दि न भर खेतों में मजदूरी करने के बाद थका-हारा चंदू जब शाम को घर लौटता तो अपने सात वर्षीय पुत्र सोहना को देखकर मानों दिन भर की थकान को भूल ...
दिन भर खेतों में मजदूरी करने के बाद थका-हारा चंदू जब शाम को घर लौटता तो अपने सात वर्षीय पुत्र सोहना को देखकर मानों दिन भर की थकान को भूल ही जाता। सोहना की शरारत भरी सवालों को सुलझाने में ही उसकी शाम कट जाती। कभी सोहना को अपनी पीठ पर बैठाकर घोड़े की सवारी कराता, तो कभी गोद में उठाकर झूला झुलाता। फिर रात को अपनी ही थाली में खाना खिलाता। इसके बाद भले ही सोहना गहरी निद्रा में डूब जाता, परन्तु चंदू की आँखों में दूर-दूर तक नींद न होती। इसका प्रमुख कारण था, सोहना के भविष्य की चिन्ता, जो चंदू को दिनोंदिन खाये जा रही थी।
चंदू को आज भी अपने बचपन के दिन खूब अच्छी तरह से याद हैं। जब उसके पिताजी के गुजरने के बाद उसकी माँ पास - पड़ोस के घरों में काम करके किस तरह से उसके भाई-बहनों के लिए दो वक़्त की रोटी का जुगाड़ कर पाती थी। माँ के लाख कोशिशों के बावजूद भी चंदू कभी पढाई नहीं कर पाया। यहीं वजह है की आज चंदू भी दिन-रात खेतों में खून पसीना एक करता है। कई बार ऐसा भी होता जब बारिश के मौसम में उसको पूरी रात अपने झोपडी की एक कोने में बैठकर बितानी पड़ती।
चंदू के परिवार में एक बड़े बदलाव की जरुरत थी। जिससे उसका परिवार आज की आधुनिक दुनिया के साथ चल सके। चंदू भले ही खुद पांचवीं तक ही पढ़ पाया था।
परन्तु वह भलीभांति जानता था कि ये बदलाव सिर्फ और सिर्फ शिक्षा से लाया जा सकता है। वह समझता था कि अगर आने वाली पीढ़ी शिक्षित न हुई तो इन दुःखदायी परिस्थितियों से निकलने की सोचना, मात्र एक कोरी -कल्पना होगी।
चंदू अपनी तमाम उलझनों से परे निकलकर सोहना को एक माझी के रूप में देखता था। भले ही चंदू की अभी तक की पीढ़ियों में कोई आठवीं भी पास न कर पाया था। परन्तु वह सोहना को खूब पढ़ा-लिखाकर एक इंजीनियर बना देना चाहता था। शायद इसीलिए कभी-कभार तो वह सोहना को 'बेटा इंजीनियर ' कहकर भी बुला लेता था।
एक ओर जहाँ पिता चंदू को सोहना से पीढ़ियों को बदल देने की उम्मीदें थी। वही दूसरी ओर खुद सोहना अपनी पढाई में काफी कमजोर था। मुहल्ले के लड़कों के साथ कंचे खेलना, दिनभर इधर-उधर घूमना, उसका रोज का काम था। जो कि उसकी कमजोर पढाई का प्रमुख कारण भी था।
घर से चंद क़दमों की दूरी पर ही सुरेश नाम का एक लड़का रहता था। जो सोहना की कक्षा का मॉनिटर हुआ करता था। अध्यापकों की अनुपस्थिति में सुरेश ही पूरी कक्षा के लिए सवाल बोलता फिर सबकी सवालों की जांच करता। वह बार-बार सवाल गलत करने वालें बच्चों को दो थप्पड़ लगाने से भी न चुकता था। अतः सोहना को भी सुरेश की थप्पड़ों का भागीदार होना ही पड़ता था। अक्सर सोहना स्कूल से आकर शाम को अपने पिता से कहता ," पापा ,आज सुरेश ने मुझे मारा था। " चंदू को यह बात बहुत बुरी लगती । परन्तु वह सब सच्चाई तो जानता ही था कि सोहन कितना कमजोर है।" रोज सुबह ,स्कूल जाते समय चंदू सोहना को लेकर सुरेश के घर जाता और उसे बड़े प्यार से समझाता।"
