परमात्मा , ईश्वर, ब्रह्म, परमपिता आदि कई नामों से पुकारी जाने वाली एक अनादि शक्ति का प्रकाश और उसकी प्रेरणा से ही इस जगत को और जगत के पदार्...
परमात्मा , ईश्वर, ब्रह्म, परमपिता आदि कई नामों से पुकारी जाने वाली एक अनादि शक्ति का प्रकाश और उसकी प्रेरणा से ही इस जगत को और जगत के पदार्थों को स्फ़ुरण मिल रहा है. उसी के प्रभाव से सृष्टि के विभिन्न पदार्थों का ज्ञान, कार्य एवं सौन्दर्य प्रतिभासित होता है. वही अपने समग्र रूप में अवतीर्ण होता रहता है और सत्य रूप प्रतिष्ठित होता रहता है. साधक जब विराट ’जगत’ के रूप में परमात्मा का दर्शन करता है, उन्हीं की चेतना को सूर्य, पृथ्वी, चन्द्रमा, तारागण आदि में प्रकाशित होते देखता है, तो उसे सत्य का दर्शन होता है, जगत और अध्यात्म का स्थूल और सूक्ष्म का, दृष्य और तत्व का जहाँ परिपूर्ण सामंजस्य होता है, वहीं सत्य की परिभाषा पूर्ण होती है और यह सत्य जब जीवन साधना का आधार बनता है, तब जगत की प्रेरक और सर्जन शक्ति का परिचय प्राप्त होता है.
अपनी इस धरती की समर्थता एवं सम्पदा को पर्यवेक्षकों ने अनेक दृष्टियों से देखा और अनेक कसौटियों पर परखा है. उन निष्कर्शों में एक यह भी है कि धरती एक विशालकाय चुम्बक है. उसकी संरचना भर रासायनिक पदार्थों से हुई है. हलचलों के मूल में उसकी चुम्बकीय क्षमताएँ ही विभिन्न स्तर की हलचलें करतीं और एक से एक बढे-चढे चमत्कार प्रस्तुत करती है.
अणु शक्ति में परमाणु का नाभिक ही ऊर्जा-भण्डार माना जाता है. यह संचय धरती के प्रचण्ड चुम्बकत्व का ही एक घटक है. जीवाणुओं के भीतर जो सचेतन क्षमता काम करती है, उसे भी संव्याप्त चेतना का अंशधारी कहा गया है. यह समर्थता और चेतना दोनों ही उस चुम्बकत्व की दो गंगा-जमुना धाराएँ है, जिनके संयोग से धरती का वातावरण सौंदर्य, वैभव और उल्लास से भरा पूरा बना रहता है.
लन्दन विश्वविद्यालय के किंग्स कालेज के प्रोफ़ेसर. जान टेलर और फ़्रान्सिस हिचिंग ने मिलकर एक पुस्तक लिखी—“अर्थ मैजिक”. उनमें उन्होंने यह सिद्ध किया है, कि धरती पर दृष्टिगोचर होने वाले अगणित हलचलें जादू, चमत्कार जैसी प्रतीत होती है. उनके मूल में पृथ्वी की चुम्बकीय शक्ति ही काम करती है. यदि यह घटने-बढने लगे तो उसके परिणाम प्रस्तुत व्यवस्था में असन्तुलन उत्पन्न करेंगे और भयावह परिणाम उत्पन्न होंगे.
वैज्ञानिक शोध संस्था ’ नासा” ’ के अन्तर्गत चलने वाले अनुसन्धान केन्द्रों ने प्रमाणित किया है कि धरती पर कारणवश होने वाले चुम्बकीय परिवर्तन ही सृष्टि के इतिहास क्रम में अनोखे और अप्रत्याशित अध्याय जोडते रहे हैं. भविष्य में यदि कभी कोई असाधारण उथल-पुथल होगी तो उसका मूलभूत कारण एक ही होगा--धरती के चुम्बकीय प्रवाह में उथल-पुथल, उलट-पलट.
