शौकत हुसैन शोरो (जन्मः 4 जुलाई 1947, तालुका सजावल, जिला ठट्टो) सचल सरमस्त आर्ट्स कॉलेज से बी.ए. और सिंध यूनिवर्सिटी से एम.ए. किया. अपनी क...
शौकत हुसैन शोरो
(जन्मः 4 जुलाई 1947, तालुका सजावल, जिला ठट्टो)
सचल सरमस्त आर्ट्स कॉलेज से बी.ए. और सिंध यूनिवर्सिटी से एम.ए. किया. अपनी कार्ययात्रा का प्रारंभ सिंधी अदबी बोर्ड, जामशोरो से प्रकाशित रसाले ‘गुल-फुल’ के संपादक के रूप में किया. बाद में पाकिस्तान टी.वी. सेंटर, कराची में सहायक निर्माता रहे. इस समय सिंध यूनिवर्सिटी जामशोरो में छात्र पाठ्य सहगामी क्रियाओं के निदेशक के पद पर कार्यरत हैं. उनकी कहानियों के संग्रह ‘गूंगी धरती, बहरा आकाश’ और ‘आंखों में टंगे सपने’, ‘रात का रंग’ सिंधी में और ‘गुम हुई परछाई’ हिंदी में प्रकाशित हैं. सिंधी व उर्दू में कई नाटकों का प्रसारण हो चुका है. उनमें खास हैं-दौलत, बाख, धुब्बण एवं सुनीति वगैरह.
होंठों पर उड़ती तितली
शौकत हुसैन शोरो
अब्बास अली इतने दिन से बिस्तर पर लेटे-लेटे बेजार हो गया था. अब नींद न होने पर भी वह आंखें मूंदकर पड़ा रहता था. आंखें खोलते ही वही एक-सा मंजर देखकर उसे भय लगने लगता और चाहता था कि वहां से उठकर भागे और बाहर निकले. पर बाहर भाग निकलने की शक्ति अब उसमें नहीं थी. वह जैसे उस कमरे का कैदी बनकर रह गया था. इसमें उसकी मर्जी का कोई हस्तक्षेप नहीं था. बीमारी के कारण वह बाहर निकलने और घूमने-फिरने जैसा नहीं रहा था. अस्पताल में रहने से भी कोई फायदा नहीं था. डाक्टर उसे जवाब दे चुके थे.
‘क्या खाओगे? दलिया बनाऊं?’
कजबानो की आवाज पर उसने आंखें खोलकर देखा. उसे पता ही नहीं चला कि वह कब अंदर आई.
‘नहीं, मुझे कुछ अच्छा नहीं लगता.’ उसने मंद स्वर में कहा.
‘नहीं खाओगे तो और कमजोर हो जाओगे.’ कजबानो ने चिंतित स्वर में कहा.
‘अब खाने और न खाने से कौन-सा अंतर पड़ेगा!’ अब्बास के खुश्क होंठों पर मुस्कान आ गई.
‘कजो बात सुन, कमजोरी न खाने की वजह से नहीं है और न ही कुछ खाने से खत्म हो जाएगी.’
‘तब भी, पेट में कुछ तो हो, मैं दलिया बना लेती हूं. दो-चार चम्मच खा लेना.’ कजबानो ने जोर भरते हुए कहा.
‘तुम्हारी मर्जी, कजो. बाकी मेरे दाने-पानी के दिन अब पूरे हुए हैं. सांस की डोर में खिंचाव बढ़ रहा है. किसी भी वक्त वह टूट जाए.’
कजबानो के हृदय को आघात पहुंचा.
‘अल्ला, यूं तो न कहो. मेरा तो दम निकला जा रहा है. फिर हमारा क्या होगा?’ कजबानो का मन भर आया. वह अब्बास अली के सामने रोकर उसे और निरुत्साहित नहीं करना चाहती थी. उठकर तेज कदमों से वह कमरे के बाहर निकल गई.
पहले जब कभी भी कजबानो कहती थी-‘फिर हमारा क्या होगा?’ तो जवाब में वह कहता-‘अल्लाह मालिक है, पगली.’
