पुस्तक समीक्षा- समीक्षक- ...
पुस्तक समीक्षा- समीक्षक-
डॉ.दिनेश पाठक'शशि' 28,सारंग विहार,मथुरा-6
,मोबा-9760535755
पुस्तक- रामांजलि महाकाव्य संग्रह, रचनाकार-डॉ.अनिल गहलौत , पृष्ठ-492, मूल्य-850रु. शनसाइन पेपर, 1050 रु. आर्ट पेपर एवं 100 डालर विदेश प्रकाशन वर्ष-2013ई0
हिन्दी साहित्य की विविध विधाओं में साधिकार लेखनी चलाने वाले विद्वान, साहित्यकार डॉ. अनिल गहलौत की पुस्तक ''रामांजलि'' एक ऐसा महाकाव्य है जिसकी रचना 38 वर्ष की लम्बी समयावधि में ,पूर्ण उर्जस्वित अविकल भाव से ,गहन चिंतन,मनन के साथ ठहरकर की गई है।
डॉ.अनिल गहलौत ऐसे साहित्यकार हैं जिन्होंने साहित्य लेखन में बहुत से नये प्रयोग किए हैं और यही कारण है कि उनकी प्रत्येक पुस्तक एक विशिष्ठ पहचान बनाती है।
'रामांजलि'' महाकाव्य के नायक श्रीराम, तुलसीदास कृत रामचरित मानस एवं अन्य अनेकानेक राम काव्यों में वर्णित श्रीराम से भिन्न एक अवतारी 'पुरुषोत्तम पुरुष' और जन संवेद्य महानायक के रूप में प्रस्तुत किए गये हैं साथ ही राम-कथा को ऐश्वर्यपरक अतिशयोक्ति-पूर्ण प्रसंगों से अलग, विश्वसनीय,यथार्थपरक प्रासंगिकताओं से जोड़ते हुए, नये रूप में प्रस्तुत किया गया है।
कथानक में नई कल्पनाओं के अन्तर्गत अहल्या का प्रसंग देखें। अन्य अनेकानेक राम कथाओं में जहाँ अहल्या को पाषाण शिला के रूप में वर्णन किया गया है वहीं डॉ.अनिल गहलौत ने रामांजलि में अहल्या को दुःखों से से चूर और अपमानित होने के कारण पाषाणवत् होना दर्शाया है जो उपयुक्त ही प्रतीत होता है-
विवश खो निज सतीत्व असहाय, बन गई दीन जगत अपवाद
सह रही सामाजिक अन्याय, कौन कर सकता है अपवाद?................
बनी पाषाणी दुःख से चूर,पड़ी इस आश्रम में चुपचाप। पृष्ठ-76
'रामांजलि' के अहंकार सर्ग में अंग-भंग के बाद शूर्पनखा अपने भाई रावण के पास पहुँच कर अपनी व्यथा-कथा कहती है तो रावण क्रोधित हो उठता है किन्तु शूर्पनखा को धैर्य बंधाने के बाद वह अपने शयन-भवन में बैठकर विचार करता है और बहुत ही तर्कपूर्ण रूप से भावी योजना बनाता है-
सोचना पड़ेगा यह गंभीर विषय है, वांछित न शीघ्रता का इसमें आशय है
प्रतिकार करूँ अपमान-शोध-आतुर मैं, अतिरिक्त शक्ति हो व्यय न यही संशय है। पृष्ठ-227
और फिर रावण के मन में एक विचार कौधता है-क्यों न राम की पत्नी का हरण कर लूँ जिससे राम की शक्ति आधी रह जायेगी तथा खोजते-खोजते राम जबतक लंका आयेंगे तब तक मैं युध्द की पूर्ण तैयारी कर लूँगा-
कालावधि में मैं शक्ति संतुलित कर लूँ
वह उधर क्षीण हो ले, मैं जन-बल भर लूँ। पृष्ठ-229
अन्य राम-कथाओं में सीता द्वारा स्वर्ण मृग का बध करके उसकी मृगछाला प्राप्ति के बारे में
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राम से कहा गया है जब कि रामांजलि में नई कल्पना का अद्भुत उदाहरण देखने को मिलता है। रामांजलि में स्वर्णमृग को पकड़कर , उसे पालने की इच्छा व्यक्त करने की नई अहिंसात्मक परिकल्पना की गई है-
मेरा मन है इसको पालूँ, किसी तरह यदि मिल जाये
विचरण करे यहाँ कुटिया में मेरे मन को बहलाये। पृष्ठ-247
पालूंगी मैं, फिर जब लौटें, साथ अयोध्या ले जायें। पृष्ठ-248
एक नहीं अनेकानेक नई कल्पनाएं रामांजलि के कथानक में डॉ.अनिल गहलौत ने की हैं। हनुमान के द्वारा उड़कर नहीं अपितु तैरकर सागर पार करने की संपुष्टि रामांजलि से होती है जो यथार्थ ही प्रतीत होती है-
प्रबल बाहुबल चले काटते, दुर्गम जल का क्षिप्र प्रवाह।...........