समग्र पृथ्वी तो एक विशाल चुम्बक है ही, किन्तु उसका उभार क्षेत्र विशेष में न्यूनाधिक भी पाया जाता है. इसका प्रभाव उन स्थानों के पदार्थो और प्राणियों पर पडता है. उनकी आकृति और प्रकृति में जो अन्तर पाया जाता है उसमें अन्य कारण उतने प्रबल नहीं होते, जितने के स्थान-स्थान पर पाए जाने वाले चुम्बकत्व के दबते-उभरते प्रवाह. इस दृष्टि से वे विभिन्न प्रयोजनों के लिए विभिन्न क्षेत्रों की उपयोगिता सिद्ध करते हैं. जो कार्य एक स्थान पर नहीं हो सकत या कठिन पडता है, वह दूसरे उपयुक्त स्थान पर स्वल्प प्रयास से ही सरलतापूर्वक सम्पन्न हो सकता है.
पृथ्वी की चुम्बकीय शक्ति क्षेत्र विशेष के आधार पर ध्रुव प्रदेशों में सबसे अधिक पायी जाती है और “रिओडी-जानीरो” क्षेत्र में न्यून्तम आँकी गई है. विलक्षणता एक और भी है कि यह सदा किसी स्थान पर एक जैसी नहीं रहती, उसमें कारणवश परिवर्तन होता रहता है.
पिछले दिनों बारमूडा क्षेत्र में अनेक अद्भुत घटनाएँ घटी हैं. उस क्षेत्र से गुजरने वाले जलयान एवं वायुयान इस प्रकार अदृष्य हुए हैं कि बहुत खोजने पर भी उनका कुछ भी अता-पता न मिल सका. विज्ञजनों का कहना है कि उस क्षेत्र में चुम्बकीय विलक्षणता ही ऎसे उपद्रवों के लिए उत्तरदायी है. इस दृष्टि से वह क्षेत्र सर्वथा अनोखा और विलक्षण है. वहाँ चित्र-विचित्र प्रकार के चुम्बकीय भँवर पडते रहते है.
प्रसिद्ध डच भूगर्भ शास्त्री प्रो. सोल्को.डब्ल्यु.ट्राम्प ने “साइकिल फ़िजिक्स” पुस्तक में विभिन्न प्रयोग परीक्षण करके यह लिखा है कि पृथ्वी अगणित विशेषताओं और धाराओं से भरे-पूरे चुम्बकत्व से भरी पूरी है. वैज्ञानिक उपलब्धियों में प्रकारान्तर से इसी क्षमता से स्त्रोतों को खोजा और प्रयोग में लाया गया है. इसका समर्थन “फ़्रेंच एटामिक एनर्जी कमीशन” के सदस्य “इकोले नारमल” और अमेरिका के सुरक्षा-विभाग एवं अर्कन्सास विश्वविद्यालय के “ डा.जाबोज हारवलिक” ने भी किया है. डा.आबोज” अमेरिकन सोसायटी आफ़ डाउसर्स” के प्रमुख हैं.
अमेरिका के “सिविल ऎवियेशन बोर्ड” की ’ऎक्सीडेन्ट इन्वेस्टीगेशन रिपोर्ट’ में बतलाया गया है कि बारमूडा क्षेत्र में जाने वाले हवाई या जल जाहज के चालकों को कभी-कभी दुर्घटना का पूर्वाभास हो जाता है. डा.जाबोज हारवलिक ने अनुसन्धान करके पता लगाया है कि इस स्थान विशेष से गुजरने पर मस्तिष्क की ’पीनियल ग्रन्थि’ पर चुम्बकीय परिवर्तन का गहरा प्रभाव पडता है. इस परिवर्तन से ’सीरोटोनिन’ नामक हार्मोन पैदा होता है, जो मानसिक विक्षिप्तता पैदा कर देता है.
