सदियों पहले किसी ने सोचा नहीं होगा कि बोतलों में पानी बिकेगा. आज यह वास्तविकता है. इसी तरह बोतलों में ताजी हवा मिलने लगी है. मनुष्य ने प्रक...
सदियों पहले किसी ने सोचा नहीं होगा कि बोतलों में पानी बिकेगा. आज यह वास्तविकता है. इसी तरह बोतलों में ताजी हवा मिलने लगी है. मनुष्य ने प्रकृति के सत्यानाश की ओर कदम बढ़ा लिए हैं.
बाजार में बोतलबंद हवा
प्रमोद भार्गव
व्यावसायिक बुद्धि और नवोन्मेष की ललक हो तो बाजार में उम्मीदों के नए-नए द्वार आसानी से खुल जाते हैं। वैसे भी संभावनाओं का कभी अंत नहीं होता। वाकपटु लोग गंजों को भी कंघी बेचने में कामयाब हो जाते हैं। कनाडा की कंपनी 'वाइटैलिटी एयर बैंफ एंड लेक'ने कुछ ऐसा ही अनूठा करिश्मा कर दिखाया है। कंपनी ने वनाच्छादित पहाड़ों और जंगलों की हवा को बोतलबंद पानी की तरह बेचने का धंधा शुरू किया है। बोतल में बंद हवा बेचने का यह अवसर दुनिया में बढ़ते वायु प्रदुषण ने दिया है। दूषित हवा से बेचैन और पीड़ित लोग इसे हाथों-हाथ खरीद रहे हैं। महानगरों में बढ़ता वायु प्रदुषण,दूषित औद्योगिक कचरे और कारों से उगलते धुंए को माना जा रहा है। औद्योगिक घरानों के दबदबे के चलते औद्योगिक उत्पादन घटाना तो मुश्किल है,ऐसे में कारोबारियों को बोतलबंद हवा के रूप में नया सुरक्षा कवच मिल गया है। जाहिर है,भारत समेत दुनिया के कई महानगरों में कारों पर नियंत्रण की जो मुहिम शुरू हुई है,उसे धक्का लग सकता है। इसके उलट यही कारोबारी कार के साथ हवा की बोतलें बतौर उपहार देने का फंडा भी शुरू कर सकते हैं। मसलन बाजार में कारों के साथ हवा का बाजार तो बढ़ेगा,किंतु इस महंगी हवा को खरीदकर इस्तेमाल करना गरीब के वश की बात नहीं है।
ब्रह्मण्ड में पृथ्वी एक मात्र ऐसा गृह है,जहां वायु होने के कारण जीवन संभव है। वायु में नाइट्रोजन की मात्रा सर्वाधिक 21 प्रतिशत होती है। इसके अलावा ऑक्सीजन 0.03 प्रतिशत और अन्य गैसें 0.97 प्रतिशत होती हैं। वैज्ञानिकों के आकलन के अनुसार पृथ्वी के वायुमंडल में करीब 6 लाख अरब टन हवा है। हवा,पृथ्वी,जल,अग्नि और आकाश जैसे जीवनदायी तत्वों में से एक तत्व है। कोई भी प्राणी भोजन और पानी के बिना तो कुछ समय तक तो जीवित रह सकता है,लेकिन हवा के बिना कुछ मिनट ही बमुश्किल जीवित रह सकता है। मनुष्य दिन भर में जो भी कुछ खाता-पीता है,उसमें 75 फीसदी भाग हवा का होता है। वैज्ञानिकों के अनुसार मनुष्य एक दिन में 22000 बार सांस लेता है। इस तरह से वह प्रतिदिन 15 से 18 किलोग्राम यानी 35 गैलेन हवा ग्रहण करता है। ऐसे में हवा दूषित मसलन जहरीली हो तो मानव शरीर पर उसके दुष्प्रभाव पड़ना तय है। वायु प्रदुषण के चलते वायु में भौतिक,रसायनिक या उसके जैविक गुणों में ऐसा कोई भी अवांछित परिवर्तन हो जिसके द्वारा स्वयं मनुष्य या अन्य जीवों को जीने में परेशानी अनुभव होने लगे या सांस लेने में दिक्कत आने लगे तो जान लीजिए हवा प्रदूषित हो रही है। हवा में प्रदुषण बढ़ने के साथ प्राकृतिक संपदा भी नष्ट होने लग जाती है। भारत की बात तो छोड़िए अमेरिका जैसे सुविधा संपन्न देश में भी हर साल 32 करोड़ 50 लाख टन से अधिक मूल्य के खाद्यान्न नष्ट हो जाते हैं।
