील पदार्थों एवं विस्फोटकों के धंधों में नियोजन।

10 हैंडलूम एवं पावरलूम उद्योग।

11. माइंस (अंडरग्राउंड एवं अंडरवाटर )कालरीज में नियोजन।

12 . प्लास्टिक एवं फाइबर गिलास उद्योग।

13. घरेलू नौकर के रूप में नियोजन।

14 . ढावा ,होटल,रेस्ट्रारेन्ट ,रिज़ॉर्ट एवं मनोरंजन स्थलों पर नियोजन।

15. पानी में छलांग लगाने वाली जगहों पर नियोजन।

16. सर्कस में नियोजन।

17. हाथियों एवं ख़तरनाक जंगली जानवरों के देख रेख के लिए  नियोजन।

18. सभी सरकारी विभागों में नियोजन।

इसके अलावा 64 प्रक्रियायें हैं जिनमे बालश्रम का नियोजन निषिद्ध है। सिलिका उद्योग ,वेयर हाउस ,रासायनिक उद्योग ,शराब उद्योग,खाद्य प्रसंस्करण ,मशीन से मछली पकड़ना ,डायमंड ग्राइंडिंग ,रंगरेज,कोयला खेल सामान बनाना ,तेल रिफायनरी ,कागज उद्योग ,विषैले उत्पादों का उद्योग ,कृषि उपकरण उद्योग ,वर्तन निर्माण,रत्न उद्योग ,चमड़ा उद्योग,ताले बनाना ,सीमेंट से निर्माण के सभी उद्योग ,अगरवत्ती बनाना ,माचिस,पटाखा ,माइका ,साबुन निर्माण ,ऊन उद्योग ,भवन निर्माण,स्लेट पेन्सिल एवं बीड़ी उद्योग प्रमुख हैं।

विभिन्न उद्योगों में काम करने वाले बालश्रमिक किसी न किसी बीमारी से ग्रसित हैं। निरंतर बुरी परिस्थितियों में काम करने ,कुपोषण ,पत्थर धुल कांच आदि के कणों के फेफड़ों में जम जाने,अधिक तापमान में घंटों काम करने एवं खतरनाक रसायनों के संपर्क में रहने के तीन चार वर्षों में ही विभिन्न बीमारियां इन्हे अपनी गिरफ्त में ले लेती हैं। तपेदिक,अस्थमा,त्वचारोग ,नेत्र रोग स्नायुरोग एवं विकलांगता के चलते 20 वर्ष के होते होते ये पुनः बेरोजगार हो जाते हैं।

बच्चे किसी भी देश ,समाज एवं परिवार के लिए मत्वपूर्ण संपत्ति होते हैं जिनकी समुचित सुरक्षा ,पालन पोषण,शिक्षाएवं विकास का दायित्व राष्ट्र एवं समुदाय का होता है। योजनाओं ,कल्याणकारी कार्यक्रमों ,क़ानून एवं प्रशासनिक गतिविधियों के चलते भी विगत 6 दशकों में भारतीय बच्चे संकट एवं कष्ट के दौर से गुजर रहे हैं। उनके अभिभावक उन्हें उपेक्षित करते हैं उनके संरक्षक उनका शोषण करते हैं एवं उन्हें रोजगार देनेवाले उनका लैंगिक शोषण करते हैं। बालश्रम बच्चों के शिक्षा एवं विकास के विकल्पों को ही नहीं छीनता है बल्कि इससे परिवार के विकल्प भी समाप्त होने लगते हैं। इस स्थिति में परिवार बालश्रम पर आश्रित हो जाता है। एक बच्चा देखता है की उसका बाप या पालक शराब पीकर माँ को मरता है और बीमार माँ असहाय होकर उसकी और देखती है तो उसका बचपना श्रम की भेंट चढ़ जाता है। वह घर का ख़र्च एवं बीमार माँ की दवाई हेतु अपना बचपन बेच देता है।बच्चों को अपने व्यक्तित्व के विकास के लिए हमारी परतंत्रता से मुक्त होना चाहिए। उस परतंत्रता से जहाँ हम यह तय करते हैं कि उन्हें क्या करना चाहिए और क्या नहीं।

------

 

