ग्लानि दीपाजी दुःखी थीं, बहुत दुःखी थी। रात दिन ग्लानि से भरी रहती। कॉलेज के सभी सहयोगी और शैक्षिक प्रशासन के भी बहुत से लोग अब उनके दु...
ग्लानि
दीपाजी दुःखी थीं, बहुत दुःखी थी। रात दिन ग्लानि से भरी रहती। कॉलेज के सभी सहयोगी और शैक्षिक प्रशासन के भी बहुत से लोग अब उनके दुःख को समझने लगे थे। उनके मायूस चेहरे के बारे में वे कोई सवाल नहीं करते थे। सीधे हमदर्दी पर उतर आते थे। दीपाजी के दुःख की जड़ कॉलेज प्रशासन के एक निर्णय में निहित थी। कॉलेज ने केंद्रीय विभाग के साथ न रहकर राज्य के साथ रहने का फैसला लिया था और दीपाजी ने कॉलेज प्रशासन के विपरीत अपनी सहमति केन्द्र के साथ दर्ज करा दी थी। स्टॉफ के लोग खुश थे क्योंकि वे कॉलेज प्रशासन से सहमति बनाकर चल रहे थे। कॉलेज उनकी हजार गलतियों को माफ कर देता था। पर इनके लिए सौ अड़ंगे थे। कॉलेज में इनके लिए पहले जैसा माहौल नहीं रह गया था। पहले जहाँ सहकर्मी इनका हंसकर स्वागत करते थे। बच्चों व घर परिवार का हालचाल लेते थे वहीं अब कन्नी काटने लगे थे। सामने पड़ने पर हॉय हैलो होती और शीघ्र ही इनकी स्थिति पर चर्चा होने लगती। बातें जल्दी ही ऊबाऊ हो जाती। अधिकांश तो इन्हें दूर से ही तिरछी निगाहों से देखते हुए आपस में बतियाते। इन्हें इस सभी में कटाक्ष की बू आती। अतः जितनी जल्दी हो सके ये घर लौटने का प्रयास करती। परन्तु दीपाजी को घर आकर भी चैन न मिलता। मन सदैव दुःखी बना रहता। कॉलेज में इनके लिए कार्य लगभग समाप्त कर दिया गया था। स्वेच्छा से एक सत्र क्लास भी पढ़ाती रहीं। परन्तु प्रधानाचार्य ने उपस्थिति रजिस्टर में हस्ताक्षर ही नहीं कराए। अब क्या करें?
वैसे दीपाजी नितांत अकेली नहीं थीं उनके जैसी स्थिति में पाँच और लोग थे। बस गनीमत यह रही कि कॉलेज प्रशासन सौ अडंगे लगाकर भी उनका वेतन नहीं रोक पाया। वेतन सभी को प्रतिमाह सही समय से मिल जाता था। सब वेतन लेते और मौज करते। उन्होंने विद्यालय आना ही छोड़ दिया था। विद्यालय जाना तो दीपाजी ने भी लगभग छोड़ ही दिया था। परन्तु ग्लानि इनका पीछा नहीं छोड़ रही थी। मुफ्त का वेतन लेना दीपाजी को कतई अच्छा नहीं लगता था। हाँ यह बात अलग थी कि वे पहली तारीख को ही बाबू को फोन कर अपने वेतन लेने की तारीख और समय सुनिश्चित कर लेती थी।
प्रशासन में कुछ तबादले हुए और कॉलेज शैक्षिक प्रशासन में एक नए ऑफिसर आए। सीधा सरल स्वभाव और समाज को समर्पित जीवन। बेचारी दुःखी दीपाजी अपना वेतन लेने माह की दूसरी तारीख को पहुँच गई। अपनी करूण कथा नए ऑफिसर को भी सुना दी। विगत वर्षों में यह दीपाजी का स्वभाव ही बन गया था। इसी से अड़ौस-पड़ौस व काफी रिश्तेदार भी उनकी स्थिति जान गए थे। वे ऊपरी मन से इनके दुःख में भागीदारी करते हुए भी मन में ईर्ष्या रखने लगे थे।
दीपाजी ने जब अपना दर्द नए ऑफिसर के सामने सुनाया तो वे द्रवित हो गए और एक सुझाव दीपाजी को दे बैठे। समझाते हुए बोले-“आप कुछ समाज सेवा का कार्य कर दीजिए। हमारी संस्था द्वारा एक विद्यालय असहायों की सेवार्थ बगैर किसी शुल्क के चलाया जाता है। आप सप्ताह में चार दिन वहाँ दो-दो घंटे अध्यापन कर दें। बेचारे गरीबों का भला हो जायगा। साथ ही आपको भी आत्मिक सुख मिलेगा। बिना कार्य चार वर्ष से वेतन पाने का आपकी आत्मा पर बन रहा बोझ कुछ हल्का हो जायगा।”
दीपाजी का उदासी से लटका चेहरा रोष और आत्म सम्मान से भर गया। वे वेतन में पाई मोटी गड्डी को पर्स में सम्भाल कर रखते हुए सोफे से खड़ी हो गई और बोली- “सर अब हम इतना भी गलत नहीं कर रहे हैं। देखिए पैसे के लिए हर जगह क्या-क्या नहीं हो रहा है? आखिर तो हम सब कुछ अपने बच्चों के लिए ही कर रहे हैं। उन्हीं को घर छोड़कर समाज सेवा के नाम पर जहाँ तहाँ घूमते फिरे तो क्या फायदा।”
इतना कहकर दीपाजी ने दरवाजे से बाहर निकलते हुए सर को दोनों हाथ जोड़ दिए। घर पर बच्चे उनका इंतजार कर रहे थे। सर के प्रत्युत्तर की न उन्हें आवश्यकता थी न ही सुनने का समय।
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अपर्णा शर्मा