वायु के ताप और आपेक्षिक आद्रता का संतुलन गड़बड़ा जाने से हवा प्रदुषण के दायरे में आने लग जाती है। यादि वायु में 18 डिग्री सैल्सियस ताप और 50 प्रतिशत आपेक्षिक आर्द्रता हो तो वायु का अनुभव सुखद लगता है। लेकिन इन दोनों में से किसी एक में वृद्धि,वायु को खतरनाक रूप में बदलने का काम करने लग जाती है। 'राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मूल्यांकन र्काक्रम' ;एनएसीएमपीद्ध के मातहत 'केंद्रीय प्रदूषण मंडल' ;सीपीबीद्ध वायु में विद्यमान ताप और आद्रता के घटकों को नापकर यह जानकारी देता है कि देश के किस शहर में वायु की शुद्धता अथवा प्रदूषण की क्या स्थिति है। नापने की इस विधि को 'पार्टिकुलेट मैटर' मसलन 'कणीय पदार्थ' कहते हैं। प्रदूषित वायु में विलीन हो जाने वाले ये पदार्थ हैं,नाइट्रोजन डाईऑक्साइड और सल्फर डाईऑक्साइड सीपीबी द्वारा तय मापदंडों के मुताबिक उस वायु को अधिकतम शुद्ध माना जाता है,जिसमें प्रदूषकों का स्तर मानक मान के स्तर से 50 प्रतिशत से कम हो। इस लिहाज से दिल्ली समेत भारत के जो अन्य शहर प्रदूषण की चपेट में हैं,उनके वायुमंडल में सल्फर डाईऑक्साइड का प्रदूषण कम हुआ है,जबकि नाइट्रोजन डाईऑक्साइड का स्तर कुछ बड़ा है।
सीपीबी ने उन शहरों को अधिक प्रदूषित माना है,जिनमें वायु प्रदूषण का स्तर निर्धारित मानक से डेढ़ गुना अधिक है। यदि प्रदूषण का स्तर मानक के तय मानदंड से डेढ़ गुना के बीच हो तो उसे उच्च प्रदूषण कहा जाता है। और यादि प्रदूषण मानक स्तर के 50 प्रतिशत से कम हो तो उसे निम्न स्तर का प्रदूषण कहा जाता है। वायुमंडल को प्रदूषित करने वाले कणीय पदार्थ,कई पदार्थों के मिश्रण होते हैं। इनमें धातु,खनिज,धुएं,राख और धूल के कण शामिल होते हैं। इन कणों का आकार भिन्न-भिन्न होता है। इसीलिए इन्हें वगीकृत करके अलग-अलग श्रेणियों में बांटा गया है। पहली श्रेणी के कणीय पदार्थों को पीएम-10 कहते हैं। इन कणों का आकार 10 माइक्रॉन से कम होता है। दूसरी श्रेणी में 2.5 श्रेणी के कणीय पदार्थ आते हैं। इनका आकार 2.5 माइक्रॉन से कम होता है। ये कण शुष्क व द्रव्य दोनों रूपों में होते हैं। वायुमंडल में तैर रहे दोनों ही आकारों के कण मुंह और नाक के जरिए श्वास नली में आसानी से प्रविष्ठ हो जाते हैं। ये फेफड़ों तथा हृदय को प्रभावित करके कई तरह के रोगों के जनक बन जाते हैं। आजकल नाइट्रोजन डाईऑक्साइड देश के नगरों में वायु प्रदूषण का बड़ा कारक बन रही है।
