दिनकर कुमार का कविता संग्रह - वैशाख प्रिय वैशाख

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वैशाख प्रिय वैशाख (बिहू गीतों पर आधारित कविताएं)     दिनकर कुमार   डॉ∙ दिनेश डेका के लिए   वसंत ऋतु पुलकित करता है हमारे सीने को   वसंत...

वैशाख प्रिय वैशाख
(बिहू गीतों पर आधारित कविताएं) 
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दिनकर कुमार
 
डॉ∙ दिनेश डेका के लिए
 
वसंत ऋतु पुलकित करता है हमारे सीने को
 
वसंत ऋतु पुलकित करता है हमारे सीने को
हरियाली का विस्फोट होता है हमारी आंखों के सामने
प्रकृति के सीने में चारों तरफ
नव जीवन और यौवन की लहरें उठने लगती हैं
 
सिर्फ फूल ही नहीं खिलते
हमारे अंदर भावनाएं भी खिल उठती हैं
सिर्फ पेड़ ही पोशाक नहीं पहनते
पूरी आबादी आश्वस्त हो उठती है
 
कोंपल और कलियों से लदे हुए पेड़
मोहक नजर आते  हैं
कपौ-केतकी-तगर-भाटौ-गेजेंग-जूति-मालती
इन्द्रमालती, चंपा-हारसिंगार फूलों का मेला नजर आता है
 
आसमान दमकने लगता है
अशोक-नागेश्वर-शिरीष-पलास-गुलमोहर के रंगों से
हवा में घुल जाती है नशीली खुशबू
वन-पर्वत, बस्ती में इंद्रधुनखी मंजर नजर आने लगता है
 
कोयल की कूक वैशाख के आने की
सूचना देती है
पिपहरी की पुकार
प्रेम का संदेश प्रचारित करती है
 
आकाश-हवा में फैल जाता है
दहिकतरा-सखियति-मैना-हेतुलूका-तेलीयासारेंग-बुलबुल
पंछियों का कलरव
चारों दिशाओं में मीठी तान का मायाजाल पसर जाता है
 
वसंत ऋतु पुलकित करता है हमारे सीने को

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नैहर जाती है बरदैशिला
 
वैशाख में किसी दिन
नैहर जाती है बरदैशिला
 
आसमान में बादल गरजने लगते हैं
बिजली चमकने लगती है
आंधी चलती है
सूखी पृथ्वी पर बारिश उतर आती है
 
ताल-तलैया-नद-नदी प्यास बुझाकर
तृप्त हो उठते हैं
झरना-दरिया की धारा
संगीत की लहरें पैदा कर
नाचने लगती है
 
मछलियां जलाशय में उछलने लगती हैं
खेल की मिट्टी पौद को ग्रहण करने के लिए
तत्पर हो उठती है
प्रकृति नशे में झूम उठती है
 
वैशाख में किसी दिन
नैहर जाती है बरदैशिला
 
बरदैशिला ः असम में लोकमान्यता के अनुसार वैशाख की आंधी को बरदैशिला कहा जाता है।

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वैशाख तुम जागते हो
 
वैशाख तुम जागते हो युवक-युवती
बच्चे-बूढ़े-ियों के मन प्राण में
स्नेह, प्रेम, आनंद-उत्साह और यौवन की अनुभूतियां
आम आदमी का तन-मन झूम उठता है
मातृभूमि की प्रकृति की समृद्धि को देखकर
 
वैशाख तुम युवक-युवती के मन में
प्रेम रस का संचार करते हो
चाहत की अनुभूति से
तन-मन में दौड़ाते हो बिजली की लहर
 
आबादी अपने लोकाचारों, खेल-कूद और नृत्य-गीत के जरिए
व्यक्त करती है पुलक, श्रद्धा, प्रेम, यौवन का आवेदन
भैंस का सिंग पुकारता है
ढोलक की थाप गूंजने लगती है
 
वस्त्र बुनती हुई बहू-बेटी के कदम
अनजाने में ही थिरकने लगते हैं
वे रोमांचित होकर वस्त्र पर रचती हैं फूलों को
बुनती हैं ‘फूलाम बिहूवान’-सेलेंग चादर- महीन पोशाक
 
जब मौसम का नशा चढ़ता है
प्रेमी जोड़े पेड़ों की छांव में जाकर
बिहू नृत्य करने लगते हैं
टका-गगना वाद्यों को बजाकर
धरती-आकाश को मुखरित करते हैं
 
वैशाख तुम जीवन को नया अर्थ देते हो

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वैशाख बिहू कब आएगा
 
वैशाख बिहू कब आएगा
कब आएगी कोयल
कब थामोगी मेरे हाथों को
कब पुकारोगी प्रियतम कहकर
 
पगडंडी पर मुझे छोड़कर
कहीं दूर मत जाना
तन्हा पाकर परेदशी कोई
फुसला न ले पास आकर
 
किस नाविक ने रेत पर पकाया खाना
फूसवन में लगाई आग
खेतों में तुम्हारी झलक पाने को
भटकता रहा मैं
कहां रोप रही थी धान
 
मृत्यु की जुबान दो होती है
मनुष्य की जुबान एक
मुझे मृत्यु का कोई भय नहीं
सिर्फ है तुम्हें पाने की ललक

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मीठा सा शब्द-प्रेम
 
किसने शिलाओं पर उकेरा है
मीठा सा शब्द-प्रेम
इसमें जंग भी नहीं लगता
काई भी नहीं लगती
दमकता रहता है जो
मनुष्य के कलेजे में
 
प्रेम-गिरकर टूटता नहीं
रस्सी की तरह इसे काटा नहीं जा सकता
सूखे हुए पत्ते की तरह
झरता नहीं प्रेम
इसे जहां भी लपेटा जाएगा
आसानी से लिपट जाएगा
 
इस अनमोल प्रेम को
बदन के कच्चे नमक की तरह
बचाकर रखना होगा
अगर यह खो गया
दोबारा मिल नहीं पाएगा
 
यह प्रेम व्याकुल बनाता है
छीनता है आंखों की नींद
यह एक जादुई धागा है
जो अजनबी को भी अपना बना देता है
 
इस शब्द की महिमा को आसानी से
समझा नहीं जा सकता
जब किसी के लिए सीन में हूक
महसूस होती है तब
इसकी महिमा को महसूस किया जा सकता है।

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तुम नहीं आती

 
फिर कब हो पाएगी तुमसे मुलाकात
फिर कब देख पाऊंगा तुम्हारा मुखड़ा
फिर कब थामूंगा तुम्हारे हाथों को
फिर कब मिल पाएगा मुझे सुकून
 
तुम रमी रहती हो अपनी ही दुनिया में
कभी मुस्कराती हो और
कभी उदास हो जाती हो
कभी छलछला उठते हैं तुम्हारे नयन
किसी ख्याल में तुम डूबी रहती हो
 
सूनापन मुझे बर्दाश्त नहीं होता
तुम्हें देखे बगैर कैसे रह सकता हूं
तुम अपनी मूरत बनाकर क्यों नहीं दे देती
कम से कम उसमें तुम्हें देखकर
तसल्ली तो मिल सकती है
 
न तो भूख लगती है न प्यास
न तो नींद आती है न करार
अपने आप का आजकल नहीं रहता है ख्याल
मेरा चाहे जो भी हो
तुम सदा खुश रहो आबाद रहो
 
अक्सर भ्रम होता है तुम्हारे आने का
चलते-चलते ठिठक जाता हूं
और मुड़कर देखता हूं
नजरों को धोखा होता है
तुम नहीं आती

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वैशाख में एक पगडंडी पर चलते हुए

 
वैशाख में एक पगडंडी पर चलते हुए
सांसों में भर लेना चाहता हूं
पृथ्वी की गंध
जी भरकर देख लेना चाहता हूं
हरियाली में लिपटी हुई पहाड़ी को
 
वैशाख में एक पगडंडी पर चलते हुए
धूप के साथ आंख मिचौली करना चाहता हूं
बांस वन में ठिठककर
झिंगुर की सीटी सुनना चाहता हूं
मवेशियों की घंटी की आवाज सुनते हुए
प्रकृति से मुखातिब होना चाहता हूं
 
वैशाख में एक पगडंडी पर चलते हुए
विभिन्न रंगों की भूदृश्यावली में
मग्न हो जाना चाहता हूं
जीवन की कड़वाहट को भूलकर
अपने भीतर ताजगी भर लेना चाहता हूं

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कब आएगा वैशाख बिहू
 
कब आएगा वैशाख बिहू
कब कूकेगी कोयल
कब तुम प्रियजन समझकर
पेश करोगी पान और सुपारी
 
कुहूक कुहूक बोली कोयलिया
हिरणी दौड़ी वन में
टुकड़ा-टुकड़ा होता कलेजा
विरह के दावानल में
 
कैसी झिझक कैसी हया
मैं तो कोई पराया नहीं
जब तुमने अपना मान लिया
फिर कैसी दूरी कैसा अपरिचय
 
दिन के उजाले में एक झलक
पाने के लिए बेचैन रहता हूं
रात सपने में
तुम्हारी छवि ही देखता हूं

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उलफत
 
पहली उलफत नादान होती है प्रिय
तुममें ही रम गया है मन
न लगती भूख-प्यास न ही मिलता चैन
हमेशा तुम ही रहती हो आंखों में
 
उलफत अनमोल रत्न की तरह दुर्लभ निधि की तरह
खो देने पर पाना मुश्किल होता है
इस बाली उम्र में दिल न लगाकर
क्यों बनी रहती हो गुमसुम
 
उलफत नहीं करोगी तो भला क्या जियोगी
हूक का मतलब कैसे समझ पाओगी
सड़ती हुई लकड़ी जिस तरह मिट्टी में मिल जाती है
खा जाते हैं कीड़े
 
उलफत उलफत मीठी उलफत
उलफत सिखाती है जीने का अंदाज
ऐसी उलफत अगर खो जाए
दोबारा उसे ढूंढ़ पाना मुमकिन नहीं होता
 
किसी जादू के सहारे मेरे तन-मन में
तुम समा गई हो प्रिय
उलफत के धागे को तोड़ा नहीं सकता
ऐसा करने पर कलेजे के दो टुकड़े हो जाएंगे

 

 

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तुम हो वैशाख में खिलने वाला फूल


 
फूल खिले हैं वसंत के
तुम हो वैशाख में खिलने वाला फूल
हर बार वैशाख में
तुम्हें सौंपता हूं कलेजे का सारा प्यार
 
फूलों पर मंडराते हुए भौंरे गुनगुना रहे हैं
हारसिंगार की डालियां झुक गई हैं
प्रिय तुम ही हो मेरी इच्छा मेरी आकांक्षा
तुम ही हो जीवन का संबल
मेरे हृदय के गुप्त कक्ष में खिलने वाली कली
 
फागुन की नशीली हवा
तुम लाती हो प्रेम संदेशा
हर बार वैशाख में
तुम्हें सौंपता हूं कलेजे का सारा प्यार
 
