सुशील ‘साहिल’ की ग़ज़ल न दीपक न है चांदनी पर भरोसा मैं करके चला हूं उसी पर भरोसा चलो पत्थरों को भी अब आजमाएं बहुत कर लिया आदमी पर भरोस...
सुशील ‘साहिल’ की ग़ज़ल
न दीपक न है चांदनी पर भरोसा
मैं करके चला हूं उसी पर भरोसा
चलो पत्थरों को भी अब आजमाएं
बहुत कर लिया आदमी पर भरोसा
वो करता रहा इसलिए जुल्म मुझ पर
उसे था मेरी खामुशी पर भरोसा
भरोसे के काबिल तो बस मौत ही है
न कर बेवफा जिन्दगी पर भरोसा
मैं खुद पर भरोसा नहीं रख सका जब
तो करने लगा हर किसी पर भरोसा
अंधेरा हुआ तब उसे नींद आई
जिसे था बहुत रौशनी पर भरोसा
तकब्बुर से लबरेज थी तेरी महफिल
मैं करके गया सादगी पर भरोसा
संपर्कः सी. 11/22, ऊर्जानगर कालोनी, महागामा, जिला गोड्डा, झारखण्ड-814154
मो. 9955379103
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दो गजलें : परवीन शाकिरा
अब भला छोड़ के घर क्या करते
शाम के वक्त सफर क्या करते
तेरी मसरूफियतें1 जानते हैं
अपने आने की खबर क्या करते
जब सितारे ही नहीं मिल पाये
ले के हम शम्स-ओ-कमर2 क्या करते
वो मुसाफिर ही खुली धूप का था
साये फैला के शजर क्या करते
खाक ही अव्वल-ओ-आखिर3 ठहरी
करके जर्रे को गुहर4 क्या करते
राय पहले से बना ली तूने
दिल में अब हम तिरे घर क्या करते
1. व्यस्तताएं 2. सूरज और चांद 3. प्रथम और अंतिम 4. मोती
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शायद उसने मुझको तनहा देख लिया है
दुख ने मेरे घर का रस्ता देख लिया है
अपने आप से आंख चुराये फिरती हूं मैं
आईने में किसका चेहरा देख लिया है
उसने मुझे दरअस्ल कभी चाहा ही नहीं था
खुद को देकर ये भी धोका देख लिया है
उससे मिलते वक्त का रोना कुछ फितरी1 था
उससे बिछड़ जाने का नतीजा देख लिया है
रुखसत करने के आदाब2 निभाने ही थे
बंद आंखों से उसने जाता देख लिया है.
1. प्राकृतिक 2. शिष्टाचार
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राजेश माहेश्वरी
भ्रूण हत्या
उसकी सजल करुणामयी आंखों से
टपके दो आंसू
हमारी सभ्यता, संस्कृति व संस्कारों पर
प्रश्नचिह!न लगा रहे हैं,
देश में कन्या भ्रूण हत्या
जघन्य अपराध एवं
अमानवीयता की पराकाष्ठा है
सभी धमरें में है यह महापाप
समय बदल रहा है
अपनी सोच और पुरातनपंथी
विचारधाराओं में
परिवर्तन लाया जाए
चिंतन, मनन और मंथन द्वारा
सकारात्मक सोच के अमृत को
आत्मसात किया जाए
लक्ष्मीजी की करते हो पूजा पर
कोख में पल रही लक्ष्मी का
करते हो तिरस्कार
उसे जन्म के अधिकार से
वंचित मत करो
और घर आई लक्ष्मी को
प्रसन्नता से स्वीकार करो
ऐसा जघन्य पाप किया तो
लक्ष्मी के साथ-साथ
सरस्वती को भी खो बैठोगे
अंधेरे के गर्त में गिरकर
सर्वस्व नष्ट कर बैठोगे.
2. अनुभव
अनुभव
अनमोल हैं
इनमें छुपे हैं
सफलता के सूत्र
इनमें हैं
अगली पीढ़ी के लिये
नया जीवन.
बुजुगरें के अनुभव
और
नई पीढ़ी की रचनात्मकता से
रखना है
देश के विकास की नींव.
इस पर बनी इमारत
होगी इतनी मजबूत
कि उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाएंगे
ठण्ड-गर्मी-बरसात
आंधी या भूकम्प.
अनुभवों को अतीत समझकर
मत करो तिरस्कृत
ये अनमोल हैं
इन्हें अंगीकार करो
इनसे मिलेगी
राष्ट्र को नई दिशा
समाज को सुखमय जीवन.
संपर्कः 106 नयागांव, रामपुर, जबलपुर (म.प्र.)
