एक जलन पुरानी ..... जब कभी , याद तुम्हारी .... मन के सपनीले समुन्दर में तिरती है एक जलन , जिन्दगी के पृष्ठों को कुतरती है ...... तुम मेरी ह...
एक जलन पुरानी .....
जब कभी ,
याद तुम्हारी ....
मन के सपनीले समुन्दर में
तिरती है
एक जलन ,
जिन्दगी के पृष्ठों को
कुतरती है ......
तुम मेरी हो न सकी
महज इसलिए
कि ......
चांदी का गुलमोहर....
टांक नहीं सका मैं ,
तुम्हारे जूड़े में
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शब्द चित्र :: बचपन , जवानी और बुढापा
भोर ...
जब सूरज की, अलसाई किरणें
नर्म हरी घास पर -
अपने आगमन की कहानी लिखती है
वो एक सलोना सपना होता है …..
जिन्दगी की किताब में ,
यही तो,
बचपना होता है ,,,,
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दोपहर ....
सूरज ऊपर चढ़ता है -
पेड़ों की हरी पत्तियों से ,
आलिंगन कर _
ऊर्जा मढ़ता है
वक्त की किताब में
जवानी पढ़ता है ...
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शाम ...
धूप,
पेड़ की फुनगियों पर
थककर लेट जाती है
ढलने को ,
थके- हारे कदमों से ....
चलने को ...
बुढापा -इसकी
परिभाषा है,
ये जिन्दगी के किताब की ...
अंतिम भाषा है .
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इन्कलाब......
गुजर गए कितने दिन -साल जिन्दगी के
ख़त्म होने नहीं आते, मलाल जिंदगी के
चढ़ नहीं सके, जो सियासत की सीढियां
पैर वो खींचते रहे ,दलाल जिन्दगी के
चांट रहे थूक को ,अमृत समझकर
कर रहे कुछ लोग, कमाल जिन्दगी के
बेच रहे हर गली चौराहे, ईमान यहाँ
बन गए हैं लोग वो ,बवाल जिन्दगी के
क्या कभी ख़त्म होगी ? जयचंदों की जमात
ठहरे हुए हैं ये, सवाल जिन्दगी के
मायूस होना, नहीं शुमार !हमारी आदत में
काटेंगे एक दिन ये, जाल जिन्दगी के
इन्कलाब तो हमारे लहू का रंग है
जलायेंगे इसी से, मशाल जिन्दगी के .....
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गजल
अपने आप से मैं, कभी गाफिल नहीं रहा
ये और बात है मैं, तेरे काबिल नहीं रहा
चाहा था समेट लूं, सारी कायनात को
अफसोस ! मुझे कुछ, हासिल नहीं रहा
हीरे मोती, चांदी सोने की, हसरत रही तुम्हें
दौलत की इस भीड़ में, शामिल नहीं रहा
पा लिया तुमने, आशियाना सपनों का
दिल तेरा रास्ता रहा मंजिल नहीं रहा
सजदे करता रहा, मन्दिर मस्जिद में
शुक्र है, मुहब्बत का कातिल नहीं रहा
समेट ली तुमने,उमंगों की खुशबुएँ
मुफलिस ये दिल, अब दिल नहीं रहा
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जिन्दगी में सुख और सम्मान कहाँ है..?
आती हो जहाँ मुहब्बत की रोशनी
इस शहर में ऐसा मकान कहाँ है ...?
