एक अश्लील कथा कथा इस प्रकार है . इस देश में कभी एक महान उपदेशक हुआ था। वह परम ज्ञानी, प्रकाण्ड विद्वान और प्रखर चिंतक था। गाँव-गाँव घूमकर...
एक अश्लील कथा
कथा इस प्रकार है .
इस देश में कभी एक महान उपदेशक हुआ था। वह परम ज्ञानी, प्रकाण्ड विद्वान और प्रखर चिंतक था। गाँव-गाँव घूमकर लोगों को उपदेश देना उसका व्यवसाय था। लोग उसे ईश्वर की भांति पूजते थे।
उपदेशक महोदय पिछले कुछ दिनों से इस उपदेश पर वह बड़ा जोर देने लगा था . ‘सज्जनों! शास्त्रों में लिखा है . पशुओं के साथ मैथुन कभी नहीं करना चाहिए। यह महापाप है। ऐसा करने वालों को घोर नरक का भागी बनना पड़ता है।’
उपदेशक महोदय का एक सेवक था जो हमेशा उनके साथ बना रहता था। उसे इस नये उपदेश से बड़ी उलझन होने लगी थी। वह सोचता था . सज्जन व्यक्ति ऐसा कृत्य भला क्यों करेगा। और ऐसा कृत्य करने वाला सज्जन कैसे होगा?
पिछले कुछ दिनों से ही उपदेशक महोदय अपनी नयी-नवेली घोड़ी पर सवार होकर रोज प्रातःकाल जंगल की ओर सैर करने निकल पड़ता था और बड़ी देर बाद लौटता था। एक दिन वह सेवक छिपकर उसके पीछे हो लिया।
निर्जन, घने जंगल के बीच एक नदी बहती थी। उपदेशक महोदय अपनी नयी-नवेली घोड़ी को नदी के बीचों-बीच, जहाँ घुटनों तक पानी था ले गया और उसके साथ मैथुन करने लगा। सेवक ने यह देख लिया।
उपदेशक महोदय सदा सेवक की अवहेलना किया करता था। आज सेवक के पास अवसर था, उपदेशक महोदय को नीचा दिखाने का। उपदेश हेतु जब वह सज-धजकर मंच की ओर जाने के लिए तैयार हुआ तब सेवक ने कहा . ‘‘प्रभु! आपके उस उपदेश का रहस्य मैंने आज सुबह-सुबह नदी पर समझ लिया है, सोचता हूँ, लोगों को भी अवगत करा दूँ।’’
सुनकर उपदेशक महोदय पलभर के लिए विचलित हुए परन्तु तुरंत ही स्थितप्रज्ञों की तरह संयत होकर कहने लगा . ‘‘मूर्ख! जरूर बताओ। परन्तु शास्त्रों में इसके आगे यह भी लिखा है, सुनते जाओ . ‘अगर यह कृत्य सूर्योदय के समय निर्जन वन में किसी नदी के बीच, घुटने भर जल में खड़े होकर किया जाय तो मन को असीम शांति मिलती है और स्वर्ग की प्राप्ति होती है।’ तू मेरा प्रिय शिष्य है इसलिए इस रहस्य को बता रहा हूँ अन्यथा शास्त्रों में इस अंश को प्रकट करने के लिए निषेध किया गया है। शास्त्रों में निषिद्ध बातों का उल्लंघन करने से पाप लगता है।’’
पुण्य प्राप्ति की लालसा में और पाप से बचने के लिए सेवक ने आज तक इस महात्म्य का उल्लेख किसी से नहीं किया।
मुझे लगता है, उपदेशों से लबालब तमाम तरह के ग्रंथ ऐसे ही उपदेशकों के द्वारा लिखे गये होंगे। और यह भी, सारे उपदेशक इन्हीं उपदेशक महोदय के ही वंशज होंगे।
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सियार राजा
एक जंगल था। वहाँ राजा का चुनाव हो रहा था। जंगल में एक सियार रहता था। वह वहाँ का राजा बनना चाहता था। परंतु यह आसान नहीं था। जंगल के जानवर-मतदाता सियार जैसे बदनाम प्राणी को भला अपना राजा कैसे चुन लेते?
