पीठ पर भारी बोझ लादे गधा चुपचाप आगे बढ़ रहा था तभी सड़क के किनारे के पेड़ पर बैठा उल्लू उस पर तंज कसते हुए बोला-‘‘गधा कहीं का?‘‘ गधे ने ध्...
पीठ पर भारी बोझ लादे गधा चुपचाप आगे बढ़ रहा था तभी सड़क के किनारे के पेड़ पर बैठा उल्लू उस पर तंज कसते हुए बोला-‘‘गधा कहीं का?‘‘ गधे ने ध्यान नहीं दिया पर उल्लू ने फिर जोर से चिल्लाकर कहा-‘‘गधा कहीं का?‘‘ और जोरदार ठहाका लगया। अब गधे से रहा नहीं गया। वह सिर उठाकर उल्लू की ओर देखा और बोला-‘‘उड़ा ले बेटा! जितना जी चाहे मजाक उड़ा ले अब जमाना उल्लुओं का है। यदि पहले वाला जमाना होता जब लोग कहते थे कि अल्लाह मेहरबान तो गधा पहलवान तो तुझे खींचकर ऐसा तमाचा जड़ता कि तेरी नानी याद आ जाती पर अब तो लक्ष्मी मेहरबान तो उल्लू बुद्धिमान का युग आ गया है। पहले परिश्रम शीलता और विद्वता की पूजा होती थी। आज चालाकी और धूर्तता की पूजा होने लगी है।‘‘
उल्लू गधे की बात का उपहास करते हुए शान से सिर उठाया जैसे कह रहा हो हमसे बढ़कर कौन है। तभी गधे की नजर उल्लू के माथे पर पड़ी। उल्लू के मस्तक पर गुलाल का टीका लगा हुआ था। गधे का दिमाग चकराया पर मामला कुछ भी समझ में नहीं आया तो उसने पूछा-‘‘अबे कहीं से अपना सम्मान कराके बैठा है या बाबागिरी के धंधे पर उतर आया है। तेरे माथे पर गुलाल का टीका? पहले जिस गुलाल टीका को देखकर श्रद्धा उमड़ती थी उसे देखकर आजकल संदेह उपजने लगा है। सच-सच बता, आखिर मामला क्या है।‘‘
उल्लू फिर जोरदार ठहाका लगाया और बोला-‘‘अरे वाह रे गधे! भारी बोझ लादे जिन्दगी की बोझ ढो रहा है। इतनी मेहनत करने के बाद भी तुझे पेट भर दो जून की रोटी नसीब नहीं हो रही है और ज्ञान ऐसा बघार रहा है जैसे विद्वता का ठेका ले रखा है। तुझे तो इतना भी पता नहीं कि दीवाली नजदीक आ गई है अब माता लक्ष्मी यहां भ्रमण पर आने वाली है। उसी की तैयारी देखने यहां आया हूँ। लक्ष्मी भक्तों की भारी भीड़ ने मेरा खूब स्वागत-सत्कार किया है। बहुत से लोगों ने अपने घर में लक्ष्मी जी को लाने के लिए बाकायदा एडवांस में मुझे पत्रम-पुष्पम् प्रदान किया है। आजकल मेरी सिफारिश के बिना लक्ष्मी जी की कृपा किसी पर बरसने वाली नहीं हैं। समझा, गधा कहीं का।‘‘
गधा घृणा से जमीन पर थूकते हुए कहा-‘‘अरे तू लक्ष्मी जी का वाहन है या कलिमल बाबा का एजेन्ट जो घूस खाकर किसी पर लक्ष्मी जी की कृपा बरसवायेगा, नमकहराम।‘‘
उल्लू चिढ़कर बोला-‘‘चल-चल अपना रास्ता नाप। बड़ा आया मुझे सिखाने वाला। नमक हलाली से तुझे पीठ पर डंडे की मार के सिवा और क्या मिला अब तक। ज्यादा होशियारी मत दिखा।‘‘
सचमुच अब गधे के पास कहने के लिए कुछ नहीं बचा। वह चुपचाप सिर झुकाये आगे बढ़ गया। उल्लू एक बार फिर जोरदार ठहाका लगाया और लक्ष्मी निवास की ओर उड़ चला।
धीरे-धीरे दीवाली की रात भी आ गई। लक्ष्मी जी अपने भक्तों के घर आने के लिए तैयार हो गई। उल्लू मंद-मंद मुस्करा रहा था। क्योंकि रूट चार्ट वह स्वयं बनाया था। लक्ष्मी जी को किसके घर ले जाना है और किसके घर नहीं वह पहले से तय कर रख था।
अन्ततः लक्ष्मी जी उस पर सवार हुई और उल्लू उसे अपनी पीठ पर बिठाकर धरती पर उतरने लगा। धरती के नजदीक आते ही एक जोरदार धमाका हुआ। उल्लू का सन्तुलन बिगड़ गया। लक्ष्मी जी गिरते-गिरते बची। धूल और धुएं के गुबार से लक्ष्मी जी की आँखे कसकने लगी और धमाके के कारण उनका रक्तचाप बढ़ गया। दिल की धड़कने बढ़ गई। लक्ष्मी जी ने कहा- ‘‘अरे उल्लू तू कहीं रास्ता तो नहीं भटक गया? मैंने तो तुझे अपने भक्तों के घर ले जाने के लिए कहा था पर लगता है तू मुझे किसी देश की सीमा पर ले आया। यहां तो युद्ध छिड़ गया है तभी तो यहां फायरिंग हो रही है और बम विस्फोट हो रहे हैं।‘‘
