कौआ काफी परेशान था. दरअसल उसके कई दिन से अपने घनिष्ठ मित्र तोता से मुलाकात नहीं हुई थी. उसे अपने मित्र को बताने के लिए खुशखबरी थी और वह था ...
कौआ काफी परेशान था. दरअसल उसके कई दिन से अपने घनिष्ठ मित्र तोता से मुलाकात नहीं हुई थी. उसे अपने मित्र को बताने के लिए खुशखबरी थी और वह था कि मिलने आया ही नहीं. कौऐ को बड़ी चिंता हुई कि उसका मित्र कहीं किसी मुसीबत में तो नहीं फंस गया है. कहते हैं की सच्चे मित्र की कसौटी संकट के समय होता है. वैसा सोचकर कौआ तोते से मिलने गया.वहाँ पहुँच कर कौआ देखता है कि उसका मित्र तो सचमुच उदास बैठा था.
"अरे मित्र, क्या हुआ? इस तरह उदास क्यों हो?" कौआ हैरान होते हुए पूछा.
"पंक्षी साहित्य अकादमी द्वार मेरे नाम का चयन पंक्षी कवि-सम्राट के सम्मान से सम्मानित करने हेतु किया गया है. मेरे दु:खी होने का वही वजह है." तोता बोला.
"मित्र, अकादमी द्वारा पंक्षी कथा-सम्राट हेतु मेरे भी नाम के चयन हुए हैं. वह तो हम दोनों के लिये खुशखबरी है.फिर तुम किस हेतु दु:खी हो?" कौआ आश्चर्य चकित हुआ.
"मित्र वह आवश्य खुशखबरी होता, यदि मुझे यह खबर न होती." तोता बुझे मन से बोला.
"कैसी खबर है?" कौआ थोड़े उत्सुकता से और थोड़ा आशंकित होकर पूछा.
"खबर यह है कि पंछी अकादमी द्वारा सम्मान हेतु कुछ चयनित हस्ति एक-एककर सम्मान लेना कुछ इस तरह अस्वीकार कर रहें हैं कि बाकी हस्तियों के लिये उसे स्वीकार करना संकोच की बात हो सकती है. इस तरह एक समय अकादमी और सम्मान दोनों के औचित्य पर प्रश्न-चिन्ह लगना संभावित है." तोता बताया.
"वह तो वास्तव में बुरी खबर है. मेरे विचार से किसी उच्च-कोटि हस्ती को सम्मानित कर कोई सम्मान अथवा पुरस्कार स्वयं ही सम्मानित होता है. क्योंकि कोई तभी उस मुकाम को छू सकता है जब वह पुरे दिलो-जान से अपने कार्य क्षेत्र में पुरा तल्लीन होता है. इस तरह उनका लक्ष्य बिना किसी प्रलोभन के-नि:स्वार्थ अपने क्षेत्र का विकास करना होता है,क्योंकि स्वार्थी किसी कार्य में तल्लीन हो ही नहीं सकते. सम्मान अथवा पुरस्कार तो उसके कर्म का दास है, क्योंकि कर्मफल अकाट्य होता है. फिर वैसे पहुँचे हस्तियों द्वारा सम्मान अस्वीकार करना निश्चय ही बेवजह अथवा महज एक छिछला स्वार्थ नहीं हो सकता." कौआ चिंतित होते हुए कहा.
"मित्र, किसी आशंका,संभावना या किसी बात से पूर्णतया इंकार भी तो नहीं किया जा सकता कि वह छिछलापन न हों. क्योंकि संसार में कुछ वैसे स्वार्थी भी होते हैं जो अपने सामर्थ्य का दुरुपयोग करते हैं. फिर कुछ वैसे भी हो सकते हैं जो अयोग्य होकर भी सम्मान अथवा पुरस्कार हेतु नामित हो जाते हों." तोता चिंता जताया.
"वह किस तरह संभव हो सकता मित्र!" कौआ आश्चर्य से पूछा.
"वह सब बिलकुल असंभव क्या हो सकता? यदि बिना मिहनत के कोई मुफ्त सम्मान प्राप्ति हेतु अथवा बेजा स्वार्थ पुर्ति हेतु केवल ख्याति प्राप्त करने के उद्देश्य से प्रलोभन देकर कोई सम्मान की उपाधि अर्जित सके अथवा कुछ अपनी राजनैतिक पहुँच के प्रभाव से, तो कोई दबंगता से इसे हासिल कर सके तो वैसे में यह तय करना बेहद कठिन होगा कि वे सचमुच योग्य हैं और उनके सभी निर्णय विवेकपूर्ण है." तोता बोला.
"वह तो वाकई हमारे पक्षी सभ्यता हेतु प्रतिकूल बातें होंगी. हमारी सभ्यता में गणमान्य सम्मानित इसलिए किये जाते हैं कि समाज उनकी कृतज्ञता व्यक्त कर स्वयं उपकारित हो. सम्मान अथवा पुरस्कार की राशि सम्मानित गणमान्य हेतु उक्त क्षेत्र में आगे शोध कार्य में सहायक प्रयोज्य हों. किंतु किसी सम्मान का उपाधि की तरह धारण करने या प्रदान करने की प्रवृत्ति वाकई चिंता जनक हो सकती है. इससे सम्मानित हस्ती,अकादमी और सम्मान सभी संदेहशील हो सकते हैं और एक स्वच्छ संस्कृति पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है. इससे एक सभ्यता के अस्तित्व और विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े बिना नहीं रहेगा. वैसे संभावित समस्या से निवृत्ति का क्या उपाय हो सकता है." कौआ पुछा.