लाल नीली तितलियां
झुंड बनाकर आती हैं
पत्तों के पीछे से कोयल
मीठी तान सुनाती है
 
प्रिय तुम ही मेरे प्राण का आधार हो
उम्मीदों का जल प्रपात हो
तुम ही हो मेरी दुर्लभ मणि
न तो पीपल के कोंपल में
न ही लोहित की धारा में
तुम हमेशा रहना सितारा बनकर
मेरे मन के आसमान में
 
चारों तरफ गूंज रही है
ढोल-पेंपा की आवाज
अगर तुम मेरे पास नहीं
बढ़ जाती है बेचैनी
 
प्रिय तुम ही मेरे प्राण का आभूषण हो
तुम ही मेरे सागर की मोती हो
तुम ही मेरी सहचरी हो
 
वैशाख की दोपहरी में
ढोल की हरेक थाप के साथ
याद आती है
गुजरे मौसम की बातें
 
शहद की तरह है मेरा प्रेम
अपना हृदय तुम्हें सौंप दूंगा
सपने में और यथार्थ में
तुम रहना मेरे संग
 
प्रिय, तुम ही हो मेरे आकाश का चांद
तुम ही हो अंधेरे में रोशन जुगनू
तुम ही हो मेरी नदी की धारा

 

 

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तुमसे कब मिल पाऊंगा
 
सोंस घड़ियाल ने डुबकी लगाई लोहित में
दिखौ नदी में उछली मछलियां
मुझे उदास देखकर हंसते हैं दुश्मन
क्या तुम बर्दाश्त कर सकती हो
 
शाम की हवा में हिलते हैं लाई के पत्ते
हिलते हैं लफा के पत्ते
मेरी प्रियतमा इठला रही है मचल रही है
इस भरी जवानी में
 
लोहित के बालूचर में सरसों की खेती की
कपौ चिड़िया सरसों खा रही है
तुम्हारे घर का चक्कर लगाते हुए
कर नहीं पाया सरसों की रखवाली
 
दर्द बढ़ेगा आह निकलेगी
काम नहीं आएगी दवा
तब सोचना हाय विधाता
खुद ही मुसीबत को न्योता दे दिया
 
जाल में कैद हुई जाल की मकड़ी
जाल में कैद हुई हिरण
मैं कैद हुआ लखीमपुर नगर में
अब लौट नहीं पाऊंगा जोरहाट नगर में
 
खाते सोते उठते बैठते
दोहराता हूं तुम्हारा ही नाम
भरता हूं आहें बहाता हूं आंसू
तुमसे कब मिल पाऊंगा

 

 

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शनिवार की शाम मिलने आऊंगा
 
शनिवार की शाम मिलने आऊंगा प्रिय
आंगन का फाटक खोलकर
कुत्ते के भौंकने की आवाज सुनकर
बाहर निकल आना
 
पोखर को नए सिरे से खोदा गया
र्इंट से बनाए गए किनारे
अगर शाश्वत प्रेम को छोड़ना पड़ा
तो दिल में चुभ जाएगा नश्तर
 
गोरैये की खुशी का ठिकाना नहीं
पेड़ का फल चखने के बाद
मेरी प्रियतमा खुशी से झूम उठी
प्रियतम के आने का संदेशा पाकर
 
लोग कहते हैं तुम्हारे रूप की चर्चा चारों तरफ है
तुम्हें दिल सौंपने वालों की कतार लगी है
इसी लिए प्रिय डर लगता है
कहीं तुम्हारा प्यार बनावटी तो नहीं
 
सूखी मिर्च को पीसोगी कितनी देर तक
कितनी देर तक चावल उबालोगी
बगीचे की सफाई कितनी देर तक करोगी
वर्षा तो रुकने का नाम नहीं ले रही
नीले आसमान में तुम बन जाना मेघ
मैं बन जाऊंगा बिजली
आसमान की ऊंचाई पर घूमेंगे संग-संग
खुल कर करेंगे दिल की बातें
 

 

 

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पिंजड़े में कैद हुई पिंजड़े की मैना
 
पिंजड़े में कैद हुई पिंजड़े की मैना
गड्ढे में कैद हुआ हाथी
तुम्हारे प्यारा का मैं कैदी बना
कटती नहीं अंधियारी रात
 
गगन के सितारों को भी गिन सकता हूं
तुम्हारे नैनों में झांकते हुए
उदास रातों को गुजार सकता हूं
तुम्हारी खूबियों को याद करते हुए
 
सोवनशिरि नदी की रेत से किसने निकाला सोना
रेत को धोकर-छानकर
तुम देखती हो मुझे मैं देखता हूं तुम्हें
दोनों ही तरफ सुलग रही है आग
 
एक दूसरे का हाथ पकड़कर दिखौ नदी पार करेंगे
किनारे घास वन में हम आराम करेंगे
अगर तुम थक जाओगी
तुम्हें मैं गोद में उठा लूंगा
 
झुककर तोड़ना नदी मेंं खिले फूल को
बटोर लेना नदी की मछलियों को
दुश्मन के डर से कुछ बोल नहीं पा रहा हूं
फिर भी तुम्हें निहार रहा हूं
 
हल जोतने के बाद बैठा हूं पगडंडी पर
बगल में रखी है छड़ी
उसी समय आती है तुम्हारी याद
आंखें छलछला उठती है

 

 

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तुम्हारी नाजुक उंगलियों को निहार रहा हूं
 
तुम्हारी नाजुक उंगलियों को निहार रहा हूं
दमक रही है मेंहदी की लाली
चाहता था तुम्हारा हाथ मांगना
तुमने बेरुखी से मुंह फेर लिया
 
नर्तकी तुमने तांबूल तक नहीं दिया
समझ गया क्या है तुम्हारे दिल में
तुम जैसी पत्थरदिल से प्यार क्यों हो गया है
मैं पराए धन की तमन्ना क्यों रखता हूं
 
हाथी के आकार को देखकर खरीदना जंजीर
घोड़े के आकार को देखकर खरीदना जीन
मूगा का मेखला परखने के बाद खरीदना
पूरी करूंगा तुम्हारे सारी फरमाइशें
 
हाथ पकड़कर हमने नदी को पार किया
नदी किनारे हमने आराम किया
सोने और मोती का हार बना कर दिया
जो दमकता है तुम्हारे गले में
 
तुम्हारे हाथ की उंगलियां हैं नाजुक
पैर की उंगलियां है सुडौल
मां-बाप ने क्या खिलाकर पाला है तुम्हें
एक टक देखते रहने का जी चाहता है

 

 

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प्यारे मुखड़े मोहक मुस्कराहट में
 
प्यारे मुखड़े मोहक मुस्कराहट में
मैं भांप गया तुम्हारे प्यार को
उसी दिन से प्रियतम तुम्हें
सीने में बसाकर रख लिया
 
नदी किनारे गाता है कांसवन
लहराता है घासवन
तुम्हारी एक झलक देखने गया था
तुम बुन रही थी वस्त्र
 
कितने दिनों तक रखेंगे भैया तुम्हें घर में
मारेंग ताने बात-बात पर
ताने सुनकर दिल टूट जाएगा
छूट जाएगा खाना-पीना
 
आठिया केले में कितनी गांठें
फेंका मैंने काटकर अगला हिस्सा
कितनी मुद्दत बाद तुमसे मिला हूं
कितना खुशकिस्मत हूूं मैं
 
साम लकड़ी का पात्र दे रहा हूं प्रियतमा
और सेमल लकड़ी की नाव
जब तक जी रहा हूं साथ मत छोड़ना
खाने के लिए तांबूल काटकर दो
 
पूरब से निकलता है चांद तुम हो मेरी जान
तुम हो मेरे लिए अंधेरे का दीपक
तुम्हारे बगैर कोई नहीं देने वाला
भोजन-पानी

 

 

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कितनी उम्मीद से मैंने दिल लगाया
 
ब्याह कर लाऊंगा नेपाली युवती
बेचूंगा दूध और दही
तुम्हें दिखाकर घुमूंगा सड़कों पर
गोद में बच्चे को लेकर
 
मेघ गरजने पर काबै मछलियां किनारे तक आएंगी
पकड़कर लाऊंगा पका कर खाऊंगा
इस बार फागुन में या वैशाख में
तुम संग ब्याह रचाऊंगा
 
कलंग नदी में मछली पकड़ने के बाद पुल पर सुस्ताता हूं
आंखों में आती नहीं नींद
किस तरह पाऊंगा तुम्हें प्रियतमा
लगा लूंगा सीने से
 
अदा से साथ चलती हो मटकती हुई
मैं देखता रह जाता हूं
ऐसी रूपवती अगर मुझे नहीं मिली
जान दे दूंगा जहर खाकर
 
जंगल में खिली है थुपूकी की बेलेें
खिली है भेबेली लता
कितनी उम्मीद से मैंने दिल लगाया
अपना सब कुछ दांव पर लगाकर
 
इस तरफ घासवन उस तरफ घासवन
बीच में नदी का घाट
मुड़-मुड़कर मत देखना मालती
नहीं तो फिसल कर गिर पड़ोगी

 

 

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आधी रात को रोई बुलबुल
 
आधी रात को रोई बुलबुल
संग-संग रोई कोयल
मैना-मैना पुकारता रहा
तुमने कोई जवाब नहीं दिया
 
रुक-रुककर टिमटिमाती है
किरासन तेल की ढिबरी
आती है कि नहीं आती
मेरी याद रात में सोते वक्त
 
घर मेरा सूना आंगन भी सूना
सूना है नादान दिल
तुम्हें एक बार जब तक देख नहीं लूं
दिल को मिलती नहीं तसल्ली
 
खेत में उजड़ गई फसल
सारी मेहनत व्यर्थ गई
विधाता ने लिखी कैसी किस्मत
दुःख का होता नहीं अंत
 
शाम के वक्त तरोई के फूल खिले
छप्पर पर खिले कद्दू के फूल
जन्म-जन्म की तुम मेरी सहचर
संकट में मत छोड़ देना साथ
 
प्रेम धन से तुमने मुझे खरीद लिया
अटूट है प्रेम की बंधन
ऐसे प्रेम की उपेक्षा मत करना प्रियतमा
रहना सदा मेरे संग-संग

 

 

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आया है वैशाख
 
आया है वैशाख
हमारा प्रिय मौसम
जिसकी राह देख रहे थे हम
सालभर टकटकी लगाकर देख रहे थे
 
पगथली पर है वैशाख की आहट
फूलों ने रंगों से सराबोर कर दिया है
वसुंधरा को
जीवन की कड़वाहट धुल गई है
उम्मीद का पताका लहराने लगा है
 
वातावरण में फैल गई है खुशबू
पंछियों ने स्वागत गीत गाकर
पेड़ों ने हरियाली सौंपकर
वैशाख की अगवानी की है
 
आशा है वैशाख
हमारा प्रिय मौसम

 

 

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कैसी मोहक पुकार है तुम्हारी
 
कैसी मोहक पुकार है तुम्हारी
जिसे सुनकर भूल बैठता हूं सुध-बुध
दुनियादारी की बातें याद नहीं रहतीं
अपने आप पर नहीं रह पाता नियंत्रण
 