उल्लू बोला-‘‘नहीं मैम! यहां युद्ध नहीं छिड़ा है। ये धमाके तो आपके स्वागत में हो रहे हैं। यहां दीवाली में आपके स्वागत-सत्कार की ऐसी ही परम्परा है।‘‘ लक्ष्मी जी ने व्यंग्य से कहा-‘‘अच्छा तो यहां मुझे इक्कीस तोपों की सलामी दी जा रही है, है ना?‘‘ उल्लू कंधे उचकाकर बोला-‘‘ऐसा ही समझ लीजिए मैम।‘‘
बातचीत करते हुए अब लक्ष्मी जी धरती के बिल्कुल निकट आ गई थी। तभी उन्हें एक नौजवान एटम बम फोड़ते दिखा। आग लगाते समय असावधानी के कारण एटम बम पहले ही फट गया और वह नौजवान घायल हो गया। लक्ष्मी जी ने उल्लू से वहां थोड़ा रूकने के लिए कहा मगर उल्लू ने जवाब दिया-‘‘माता जी यहां सब बापू की बातों को आत्मसात करके जीने वाले लोग हैं। आपको तो पता ही है कि बापू ने अपने तीन बंदरों के माध्यम से संदेश दिया था-बुरा मत सुनो, बुरा मत देखो और बुरा मत कहो। ये युवक अपने आप को इस सिद्धांत में जीने लायक बना रहा है। धमाके के कारण इसकी श्रवण शक्ति कम होगी तो ये बुरा तो क्या अच्छा भी नहीं सुन पायेगा। आंखों की रोशनी चली जायेगी तो बुरा तो क्या अच्छा को भी नहीं देख सकेगा और यदि पटाखों के कारण घटित दुर्घटना में मारा जायेगा तो बुरा तो क्या अच्छा कहने के काबिल भी नहीं रहेगा। ऐसे सिरफरे युवकों को समझाना मुसीबत मोल लेना ही है। यहां समय बर्बाद करना उचित नहीं है। सीधे अपने भक्तों के घर चलिए। उन्हें दर्शन देकर कृपा बरसाइये और उन्हें कृतार्थ कीजिए।‘‘ उल्लू अपने रूट चार्ट के हिसाब से लक्ष्मी जी को लेकर आगे बढ़ने लगा।
उल्लू , लक्ष्मी जी को लेकर सीधे महलों की ओर उड़ रहा था। रास्ते में छोटी-छोटी झुग्गी झोपड़ियां दिखाई दे रही थी। नंग-धड़ंग बच्चे, असहाय बूढ़े, बेरोजगारी के कारण जीवन से हताश युवा और महंगाई की मार से अधमरी गृहणियां दिखाई दे रही थी। लक्ष्मी जी को उन पर दया आ रही थी तो उन्होंने उल्लू से फिर वहां कुछ देर रूकने के लिए कहा।
उल्लू उनकी बातों को टालते हुए बोला-‘‘मैडम! ये लोग ना तो रिश्वत खाते हैं। ना बेईमानी करते हैं। ना जमाखोरी और ना मिलावट खोरी करते है। ना किसी को धोखा देते हैं और ना ही किसी को बेवकूफ बनाते है बस दिनभर जी तोड़ परिश्रम भर करते हैं। अब आप ही बताइये यदि आप इन पर भी कृपा बरसाने लगेंगी तो आपके ऐसे भक्तों पर क्या बीतेगी जो बेईमानी के पैसे से आपके लिए घी के दीये जलाते है। जो आपको पाने के लिए मनुष्यता का गला घोंट सकते है। गरीब का खून पी सकते है। गरीबों के हक पर डाका डाल सकते है। अपने ईमान को सरे आम बाजार में नीलाम कर सकते है। ऐसे भक्तों के समर्पण का क्या होगा। जरा उनका भी तो ख्याल रखिये।‘‘ उल्लू के तर्क के सामने लक्ष्मी जी निरूत्तर हो गईं। उल्लू मन ही मन मुस्कराते हुए महलों की ओर उड़ चला।
लक्ष्मी जी को लाने के लिए उल्लू को पहले से ही घूस खिलाये हुए भक्त गण बड़े प्रसन्न हो रहे थे। लक्ष्मी जी स्वयं आश्चर्य चकित थी। क्योंकि ऐसे भक्तगण लक्ष्मी जी से ज्यादा स्वागत-सत्कार उल्लू का कर रहे थे। कोई उल्लू की आरती गा रहा था तो कोई उसको प्रसाद अर्पित कर रहा था। लक्ष्मी जी को मुश्किल से एक भक्त थोड़ा असमजंस में नजर आया जो शायद सोच रहा था कि लक्ष्मी, उल्लू दोई खड़े काके लागू पायं पर कुछ ही देर में वह भक्त भी उल्लू के कदमों पर झुक गया। शायद वह इस दोहे के आखिरी पंक्ति को आत्मसात कर कर गया था।
उल्लू के बताये हुए भक्तों पर अपनी कृपा बरसाकर लक्ष्मी जी लौटने लगी। लक्ष्मी जी ने जिज्ञासा-वश उल्लू से पूछा-‘‘क्यों रे उल्लू! क्या बात है जो आजकल यहां तेरा खूब स्वागत-सत्कार हो रहा है।‘‘
उल्लू मुस्कुराते हुए बोला-‘‘माता! आपकी कृपा से मैं आजकल श्रद्धेय हो गया हूँ। अब सब मुझे श्रद्धेय उल्लू जी कहकर सम्मान देते हैं। सब आपकी ही कृपा तो है माता।‘‘
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वीरेन्द्र ‘सरल‘
बोड़रा (मगरलोड़)
जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)
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