सियार निराश नहीं हुआ। वह बहुत चालाक, धूर्त, लालची और धोखेबाज था। अपनी इन क्षमताओं पर उसे बड़ा अभिमान था। उसे एक तरकीब सूझी। उसने अपने आराध्य गुरू की खूब सेवा की। गुरू ने प्रसन्न होकर कहा . तुम्हारी इच्छाएँ मैं जानता हूँ। इस वन प्रदेश का राजा बनने के सारे गुण तुम्हारे अंदर विद्यमान हैं। मैं भी चाहता हूँ कि तुम यहाँ का राजा बनों। तुम ही मेरे सर्वाधिक प्रिय शिष्य हो। परन्तु तुम्हारे पास न तो शेर के समान दहाड़ है और न ही रूप और शरीर। मैं तुम्हें इन दोनों ही चीजें देना चाहता हूँ, पर विवश हूँ। दोनों में से मैं तुम्हें एक ही दे सकता हूँ, वह भी सशर्त। बोलो क्या चाहिए?
सियार की चतुर बुद्धि ने कहा . रूप बनाने के लिए बाजार में मुखौटों की कमी है क्या? षेर की दहाड़ ही मांग ले।
गुरू ने उसे उसकी इच्छा के अनुसार शेर की दहाड़ का वरदान देते हुए कहा . और शर्त भी सुन लो। मेरे इस मंदिर में प्रतिदिन सुबह-शाम की आरती होती है, उसके चढ़ावे का प्रबंध तुम्हें ही करना होगा। माह के अंत में हाजिरी देना अनिवार्य होगा। ध्यान रहे! शर्त का उलंघन करने पर वरदान स्वतः निष्प्रभावी हो जायेगा।
राजा बनकर सियार बड़ा प्रसन्न है। गुरू की खूब सेवा करता है। सेवा के बदले खूब मेवा झड़कता है। सभाओं में कभी.कभी वह दहाड़ भी लेता है। परन्तु रात-दिन उसे अपने मुखौटे की चिता बनी रहती है। उसे गलतफहमी है कि इस जंगल के जानवर-मतदाता उसकी असलियत के बारे में नहीं जानते हैं। परन्तु सच्चाई कभी छुपती भी है?
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कामधेनु अथवा कल्पवृक्ष
बाबरी मस्जिद-राममंदिर का मामला कहानी के हिसाब से सोने के अंडे देने वाली मुर्गी की कहानी के मुर्गी के समान है। कहानी के कथ्य में समानता जरूर दिखाई देता है परंतु देष-काल, परिस्थिति और मांग बदल जाने के कारण इसमें कई ट्विस्ट्स आ गये हैं। इस प्रेरणादायी कहानी के बेवकूफ नाई ने मुर्गी को मार डाला था। कहानी में प्रेरक तत्व भरने के लिए नाई का यह कृत्य जरूरी था। मुर्गी पालना नाई और उसी के समकक्ष पिछड़ी, दलित और आदिवासियों का काम है। ट्विस्ट्स यहीं से शुरू होता है। जबकि इन शूद्र जातियों के लिए मंदिर की ओर झांकने का भी अधिकार नहीं है तब बाबरी मस्जिद.राममंदिर का मामला इन जातियों के हाथों में हो सकने की कोई कल्पना भी कर सकता है क्या? तो ट्विस्ट्स यह है कि अब कहानी में सोने के अंडे देने वाली मुर्गी के स्थान पर साक्षात कामधेनु विराजित हो चुकी है अथवा कल्पवृक्ष ने अपनी जड़ें जमा ली है। ये दोनों ही अमर हैं। और सनद रहे, यह मामला जिनके हाथों में है वे कोई बेवकूफ नाई भी नहीं हैं। इसलिए इस मसले का कभी अंत भी हो सकता है, ऐसा सपना देखना भी सबसे बड़ी बेवकूफी होगी।
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कुबेर
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