तुम्हारी पुकार सुनकर भूल बैठता हूं भूख-प्यास
दौड़ा चला आता हूं किसी हिरण की तरह
किसी दीवाने की तरह
सिर्फ तुम्हें करीब से देखने की चाह लेकर
 
सोचता हूं कब वह शुभ दिन आएगा
दुल्हन की लिबास में तुम मेरे साथ आओगी
कब मेरे आंगन में तुम कदम रखोगी
कब मेरी दुनिया में फैलाओगी उजाला
 
तुम्हारी सूरत की कल्पना करते हुए
रोजी-रोटी की जंग में शामिल होता हूं
सारी प्रतिकूलताओं को सहन कर सकता हूं
तुम्हें एक बार फिर देखने के लिए
 
मुझे याद है वन में कोयल का कूकना
तुम्हारी आंखों में उमड़ते हुए लगाव को महसूस करना
तुम्हारी एक-एक भंगिमा
कौंधती रहती है मेरी आंखों में

 

 

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मेरा घर सड़क के किनारे है
 
मेरा घर सड़क के किनारे है
आते-जाते हुए तुम
मिल सकती हो आसानी से
किसी भी बहाने से
दे सकती हो दस्तक
 
जान भी न्योछावर कर सकता हूं
तुम्हारी खुशी के वास्ते
अपना कलेजा निकालकर दे सकता हूं
अगर तुम्हें इसकी जरूरत हो
 
कल्पना के बगीचे में तुम बनकर मालिन
गूंथ सकती हो फूलों की माला
मैं राह देखूंगा
एक दिन पहनाओगी वही माला मेरे गले में
 
जो भी दूरी है समाज की वर्जनाएं हैं
मैं उनकी परवाह नहीं करता
चूंकि हम दोनों के हृदय की अनुभूतियों का
कोई वर्ण नहीं है कोई जाति नहीं है
 
कल आधी रात को मैंने सुनी थी
तुम्हारी सिसकी और
मैं नींद से चौंककर जाग उठा था
मेरी आंखों से भी बरसात होने लगी थी

 

 

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यह कैसा दर्द तुमने दे दिया है मुझे
 
यह कैसा दर्द तुमने दे दिया है मुझे
हर पल बनी रहती है बेचैनी
आग की लपटें सीने में लेकर भटकता फिरता हूं
अगर मैं कहीं खो गया
तो क्या ढूंढ़ पाओगी मुझे
 
कल्पना का महल ढह जाता है आंधी के थपेड़ों से
मुरझा जाता है घासवन
अगर तुम चली जाओगी
उम्मीद भी चली जाएगी
बुझ जाएगा हृदय भी
 
यह तुम्हारा जादुई प्रेम ही है
जो मेरे लिए संबल बना हुआ है
तुमने ही रंगों से सराबोर कर रखा है
भला कैसे भूल सकता हूं तुम्हारे प्यार को
 
चुपके से जो तुमने मुझे फूल दिया
उसकी खुशबू से बौराया रहता हूं
किसी से कैसे बता सकता हूं
चाहता का नशा भी अजीब होता है
 
पान सुपारी का उपहार पाकर
धन्य हो गया है मेरा हृदय
लगता है सितारे साथ दे रहे हैं
तुम्हें पाने की उम्मीद बढ़ती जा रही है

 

 

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ऐसी कौन सी जगह है
 
ऐसी कौन सी जगह है जहां तुम्हारी स्मृति
मेरे पीछे-पीछे नहीं आ सकती
जहां भुलाया जा सकता है मीठे पलों को
मोहक निगाहों को
 
न जाने कहां जाकर मेरा साथ छोड़ेगी बेचैनी
कहां पहुंचने के बाद दर्द की चट्टान मेरे सीने से
उतर पाएगी
कोई तो ऐसी जगह होगी
जहां मिल पाएगी राहत
जहां सांसों पर काबू पाकर
अतीत की तरफ पीठ फेरकर
मैं खुद को तसल्ली दे पाऊंगा
 
तुम्हारे सौंदर्य की आग से झुलसकर
बेचैन भटकता फिर रहा हूं
ऐसे सवालों के जवाब ढूंढ़ रहा हूं
जो नश्तर की तरह चुप रहे हैं मेरे वजूद में

 

 

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निहारता जा रहा हूं

 
निहारता जा रहा हूं तुम्हारे मुखड़े को
समय गुजरता जा रहा है
मुझे अपनी खबर नहीं है
सिन्दूरी मुखड़े पर शर्म की आभा
देख रहा हूं
कहीं से आ रही है पंडुक की आवाज
जिस आवाज में दर्द घुला हुआ है
 
मुझे लगता है समय ठिठक गया है
मिल गया है स्वर्ग का सुख
तुम्हारी मीठी बोली सुन रहा हूं
कानों में मिसरी घुल रही है
 
निहारता जा रहा हूं तुम्हारे मुखड़े को
इससे अधिक और क्या चाहिए
तुम्हारी आंखों में पढ़ रहा हूं प्यार का व्याकरण
नशे में डूबता जा रहा है समूचा वजूद

 

 

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तुम्हारे हाथों ने
 
तुम्हारे हाथों ने कपड़े पर कैसे
अनूठे फूल बनाए हैं
मैं जानता हूं ये फूल नहीं
तुम्हारी चाहत है
 
मैंने पूछा है नजूमी से
गांव के सबसे बुजुर्ग व्यक्ति से
अलाव सेंक रही अधेड़ स्त्रियों से
प्रेम करने में कोई बुराई नहीं
 
मैं समझने लगा हूं शुभ संकेतों का मतलब
होने लगा है तुम्हारे जादू का असर
नींद आंखों से लापता हो गई है
भूख-प्यास भी नहीं रह गई है
 
जो भी दूरी है तुम्हारे और मेरे बीच
जो समाज के बनाए नियम हैं
जो पूर्वजों की परपराएं हैं
वे हमारे मिलन को रोक नहीं पाएंगे
 
मेरी सारी पढ़ाई-लिखाई उस वक्त
किसी काम नहीं आई
जब मैं तुम्हारे खत को पढ़ने लगा
एक अनजानी आग में जलने लगा

 

 

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मुड़कर न देखना
 
मुड़कर न देखना मुझे ओ प्रियतमा
मुड़कर न देखना मुझे
नदी के घाट पर फिसल जाओगी
मुझे फिर दोष न देना
 
नाविक ने आकर रेत पर भात खाया
फेंक दिया पत्तों को
मैंने ऐसी क्या गलती की प्रियतम
देखकर भी बोलते नहीं हो
 
दूर-दूर तक तुम जैसी सुंदर
ढूंढ़ पाना है मुश्किल
तुमसे भी सुंदर कोई मिल जाए
उसके मन को समझना होगा कठिन
 
गूलर के पेड़ से पान के पत्ते तोड़ने के लिए
सीढ़ी पर चढ़ना है मुश्किल
तुम्हारे संग-संग जान भले ही दे दूं
प्रेम को मैं नहीं छोड़ पाऊंगी
 
चलो उड़ चलें बगुलों के संग प्रियतमा
चलो उड़ चलेें बगुलों के संग
बिना खाए ही कई दिनों तक गुजार सकता हूं
अगर तुम रहोगी मेरे संग

 

 

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ब्रह्मपुत्र में बढ़ गया पानी
 
ब्रह्मपुत्र में बढ़ गया पानी
मौसम हुआ है रंगीन
रंगघर परिसर में ढोल की थाप सुनकर
नाचे बगैर कैसे रह सकता हूं
 
बादल गरजते हैं गगन के सीने में
ढेकी गरजती है आंगन में
खेत-खलिहान में ढोल के बजते ही
बिहू की आहट मैंने सुन ली
 
जा रहा हूं प्रिय ठीक से रहना
अगले वैशाख में मिलेंगे
ढोल और पेंपा संग-संग लेकर
बिहू नाचने जाएंगे
 
लाल गूलर का पान है प्रियतमा
लाल गूलर का पान
साथ लेकर आना ढोल और पेंपा
बिहू नाचने जाएंगे
 
झुंड बनाकर बगुले उड़ते हैं प्रियतम
झुंड बनाकर बगुले उड़ते हैं
मेरा प्रियतम ढोल बजाता है
दिशाएं रंगीन हो जाती है
 
ढोल का स्वर सुनकर पेंपा का स्वर सुनकर
कांपते हैं पीपल की पत्ते
नर्तकी नाच रही है धरती झूम रही है
नर्तकी की खुशी का ठिकाना नहीं है

 

 

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ढोल बजाता है ढोल वादक
 
ढोल बजाता है ढोल वादक
बदन पर नहीं है कमीज
पत्ते पर खाता है बासी भात फिर भी
उमंग के साथ बजाता है ढोल
मानो उसके जैसा ढोल वादक दूसरा नहीं है
 
ठीक से ढोल बजाना रे वादक
ठीक से ताल मिलाना
ढोल की रस्सी से नाक छिल जाने पर
घर लौटकर जाना होगा
 
ढोल बजाने वाली तीन उंगलियां
थिरकती है आधी रात को
वादक की उंगलियों में जितनी फुर्ती होगी
नर्तकी का नृत्य होगा उतना ही आकर्षक
 
ढोल बजेगा धिनिकी धिनधाऊ
मृदंग बजेगा ता उ
पतले धागे से उंगलियां छिलती हैं
विदा दो घर लौट जाऊं

 

 

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गगन में चंद्रमा
 
गगन में चंद्रमा जब तक रहेगा
पृथ्वी पर पड़ेगी उसकी छाया
तुम्हारा प्यार पाने की हसरत रहेगी
कभी तो तुम मेरी दुनिया में
आकर रहोगी
 
यह कैसा रोग लगाया है मैंने
भूल गया हूं दुनियादारी की बातें
तुम्हारी ही उम्मीद दिल में लेकर
हर हाल में जिए जा रहा हूं
 
बिहू में जब मिली थी तुम
किस कदर हंस रही थी
अभी भी गूंजती है कानों में
तुम्हारी प्यारी बातें
 
बगीचे में फलों की रखवाली
करते हुए चिड़ियों को उड़ाता हूं
सताती रहती है
तुम्हारी ही यादें
 
रात के प्रथम प्रहर में गाती है कोयल
पिछले प्रहर में विलाप करता है उल्लू
आधी रात में रोता रहता हूं मैं
किस कदर सर्द होता है मेरा बिछौना

 

 

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हम मिले थे घासवन में

 
हम मिले थे घासवन में
तब हम आदिम संगीत को सुन रहे थे
उत्सव का ढोल बज रहा था
भैंसे के सींग का वाद्य यंत्र बजा रहा था चरवाहा
उसे भी किसी की याद सता रही थी शायद
वह अपनी सांसों की रुलाई को सुर में तब्दील कर रहा था
 
हम मिले थे घासवन में
शायद मौसम ने हमें उकसाया था
आसमान में अबीर उछालने के बाद सूरज
नारी की आकृति वाली पहाड़ी के कान में
फुसफुसाने चला गया था
रंग ने हमें भी कुछ पल के लिए
अलौकिक बना दिया था
धीरे-धीरे अंधेरे के रूमाल से हमने
अपने चेहरे को पोंछ लिया था
 