वैसे तो अमेरिका और मध्य पूर्व के कई देशों में हवा का कारोबार मृगछौने की तरह खूब कुलांचें मारने लगा है,लेकिन चीन के वायुमंडल में छाये वायु प्रदुषण से इसमें भारी उछाल आया है। हालत यह है कि चीन में लोग उपहार के तौर पर बोतलबंद हवा अपने रिश्तेदारों और मित्रों को देने लगे हैं। ऐसे में सोचनीय प्रश्न है कि हवा का यह कारोबार भारत में कारगर साबित होगा ? उललेखनीय है कि विश्व आर्थिक मंच ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि दुनिया के 20 प्रदूषित शहरों में 18 एशिया में हैं। इनमें भी 13 भारत में हैं। भारत में वायु प्रदूषण का सबसे बढ़ा कारण बढ़ते वाहन और उनका सह उत्पाद प्रदुषित धुंआ माना जा रहा है। हवा में घुलते इस जहर का असर केवल महानगरों में ही नहीं,छोटे नगरों में भी प्रदूषण का सबब बन रहा है। यही कारण है कि दिल्ली,लखनऊ,कानपुर,अमृतसर,इंदौर और अहमदाबाद जैसे शहरों में प्रदूषण खतरनाक स्तर की सीमा लांघने को तत्पर दिखाई दे रहा है।
दिल्ली में लुटियंस क्षेत्र आबोहवा की दृष्टि से सबसे अधिक खुशनुमा इलाका माना जाता है,लेकिन इसी क्षेत्र में आने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का निवास स्थल 7 रेसकोर्स भी दूषित हवा की चपेट में है। इस आवास के बाहर पीएम ट्रैकर से प्रदूषण का स्तर हाल ही में जांचा गया तो आंकड़े हैरान करने वाले आए। यहां कणीय पदार्थ यानी पीएम की मात्रा 2000 माइक्रो ग्राम प्रति क्यूबिक मीटर के ऊपर थी। जबकि दिल्ली में 60 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर को एकदम साफ प्राकृतिक हवा का कारक माना जाता है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवारमेंट की मशीन ने भी यहां प्रदूषण का स्तर औसत स्तर से करीब 14 गुना ज्यादा दर्ज किया है। साफ है,दिल्ली के वायुमंडल में जहरीली हवा तैर रही है।
केंद्रीय प्रदूषण मंडल भी देश के 121 शहरों में वायु प्रदूषण का आकलन करता है। इसकी एक रिपोर्ट के मुताबिक देवास,कोझिकोड एवं तिरूपति को अपवादस्वरूप छोड़ दें तो बांकी सभी शहरों में प्रदूषण एक बड़ी समस्या के रूप में वायुमंडल में जगह बनाता जा रहा है। इसकी वजह तथाकथित वाहन क्रांति है। जिस गुजरात को हम आधुनिक विकास का मॉडल मानकर चल रहे हैं,वहां भी प्रदूषण के हालात भयावह हैं। कुछ समय पहले टाइम पात्रिका में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के चार प्रमुख प्रदूषित शहरों में गुजरात का बापी शहर भी शामिल है। यहां 400 किलोमीटर लंबी औद्योगिक पट्टी है। इन उद्योगों में कामगर और बापी के रहवासी कथित औद्योगिक विकास की बड़ी कीमत चुका रहे हैं। बापी के भूगर्भीय जल में पारे की मात्रा विश्व स्वास्थ्य संगठन के तय मानकों से 96 प्रतिशत ज्यादा है। यहां की वायु में धातुओं के कण बड़ी संख्या में हैं,जो फसलों पर संक्रमण का कहर ढहा रहे हैं।
