प्रमोद भार्गव का आलेख - इतिहासकारों द्वारा सम्मान लौटाने की घोषणा : इतिहासकारों का छद्म

SHARE:

    भाषाई साहित्यकारों द्वारा सम्मान लौटाने के क्रम में अब मार्क्सवादी विचारधारा के सांचे में ढालकर इतिहास लेखन करने वाले इतिहासकार भी शामि...

image


    भाषाई साहित्यकारों द्वारा सम्मान लौटाने के क्रम में अब मार्क्सवादी विचारधारा के सांचे में ढालकर इतिहास लेखन करने वाले इतिहासकार भी शामिल हो गए हैं। यह होना ही था,क्योंकि ये लोग इतिहास और साहित्य लेखन की एक ही बौद्धिक परंपरा के निष्ठावान अनुयायी हैं। गोया,देश में बढ़ती असहिष्णुता का बहाना बनाकर रोमिला थॉपर,इरफान हबीब,केएन पन्नीक्कर और मृदुला मुखर्जी समेत 53 इतिहासज्ञों ने संयुक्त बयान जारी करके नरेंद्र मोदी सरकार के विरूद्ध मोर्चा खोला है। इतिहासकारों के विरोध से साफ हो जाता है कि सम्मान वापसी का यह खेल मार्क्सवादी वैचारिक सोच के लोगों द्वारा खेमेबंदी के रूप खेला जा रहा है। इनका उद्देश्य महज विपरीत विचारधारा का विरोध करना है।

जाहिर है,ये इरादे संकीर्ण हैं। यह संकीर्णता मोदी के प्रधानमंत्री बनने के विरोध में तो सामने आई ही थी,तब भी सामने आई थी जब भारतीय पुरातत्व संस्था और भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद् से मार्क्सवादियों का सिलसिलेवार विस्थापन शुरू हुआ था। क्योंकि ये सरकारी संस्थान ही थे,जिन पर आसीन होकर इन इतिहासकारों ने न केवल मार्क्स की वैचारिकता को इतिहास में जबरन थोपा,बल्कि कांग्रेस के राजनीतिक अंजेडे को भी आगे बढ़ाया। साथ ही सुनोयोजित ढंग से राम और कृष्ण जैसे ऐतिहासिक पात्रों को मिथकीय धरातल देकर और रामायाण,पुरण व महाभारत को गल्प-कथा कहकर सिरे से खारिज करने का काम भी किया। जबकि इतिहासकारों को जरूरत यह थी कि वह गोमांस खाने जैसे विवादित मुद्दों के षड्यंत्र की शुरूआत कैसे हुई इसके स्रोत तलाश्ते ? 


    हमारे यहां वैचारिक पूर्वाग्रह इतने मजबूत हैं कि इनकी जड़ता किसी भिन्न वैचारिकता को उभरने का अवसर मिलते ही अकसर कुंद और संकीर्ण हो जाती है। यही वजह है कि मार्क्सवादी इतिहासकार कश्मीर का कैसे उत्तरोत्तर इस्लामीकरण और पूर्वोत्तर के राज्यों का ईसाईयतीकरण होता चला आ रहा है,इन तथ्यों के प्रगटीकरण को नजरअंदाज करके चले आ रहे हैं। अब केंद्र में सत्ता परिवर्तन और राष्ट्रवादी विचारधारा को सरंक्षण मिलते देख कथित लेखक व इतिहासज्ञ असहिष्णुता के बढ़ने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश का बहाना करके वैचारिक ध्रुवीकरण की और देश को धकेल रहे हैं। अन्यथा क्या वजह है कि कश्मीर से 4 लाख से भी ज्यादा हिंदू खदेड़ दिए जाते हैं, असम और पूर्वोत्तर के अन्य सीमांत प्रदेशों में बांग्लादेशी घुसपैठिए इन राज्यों का जनसंख्यात्मक घनत्व बिगाड़ देते हैं, 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों में 3000 सिख और गोधरा रेल हादसे के बाद 1000 मुस्लिम मार दिए जाते हैं, तब इन लोगों की सहिष्णुता बेचैन होकर मुखर क्यों नहीं हुई ?

