सिं ध में जुबानी तौर पर कहानियों और किस्सों की परंपरा प्राचीन समय से जारी है और पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती आ रही है. सिंधी भाषा क्लासिकल शायरी मे...
सिंध में जुबानी तौर पर कहानियों और किस्सों की परंपरा प्राचीन समय से जारी है और पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती आ रही है. सिंधी भाषा क्लासिकल शायरी में समृद्ध है, पर गद्य लिखने की परंपरा बहुत देर से आरंभ हुई. सिंध हिंदुस्तान के छोटे खंड में एक स्वतंत्र देश रहा है, जिसे अंग्रेजों ने 1843 ई. में फतह किया. अंग्रेजी सरकार ने बाद में सिंध को मुंबई प्रेसिडेंसी में शामिल किया. सिंध के कमिश्नर सर बारटिल फ्रेअर थे, जो बाद में मुंबई प्रेसिडेंसी के गवर्नर नियुक्त हुए.
उनकी निजी दिलचस्पी के कारण सिंध में शिक्षा की शुरुआत हुई. इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए सर बारटिल फ्रेयर की कोशिशों से 1853 ई. में सिंधी लिपि तैयार हुई, जो आगे चलकर अरबी-सिंधी लिपि कहलाई जाने लगी. लिपि के आगमन से सिंध में छपाई के लिए प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना हुई. सिंधी जबान में पाठ्य-पुस्तकों के अतिरिक्त भिन्न-भिन्न विषयों पर भी किताबें लिखी जाने लगीं और छपने लगीं.
यूरोप और अमेरिका में लिखी मिनी कहानियां उस समय तक हिंदुस्तान की अलग-अलग भाषाओं में अनुवाद के माध्यम से पहुंच चुकी थीं. लघु कहानी की उस नई विधा को हिंदुस्तान की मुख्य भाषाओं के लेखकों ने भी अपनाया. सिंधी भाषा में मिनी कहानी का प्रारंभ अंग्रेजी, हिंदी, उर्दू और बंगाली भाषाओं में लिखी कहानियों के अनुवाद से हुआ. सिंधी भाषा में पहली मौलिक कहानी श्हुर मखीअ जाश् लालचंद अमर दनोमल ने 1914 ई. में लिखी. अंग्रेजी साम्राज्य के खिलाफ हुरों की बगावत सिंध के इतिहास का एक अहम हिस्सा है. लालचंद अमर की कहानी श्हुर मखीअ जाश् इतिहास के परिप्रेक्ष्य में लिखी गई है.
मौलिक सिंधी कहानियों का पहला संग्रह ‘चमड़ा पोश की कहानियां है.’ जेठमल परसराम की लिखी कहानियों का यह संग्रह 1923 में प्रकाशित हुआ. इन कहानियों में सामाजिक बुराइयों एवं समाज सुधार पर अधिक बल दिया गया था.
सिंधी कहानियों में यथार्थवाद का दौर 1930 ई. में प्रारंभ हुआ. जब अमरलाल हिंगोरानी, आसानंद मामतेरा और मिर्जा नादिर बेग की कहानियां आनी शुरू हुईं.
सिंधी भाषा के एक प्रख्यात लेखक प्रो. मंघाराम मलकाणी के मतानुसार अमरलाल हिंगोरानी की कहानी ‘अदो अब्दुल अलरहमान’ मोनोलॉग की तकनीक विधा में लिखी गई एक परिपक्व कहानी है, जो अंग्रेजी के सिवाय भारत की कई अन्य भाषाओं में अनूदित हो चुकी है.
1940 ई. तक हिंदुस्तान में मार्क्सवाद के दृष्टिकोण के आधार पर प्रगतिवादी साहित्य के इतिहास की नींव रखी गई और सामाजिक हकीकत निगारी का दौर शुरू हुआ. सिंधी भाषा में उस इतिहास के प्रभाव से सामाजिक यथार्थवादी कहानियों का पहला संग्रह ‘रेगिस्तानी फूल’ 1944 ई. में प्रकाशित हुआ. इन अलग-अलग कहानियों में किसानों और उनके परिश्रम के साथ हो रहे अन्याय को विषयवस्तु बनाकर पेश किया गया. इस दौर में लेखू तुलसियाणी की कहानी ‘मंजरी कोलहण’ सिंधी की श्रेष्ठ कहानी मानी जाती है. इसका अंग्रेजी और भारतीय भाषाओं में अनुवाद हो चुका है. सन् 1947 ई. में हिंदुस्तान के विभाजन के पहले शेख अयाज की ओर से प्रकाशित हो रही पत्रिका ‘अगते कदम’ (आगे कदम) में उनकी श्रेष्ठ कहानी ‘हँसोड़’ (खिलणी) छपी थी, जो चरित्र-चित्रण के दृष्टिकोण से उस दौर की मौलिक कहानियों में श्रेष्ठ मानी गई. ‘खिलणी’ कहानी का अनुवाद इस संग्रह में शामिल है.
