कहा जाता है कि जिनकी शक्ल सवेरे-सवेरे दिख जाती है उसी के आधार पर दिन गुजरता है। किसी अच्छे, शुद्ध चित्त वाले और साफ-सुथरे दिमाग वाले सज्ज...
कहा जाता है कि जिनकी शक्ल सवेरे-सवेरे दिख जाती है उसी के आधार पर दिन गुजरता है। किसी अच्छे, शुद्ध चित्त वाले और साफ-सुथरे दिमाग वाले सज्जन इंसान का चेहरा सवेरे-सवेरे जगते ही दिख जाने पर दिन अच्छा जाता है।
इसके ठीक विपरीत किसी मलीन इंसान का चेहरा दिख जाए तो दिन भर खराब जाता है। यहां दिन से मतलब केवल सूर्योदय से सूर्यास्त तक ही नहीं है बल्कि चौबीस घण्टों का पैमाना है।
हर जगह बहुत सारे लोग होते हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि इनका मुँह देखना अच्छा होता है, दिन अच्छा गुजरता है। इसी प्रकार हर स्थान पर बहुत सारे लोग होते हैं जिनका मुँह देखना दिन खराब करता है और कोई काम न होकर वह दिन उपलब्धिहीन अथवा संघर्षमय रहता है। इन्हीं लोगों के आधार पर आवागमन का शगुन भी निर्धारित होता है।
ज्योतिष शास्त्र में मुँह देखने, शगुन लेने और सम सामयिक हालातों के अनुरूप भवितव्यता को जानने की परंपरा सदियों से रही है। शगुन अपने आप मेंं पूर्ण ज्योतिष शास्त्र का हिस्सा है। कोई माने या न माने इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। सूरज की मौजूदगी में उल्लूओं को कुछ न दिखाई दे, यह उनकी नियति है। इससे सूरज को कोई फर्क नहीं पड़ता।
प्रातःकालीन जागरण के तत्काल बाद के कुछ सैकण्ड अपने आप में ऊर्जा के स्थानान्तरण और अपनी क्षमताओं को बहुगुणित करने के सशक्त माध्यम होते हैं। उठते ही जिस पर हमारी दृष्टि पड़ती है उससे हमारा सीधा संबंध जुड़ जाता है और अदृश्य कर्षण तरंगों के माध्यम से ऊर्जा का स्थानान्तरण उस तरफ होने लगता है जिस तरफ कमी होती है।
इसके साथ ही अपनी ऊर्जा भरी दृष्टि और स्पर्श के माध्यम से भी ऊर्जा का स्थानान्तरण होता है। इस दृष्टि से हमारे रोजमर्रा के जीवन में कुछ समय के लिए अनेक बार संक्रमण काल आते हैं जब हमें अपनी परंपराओं का निर्वाह करते हुए संक्रमण काल में सतर्क रहकर कार्य करना होता है।
प्रातःकाल उठते ही अपने माता-पिता, बड़ों व परिजनों का दर्शन करना चाहिए, सूर्य भगवान या देवी-देवताओं के दर्शन का अभ्यास डालना चाहिए तथा झुक कर भूमि माता का स्पर्श करना चाहिए।
इस काल में मनहूस, लूटेरे, चोर-उचक्कों, भ्रष्ट, बेईमान, रिश्वतखोरों, अपराधियों, गुस्सैल और चरित्रहीन लोगों का न मुँह देखना चाहिए, न स्पर्श करना चाहिए। यहां तक कि इनके फोटो का दर्शन करना भी वर्जित ही है।
जो लोग दिल के साफ नहीं हैं, दिमाग से खुराफाती हैं, षड़यंत्रकारी हैं, मलीन कर्मों से युक्त हैं, पुरुषार्थहीन, आपराधिक कर्मों में लिप्त हैं, हर आदमी को एटीएम या भीख देने वाला मानते हैं, इंसानियत से दूर हैं, उन लोगों की मनहूस शक्ल का दर्शन कभी न करें। इससे दिन बिगड़ेगा ही बिगड़ेगा।
इन दुष्टों का पूरा आभामण्डल नकारात्मक वृत्तियों की सडान्ध से भरा होता है और जो इनकी ओर सवेरे-सवेरे देख लेता है वह इनके आभामण्डल की तरंगों का संपर्क पाकर अपने पुण्य का क्षय कर लेता है तथा उनकी कालिख अपने पास खींच लेता है, अपनी संचित ऊर्जा और पुण्य का प्रवाह उनकी ओर होने लगता है।
