हे प्रभु विनती सुन लो. देश में सामान्य वर्ग के लोग अपनी अर्ज लेकर रोज मंदिर में जाते हैं. खूब पूजा अर्चना कर रहे हैं. कभी इस मंदिर तो कभी ...
हे प्रभु विनती सुन लो. देश में सामान्य वर्ग के लोग अपनी अर्ज लेकर रोज मंदिर
में जाते हैं. खूब पूजा अर्चना कर रहे हैं. कभी इस मंदिर तो कभी उस मंदिर. बात ही
कुछ ऐसी है.
आखिर पुत्र प्राप्ति की लालसा ही कुछ ऐसी है. जिसके लिए लोग कुछ भी करने को तैयार थे. इतनी पूजा को देख भगवान असमंजस में पड़ गए थे. उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था. क्या करें कैसे अपने भक्तों की लाज रखें ? ये संकट देख नटखट नारद को सुझाव के लिए बुलाया गया.
सारे देवताओं का दरबार लगा. जिसमें चिंता का विषय पृथ्वी वासी लोग बने थे. दरबार में लोगों की पुकार की आवाजें आ रही थी. तभी सब देवताओं ने सामान्य वर्ग के एक भक्त की पुकार सुनी. वो पुकार पुत्र प्राप्ति की थी.
दरबार में एक बालक को बुलाया गया. उससे कहा गया कि पृथ्वी पर जाओ और भक्त की मनोकामना पूरी करो. उस बालक ने पूछा हे प्रभु हमें जिससे यहां भेज रहे हो वो कौन है. किस वर्ग से ताल्लुक रखते हैं.
अरे वो मेरा भक्त है. जाति, वर्ग से क्या मतलब है. नहीं प्रभु मुझे बताओ तभी मैं जाऊंगा. बालक की जिद के आगे भगवान ने कहा भाई सामान्य वर्ग में जन्म ले रहे हो और क्या चाहिए.
हंसता खेलता परिवार है. बालक ने मना कर दिया. मुझे नहीं जाना है. मैं ऊपर स्वर्ग में ही सही हूं. ईश्वर के बहुत पूछने पर बालक ने कहा मुझे इस देश में आरक्षण वर्ग के यहां जन्म चाहिए.
क्योंकि उनके यहां आरक्षण मिलता है. जहां आप मुझे भेज रहे हैं उस वर्ग में आरक्षण नहीं हैं. पूरी जिंदगी मेहनत से घिस जाएगी .
कोई फायदा नहीं है. मुझे नहीं जाना. भगवान की सभा में एक बालक के विरोध ने तो बवाल मचा दिया. अब हर बालक सामान्य वर्ग में जन्म लेने को मना कर रहा था.
भगवान के यहां तो ये बड़ा धर्मसंकट पैदा हो गया. एक तरफ भक्त की पुकार थी तो दूसरी तरफ स्वर्ग में बालकों की जिद. भगवान ने एक बच्चे की जिद आखिर मान ली. उसे आरक्षण वर्ग में जन्म के लिए भेज दिया. उस बालक ने जन्म तो ले लिया. लेकिन वो बहुत गरीब परिवार में था.
जिससे आरक्षण का कोई लाभ उसे नहीं मिल पा रहा था. रोज कुआं खोदना और पानी पीने वाला काम था. भगवान को लगा कि संकट शायद टल गया है.
लेकिन क्या पता कि एक नए संकट ने जन्म लिया था. अब फिर से वही समस्या अब आरक्षण वर्ग के घर में भी जन्म लेने पर बच्चे मना कर रहे थे. ईश्वर ने फिर दरबार लगाया.
गुस्से में पूछा अब क्या समस्या है. बच्चों ने अपनी फरमाइश रख दी. मुझे जन्म अब आरक्षण के उस वर्ग में देना जो पूरी तरह से सम्पन्न हो. उनको आरक्षण का बहुत फायदा मिलता है. तभी जिंदगी सुकून से गुजरेगी. ईश्वर को गुस्सा आ रहा था. ये कौन आरक्षण कौन सी समस्या है.
जो हम देवताओं को परेशान कर रखा है. बड़ी उलझन के बाद नारद मुनि को धरती से आरक्षण के बारे में पता लगाने को भेजा. पूरी खबर पता कर नटखट नारद मुनि सभा में पहुंचे. उन्होंने कहा हे प्रभु इस देश में अब काफी उलझने बढ़ रही है.
आरक्षण को लेकर लोग रोज सड़कों पर विरोध कर रहे हैं. और यहां के बच्चे इसलिए दूसरे वर्ग में नहीं जा रहे है क्यों कि आरक्षण वर्ग में पढ़ने नौकरी में पाने में आसानी होती है. दूसरे वर्ग की अपेक्षा में इस वर्ग में बहुत फायदा है. मुनि नारद ये तो घोर समस्या है. जी प्रभु कुछ करो. अरे नारद मैंने तो मनुष्य बनाया था. धरती पर खुद इन लोगों ने अपने को अलग कर लिया.
मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा. क्या करें? ये आरक्षण ने तो हमारे यहां भी अपने पैर फैला लिया है. कही स्वर्ग में भी इसकी शुरूआत न हो जाए ? और इसी तरह यहां का हाल न हो जाए. इसलिए आज से इस देश को सिर्फ हम देवता देख सकें ऐसा नियम बनाओ.
जन्म लेने से पहले वाले बालक को इससे दूर रखा जाए. इस देश की आरक्षण की इस समस्या से मनुष्यों को खुद निपटने दो. हमें अपने यहां बात को फैलने से रोकना होगा. जैसी आप की इच्छा प्रभु. इतना कहकर नारद मुनि वहां से चलते बने और सभा समाप्ति की घोषणा हो गई.