दवाएं बिकती हो जहाँ, नफरत मिटाने
इस शहर में ऐसी दूकान कहाँ है
जख्मों में लगाये जो, हमदर्दी का मलहम
लोगो की भीड़ में, ऐसा मेहरबान कहाँ है
इंसानियत नहीं उगती भूख के खेतों में
ऐसी कोई फसल उगाये ,किसान कहाँ है
आबरू लुट रही, खुशबुओं की चमन में
लाज इसकी रखे, वो बागबान कहाँ है
छंट जाए काले बादल, भूख और बेकारी के
इन्हें उड़ा ले जाए, वो तूफान कहाँ है
लहू का रंग एक, फिर क्यों अलग हैं हम
जवाब देने वाला बता ,भगवान कहाँ है
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गजल
पागल होकर तेरे प्यार में
मैं अपनी पहचान खो गया
फिसल गई जमी हाथ से
मुठठी भर, आसमान खो गया
समा गई तुम दौलत की बाहों में
लगा जैसे मेरा गुलिस्तान खो गया
हवा हो गए, मर मिटने के वादे
मुझसे मेरे सपनों का मेहमान खो गया
मेरी मुस्कान और तेरी नजरों का
एक दिलकश तूफान खो गया
पसर गया अन्धेरा दिल के मकान में
जैसे इकलौता रोशनदान खो गया
दफन कहाँ करू जज्बात का वजूद
यहाँ सारा का सारा कब्रिस्तान खो गया
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आंसू
ये कैसी साजिश है जिन्दगी की
बह रहे आंखों से, जज्बात के आंसू
अफसानों की तासीर ,कैद काली घटाओं में
बरस रहे जैसे बरसात के आंसू
बाद लंबी जुदाई के, मिलन का सुख
कितने खुबसूरत हैं, मुलाक़ात के आंसू
सहेज लो मुठ्ठियों में, इन मोतियों को
बिखर न जाए कहीं, सौगात के आंसू
छेडा न करो, मेरे दिल के साज को
झर जाते हैं बेवक्त नगमात के आंसू
अनबूझ पहेली है, ये जिन्दगी
सवाल करते हैं ख्यालात के आंसू
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तन्हाई
जद्दोजहद झेलता रहा ताउम्र
कहीं कोई मुकाम न मिला
भटकता रहा उम्मीद के वीराने में
सपनों का मनचाहा अंजाम न मिला
पसरा है सन्नाटा मुहब्बत की गलियों में
आवारा दिल को कहीं आराम न मिला
हसरत रही तुम्हें चांदी के खिलौनों की
लगाता है मुझ मुफलिस का पैगाम न मिला
चाहा था पी लूं तुम्हारी मुहब्बत की शराब
सूना रहा मयखाना, कोई जाम न मिला
गर्दिश के आशियाने की ,बादशाहत रही जरुर
अफसोस मेरे वजूद को तेरा नाम न मिला
चुपके से आकर मौत डे रही दस्तक
जिन्दगी के तनहा सफर में ,तेरा सलाम न मिला
बहुत ही अजूबा है दुनिया का रंगमंच
रावण मिले अनेकों पर राम न मिला
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दर्द और आंसू
हर दर्द
एक
दास्ताँ है
जिन्दगी की गली का
टूटा मकान है
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आंसू
कभी शबनम
कभी मोती
जज्बात की तिजौरी का
छूटा सामान है
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जलजला
ख़त्म नहीं हो रह जलजला भूख का
आदमी दिन बी दिन हैवान बन रहा
जहर की नीव में जैसे ...
एक नया मकान बन रहा ...
ज़िंदा लाशों के गोदाम बने शहर
विनाश का नया तूफान बन रहा
मुश्किल है आदमी में आदमी खोजना
मशीनी युग का, ऐलान बन रहा
घिनौना हो रहा मजहब का चेहरा
नई गीता.बाइबिल, नया कुरान बन रहा
दफन हो रहे, इंसानियत के जज्बे
दिल का ‘जहां’ , वीरान बन रहा
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अहसास
जब कभी उदास होता हूँ
जिन्दगी के बहुत पास होता हूँ
अनकही दास्तानों की
अनपढा इतिहास होता हूँ
किसी के मुस्काने से
अक्सर बदहवास होता हूँ
लौटने लगती हैं बहारें जैसे
और मैं मधुमास होता हूँ
छलावा हो जाता है ये सब
जिन्दगी का प्रयास होता हूँ
परिभाषा बन जाता हूँ दर्द की
एक बिखरा संत्रास होता हूँ
टूटे सपने टूटी उमंगों का
गर्वीला आवास होता हूँ
गम जब नहाता है आंसुओं में
तब बेहतर, अहसास होता हूँ
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चाहत
ठोस सच्चाई को
तरल होने दो
फलसफे जिन्दगी के और
सरल होने दो
प्यार की नदी कहीं
अविरल होने दो
पथरीली राह अब
समतल होने दो ....
कर दो, मेरे हिस्से ‘गर्दिश’
कंठ मेरे ‘गरल’ होने दो
ठहरे जिन्दगी, प्यार का जादू
खुशनुमा इसे गजल होने दो
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नये सन्दर्भ में
मेरे गौतम
इतिहास साक्षी है
पाषाणी बन
सुधियों की आर्चाथालों में
पूजा है मैंने तुम्हारी ही छवि को
स्वीकारा है मैंने उत्पीडन
लेकिन जिस दिन सत्य का
सूरज उगेगा
पत्थर गीत गायेंगे ...
अहिल्या शापित कब रही ?
मौन प्रतिमाएं
स्वर उच्चारेंगे
राम का स्पर्श
तो
केवल साधन था
मेरा चिर सत्य
केवल मुझमें ही छिपा है....
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पता : शिव कुमार यादवD.170 RMS colony
Taigor Nagar Raipur CG
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