क्रिसमस त्यौहार बड़ा अलबेला है। पूरी दुनिया में धूमधाम से मनाया जाने वाला क्रिसमस प्रभु ईसा मसीह या यीशु के जन्म की खुशी में हर साल 25 दिसं...
क्रिसमस त्यौहार बड़ा अलबेला है। पूरी दुनिया में धूमधाम से मनाया जाने वाला क्रिसमस प्रभु ईसा मसीह या यीशु के जन्म की खुशी में हर साल 25 दिसंबर को मनाया जाने वाला पर्व है। यह ईसाइयों के सबसे महत्वपूर्ण त्यौहारों में से एक है। इस दिन को बड़ा दिन भी कहते हैं। आजकल क्रिसमस पर्व धर्म की बंदिशों से परे पूरी दुनिया में बड़े उल्लास के साथ मनाया जाता है। क्रिसमस के दौरान एक दूसरे को आत्मीयता के साथ उपहार देना, चर्च में समारोह, और विभिन्न सजावट करना शामिल है। सजावट के दौरान क्रिसमस ट्री, रंग बिरंगी रोशनियाँ, बंडा, जन्म की झाँकी और हॉली आदि शामिल हैं। हरा, लाल और सुनहरा रंग क्रिसमस के तीन पारंपरिक रंग माने जाते हैं। इसमें हरा रंग जीवन और पुनर्जन्म, लाल रंग ईसा मसीह के रक्त और सुनहरा रंग रोशनी और समृद्धि का प्रतीक है।
क्रिसमस शब्द का जन्म क्राईस्टेस माइसे अथवा ‘क्राइस्टस् मास’ शब्द से हुआ है। ऐसी मान्यता है कि पहला क्रिसमस रोम में 336 ई. में मनाया गया था। क्राइस्ट के जन्म के संबंध में नए टेस्टामेंट के अनुसार व्यापक रूप से स्वीकार्य ईसाई पौराणिक कथा है। इस कथा के अनुसार प्रभु ने मैरी नामक एक कुंँवारी लड़की के पास गैब्रियल नामक देवदूत भेजा। गैब्रियल ने मैरी को बताया कि वह प्रभु के पुत्र को जन्म देगी तथा बच्चे का नाम जीसस रखा जाएगा। वह बड़ा होकर राजा बनेगा, तथा उसके राज्य की कोई सीमाएं नहीं होंगी। देवदूत गैब्रियल, जोसफ के पास भी गया और उसे बताया कि मैरी एक बच्चे को जन्म देगी, और उसे सलाह दी कि वह मैरी की देखभाल करे व उसका परित्याग न करे। जिस रात को जीसस का जन्म हुआ, उस समय लागू नियमों के अनुसार अपने नाम पंजीकृत कराने के लिए मैरी और जोसफ बेथलेहेम जाने के लिए रास्ते में थे। उन्होंने एक अस्तबल में शरण ली, जहांँ मैरी ने आधी रात को जीसस को जन्म दिया तथा उसे एक नांद में लिटा दिया। इस प्रकार प्रभु के पुत्र जीसस का जन्म हुआ।
यूरोप में कहते हैं कि जिस रात जीसस का जन्म हुआ, जंगल के सारे पेड़ जगमगाने लगे थे और फलों से लद गए थे। यही वजह है कि क्रिसमस के दिन पेड़ को घर लाकर सजाते हैं। क्रिसमस ट्री तो अपने वैभव के लिए पूरे विश्व में लोकप्रिय है। इस पेड़ को घंटियों-बेल्स आदि से सजाते हैं, ताकि बुरी आत्माएं दूर रहें। वहीं घर में अच्छाइयों के प्रवेश के लिए एंजेल्स और फेयरी की मूर्तियाँं लगाई जाती हैं। क्रिसमस ट्री का चलन जर्मनी से आरंभ हुआ माना जाता है। क्रिसमस ट्री के बारे में पहला प्रकाशित संदर्भ 1531 ई0 में जर्मनी में मिलता है। सबसे पहले क्रिसमस ट्री की सजावट प्रोटेस्टेंट सुधारक मार्टिन लूथर (1483-1546) ने की थी। माना जाता है कि एक बार रास्ते में फर वृक्ष की शाखाओं के बीच से सितारों की जगमग के सौंदर्य को देखकर वह अभिभूत हो गए। क्रिसमस के अवसर पर अपने बच्चों के लिए बगीचे से फर का पेड़ लाकर अपने घर की नर्सरी में लगाया। इस पेड़ को उन्होंने कैंडल्स से सजाया ताकि वे जीसस के जन्मदिन पर बर्फीली रात की खूबसूरती