हम मिले थे घासवन में
जब घाेंसले की तरफ लौट रहा था चिड़ियों का झुंड
धूल उड़ाती हुई वापस जा रही थी मवेशियां
सन्नाटे का ध्यान भंग कर रहा था झिंगुर
हमारी आंखों में कौंध रहा था प्रेम
किसी मधुर लोकगीत की तरह

 

 

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वैशाख की पगडंडी से
 
वैशाख की पगडंडी से होकर तुम गुजरती हो
मेरे कलेजे को शोक चीरता है किसी धारदार हथियार से
मैं तुम्हें दिखा नहीं सकता कलेजे की लिखावट को
जहां सिर्फ तुम्हारा ही नाम लिखा हुआ है
 
कितने मौसम की मदिरा पीने के बाद
कोई बंजारा घर बसाने का सपना देखता है
कितनी नदियों को तैरने के बाद पागल प्रेमी
ढूंढ़ पाता है अपनी प्रेयसी के जूड़े के लिए कपौ फूल
 
नींद की सुरंग से होकर सपने पुकारते हुए
दूर देश की तरफ चले जाते हैं
झुलसा हुआ वर्तमान सिरहाने में बैठकर
कितनी कर्कश आवाज में लोरी गाता रहता है
 
कुछ फूल ऐसे थे जिनके नाम मैं नहीं जानता था
मगर उनकी खुशबू से मेरी तरह सभी बौराते थे
जिस तरह बारिश धो देती थी अवसाद की धूल को
उसी तरह हरे हो उठते थे कामनाओं के मुरझाए हुए पौधे
 
वैशाख की पगडंडी से होकर तुम गुजरती हो
हरियाली का विलाप रुकने लगता है
यथार्थ के कांटों का दंश भूलने लगता हूं
यह प्रेम भी कितना तिलिस्मी होता है

 

 

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नर्तकी की भंगिमाओं में

 
नर्तकी की भंगिमाओं में धड़कता है वैशाख
वह जब कमर को लचकाती है
दुनिया झुक जाती है
नर्तकी की आंखों के सम्मोहन से
दर्शक मंत्रमुग्ध हो उठते हैं
 
नर्तकी की भंगिमाओं में धड़कता है वैशाख
जवान होने लगती है आदिम भावना
गीत में निहित प्रेम, अनुभूति, दया, आराधना, उम्मीद
हमारी धमनियों में पैदा होती है सनसनाहट
 
वैशाख धोता है हमारी कलुषताओं को
हमें हरियाली के जगत में लेकर जाता है
हमें उदार बनने की सीख देता है
हमें तुच्छताओं के धरातल से ऊपर उठाकर
जीवन की महत्ता से परिचय करवाता है

 

 

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यह कैसी मोहक धुन है
 
यह कैसी मोहक धुन है जो
हमें बेसुध बना रही है
कृष्ण की बांसुरी की मीठी तान सुनकर
सुध-बुध खोने वाली गोपियों की तरह
 
ढोलक की थाप पेंपा की पुकार बांसुरी की तान
बिहूनाम की मीठी पंक्तियां
बिहू गीत-टोकारी गीत की मिठास
सपेरे के बीन की आवाज सुनकर सर्प के
अभिभूत होने की तरह
हम अभिभूत हो उठते हैं
 
‘दिन-दाऊं-दाऊ’ ढोलक की थाप
‘टक-टक-टक-टक’ टोका की आवाज सुनते ही
नसों में सिहरन होने लगती है
लोक उत्सव हमें अपनी बांहों में भर लेता है

 

 

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कितनी सदियों से
 
कितनी सदियों से लोकगीतों में बहता रहा है लोहित
कौन जानता है
कितनी सदियों से किनारे के सेमल के वृक्षों पर
पंछी बनाते रहे हैं घोंसले
कौन जानता है
 
कितनी सदियों से चरवाहे और हलवाहे गाते रहे हैं
प्रेम के गीत
कौन जानता है
कितनी सदियों से पहेली बनी रही है चाहत
कितनी सदियों से टूटता रहा है दिल
कौन जानता है
 
कितनी सदियों से हृदय की अनुभूतियां गीत बनकर
गूंजती रही है खेतों-पहाड़ों-जंगलों में
कौन जानता है

 

 

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वैशाख तुम्हारे गीतों में
 
वैशाख तुम्हारे गीतों में जीवंत हो उठते हैं
प्रकृति के समस्त उपादान
नद-नदी-ताल-तलैया
पेड़-पौधे-लता-फूल-सरकंडे
जंगल-झाड़ी-जलाशय
पर्वत और मैदान
फसल-आकाश-हवा-तूफान
बादलों की गरगराहट-बिजली की चमक
बारिश-बाढ़
पशु-पक्षी-कीट
 
वैशाख तुम्हारे गीतों में धड़कते हैं
प्रेमी जोड़े-किसानों-राजा-प्रजा के दिल
चाहत को व्यक्त करने के लिए
तुम्हारे गीत ही असरदार साबित होते हैं
 
वैशाख तुम्हारे गीतों की उपमाएं
हमारे जीवन को नए अर्थ प्रदान करती हैं
हम हर तरह के भाव-आवेग-अनुभति
दुःख-सुख-मोहब्बत
तुम्हारे गीतों में ढूंढ़ लेते हैं

 

 

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बिहू के देवी-देवता
 
बिहू के देवी-देवता कलीमती-रहिमला-बिसनदै-हेरेपी
पीपल और बरगद के पेड़ों पर रहते हैं
इन पेड़ों के नीचे नाच-गाकर
देवी-देवताओं को प्रसन्न किया जाता है
 
ये देवी-देवता प्राचीन काल से ही
पूजे जाते रहे हैं ग्राम देवता के रूप में
जो खेतों में बरसाते रहे हैं सोना
जो किसानों की गृहस्थी में बरसाते रहे हैं
सुख का आशीर्वाद
 
इन्हीं देवी-देवताओं को प्रसन्न करते हुए
आदिम समय में किसी दिन
नाच उठा था प्रेमी जोड़ा
हृदय के आवेगों का वर्णन किया था
आवेग बन गए गीत

 

 

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नर्तकी-1

 
काजीरंगा के जंगल में मासूम हिरणी
एक टक मेरी तरफ देखती है
नर्तकी भी तब चंचल हो उठती है
जब वैशाख बिहू का आगमन होता है
 
सुनो नर्तकी लाल हैं मदार के पत्ते
मदार के पत्ते लाल हैं
कमर लचका कर नाचना नर्तकी
मैंने शर्त लगा रखी है
 
बहुत दूर से चलकर कई गांवों में
नाचती-गाती हुई
इस गांव में आई है नर्तकी
अब वह नाचेगी झूमकर
 
जिस तरह जोर-जोर से नाचता है लट्टू
जोर-जोर से नाचता है चाक
हमारी यह नर्तकी जब नाचना शुरू करती है
तितली की तरह उड़ने लगती है
 
महक रहे हैं फूल दमक रही दिशाएं
गांव में उतर आई शाम
बज रहे हैं ढोलक और पेंपा
मगर नर्तकी कहीं चली गई है

 

 

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नर्तकी-2
 
जिस तरह जलाशय में उछलती हैं मछलियां
आसमान में जगमगा उठते हैं सितारे
उसी तरह उछलकर सामने आ गई हमारी नर्तकी
समाज के भीड़-भाड़ से निकलकर
 
चांद के संग-संग सितारे निकल पड़े
बढ़ गई पहाड़ी की सुषमा
हमारे संग-संग नर्तकी निकल पड़ी
बढ़ गई पगडंडी की शोभा
 
उसने हाथों में रचाई है मेंहदी
होंठों पर दमक रही है लाली
वह नाच रही है कमर लचकाकर
बह रही है पसीने की धारा
 
देखो ढोल वादक ढेकी से कूटा जा रहा धान
धान कूटा जा रहा ढेकी से
हमारी नर्तकी दौड़कर बच गई
और तुम गड्ढे में गिर पड़े
 
पानी से उछली पूठी मछली
पूठी मछली पानी से उछली
हमारी नर्तकी सामने आई
समाज के भीड़-भाड़ से निकलकर
 
ढोलक की रस्सी खुलती है बार-बार
मैं अच्छी तरह कस नहीं पाता हूं
बिहू मंडप से गायब है नर्तकी
खो गए हैं गीत के भी बोल

 

 

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नर्तकी-3
 
ढोलक बजाता वादक आया
किस घर की नर्तकी नाचेगी
ज्यादा करीब मत आना नर्तकी
कहीं बिगड़ न जाए मेरा संतुलन
 
ढोलक बजाता वादक आया
नर्तकी की सूरत निहारते हुए
चेहरे पर हंसी मोती-जैसे दांत
दिल में छिपा है कोई राज
 
ढोलक बजाता वादक आया
नर्तकी की सूूरत निहारते हुए
मत कहो कि नाचने का मन नहीं
अभी तो पसीना भी नहीं निकला है
 
ढोलक बजाता वादक आया
कहां चली गई नर्तकी
नर्तकी गई थी मछली पकड़ने
सरोवर में ही शाम ढल गई
 
खिले हैं कांसवन नदी किनारे
बढ़ गई किनारों की शोभा
तुम हो मेरी नर्तकी खुलकर नाचो
बिहू मंडप को बना दो हसीन

 

 

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नर्तकी-4
 
दरिया के ऊपर किसने बना दिया
पत्थर का पतला पुल
मां भी नर्तकी पिता भी ढोल वादक
नाचे बगैर कैसे रहूं
 
नर्तकी नाचती है धरती हिलती है
कदमों तले घास की कालीन
हमारी नर्तकी जब नाच उठती है
तितली की तरह उड़ने लगती है
 
खूबसूरत जूड़े में दमकता कपौ फूल
उसे और हसीन बना देता है
नर्तकी की सूरत को निहारना है मुश्किल
चुंधियाने लगती है आंखें
 
नर्तकी की तबियत बिगड़ गई भाई
नर्तकी की तबियत बिगड़ गई
वह खा नहीं पाई एक कौर भी
सूख गया उसका प्यारा चेहरा
 
नदी किनारे फूसों का जंगल
जहां चरती हैं मवेशियां
नर्तकी के सिर पर फूलदार गमछा
लहराता है तितली की तरह
 
नर्तकी की तबियत बिगड़ गई भाई
नर्तकी की तबियत बिगड़ गई
मन्नत मांगकर आराधना करने पर
ठीक हो गई नर्तकी

 

 

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नर्तकी-5
 
अनुरोध करने पर भी नाचती नहीं हो तुम
इतना गुमान किस बात पर
एक दिन प्राण पखेरु उड़ जाएगा
गिद्ध खाएंगे शव को
 
प्यारी नर्तकी हसीन नर्तकी
नाचती है तो घासवन लहराता है
हाथों को फैलाकर बांहों को हिलाकर
तितली की तरह उड़ती है
 