पर फिर उसने जवाब देना बंद कर दिया था. वह जानता था कि उसके शब्द कजबानो को ढांढ़स बंधा पाने में असमर्थ थे. अब्बास अली से अब ज्यादा बातचीत भी न हो पाती थी. हालांकि उसे इस बात का अहसास था कि कजबानो की परेशानी निरर्थक न थी. वह घर में अकेला ही कमाने वाला था. उसके तीन बेटे और एक बेटी अभी बच्चे थे, तत्पश्चात कोई संपत्ति भी न थी.
अब्बास अली के पिता, न्याज अली, प्राइवेट स्कूल के हेडमास्टर थे. चार बेटियों के बाद अब्बास अली उनका इकलौता बेटा था. न्याज अली की ख्वाहिश तो यही रही कि उसका बेटा डॉक्टर या इंजीनियर बने. अब्बास अली ने अभी इंटर पास की ही थी कि न्याज अली सेवानिवृत्त हो गए. अब्बास अली को इंजीनियरिंग यूनिवर्सिटी में दाखिला न मिल पाया. वैसे भी अब उसे आगे पढ़ाने की हिम्मत न्याज अली में न रही. अब्बास अली ने नौकरी की तलाश के दौरान प्राइवेट तौर पर बी.ए. पास कर लिया था. न्याज अली का एक पुराना शागिर्द अब चीफ इंजीनियर बन गया था. न्याज अली ने उससे अनुरोध किया, मिन्नतें कीं. आखिर अब्बास अली को इंजीनियरिंग विभाग में क्लर्क की नौकरी मिल ही गई. उसे डिस्पैच क्लर्क की टेबल पर निर्धारित किया गया. सरकारी हिसाब-किताब वाले खातों की रजिस्टर में प्रविष्टि करके, नंबर लगाकर, डाक में भेजने के सिवाय उसके पास और कोई काम न था. इस बीच उसने एम.ए. भी कर लिया. फिर पता नहीं ऑफिस निरीक्षक काइमदीन को क्या सूझी, उसने साहब को कहकर अब्बास अली को ठेकेदार के बिल पास कराने वाली टेबल दिलवा दी. अब पगार के सिवाय उसकी ऊपर की कमाई भी शुरू हो गई.
अब्बास अली आंखें मूंदकर काफी थक गया था. उसमें कुछ दर्द का अहसास हुआ. आंखें खोलकर कमरे में देखा, जिसकी हर इक चीज अस्त-व्यस्त अवस्था में बिखरी पड़ी थी. एक कोने में उसके और बच्चों के कपड़े पड़े थे तो कहीं बच्चों के स्कूल के बैग और...मैले...उनके जूते पड़े थे. कोई चीज ढंग से रखी हुई न थी.
‘अगर फाइजा से शादी हुई होती तो इस घर का नक्शा ही और होता’ अचानक अब्बास अली को ख्याल आया. इतने सालों के बाद उसे फाइजा की याद आई थी. वह अब्बास अली के निरीक्षक काइमदीन की बेटी थी. फाइजा किसी अंग्रेजी मीडियम स्कूल में पढ़ी थी. बाद में उसने यूनिवर्सिटी से एम.एस.सी. की थी. अभी हाल ही में उसे गर्ल्स कॉलेज में लेक्चररशिप मिली थी. वह अभी यूनिवर्सिटी में पढ़ रही थी तो काइमदीन ने उसके लिए रिश्ते तलाशने शुरू कर दिए, पर कहीं बात नहीं बनी. एक दिन ऑफिस में बैठे-बैठे उसे अब्बास अली का ख्याल आया. लड़का अच्छा और सभ्य था. अब्बास अली को पहले तो हैरत हुई कि काइमदीन अचानक उस पर क्यों इतना मेहरबान हुआ कि उसे आमदनी वाली टेबल दिलवा दी. उसके घर से आए टिफिन से जबरदस्ती उसे साथ खाना खिलाता था फिर वह उसे अपने घर भी ले गया और घर के सभी सदस्यों से मुलाकात करवाई.
