महावीर सरन जैन का आलेख - सर्वधर्मसमभाव की स्वीकृति

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लोक सभा के चुनावों तथा उनके बाद के कालखण्ड में मोदी जी के भक्त और भाजपा के प्रवक्ता “सेकुलर” शब्द को गाली देते रहे तथा देश के कट्टरवादी वि...

लोक सभा के चुनावों तथा उनके बाद के कालखण्ड में मोदी जी के भक्त और भाजपा के प्रवक्ता “सेकुलर” शब्द को गाली देते रहे तथा देश के कट्टरवादी विचारक “सेकुलर” को राजनैतिक पूर्वग्रह और विचारधाराओं की जकड़बंदी का कारण निरूपित करते रहे। आज भारत की लोक सभा के अन्दर मोदी जी का भाषण ने जैसे हवा का रुख बदल दिया। “कोई भी व्यक्ति भारत के संविधान से झेड़खानी की कल्पना नहीं कर सकता और अगर वह ऐसी कोशिश करेगा तो वह खुदकुशी होगी। - -”। जब मोदी जी बोल रहे थे तब उनकी बगल में बैठे भारत के गृहमंत्री श्री राजनाथ सिंह की सूरत देखने लायक थी।

मुझे जनवरी, 2001 में भारत के प्रख्यात विधिवेत्ता, इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के तत्कालीन अध्यक्ष एवं गहन चिंतक तथा साहित्य मनीषी श्री लक्ष्मी मल्ल सिंघवी जी के साथ “सेकुलर” शब्द के धर्मनिपेक्ष हिन्दी अनुवाद पर हुए वार्तालाप का स्मरण हो आया है। केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा में 31 जनवरी, 2001 को आयोजित होने वाली “हिन्दी साहित्य उद्धरण कोश” विषयक संगोष्ठी का उद्घाटन करने के लिए सिंघवी जी पधारे थे। संगोष्ठी के बाद घर पर भोजन करने के दौरान श्री लक्ष्मी मल्ल सिंघवी ने मुझसे कहा कि सेक्यूलर शब्द का अनुवाद धर्मनिरपेक्ष उपयुक्त नहीं है। उनका तर्क था कि रिलीज़न और धर्म पर्याय नहीं हैं। धर्म का अर्थ है = धारण करना। जिसे धारण करना चाहिए, वह धर्म है। कोई भी व्यक्ति अथवा सरकार धर्मनिरपेक्ष किस प्रकार हो सकती है। इस कारण सेक्यूलर शब्द का अनुवाद पंथनिर्पेक्ष अथवा धर्मसापेक्ष्य होना चाहिए।

मैंने उनसे निवेदन किया कि शब्द की व्युत्पत्ति की दृष्टि से आपका तर्क सही है। इस दृष्टि से धर्म शब्द किसी विशेष धर्म का वाचक नहीं है। जिंदगी में हमें जो धारण करना चाहिए, वही धर्म है। नैतिक मूल्यों का आचरण ही धर्म है। धर्म वह पवित्र अनुष्ठान है जिससे चेतना का शुद्धिकरण होता है। धर्म वह तत्त्व है जिसके आचरण से व्यक्ति अपने जीवन को चरितार्थ कर पाता है। यह मनुष्य में मानवीय गुणों के विकास की प्रभावना है। मगर संकालिक स्तर पर शब्द का अर्थ वह होता है जो उस युग में लोक उसका अर्थ ग्रहण करता है। व्युत्पत्ति की दृष्टि से तेल का अर्थ तिलों का सार है मगर व्यवहार में आज सरसों का तेल, नारियल का तेल, मूँगफली का तेल, मिट्टी का तेल भी “तेल” होता है। कुशल का व्युत्पत्यर्थ है कुशा नामक घास को जंगल से ठीक प्रकार से उखाड़ लाने की कला। प्रवीण का व्युत्पत्यर्थ है वीणा नामक वाद्य को ठीक प्रकार से बजाने की कला। स्याही का व्युत्पत्यर्थ है जो काली हो।

मैंने उनके समक्ष अनेक शब्दों के उदाहरण प्रस्तुत किए और अंततः उनके विचारार्थ यह निरूपण किया कि वर्तमान में जब हम हिन्दू धर्म, इस्लाम धर्म, जैन धर्म, बौद्ध धर्म, इसाई धर्म, सिख धर्म, पारसी धर्म आदि शब्दों का प्रयोग करते हैं तो इन प्रयोगों में प्रयुक्त “धर्म” शब्द रिलीज़न का ही पर्याय है। अब धर्मनिरपेक्ष से तात्पर्य सेक्यूलर से ही है। सेकुलर अथवा धर्मनिरपेक्षता का अर्थ धर्म विहीन होना नहीं है। इनका मतलब यह नहीं है कि देश का नागरिक अपने धर्म को छोड़ दे। इसका अर्थ है कि लोकतंत्रात्मक देश में हर नागरिक को अपने धर्म का पालन करने का समान अधिकार है मगर शासन को धर्म के आधार पर भेदभाव करने का अधिकार नहीं है। शासन को किसी के धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करना चाहिए। इसका अपवाद अल्पसंख्यक वर्ग होते हैं जिनके लिए सरकार विशेष सुविधाएँ तो प्रदान करती है मगर व्यक्ति विशेष के धर्म के आधार पर सरकार की नीति का निर्धारण नहीं होता। उन्होंने मेरी बात से अपनी सहमति व्यक्त की। आज मोदी जी ने यह कहकर कि बहुसंख्यक समाज अल्पसंख्यक समाज पर कुछ थोप नहीं सकता उन लोगों के मुँह पर तमाचा जड़ा है जो “सेकुलर” शब्द को गाली देते रहे हैं और तुष्टिकरण का पूर्ववर्ती सरकारों पर आरोप लगाते रहे हैं।