नाचते हुए तुम्हें आती है शर्म
आती है शर्म तुम्हें नाचते हुए
अभी नहीं नाचोगी तो कब नाचोगी
जब गुजर जाएगी जवानी
 
तुमको नचाता हूं ढोलक बजाता हूं
झूमता रहना चाहता हूं
नाचते-नाचते भगाकर मत ले जाना
हंसी उड़ाएंगे सारे लोग
 
नगा पहाड़ पर बज उठा ढोलक
मैदान में बजने लगा पेंपा
हसीन नर्तकी सज-धजकर निकली
हाथों में रचाकर मेंहदी

 

 

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नर्तकी-6

 
तीन उंगलियों से बजता है पेंपा
आधी रात में हिलती है उंगलियां
हमारी नर्तकी जब नाचने लगती है
तितली की तरह उड़ने लगती है
 
नदी में उछलती हैं मछलियां
मछलियां उछलती हैं नदी में
कैसे पार करेगी हमारी नर्तकी
घाट पर नहीं है कोई पुल
 
मैदान के बीच में मदार का पेड़
मदार का पेड़ मैदान के बीच में
हमारी नर्तकी को इतना नचाते हो
क्या तुमको दया नहीं आती है
 
बांसों के झुरमुट में गौर से ढूंढ़ता हूं
कैसे बनाऊंगा बांसुरी
नर्तकियों के झुंड में गौर से ढूंढ़ता हूं
कौन लचका पाएगी कमर
 
बिहू मंडप की नर्तकी कौन है भाई
बिहू मंडप की नर्तकी कौन
बिहू मंडप की नर्तकी मेरी छोटी बहन
आंचल में बांधा है सोना

 

 

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नर्तकी-7
 
मां नर्तकी पिता भी नर्तक
तुम्हें भी सिखाया नाच
झूम-झूमकर गर नाचोगी नहीं
व्यर्थ रहेगा जीवन
 
हौले-हौले मिला संदेशा
आ रहा है प्यार वैशाख
हाथों को लहराकर नाचो नर्तकी
गाकर बिहू के गीत
 
हाथोें में मेंहदी पैरों में मेंहदी
मेंहदी की रंगत लाल
नर्तकी की सूरत निहारने पर
दौड़ती है बदन में बिजली
 
ढोलक बजाता वादक निकला
नर्तकी हुई है बेचैन
बिहू गीत का मुखड़ा गाओ नर्तकी
शुरू करें जुगलबंदी
 
कपौ फूल खिले हैं प्यारे-प्यारे
पीपल के फूटे हैं कोंपल
हमारी नर्तकी ने बदली पोशाक
बन गई है सबसे हसीन

 

 

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फूलदार गमछा का गीत-एक
 
तुम पर उमड़ आया प्यार ओ सजनी
दिल में उठने लगी हूक
एक बिहू वस्त्र तुमने दिया नहीं बुनकर
क्या मैं हो गया पराया
 
पगथली के सामने बकुल फूल का पेड़
जहां झिंगुर बजाता है बांसुरी
तुमने कितने फूलदार गमछों को बुना है
बिहू तो करीब आ गया है
 
तुमने पहले बुना रेशमी कुरते को
फिर बुना तुमने मेखला
फिर तुमने बुना फूलदार गमछे को
एक फूलदार गमछा ही दे दो
 
नदी के किनारे गन्ने के खेत में
मैं गन्ने का रस निकाल रहा हूं
हथरकघे की आवाज सुन रहा हूं
गमछा मैं लेकर रहूंगा
 
नर्तकी नाची धरती हिल गई
मिट्टी पर उंगलियों के निशान
एक फूलदार गमछा नहीं दोगी तो
मेरा कर्ज बाकी रह जाएगा

 

 

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फूलदार गमछा का गीत-दो
 
मुर्गी देगी बांग ओ सजनी
मुर्गी देगी बांग
मामूली गमछा मुझे नहीं चाहिए
मुझे तो चाहिए फूलदार गमछा
 
गन्ने का रस निकाल रहा हूं सजनी
गन्ने का रस निकाल रहा हूं
मुझे अगर फूलदार गमछा नहीं मिला
तो मैं रूठ जाऊंगा
 
वह बुनती है गमछा फूलों को रचकर
ऊपर कमल की पंखुड़ियां
बिहू बाजार में अगर बेचोगी
पाओगी ढेर सारी पैसे
 
अगहन गुजर गया फागुन पहुंच गया
कूकने लगी है कोयल
कितने गमछे बुने हैं तुमने
बिहू भी नजदीक आ गया है
 
सभी तारीफ करते हैं तुम्हारी दक्षता की
किस तरह फूलों को उकेरती हो वस्त्र पर
अगर मुझे नहीं मिला फूलदार गमछा
मैं तो रुठ जाऊंगा तुमसे

 

 

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फूलदार गमछा का गीत-तीन
 
रंग बिरंगे फूल खिले हैं
रंग बिरंगे फूल
गमछा बुनकर भी तुमने मुझे दिया नहीं
टूट गया मेरा दिल
 
आंगन के कोने में तुलसी का पौधा
पश्चिम की तरफ जिसकी डाली
जैसा गमछा तुमने मुझे दिया
मछली ही इसमें फंसाई जा सकती है
 
उछल कर बच गई पूठी मछली
उछल कर बच गई शाल मछली
कैसी चादर तुमने मुझे दी
मछली ही इसमें फंसाई जा सकती है
 
तुम रोप देना खेत में धान
मैं चला दूंगा हल
तुम बना देना फूलदार गमछा
मैं सजा दूंगा हथकरघा
 
इतना हसीन फूलदार गमछा
तुमने किसके लिए बनाया
बिहू में मुझे देने का वादा कर
रकीब के लिए रख दिया

 

 

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फूलदार गमछा का गीत-चार
 
फिसल कर गिरेगी थाली ओ सजनी
फिसलकर गिरेगी थाली
एक फूलदार गमछा मुझे दे दोगी
हलका हो जाएगा मेरा दिल
 
चिकने चिकने पत्ते ओ सजनी
चिकने चिकने पत्ते
एक फूलदार गमछा नहीं दोगी तो
कोई तोहफा स्वीकार नहीं करूंगा
 
बांस के ऊपर बैठी कौन सी चिड़िया
नाचता है उजला बगुला
फूलदार गमछा लेकर ही रहूंगा
तुमने बुने हैं ढेर सारे

 

 

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फूलदार गमछा का गीत-पांच
 
कुम्हार ने बनाया बर्तन ओ सजनी
कुम्हार ने बनाया बर्तन
उपहार के संग गमछा नहीं दिया
तोड़ दिया मेरा दिल
 
छोटे पोखर में छोटी मछलियां
बड़े पोखर में रोहू
फूलदार गमछा मुझे दे दो
गले में लपेट कर झूमूं
 
चावल पीस दो खाऊंगा सजनी
चावल पीस दो खाऊंगा
फूलदार गमछा बुन दो सजनी
बिहू नाचने जाऊंगा
 
पानी में बत्तख तैरता है सजनी
कबूतर किनारे नाचता है
फूलदार गमछा दे दो सजनी
तुमने बुने हैं ढेर सारे

 

 

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ढोलक का गीत
 
सज-धजकर आया इस बार बैशाख
नाहर फूल खिलने का मौसम
बगिया में सजनी ने सुनी ढोलक की थाप
झूमने लगा तन-मन
 
सामगुड़ी हाट में ढोलक बज उठा
ताक धिन ताक धिन ताक
केले के पेड़ की नाव बनाकर
उस पार हमें जाना है
 
ढोलक की मधुरता ढोलक का आकर्षण
ढोलक की प्यारी आवाज
ढोलक की थाप सुनकर रुक नहीं पाता
खाना छोड़कर दौड़ पड़ता हूं
 
ढोलक की मधुरता ढोलक का आकर्षण
ढोलक में लग गया घुन
मरान का मोची अपने घर में नहीं है
कौन करेगा इसकी मरम्मत

 

 

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मैं दिसांग नदी में कूद जाऊंगा
 
मैं दिसांग नदी में कूद जाऊंगा
तुम्हें सपने में नजर आऊंगा
 
प्यार दोगी तो मैं भी चाहूंगा
खत भेजोगी तो जवाब लिखूंगा
 
खत में प्यार के बोल के संग
लिखकर भेजूंगा कविता
 
मेरे खत को पढ़ने के लिए
किसी रोशनी की जरूरत नहीं
न दिए की रोशनी चाहिए
न ढिबरी की रोशनी
 
मेरे कलेजे का कच्चा लहू
अंधेरे में भी दमकता है

 

 

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पंछी बनकर बैठूंगा तुम्हारे आंगन में
 
देवता ने रचा की ब्रह्मांड की
आकाश को सितारों से सजा दिया
उसी देवता ने इश्क भी किया
फिर हम क्यों नहीं कर सकते इश्क
 
मैं पर्वत-पहाड़ के ऊपर चढ़ सकता हूं
लता पर चढ़ पाना मुश्किल है
जंगली हाथी को मैं वश में कर सकता हूं
प्रियतमा को वश में करना मुश्किल है
 
नदी किनारे जंगल में मैं हाथी खो बैठा
जंग में लड़ते हुए घोड़ा खो बैठा
पाकर भी गंवा बैठा स्वर्ग का मोती
आंगन के घासवन में
 
पंछी बनकर बैठूंगा तुम्हारे आंगन में
मछली बनकर फसूंगा तुम्हारे जाल में
पसीना बनकर समा जाऊंगा तुम्हारे बदन में
मक्खी बनकर चूमूंगा तुम्हारे गालों को

 

 

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मेरे करीब मत आना
 
खुजली होती है कच्चू पत्ते से
गुदगुदी होती है कमल के पत्ते से
 
तुम हो कमल का पत्ता
मैं हूं कच्चू का पत्ता
 
मेरे करीब मत आना
तुम्हारे बदन में खुजली होने लगेगी

 

 

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मेरे प्रियतम वैशाख में आ जाना
 
मेरे प्रियतम वैशाख में आ जाना
मेरे जूड़े में कपौ फूल खोंसने के लिए
वैशाख में जब तितलियां उड़ेगी
प्यार लुटाने के लिए
क्या तुम नहीं आओगे
 
तुम्हारे और मेरे बीच है समाज की नदी
जिसे तैर कर पार करती हूं
तुम्हें पाने के लिए
 
क्या तुम समाज के डर से
नहीं आओगे
मेरे जूड़े में कपौ फूल खोंसने के लिए
 
मैं हूं चंचल हवा के झोंके की तरह
मैं हूं पंछियों के कलरव की तरह

 
मेरे प्रियतम वैशाख में आ जाना
मेरे जूड़े में कपौ फूल खोंसने के लिए

 

 

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पिछले साल बारिश के मौसम में
 
पिछले साल बारिश के मौसम में
हमारी मवेशियां मर गर्इं
मगर तुम कहीं दिखाई नहीं पड़ी
इस साल बिहू में
अगर तुमने मेरी चाहत को कबूल नहीं किया
तो मैं कभी दिखाई नहीं दूंगा
 