‘उस पहली मुलाकात में काइमदीन की घरवाली ने और फाइमा ने जैसे मेरा इंटरव्यू लिया हो. पर वह इंटरव्यू न होकर एक आड़ी-टेढ़ी पूछताछ रही. मेरे मां-बाप, घर के अन्य सदस्यों की बाबत, खानदानी धन-संपत्ति और जायदाद के बारे में, जो थी ही नहीं.’ अब्बास अली को याद आया कि ये सवाल अभी पूरे ही नहीं हुए थे कि अचानक फाइजा ने पूछा था-
‘आप यूनिवर्सिटी में कब पढ़े थे?’
‘मैं यूनिवर्सिटी में पढ़ने नहीं गया.’ अब्बास अली ने जवाब दिया.’ मैंने इंटर के बाद सभी परीक्षाएं एक्सर्ट्नल तौर पर दी हैं.’
फाइजा ने अपनी मां की तरफ देखा. दोनों कुछ देर चुप रहीं. अब्बास अली अब हताश हो रहा था कि उससे वे सवाल क्यों पूछे जा रहे थे. उसने इजाजत लेकर उठने की कोशिश की तो काइमदीन और उनकी पत्नी बैठने की गुजारिश करने लगी.
‘नहीं, ऐसे कैसे होगा? पहली बार हमारे घर आए हो, खाना खाए बिना कैसे चले जाओगे?’
अब्बास अली को मजबूरन बैठना पड़ा था. वह काइमदीन को नाराज करना नहीं चाहता था. फाइजा उठकर रसोईघर में चली गई और काइमदीन भी बाहर से कुछ लाने के लिए चला गया. उसकी पत्नी अब्बास अली के पास बैठी रही.
‘देखो बेटा, दिल में न करना कि हमने तुमसे व्यक्तिगत सवाल पूछे. हकीकत में काइम साहब तुम्हें बहुत पसंद करते हैं. वह फाइजा का रिश्ता तुमसे जोड़ना चाहते हैं. हमें भी तुम अच्छे लगे हो.’
अब्बास अली का दिमाग चकरा गया. उसकी कनपटियां लाल हो गईं.
‘अपनी जिंदगी के भविष्य का फैसला तुम्हें करना है. तुम भले ही अपने पिता से सलाह-मशवरा कर लो, पर एक बात ध्यान में रखना. ऐसा रिश्ता किस्मत वालों को मिलता है. फाइमा न सिर्फ पढ़ी-लिखी है, बल्कि अच्छे ओहदे पर भी है. वह सुघड़ है, घर का हर कामकाज जानती है कि घर को कैसे बनाया जाए, सजाया जाए.’
अब्बास अली ने एक लंबी सांस ली और बिस्तर पर करवट बदली. मैं उसे क्या सुनाता कि मेरी किस्मत पहले ही लिखी जा चुकी है. मेरी मौसेरी बहन कजबानो के साथ मेरी मंगनी हो चुकी है. यह बात मुझे उस वक्त ही तुम्हें बता देनी चाहिए थी, पर मुझे समझ नहीं आ रहा था क्या करूं!’
अब्बास अली को याद आया कि जब खाना दिया गया था, तब उसकी हलक से एक निवाला भी नहीं उतर रहा था. खाना न खाना भी ठीक नहीं लग रहा था. जैसे-तैसे थोड़ा बहुत खा लिया. औरों ने समझा कि वह खाने में हिजाब कर रहा है.
‘बेटा!’ अपना घर समझो, फाइजा ने सारा खाना अपने हाथों से बनाया है.’ काइमदीन की पत्नी ने कहा.
अब्बास अली ने मुस्कराकर फाइजा की ओर देखा और दाद देते हुए कहा-‘वाकई बहुत स्वादिष्ट बना है.’
सबने खाना खा लिया, तो कुछ देर बाद अब्बास ने उनसे जाने की इजाजत ली. बाहर आकर उसने ठंडी हवा में एक लंबी सांस ली. जैसे कैदखाने से बाहर निकला था. उसने पहली बार फाइमा की ओर ध्यान दिया. रंग में सांवली, कद भी ठीक-ठाक, पर उसकी शक्ल-सूरत व जिस्म में एक दिलकशी थी. फिर कजबानो का क्या होगा? बाबा और अम्मा कभी नहीं मानेंगे. रास्ते चलते यहीं ख्याल उसके जहन में आते रहे. अपने कमरे में आकर उसे याद आया कि वह अपना मोबाइल फोन काइमदीन के घर भूल आया था. रात के दस बज रहे थे. उस वक्त दोबारा उनके पास जाना उसे ठीक नहीं लगा, वह भी फोन की खातिर!