यही कारण है कि बुरे और दुष्ट लोगों के साथ रहने वाले सज्जन लोग हमेशा हानि प्राप्त करते हैं, लांछित होकर प्रतिष्ठा गँवा बैठते हैं और इन नुगरे लोगों के कारण इनके आस-पास रहने वाले सारे लोग ईश्वर, धर्म, सत्य और अच्छाइयों से दूर हो जाते हैं।
दुनिया में बड़े-बड़े और महान लोगों की जिन्दगी इसी वजह से नारकीय हो गई क्योंकि ये लोग ऎसे नालायक और नुगरों के साथ रहते थे जिनका कोई भरोसा नहीं कर सकता।
जो दुष्ट है वह एक सीमा तक अपने लाभ पाने के लिए शालीनता और चुप्पी का स्वाँग रचे रखता है, फिर कभी न कभी मौका पाकर अपनी औकात पर आ ही जाता है। बात प्रभातकालीन दर्शन की हो या सांयकालीन। हर बार यह ध्यान रखें कि उन लोगों की मनहूस शक्लों से अपने आपको दूर रखें जिन्हें हम सज्जन नहीं मानते।
ये काली आँखों और काली जुबान के बहुभंगी मुद्रा वाले टेढ़े-मेढ़े लोग कभी किसी का भला नहीं कर सकते, कभी किसी के बारे में अच्छा नहीं सोच सकते। जैसे-जैसे इनकी मलीनताओं का ग्राफ बढ़ता चला जाता है ये लोग पूरी तरह काले मन के हो जाते हैं और उनके आभामण्डल का कालापन उनकी बॉड़ी लैंग्वेज तथा मलीन चेहरे से अच्छी तरह पहचाना जा सकता है।
आमतौर पर इन लोगों को कभी मुस्कुराते हुए नहीं देखा जाता। जब भी ये मुस्कुराते हैं तब समझ लेना चाहिए कि किसी को नीचा दिखाने, किसी का नुकसान करने या कि किसी के खिलाफ षड़यंत्र में ये सफल हो गए हैं।
इस किस्म के लोग किसी को खुशी नहीं दे सकते, खुशी छीन जरूर सकते हैं, किसी का बड़े से बड़ा नुकसान कर सकते हैं, किसी के बारे में भी शिकायतें करते हुए तंग कर सकते हैं और अपनी ही तरह के दूसरे असुरों के साथ मिलकर कहीं भी कहर ढा सकते हैं।
इन मनहूस लोगों के गलती से भी दर्शन हो जाएं तो पाप लगता है। इनका साथ निभाना, इनके साथ खान-पान करना तथा इनके काले कलूटे आभामण्डल के आस-पास भी आना पाप देता है, पुण्य छीन लेता है और नरक की यंत्रणा देने वाला है क्योंकि ईश्वर के घर में ऎसे लोगों को असुर की श्रेणी में शुमार किया जाता है। स्वयं ईश्वर भी इनका खात्मा करने को उत्सुक रहता है। जिसे भगवान नहीं चाहता, ऎसे दुष्टों का संसर्ग करने वाले इंसान को भगवान तगड़ा दण्ड देता है।
अपने पुण्यों का संचय बरकरार रखना व ईश्वर की कृपा पाना चाहें, जीवन और जगत के लिए कुछ करते हुए वास्तविक प्रतिष्ठा चाहें तो इन मनहूस लोगों से हर प्रकार से दूरी बनाए रखें, इनका न चेहरा देखें, न इनके बारे में चिन्तन करें। इनका नाम गलती से भी कोई ले ले तो दस-पन्द्रह बार राम-राम जपते हुए प्रायश्चित कर लें और दुबारा नाम तक न लेने का संकल्प ले लें।
आजकल बहुत सारे लोग हैं जिनकी तुलना उनके दादा-दादी, माँ-बाप और पुश्तैनी परिवार से करें तो पता चलता है कि वे संस्कारी, सभ्य और परोपकारी लोग कितने पूजनीय और अनुकरणीय हैं। और कहाँ उनकी यह नालायक संतति, जो हर काम में पैसा तलाशती है, मुफत का माल उड़ाने पर आमादा है, संसार को सुकून देने की बजाय तनाव और दुःख देने में लगी हुई है, संस्कारहीन, अमर्यादित और उच्छृंखल होकर समाज में प्रदूषण फैला रही है।
पता नहीं इन मनहूसों को क्या हो गया है। अपने वंश, परंपरा और परिवार की साख की भी परवाह नहीं है। ऎसे लोग न समाज के हो सकते हैं, न देश के। मनहूसों से दूरी बनाए रखें, ताकि अपनी शुचिता पर कोई आँच न आए।
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- डॉ0 दीपक आचार्य
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