वैसे भी जब नरेंद्र दाभोलकर की हत्या हुई थी,तब केंद्र और महाराष्ट्र में कांग्रेस गठबंधन की सरकारें थी। कर्नाटक में एमएम कलबुर्गी की हत्या हुई,वहां कांग्रेस सत्तारूढ़ है। दादरी में अखलाक की हत्या उस समाजवादी पार्टी की सरकार में हुई,जो मुस्लिम तुष्टिकरण हर वक्त करती दिखाई देती है। केवल ऊधमपुर में ट्रक चालक की हुई हत्या एक ऐसी घटना है,जो गोवंश की तस्करी के संदेह  में हुई। वहां भाजपा और उसके सहयोगी दल पीडीपी की सरकार है। वैसे भी संविधान के अनुसार कानून व्यवस्था राज्यों का विषय है। केंद्र सरकार,राज्य सरकार की इच्छा के बिना किसी तरह का हस्तक्षेप नहीं कर सकती। बौद्धिकता का तमगा धरण करने वाले कथित बुद्धिजीवी क्या इस कानूनी विवश्ताओं के जानकार नहीं हैं ? तय है,बुद्धिजीवियों के लिए यह प्रकरण असहिष्णुता और लिखने-बोलने की आजादी का नहीं,बल्कि अपने वैचारिक धरातल की जमीन खिसक जाने का है ? क्योंकि ये जिस विचारधारा का प्रतिनिधित्व आजादी के बाद से अब तक करते रहे हैं,उसके छीजने का अवसर देखते नहीं बन रहा है


    इतिहास घटनाओं और बदलावों का साक्षी होता है। घटनाओं और बदलावों के लिखित साक्ष्य हमारे यहां ऋग्वैदिक काल के पूर्व से मौजूद हैं। रामायण,महाभारत,पुराण,रामचरित,कृष्णचरित,हर्षचरित और राजतरंगिणी ऐसे इतिवृत्त हैं,जिनके आधार पर भारतीय इतिहास का पुनर्लेखन किया जाता तो एक उच्चकोटि का इतिहास सामने आ सकता था। इस इतिहास लेखन में भृगु,इक्ष्वाकु,इला और अन्य वर्ण व जातीय वंशावलियों को भी आधार बनाया जा सकता था। ये वंशावलियां पुराण ग्रंथों में लिपिबद्ध हैं। किंतु जिन मार्क्सवादी इतिहासज्ञ नाराजी जता रहे हैं,उनमें से ज्यादातर ने इतिहास के इन सा्रेतों को मिथकीय गल्प कथाएं कहकर नकारा है।

यही नहीं जब डॉ रामविलास शर्मा जैसे मार्क्सवाद के आधिकारिक व्याख्याकार ने ऋग्वेद,उपनिषद और विलुप्त हो चुकी सरस्वती नदी पर खोज की तो उन्हें वामपंथी आलोचक नामवर सिंह समेत तमाम बुद्धिजीवियों ने हिंदूवादी कटट्रपंथी घोषित करने में अपनी मेधा लगा दी थी। जबकि डॉ रामविलास वेदों में श्रम के महत्व और सरस्वती नदी की ऐतिहासिकता को रेखाकिंत करने कोशिश में लगे थे। वामपंथियों ने यही हरकत डॉ नगेन्द्र,आचार्य रामचंद्र शुक्ल,अज्ञेय और डॉ धर्मवीर भारती के साथ भी की थी। यही नहीं इन वामपंथियों ने तुलसी,सूर,कबीर,मीरा,विवेकानंद,महात्मा गांधी,आचार्य नरेंद्र देव,डॉ अम्बेडकर और डॉ राम मनोहर लोहिया को भी नहीं समझा। अपितु भक्तिकालीन कवियों और उनके नवजगरण से जुड़े संपूर्ण साहित्य को प्रतिक्रियावादी ठहराने की कवायद में लगे रहे। इसीलिए डॉ शर्मा ने जब अपनी परंपरा को अपने परिप्रेक्ष्य में जानने की गवेषणा की तो उन्हें हिंदूवादी लेखक ठहरा दिया। जबकि गांधी की वैचारिक विरासत को समझने वाले डॉ शर्मा इकलौते मार्क्सवादी लेखक रहे हैं। हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में गांधी पर डॉ शर्मा जैसा कार्य किसी दूसरे लेखक ने नहीं किया है।