भर छलांग उच्छलित शून्य में , पवन तरंगों से ले होड़
मनो उड़े चले जाते थे, फिर-फिर गर्व सिन्धु का तोड़। पृष्ठ-329
और समुद्र में तैरते-तैरते हनुमान जी जब कोई टापू आदि देखते थे तो थोड़ा विश्राम भी कर लेते थे-
कहीं कथित वह पर्वत श्रेणी, देख सुलभ ले क्षणिक विराम
श्रांति मिटाने को दमभर को , दो क्षण कर लेते विश्राम। पृष्ठ-329
रामांजलि महाकाव्य के सर्ग ''उद्यम'' में रचनाकार डॉ.अनिल गहलौत ने सेतु बन्धन के लिए नल व नील द्वारा पत्थर को तैराकर नहीं वल्कि यथार्थ को उजागर करते हुए इस पार से उस पार तक संलग्न रूप से स्थित जलमग्न शिला पर पत्थर जमाकर पुल निर्माण करने में कुशल अभियन्ता नल व नील की विज्ञता एवं वानर सेना के श्रम का प्रतिफल बताया है-
यही सुनिश्चित सेतु बंध हो, द्रुत कठोर अभियान चले
विज्ञ नील,नल अभियन्ता हों कृत-शिल्पी श्रम-बिन्दु ढले
मारुति दें निर्देश उल्लिखित, गिरि श्रेणी वह दिखलाएँ
पथ प्रशस्त हो श्रेयस्कर शुभ मंगलमय लालसा फले। पृष्ठ-381
रावण व अंगद-संवाद में अंगद द्वारा युध्द के दुष्परिणामों से अवगत कराते हुए युध्द को टालने के भरसक प्रयत्न किए गये हैं-
जन संहार टले, सीता को लौटा दो, मत-389
और-
युध्द नहीं है खेल, युध्द अभिशाप मनुज जीवन का है
युध्द जहाँ तक बले, टालने में ही हित जन-जन का है।.............