"अकादमी के कार्य शैली की समीक्षा हो, सम्मानित हस्ती के नाम के चयन प्रक्रिया का मानक तय,पारदर्शी और स्पष्ट हो. यदि ऐसा करना संभव नही है तो समानता से यह तय किया जाय कि किसी जीवित हस्ती को सम्मानित न किया जाय. इससे श्रेष्ठ हस्ती अपेक्षा, उपेक्षा अथवा संशय मुक्त रहकर नि:स्वार्थ अपने क्षेत्र का विकास कर सकेंगे. यद्यपि इसके कुछ प्रतिकूल प्रभाव आवश्य हो सकते हैं किंतु किसी सम्मान का अनादर अथवा उपाधि रूप में धारण करने या त्यागने की प्रवृत्ति पर आवश्य ही अंकुश लगेगा. इससे योग्य श्रेष्ठ हस्ती का बिना भेद-भाव से सम्मान होना सुनिश्चित और संभव हो सकेगा." तोता बोला.
"किंतु अभी सम्मान अस्वीकार करने वाले गणमान्य के अस्वीकरण के पीछे क्या विचार हैं ?" कौआ पूछा.
उनका उद्देश्य निरर्थक नहीं हैं. उनका सरकार से अपेक्षा है कि साहित्यकार-पत्रकार की सुरक्षा भी सुनिश्चित हो. फिर समाजिक सहयोग से साधारण जन-मानस की सुरक्षा के दायित्व भी तो मुख्यत: सरकार के हैं. असामाजिक तत्वों पर इतना अंकुश तो आवश्य हो कि उसे कुछ भी करने की आजादी न मिल जाय. इन कलम के सिपाहियों का महत्व किसी भी तरह सीमा की सुरक्षा में तैनात जवानों से कमतर नहीं हैं. इनके जोखिम भी उतना ही हैं.
इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं कि देश,काल,संस्कृति और समाज में इनकी सेवा भी सराहनीय रही है. राष्ट्र के धुर विरोधियों ने किसी युद्ध बंदी के माफिक इनके भी दमन की चेष्टा किये. एक जांबाज की तरह सदैव समाजिक स्तर से वे भी देश हित में अपने प्राण निछावर करने तत्पर रहते हैं. किंतु इनके समक्ष भी पारिवारिक मामले की वही मसले, वही समस्या है जो सीमा सुरक्षा में लगे जवानों की होती है. समाज और सरकार से उन्हें भी वही विश्वास दिलाना क्या आवश्यक नहीं है जो किसी सीमा सुरक्षा में लगे जवान को दिलाये जाते हैं." तोता अपने विचार रखे.
"मित्र,वह सब तो ठीक है. किंतु ऐसा होने से साहित्यकार किसीके अहसान तले दब तो नहीं जायेंगे? इस तरह भीष्म पितामह की धर्म निष्ठा की भाँति साहित्य-सृजनता पर प्रतिकूल प्रभाव तो नहीं पड़ेंगे! उससे तो अच्छा यही है कि इस धर्म का स्वतंत्र,निष्पक्ष तथा यथा-साध्य पालन किया जाय. लेखनी वैसी हो जो सशक्त किंतु संयमित, खरा किंतु सृजनात्मक हो. उसमें सभी पक्षों के लिए उचित स्थान देय हो. स्वयं के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार किसी दूसरे के मौलिक अधिकार का हनन न करता हो. यह विषय विशेष गंभीर और चर्चा के विषय हैं, किंतु मूल तथ्य यह है कि समृद्ध साहित्य सृजनता हेतु इन बुद्धिजीवियों का स्वतंत्र, भयमुक्त और निष्पक्ष होना आवश्यक है. किंतु यह भी कि किसी भी बुद्धिजीवी द्वारा उचित रीती वो सही समय में सही जगह और सम्बंधित संस्थान से ही विरोध प्रकट करना चाहिए.केवल विरोध हेतु विरोध अर्थात् अंधविरोध नहीं होनी चाहिए. ताकि नये सृजन जो हो सकते हैं, वह आवश्य हो. वह भी पुर्व के विशुद्ध सृजन की बलिदान के बगैर."
अब दोनों मित्र निर्णय ले चुके थे कि एक स्वस्थ परंपरा की शुरूआत स्वयं से करते हैं. दोनों पक्षी अकादमी को पत्र द्वारा नम्र निवेदित करते हुए स्वयं को अयोग्य ठहरा कर ताउम्र सम्मान स्वीकार न करने के संबंध में लिखे. ताकि स्वयं, सम्मान और पक्षी अकादमी जैसे सृजनात्मक संस्थान के अस्तित्व और गरिमा बनी रहे और प्रत्येक अन्याय के प्रति उनका विरोध भी सदैव मुखरित रहे.
(सर्वाधिकार लेखकाधीन . प्रस्तुत रचना पूर्णतया काल्पनिक और केवल मनोरंजन हेतु है. यह किसी भी समसामयिक घटनाओं का समर्थन अथवा विरोध नहीं करता.)
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