गाडरवारा शहर की सांस्कृतिक विरासत -श्री सार्वजानिक पुस्तकालय

मध्यप्रदेश का गाडरवारा शहर या यूँ कहें कि क़स्बा की पहचान के दो बहुत महत्वपूर्ण चिन्ह हैं पहला आचार्य रजनीश या ओशो जिनका बचपन इस शहर में बीता दूसरा चिन्ह हैं यंहा की तुवर (राहर) की दाल जो की भारत में ही नहीं विश्व में विख्यात है। लेकिन इन दोनों से इतर इस शहर का एक और सांस्कृतिक विरासत का चिन्ह है यंहा का सार्वजानिक पुस्तकालय "श्री सार्वजनिक पुस्तकालय "के नाम से प्रसिद्द इस पुस्तकालय का इतिहास करीब 100 वर्ष पुराना है।

1910 में लोकमान्य बालगंगाधर तिलक के आवाहन "घर घर गणेश शहर शहर पुस्तकालय से प्रेरित होकर गाडरवारा के एक नवजवान स्व. श्री लक्ष्मीनारायण खजांची ने अपने 6 साथियों के साथ 1914 में 25 किताबें एक बक्से में रख कर इस पुस्तकालय की नीव रखी थी 1936 में सरकारी जमीन पर भवन की नींव डाली गई 1956 में रजिस्ट्रेशन होने तक यह पुस्तकालय अपने पूरे योवन पर पहुँच गया था। आज इस पुस्तकालय में करीब 20 हजार पुस्तकें संगृहीत हैं।

60 से 90 के दशक के समय लोगों में पढ़ने का जूनून था ,स्व अध्ययन से लगाव था वह पीढ़ी जानती थी की पुस्तकालय ज्ञान का वो अद्भुत मंदिर हैं जँहा हम बुद्धि का विकास करते हैं ,गुरु सिर्फ पथ प्रदर्शन करता हैं किन्तु ज्ञान का विकास सिर्फ पुस्तकालय से ही संभव है। अगर रजनीश को ओशो बनाने में इस पुस्तकालय का बहुत बड़ा योगदान हैं तो शायद आप इसे अतिश्योक्ति कहेंगे लेकिन सच यही है। रजनीश प्रतिदिन इस पुस्तकालय से तीन पुस्तके जारी करवा कर ले जाते थे एवं रात भर में तीनो पुस्तकों को पढ़ कर दूसरे दिन वापिस कर जाते थे। आज भी उनकी हस्ताक्षरित पुस्तकें पुस्तकालय में संरक्षित हैं जिन्हे विदेशी बड़ी श्रद्धा से सर माथे लगाते हैं।

समय के साथ पीढ़ियों में बदलाव आया कम्प्यूटर एवं इंटरनेट क्रांति के इस युग में पुस्तकालय संघर्ष करते हुए नजर आने लगे आज की युवा पीढ़ी पुस्तकालय से हट कर इ-लाइब्रेरी का रुख करने लगी ,इ-बुक्स के इस ज़माने में पाठकों की संख्या कम होने लगी लेकिन श्री सार्वजनिक पुस्तकालय ने अपनी पहचान नहीं खोयी आज इस पुस्तकालय में करीब 20000 पुस्तकें जिनमे धर्म, दर्शन, उपन्यास, कहानी, साहित्य, उर्दू, अंग्रेजी, विज्ञानं तकनीकी, सामान्य ज्ञान, पत्रिकाएँ, समाचार पत्र, प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए उपयोगी सभी प्रकार से सुसज्जित ये पुस्तकालय शान के साथ गाडरवारा की धरोहर के रूप में विद्यमान हैं।

उस साठोत्तर पीढ़ी के लोग पुस्तकालय के लिए कितने समर्पित थे इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि एक कॉलेज के सेवानिवृत प्राचार्य स्व. श्री कुञ्ज बिहारी पाठक ने इस पुस्तकालय में निःशुल्क दो वर्ष तक ग्रंथपाल का कार्य किया था। ये ज्ञान के प्रति लगाव एवं पढ़ने की ललक आज की पीढ़ी में दुर्लभ है।