दूसरे दिन सुबह काइमदीन ऑफिस में उसका फोन ले आया. उसी दिन शाम के वक्त उसके फोन पर किसी अनजान नंबर से एसएमएस आने शुरू हो गए. शुरुआत शेर भेजने से हुई. कुछ दिनों बाद एस.एम.एस. आया-‘शायद आपको शायरी से दिलचस्पी नहीं.’
अब्बास अली ने जवाब लिखा. ‘आपने कैसे जाना कि मुझे शायरी से दिलचस्पी नहीं?’
जवाब आया-‘आपकी तरफ से कोई भी जवाब नहीं मिला, इसलिए.’
अब्बास अली ने लिखा-‘मुझे पता नहीं है कि आप कौन हैं, इसलिए.’
जवाब आया, ‘आप अपने दिल से पूछते तो पता चल जाता.’
अब्बास अली सोच में पड़ गया. तभी उसके जह्न में जैसे बिजली कौंधी.’ यह फाइजा हो सकती है.
उसने एस.एम.एस. में लिखा, ‘दिल ने तो मुझे बताया है, पर फिर भी पुष्टि कर लेना जरूरी है.’
जवाब आया, ‘मतलब आप अपने दिल की बात को इतनी अहमियत नहीं देते और न ही उसके कहे अनुसार करते हैं. लगता है, आपके पास बहुत सारी लड़कियों के एस.एम.एस. आते हैं. तभी तो पहचान नहीं पाए कि मैं कौन हूं?’
अब्बास अली परेशान हो गया कि इस बात का क्या जवाब दे. अपनी बातों के जाल में वह खुद फंस गया. तभी एक और एस.एम.एस. आया-‘क्या सोच रहे हैं? जवाब देने में परेशानी है क्या?’
अब्बास अली ने लिखा, ‘मेरे पास इससे पहले कभी किसी लड़की का एस.एम.एस. नहीं आया है. दूसरी बात कि मेरा दिल पत्थर का बना हुआ नहीं है. और लोगों की तरह कुदरती दिल है.
जवाब आया, ‘अच्छा मान लिया. आपका दिल क्या कहता है कि मैं कौन हूं?’
अब्बास अली ने फकत इतना लिखा, ‘फाइजा’
जवाब आया, ‘अरे वाह क्या अंदाज लगाया है.’
अब्बास अली को हंसी आ गई.
फिर ऑफिस में, घर में एस.एम.एस. का कभी न खत्म होने वाला सिलसिला शुरू हो गया. मोबाइल फोन पर बात भी होती थी, पर एस.एम.एस. रात को दो-तीन बजे तक चलते रहते थे. कभी-कभी अब्बास अली का दिल यह सोचकर मायूस हो जाता था कि आखिर एक दिन यह सिलसिला खत्म होने वाला है. फाइजा को जब इस बात का पता चलेगा, तब क्या होगा? ‘मेरी सारी उम्र उन तीन लफ्जों की चक्की में...’ अब्बास अली ने एक लंबी सांस ली और आंखें मूंद लीं.
बाद में जब वह गांव गया, तब उसने घर में यह बात छेड़ी तो घर में कोहराम मच गया.
‘मैं बहन को क्या मुंह दिखाऊंगी?’ अब्बास अली की मां ने रोते हुए कहा. खून के रिश्ते टूट जाएंगे अब्बास.’
‘हम रिश्ते-नाते, बिरादरी सबसे कट के रह जाएंगे. तुम तो जाकर शहर बस लोगे, पर यह सोचो कि तुम्हारी चार बहनों का क्या होगा? कौन हमसे नाता जोड़ेगा?’ न्याज अली की आवाज में परेशानी के साथ गुस्सा भी था.