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राजा चौरसिया
हमारे पिताजी बहुत अच्छे थे
इस समय
जब देखो तब
हमें
अपने पिताजी की
याद बहुत सताती है
उनकी कमी
कही नहीं
और सही नहीं जाती है
क्योंकि
वे बुढ़ापे में भी
सुबह से शाम तक
कई घरू काम निपटाते थे
रोजाना पानी भरने
तथा झाडू लगाने के बाद
पोछा भी लगाते थे
सबके प्रति
आत्मीयता झलकाते थे
भले ही हम
उनके लिए समय
नहीं निकाल पाते थे
पूर्ण विश्राम के दिनों में भी
हाथ-पांव खूब चलाते थे
प्रत्येक आगत अतिथि के
स्वागत का भार
उन पर ही रहता था
वे सबकुछ सह कर भी
कहते नहीं थे कुछ भी
अपनी आह और कराह को
दबाए रखने में पूर्ण सफल थे
वे हमसे अपनी सेवा कराए बगैर
हम सबकी सेवा करते-करते
अचानक कूच कर गए
इस असार संसार से
उनकी चिर विदाई
हमारे पूरे परिवार को रुलाती है
हमारे पिता जी बहुत अच्छे थे
उन्होंने कभी किसी से नहीं मांगा
एक गिलास पानी तक
ऐसे पिता जी की याद
हमें साल दो साल तो
आएगी जरूर
ऐसा हमें विश्वास है.
संपर्कः उमरियापान,
जिला-कटनी (म.प्र.)-483332
मोः 9685294675
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रामचन्द्र गहलोत ‘अम्बर’
पानी है अनमोल
तुम जानते हो,
समझ सकते हो,
मेरा महत्व
मैं पानी हूं
मेरे स्वरूप को जानेंगे
पहचानेंगे मेरी मर्यादा
मेरे कारण हंसते बाजार
कर्ज से मुक्त होता है किसान
संवारता है अपने परिश्रम की पूंजी
समझता है,
मेरी पीड़ा को,
रोजेदार जानता है
किसान समझता है
पशु, पक्षी, जीव-जन्तु
नन्हें पौधों नवांकुर समझते हैं
मैं पूछता हूं
क्या मेरी मर्यादा को एवं
मुझे बचा सकोगे
मैं पानी हूं.
मेरे बिना जीवन अधूरा है.
इसलिए पानी बचाना है.
पानी इन्सान का कहां रहा
लाज, शर्म सब छोड़ दी इन्सान ने
मैं पानी हूं मुझे बचाना है
पानी है अनमोल.......
इसे बचाना है.
संपर्कः 127/1 पुरानी कोर्ट परिसर (दरगाह के पीछे)
श्रीमालीवास रतलाम-457001
मो. 9630726616
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गजल
किशन स्वरूप
भले ही बे-जुबां लेकिन जरूर अपना बयां देगी.
जरूरत आदमी को आदमी रहने कहां देगी.
हजारों कोशिशें नाकाम यूं ही तो नहीं होतीं,
खुशी हो या कि गम हो, तर्बियत खुद को जुबां देगी.
सियासत का कोई रिश्ता कभी पक्का नहीं होता,
करारों, बेकरारों की जमीं को आसमां देगी.
यहां कुछ लोग खुद को इस कदर मशहूद करते हैं,
कमी उनकी न जाने वक्त को ठहरा कहां देगी.
हमीं ने वक्त से लड़ना सिखाया है जमाने को,
हमारी जिन्दगी अब और कितने इम्तहां देगी.
कभी लहजा असर करता नहीं है बात कहने का,
इबारत में लिखा पढ़िए, बुलन्दी का गुमां देगी.
संपर्कः 108/3, मंगल पांडेय नगर
मेरठ-250004,
मो. 9837003216
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केदारनाथ सविता
1. रोटी के लिए
भौरों के गुनगुनाने पर
कलियों को हंसते देखा है.
अपनों को अपना कहने पर
गैरों को लड़ते देखा है.
गरीबी-अमीरी का खेल
है अजब यहां पर आज.
एक रोटी के लिए कल
इन्सान को बिकते देखा है.
2. भीतर की आग
तुम्हारी यह मुस्कुराहट
तुम्हारे दर्द को बता रही है,
तुमने खायी हैं ठोकरें,
ये धीमी चाल बता रही है
भ्रमित मत होना कभी
लहरों की दहाड़ देख कर.
समुद्र के भीतर भी कभी
न कभी एक आग रही है.
3. उनकी याद का नशा
ऐसा कोई करो उपाय
बेचैन हृदय को चैन आ जाय,
न मुझे चिंता किसी की
न कोई मेरे लिये तड़पे अब
करो कुछ ऐसा निश-दिन का
उनका नशा हिरन हो जाय.
4. अच्छा लगता है
सूर्योदय की किरणों का
आना अच्छा लगता है,
अंधेरे का उजाले में बदलना
भी अच्छा लगता है
रीता जीवन, रीता मग,
रीता नभ है मेरा
मगर उनका पनघट
पर आना अच्छा लगता है.
संपर्कः पुलिस चौकी रोड, लालडिग्गी
सिंहगढ़ गली (चिकाने टोला)
मीरजापुर-231001 (उ.प्र.)
मोः 9935685068
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