अगर ईश्वर दक्षिणा देने से संतुष्ट होते
मैं उनसे कहता
मेरी किस्मत में लिख देते तुम्हारा ही नाम
मैं ध्यान लगाने के लिए
हिमालय की तरफ चला जाता
पता नहीं
इतने सालों तक तुम मेरे लौटने की
राह देखती या नहीं
 
मेरे आशिक मेरे प्रियतम
ईश्वर को देने के लिए तुम सोना कहां से लाते
यह मुमकिन था कि
तुम हिमालय जाकर साधना करते
मगर तुम्हारी वापसी तक
मैं बूढ़ी हो जाती
मुझे लाठी का सहारा लेकर चलना पड़ता
 
अगर मेरी बात श्रीकृष्ण से हो पाती
मैं उनसे विनती करता
मुझे भी सिखा देते बांसुरी बजाना
कदंब की डाली पर बैठकर
मैं मीठे तराने छेड़ता
और तुम्हें वश में कर लेता
फिर तुम
हमेशा के लिए मेरी बन जाती
 
यह कोई वृंदावन नहीं है
जहां बांसुरी बजाकर तुम
सबको अपने वश में कर सकते हो

 

 

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मेरी जान आसमान है हसीन
 
मेरी जान आसमान है हसीन
मेरी जान झिलमिलाते हैं सितारे
 
मेरी जान दिल के स्वर्ग में
मेरी जान तुम मेरी मेनका
 
मेरी जान दूर-दूर रहती हो
मेरी जान सपने में मुझे देखती हो तुम
 
मेरी जान आ गई बरदैशिला
मेरी जान मिल गया बिहू का संदेशा
 
मेरी जान नाचने वालों का हुजूम
मेरी जान खुशी में होते हैं सभी पागल
 
मेरी जान तुम आ जाना
मेरी जान प्यार का तोहफा लाना
 
मेरी जान कपौ फूल लाऊंगा
मेरी जान जूड़े में लगाऊंगा
 
मेरी जान मेरी मोहब्बत को
मेरी जान कौन समझ पाएगा
 
मेरी जान कौन छू पाएगा
मेरी जान तुम्हारे दिल को
मेरी जान कौन समझेगा
मेरी जान तुम्हारी चाहत को
 
मेरी जान आधी रात के वक्त
मेरी जान रोती है पिपहरी
 
मेरी जान तेरी यादों में
मेरी जान नींद नहीं आती
 
मेरी जान आसमान है हसीन
मेरी जान झिलमिलाते हैं सितारे

 

 

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वसंत का प्रतीक है रंगाली बिहू
 
वसंत का प्रतीक है रंगाली बिहू
रंगाली बिहू के हैं कितने नाम
वैशाख बिहू- वैशागु-वायखू-बिसू-बुसू
आई-ऌगांग-चैत-संक्रांति
 
आदिम मनुष्य की धारणा ने रचा था
इस लोक उत्सव को
जो मानता था
प्रेम भरे गीतों-नृत्यों से धरती माता की
प्रजनन शक्ति बढ़ाई जा सकती है
प्रजनन शक्ति के बगैर धरती माता
प्रचुर परिमाण में शस्य उत्पन्न नहीं कर सकती
 
प्रेम भरे गीतों-नृत्यों से धरती माता
होती है शस्य संभवा
रंगाली बिहू का आयोजन करने पर
बढ़ जाती है धरती माता की प्रजनन शक्ति
 
लोकाचारों से जुड़े हैं धार्मिक रीति-रिवाज
मंगल कामना की परंपरा ताकि
ठीक से गुजर जाए पूरा साल
मवेशियों पर कोई आफत न आए
सोना उगलते रहें खेत
किसी के सामने किसान को
हाथ फैलाने की नौबत न आए
गांव-कस्बा-नबर में अमन-चैन बना रहे
इसीलिए की जाती है प्रार्थना
जलाए जाते हैं दीपक

 

 

*******


 
 
अमन-चैन का दूत वैशाख बिहू
 
ऋतु परिवर्तन के शाश्वत नियम के बीच
फिर आगमन हुआ है
पूर्वजों की धरोहर, प्राणों से भी अधिक प्रिय
अमन-चैन के दूत वैशाख बिहू का
 
उत्सव में प्रतिबिंबित होता है
कृषिजीवी जनसाधारण का आवेग-अनुभूति
प्रेम-प्रणय की
स्वतःस्फूर्त अभिव्यक्ति
 
वसंत के आगमन के साथ ही
ब्रह्मपुत्र के दोनों किनारे बसे जन-जन के मन में
नए उत्साह का होता है संचार
युवक-युवती के दिल में उठने लगती है प्रेम की लहरें
 
ऋतु परिवर्तन का मंजर युवाओं की धमनियों में
तीव्र कर देता है रक्त का संचार
वसंत के हरे स्पर्श से
रुखी-सूखी प्रकृति सुंदर और सजीव हो उठती है
पेड़-पौधे सद्यः स्नाता युवती की तरह
स्निग्ध-मोहक हो उठते हैं
 
बारिश की फुहारों से ऊर्वर होते हैं खेत
सर्जन-उत्पादन की प्रक्रिया
पुकारने लगती है बांहें फैलाकर
खुशी से मुखरित हो उठती है हृदय की भाषा
पंछियों का कलरव सुनकर
सपनों में खोई नायिका
वस्त्र बुनना भुल जाती है

 

 

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प्यारा वैशाख बिहू आ गया है
 
आज असम के आकाश में-हवा में
बजने लगा है उमंग का वाद्य
प्यारा वैशाख बिहू आ गया है
यह दिन है जश्न मनाने का
 
आओ युवकों-बूढ़ों स्वागत करो बिहू का
निकल कर आओ हसीना
बड़े-बुजुर्ग अमीर-गरीब
शराबी अफीमची दीवाने
तांबूल को चबाते हुए
मंद-मंद मुस्कराते हुए
आओ स्वागत करें बिहू का
टका-पेंपा-बांसुरी बजाते हुए
 
वैशाखी बिहू कितने रंगों को लेकर आया है
एक बार गौर से तो देखो
बाद में दर्द भरे गीतों को गाते रहना
अभी तो छेड़ो खुशी का तराना
टका-पेंपा-सीगा बजा-बजा कर
पर्वत शिखर को थर्राने दो
 
जिस दिन असम में खिलते हैं कपौ के फूल
जिस दिन असम में गाती है कोयल
जिस दिन असम में चहकती है केतकी
जिस दिन असम में वृक्ष पत्ते बदलते हैं
उसी दिन वैशाखी बिहू का होता है आगमन

 

 

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इसी तरह आता है रंगाली बिहू
 
कोयल जब मधुर स्वर में गाने लगती है
पत्तों के पीछे से गाती हुई
वसंत को जगाने लगती है
कोयल पूर्व सूचना देती है
वैशाख के आगमन की
 
वसंत की नई पोशाक धारण कर
प्रकृति बन जाती है रूपवती
प्रकृति के कोमल छुअन से
मानव मन में जाग उठता है प्रेम
सीने में पलने लगते हैं सपने
 
प्रेम का सैलाब बांध को
तोड़ देना चाहता है
प्रकृति के संग एकाकार होने की चाह
तीव्र होने लगती है
मानव मन में खुशी की लहरें उठने लगती है
इसी तरह आता है रंगाली बिहू

 

 

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जवानी को कैसे पकड़कर रख पाओगी
 
मैंने मना किया था
जोरहाट जिला मत जाना
फिर भी तुम वहां गई
किसके फुसलाने पर
तुमने मुझे छोड़ दिया
मुझसे जुदा हो गई
 
तुम्हारे बारे में सोचते हुए
मुझे नींद नहीं आती है
खाली पेट लेटा रहता हूं
चिंता सताती रहती है
सुलगता रहता है शरीर
 
मैंने तांबूल की गठरियां बनाई
चने की गठरियां बनाई
मैंने नर्तकी को पेश किया
लौंग दालचीनी
मगर अपना प्यार किसे पेश करूं
 
तुमने लाल फूलों वाला गमछा बुना है
गुलाबी फूलों वाला गमछा बुना है
फबेगा कि नहीं फबेगा
पहले ही प्रेमी को पहना कर देखती हो
 
नदी छोड़ गई अपनी धारा
सौदागर छोड़ गया किनारा
नदी के घाट पर सरकंडे का जंगल
प्रियतमा जहां भरती है पानी
 
तुम मायके में आराम फरमाती रही
मेरी उपेक्षा करते हुए
धीरे-धीरे जवानी ढल जाएगी
जवानी को कैसे पकड़कर रख पाओगी
 
 

 

 

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देखते ही उमड़ता है प्यार
 
बत्तख बनकर तैरूंगा तुम्हारे पोखर में
कबूतर बनकर बैठूंगा तुम्हारी छत पर
चींटी बनका चढ़ूंगा तुम्हारे शरीर पर
मक्खी बनकर चुमूंगा तुम्हारे गालों को
 
हाथी ने पीया पानी रात में प्रियतमा
हाथी ने पीया पानी रात में
तुम्हारे ख्यालों में इस कदर खोया
नींद नहीं आई रात भर
 
रंगीत परिधान फबता है तुम पर
कानों में प्यारा आभूषण
तुम्हें प्रियतमा छोड़ सकता हूं कैसे
भले ही रह सकता हूं खाली पेट
 
मवेशी घर से गायें बाहर निकली
बाहर निकल गए बैल
प्रभु रामचंद्र ने सीता को छोड़ा
मुझे सताने लगी चिंता
 
नहा-धोकर भक्त गुरु को प्रणाम करते हैं
घाट प्रणाम करता है नाव को
मैं सोचता हूं मेरी प्रियतमा
कब मिलेगी तन्हाई में
 
नहाने के बाद मैंने बदला भीगे वस्त्र को
धोया मैंने पैरों को
जब तक तुम्हें देखा नहीं था अच्छा ही था
देखते ही उमड़ता है प्यार

 

 

*******


 
गांव की शोभा गांव की लड़कियां
 
गांव की शोभा गांव की लड़कियां
फूल की शोभा पंखुड़ियां
झुंड की शोभा मेरी प्रियतमा सबसे सुंदर
होठों पर प्यारी मुस्कराहट
 
चलते-चलते खत्म ही नहीं होती
कितनी लंबी है यह राह
कोई बोलता है तो गौर से सुनता हूं
कहीं तुम्हारी आवाज न हो
 
तुमने रंगीन पोशाक पहनी है
पिता के पास है दौलत
मेरे सामने बार-बार आकर
बना रही हो दीवाना
 
तुम्हें जाने नहीं दूंगा
मछली पकड़ने के लिए
पांव में कीचड़ लग जाएगा
घर में ही रहना खाना पकाना
मुझसे करना मीठी बातें
 
मेरे मरने पर क्या तुम रोओगी
मेरी चिता की तरफ देखकर
दो दिनों में ही भूल जाओगी
नए सहचर को पाकर

 

 

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तुम सी हसीन दूसरी न मिली
 
चोंच में मछली लेकर
चिड़िया उड़ी आकाश की तरफ
पेड़ की डाली पर बैठकर खाने लगी
मैंने असम के कोने-कोने में ढूंढ़ा
तुम सी हसीन दूसरी न मिली
 
