मनुष्य के लिए पारस्परिक संवाद जीवन का वह अनिवार्य क्रम है जो तमाम समस्याओं और विषमताओं का निवारण कर सफल जीवनयापन का सुकून देता है। संवाद क...
मनुष्य के लिए पारस्परिक संवाद जीवन का वह अनिवार्य क्रम है जो तमाम समस्याओं और विषमताओं का निवारण कर सफल जीवनयापन का सुकून देता है।
संवाद कई शंकाओं, आशंकाओं, भ्रमों और विवादों के उन्मूलन के लिए रामबाण सिद्ध होता है और इसे अपनाया जाना अपने आप में मानवीय गुण है। संवाद ऎसा कारक तत्व है जो हमेशा सभी पक्षों के लिए लाभदायी ही सिद्ध होता है।
यही वजह है कि संवाद सातत्य और निरन्तरता को इंसानियत से जुड़े प्रमुख कारकों में गिना जाता है कि इस पर सदैव जोर दिया जाता रहा है। आज दुनिया की सर्वाधिक और बड़ी-बड़ी समस्याओं का मूल कारण संवादहीनता है। तभी तो हर बार कोई न कोई पक्ष यह दलील देता रहता है कि बातचीत के दरवाजे हमेशा खुले हुए हैं, बातचीत से ही निकल पाएगा कोई न कोई हल ...वार्ता, शिखर वार्ता, द्विपक्षीय वार्ता, बहुपक्षीय वार्ता आदि-आदि।
संवाद का महत्व सर्वविदित और सार्वजनीन रहा है और सदियों से इसके बेहतर परिणाम सामने आते रहे हैं। लेकिन इस संवाद का दूसरा पक्ष यह भी है कि अब कुतर्की, पाखण्डी और हर बात को वाद-विवाद का स्वरूप देने वाले बहुत सारे लोग सभी जगह कुकुरमुत्तों, गाजर घास या बेशर्मी की तरह पनपते जा रहे हैं।
इनका पूरा जीवन हर बात में तरह-तरह के मसाले मिलाकर परोसना, आनंद पाना और बातों के सहारे में समय गुजार देना ही रहा है। या तो ये मुफतिया टेलीफोन पर दिन-रात किसी न किसी से बातों में मशगुल रहेंगे या अपनी तरह के निगुरों के समूह में बैठकर बकवास करते रहेंगे।
इस किस्म के लोगों से किसी भी प्रकार की कोई श्रेष्ठ या शाश्वत बात की जाए, वे अपने स्वभाव के अनुरूप इसकी मौलिकता और शुचिता की निर्मम हत्या करते हुए किसी माँसाहारी खानसामे की तरह नमक-मिर्च मिलाकर पूरी की पूरी बात का इतना अधिक कबाड़ा कर दिया करते हैं कि मूल बात कहीं गायब हो जाती है और इसकी जगह मिलावटी बातों की खिचड़ी नुमा हलुवा सामने आ जाता है।
ये मिलावटी लोग जिन्दगी भर हर किसी बात को अपने स्वाद और स्वभाव के अनुरूप मोड़ देते रहते हैं और फिर उसमें मसाले भरकर ऎसी बना देते हैं कि मूल बात की बजाय वो बातें सामने आने लगती हैं जिनका कोई आधार नहीं होता।
आमतौर पर उच्चाकांक्षी, झूठे और मक्कार लोगों की जिन्दगी का यह पहला लक्षण होता है जिसके सहारे वे अपनी चवन्नियां चला लिया करते हैं। इस किस्म के बहुत सारे लोग हैं जिनका काम ही यह रह गया है कि किसी भी प्रकार की कितनी ही अच्छी और सच्ची बात इनसे करो, ये इसमें मिलावट करने से नहीं चूकते।
इस मिलावटी बात को दूसरों के नाम से आगे से आगे परोसते हुए खुद उत्प्रेरक की तरह काम करते हैं और आनंद लिया करते हैं। कलियुग का प्रभाव कहें या धूर्तता भरी मिलावट का स्वाद, ऎसे लोगों की कहीं कोई कमी नहीं है जो बातों में मिलावट के सहारे ही जिन्दा हैं।
इस किस्म के नुगरों को अपनी ही तरह के नुगरे सर्वत्र सहज उपलब्ध हैं जो इनकी ही तरह ताजिन्दगी मिलावट करते हुए मसाला भरते रहते हैं और समाज-जीवन एवं परिवेश में कटुता, प्रदूषण और वैषम्य का जहर भरते रहते हैं।