प्रत्येक लोकतंत्रात्मक देश में उस देश के अल्पसंख्यक वर्गों के लिए विशेष सुविधाएँ देने का प्रावधान होता है। अल्पसंख्यक वर्गों को विशेष सुविधाएँ देने का मतलब “तुष्टिकरण” नहीं होता। यह हमारे संविधान निर्माताओं द्वारा प्रदत्त “प्रावधान” है। ऐसे प्रावधान प्रत्येक लोकतांत्रिक देशों के संविधानों में होते हैं। उनके स्वरूपों, मात्राओं एवं सीमाओं में अंतर अवश्य होता है। भारत एक सम्पूर्ण प्रभुता सम्पन्न समाजवादी धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य है। संविधान में स्पष्ट है कि भारत “सेकुलर” अथवा “धर्मनिरपेक्ष” लोकतांत्रिक गणराज्य है। जिस प्रकार “लोकतंत्र” संवैधानिक जीवन मूल्य है उसी प्रकार “धर्मनिरपेक्ष” संवैधानिक जीवन मूल्य है। एक बार भारत की प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने देश पर आपात काल थोपकर लोकतंत्र की मूल भावना के विपरीत कदम उठाया था और उनको इसका परिणाम भुगतना पड़ा था। जो देश के सेकुलर अथवा धर्मनिरपेक्ष स्वरूप से छेड़छाड़ करने की कोशिश करेगा, उसको भी उसका परिणाम भुगतना पड़ेगा। मोदी जी बार-बार स्वामी विवेकानन्द के प्रति अपनी भक्ति प्रदर्शित कर चुके हैं। मैं यह निवेदित करना चाहूँगा कि स्वामी विवेकानन्द धार्मिक सामंजस्य एवं सद्भाव के प्रति सदैव सजग दिखाई देते हैं।विवेकानन्द ने बार-बार सभी धर्मों का आदर करने तथा मन की शुद्धि एवं निर्भय होकर प्राणी मात्र से प्रेम करने के रास्ते आगे बढ़ने का संदेश दिया।

पूरे विश्व में एक ही सत्ता है। एक ही शक्ति है। उस एक सत्ता, एक शक्ति को जब अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है तो व्यक्ति को विभिन्न धर्मों, पंथों, सम्प्रदायों, आचरण-पद्धतियों की प्रतीतियाँ होती हैं। अपने-अपने मत को व्यक्त करने के लिए अभिव्यक्ति की विशिष्ट शैलियाँ विकसित हो जाती हैं। अलग-अलग मत अपनी विशिष्ट पारिभाषिक शब्दावली का प्रयोग करने लगते हैं। अपने विशिष्ट ध्वज, विशिष्ट चिन्ह, विशिष्ट प्रतीक बना लेते हैं। इन्हीं कारणों से वे भिन्न-भिन्न नजर आने लगते हैं। विवेकानन्द ने तथाकथित भिन्न धर्मों के बीच अन्तर्निहित एकत्व को पहचाना तथा उसका प्रतिपादन किया। मनुष्य और मनुष्य की एकता ही नहीं अपितु जीव मात्र की एकता का प्रतिपादन किया। स्वामी विवेकानन्द का नाम जपने वाले विवेकानन्द का साहित्य भी पढ़ पाते तथा विवेकानन्द की मानवीय, उदार, समतामूलक दृष्टि को समझ पाते। सर्वधर्मसमभाव की स्वीकृति भारतीय संविधान की आत्मा है और हमारे राजनेताओं तथा बुद्धिजीवियों को इसे मन से स्वीकार करना चाहिए और सबको मिलजुलकर देश के विकास के मार्ग को प्रशस्त करना चाहिए। देश का विकास किसी भी वर्ग के प्रति नफरत, घृणा तथा हिंसा के रास्ते से सम्भव नहीं है।

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प्रोफेसर महावीर सरन जैन

सेवानिवृत्त निदेशक, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान

123, हरि एन्कलेव

बुलन्दशहर - 2013001

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रचनाकार: महावीर सरन जैन का आलेख - सर्वधर्मसमभाव की स्वीकृति
महावीर सरन जैन का आलेख - सर्वधर्मसमभाव की स्वीकृति
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