बारमूडा क्षेत्र अटलांटिक महासागर के मध्य आता है. ’एडगर केयसी’ नामक प्रसिद्ध व्यक्ति, जो ’स्लीपिंग प्रोफ़ेट’ के नाम से जाने जाते थे, का कहना है—’ईसा से 50,000 वर्ष पूर्व अटलांटिक महासागर में एक बडा भूखण्ड था, जहाँ पर ’अटलांटियन’ सभ्यता का विकास हुआ था. उस सभ्यता ने तकनीकी साधन जैसे- टेलीविजन, एक्स-रे, लेसर बीम और एन्टीग्रेविटी यन्त्र आदि का विकास कर लिया था, लेकिन इन साधनों के दुरूपयोग करने अपना विनाश कर लिया. यह विनाश ईसा से 28,000 वर्ष पूर्व हुआ था. इस सभ्यता से बचे हुए लोगों ने ’मय’ और ’मिस्र’ संस्कृति का विकास किया. मिस्र में जैसे विशालकाय पिरामिड बने हैं उसी प्रकार के विशालकाय पिरामिडॊं के अवशेष बारमूडा क्षेत्र में पाये जाते हैं. मिस्र के ’चोलुला’ नामक पिरामिड में लगे पत्थरों का आयतन 3,88,20,000 घन गज है.
सन 1940 ई. में एडगर केयसी ने भविष्य कथन किया था कि भूकम्प के माध्यम से अटलांटिक महासागर में पुरानी सभ्यता के द्वीप समूह 1968 में ऊपर आने लगेंगे. 1968 में बहुत से गोताखोर, मछली पकडने वालों ने छिछले पानी में दीवारें, सडके और प्लेटफ़ार्म देखे. यह भविष्य कथन बिल्कुल सच निकला.
एडगर केयसी के अनुसार ’अटलांटिक सभ्यता का विस्तार ’सरगोसा’ समुद्र से ’एजोर्स’ तक है. रूस के प्रसिद्ध भूगर्भ शास्त्री डा.मेरिया क्लिनोवा ने ’एकेडेमी आफ़ साइन्स आफ़ यू.एस.एस.आर.’ की ओर से प्रस्तुत की गई रिपोर्ट में भी इसका समर्थन किया गया है, कि इन चट्टानों के साथ किसी पुरातन सुविकसित सभ्यता का इतिहास जुडा हुआ है.
’केयसी’ के अनुसार इस सभ्यता के लोगों ने सूर्य शक्ति का नियन्त्रण करके आधुनिक लेसर किरणॊं जैसे ’जादुई आग के पत्थर’ बना लिए थे. इनसे निकलने वाली किरणें आँखों से नहीं देखी जा सकती थी परन्तु उनकी प्रतिक्रिया पत्थरों पर होती थी. पत्थरों से ऎसी शक्ति निकलती थी जो जमीन पर चलने वाले वाहन, पानी के ऊपर व भीतर तथा हवा में चलने वाले वाहनों पर भी अपना प्रभाव डाल सकती थी.
केयसी के कथनानुसार अटलांटिक सभ्यता के लोग ’एन्टीमैटर’ के हथियार प्रयोग करते थे. उन्होंने यह भी बताया कि वे सूर्य शक्ति से ऎसी ऊर्जा पैदा कर सकते थे जो परमाणु का विखण्डन कर सकती थी और उसी के दुरुपयोग से वह सभ्यता विनष्ट हो गई. केयसी के कथन का समर्थन लन्दन के प्रसिद्ध वैज्ञानिक ’पैट्रिक स्मिथ’ ने भी लिया है कि जो पिरामिड चित्र लिपि के अच्छे ज्ञाता हैं. स्मिथ के अनुसार अटलांटिक सभ्यता के उत्तराधिकारियों ने मैक्सिको, पेरू और मिस्र में पिरामिड बनाये हैं. इन पिरामिडॊं की बनावाट में पुनर्जन्म, आत्मा की अमरता, अनन्तता आदि सिद्धान्तों को शिल्पाकार दिया गया है. उन्हें ज्योतिर्विज्ञान का गहरा ज्ञान था-ऎसा पिरामिडॊं से पता चला है. ’चीजेन ईजा’ नामक पिरामिड में पत्थरों की ऎसी रचना बनायी गई है कि सूर्य की किरणें सर्पाकार मार्ग से पिरामिड के मूल में बने सर्प के मुख जैसी आकृतियों में पहुँचती हैं. वर्ष में दो बार सूर्य की किरणें बसन्त और शरद ऋतु में इस पिरामिड के सर्पाकार मार्ग से चढती-उतरती देखी जाती है.
