मनुष्य और देवता में अन्योन्याश्रय संबंध रहा है । पहले देवता ने मनुष्य को बनाया ,फिर मनुष्य ने देवता को बनाया ,दूसरे शब्दों में अगर यूं कह...
मनुष्य और देवता में अन्योन्याश्रय संबंध रहा है । पहले देवता ने मनुष्य को बनाया ,फिर मनुष्य ने देवता को बनाया ,दूसरे शब्दों में अगर यूं कहे कि मनुष्य देवता के बिना जी नहीं सकता और देवता का अस्तित्व मनुष्य के बिना शून्य है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं मानी जाती ।
हड़प्पा और मोहन जोदाड़ों की खुदाई इस विश्वास को काफी बल देती है कि प्राचीन काल से उपासना की परंपरा चली आ रही है। ,जिस जिस चीज से लोग डरते थे उसको प्रसन्न करने के लिए उसकी पूजा अर्चना शुरू कर देते थे । पहले लोग प्रकृति की पूजा करते थे ,फिर अपने घरों में पूजा करने लगे जो कालांतर में एक गोत्र या कुल की पूजा कहलाती रही । इसी प्रकार अपने वास स्थान या गांव की सुरक्षा के लिए ,दैविक या भौतिक या प्राकृतिक आपदा जैसे आग ,बाढ़ ,महामारी ,बाहरी आक्रमण आदि से दूर रखने के लिए गांव की सीमा पर ग्राम देवता या कुल देवता की स्थापना की गई ।,।
ऐसा पाया गया है कि हिंदुस्तान के अधिकांश हिस्सों में ग्राम देवता स्त्रियाँ होती हैं, जैसे सत्ती माई ,काली माई ,दुरगा माई ,चंडीमाई ,शीतला माई आदि;मगर कहीं कहीं पुरुष देवता भी होते हैं ,जैसे भैरो बाबा , बजरंग बली ,ब्रम्हा शंकर ,नंदी आदि आदि ।
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किसी समय मे स्थापित होने वाले ये पवित्र स्थान [,गाव से बाहर या सीमा पर ],ऐसे निर्जन ,सुनसान खेतों ,या गाछों के बीच हुआ करते जहां कम आबादी के कारण शाम ढलते ही भयानक और रोमहर्षक वातावरण ,विभिन्न प्रकार के भूत ,प्रेत ,चुड़ैल ,आदि की दंतकथाओं के विकास और प्रचलन से उत्पन्न भय से मनुष्यों को निजात दिलाया करते थे । पीपल या बरगद की विशाल वृक्षों की शाखाओं से बंधे नए लाल ,पीले ,कपड़े या झंडे या त्रिशूल ,सिंदूर पुते पत्थर के आकृति आदि उन्हें आसुरी या पैचासिक प्रवृत्तियों से , प्राकृतिक और ,मनुष्य कृत आपदाओं से ,मनोवैज्ञानिक सुरक्षा प्रदान करता था । उनकी दृढ़ आस्था और विश्वास के प्रतीक ये न्याय के देवता उनके आपसी और सामाजिक झगड़ों के निबटारे के लिए वास्तव में न्यायाधीश का कार्य करते । उन्हें अगाध विश्वास था कि अगर कोई बलशाली उसकी संपत्ति हड़पेगा ,उसे बिना कसूर के सताएगा तो ये देवता आततायी को अवश्य दंडित करेंगे ।
इसके अलावा बहुत सारे पवित्र पेड़ों एवं झाड़ों जैसे पीपल ,बरगद केला ,बेल ,शमी ,तुलसी ,आवला आदि की; जानवरों की ,साँपों की पूजा भी वहां होती ,समय समय पर भजन कीर्तन होता ,जिससे उनकी आध्यात्मिक शक्तियां और भी बलवती होती थी ।