को अपने बच्चों को दिखा सकें। पर क्रिसमस से इस पेड़ का जुड़ाव सदियों पुराना बताया जाता है। यूक्रेन में तो मकड़े यानी स्पाइडर व उसके बुने हुए जालों से क्रिसमस ट्री को सजाते हैं। वहाँ ऐसा माना जाता है कि एक गरीब परिवार के यहाँ क्रिसमस ट्री पर जाले लगे हुए थे। क्रिसमस की सुबह सूर्य की रोशनी पड़ते ही वे चाँंदी में बदल गए थे। पोलैंड में क्रिसमस ट्री की सजावट में मकड़ियों और उनके जालों की भी भूमिका होती है। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि मान्यता है कि मकड़ी ने नवजात जीसस के लिए एक कंबल चुना था। ऐसी कई कहानियाँ हैं, जो क्रिसमस ट्री को सजाने से लेकर जोड़ी गई हैं।
क्रिसमस पर लोग चर्च जाकर प्रार्थना करते हैं और प्रभु की प्रशंसा में कैरल गाते है। वे प्यार व भाईचारे का संदेश देते हुए घर-घर जाते हैं। कैरल्स यानी क्रिसमस के गीत। क्रिसमस आते ही हवाओं में हल्की संगीत की धुन गूंँजने लगती है। कैरल्स शब्द की उत्पत्ति फ्रेंच भाषा के शब्द केरोलर से भी मानी जाती है, जिसका अर्थ है घूमते हुए नाचना। क्रिसमस गीतों में सबसे पुराने गीत का जन्म चैथी सदी में हुआ। हल्की-फुल्की और गाने में आसान धुनें 14वीं शताब्दी में चलन में आईं। फिर इन्हें इटली में सुना गया। क्रिसमस कैरल्स का सर्वाधिक लेखन और विकास तथा उन्हें प्रसिद्धि 19वीं शताब्दी में मिली है। कैरल्स को नोएल भी कहा जाता है। इन गीतों में पड़ोसियों के लिए शुभकामनाएँ दी जाती है। इसमें क्रिसमस पर अपने पड़ोसियों के घर जाना और उनके साथ बैठकर क्रिसमस कैरल का आनंद लेना होता है।
क्रिसमस की बात हो और सेंटा क्लाॅज का जिक्र न हो तो अधूरा लगता है। क्रिस क्रिंगल फादर क्रिसमस और संत निकोलस के नाम से जाना जाने वाला सांता क्लाॅज एक रहस्यमय और जादूगर इंसान है, जिसे अक्सर क्रिसमस पर बच्चों के लिए तोहफे लाने के साथ जोड़ा जाता है। मूलतः यह लाल व सफेद ड्रेस पहने हुए, एक वृद्ध मोटा पौराणिक चरित्र है, जो उपहारों को एक बड़ी से झोली में भरकर क्रिसमस के पहले की रात यानी 24 दिसंबर को अपने स्लेज पर बैठता है। उसके बाद पलक झपकते ही उसके स्लेज में 8 उड़ने वाले रेनडियर उसे बच्चों के बीच पहुँचा देते हैं, जिन्हें वो अपने सुंदर-सुंदर उपहार देकर दुनिया में खुशियांँ फैलाता है। वह बच्चों को प्यार करता है तथा उनके लिए चाकलेट, उपहार व अन्य वांछित वस्तुएं लाता है, जिन्हें वह संभवतः रात के समय उनके जुराबों में रख देता है।
ईसा मसीह के जन्म से ताल्लुक रखने वाला क्रिसमस त्योहार बारह दिनों तक मनाया जाता है। पश्चिमी जगत में आम तौर पर इन दिनों में छुट्टियों का माहौल होता है। लोग अपने परिवार, दोस्तों संग प्रार्थना करते हंै और त्योहार का आनंद उठाते हैं। क्रिसमस पर्व के आरंभ के पीछे भी तमाम रोचक पहलू हैं । 350 ईसवी में रोम के पोप जूलियस प्रथम ने आधिकारिक रूप से 25 दिसंबर को ईसा मसीह का जन्मदिन मनाने की तारीख घोषित की। आधुनिक समय में 1843 में प्रसिद्ध लेखक चाल्र्स डिकेंस के उपन्यास ’ए क्रिसमस कैरोल’ ने काफी हद तक इसके प्रति लोगों का नजरिया बदला। अब यह रूढि़वादी तरीके से उबरकर परिवार केंद्रित, उदारता, प्रसन्नता और जश्न मनाने वाले पर्व में तब्दील हुआ। 1870 में अमेरिका में पहली बार क्रिसमस के मौके पर छुट्टी दी गई तो 1962 में अमेरिका में क्रिसमस पर पहला डाक टिकट जारी किया गया। अब तो क्रिसमस एक बड़े पर्व के रूप में मनाया जाता है। चर्च मास के बाद, लोग मित्रवत् रूप से एक दूसरे के घर जाते हैं तथा दावत करते हैं और एक दूसरे को शुभकामनाएं व उपहार देते हैं। वे शांति व भाईचारे का संदेश फैलाते हैं।