धान साथ लेकर जाना
पुआल छोड़ जाना
मवेशियों को खाने के लिए
पुआल के अंदर छिपा देना तांबूल
प्रेमी को उपहार देने के लिए
 
मैंने तुमसे एक तांबूल मांगा
और तुमने मेरी तरफ कटारी उछाल दी
आज के बाद नहीं मांगूगा तुमसे
बुरा मानो या भला
आज के बाद नहीं बोलूंगा तुमसे
 
कलियाबर के विशाल मैदान में
बौरा उठा था भैंसा
पगहा बनाने की तरह घुमा-फिरा कर पूछा मैंने
तुमने बताई नहीं दिल की बात

 

 

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पोखर के पानी से जी नहीं भरता

 
पोखर के पानी से जी नहीं भरता
जब तक नदी में जाकर नहाता नहीं
दूर के प्यार से जी नहीं भरता
जब तक प्यार करीब नहीं आ जाता
 
जीवन रेगिस्तान में तुम हो प्यार का झरना
यौवन से भरपूर नदी की नाव
पूजागृह में सिर झुकाकर आया हूं
किस दिन तुम मिलोगी मुझसे
 
कच्ची लकड़ी को किस तरह काट सकता हूं
सुलगाऊंगा किस तरह आग
इस तरह अगर प्यार से जुदा होना पड़े
कलेजे में सुलगती रहेगी आग
 
ब्रह्मा ने सृजन किया विष्णु ने पालन किया
एक-एक मनुष्य को
तुम्हें प्रियतमा किसने बनाया
जरा भी दया प्यार तुम्हारे अंदर नहीं छोड़ा
 
एक लकड़ी पकड़ते ही चार लकड़ियां
बहकर आती है लोहित की धारा में
मेरी प्रियतमा एक को पुकारती है
चार आशिक दौड़े चले आते हैं
 
तुम देखती हो मुझे मैं देखता हूं तुम्हें
देखने से होगा क्या फायदा
एक दिन भी अपने पास तुम्हें रख नहीं सकता
तुम हो पराये की बेटी

 

 

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प्यार हंसाता है

 
प्यार हंसाता है प्यार रूलाता है
प्यार मथता है कलेजे को
तुम्हारी चाहत में तड़पता हूं प्रिय
बसी हो तुम ही मेरे दिल में
 
कभी डांटती हो कभी फटकारती हो
कभी दिखाती हो गुस्सा
चाहे मार डालो चाहे काट डालो
मिटेगी नहीं मेरी चाहत
 
मछली बनकर तैरुंगा तुम्हारे पोखर में
कछुआ बनकर घूमूंगा किनारे-किनारे
मायावी रूप धारण कर बस जाऊंगा
तुम्हारी पलकों के ऊपर
 
मुट्ठी में भरकर पौद उखाड़ना
खेत में ठीक से रोप देना
पगडंडी पर तांबूल रखकर आया हूं
उसे खाना नहीं भूल जाना
 
प्यार की डोरी से बांधा है मैंने
तीन-चार गांठें लगाकर
उस डोरी को तोड़ कैसे सकता हूं
दिल को कैसे दुखा सकता हूं
 
भैंसे को ढूंढ़ने जंगल गया था
भालू ने तोड़ी पेड़ की हटनी
घर की चिंता प्रियतमा की चिंता
जीवन-मरण की चिंता

 

 

*******


 
 
क्या मेरी याद नहीं आती
 
तीन कमरों वाला रेलवे स्टेशन
टीन की बनाई है छत
तुम प्रियतमा चिंता मन करना
इस बार वैशाख में संग लेकर जाऊंगा
 
तिरछा है हिरण का सींग प्रियतमा
तिरछा है हिरण का सींग
ऊंचे पहाड़ से कपौ फूल लाया हूं
तुम्हारे जूड़े में खोंस दूंगा
 
राम-लक्ष्मण ढूंढ़ते हैं सीता को
हाथों में तीर-धनुष लेकर
यौवन की बेला में तुम्हें ढूंंढ़ता हूं मैं
पागल दीवाना बनकर
हवा के झोंके से ठंडक नहीं मिलती
पछवा हवा देती नहीं तसल्ली
सिर्फ बातों से दिल नहीं भरता
जब तक प्रीत नहीं करता
 
लाल नदी के किनारे मैंने जमीन नहीं ली है
मेरे नाम से जारी हुआ है पट्टा
तुम्हें भगाकर लाने की बात मैंने कही नहीं
लोग झूठ-मूठ करते हैं चर्चा
 
सवेरे-सवेरे बत्तख लड़ाते हैं इश्क
पगथली के घासवन में
भूल से भी तुम मुझे नहीं देखती
क्या मेरी याद नहीं आती

 

 

*******


 
 
रात गहराने पर
 
रात गहराने पर तुम्हारी याद आती है
बेचैन होकर मैं बाहर निकल आता हूं
बाहर निकलकर आंसू बहाता हूं
किस दिन होगा हमारा मिलन
 
धूप में सूख गया बारिश में भीग गया
खेत में पुआल का ढेर
मां जान जाएगी बापू जान जाएंगे
मुझसे प्रीत लगाना छोड़ दे
 
रंगपुर में मैंने खरीदा लौंग दालचीनी
लखीमपुर में खरीदा पान
खेत में भटककर ढूंढ़ता रहा तुम्हें
कहां काट रही हो धान
 
रेल की पटरी बिछाई किसने प्रिय
पक्की सड़क बनाई किसने
हम दोनों में इतना गहरा प्यार था
किसने घोला है अविश्वास का जहर
 
मंद-मंद चल रही पवन
झूम रही धान की बालियां
न तो मां की इच्छा है न बापू की इच्छा है
विधाता ने बनाई है जोड़ी
 
रेल की पटरी पर रेलगाड़ी चलती है
बजाती है जोर से सीटी
मैं गगन के तारे को भी छू सकता हूं
सिर्फ तुमको हासिल नहीं कर पाया

 

 

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तुम्हें पाने की तमन्ना रखता हूं

 
राजगढ़ के जंगल में मुझे जमीन नहीं मिली
मेरे नाम से जारी हुआ है पट्टा
तुम्हारे संग मैंने प्यार नहीं किया है
बेवजह लोग कर रहे हैं चर्चा
 
आधी रात में आती तुम्हारी याद
बढ़ जाती है बेचैनी
करवटें बदलता हूं आहें भरता हूं
तुम्हें पाने की तमन्ना रखता हूं
 
लाल नदी के किनारे की घास
दिन भर में हो जाती है लंबी
जब आती है तुम्हारी याद
नींद फिर रात भर नहीं आती
 
तुम्हारी पोशाक का क्या कहना प्रिय
तुम्हारी खुबसूरती का क्या कहना
तुम्हारा नाम लेकर बिहू गीत गा नहीं पाया
खुले मैदान में बैठकर
 
हौले-हौले बहती है प्यारी हवा
झूमती है धान की बालियां
कौन रकीब ले जाएगा तुमको
विधाता ने खड़ी की है दीवार

 

 

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रेल की पटरियों पर

 
रेल की पटरियों पर गुजरी रेलगाड़ी
बस्ती में ढल गई शाम
मैं राह देखता रहा तुम घाट पर नहीं आई
चांद के निकलने का वक्त हो गया
 
जब तुम खुश थी तो तुमने फूलदार गमछा दिया
और गुस्से में तुमने मुझे फटकार दिया
विदा के वक्त आंखों में आंखें डालकर
वीरान कर गई दिल का बगीचा
 
लोहित के बालूचर में
नजर आ रहे हैं कछुए के अंडे
बदन में सिहरन हो रही है दिल की धड़कन बढ़ गई है
नदी के घाट पर प्रियतमा को देखकर
 
सहेलियां बैर खा रही हैं प्रियतमा
सहेलियां बैर खा रही हैं
तुम्हारा रूप देखकर हमारा ढोलक वादक
ढोल बजाना भूल जाता है
 
लोहित की शोभा है माजुली टापू
गनन की शोभा हैं सितारे
कैसे भुलाकर मुझे चली गई तुम
गैर के घर दावत खाने

 

 

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विदा हो रही हो तो जाओ प्रिय
 
विदा हो रही हो तो जाओ प्रिय
ठिठकी मत रहो राह में
हम दोनों का दुश्मन जमाना
बता देगा घर में जाकर
 
यौवन के खेत में प्रेम का धान लगाया
झूमने लगी बालियां
तुम धान काटना मैं गठ्ठर लेकर आऊंगा
बिना खाए भी लगेगी नहीं भूख
 
विदा होकर प्रिया आती है घर में
बिस्तर पर सोती अकेली
पहले नहीं जानता था अब पता चला
कलेजे में सुलगती है आग
 
जिस दिन प्रिय तुम जवान हुई
मेरी बार्इं आंख फड़कने लगी
उसी दिन से है तुम्हारी चाहत
और कुछ भी अच्छा नहीं लगता
 
जब से तुम बड़ी हो गई
मवेशियों को चराना छोड़ दिया
तबसे तुम्हें चाहता रहा हूं
अब कैसे भुला सकता हूं
 
लाल नदी सूख गई मछली के गम में
लोहित सूख रहा है क्यों
तुम्हारे गम में सूखता जा रहा हूं मैं
मगर तुम भला सूख रही हो क्यों

 

 

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चांद सा प्यारा कुछ भी नहीं होता
 
चांद सा प्यार कुछ भी नहीं होता
तारों सा प्यारा कुछ भी नहीं होता
सबसे प्यारा तुम हो प्रियतमा
मेरी किस्मत में तुम नहीं
 
रेगिस्तान सी दुनिया में तुम हो मरुद्यान
तुम हो वसंत की कोयल
वर्षा ऋतु आने पर छोड़ मत जाना
टूटी नौका पर मुझे बिठाकर
 
कितना हसीन है तुम्हारा मुखड़ा
कितनी हसीन मुस्कुराहट
बिजली जैसी हंसी मोह लेती है
जब तुम पगथली में आती हो
 
भैंस की तरह सुंदर कुछ नहीं
भैंस की तरह प्यारी कोई नहीं
उससे भी अधिक प्यारी ससुर की बेटी
देखते ही कर देती है जादू
 
प्रियतमा के गाल पर चुंबन फिसला
हाथ से फिसल गई थाली
हाथी दांत की कंघी प्रियतमा को दूंगा
खुशी से वह झूम उठेगी
 
मां राजी नहीं बापू राजी नहीं
तुम मेरी ही बनना चाहती हो
मैं तुम्हें अपना बनाना चाहता था
मगर मेरे पास पैसे नहीं हैं

 

 

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सूरज डूबेगा तो

 
सूरज डूबेगा तो चांद निकल आएगा
टिमटिमाने लगेंगे सितारे
तुम चली जाओगी तो किसे देखूंगा
किसको बसाऊंगा दिल में
 
बिहू के आने पर गाने लगी कोयल
चहक उठी केतकी चिड़िया
बिहू के मौके पर जैसे तुम्हें देखा
रहा नहीं खुद का ख्याल
 