    दरअसल हमारे यहां जो इतिहास है,उसे भी मार्क्सवादियों ने स्वतंत्र रूप से नहीं लिखा। अंग्रेज इतिहासकारों और मुगल जीवनीकारों के लेखन से उसका अनुकरण किया। यहां तक कि काल विभाजन का स्वरूप भी वही रखा,जो यूरोपीय इतिहासज्ञों ने फूट डालो और राजकारो की नीति के तहत किया था। भारतीय इतिहास को यूरोपियनों ने हिंदू काल,मुस्लिम काल और ब्रिटिश काल में विभाजित किया था। इसे जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में बैठे मार्क्सवादियों ने बदलकर क्रमशः प्राचीन,मध्यकालीन और आधुनिक भारत कर दिया। इस नाम परिवर्तन से इतिहास के कथानकों और घटनाओं में कोई बदलाव नहीं आया। जबकि इतिहास बदलावों का दस्तावेजीकरण और परिवर्तनों की यथास्थिति की व्याख्या होती है।
यही नहीं इन इतिहासकारों ने स्वतंत्रता आंदोलन का भी इतिहास नहीं लिखा।

और जिन सावरकर ने लिखा उसे इतिहास-सम्मत नहीं माना। जबकि 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के संदर्भ में प्रमाणिक तथ्य व अभिलेख एकत्रित करके पहली बार भारतीय दृष्टिकोण से इतिहास लेखन का काम उन्होंने ही किया था। सावरकार ही थे,जिन्होंने 1857 के संघर्ष को सैनिक विद्रोह या गदर मानने से इनकार किया था और इसे देश के प्रथम स्वतंत्रा संग्राम की संज्ञा दी थी। लेकिन गांधी हत्याकांड में उनकी विवादास्पद भूमिका,संविधान का विरोध,प्रखर राष्ट्रवाद और उग्र हिंदुत्व संबंधी विचारों के कारण सावरकर का एकांगी मूल्याकांन हुआ। जबकि वे मदनलाल ढींगरा जैसे देशभक्तों के प्रेरणास्त्रोत रहे थे। जबकि मार्क्सवादी इतिहासकारों का सांप्रदायिक रुझान स्पष्ट तौर से परिलक्षित होता रहा है। इरफान हबीब ने अलबरूनी को 'मुस्लिम वैज्ञानिक चिंतक' के रूप में पेश किया है। कबीर पर जब हिंदु अपना अधिकार जमाते हैं तो वे इस तथ्य को विचार के लायक भी नहीं मानते। जबकि जिन मठों में कबीर के भजन गाए जाते हैं,वे सब हिंदू जातियों द्वारा सरंक्षित मठ हैं। कबीरपंथी कहलाने वाले यही लोग कबीर की गायन परंपरा को जीवित रखे हुए हैं। रामशरण शर्मा ने अपनी पुस्तक 'प्राचीन भारत' में बड़ी सहजता से लिख दिया कि पुरातन भारतीय गोमांस खाते थे। सतीशचंद ने 'मध्यकालीन भारत' में गुरू तेगबहादुर को 'लुटेरा' तक ठहराने में कोई संकोच नहीं किया। मार्क्सवादियों ने महारणा प्रताप को भी अकबर से कमतर ठहराने में अपनी पूरी बुद्धि लगाई है।