अब्बास अली ने बड़ी मुश्किल के साथ दोनों को समझाया, ‘मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं है. मैंने तो सिर्फ आपको हकीकत बताई है. बाकी होगा वही जो आप चाहेंगे.’
अब उसके सामने यह दुश्वारी थी कि काइमदीन से यह बात कैसे करे. वह उन्हें बहुत देर तक अंधेरे में रखना नहीं चाहता था. आखिर दिल थामकर सारी सच्चाई काइमदीन के सामने रखी, जिसने उसकी मजबूरी को समझते हुए सिर्फ इतना कहा, ‘मैंने तेरे भले के लिए सोचा कि तेरा भविष्य बन जाएगा. पर खैर उस दिन के बाद अब्बास अली के मोबाइल फोन पर एस.एम.एस. किए पर जवाब नहीं आया. उसने फाइमा से बात करनी चाही, पर हिम्मत जुटा नहीं पाया.
‘फाइमा से शादी करता तो शायद हालात ऐसे न होते, जैसे अब हैं. अब्बास अली ने सोचा, ‘अब जब सारा किस्सा ही खत्म होने वाला है, तो उन बातों को याद करने का क्या फायदा?’
अब्बास अली को कुछ देर पहले काजबानो की वही बात याद आई. ‘फिर हमारा क्या होगा?’
खुद उसके लिए भी मौत से ज्यादा मौत मार सवाल यह था कि बाद में क्या होगा? उसे डॉक्टर के चेहरे पर उभरे हाव-भाव अब तक याद हैं, जब उसने जांच की रिपोर्ट देखी थी. डॉक्टर उसे सिर्फ देखता रहा. तब अब्बास अली ने फीकी मुस्कराहट के साथ पूछा था-‘मुझे पता है डॉक्टर साहब, मेरी रिपोर्ट अच्छी नहीं आई है.’
‘लीवर का आधा भाग कैंसर की वजह से क्षतिग्रस्त है. ‘डॉक्टर ने कहा, ‘उसका इलाज फकत लीवर ट्रांसप्लांट से होगा, जो यहां नहीं होता. उसके लिए सिंगापुर या भारत जाना पड़ेगा. सिंगापुर की तुलना में भारत फिर भी सस्ता है.’
‘कितना खर्च होगा, डॉक्टर साहब?’ अब्बास अली ने पूछा था.
‘लगभग साठ लाख रुपये.’ डाक्टर ने जवाब दिया.
‘साठ लाख.’ उसके मुंह से चीख निकल गई-कजबानो ने जब यह बात सुनी तो वह भी दंग रह गई. अब्बास अली ने नौकरी करके जो भी कमाया, वह उसकी चार बहनों की शादियों में खर्र्च हो गया. उसने कासिमाबाद में एक फ्लैट बुक करवाया था, जिसमें अब वह बच्चों के साथ रह रहा है.
‘अपने पास और तो कोई दौलत नहीं है, सिर्फ घर है, वही बेच...’ कजबानो ने सोचते हुए कहा.
‘पागल हो गई हो क्या? बच्चों के लिए यह घर बनाया है वह बेच दूं.’ अब्बास अली ने गुस्से से कहा.
‘पर जिंदगी से ज्यादा तो कुछ नहीं है. हमारी छत्रछाया सब तुम हो. तुम सलामत रहोगे तो घर फिर बन जाएगा.’
‘वह तो है.’ अब्बास अली सोच में पड़ गया.
‘पर कजो, साठ लाख कोई छोटी रकम तो नहीं. फ्लैट बेचने से इतने पैसे तो नहीं मिलने वाले.’
‘मेरे कुछ जेवर हैं. तुम पता तो लगाओ कि इस घर की कितनी कीमत मिलेगी.’ कजबानो ने बात पर जोर देते हुए कहा.
अब्बास अली ने प्रोपर्टी डीलर के यहां चक्कर लगाए, सबको इस बात का अहसास तो था कि जल्दबाजी में घर बेचने से ज्यादा से ज्यादा पच्चीस लाख मिलने वाले थे. ऐसे ही छह-सात लाख जेवरों से मिलते. बाकी जरूरत के और पैसों के मिलने की संभावना और कहीं से बहुत कम थी.