वैशाख बिहू में पूर्णिमा की रात
तुम संग रचाऊंगा ब्याह
हम दोनों मिलकर गृहस्थी बसाएंगे
दो दिलों का होगा मिलन
 
बड़ी नदी में बह रही है पानी की धारा
किनारे लहराता कांसवन
बगल में गगरी लेकर आई घाट पर
कर दिया मुझे दीवाना
 
नदी में आया है कैसा सैलाब
नौका ले जाना ठीक नहीं
नया-नया जोबन आया है तुम पर
निहारते रहने का जी चाहता है
 
जंगल में राजा कहलाता है सिंह
आराम से भरता है पेट
बिहू नर्तक को भूख नहीं लगती
नर्तकी का साथ मिल जाने पर

 

 

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आधी रात को
 
आधी रात को बिहूतली छोड़ जाऊंगा
भूलकर भूख और प्यास
तुम मुझे देखना मैं तुम्हें देखूंगा
मिल जाएगा हमें सुकून
 
तुम्हारी बाड़ी में खिले इंद्रजीत मालती के फूल
मेरी बाड़ी में फैली खुशबू
रात सपने में देखता हूं तुमको
कैसी ईश्वर की माया
 
तुम्हें बनाया किस देवता ने
सोना-चांदी मिलाकर
मुझे बनाया किस देवता ने
गोबर-मिट्टी मिलाकर
 
तांबूल के पेड़ पर चढ़ गई लता
मदार के पेड़ पर पान
तुम सामने न रहो तो रह सकता हूं
तुम्हें पाकर चैन से नहीं रह सकता
 
जंगल में प्रेम गीत गाया भैया ने सुनकर
घर से मुझे खदेड़ दिया
मैंने जंगल में ही गुजारी रात
प्रियतमा का दिया हुआ तांबूल चबाकर
 
जब तुम मछलियां पकड़ने आना
टोकरी को अच्छी तरह घुमाना
आगे-पीछे गौर से देखना
कहीं कोई कांटा चुभ न जाए

 

 

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इस तरफ तुम्हारा घर
 
इस तरफ तुम्हारा घर उस तरफ मेरा घर
बीच में दुश्मन का घर
अधिक आवाजाही नहीं कर सकता
मुझे तुम पराया मत समझ लेना
 
हम दोनों ने प्यार किया है
ईश्वर को साक्षी मानकर
अगर पंछी होते तो गगन में उड़ जाते
मगर पंख ही नहीं हैं
 
हम दोनों की चाहत ऐसी है
जिसका बखान मुमकिन नहीं
तुम्हारी याद जब भी आती है
दिल में हूक सी उठ जाती है
 
मैंने जतन से हल चलाया
तलैया में मछलियां पकड़ी
इतने दिनों से तुम्हें देखा नहीं
आंखें तरस कर रह गई
 
मैंने तांबूल के दो टुकड़े किए
रंगपुर बाजार के पान के साथ
खेतों में तुम्हें ढूंढ़ता फिरा
तुम कहीं नजर नहीं आई

 

 

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तुम हो मेरी मैं हूं तुम्हारा
 
तुम हो मेरी मैं हूं तुम्हारा
एक दूसरे का है साथ
विधाता ने बनाई है जोड़ी
हमें कौन जुदा कर सकता है
 
शाम के वक्त उड़ जाते हैं चमगादड़
बाड़ी के पके केले खाकर
मुझे आती है याद तुम्हारी
तुम को शायद खबर नहीं
 
पहले ही तुम्हें अपना बनाने की कसम खा चुका हूं
तुम्हारी मां कोसती है रास्ते में
बहुत पहले तुम्हारा हाथ थामने और
अपने घर लाने का वादा कर चुका हूं
 
तुम्हारी झलक पाने के लिए मैं
गया था नदी के घाट तक
बत्तख के वश की बात नहीं
कि उड़कर नदी को पार कर ले
 
कच्चे तांबूल की तरह नाजुक प्रेम
पान की तरह कलेजे की अनुभूति
वीणा की तरह प्रिय की बोली सुनकर
बढ़ गई है दिल की धड़कन

 

 

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दिखौ में पुकारता है

 
दिखौ में पुकारता है कंपनी का जहाज
अस्तबल में हिनहिनाता है घोड़ा
बदन में सिहरन तेज है धड़कन
तुम्हें देखने के बाद से ही
 
दुर्वासा मुनि बनकर शाप दूंगा तुमको
कच्ची घास में लग जाएगी आग
सुहाग रात में ही वज्रपात होगा
बिछौने पर जब तुम सोई रहोगी
 
खुले मैदान में जो चिड़िया बोल रही है
हू ब हू तुम्हारी जैसी है आवाज
वह आवाज सुनकर मैं रुक नहीं पाता
खाना छोड़कर दौड़ पड़ता हूं
 
दिखौ नदी को मैं छोड़ सकता हूं प्रिय
जांजी नदी को मैं छोड़ सकता हूं
तुम्हारा ख्याल मैं छोड़ नहीं सकता
भले ही भूखा रह सकता हूं
 
दिखौ के किनारे बरगद के नीचे
हमारे मिलने का है ठिकाना
सुबह से राह देख रहा हूं
तुम कहीं नजर नहीं आई

 

 

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रोज आधी रात को
 
रोज आधी रात को गहरी नींद में
सुनाई देती है तुम्हारी आवाज
जागकर गौर से सुनाता हूं
केतकी चिड़िया रोती है
 
तलैया के ऊपर किसने बनाया
पत्थर का मजबूत पुल
तुम्हें एक दिन भी देखे बगैर रह नहीं सकता
इतने दिनों तक कैसे रहूंगा
 
नील गगन में तुम बन जाना तारा
मैं बिजली बन जाऊंगा
तारे की रोशनी में बिजली की चमक में
हम करेंगे दिल की बातें
 
नदी का पानी बढ़ने की तरह जवान हुई तुम
भले ही उम्र में मुझसे छोटी हो
अब नर्तकी सबको मोहती है
हम संग ही चराते थे गैया
 
झरने का निर्मल पानी प्रियतम
झरने का निर्मल पानी
तुम अगर पास नहीं रहोगी तो
रहना पड़ेगा भूखा-प्यासा

 

 

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नाहर खिले हैं तगर खिले हैं
 
नाहर खिले हैं तगर खिले हैं
खिले हैं खरिकाजोई के फूल
तुम्हारे बदन में जोबन का फूल खिला है
निहारते रहने का जी चाहता है
 
नदी की तरफ मत जाना धारा तेज है
खेत की तरफ मन जाना कीचड़ है
पेड़ों की झुरमुट में मत जाना गोरी
छेड़ेंगे तुम्हें गांव के लड़के
 
पर्वत-पर्वत चढ़ सकता हूं मैं
लता पर चढ़ना है मुश्किल
पागल हाथी को भी वश में कर सकता हूं
प्रिय को वश में करना है मुश्किल
 
तीन उंगलियों से बजाता हूं पेंपा
आधी रात में हिलती है उंगलियां
तीनों उंगलियां जितनी हिलेंगी
तुम्हारे प्रति प्यार उतना बढ़ेगा
 
पूर्व में निकलता है चांद तुम हो मेरे लिए आभूषण
तुम हो अंधेरे का दीपक
तुम अगर नहीं रहोगी पास
रहना होगा मुझे भूखा-प्यासा

 

 

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फूलदार आंचल में

 
फूलदार आंचल में तुमने तांबूल बांध लिया
नृत्य के बीच चबाने के लिए
चांद जैसे मुखड़े पर खिल उठेगी हंसी
कनखियों से तुम देखोगी मुड़कर
 
तुम फूल से भी अधिक हसीन हो
सब कहते हैं तुम्हें फूलेश्वरी
तुम्हारे पिता भी नाराज भाई भी नाराज
कैसे पा सकूंगा तुमको
 
फूल बनकर खिलूंगा तुम्हारे बगीचे में
कद्दू बनकर लटक जाऊंगा तुम्हारी छप्पर पर
मैं तुम्हारे शयन कक्ष में जाकर
चूमूंगा मक्खी बनकर गालों को
 
तुमन वस्त्रों पर बुना है फूलों को
सपनों को उकेरा है गमछे पर
तुमने रात में बिहू नाचना बंद कर दिया
मैं समझ नहीं पाया ऐसा क्या हुआ
 
फूल खिल उठे हैं भौरे गुनगुनाते हैं
चूस रहे हैं फूलों का रस
नर्तकी जवान हो गई है
मुड़-मुड़कर देखते हैं लड़के

 

 

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तुम्हारी बाड़ी में खिले
 
तुम्हारी बाड़ी में खिले इंद्रजीत मालती के फूल
मेरी बाड़ी में फैली खुशबू
दिन भर सताती रही तुम्हारी याद
रात भर सुलगता रहा शरीर
 
तुम्हारी याद आते ही बेचैनी बढ़ जाती है
कोई रास्ता दिखाई नहीं देता
दिल का दर्द लेकर भटकता हूं जंगल में
जंगली बाघ भी मुझे नहीं खाता
 
तुम्हारे प्यार में मरता हूं प्रिय
तुम्हारे प्यार में मरता हूं
दिन में एक झलक तो दिखला देना
यही विनती करता हूं
 
तुम्हारी खूबियों को तब तक नहीं भूलूंगा
जब तक जान नहीं निकल जाती
अपना गम किसे बताकर जाऊंगा
जिसे सिर्फ आत्मा ही जानती है
 
सितारों की दुनिया को निहारता हूं
झिलमिला रहे हैं सितारे
तुम्हारे रूप की तरफ देखता हूं
बदन में सिहरन होने लगती है
 
00000000000000000
 
दिनकर कुमार
 
जन्म     ः    5 अक्टूबर, 1967, बिहार के दरभंगा जिले के एक छोटे से गांव ब्रह्मपुरा (मनीगाछी) में।
कार्यक्षेत्र  ः    असम
कृतियां   ः कविता संकलन ः 1∙ आत्म निर्वासन
                                 2∙ मैं आपकी भावनाओं का अनुवाद बनना 
                                    चाहता हूं
                                 3∙ क्षुधा मेरी जननी
                                 4∙ लोग मेरे लोग
                                 5∙ एक हत्यारे शहर में वसंत आता है
                                 6∙ ब्रह्मपुत्र को देखा है
               उपन्यास ः       1∙ नीहारिका
                                 2∙ काली पूजा के लिए पवित्र मिट्टी
               असमिया से पचास से अधिक कृतियों का अनुवाद।
सम्मान   ः    सोमदत्त सम्मान, जस्टिस शारदाचरण मित्र भाषा सेतु सम्मान, जयप्रकाश भारती स्मृति पत्रकारिता सम्मान, शरद भारती का अनुवादश्री सम्मान, अंतर्राष्ट्रीय पुश्किन सम्मान।
संप्रति    ः    संपादक, दैनिक सेंटिनल (गुवाहाटी)
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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: दिनकर कुमार का कविता संग्रह - वैशाख प्रिय वैशाख
दिनकर कुमार का कविता संग्रह - वैशाख प्रिय वैशाख
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