हम सभी की बाल्य स्मृतियों में ये पुस्तकालय हमेशा मुस्कुराता रहेगा पुस्तकों के अभाव में इस पुस्तकालय ने हम सभी को जो ज्ञान दिया वो अविस्मरणीय है। शाम 6 बजे से रात 8 बजे तक यह पुस्तकालय बुद्धिजीवियों का मिलन स्थल होता था। पठन पाठन के अलावा राजनितिक धार्मिक एवं वर्तमान परस्थितियों पर चर्च का केंद्र होता था खचाखच भरा वाचनालय अवं पूर्ण शांत माहोल लगता था किसी ध्यान केंद्र में बैठे हों।

व्यवस्थापक बदल गए पीढियां बदल गईं लेकिन आज भी ये पुस्तकालय अपनी पुरानी दिनचर्या पर चल रहा हैं। नई सोच के व्यवस्थापकों ने इ-लाइब्रेरी की भी व्यवस्था बना दी है।

इतिहास के पृष्ठ पलटने एवं जनक्रांति की गहराई में जाने पर पता चलता है की शास्त्र के अभ्युथान की आकांक्षा पुस्तकालयों से ही पूरी होती है। इसके लिए हम सरकार पर निर्भर नहीं रह सकते ये उत्तरदायित्व सभी बुद्धिजीवियों का हे जिसे उन्हें पूरा करना ही होगा। इस उत्तरदायित्व का निर्वहन श्री सार्वजनिक पुस्तकालय बड़े सम्मान के साथ कर रहा है। यह गाडरवारा का ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण प्रदेश का एक गौरव स्मारक है जो पिछले 100 वर्षों से अनवरत ज्ञान के अविरल स्त्रोत के रूप में देश सेवा में तत्पर है।

सुशील शर्मा (वरिष्ठ अध्यापक)

 

----------

कविता

अनुत्तरित प्रश्न

एक जंगल था ,

बहुत प्यारा था

सभी की आँख का तारा था।

वक्त की आंधी आई,

सभ्यता चमचमाती आई।

इस सभ्यता के हाथ में आरी थी।

जो काटती गई जंगलों को

बनते गए ,आलीशान मकान ,

चौखटें ,दरवाजे ,दहेज़ के फर्नीचर।

मिटते गए जंगल  सिसकते रहे पेड़

और हम सब देते रहे भाषण

बन कर मुख्य अतिथि वनमहोत्सव में।

हर आरी बन गई चौकीदार।

जंगल के जागरूक कातिल

बन कर उसके मसीहा  नोचते रहे गोस्त उसका।

मनाते रहे जंगल में मंगल।

औद्योगिक दावानल में जलते

आसपास के जंगल चीखते हैं।

और हमारे बौने व्यक्तित्व अनसुना कर चीख को ,

मनाते हैं पर्यावरण दिवस।

सिसकती शक्कर नदी के सुलगते सवाल  

मौन कर देते हैं हमारे व्यक्तित्व को।

पिछले साल कितने पौधे मरे ?

कितने पेड़ कट कर आलीशान महलों में सज गए ?

हमारी नदी क्यों मर रही है ?

गोरैया क्यों नहीं चहकती मेरे आँगन में ?

इन सब अनुत्तरित प्रश्नों के उत्तर खोज रहा हूँ ,

और लिख रहा हूँ एक श्रद्दांजलि कविता

अपने पर्यावरण के मरने पर।

  सुशील कुमार शर्मा

           ( वरिष्ठ अध्यापक)

         गाडरवारा

---

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: सुशील शर्मा की रचनाएँ
सुशील शर्मा की रचनाएँ
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhvs9Bi2JlLLCBmA90PKXGFFg7HKDf_q2dRdgTsV3L6PjpusR4c5X_pD_N9aV8AXY44BXbGYpuNyhi-bRBXMf8LZZTrUe1M8o-DQXSynP91rN1AfamCc4qe1P1T95syD5juj5QZ/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhvs9Bi2JlLLCBmA90PKXGFFg7HKDf_q2dRdgTsV3L6PjpusR4c5X_pD_N9aV8AXY44BXbGYpuNyhi-bRBXMf8LZZTrUe1M8o-DQXSynP91rN1AfamCc4qe1P1T95syD5juj5QZ/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2016/01/blog-post_60.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2016/01/blog-post_60.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content