आकांक्षा यादव
द्वारा-श्री कृष्ण कुमार यादव
टाइप 5 निदेशक बंगला, पोस्टल ऑफिसर्स कॉलोनी
जेडीए सर्किल के निकट, जोधपुर, राजस्थान - 342001
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परिचय : कालेज में प्रवक्ता के बाद साहित्य,लेखन और ब्लागिंग के क्षेत्र में प्रवृत्त। अब तक दो कृतियाँ प्रकाशित- चाँद पर पानी (बाल-गीत संग्रह,2012), क्रांति-यज्ञ: 1857-1947 की गाथा (युगल संपादन,2007)। देश-विदेश की शताधिक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं, और वेब पत्रिकाओं व ब्लॉग पर रचनाओं का निरंतर प्रकाशन। दर्जनाधिक प्रतिष्ठित पुस्तकों /संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित। आकाशवाणी से वार्ता, रचनाओं इत्यादि का प्रसारण। व्यक्तित्व-कृतित्व पर डा. राष्ट्रबंधु द्वारा सम्पादित ‘बाल साहित्य समीक्षा’(कानपुर) का विशेषांक जारी। 20 नवम्बर 2008 से हिंदी-ब्लागिंग में 'शब्द-शिखर' के माध्यम से सक्रिय। व्यक्तिगत रूप से ‘शब्द-शिखर’ और युगल रूप में ‘बाल-दुनिया’, ‘सप्तरंगी प्रेम’ व ‘उत्सव के रंग’ ब्लॉग का संचालन। विकीपीडिया पर भी तमाम रचनाओं के लिंक्स उपलब्ध। उ.प्र. के मुख्यमंत्री द्वारा ’’अवध सम्मान’’, परिकल्पना समूह द्वारा ’’दशक के श्रेष्ठ हिन्दी ब्लागर दम्पति’’ सम्मान, अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन, श्रीलंका में " परिकल्पना सार्क शिखर सम्मान", अन्तर्राष्ट्रीय हिंदी ब्लाॅगर सम्मेलन (काठमांडू) में ’’ ब्लाग विभूषण’’ सम्मान, विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ, भागलपुर, बिहार द्वारा डाक्टरेट (विद्यावाचस्पति) की मानद उपाधि, भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा ‘डा. अम्बेडकर फेलोशिप राष्ट्रीय सम्मान‘ व ‘‘वीरांगना सावित्रीबाई फुले फेलोशिप सम्मान‘, राष्ट्रीय राजभाषा पीठ इलाहाबाद द्वारा ’भारती ज्योति’, साहित्य मंडल, श्रीनाथद्वारा, राजस्थान द्वारा ”हिंदी भाषा भूषण”, ‘‘एस.एम.एस.‘‘ कविता पर प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली द्वारा पुरस्कार, निराला स्मृति संस्थान, रायबरेली द्वारा ‘‘मनोहरा देवी सम्मान‘‘, साहित्य भूषण सम्मान, भाषा भारती रत्न, राष्ट्रीय भाषा रत्न सम्मान, साहित्य गौरव सहित सहित विभिन्न प्रतिष्ठित सामाजिक-साहित्यिक संस्थाओं द्वारा विशिष्ट कृतित्व, रचनाधर्मिता और सतत् साहित्य सृजनशीलता हेतु दर्जनाधिक सम्मान और मानद उपाधियाँ प्राप्त। एक रचनाधर्मी के रूप में रचनाओं को जीवंतता के साथ सामाजिक संस्कार देने का प्रयास. बिना लाग-लपेट के सुलभ भाव-भंगिमा सहित जीवन के कठोर सत्य उभरें, यही लेखनी की शक्ति है !!
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