समीक्षक : डा रमेश सोबती (डी लिट) अंग्रेजी साहित्य के इतिहास के रोमांटिसिज्म, हिन्दी के छायावाद और अमेरिका के ट्रांसेंडेंटल रोमांटिसिज्म-आधुन...
समीक्षक : डा रमेश सोबती (डी लिट)
अंग्रेजी साहित्य के इतिहास के रोमांटिसिज्म, हिन्दी के छायावाद और अमेरिका के ट्रांसेंडेंटल रोमांटिसिज्म-आधुनिक कविता की केन्द्रीय दिशा और बोध को प्रभावशाली तौर पर व्याख्यायित करते हैं।वर्ड्सवर्थ ने पहले कविता को “भावों के अतिरेक का उच्छलन” कहा फिर “एकाग्रता में संकलित विचार” को कविता कहा। आधुनिक युग में एलियट ने निर्वेयक्तिक्ता के सिद्धांत पर जोर देकर कविता को भावभूमि प्रदान की। अब प्रश्न यह उठता है कि कोई कविता क्यों लिखता है? कोई कहता है कि वह बिना लिखे रह नहीं सकता, अर्थात कविता की वेलासिटी यानी वेग लेखक के भीतर उसी विहीमेन्स यानी तीव्रता से कार्य करती है जितनी तीव्रता से उसमे अन्य प्राकृतिक आवेग उत्पन्न होते हैं। ऐसा भी कहा गया है कि कविता से बेहतर आत्मप्रकटीकरण का दूसरा कोई माध्यम है ही नहीं।कविता समाज को अच्छी सेहत देने और लोक कल्याण के लिए लिखी जाती है जैसे रामचरित मानस ( तुलसीदास), नीर भरी दु:ख की बदली (महादेवी), दु:ख ही जीवन की कथा रही (निराला), घनीभूत पीड़ा (प्रसाद), अथवा our sweetest songs are those that tell us of the saddest thoughts (शैली) आदि भाव और संवेदना के अतिरेक के सिद्धांत के प्राधान्य का प्रतिपादन करते हैं। इसे एक बेहतरीन कला भी माना गया है। इसका “आदि और अंत” नितांत एक कला मात्र ही है।
हिंदी के छायावाद और उत्तर छायावादी कवियों (दिनकर, बच्चन, भगवतीचरण वर्मा,नरेन्द्र शर्मा आदि के द्वैत या द्वंद्व से आगे हिंदी कविता में प्रयोगवाद और नई कविता का जन्म हुआ। अग्येय, जो प्रयोगवाद के प्रथम प्रस्तोता थे, “दूसरा सप्तक” के बाद “प्रयोगवाद” शब्द का प्रयोग बंद कर “नई कविता” शब्द का प्रयोग करने लगे थे। नई कविता का अधिक विकसित पक्ष रघुवीर सहाय, श्रीकांत वर्मा, केदारनाथ सिंह और कुंवरनारायण की कविता में व्यक्त हुआ।इसी परंपरा का राजेन्द्र नागदेव का सद्य प्रकाशित काव्य संकलन “उस रात चांद खण्डहर में मिला” है। बेशक ये कविताएं बौद्धिकता के प्रभाव से अछूती नहीं हैं, फिर भी इन कविताओं में ऊर्जा, उत्तेजना, सड़ती हुई सत्ता तथा व्यवस्था के प्रति जो रचनात्मक आक्रोश मिलता है वह कम ही अन्य कवियों में मिलता है।इन कविताओं में सत्यान्वेषण की प्रक्रिया है। नागदेव सत्यान्वेषण के समर्थक हैं और परंपरा से जो संचित किया उसी से परितोष करने में विश्वास रखते हैं।उनकी वृत्ति इस बात की द्योतक है कि वे एक प्रकार का नैतिक आग्रह विकसित कर सकें। अर्जित तथा मर्यादित नैतिकता का साक्ष्य यह काव्य संकलन और संकलित कविताएं तीव्र भावुकता के साथ उपस्थित हैं। बेशक ये कविताएं रुचिकर हैं लेकिन इस भावबोध में तथा सौन्दर्यपरक तुष्टि में बहुत भिन्नता है, यथा-
“मैं आकाश को / दोनों हाथों से पकड़ / झिंझोड़ देना चाहता हूं
कि कंकड़ों की तरह खड़खड़ाकर / बज उठें ग्रह-नक्षत्र
फट जाए बासी हो चुका जमा हुआ सन्नाटा/
मेरे आकाश में ग्रह-नक्षत्र थे ही नहीं।“ (पृ – 22)