इसी तरह जिस गोमांस खाने को लेकर देशव्यापी हल्ला मचा हुआ है,उस गोमांस की शुरूआत क्यों हुई,इसकी भी तार्किक पड़ताल इतिहासज्ञों ने नहीं की। जबकि इतिहासकार बखूबी से जानते है कि भारत में 80 से 90 प्रतिशत मुसलमान हिंदुओं से धर्मांतरित हुए है और आज भी इस कौम का मुख भोजन गोमांस नहीं है। विवाह आदि अन्य शुभ कार्यक्रमों में भी गोमांस नहीं परोसा जाता। इस सिलसिले में केंद्र में जब अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली राजग सरकार अस्तित्व में थी,तब वाजपेयी ने इस विषय को गंभीरता से लिया था। इस हेतु उन्होंने प्रसिद्ध गांधीवादी लेखक डॉ धर्मपाल को जिम्मेदारी सौंपी थी कि वे यह खोज करें कि गोहत्या की शुरूआत कब और कैसे हुई।

धर्मपाल ने ब्रिटेन के इंडिया हाउस से पहले तो मूल अभिलेखों को खंगाला। फिर उनकी विवेचना की और 2002 में अटल जी को 'भारत में अंग्रेजों द्वारा गोहत्या की शुरूआत' शीर्षक से रिपोर्ट प्रस्तुत की। इस रिपोर्ट के नाम से ही सत्यापित हो जाता है कि अंगेजों की क्रूर मंशा हिंदू मुसलमानों को लड़ाना था। दरअसल 1857 के सैन्य संधर्ष के बाद अंग्रेजों ने सैनिक संख्या में बेहिसाब बढ़ोत्तरी की थी। इनकी भोजन संबंधी जरूरतों की आपूर्ति के लिए नए बूचड़खाने खोले गए। इनमें गोहत्या और गोमांस के पेशे में मुस्लिम कसाईयों की तैनाती की गई। यह साजिश इसलिए की गई जिससे हिंदुओं को बताया जा सके कि मुसलमान गोहत्या में लगे है। यहीं से गोहत्या को लेकर हिंदु मुस्लिम समुदायों के बीच सांप्रदायिक तनाव की वारदातें शुरू हुई। यह साजिश वायसराय लॉर्ड लैंड्सडॉउने ने रची थी। इस बावत मुजफ्फरपुर में एक सभा को संबोधित करते हुए महात्मा गांधी ने कहा भी था कि जब हम अंग्रेजों द्वारा की जाने वाली गोहत्या पर रोक नहीं लगा पा रहे है तो मुस्लिमों को दोष कैसे दे सकते है। यही वे ऐतिहासिक तथ्य हैं,जिनकी पड़ताल मार्क्सवादियों को करने की जरूरत थी। लेकिन देश का दुर्भाग्य रहा कि इन वामपंथियों ने ज्यादातर इतिहास लेखन का कार्य यूरोपियन लेखकों का अनुकरण करके किया।


मार्क्सवाद से जुड़े इतिहासकार हों या साहित्यकार उन्हें तब कोई पीड़ा नहीं होती जब भारतीय नायक-नयिकाओं के चरित्र को लेकर खिलवाड़ किया जाता है। फ्रांसीसी उपन्यासकार माइकल डी ग्रीस ने 'लॉ फेम सेक्री' शाीर्षक से उपन्यास लिखा है। इसमें झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के बारे में एक नितांत झूठा प्रसंग गढ़ा गया है। इसमें वीरगांना के चरित्र को साधारण और कमजोर जताने की कोशिश की गई है। उपन्यास में लिखा है कि 'ऐसा लगता है कि उनके मन में एक अंग्रेज वकील के प्रति रागात्मक आकर्षण पैदा हो गया था और रानी का दिल इस असंभव और श्रापित प्रेम की यंत्रणा भुगत रहा था। जान लेंग नामक यह फिरंगी ब्रिटिश हुकूमत के नुमाइंदे के नाते झांसी आता-जाता था। उसका रानी से संवाद होता था।'जबकि लक्ष्मीबाई के समूचे और संक्षिप्त जीवन के बारे में भारत और ब्रिटेन में पर्याप्त तथ्य तथा अभिलेखित साक्ष्य उपलब्ध हैं। उनसे प्रमाणित है कि वे तेजस्विनी और शील व संयम से संपन्न वीरागंना थीं। इस ऐतिहासिक विभूति के बारे आरोपित कल्पना का विरोध भी इन कथित छदृम इतिहासकारों ने कभी नहीं किया।