विभाजन के कारण सिंधी लेखकों की बड़ी मात्रा हिंदू होने के कारण निर्वासित होकर भारत आ गई. सिंध में सिंधी कहानी पर कुछ सालों तक ठहराव सा आ गया. फिर आगे चलकर नौजवानों की एक पीढ़ी ने कहानियां लिखनी शुरू कीं. उनमें नजम अब्बासी, जमाल अबरो, अयाज कादरी, गुलाम रबानी, हफीज शेख, अ.क. शेख, सिराज, बशीर मोरयानी, इब्ने हयात पंवार, रशीद भट्टी और शमीरा जरीन मुख्य नाम हैं. विभाजन के बाद सिंधी कहानी का वह पहला दौर था, जो प्रगतिवादी साहित्य का प्रभाव लिए हुए था. इस दौर में कहानी, उपन्यास और शायरी को जातिगत भेदभाव मिटाने का माध्यम समझा जाता था. सिंध के माध्यम से समाज की ग्रामीण जिन्दगी के वातावरण और पात्रों को सिंधी कहानी में ज्यादा महत्त्व दिया गया.
50 के दशक की समाप्ति पर सिंधी कहानी पर मार्क्सवादी प्रभाव घट चुका था. उसका एक कारण यह था कि पाकिस्तान अमरीकन लॉबी में शामिल था, इसलिए समाजतंत्रवादी (सोशियलिस्ट) एवं उदारपंथी (लिबरल) लोगों को शक की नजर से देखा जाता था. सन् 1958 ई. में पाकिस्तान में पहली मार्शल लॉ हुकूमत कायम हुई, जिसमें तरक्की पसंद व आजादी पसंद सियासी लोगों और लेखकों को साम्यवादी समझकर बहुत ज्यादा सख्ती की गई. कितने ही कहानीकारों ने कहानियां लिखनी छोड़ दीं. सन् 60 के दशक में सिंधी कहानी का दूसरा दौर शुरू हुआ. उस दौर में जो नौजवान कहानीकार मैदान में आए, उनमें आगा सलीम, नसीम खरल, हमीद सिंधी, कमर शहबाज, अमर जलील, माहताब महबूब, रशीदा हिजाब, मुहम्मद दाऊद बलोच, तारिक अशरफ, गुलाम नबी मुगल, अनीस अंसारी और अली बाबा जैसे नए कहानीकारों के पास सैद्धांतिक नजर नहीं थी और न ही उनकी कहानियों में सामाजिक यथार्थवाद विकसित हुआ. ग्रामीण जीवन के साथ अक्सर कहानीकारों ने शहरी वातावरण से कहानियों की विषय वस्तु ली और रोमांस के नजरअंदाज किए गए पहलू को फिर से कहानी में ले आए. 60 वाले दशक के बीच में एक नई पीढ़ी सिंधी कहानी में दाखिल हुई. अब्दलगारी जोणेजो, शौकत हुसैन शोरो, अब्दुल हक आलमाणी, माणिक जिन्होंने जिन्दगी के भिन्न-भिन्न पहलुओं पर लिखकर सिंधी कहानी को विस्तार दिया. 70 के दशक में कई राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तन आए. पूर्वी पाकिस्तान के अलग होने के बाद शेष बचे पाकिस्तान में उस दौर की सियासी, सामाजिक व खराब अर्थव्यवस्था की स्थितियों ने सिंध की नई पीढ़ी के लेखकों में मायूसी, फ्रस्ट्रेशन, बेदिली, बेबसी और तन्हाई के अहसास पैदा कर दिए. अस्तित्ववाद, काम की विसंगति और मन के अहसासात को जबान देने के लिए अक्सर सिंध में मौजूदा कहानी लिखी जाने लगी.