बेटा सुरेश, तुम सोहना से दो साल बड़े हो। अगर इसे कोई सवाल न आये तो प्यार से समझा दिया करो। इसे मारा मत करो, ये तुम्हारा छोटा भाई है न ? "
जवाब में सुरेश कहता, " इसे अगर एक -दो सवाल न आये तब न बता दूँ , चाचाजी। इसको तो कुछ भी नहीं आता जाता। यहाँ तक की साधारण जोड़-घटाने के सवालों में भी इसे पसीने छूटते हैं। बस कक्षा में सबसे पीछे बैठकर न जाने क्या करता रहता है ? सोहना को कक्षा में आगे बैठने और मन लगाकर पढ़ने की नसीहत देते हुए रोज की तरह चंदू अपने काम पर चला जाता।
एक दिन की बात है। दिनभर का थका-हारा चंदू घर लौटा। आज वह काफी उदास था। क्योंकि आज खेत में किसान से मजदूरी को लेकर कुछ झड़प हो गयी थी।
आज भी रोज की तरह सोहना अपने तमाम अजीबोगरीब सवालों के साथ आता है।
सोहना- " पापा , आज थक गयें हैं क्या ? "
चंदू- "हाँ बेटा , थोड़ा सिर में दर्द है और कुछ नहीं।"
सोहना- "तो मैं आपके सिर की मालिश कर देता हूँ। जैसे मम्मी मेरे सिर की मालिश करती हैं।"
सोहना, अपने पिता के सिरहाने बैठकर उनका सिर दबाने लगता है। इसके साथ ही साथ अपने सवालों की झड़ी शुरु करता है।
‘पापा, हम मामा के घर कब जायेंगे?’
‘इस बार के मेले में मम्मी को भी साथ ले चलेंगे की नहीं?’
‘मेरे लिए जो छोटी-सी बाल्टी कहा था, वो कब लाओगे? बड़ी वाली बाल्टी से मेरे पैर में चोट लग जाती है। '
इन्हीं सब सवालों के जवाब चंदू एक-एक करके दिए जा रहा था। तभी सोहना का अगला सवाल सामने आया। यह सवाल इतना बड़ा परिवर्तन लायेगा,ये तो न ही सोहना ने सोचा था और न ही चंदू ने।
सोहना- "पापा , इस बार मेले से मैं वो बटन वाला बैग लूंगा, जिसको सब लोग पीठ पर लादकर ले जाते हैं। मेरी कक्षा में राजू ,पम्मी ,छोटकू सबका वहीं वाला बैग है। मैंने देखा है उसमें कई खाने होते हैं ,पापा। मैं एक खाने में कॉपी, एक में स्लेट और एक में अपना टिफ़िन लेकर जाऊंगा।"
सोहना अपने ही धुन में ये सब कहे जा रहा था कि अचानक ,
चंदू- "ऐ चल भाग यहाँ से … दिमाग ख़राब हो गया है तेरा। पढ़ना-लिखना एक अक्षर नहीं। बस जाकर कक्षा में सबसे पीछे बैठ जायेंगे। ऊपर से ये बैग लेंगे, वो बैग लेंगे। इनके वजह से रोज सुबह -सुबह दूसरे के दरवाजे पर जाकर सिफारिश करना पड़ता है कि वो इन्हें मारा न करे। एक बार मॉनिटर बनकर दिखाओ, जो मांगों वो न लाकर दूँ तो कहना।"
सोहना, एकदम सहमा-सा बस अपने पिता को एक टक देख ही रहा था। उसको आज महसूस हुआ कि उसके पापा के मन में उसके पढाई को लेकर कितना दुःख हैं। उसका बालमन यह देख पा रहा था कि कैसे उसके पापा उसको डाँटते- डाँटते फफक पड़े ?