अरे प्रमादी समझ न मैं प्रस्ताव संधि का लाया हूँ
नीति और जन-हित का तुझको मंत्र बताने आया हूँ। पृष्ठ-392
रावण के मरने के बाद राम द्वारा युध्द बंदियों की प्रशंसा करते हुए उन्हें मुक्त करना तथा सौमनस्य,अहिंसा और मानवता का संदेश, रामांजलि के राम को एक अवतारी ''पुरुषोत्तम पुरुष'' सिध्द -2-
करता है।इतना ही नहीं रावण की मृत्यु होने पर राम द्वारा विभीषण को रावण की अंत्येष्टि का आदेश तथा निजता को रिजुता में ढालने का एवं कुलधर्म निभाने का साथ ही स्वामी न बनकर संरक्षक बनने की नृपनीति का उपदेश आदि भी राम के अवतारी ''पुरुषोत्तम पुरुष'' होने की पुष्टि करता है-
मरणोपरान्त शत्रुता कोई, नहीं किसी से रहती शेष
वैर-भाव का अंत उसी के,साथ हो गया बंधु अशेष। पृष्ठ-472
है आदर्श वही नृप् जिसके,मन में तनिक न हो अभिमान
संरक्षक बन रहे हृदय से ,स्वामी का तज कर संज्ञान। पृष्ठ-474
डॉ.अनिल गहलौत द्वारा रचित महाकाव्य रामांजलि के प्रत्येक सर्ग का प्रत्येक छंद लीक से हटकर मौलिकता के साथ कुछ न कुछ संदेशप्रदता अपने में समाहित किए हुए है। अयोध्या पहुँचने पर स्वागत में खड़ी माताओं में से सर्वप्रथम कैकेयी को राम द्वारा प्रणाम किया जाना-
बढ़कर सबसे प्रथम राम ने कैकेयी को किया प्रणाम
धुला कलुष उस निर्मलता में ,मन ममत्व उमड़ा उद्दाम। पृष्ठ-482
और भरत द्वारा राज्य को राम की धरोहर मानकर रामराज्य की पूर्व-पीठिका रचने के प्रयास को उद्घाटित करना भी रामांजलि की मौलिकता का एक उदाहरण है-
मान धरोहर अग्रजवर की,पूज्य भाव से किया प्रयास
'राम-राज्य' की पूर्व पीठिका, रच दी सावधान, सायास। पृष्ठ-483
राम-राज्य के सुशासन में जन हितकारी राजनीति एवं यथा राजा तथा प्रजा के फलितार्थ में सदाचार कर्त्तव्यबोध,यथालाभ संतोष वृत्ति आदि तथा राम की मर्यादा,प्रतिबध्द शुचिता और उनकी सत्यनिष्ठता आदि को रामांजलि में बहुत ही सुन्दर रूप में प्रस्तुत किया है-
राम राज्य में जन जीवन का राम आचरण था आदर्श
निज कर्त्तव्य-बोध मर्यादा,सर्वापरि सर्वत्र सुदर्श। पृष्ठ-486
जन-जन में स्वधर्म पालन में ,लक्षित होता उज्ज्वल रूप
सुखद 'सर्व मांगल्य मंगले'राम-राज्य का बना स्वरूप। पृष्ठ-487
इस प्रकार डॉ.अनिल गहलौत द्वारा रचित ''रामांजलि'' महाकाव्य में गरिमा है,उदात्तता है तथा राम के चरित्र की पुनरावृत्ति न करके वर्तमान युग के तर्कशील पाठक के भावानुप्रवेश की सीमाओं के अन्तर्गत राम के चरित्र को उकेरा गया है।शिल्प की दृष्टि से महाकाव्य के सभी मानकों पर सम्पुष्ट रूप में सृजित यह विशद रामांजलि काव्य हिन्दी-साहित्याकाश में उन्नत सूर्य के समान जगमगाती प्रभविष्णु प्रांजल छायावादी भाषा शैली में विरचित है।
डॉ.अनिल गहलौत ने इस महाकाव्य के 18 सर्गों में 2301 छन्दों को समाहित किया है। काव्य की भाषा प्रांजल संस्कृतनिष्ठ,राष्टभाषा हिन्दी है। शिल्पविधि की उत्तमता के साथ-साथ इस काव्य की संदेशप्रदता में मौलिक भावों का समावेश है जो अद्भुत है। 492 पृष्ठीय इस महाकाव्य में प्रयुक्त कागज उच्चकोटि का तथा आवरण एवं चित्रों का मनमोहक संयोजन गायत्री आर्ट एण्ड इलैस्टेशन मथुरा द्वारा किया गया है।आज के पतनोन्मुख मानव-समाज को रोकने-टोकने में इस महाकाव्य की महती भूमिका रहेगी और यह रामांजलि महाकाव्य कालजयी सिध्द होगा ऐसा पूर्ण विश्वास है।
समीक्षक-डॉ.दिनेशपाठक'शशि' 28,सारंगविहार,मथुरा-6, मोबा-9760535755 -3-
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