यहां उसकी हालत और बिगड़ती रही. अस्पताल से आखिर डिस्चार्ज होकर वह घर आकर बिस्तर में दाखिल हो गया.
‘अब बाकी कुछ महीने, कुछ हफ्ते, कुछ दिन जाकर बचे हैं.’ अब्बास अली को ख्याल आया. ‘मैं नहीं रहूंगा तब मेरे बच्चों का क्या होगा? बाबा और अम्मा भी गुजर गए. बहनें अपने घरों में बसी हुई हैं. कजो घर की व्यवस्था को अकेली कैसे संभाल पाएगी? बच्चों की खैर-खबर कौन लेगा? पीछे कोई सहारा भी तो नहीं. बेटे तो फिर भी धक्के खाकर जवान हो जाएंगे, शायद वे पढ़ न पाएं. क्या पता घुमक्कड़ व आवारा न बन जाएं...! पर फिर भी मर्द हैं. जिंदगी का सामना कर ही लेंगे. आगे उनकी किस्मत! बेटी एक है, पर उसका क्या होगा?’
अब्बास अली के मन में उथल-पुथल मची थी. उसे लगा कि कमरे में घुटन बढ़ गई है या शायद वह उसके मन में थी.
‘बीमारी ने धीरे-धीरे समस्त शरीर को व्यथित कर दिया था, जो सूखकर एक पिंजर-मात्र रह गया है. यह कितनी पीड़ादायक स्थिति है. आदमी के लिए जब वह जानता हो कि वह मौत की ओर पग-पग बढ़ रहा है या मौत धीमी चाल से उसकी ओर चली आ रही है. कितनी यंत्रणा देने वाली स्थिति है और आने वाले कल का ख्याल, बैचेनी, व्याकुलता उफ यह मौत से ज्यादा मौतमार है.’
अब्बास अली आंखें मूंदकर लंबी-लंबी सांसें लेकर खुद को सामान्य करने की कोशिश करने लगा. तभी उसे ख्याल आया-‘रास्ते पर अचानक हादसा हो जाता और उसमें मर जाता या कहीं धमाके के वक्त मैं वहां हाजिर होता और मेरे जिस्म के टुकड़े-टुकड़े हवाओं में बिखरकर कहीं दूर पड़ते तो? सब-कुछ अचानक खत्म हो जाता. न चिंता, न बेचैनी, न परेशानियों का अहसास. किसी के मरने से दुनिया खत्म नहीं हो जाती. मैं न रहूंगा, तब भी दुनिया चलती रहेगी. बाद में क्या होगा, यह चिंता निरर्थक है. जो जीवित रहेंगे, वे जीने की राह ढूंढ़ ही लेंगे. जिंदगी अपना रास्ता खुद बना लेती है. अब्बास अली को लगा कि उसके जेहन से जैसे भार कम हो गया है, पर उसने खुद को बेहद थका हुआ महसूस किया-जैसे वह लंबी पैदल यात्रा कर आया हो. वह आराम करना चाहता था. अब उसकी आंखें स्वतः बंद हो गईं.
कजबानो दलिये का प्याला लिए कमरे में दाखिल हुई तो वह पथरा-सी गई. एक वेदनामय चीख कमरे में गूंज उठी. अब्बास अली बिल्कुल सीधा लेटा था. एक खूबसूरत रंगीन परोंवाली तितली उसके अधखुले होंठों के आसपास थिरक रही थी. अब्बास अली के होंठों पर न्यारी मुस्कान थी. कजबानो को हैरत हुई कि वह तितली कमरे में आई कहां से? उसे लगा कि अब्बास अली हमेशा की तरह आंखें मूंदे जाग रहा है. उसने आवाज देते पूछा, ‘जाग रहे हो?’ पर अब्बास अली ने कोई उत्तर नहीं दिया. पहले कजबानो को ख्याल आया कि अब्बास अली के होंठों के पास उड़ती तितली को हटाकर दूर कर दे. पर फिर उसने यह विचार तज दिया. तितली अब्बास अली के होंठों के पास उड़ती अच्छी लग रही थी. कजबानो के होंठों पर भी एक अदृश्य मुस्कान थिरक गई.
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