आज पहली बार ऐसा हुआ था कि जब खाना खानें के बाद चंदू को पहले नींद आ गयी। आज सोहना की आँखों में दूर-दूर तक नींद न थी। वो समझ नहीं पा रहा था कि वो ऐसा क्या कर दे ? जिससे वह मॉनिटर बन जाये। घण्टों तक सोचने-विचारने के बाद वो यह निश्चय कर पाया कि जो भी हो। कल वह कक्षा में सबसे आगे की पंक्ति में बैठेगा। हालांकि ऐसा करना उसके लिए इतना आसान नहीं था।
अगले ही सुबह वह जल्दी उठकर समय से स्कूल कि ओर निकला। आज तो चंदू को सुरेश के घर सिफारिश के लिए भी नहीं जाना पड़ा। रास्ते भर उसके मन में यहीं उठा-पटक चल रही थी कि आज कक्षा में कहां बैठा जाये? हालांकि रात में की गई विचार पर ही वो अटल रहा और कक्षा में सबसे आगे की पंक्ति में बैठा। मॉनिटर, सुरेश रोज की तरह आज भी सवाल बोले। जिनको वह हल करने की पूरी कोशिश भी किया। आज पहली बार सोहना के चेहरे पर एक अजीब-सी गंभीरता दिख रही थी। वो थी प्रयासों कि गंभीरता। हमेशा चहकते रहने वाला सोहना, अब कक्षा में एकदम गुमसुम सा रहता और अध्यापक जो भी पढ़ाते,उसे बड़े ध्यान से देखता। महीनों बीत गये। सोहना अगली कक्षा में चला गया।
एक दिन की बात है। चंदू अपने गांव के ही एक किसान, वंशीधर जी के खेत में काम करने गया। वंशीधर जी, अपने गांव के उसी प्राथमिक विद्यालय में अध्यापक भी हैं जिसमें सोहना पढ़ता है। दोपहर के समय दाना-पानी करते समय वंशीधर जी नें पूछा - "चंदू, तुम्हारे कितने बच्चे हैं ? उनको पढ़ा-लिखा रहे हो या उनको भी अपने जैसा ही बनाओगे ?"
चंदू - "दो लड़के हैं भइया, अभी तो बड़ा वाला ही स्कूल जाता है। आपके ही विद्यालय में तो पढ़ता है। बहुत कमजोर है पढ़ने में। मुझे तो उसको पढ़ाना आता नहीं। बस किसी तरह से उसकी जरूरतें पूरी कर देता हूँ। अगर नहीं पढ़ेंगे तो आप लोगों की खेतों में हीं कर-खा लेंगे और क्या ? "
वंशीधर जी- " मेरे विद्यालय में पढ़ता है ! क्या नाम है उसका ?"
चंदू - " भैया ! सोहना नाम है उसका। बड़ा ही शरारती लड़का है।"
वंशीधर जी - " क्या ! सोहना तुम्हारा लड़का है ? वहीं सोहना न , जो चौथी कक्षा में पढ़ता है। और हाँ ! तुमसे ये किसने कहा कि वो पढ़ने में कमजोर है ? अरे वो तो अपनी कक्षा का मॉनिटर भी है। मैं हीं तो उसे पढ़ाता हूँ। "
चंदू , एकदम अवाक होकर बस वंशीधर जी को एकटक देखे जा रहा था।
वंशीधर जी आगे बोलते गये , " बड़ा ही मेहनती और होनहार लड़का है सोहना। देखो चंदू , तुम भले ही एक वक़्त की रोटी मत खाना परन्तु इस बच्चे की पढाई मत रोकना। ये वहीं दीप है जो तुम्हारे आने वाले पीढ़ियों में बदलाव लायेगा। ये मेरा व्यक्तिगत अनुभव है। इसलिये तुम्हें समझा रहा हूँ।"
इस समय चंदू की खुशियों का कोई ठिकाना न था। आज शाम को जैसे ही घर पहुंचा। सोहना को गले लगाकर बोला - " बस बेटा, तुम ऐसे ही मन लगाकर पढ़ते रहो, और हां इस बार जैसे ही काम पर से पैसे मिलेगा। तुम्हारा बटन वाला बैग जरूर आ जायेगा।"