डॉ0 (श्रीमती) अपर्णा शर्मा ने चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय (मेरठ विश्वविद्यालय), मेरठ से एम.फिल. की उपाधि 1984 में, तत्पश्चात् पी-एच.डी. की उपाधि 1991 में प्राप्त की। आप निरंतर लेखन कार्य में रत् हैं। डॉ0 शर्मा की एक शोध पुस्तक - भारतीय संवतों का इतिहास (1994), एक कहानी संग्रह खो गया गाँव (2010), एक कविता संग्रह जलधारा बहती रहे (2014), एक बाल उपन्यास चतुर राजकुमार (2014), तीन बाल कविता संग्रह, एक बाल लोक कथा संग्रह आदि दस पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। साथ ही इनके शोध पत्र, पुस्तक समीक्षाएं, कविताएं, कहानियाँ, लोक कथाएं एवं समसामयिक विषयों पर लेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं। आपकी बाल कविताओं, परिचर्चाओं एवं वार्ताओं का प्रसारण आकाशवाणी, इलाहाबाद एवं इलाहाबाद दूरदर्शन से हुआ है। साथ ही कवि सम्मेलनों व काव्यगोष्ठियों में भागीदारी बनी रही है।
शिक्षा- एम0 ए0 (प्राचीन इतिहास व हिंदी), बी0 एड0, एम0 फिल0 (इतिहास), पी-एच0 डी0 (इतिहास)
प्रकाशित रचनाऍ-
भारतीय संवतों का इतिहास (शोध ग्रंथ), एस0 एस0 पब्लिशर्स, दिल्ली, 1994, ISBN: 81-85396-10-8.
खो गया गॉव (कहानी संग्रह), माउण्ट बुक्स, दिल्ली, 2010, ISBN: 978-81-90911-09-7-8.
पढो-बढो (नवसाक्षरों के लिए), साहित्य संगम, इलाहाबाद, 2012, ISBN: 978-81-8097-167-9.
सरोज ने सम्भाला घर (नवसाक्षरों के लिए), साहित्य संगम, इलाहाबाद, 2012, ISBN: 978-81-8097-168-6.
जलधारा बहती रहे (कविता संग्रह), साहित्य संगम, इलाहाबाद, 2014, ISBN: 978-81-8097-190-7.
चतुर राजकुमार (बाल उपन्यास), सस्ता साहित्य मण्डल, नई दिल्ली, 2014, ISBN: 978-81-7309-800-0 (PB).
विरासत में मिली कहानियॉ (कहानी संग्रह), सस्ता साहित्य मण्डल, नई दिल्ली, 2014, ISBN: 978-81-7309-801-7 (PB).
मैं किशोर हॅू (बाल कविता संग्रह), सस्ता साहित्य मण्डल, नई दिल्ली, 2014, ISBN: 978-81-7309-802-4 (PB).
नीड़ सभी का प्यारा है (बाल कविता संग्रह), सस्ता साहित्य मण्डल, नई दिल्ली, 2014, ISBN: 978-81-7309-808-6 (PB).
जागो बच्चो (बाल कविता संग्रह), सस्ता साहित्य मण्डल, नई दिल्ली, 2014, ISBN: 978-81-7309-803-1 (PB).
विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में लेख पुस्तक समीक्षाऍ, कहानियॉ, कविताऍ प्रकाशित । लगभग 100 बाल कविताऍ भी प्रकाशित । दूरदर्शन, आकाशवाणी एवं काव्यगोष्ठियों में भागीदार।
व्यक्तिगत विवरण -
जन्मतिथि : मार्च 14, 1961 निवास : उ0प्र0 (जन्म से)
जन्म स्थान : मेरठ राष्ट्रीयता : भारतीय
पिता का नाम : श्री देवकरण शर्मा
माता का नाम : श्रीमती रतन देवी (स्वर्गीय)
वैवाहिक स्थिति : विवाहित
पति का नाम एवं पता : डॉ0 सुशील कुमार शर्मा, आचार्य, अंग्रेजी विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, इलाहाबाद (उ0प्र0)। पिनः 211002
सम्पर्क : डॉ0 (श्रीमती) अपर्णा शर्मा, "विश्रुत", 5, एम.आई.जी., गोविंदपुर, निकट अपट्रान चौराहा, इलाहाबाद (उ0प्र0), पिनः 211004
दूरभाषः +91-0532-2542514 दूरध्वनिः +91-08005313626
ई-मेलः <draparna85@gmail.com>
पुरस्कार एवं सम्मान : 1. मेरा नाम इन्टरनेशनल हूज हू ऑफ प्रोफेशनल एण्ड बिजनेस वीमेन, छठा संस्करण, अमेरिकन बायोग्रेफिकल इन्स्टीट्यूट, रैले, नार्थ केलिफोर्निया, यू0 एस0 ए0 (International WHO’s WHO of Professional and Business Women, 6th edition, published by American Biographical Institute, Raleigh, North California, U.S.A.) में सम्मिलित है।
2. मेरे सम्पूर्ण कार्य कलापों, उपलब्धियों एवं सामाजिक योगदान के लिये मुझे इन्टरनेशनल बोर्ड आफ रिसर्च आफ अमेरिकन बायोग्रेफिकल इन्स्टीट्यूट, यू0 एस0 ए0 (International Board of Research of American Biographical Institute, U.S.A.) द्वारा "वूमेन आफ द इयर 1998" (‘Woman of the Year 1998’) हेतु नामित किया गया।
(अपर्णा शर्मा)
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