देश में फैल रही इस जहरीली हवा की पृष्ठभूमि इस बात की तस्दीक है कि यदि बोतलबंद हवा का कारोबार भारत में शुरू होता है तो इसका विस्तार दिन दूना,रात चौगूना फैलने की उम्मीद है। लेकिन इससे शंका यह उभरती है कि हवा का कारोबार कहीं प्रदूषण मुक्ति के स्थायी सामाधान के उपायों पर भारी न पड़ जाए ? इस बोतलबंद हवा की जानकारी आने से पहले दिल्ली में बड़ी कारों के पंजीयन पर रोक और एक दिन सम और दूसरे दिन विषम संख्या की कारों को चलाने की व्यवस्था शुरू हुई है। हवा को स्वच्छ बनाए रखने के ये उपाय कारगर और बहुजन हितकारी हैं। लेकिन अब कार निर्माता कंपनियां बोतलबंद हवा के जरिए शुद्ध हवा का विकल्प उपहार में देकर सरकार के समक्ष नई कारों के पंजीयन से रोक हटाने का सुझाव रख सकती हैं। क्योंकि जब दिल्ली सरकार ने सम-विषम संख्या की कारें चलाने का फॉर्मूला पेश किया था,तब ये कंपनियां इस फॉर्मूले को लागू करने के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय चली गई थीं। तब न्यायालय ने दलील दी थी कि 'आपको कारें बेचने की पड़ी है,जबकि लोगों के प्राण जोखिम में हैं।' वैसे भी बोतलबंद हवा,वायु की शुद्धि का तात्कालिक व्यक्तिगत उपाय तो है,लेकिन वायुमंडल से प्रदूषण मुक्ति का व्यापक एवं स्थायी हल कतई नहीं है।
कंपनी ने फिलहाल 'बैंफ एयर' और 'लेक लुईस' नाम से दो प्रकार की हवाबंद बोतलें बाजार में उतारी हैं। बैंफ एयर की तीन लीटर की बोतल की कीमत 20 कनाडाई डॉलर,यानी भारतीय मुद्रा में करीब 952 रुपए है। लेक लुईस बोतल में 7.7 लीटर हवा है। इसकी कीमत 32 कनाडाई डॉलर,मसलन 1532 रुपए है। फिलहाल भारत में इस हवा का व्यापार शुरू नहीं हुआ है,लेकिन जिस तेजी से इस कारोबार में उछाल आ रहा है,उस परिप्रेक्ष्य में तय है,देर-सबेर हवा की बोतल भारतीय बाजार का हिस्सा बन जाएगी। साफ है,इस बोतल का उपयोग धनी लोग ही कर पाएंगे।
वाइटैलिटी एयर बैंफ एंड लेक कंपनी ने 2014 में प्रयोग के तौर पर हवा भरी थैलियां बेचने की शुरूआत की थी। उस वक्त किसी को अंदाजा नहीं था कि यह पहल भविष्य में वाणिज्यिक दृष्टि से कितनी महत्वपूर्ण होने जा रही है। कंपनी के संस्थापक मोसेज लेक का कहना है कि उनके द्वारा बाजार में लाई गई थैलियों की पहली खेप तुरंत बिक गई। इससे उनके हौसले को बल मिला और फिर इस कारोबार को फुलटाइम व्यवसाय में बदल दिया। कंपनी ने हाल ही में चीन में बोतलबंद हवा का व्यापार शुरू किया है। यहां कारोबार के उद्घाटन वाले दिन ही 500 बोतलें हाथों-हाथ बिक गईं और अब अमेरिका व मध्य पूर्व के देशों के बाद चीन बोतलबंद हवा का खरीददार सबसे बड़ा देश बन गया है। भारत में खतरनाक स्तर पर पहुंच चुकी इस जहरीली हवा के चलते कंपनी भारत में भी बाजार तलाश रही है। यदि इस हवा की आमद भारत में हो जाती है तो जिस तरह से प्रदूषित हो रहे जलस्त्रोतों को प्रदूषण मुक्त बनाने की कोशिशें नाकाम होती रही हैं,उसी तरह वायु को प्रदूषण मुक्त बनाने की संभावनाएं भी हवा के कारोबारी ठप कर देंगे।
प्रमोद भार्गव
शब्दार्थ 49,श्रीराम कॉलोनी
शिवपुरी म.प्र.
मो. 09425488224
फोन 07492-232007, 233882
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार और पत्रकार हैं।
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