जेम्स लेन ने अपनी किताब 'शिवाजीःहिंदू किंग इन इस्लामिक इंडिया' में शिवाजी के चरित्र पर अनर्गल लिखकर हिंदुओं की भवनाओं को तो आहत किया,लेकिन मार्क्सवादियों की भावनाएं आहत नहीं हुई। इसी तरह सलमान रुशदी की किताब 'सेटेनिक वर्सेज' और तस्लीमा नसरीन की 'द्विखंडिता' को जब भारत में प्रतिबंधित किया जाता है तो मार्क्सवादी उसके विरोध में खड़े नहीं होते,क्योंकि इन किताबों में मुस्लिमों द्वारा हिंदुओं पर किए जाने वाले अत्याचार के विवरण हैं। साफ है,मार्क्सवादी हिंदु,सिखों,बौद्ध,दलित और मुसलमानों से जुड़े घटनाक्रमों को भिन्न और पूर्वाग्रही दृष्टि से देखते रहे हैं।


    दरअसल जब 1972 में भारतीय इतिहास एवं अनुसंधान परिषद् की बुनियाद रखी गई थी और 1973 में नुरूल हसन केंद्र सरकार में शिक्षा मंत्री बने थे,तब मार्क्सवादी इतिहासज्ञों को यह घुट्टी पिलाई गई थी कि महमूद गजनवी द्वारा सोमनाथ के मंदिर की लूट तथा सोमनाथ,वाराणसी,अयोध्या और मथुरा के शिव,राम व कृष्ण मंदिरों के विध्वंस को मुगल बदशाहों के धतकर्म और उनके धर्म से जोड़कर व्याख्यायित नहीं किया जाए। साथ ही मुसलमानों द्वारा हिंदुओं के धर्मांतरण और मंदिर तोड़कर मस्जिदें बनाए जाने का उल्लेख इतिहास की पाठ्य पुस्तकों में न हो। मार्क्सवादियों ने इतिहास के साथ न केवल खिलवाड़ किया,बल्कि डॉ सुंदरलाल,सावरकर,केपी जयसवाल,रमेशचंद्र मजूमदार,किशोरी शरण लाल,आर्शीवादी लाल श्रीवास्तव,हरिहर निवास द्विवेदी और सत्यकेतु विद्यालंकार जैसे इतिहासकारों की निष्पक्ष लेखन-परंपरा को भी ध्वस्त करने का काम किय। इस लिहाज से इन इतिहासज्ञों के समूहबद्ध विरोध का न तो को कोई औचित्य है और न ही इस विरोध से इतिहास लेखन की परंपरा प्रभावित होने वाली है।

 

प्रमोद भार्गव
लेखक/पत्रकार
शब्दार्थ 49,श्रीराम कॉलोनी
शिवपुरी म.प्र.
मो. 09425488224
फोन 07492 232007
   
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार और पत्रकार हैं।

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: प्रमोद भार्गव का आलेख - इतिहासकारों द्वारा सम्मान लौटाने की घोषणा : इतिहासकारों का छद्म
प्रमोद भार्गव का आलेख - इतिहासकारों द्वारा सम्मान लौटाने की घोषणा : इतिहासकारों का छद्म
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEif4hFDHqee0oIWvmxDVYxO0dBOSW94VOfLqQcwgaJgnpNymazJBHFLDat6xzJDUsEvFIryLadqVZwclMJQ6sLv56CX8QzaXgJUnoDaZjZ4TPPgAhvDMwanJCr_KEJqVL2o9PVk/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEif4hFDHqee0oIWvmxDVYxO0dBOSW94VOfLqQcwgaJgnpNymazJBHFLDat6xzJDUsEvFIryLadqVZwclMJQ6sLv56CX8QzaXgJUnoDaZjZ4TPPgAhvDMwanJCr_KEJqVL2o9PVk/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2015/11/blog-post_4.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2015/11/blog-post_4.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content