मिस्र के ’चेफ़्रैन’ नामक विशाल पिरामिड में किसी गुप्त रहस्य का उद्घाटन करने के लिए ’यू.एस.ए.’ और ’यूनाइटेड अरब रिपब्लिक” संयुक्त प्रयास कर रहे हैं.
वैज्ञानिकों की मान्यता है कि पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल के क्षेत्र का कोई सूत्र इन पिरामिडॊं की रचना में छिपा है. ये पिरामिड बिल्कुल ठीक उसी स्थान पर बने हैं, जो धरती का केन्द्र हैं. प्रत्येक पिरामिड की सतहें समबाहु त्रिभुजाकर हैं. सदियों से प्रेतों का आव्हान करने वाले और देवताओं का आव्हान करने वाले कर्मकाण्डी समबाहु त्रिभुजों का उपयोग करते देखे जाते हैं. आज के प्रसिद्ध ’आकल्टिस्ट’ फ़ास्ट, एलीस्टर, क्राडली आदि की मान्यता है कि इन त्रिभुजों की परिधि कभी अन्य लोकवासियों के बुलाने का माध्यम रही होगी.
इन दिनों पृथ्वी की वायु, जल,स्थिति, उर्वरता, खनिज सम्पदा एवं शक्ति का औद्योगिक तथा वैज्ञानिक प्रयोजनों के निमित्त व्यतिरेक किया जा रहा है. फ़लतः इन सभी क्षेत्रों में प्रदूषण विकिरण बढ रहा है. इस बढती विषाक्तता से होने वाले भावी संकट से सभी चिन्तित हैं. इस चिन्ता में सूक्ष्मदर्शी वैज्ञानिकों ने एक कडी जोडी है, कि प्रुथ्वी के सुव्यवस्थित चुम्बकत्व के साथ खिलवाड न की जाय. यह तथ्य बहुत समय पूर्व ही माना जा चुका है कि यदि पृथ्वी की सही धुरी का पता लगाया और उस पर कस कर एक घूँसा लगाया जा सके तो इतने भर से परिभ्रमण पथ में भारी अन्तर ही नहीं, महाविनाश का संकट उत्पन्न हो सकता है. चुम्बकत्व की निश्चित दिशाधारा में व्यतिरेक उत्पन्न होने के परिणाम कितने भयानक हो सकते हैं, इसे उपर्युक्त निर्धारण से भली प्रकार माना जा सकता है.
वृत्रासुर, हिरण्याक्ष, सहस्त्रार्जुन, रावण, कुम्भकरण जैसे अनेक वैज्ञानक बने. सब प्रकृति से छॆडखानी करने पर अपने और असंख्यों के लिए विपत्ति खडी कर चुके हैं. पिरामिड काल से पूर्व की मय-सभ्यता भी उसी उद्धत आचरण से विनाश के गर्त में गईं. इन दिनों उन्ही प्रयोगों की पुनरावृत्ति चल रही है. इसका क्या परिणाम हो सकता है, उसे अनुभव करके देखने की अपेक्षा यह अच्छा है, कि पूर्ववर्ती इतिहास से कुछ सीख और विनाश में कूदने से बचाया जाए. इन दिनों प्रकृति पर अधिकार करने की वैज्ञानिक महत्त्वाकांक्षाएँ धरती के चुम्बकत्व को डगमगा सकती है और ऎसे भविष्य की विभीषिका उत्पन्न कर सकती हैं जिससे उबरना कदाचित फ़िर कभी भी सम्भव न हो सके.
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103,, कावेरी नगर,छिन्दवाडा(म.प्र.)480-001
गोवर्धन यादव 09424356400
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