नागदेव का कवि-व्यक्तित्व एक variegated यानी विचित्र प्रकार के मानसिक reciprocation परिवर्तन से गुजर रहा होता है, अर्थात उसके भीतर एक प्रक्रिया-वृत्त खत्म हो चुका है और एक और आक्रोश की अकुलाहट विद्यमान है।यह अकुलाहट नागदेव के परिपक्व व्यक्तित्व का बीज न होकर नितांत छटपटाहट ही manifest कर पाई है, जैसे-
“गाड़ियां पागल कुत्तों की तरह दौड़तीं हर तरफ़,
कुत्तों के बीच फँसी हुई एम्बुलेन्स/ सांसें धीमी हो रही होंगीं/
प्रार्थनाएं निरर्थक/ एम्बुलेन्स शायद अब सीधी मरघट जाए” (पृ-48)
यश:वृद्धि करने वाले इस संकलन की रचनाएं पाठक के ह्र्दय में पूर्णरूपेण अपनी छाप छोड़ने में सफल रही हैं।ये कवि के सम्पूर्ण मन के प्रबल वेग से कागज़ पर उतरी हैं।इन कृतियों में मध्यवर्गीय मन का जीता जागता चित्रण प्रस्तुत किया गया है। कुछ कविताएं लंबी तथा प्रतीकात्मक हैं। इनमे नई पीढी के कल्याणार्थ पुरानी पीढी के त्याग करने का सुंदर चित्रण है, “बाल्कनी में शहर” नामक रचना पूर्वार्ध्द की अच्छी रचनाओं में से एक है। “शहर में चांदनी” और “उस रात चांद खण्डहर में मिला” तथा “जा रहे हैं परिंदे” महत्वपूर्ण कविताएं हैं। नागदेवजी की एक बड़ी विशेषता यह है कि उनकी प्रतिक्रियात्मक अनुभूतियां भी अकलात्मक तरीके से नहीं प्रस्तुत हो पातीं। अपनी घुटन तथा अकुलाहट और अतृप्ति को वे कलात्मक पुट देकर ऐसे परोक्ष ढ़ंग से कहते हैं कि पाठक का ज़हन एकदम सर्द हो जाता है और कविताएं अपना सम्पूर्ण प्रभाव छोड़े बिना नहीं रहतीं।
पारंपरिक काव्य सिध्दांत के अनुसार- ‘कविता अर्थकृते, यशकृते, शिवेतरक्षये” अर्थात धन लाभ, यश और लोक कल्याण के लिए लिखी जाती है। यह बहुत व्याव्हारिक दर्शन है जो अर्थकृत है वह सोद्देश्य लेखन है।मैं यहां यश तथा लोक कल्याण की बात करूंगा। यश मनुष्य की सामान्य अभीप्सा है- “उत्पतस्यते स्पदि कोडपि नम्र समानधर्म….” कभी तो कहीं तो मुझे जानने वाला पैदा होगा, इस बड़ी धरती पर और अनंत काल श्रंखला में! शिव से इतर के क्षय अर्थात लोक कल्याण के लिए भी कविता लिखी जाती है। नागदेव के इस काव्य संकलन के प्रणयन के प्रति मैं यही कहूंगा कि इतनी आधुनिक “सेंसिबिलिटी” के भाव हमारे काव्य में बहुत नहीं हैं। यहां फिर देखिए, “प्रत्युत्तर” की कुछ पक्तियां-
“प्रार्थना कर रहा था सुबह/ ऐसे ही उड़ते रहें पक्षी/
आकाश के अनंत विस्तार में स्वच्छंद/ एक पीली चिड़िया का/
गीला लाल पंख/ पांव पर गिरा तभी,
कितनी जल्दी/ प्रार्थना का प्रत्युत्तर आ जाता है कभी !” पृ- 83
नागदेव की कविताओं में कितने ही विचारों, भावों का आना जाना है। ऐसी सच्ची, तटस्थ तथा जानदार कविता इस बीच लिखी जा रही है, जो आदमी की आज की दशा के सम्बंध में हमारी समझ और संवेदना को गहरा और सार्थक करती है।कवि की व्यक्तिवादी दृष्टि की सीमा संकुचित नहीं है। विराट आयाम है,सार्थक दृष्टि है।इस संकलन में सही अर्थों में नई काव्य भाषा और भावबोध नागदेव ने दिया है।सच यही है कि ये विभिन्न प्राविधिक उपयोगों की कविताएं हैं अत: खूब खूब स्वागत होगा, क्योंकि इसमे कीमती धातु की मणियां सजी हुई हैं।
कविता संग्रह : “उस रात चांद खण्डहर में मिला”
कवि : राजेन्द्र नागदेव
प्रकाशक : पुनर्नवा प्रकाशन, रेवतीकुंज, हापुड़- 245101
मूल्य : रु 295/-
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डा रमेश सोबती
एन आर आई एवेन्यू
सुखचैन रोड, फगवाड़ा (पंजाब)- 144401
मो- 098153-85535
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