राजतंत्र में भी नगर या ग्राम की बाहरी और आंतरिक सुरक्षा के लिए राजे महाराजे ग्राम या नगर देवता की मूर्ति स्थापित कराते थे ।और उनकी विधि वैट पूजा करवाते, राजा के अलावे उस इलाके के सारे लोग अपने परिवार की सुख शांति के लिए उनकी उपासना करते और बच्चों के जन्म ,मुंडन ,उपनयन ,शादी ब्याह आदि मांगलिक मौकों पर सर्व प्रथम उस सर्वाधिक आदरणीय एवं प्रतिष्ठित स्थान को न्योता जाता ,तदुपरांत वहां जाकर अपनी अगाध भक्ति , निष्ठा और आस्था का परिचय देते । सजी धजी सुहागिनें देवता को प्रसन्न करने के लिए एक से एक भक्ति पूर्ण गीत बनाती औरबड़ी भावुकता से गाती थीं । बली प्रथा समाप्त होने के बाद अनेक स्थानों पर लोग मिट्टी के हाथी ,घोड़े या ऐसी ही कुछ प्रतीकात्मक चीजें मन्नत पूरा हो जाने पर चढ़ाते हैं हालांकि किसी किसी समुदाय मे जानवरों की बली प्रथा अभी भी सुनी जाती है ।
अलग अलग गावों मे अपनी समुदाय या जाति के आधार पर लोग अपने देवता की स्थापना की गई थी । आज के बड़े बड़े नगरों या महानगरों में जो प्राचीन मंदिर हैं उनका भी स्वरूप कभी ग्राम या नगर के रक्षक ,जनकल्याण कारक ,और असीम शक्ति पूंज के रूप में था । मुंबा देवी किसी जमाने में मुंबई की ग्राम देवी ही थी । आज भी इन की महिमा कम नहीं हुई है ।पहाड़ो मे भी अनेक देवी देवता है जिन्हें वहां के स्थानीय लोग अपने इलाके का रक्षक मानते हैं,और उनके रुष्ट होने पर भयंकर प्रलय की बात कहते हैं ,जिसका एक उदाहरण केदारनाथ के प्रलय से जोड़ा गया । बहुत से आदिवासी बहुल इलाकों में आज भी लोग अपने इस ग्राम्य देवता की उपासना साल में एक बार ,ढ़ोल ,मंजीरे ,पिपही ,के साथ नाच गाकर बड़े पैमाने पर उत्सव मना कर करते हैं।
प्रकृति मे फैली अपार सकारात्मक ऊर्जा से, प्राण वायु से नवीन चेतना प्राप्त कर अपनी मानवीय जिंदगी को बेहतरीन और सुखमय बनाने का हमारे प्रात: स्मरणीय ऋषिओ ,मुनियो ,पूर्वजों आदि द्वारा दिखाया गया यह आध्यात्म का मार्ग निस्संदेह अद्भुत हैं , परम वैज्ञानिक है ।
सनातन धर्म के छत्तीस कोटि देवी देवताओं में ये सभी शामिल हैं ।लोगों ने अपनी जाति और व्यवसाय के अनुकूल अपने अपने देवता को चित्रित किया था ।
जब भारत माता ही ग्राम वासिनी हुई ,तो भले उनके देवी देवता भी कैसे उनका दामन छोड़ते । पूरब से पच्छिम ,उत्तर से दक्छिन तक ही नहीं ,सनातन धर्म के
अवशेषों को अपने सीने में सँजोए विश्व में जहां जहां भारत वंशी हैं,अपने अपने कुल या ग्राम देवता को अपने से जुदा कर ही नहीं सकते । देश परदेश की कभी कोई गहन मजबूरी हुई तो भी हृदय से कौन मिटा सकता है भला ।
ऐसे संस्थानों या जगहों पर सीधे सरल चित्त आस्थावानों की भावना का लाभ उठाकर , धूर्त और चालाक लोगों द्वारा कभी कभी बहुत से अंध विश्वासों का जन्म और पोषण भी होता है जो यदा कदा उस समाज के लिए घातक भी हो जाता है ,अत; उन अंध विश्वासों से, पाखंडों से समाज का दोहन या शोषण रोकना बेहद आवश्यक है , जिसके लिए अंध विश्वास निरोधक कानून काफी कारगर होगा ,बशर्ते इसे ईमानदारी से लागू किया जाय ।
कामिनी कामायनी ॥
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