ओशो रजनीश आधुनिक संत के रुप में रजनीश को कौन नहीं जानता? पहले आचार्य, फिर भगवान और बाद में ओशो नाम से अपने विचारों को प्रस्तुत किया।...
ओशो रजनीश
आधुनिक संत के रुप में रजनीश को कौन नहीं जानता? पहले आचार्य, फिर भगवान और बाद में ओशो नाम से अपने विचारों को प्रस्तुत किया। विख्यात संस्मरण लेखक कांतिकुमार जैन ने रजनीश को सन् 1952 में देखा था। तब उसकी उम्र थी 20 या 21 साल, नाम था - रजनीश मोहन जैन। शरीर छरहरा, लंबा और रंग सांवला। तब भी उसकी आवाज नाक में से होकर गुजरती थी।
रजनीश ने अनगिनत क्रांतिकारी विचारों से ओतप्रोत प्रवचन अपने अनुयायी को दिए। उनमें से एक है ब्रह्मचर्य , जिसका उन्होंने जमकर विरोध किया है। ओशो के अनुसार यह घोर मूर्खता है कि एक इंसान अपनी जिंदगी में ब्रह्मचर्य का पालन करे, यह बिल्कुल अस्वाभाविक है। गाँधी के ब्रह्मचर्य की भी ओशो ने खूब हंसी उड़ाई थी। साथ ही यह भी कहा कि नैसर्गिक प्रेम वही है जो वफादारी जैसे बंधन का गुलाम न हो। कांतिकुमार जैन के ही शब्दों में- देह शुचिता, देह मर्यादा से परे की सोच। वे स्त्रियों को अंकुठ बना रहे थे- मंगलसूत्र, बिछुओं और करवाचौथों से मुक्त कर रहे थे। रजनीश के प्रवचनों की एक पुस्तक , ‘ संभोग से समाधि ’ ने काफी धूम मचाई थी। बकौल कांतिकुमार जैन,“ रजनीश ने धर्म और काम के पॉजिटिव व नैगेटिव तारों को मिलाकर ऐसा झटका दिया कि बड़े-बड़े इलेक्ट्रीशियन के फ्यूज़ उड़ गए, अच्छे- खासे मीटर कंफ्यूज़ हो गए।”
प्रायः नास्तिक को अधार्मिक माना जाता है परन्तु ओशो ने एक प्रवचन में कहा है,“ स्मरण रखना, नास्तिक होना धार्मिक जीवन की शुरुआत है अंत नहीं।” यही नहीं उन्होंने नास्तिक की नैतिकता को महान बताया। ओशो के अनुसार आस्तिक की नैतिकता इसलिए है कि वह मोक्ष आदि पाना चाहता है। पर नास्तिक तो कुछ भी हासिल नहीं करना चाहता। इसमें उसका कोई स्वार्थ नहीं , उसे पता है कि कोई भगवान है ही नहीं जो उसकी नैतिकता का फल देगा। प्रायः श्मशानघाट शहर या बस्ती से बाहर होते हैं। पर रजनीश का कहना था कि श्मशानघाट शहर या गाँव के मध्य में होने चाहिए। ताकि लोगों को यह याद रहे कि एक दिन दुनिया से विदा होना है। ओशो के अनुसार- हमने बिल्कुल उलट काम किया है धार्मिक स्थल तो हमने निकट बना लिए जो वास्तव में शोरशराबे से दूर होने चाहिए थे और श्मशानघाट दूर बना दिए जो हमें अलर्ट रख सकते थे।
शिक्षा के बारे में उनकी टिप्पणी देखिए, “ यह संभावना है कि एक दिन शिक्षक विदा हो जाएगा, उसका कोई मूल्य नहीं रह जाएगा या उसका मूल्य गौण हो जाएगा, उसकी जगह कंप्यूटर लेगा, ज्ञान इतनी तेजी से घट रहा है कि पहले ज्ञान को सीखेगा कंप्यूटर और तब वह विद्यार्थियों को ज्ञान सिखाएगा।” भारत की आध्यात्मिक महानता को रजनीश ने खुले दिल से स्वीकार किया है। उनका कहना है,“ भारत केवल एक भूगोल या इतिहास नहीं है, यह सिर्फ एक देश, एक राष्ट्र या जमीन का टुकड़ा मात्र नहीं है, यह कुछ और भी है- एक प्रतीक,एक काव्य, एक अदृश्य सा- किंतु फिर भी जिसे छुआ जा सके.... यह संयोग मात्र नहीं है कि जब भी कोई सत्य के लिए प्यासा होता है तो अनायास ही भारत में उत्सुक हो उठता है, सदियों से सारी दुनिया के साधक इसी धरती पर आते रहे हैं।”,