वक़्त बीतता गया। चंदू अपने सपने को पूरा होने से पहले ही एक गंभीर बीमारी में चल बसा। वह अपने पीछे पांच बच्चों व पत्नी, मुनियाँ को छोड़ गया। इस समय सोहना नौवीं कक्षा में पढ़ रहा था। फिर क्या था ,अब तो सोहना के कंधे पर ही चारों छोटे भाइयों की जिम्मेदारी आ पड़ी थी। सोहना की माँ मुनियाँ, समझ नहीं पा रही थी की बच्चों को आगे पढ़ाया जाये या उनसे खेतों में काम कराया जाये। जिससे महाजनों का क़र्ज़ भी भरा जा सके।
नये कक्षाओं में प्रवेश के दिन काफी नजदीक आ चुके थे। सोहना व उसके भाइयों को बस एक ही डर खाये जा रहा था कि देखो इस बार हम लोगों का एडमिशन हो पाता है या नहीं। एक दिन दोपहर के समय सोहना एकदम शांत ,चिंतित अवस्था में बैठा था। उसकी आँखों में छिपी अश्रु-धाराओं को स्पष्ट देखा जा सकता था। वह स्वयं में घुटन महसूस कर रहा था। तभी उसकी माँ, मुनियाँ आ गयी। उसके सिर पर हाथ फेरते हुये बोली- "क्या बात है सोहन ?" अब सोहना की अश्रु-धारायें रुक न पायीं। वह रुआंसा होकर माँ से बोला- "मम्मी, मैं और अधिक बच्चों को ट्यूशन पढ़ाया करूँगा। छोटे भाई लोग भी छुट्टी वाले दिन खेतों में मजदूरी कर लिया करेंगे। परन्तु हम सभी लोगों को आगे और पढ़ना है। तुमको याद है न मम्मी,पापा ने अंतिम समय में खूब पढ़ने के लिये कहा था।"
सोहना की इन बातों को सुनकर मुनियाँ भी भावुक हो उठी। वह अपने बेटे को गले लगाकर बोली- " हाँ बेटा, मुझे अच्छे से याद है जो तेरे पापा ने कहा था। चलो सब लोग परसों ही जाकर एडमिशन ले लो। बस खूब मन लगाकर पढ़ना होगा।”
सोहना व उसके सभी छोटे भाइयों ने अपने-अपने अगली क्लास में एडमिशन लिये। पास -पड़ोस के कुछ लोग व्यंग कसने से भी न चूकते। स्कूल आते-जाते लोग कहते कि ,"खाने का तो ठिकाना नहीं हैं और पढाई करके कलेक्टर बनेंगे।"
सोहना अपनी पढाई के साथ ही साथ पास -पड़ोस की गावों में घर -घर जाकर बच्चों को ट्यूशन पढ़ाता। उसके छोटे भाई भी छुट्टी के दिन खेतों में मजदूरी करके अपना खर्च निकाल लेते ।
समय अपनी गति से चलता रहा। वर्ष 2008 में, सोहना लखनऊ के एक प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग स्कूल में प्रवेश लिया। पढ़ाई पूरी होने के पश्चात् अब सोहना उस पड़ाव से बस एक कदम दूर था जिसकी कल्पना उसके पिता चंदू देखा करते थे। तीन सालों तक प्रतियोगी परीक्षाओं की भागदौड़ करने के बाद आखिर वो पल आ ही गया। जब सोहना का चयन हिंदुस्तान पेट्रोलियम , लखनऊ मेट्रो व रेलवे सहित पांच सरकारी नौकरियों में हुआ। अब सोहना , भारतीय रेलवे की रिसर्च सेंटर, आरडीएसओ लखनऊ में कार्यरत है।
आज स्वर्ग में बैठा चंदू भी बहुत खुश था। आखिर खुश हो भी क्यों न ? अब
'चंदू के सोहना ' ने उसके आने वाली पीढ़ियों के लिये बदलाव जो ला दिया था।
अब सोहना ,अपने बचपन की तरह जिन्दगी जी रहा है। हमेशा खुश व एकदम बिन्दास !
महेश कुमार गोंड ‘हीवेट’
ग्राम - धनैता, पोस्ट - डोमनपुर
जिला - मीरजापुर (उत्तर -प्रदेश )
मोबाइल नंबर - 9651764863
ई – मेल : author4949@gmail.com
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