नई पीढ़ी के इन मुख्य कहानीकारों में मुश्ताख शोरो, माणिक, शौकत हुसैन शोरो, मुमताज महर, मदद अली सिंधी, आलम अबरो, कहर शौकत, सांवल और इख्लाक अंसारी शामिल हैं. जदीद कहानी में विषयवस्तु और कहानीपन खत्म हो गए. किरदारों की सूरतें, नाम गुम हो गए. नई कहानी में प्रतीकों एवं अमूर्तता को ज्यादा अहमियत दी गई. नई कहानी और आम पाठकों के बीच संवाद न होने के कारण नतीजा यह निकला कि नई कहानी को वह लोकप्रियता हासिल न हो पाई. सिंध में
सिंधी कहानी में आधुनिकता का प्रवाह रहा. 80 वाले दशक में धीरे-धीरे वह कम होता हुआ अंतिम चरण पर पहुंचा. सिंधी की कहानी फिर वापस अपने प्लॉट व वर्णनात्मक स्वरूप की ओर लौट गई.
देवी नागरानी इससे पहले भी सिंध और हिंद की सिंधी कहानियों का हिंदी अनुवाद कर चुकी हैं, पर इस संग्रह में खास तौर पर केवल सिंध के कहानीकारों की कहानियों का अनुवाद प्रस्तुत किया गया है. इस संग्रह की विशेष बात यह है कि देवी नागरानी ने सिंध की सिंधी कहानी के ऊपर वर्णित सभी परिक्रमणकाल के कुछ विख्यात कहानीकारों की कहानियां अनुदित की हैं. शेख अयाज और अयाज कादिरी विभाजन के बाद
सिंधी कहानी के मुख्य कहानीकारों में शामिल रहे. उनके बाद देवी नागरानी ने सिंधी कहानी के दूसरे दौर के प्रतिनिधि कहानीकारों का चुनाव किया. नसीम खरल उस दौर के श्रेष्ठ कहानीकार माने जाते हैं. उसकी कहानी का फिर कापरि का अंग्रेजी अनुवाद हो चुका है. इस कहानी में मजहब के झूठे और पाखंडी पक्ष को प्रकट किया गया है.
रशीदा हिजाब, हमीद सिंधी, अमर जलील, तारिक अशरफ गुलाम नबी मुगल, हकीकत पसंदगी के इस दूसरे दौर से संबंध रखते हैं. इन्होंने अपनी कहानियों में सिंध के ग्रामीण व शहरी जीवन के अलग पहलुओं पर कहानियां लिखी हैं. सिंध में नई कहानी का प्रारंभ करने वाले मुश्ताक शोरो की कहानी भी इस संग्रह में शामिल हैं
हलीम बरोही को इस लिहाज से विशिष्टता हासिल है कि उनकी कहानी में एक तेज तंज और मिजाज के बयान का एक खासा दर्जा है.
देवी नागरानी ने सिंध के नामवर कहानीकारों के साथ मौजूदा दौर के नई पीढ़ी के कहानीकारों-अनवर शेख और राजन मंगरियो की कहानियां भी चुनी हैं. सिंध की सिंधी कहानियों में पिछले दस सालों में नवीन कहानीकारों की एक बड़ी संख्या दाखिल हुई है, जो सिंध में सिंधी भाषा की चुस्ती, विकास व
सिंधी कहानी की प्रगति को कायम रखने के लिए प्रयत्नशील है. देवी नागरानी ने कोशिश करके सिंधी की अच्छी कहानियां हिंदी में अनुवाद करने के लिए चुनी हैं, पर यह बात स्पष्ट करनी जरूरी है कि इस संग्रह में शामिल कहानियों के संबंध में यह दावा नहीं किया जा सकता कि ये सिंधी अदब की प्रतिनिधि या बेहतरीन कहानियां हैं. हकीकत में यह अनुवादक की मर्जी पर निर्भर है कि वह कौन सी कहानी का चुनाव मुनासिब समझता है. इसमें अनुवादक की अपनी पसंद का दखल होता है.
देवी नागरानी ने सिंध की कहानियों का अनुवाद करके हिंदी पाठकों को जो तोहफा पेश किया है, आशा है कि यह तोहफा पाठकों को अच्छा लगेगा.
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