रवि श्रीवास्तव
9452500016, 9718895616
लेखक, कवि, कहानीकार, व्यंग्यकार
ravi21dec1987@gmail.com
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आखिर पुत्र प्राप्ति की लालसा ही कुछ ऐसी है. जिसके लिए लोग कुछ भी करने को तैयार थे. इतनी पूजा को देख भगवान असमंजस में पड़ गए थे. उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था. क्या करें कैसे अपने भक्तों की लाज रखें ? ये संकट देख नटखट नारद को सुझाव के लिए बुलाया गया.
सारे देवताओं का दरबार लगा. जिसमें चिंता का विषय पृथ्वी वासी लोग बने थे. दरबार में लोगों की पुकार की आवाजें आ रही थी. तभी सब देवताओं ने सामान्य वर्ग के एक भक्त की पुकार सुनी. वो पुकार पुत्र प्राप्ति की थी.
दरबार में एक बालक को बुलाया गया. उससे कहा गया कि पृथ्वी पर जाओ और भक्त की मनोकामना पूरी करो. उस बालक ने पूछा हे प्रभु हमें जिससे यहां भेज रहे हो वो कौन है. किस वर्ग से ताल्लुक रखते हैं.
अरे वो मेरा भक्त है. जाति, वर्ग से क्या मतलब है. नहीं प्रभु मुझे बताओ तभी मैं जाऊंगा. बालक की जिद के आगे भगवान ने कहा भाई सामान्य वर्ग में जन्म ले रहे हो और क्या चाहिए.
हंसता खेलता परिवार है. बालक ने मना कर दिया. मुझे नहीं जाना है. मैं ऊपर स्वर्ग में ही सही हूं. ईश्वर के बहुत पूछने पर बालक ने कहा मुझे इस देश में आरक्षण वर्ग के यहां जन्म चाहिए.
क्योंकि उनके यहां आरक्षण मिलता है. जहां आप मुझे भेज रहे हैं उस वर्ग में आरक्षण नहीं हैं. पूरी जिंदगी मेहनत से घिस जाएगी .
कोई फायदा नहीं है. मुझे नहीं जाना. भगवान की सभा में एक बालक के विरोध ने तो बवाल मचा दिया. अब हर बालक सामान्य वर्ग में जन्म लेने को मना कर रहा था.
भगवान के यहां तो ये बड़ा धर्मसंकट पैदा हो गया. एक तरफ भक्त की पुकार थी तो दूसरी तरफ स्वर्ग में बालकों की जिद. भगवान ने एक बच्चे की जिद आखिर मान ली. उसे आरक्षण वर्ग में जन्म के लिए भेज दिया. उस बालक ने जन्म तो ले लिया. लेकिन वो बहुत गरीब परिवार में था.
जिससे आरक्षण का कोई लाभ उसे नहीं मिल पा रहा था. रोज कुआं खोदना और पानी पीने वाला काम था. भगवान को लगा कि संकट शायद टल गया है.
लेकिन क्या पता कि एक नए संकट ने जन्म लिया था. अब फिर से वही समस्या अब आरक्षण वर्ग के घर में भी जन्म लेने पर बच्चे मना कर रहे थे. ईश्वर ने फिर दरबार लगाया.
गुस्से में पूछा अब क्या समस्या है. बच्चों ने अपनी फरमाइश रख दी. मुझे जन्म अब आरक्षण के उस वर्ग में देना जो पूरी तरह से सम्पन्न हो. उनको आरक्षण का बहुत फायदा मिलता है. तभी जिंदगी सुकून से गुजरेगी. ईश्वर को गुस्सा आ रहा था. ये कौन आरक्षण कौन सी समस्या है.
जो हम देवताओं को परेशान कर रखा है. बड़ी उलझन के बाद नारद मुनि को धरती से आरक्षण के बारे में पता लगाने को भेजा. पूरी खबर पता कर नटखट नारद मुनि सभा में पहुंचे. उन्होंने कहा हे प्रभु इस देश में अब काफी उलझने बढ़ रही है.
आरक्षण को लेकर लोग रोज सड़कों पर विरोध कर रहे हैं. और यहां के बच्चे इसलिए दूसरे वर्ग में नहीं जा रहे है क्यों कि आरक्षण वर्ग में पढ़ने नौकरी में पाने में आसानी होती है. दूसरे वर्ग की अपेक्षा में इस वर्ग में बहुत फायदा है. मुनि नारद ये तो घोर समस्या है. जी प्रभु कुछ करो. अरे नारद मैंने तो मनुष्य बनाया था. धरती पर खुद इन लोगों ने अपने को अलग कर लिया.
मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा. क्या करें? ये आरक्षण ने तो हमारे यहां भी अपने पैर फैला लिया है. कही स्वर्ग में भी इसकी शुरूआत न हो जाए ? और इसी तरह यहां का हाल न हो जाए. इसलिए आज से इस देश को सिर्फ हम देवता देख सकें ऐसा नियम बनाओ.
जन्म लेने से पहले वाले बालक को इससे दूर रखा जाए. इस देश की आरक्षण की इस समस्या से मनुष्यों को खुद निपटने दो. हमें अपने यहां बात को फैलने से रोकना होगा. जैसी आप की इच्छा प्रभु. इतना कहकर नारद मुनि वहां से चलते बने और सभा समाप्ति की घोषणा हो गई.
रवि श्रीवास्तव
9452500016, 9718895616
लेखक, कवि, कहानीकार, व्यंग्यकार
ravi21dec1987@gmail.com
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