(चित्र - रवि टेकाम की कलाकृति) जाने कितने बरस बीत गए, हर साल आता गया आज का यह दिन। और हर साल आज के दिन हम कुछ नया कर गुजरने के संकल्पों क...
(चित्र - रवि टेकाम की कलाकृति)
जाने कितने बरस बीत गए, हर साल आता गया आज का यह दिन। और हर साल आज के दिन हम कुछ नया कर गुजरने के संकल्पों के इर्द-गिर्द घूमते रहे, हर बार सोचा कि अबकि बार जरूर कुछ नया-नया और ऎतिहासिक कर ही डालेंगे। मगर हो कुछ नहीं पाया।
जब से इंसान ने समझदारी पायी है तभी से वह हर बार इसी आशा और विश्वास में सपनों को बुनता आया है। हर बार उसे कोई न कोई प्रेरणा की तिथि नजदीक आकर कुछ करने का याद दिलाती है, हौसला देती है, संकल्प जगाती है और लौट पड़ती है इतिहास बनकर, दुबारा कभी न लौट आने के लिए।
हर साल यही सब होता है। नव वर्ष की देशज और विदेशी परंपराओं के बीच जीने वाले सभी प्रकार के सामाजिक प्राणियों के साथ सदियों से यही सब कुछ होता रहा है।
हर बार कोई न कोई नव वर्ष आता है, पहला-पहला दिन खूब हवा भरने लगता है, ढेरों संकल्पों और स्वप्नों को आकार देने का पैगाम देता है और फिर अगले दिन से फुस्स कर जाता है।
इंसान के रूप में हम वह सब कुछ कर सकने का सामथ्र्य रखते हैं जो कि ईश्वर ने हमारे लिए तय कर रखा है। लेकिन हर विचार और सेाचे हुए काम को आरंभ करने के लिए संकल्प का दृढ़ होना सबसे पहली और अनिवार्य शर्त है।
हर इंसान संकल्प के मामले में अलग-अलग घनत्व और सान्द्रता रखता है। इसके एकाग्रता और लक्ष्य के प्रति सर्वांग समर्पण की भावना जितनी अधिक प्रगाढ़ होती है उनकी संकल्प सिद्धि और कार्यसिद्धि का प्रभाव देखा जा सकता है।
आजकल सोचते-विचारते हम सभी हैं लेकिन हममें से बहुत कम लोग ऎसे होते हैं जो दो-चार दिन के बाद भी लम्बे अर्से तक जोश को बरकरार रख सकें। इस मामले में हम सभी अधिसंख्य लोग इतने प्रमादी हो गए हैं कि हमारा जोश-खरोश दो-चार दिन से अधिक कभी भी स्थायी भाव प्राप्त नहीं कर पाता। हालात हर साल वैसे ही रह जाते हैं।
इस मामले में हमें बीते हुए वर्षों के अनुभवों से सीखने की जरूरत है। अनुभव अच्छे भी हो सकते हैं और बुरे भी। हर प्रकार के अनुभव जीवन निर्माण में किसी न किसी प्रकार से मददगार ही सिद्ध होते हैं। अच्छे अनुभव हमारे प्रत्येक कर्म को पहले से और अधिक बेहतर बनाने में सहायत सिद्ध होते हैं जबकि बुरे अनुभवों से हमें हमारे कर्म में आसन्न चुनौतियों और भावी संकटों या समस्याओं से समय रहते बचते हुए इनका निराकरण करने की सूझ पड़ती है और इसके कारण हमारे कर्म निरापद होते चले जाते हैं।
जो समय बीत गया वह किसी कीमत पर लौट कर आ नहीं सकता। उस काल के अच्छे कर्मों का स्मरण बना रह सकता अथवा खराब कर्मों का पछतावा। जो कर्म अच्छे होते हैं वे दिली सुकून देते हैं और इसलिए हमें चाहिए कि इनका बार-बार स्मरण करें, इनकी श्रेष्ठताओं को याद करें और इनसे आनंदित होते हुए हमारे दूसरे सभी प्रकार के कर्मों में दक्षता एवं सफलता की गंध को समाहित करें।
आज का दिन हमारे लिए बड़े महत्त्व का है। जो लोग अंग्रेजीदाँ नव वर्ष को मानते हैं उनके लिए तो यह किसी उत्सव से कम नहीं है जब वे नए साल में प्रवेश चुके हैं और वह भी कुछ घण्टों पूर्व बीती अद्र्धरात्रि को। अंधकार के बीच पुराने वर्ष र्का विदाई देकर अंधकार की साक्षी में ही नए वर्ष में प्रवेश करने वाले सभी लोगों के लिए यह नव वर्ष का उत्सव आनंद, उमंग और उल्लास की नदियां बहा रहा है।
आँग्ल नव वर्ष मना रहे सभी लोगों के लिए आज का दिन जीवन निर्माण के नए संकल्पों का सफर शुरू करने जा रहा है। इस मामले में अबकि बार के नव वर्ष का महत्व तभी सार्थक है जबकि हम इस वर्ष कुछ नया कर पाएं, कोई नई उपलब्धि अर्जित कर पाएं और किसी नवीन संकल्प को मूर्त रूप दे पाएं।
लेकिन इसके लिए यह जरूरी है कि हम पुराने वर्षों की तरह न बने रहकर अपने संकल्प को दृढ़ रखें। यह संकल्प एक-दो दिन के लिए नहीं बल्कि पूरे साल भर तक हमें याद रहना चाहिए, तभी हम नव वर्ष मनाने के हकदार हैं, नव वर्ष के नाम पर सारी धींगामस्ती और आनंद पाने के पात्र हैं। जो पिछले वर्षों में हमारे आलस्य, प्रमाद और शैथिल्य या उदासीनता से हो गया, छूट गया-लूट गया, उसे भूल जाएं।
जो नहीं हो सका, उसकी चिन्ता या स्मरण छोड़ें। बीति ताहि बिसारिये आगे की सुध लेय। जो हो गया वो हो गया। होना ही था, यह मान लें। अब सब कुछ छोड़ कर जीवन लक्ष्य का संधान करें। आलसी, प्रमादी और पराश्रित स्वभाव को तिलांजलि दें, अपने आपको जानें, संकल्पों को दृढ़ बनाएं और यह तय कर लें कि आज से शुरू हो रहा है नया वर्ष हमारी जिन्दगी के लिए भी बहुत कुछ नया-नया करने वाला साबित हो, हमारी क्षमताओं और सामथ्र्य को आकार देने वाला सिद्ध हो तथा हमारे जीवन के लिए हर प्रकार से उत्तरोत्तर प्रगतिगामी वर्ष के रूप में सामने आए।
इस दृष्टि से आज का दिन विशेष है। लीजिए संकल्प कुछ करने का। अपने लिए, समाज के लिए, क्षेत्र और देश के लिए जीने का यही वक्त है। यही समय है जो हमें पुकार रहा है। अब नहीं तो फिर कब हम समाज और देश के काम आएंगे, अपने आपके व्यक्तित्व को कैसे निखारेंगे।
समय और संकल्प दोनों हमारे हाथ में हैं। पूर्वजों के शौर्य-पराक्रम और दृढ़ प्रतिज्ञ व्यक्तित्व का स्मरण करें और आ ही जाएं कर्मयोग के मैदान में। जितना कुछ हमसे बन सके, पूरे मन से करें, जीवन और जगत को सफल बनाएं और ऎसा कार्य करें कि इतिहास में अमिट यादगार बनकर सदियों तक को प्रेरणा दे सकें, सदियों के लिए जी सकें।
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- डॉ0 दीपक आचार्य
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