रजनीश का दर्शन एक वक्त इतना प्रभावी हो गया था कि विनोद खन्ना, महेश भट्ट और परवीन बॉबी जैसी सशक्त फिल्मी हस्तिया तक उसकी मुरीद हो गई। विनोद खन्ना ने तो फिल्मों में काम करना तक छोड़ दिया था। वे ‘स्वामी विनोद भारती’ में तबदील हो गए थे। बाद में महेश भट्ट का मोहभंग हो गया था। कुछ अंतराल पर विनोद खन्ना भी फिल्मजगत में लौट आए और फिर राजनीति में भी हाथ आजमाया।
इंदिरा गाँधी ने रजनीश के दर्शन को “ अव्यवहारिक रुप से क्रांतिकारी ” बेशक उन्हें पढ़ा और सुना जा रहा है पर भारतीय समाज ने उसे स्पष्ट तरीके से स्वीकार नहीं किया है। ओशो दर्शन विवाह व बच्चे पैदा करने का खास समर्थन नहीं करता। मुख्य जोर इस बिन्दु पर है कि यह जीवन बहुत महत्वपूर्ण है, इसे आनन्द व उत्सव से जीना चाहिए। किसी प्रकार के बन्धन या कुंठा में जीवन जीना बेमानी है। तमाम तरह की वर्जनाओं से मुक्त एक हंसते,खेलते और खिलखिलाते समाज की रचना का स्वप्न रजनीश ने दुनिया को दिखाने का प्रयत्न किया था।
ओशो ने अपने प्रवचनों मे बौद्ध, जैन, तंत्र, झेन, ताओ और हिन्दू धर्म ग्रंथ गीता के साथ-साथ उपनिषद् व संत साहित्य जैसे मीरा, कबीर, नानक आदि का समावेश किया है। अपने ढंग की अनूठी और मंत्रमुग्ध शैली ने ध्यान भी खींचा है। कांतिकुमार जैन ने लिखा है,“ रजनीश के प्रवचनों में वेद भी होते हैं , पुराण भी, उपनिषद् भी, स्वामी राम, विवेकानंद, महात्मा गाँधी, सुकरात, मुल्ला नसरुद्दीन, सभी, मिक्सड वेजीटेबल का आनन्द।” .
शरद जोशी सिद्दहस्त व्यंग्यकार रहे हैं, एकाध व्यंग्य उन्होंने रजनीश पर भी लिखा है। “ भगवान के बुरे दिन” नामक व्यंग्य में एक जगह उन्होंने लिखा है,“ जैसे- जैसे रजनीश भगवान से इंसान होते गए, उनकी मुसीबतें उतनी ही बढ़ती गईं, उतने उनके ठाठ बढ़ते गए। एक जमाना था जब बंबई(मुंबई) की चौपाटी के हॉल में वे पच्चीस रुपयों में एक लंबा भाषण रोज शाम को देते थे। उनके बोलने की शैली( जबलपुरी- गाड़रबारी) बंबई के सेठ-सेठानियों के लिए एकदम भिन्न थी। एक चौंकाने वाला दर्शन था, जो कुकर्मों को सुकर्मों के साथ बड़ी खूबसूरती के साथ एडजस्ट करता था। रईसों और चरित्रहीनों को और क्या चाहिए? उनके पाप जहां पुण्य घोषित हो जाएं, परंपरा से जो कर्म मन में अपराधबोध जगाते हैं, वे किसी दर्शन में घुलमिल कर पाक-साफ अनुभूतियों में बदल जाएं, बस आनन्द है।” इसी तरह परसाई जी ने “टॉर्च बेचने वाले” शीर्षक से एक व्यंग्य लिखा है, कहा जाता है कि वह भी रजनीश को केन्द्र मे रख कर लिखा गया था। ध्यान रहे कि परसाई जी का सन् 1939 में ईश्वर से विश्वास उठ गया था और एक साल बाद अमीरों से।
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हरदेव कृष्ण, मल्लाह
पता -- हरदेव कृष्ण,ग्राम/डाक-मल्लाह-134102
जिला पंचकूला (हरियाणा)
स्त्रोतः-1 पहल-74
2 समकालीन साहित्य समाचार - सिंतबर,2005
3 हंस - जनवरी, 2002
4 ओशो प्रवचन
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