इन लोगों की चर्चा सामने आते ही संवाद सातत्य की सारी बातें बेमानी साबित होने लगती हैं क्योंकि ऎसे लोगों से किसी भी प्रकार की बातचीत करना अपने आपको विवादित करना या आफत मोल लेना है। कारण यह कि इन स्वेच्छाचारी लोगों को कोई भरोसा नहीं होता, किस समय क्या कुछ मिलावटी बात घोल कर औरों के सामने परोसते रहें, किस तरह के मसालों का प्रयोग करते रहें।
आजकल खूब सारे लोग ऎसे हो गए हैं जिन्हें इन्ही तरह की बातों में आनंद आता है और इसलिए ये ऎसे अवसर उपस्थित करने में माहिर होते हैं जिनसे कि औरों की बातों में अपने-अपने स्वार्थ और कुटिल लक्ष्यों के अनुरूप मसाले भरते हुए आगे से आगे परोसते रहें। बहुत सारे बड़े-बड़े कहे जाने वाले लोग इस तरह के छोटे, हीन और नीच कामों में रमे हुए दिखाई देते हैं।
इस स्थिति में उन लोगों से बातचीत करने से परहेज रखें जिनके बारे में यह प्रचलित हो कि वे लोग किसी भी बात का बतंगड़ बनाने के लिए ही संसार में पैदा हुए हैं। इस प्रकार के लोग घर-परिवार में हो सकते हैं, पड़ोस या अपने क्षेत्र में हो सकते हैं, अपने सहकर्मी या अपने पेशे से संबंधित भी हो सकते हैं।
इन लोगों के लिए किलोमीटर की दूरियाँ कोई मायने नहीं रखती, ये लोग संचार के आधुनिक माध्यमों का इस्तेमाल करते हुए अपनी हीन हरकतों और घृणित करतूतों को साकार करते रहते हैं। भ्रष्टाचार और वायरसों की तरह सभी प्रकार के देश, काल और सीमाओं से परे रहकर ये बतंगड़ों में रमे रहते हैं।
इनके लिए न कोई मर्यादाएं हैं और न कोई सीमा रेखाएं। ये अनुशासनहीन, उन्मुक्त और स्वेच्छाचारी लोग अपने से बड़े और आदरणीय किसी पर भी निशाना साध सकते हैं। इस मामले में इनसे बड़ा, बदमिजाज एवं बदतमीज और कोई नहीं हो सकता।
संस्कारहीनता के वर्तमान दौर में संस्कारहीन लोगों से यह अपेक्षा भी नहीं की जा सकती कि वे औरों का सम्मान करें, यथायोग्य आदर भाव रखें या बड़े-बुजुर्गों के प्रति श्रद्धा दर्शाएं। श्वानों की तरह किसी के भी सामने भौं-भौं कर गुर्राने, काट खाने के लिए लपकने और हिंसक जानवरों की तरह औरों को किसी न किसी प्रकार से पीड़ा पहुंचाने के लिए बदनाम ऎसे लोग सब जगह विद्यमान हैं।
मौजूदा युग में निरापद, शांत, तनावमुक्त और सुकूनदायी जीवन जीने का एकमात्र मूल मंत्र यही है कि हम इन लोगों से किसी भी प्रकार का संवाद त्यागें, इनसे सायास दूरी बनाए रखें और हमेशा इस बात को लेकर सतर्क रहें कि इन मिलावटियों, पाखण्डियों, धूर्तों और बातों के बतंगड़ बनाकर रसपान करने के शौकीनों से किसी भी प्रकार का संबंध या व्यवहार न हो।
ऎसे लोगों के कारण व्यक्तित्व की शुचिता, श्रेष्ठता और प्रतिभाओं से भरा हुआ आभामण्डल फटने लगता है और अच्छे-भले सच्चरित्र, सज्जन और आदर्श जीवन जीने वाले लोगों की जिन्दगी में कालिख या दाग लगने लगते हैं। अपने आनंद में रहना चाहें तो बातों के सहारे जीने वाले उन लोगों से दूर रहें जिनके लिए जिन्दगी टाईमपास और निन्दागान का पर्याय है।
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- डॉ0 दीपक आचार्य
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